सशक्त नारी
By: Rakesh Singh 'Sonu'
पटना,मसौढ़ी की 24 वर्षीया दिव्यांग शबा परवीन जहानाबाद के राजकीय महर्षि पतंजलि मध्य विधालय, महलचक में शिक्षिका हैं. उनका छोटा सा परिवार मसौढ़ी के रहमतगंज में किराये की झोंपड़ी में रहता है. पिता रिजवान नज़र वहीँ जामा मस्जिद के पास चाय का स्टॉल लगाते हैं. शबा छोटी उम्र में ही पोलियो की शिकार हो गयीं थीं. उनके कमर के नीचे का भाग निष्क्रिय हो गया है जिससे वे चल-फिर नहीं सकतीं.लेकिन परिवार की गरीबी व दिव्यांगता शबा के हौसले को नहीं तोड़ पायी.
मसौढ़ी के टी.एल.एस. कॉलेज से स्नातक करने के बाद वह लगातार प्रतियोगिता परिक्षाओं में शामिल होती रहीं. इसी दरम्यान उन्होंने एस.टी.ईटी. क्वालिफाइड किया और बतौर उर्दू शिक्षिका ज्वाइन किया. शबा के रोजाना की रूटीन कुछ ऐसी है कि वह सुबह घर से छोटी बहन शाबिया की पीठ पर लटककर स्कूल पहुँचती हैं. फिर जहानाबाद स्टेशन से बहन की पीठ पर लटककर तारेगना स्टेशन जाती हैं और ट्रेन से जहानाबाद पहुँचती हैं. फिर जहानाबाद स्टेशन से बहन की पीठ पर लटककर स्कूल आती हैं. उनके स्कूल में शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है. कई महीनो तक वेतन तक नहीं मिला फिर भी तमाम मुश्किलों को झेलते हुए शबा एक साल से शिक्षण कार्य में सलंग्न हैं.
वहीँ डी.एन.कॉलेज, मसौढ़ी की इंटर छात्रा 17 वर्षीया शाबिया परवीन दिव्यांग शबा की छोटी बहन हैं. एक तरफ परिवार को सहारा देने और दूसरी तरफ अपनी बड़ी बहन के सपने को साकार करने की दिशा में शाबिया परवीन न सिर्फ अपना बेशकीमती वक़्त बल्कि शारीरिक श्रम भी दे रही हैं. जब इनकी बड़ी बहन शबा की बतौर शिक्षिका नौकरी लगी तो परेशानी ये हुई कि रोज घर से 20 कि.मी. दूर स्कूल कैसे आ-जा पायेगी. जब एक ऑटो चालक से बात की गयी तो उसने प्रतिमाह 8000 रूपए भाड़ा बताया. घर की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी और ऐसे में शबा की नौकरी एक उम्मीद की किरण थी. फिर क्या था छोटी बहन शाबिया आगे आई और रोज शबा को पहुँचाने-लाने का जिम्मा स्वेक्षा से ले लिया. वह रोजाना शबा को अपनी पीठ पर लटकाकर मसौढ़ी से जहानाबाद स्कूल तक पहुँचाने लगी. इस दरम्यान शबा को पीठ पर लिए उन्हें 2 -3 कि .मी. पैदल चलना पड़ता है. ये साहस भरा काम वे लगभग एक साल से अनवरत कर रही हैं फिर भी उन्हें कोई तकलीफ नहीं. पूछने पर कहती हैं कि "मैं मदद नहीं करुँगी तो फिर कौन करेगा? जब तक मैं हूँ दीदी को कोई दिक्कत नहीं आने दूंगी."
11 से 4 बजे तक शबा का शिक्षण कार्य चलता है तब उसी दौरान वक़्त का सदुपयोग करते हुए शाबिया स्कूल के बरामदे में बैठकर अपनी भी पढ़ाई कर लेती हैं. इन दोनों बहनो के इस सराहनीय कार्य को देखते हुए अक्टूबर,2016 में चर्चित गायक, नेता व अभिनेता मनोज तिवारी जी ने सिनेमा इंटरटेनमेंट द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अपने हाथों सशक्त नारी सम्मान से नवाजा था.
