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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Sunday, 11 June 2017

कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती : वरुण सिंह, प्रदेश संयोजक, कला एवं संस्कृति प्रकोष्ठ, भाजपा

वो संघर्षमय दिन
By: Rakesh Singh 'Sonu'




1989
 में मैट्रिक का इक्जाम देने के बाद से ही मेरा रुझान कला एवं नाटकों की तरफ जाने लगा. स्कूल में भी बढ़-चढ़ के हिस्सा लेता था. उसी दरम्यान भारतीय जनता पार्टी से मेरा जुड़ाव हुआ. उस वक़्त शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव जी इलेक्शन में खड़े हुए थें और उनको जिताने  में हमारे एक रिश्ते के भाई स्व. अजय सिंह ने भी बढ़ चढ़ के कार्य किया था. उन्ही के साथ शुरूआती दिनों में मैं पार्टी के प्रचार-प्रसार में जुटा रहा. सारे कार्यकर्ताओं की मेहनत रंग लाई और शैलेन्द्र जी इलेक्शन जीत गए. उस समय से आजतक लगभग 26  साल होने को आए मैं भाजपा से जुड़ा रहा. 1990  में माननीय सुशिल मोदी जी विधान सभा चुनाव लड़े. जब वे जीतकर आये तो उन्होंने संगठन बनाना शुरू किया. उसी वक़्त मुझे सेक्टर अध्यक्ष बनाया गया. तब मैं पटना कॉलेज से ग्रेजुएशन भी कर रहा था. लेकिन शुरू से ही मेरा रुझान पढ़ाई से ज्यादा रंगमंच एवं राजनीति के प्रति रहा. तब के संघर्षमय दिन याद हैं जब पापा हाई स्कूल के टीचर हुआ करते थें. 200  रूपए में सेकेण्ड हैण्ड रेले साइकल लिए थें. उसी साइकल से पापा स्कूल जाते थें. जब लौटकर आते तो उनकी साइकल लेकर मैं भाजपा का झोला लटकाये संगठन का काम करने निकल पड़ता. गांव -गांव जाकर आर.एस.एस. का प्रचार-प्रसार करता था. मजे की बात ये कि उस साइकल में न ब्रेक था, न घंटी थी, और न ही मेडीगार्ड था.
   
 


माननीय सुशिल कुमार मोदी जी के नेतृत्व में हम आगे बढ़ते रहें. इसी क्रम में मुझे दो बार मंडल महामंत्री बनाया गया. उसके बाद मैं प्रदेश की राजनीति में आया और कला-संस्कृति मंच, भाजपा का प्रदेश मंत्री फिर उपाध्यक्ष और फिर प्रदेश महामंत्री बना. फ़िलहाल मैं भाजपा में कला एवं संस्कृति प्रकोष्ठ का प्रदेश संयोजक हूँ. कई संघर्ष एवं कठिनाइयों को झेलते हुए एक दौर ऐसा आया कि हमारा अपना छोटा भाई तरुण जो मेरा सहयोगी व मेरी ताक़त हुआ करता था हमेशा के लिए हमें छोड़कर चला गया. जब सी.पी.ठाकुर और रामकृपाल यादव जी का इलेक्शन हुआ और रामकृपाल यादव जी इलेक्शन जीत गए. उसी दरम्यान मेरे छोटे भाई तरुण का मर्डर हो गया. उसके पहले मेरे रिश्ते के भाई अजय सिंह जिनके साथ मैंने पहली बार भाजपा का झंडा उठाया था उनका मर्डर हो गया था. ये दो झटके मुझे बहुत दर्द दे गए. फिर एक साल के बाद मेरे पापा भी गुजर गए. भाई और पापा के नहीं रहने के बाद एक वक़्त ऐसा आया कि मेरे पास कुछ नहीं बचा. लगा कि अब हमलोगों को गांव लौट जाना पड़ेगा. लेकिन मैं इतनी जल्दी हार माननेवालों में से नहीं हूँ. भगवान एवं बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद से पैसों की किल्लत के बावजूद मैंने अपना खुद का काम शुरू करने की ठानी. फिर कुछ करीबी मित्रों के सहयोग से मेरा खुद का बिजनेस शुरू हो पाया. पार्टी में भी मेरा दायित्व बढ़ता गया.  मेरे राजनीति में आने को लेकर घर-परिवार में किसी को कोई ऑब्जेक्शन नहीं था. लेकिन गांव-जंवार के लोग-रिश्तेदार ये कहते फिरते थें कि , मास्टर साहब का लड़का नचनिया-बजनिया है. आवारा की तरह पार्टी में दौड़ते रहता है. अरे जो कोई काम का नहीं होता वो यही सब करता है. ऐसी बहुत सी निगेटिव बातें सुनने को मिलती थीं लेकिन मुझे ख़ुशी है कि मेरे माँ-बाप एवं परिवार ने मुझपर भरोसा रखा और मैंने भी विकट परिस्थितियों को झेलते हुए उनके भरोसे को कभी टूटने नहीं दिया.



1 comment:

  1. Jindagi me esi tarh aage badhte rhe ....yahi bhagwan se meri duaa h bhaiya

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