सशक्त नारी
By: Rakesh Singh 'Sonu'
मधुबनी पेंटिंग में 2013 -14 में राज्य पुरस्कार जीत चुकीं दानापुर,पटना की ममता भारती को 5 साल की उम्र में ही पोलियो हो गया था. तब इनका पूरा परिवार भागलपुर के रगड़ा गांव में रहता था. बेटी की विकलांगता ने माँ-बाप की हिम्मत तोड़ कर रख दी. तब घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और इन्ही परिस्थितियों की वजह से ममता कभी स्कूल नहीं गयीं. घर पर ही पढाई कर मैट्रिक की परीक्षा दी. तब ममता के पिता आरा में जॉब करते थें और गाँव आते -जाते रहते थें. फिर जब उनके पिता का पटना में ट्रांसफर हो गया और पहले से उनकी स्थिति अच्छी हुई तो उन्होंने ममता के साथ साथ पूरे परिवार को गांव से अपने पास पटना बुला लिया. गांव से पटना शिफ्ट होने के बाद ममता ने आर्ट्स कॉलेज में एडमिशन लिया और कॉमर्शियल आर्ट में स्नातक किया. फिर पाटलिपुत्रा स्थित उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान में जाकर पेंटिंग की बारीकियां सीखने लगीं. वहां जब इनके शिक्षक की नज़र इनकी काबिलियत पर गयी तो उन्होंने ममता को बहुत प्रोत्साहित किया. और फिर बाद में उसी संस्था में स्टूडेंट को प्रशिक्षण देने के लिए ममता को आमंत्रित किया.विकलांगता की वजह से दिव्यांग ममता ने शादी ना करके पूरी ज़िन्दगी पेंटिंग के नाम गुजारने का फैसला किया. फिर उन्होंने अपनी कमजोरी को ही ताक़त बनाकर मिथिला पेंटिंग को करियर के रूप में अपनाया.
ज्यादा वक़्त घर में गुज़ारनेवाली ममता उससे पहले अपने बचपन के शौक पेंटिंग को ज्यादा वक़्त देने लगीं. उनके इस शौक को घरवाले हमेशा प्रोत्साहित किया करते थें. अपने इस शौक को विस्तार देने के लिए जब ममता 2007 के बाद घर से बाहर निकलने लगीं तो उनकी माँ ने उन्हें यही नसीहत दी कि,'' बेटा, आगे बढ़ना है तो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना." उसके बाद ममता पेंटिंग की दुनिया में पूरी तरह से रम गयीं. गोलारोड स्थित एक निजी संस्था और पाटलिपुत्रा के उपेंद्र महारथी संस्था में आज भी ममता करीब 200 -300 महिलाओं और लड़कियों को मिथिला पेंटिंग का प्रशिक्षण दे रही हैं.
2009 से 2012 तक पटना बुक फेयर में और फरवरी, 2017 को सरस मेला में ममता का पेंटिंग एग्जीबिशन लग चुका है. 2014 में इन्हें महिला दिवस पर मोटिवेशन क्वीन अवार्ड एवं 14 वें बिहार अवार्ड सेरोमनी में अहिल्या देवी अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. विकलांगों के अधिकारों के लिए लड़ने एवं उनकी शादियां करानेवाली स्वयंसेवी संस्था 'विकलांग अधिकार मंच' जिसकी अध्यक्षा वैष्णवी हैं से भी ममता सक्रीय सदस्य के रूप में 2012 से लगातार जुड़ी हुई हैं . उनके इन्ही साहसिक प्रयासों को और प्रोत्साहित करने के लिए 'सिनेमा इंटरटेनमेंट' ने अक्टूबर, 2016 में ममता को 'सशक्त नारी सम्मान' से नवाजा है. 2017 के फरवरी में गाँधी मैदान पटना में बसंतोत्सव में संपन्न हुई पेंटिंग प्रतियोगिता में ममता को बतौर जज भी आमंत्रित किया जा चुका है.