By: Rakesh Singh 'Sonu'
पटना,मसौढ़ी की 24 वर्षीया दिव्यांग शबा परवीन जहानाबाद के राजकीय महर्षि पतंजलि मध्य विधालय, महलचक में शिक्षिका हैं. उनका छोटा सा परिवार मसौढ़ी के रहमतगंज में किराये की झोंपड़ी में रहता है. पिता रिजवान नज़र वहीँ जामा मस्जिद के पास चाय का स्टॉल लगाते हैं. शबा छोटी उम्र में ही पोलियो की शिकार हो गयीं थीं. उनके कमर के नीचे का भाग निष्क्रिय हो गया है जिससे वे चल-फिर नहीं सकतीं.लेकिन परिवार की गरीबी व दिव्यांगता शबा के हौसले को नहीं तोड़ पायी.
मसौढ़ी के टी.एल.एस. कॉलेज से स्नातक करने के बाद वह लगातार प्रतियोगिता परिक्षाओं में शामिल होती रहीं. इसी दरम्यान उन्होंने एस.टी.ईटी. क्वालिफाइड किया और बतौर उर्दू शिक्षिका ज्वाइन किया. शबा के रोजाना की रूटीन कुछ ऐसी है कि वह सुबह घर से छोटी बहन शाबिया की पीठ पर लटककर स्कूल पहुँचती हैं. फिर जहानाबाद स्टेशन से बहन की पीठ पर लटककर तारेगना स्टेशन जाती हैं और ट्रेन से जहानाबाद पहुँचती हैं. फिर जहानाबाद स्टेशन से बहन की पीठ पर लटककर स्कूल आती हैं. उनके स्कूल में शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है. कई महीनो तक वेतन तक नहीं मिला फिर भी तमाम मुश्किलों को झेलते हुए शबा एक साल से शिक्षण कार्य में सलंग्न हैं.
वहीँ डी.एन.कॉलेज, मसौढ़ी की इंटर छात्रा 17 वर्षीया शाबिया परवीन दिव्यांग शबा की छोटी बहन हैं. एक तरफ परिवार को सहारा देने और दूसरी तरफ अपनी बड़ी बहन के सपने को साकार करने की दिशा में शाबिया परवीन न सिर्फ अपना बेशकीमती वक़्त बल्कि शारीरिक श्रम भी दे रही हैं. जब इनकी बड़ी बहन शबा की बतौर शिक्षिका नौकरी लगी तो परेशानी ये हुई कि रोज घर से 20 कि.मी. दूर स्कूल कैसे आ-जा पायेगी. जब एक ऑटो चालक से बात की गयी तो उसने प्रतिमाह 8000 रूपए भाड़ा बताया. घर की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी और ऐसे में शबा की नौकरी एक उम्मीद की किरण थी. फिर क्या था छोटी बहन शाबिया आगे आई और रोज शबा को पहुँचाने-लाने का जिम्मा स्वेक्षा से ले लिया. वह रोजाना शबा को अपनी पीठ पर लटकाकर मसौढ़ी से जहानाबाद स्कूल तक पहुँचाने लगी. इस दरम्यान शबा को पीठ पर लिए उन्हें 2 -3 कि .मी. पैदल चलना पड़ता है. ये साहस भरा काम वे लगभग एक साल से अनवरत कर रही हैं फिर भी उन्हें कोई तकलीफ नहीं. पूछने पर कहती हैं कि "मैं मदद नहीं करुँगी तो फिर कौन करेगा? जब तक मैं हूँ दीदी को कोई दिक्कत नहीं आने दूंगी."
11 से 4 बजे तक शबा का शिक्षण कार्य चलता है तब उसी दौरान वक़्त का सदुपयोग करते हुए शाबिया स्कूल के बरामदे में बैठकर अपनी भी पढ़ाई कर लेती हैं. इन दोनों बहनो के इस सराहनीय कार्य को देखते हुए अक्टूबर,2016 में चर्चित गायक, नेता व अभिनेता मनोज तिवारी जी ने सिनेमा इंटरटेनमेंट द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अपने हाथों सशक्त नारी सम्मान से नवाजा था.
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