8 जून, शनिवार
की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू',
प्रीतम कुमार व तबस्सुम अली) पहुंची पटना के दीघा हाट, हरिपुर कॉलोनी में इनोवेशन के
लिए राष्ट्रपति से सम्मानित शालिनी की फैमली के घर. जहाँ हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप
में युवा मनोवैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार भी शामिल हुयें.
इस कार्यक्रम
को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के
हाथों शालिनी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.
फैमली परिचय-
शालिनी दानापुर, बी.एस. कॉलेज में बी.एस.सी. सेकेण्ड ईयर की छात्रा हैं और मेडिकल की
तैयारी कर रही हैं. हार्टमन गर्ल्स हाई स्कूल में शालिनी जब 9 वीं क्लास में थीं तभी
इन्होने वॉकर विद एडज़स्टेवल लेग का इनोवेशन किया. इसके लिए शालिनी को 2011 में भूतपूर्व
राष्ट्रपति डॉ. ए.पी .जे अब्दुल कलाम के हाथों अहमदाबाद में सम्मान मिल चुका है. शालिनी
के दादा जी श्री लखनलाल भगत उद्योग विभाग के एकाउंट्स डिपार्टमेंट से 1996 में रिटायर्ड
किएँ. शालिनी की दादी का नाम है श्रीमती सरोज देवी. शालिनी के पिता श्री सुबोध कुमार
भगत का यूनिफॉर्म मैनफैक्चरिंग का अपना बिजनेस है. माँ श्रीमती किरण देवी हाउसवाइफ
हैं. शालिनी के बड़े भाई सत्यांकर शानू अकाउंट्स ऑनर्स से ग्रेजुएशन कर एम.बी.ए. की
तैयारी कर रहे हैं. छोटा भाई शांतनु संत पॉल्स में 10 वीं का स्टूडेंट है.
शालिनी का
इनोवेशन - शालिनी के दादा जी को एक बार चोट लगी तो उन्हें कुछ दिनों तक वॉकर के सहारे
चलना पड़ा लेकिन वे सीढ़ियों पर नहीं चढ़ पाते थें. उनके हालात को देखकर शालिनी को ख्याल
आया कि ऐसा वॉकर बनाया जाये जिसके सहारे सीढ़ियों या ऊँची-नीची जगहों पर भी चला जा सके.
इसके बाद से ही वह इस आइडिया पर वर्क करने लगीं तब वह 9 वीं क्लास की स्टूडेंट थी.
डिजाइन तैयार होते ही उसे नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के पास भेजा जहाँ सेलेक्शन भी हो
गया. शालिनी को इस नायाब इनोवेशन के लिए 2011 में अहमदाबाद के आई.आई.एम. में तत्कालीन
राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के हाथों इग्नाइट अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका
है. शालिनी के एचीवमेंट की पूरी कहानी आप के
कॉलम शाबाश में पढ़ सकते हैं.
शालिनी ने
बोलो जिंदगी को यह जानकारी दी कि मुंबई की एक कम्पनी विश्को से उनका एग्रीमेंट हुआ
है जिसके तहत जल्द ही उनके इनोवेटिव आईडिया पर बने मोडिफाइड एडजस्टेबल वॉकर की सेल
मार्किट में होने लगेगी.
क्या कहते
हैं शालिनी के पापा ? - सुबोध कुमार भगत शालिनी
की इस कामयाबी से ख़ुशी जाहिर करते हुए कहते हैं कि ‘आमतौर पर हमारे सामाजिक परिवेश
में बेटे की शोहरत से बाप-दादा का नाम रौशन होता है लेकिन हमारे घर-परिवार में तो बेटी
की वहज से पूरे खानदान का नाम रौशन हो रहा है, इसलिए हमें गर्व है अपनी बेटी के ऊपर’.
परिवार के
अन्य लोगों का टैलेंट - शालिनी का छोटा भाई शांतनु भी शालिनी से प्रेरित होकर कोई ना
कोई इनोवेशन करता रहता है. अपने इनोवेशन आईडिया को उसने एक-दो बार भेजा है लेकिन अभी
उसका सलेक्शन नहीं हुआ है. फिर भी उसका प्रयास जारी है. तीनों भाई बहनों में एक चीज
कॉमन है कि तीनों को पेंटिंग का शौक है और उनके अंदर ये शौक पैदा होने की वजह उनकी
माँ हैं. क्यूंकि उनकी माँ सरोज देवी भी बहुत अच्छी पेंटिंग किया करती थीं. वे 18
-19 की उम्र में पेंटिंग सीखने जाया करती थीं. जमशेदपुर में पेंटिंग की डिग्री भी हासिल
कर चुकी हैं. बोर्ड एवं कपड़े पर फेब्रिक पेंटिंग बहुत किया है. शादी के बाद भी पेंटिंग
का शौक जारी रहा और आस-पड़ोस की लड़कियां तब आकर इनसे मुफ्त में सीखा करती थीं.
सन्देश:
मौके पर बतौर स्पेशल गेस्ट डॉ. मनोज कुमार ने शालिनी की फैमली से मिलकर व खासकर शालिनी
के टैलेंट को देखकर अपने सन्देश में कहा कि - "शालिनी ने जिस तरह अपने दादा जी
को प्रॉब्लम में देखकर जो इनोवेशन कर डाला, उनके प्रयास को इमोशनल इंटेलिजेंस कहा जाता
है. परिवार से लगाव व संस्कारों की वजह से इनका इमोशनल इंटेलिजेंस हाई रहा. जब आप अपने
परिवार से संस्कृति से जुड़े रहते हैं तो इमोशनल इंटेलिजेंस आपका बढ़ता जायेगा. अभी तो
शालिनी की शुरुआत है अभी इन्हे बहुत आगे तक जाना है जिसे हम ही नहीं पूरी दुनिया देखेगी."
(इस पूरे
कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता
है.)
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