By: Rakesh Singh 'Sonu'
मधुबनी पेंटिंग में 2013 -14 में राज्य पुरस्कार जीत चुकीं दानापुर,पटना की ममता भारती को 5 साल की उम्र में ही पोलियो हो गया था. तब इनका पूरा परिवार भागलपुर के रगड़ा गांव में रहता था. बेटी की विकलांगता ने माँ-बाप की हिम्मत तोड़ कर रख दी. तब घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और इन्ही परिस्थितियों की वजह से ममता कभी स्कूल नहीं गयीं. घर पर ही पढाई कर मैट्रिक की परीक्षा दी. तब ममता के पिता आरा में जॉब करते थें और गाँव आते -जाते रहते थें. फिर जब उनके पिता का पटना में ट्रांसफर हो गया और पहले से उनकी स्थिति अच्छी हुई तो उन्होंने ममता के साथ साथ पूरे परिवार को गांव से अपने पास पटना बुला लिया. गांव से पटना शिफ्ट होने के बाद ममता ने आर्ट्स कॉलेज में एडमिशन लिया और कॉमर्शियल आर्ट में स्नातक किया. फिर पाटलिपुत्रा स्थित उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान में जाकर पेंटिंग की बारीकियां सीखने लगीं. वहां जब इनके शिक्षक की नज़र इनकी काबिलियत पर गयी तो उन्होंने ममता को बहुत प्रोत्साहित किया. और फिर बाद में उसी संस्था में स्टूडेंट को प्रशिक्षण देने के लिए ममता को आमंत्रित किया.विकलांगता की वजह से दिव्यांग ममता ने शादी ना करके पूरी ज़िन्दगी पेंटिंग के नाम गुजारने का फैसला किया. फिर उन्होंने अपनी कमजोरी को ही ताक़त बनाकर मिथिला पेंटिंग को करियर के रूप में अपनाया.
ज्यादा वक़्त घर में गुज़ारनेवाली ममता उससे पहले अपने बचपन के शौक पेंटिंग को ज्यादा वक़्त देने लगीं. उनके इस शौक को घरवाले हमेशा प्रोत्साहित किया करते थें. अपने इस शौक को विस्तार देने के लिए जब ममता 2007 के बाद घर से बाहर निकलने लगीं तो उनकी माँ ने उन्हें यही नसीहत दी कि,'' बेटा, आगे बढ़ना है तो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना." उसके बाद ममता पेंटिंग की दुनिया में पूरी तरह से रम गयीं. गोलारोड स्थित एक निजी संस्था और पाटलिपुत्रा के उपेंद्र महारथी संस्था में आज भी ममता करीब 200 -300 महिलाओं और लड़कियों को मिथिला पेंटिंग का प्रशिक्षण दे रही हैं.
2009 से 2012 तक पटना बुक फेयर में और फरवरी, 2017 को सरस मेला में ममता का पेंटिंग एग्जीबिशन लग चुका है. 2014 में इन्हें महिला दिवस पर मोटिवेशन क्वीन अवार्ड एवं 14 वें बिहार अवार्ड सेरोमनी में अहिल्या देवी अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. विकलांगों के अधिकारों के लिए लड़ने एवं उनकी शादियां करानेवाली स्वयंसेवी संस्था 'विकलांग अधिकार मंच' जिसकी अध्यक्षा वैष्णवी हैं से भी ममता सक्रीय सदस्य के रूप में 2012 से लगातार जुड़ी हुई हैं . उनके इन्ही साहसिक प्रयासों को और प्रोत्साहित करने के लिए 'सिनेमा इंटरटेनमेंट' ने अक्टूबर, 2016 में ममता को 'सशक्त नारी सम्मान' से नवाजा है. 2017 के फरवरी में गाँधी मैदान पटना में बसंतोत्सव में संपन्न हुई पेंटिंग प्रतियोगिता में ममता को बतौर जज भी आमंत्रित किया जा चुका है.
Mamta di ... we appriciate
ReplyDeleteThank U
Deletenice mamta
ReplyDeleteThanx
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 22 जुलाई 2017 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
Ok
Deleteहौसला और जज्बा हो तो क्या नहीं हो जाता
ReplyDeletesahi kaha aapne
Deleteप्रेरक व्यक्तित्व को नमन।
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteप्रेरणादायक व्यक्तित्व का परिचय देने हेतु सादर आभार।
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