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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Monday, 29 July 2019

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : जान्हवी सिन्हा की फैमली, न्यू पाटलिपुत्रा कॉलोनी, पटना



27 जुलाई , शनिवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार व तबस्सुम अली) पहुंची पटना के न्यू पाटलिपुत्रा कॉलोनी में गिटार आर्टिस्ट एवं सिंगर जान्हवी सिन्हा के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में टीवी के प्रोड्यूसर-डायरेक्टर श्री यशेंद्र प्रसाद भी शामिल हुएं. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों जान्हवी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- जान्हवी नॉट्रेडेम स्कूल में क्लास 11 वीं की स्टूडेंट हैं. फ़िलहाल जान्हवी पढाई को लेकर म्यूजिक की प्रैक्टिस कम कर पा रही हैं और आगे वो क्लैट की तैयारी भी करना चाहती हैं. बड़े भाई अभी सिन्हा एमआरएम में बीटेक सेकेण्ड ईयर के स्टूडेंट हैं दिल्ली में. वो पहले कैसियो सीखते थें.
जान्हवी ज्वाइंट फैमली में रहती हैं, उनके चाचा के बेटे वेदांत सिन्हा दिल्ली में हैं जो डांस बहुत अच्छा करते हैं. जान्हवी के पापा का नाम अतुल सिन्हा है, वो एलआईसी में काम करते हैं. दादा जी विपिन बिहारी सिन्हा, वो भी एलआईसी में ही काम करते थें. दादी का नाम है श्रीमती सुशीला सिन्हा. जान्हवी के दो चाचा हैं जिनकी पूरी फैमली है और सब साथ में रहते हैं.

जान्हवी की ट्रेनिंग - जान्हवी ने 2 साल पटना के तानसेन संगीत महाविधालय में प्रकाश शरण के सानिध्य में गिटार का प्रशिक्षण लिया है. गिटार व सिंगिंग के प्रति अचानक से रुझान पैदा हुआ बॉलीवुड फिल्म 'रॉकस्टार' देखकर तब जान्हवी 7-8 वीं में थीं. उसके पहले खुद को बाथरूम सिंगर ही मानती थीं. बचपन में दोनों भाई-बहन एक संगीत इंस्टीच्यूट में साथ ही जाते थें, जान्हवी डांस तो अभी कैसियो सीखते थें. अब जान्हवी का डांस में इंट्रेस्ट नहीं है, सारा फोकस वोकल एवं गिटार में है. इनकी मम्मी जया सिन्हा भी बचपन में गुरु नागेंद्र मोहिनी जी से नृत्य सीखती थीं. तब शास्त्रीय नृत्य 4 ईयर तक सीखकर उन्होंने छोड़ दिया था. लेकिन जया जी चाहती थीं कि उनकी बेटी भी डांस सीखे. इसलिए जान्हवी को दो महीने डांस क्लास भी करवायीं लेकिन उसका इंट्रेस्ट इसमें ज्यादा नहीं था तो जया जी ने भी इसके लिए कोई प्रेशर नहीं दिया. जब संगीत के प्रति उसका रुझान देखा तो उन्होंने उसे संगीत के क्षेत्र में ही आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया. जान्हवी प्रयाग समिति से संगीत का इक्जाम देती हैं, लन्दन कॉलेज से म्यूजिक का इक्जाम देती हैं. वेस्टर्न और क्लासिकल यानि गिटार और वोकल दोनों का इक्जाम देती हैं .

उपलब्धि - रोहा एकेडमी वाले एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाये थें तो उसमे एक सॉन्ग के लिए जान्हवी का सलेक्शन हुआ था लेकिन वो तब फिल्म में नहीं जाना चाहती थी.  इंडियाज गॉट टैलेंट, राइसिंग स्टार, लिटिल चैम्प्स जैसे बहुत से रियलटी शो में ऑडिशन देकर सलेक्ट हुई हैं. राइसिंग स्टार में सलेक्ट होकर लखनऊ तक गयी थें लेकिन फिर मुंबई जानेवाले राउंड में नर्वस होकर अपना गाना गड़बड़ कर बैठीं. तीन चार बार जान्हवी ऐसे ही नर्वस होकर गड़बड़ कर चुकी हैं. इंडियाज गॉट टैलेंट में तो वे बहुत छोटी थीं, उसमे वे डांस के लिए गयी थीं, उसमे भी शुरूआती दौर में सलेक्शन हो गया था. स्कूल में जब भी कोई स्पेशल प्रोग्राम होता तो उसके लिए जान्हवी को सामने से बुलाया जाता था कि आकर गाओ-बजाओ.

जान्हवी की प्रैक्टिस - अभी पढाई की वजह से प्रैक्टिस के लिए टाइम नहीं मिल पा रहा है, कभी छुट्टी वाले दिन सुबह या रात में चार-पांच घंटे लगातार बैठकर थोड़ा बहुत प्रैक्टिस कर लेती हैं. वैसे तो गिटार बजाना ज्यादा पसंद है लेकिन उसके साथ-साथ गाने का एक अपना ही मजा है. जान्हवी को पुराने सदा बहार रोमांटिक गाने बहुत अच्छे लगते हैं क्यूंकि उसका म्यूजिक भी बड़ा सॉफ्ट होता है.

जान्हवी का सपोर्ट - मम्मी-पापा का सपोर्ट तो जान्हवी को बचपन से ही मिलता रहा है, अब पूरी फैमली का भी सपोर्ट मिलने लगा है. एक बार जान्हवी ने यूँ ही गिटार पर हनुमान चालीसा बजाना शुरू किया, फिर उसको रिकॉर्ड करके दादा-दादी को इसकी जानकारी दी तो वे लोग ईयर फोन लगाकर काफी देर तक वह धुन सुने थें और बहुत खुश हुए थें. जान्हवी जब भी कोई एक्सपेरिमेंट करती है सबसे पहले दादा-दादी को जाकर दिखाती है. फिर उनकी ख़ुशी जान्हवी को और भी प्रोत्साहित करती है.
जान्हवी ने बताया कि जिन गुरु जी से वो गिटार सीखती थी अभी भी उनका काफी सपोर्ट मिलता है. जब लखनऊ ऑडिशन में जाना था तो उसके पहले प्रकाश सर घर में अपना हारमोनियम लेकर आये और बोले कि "इसको ऑडिशन में जाना है तो इसपर प्रैक्टिस करेगी." जान्हवी गिटार, हारमोनियम और कैसिओ बजा लेती है.

परफॉर्मेंस - फिर बोलो ज़िन्दगी की फरमाइश पर जान्हवी ने गिटार पर अपने मूड का धुन बजाकर सुनाया और गिटार की धुन के साथ ही अपना पसंदीदा गीत गाकर सुनाया जिसकी सभी ने दिल खोलकर तारीफ की. उसके प्रदर्शन को देखते हुए स्पेशल गेस्ट श्री यशेंद्र प्रसाद ने उसको कुछ ज़रूरी टिप्स दिए कि वो कैसे और बेहतर कर सकती है, किस तरह से अपने टैलेंट को सोशल मीडिया के माध्यम से दुनिया कि नज़र में ला सकती है.

अब विदा लेने से पहले बोलो ज़िन्दगी टीम ने जान्हवी की फैमली को एक जगह इकट्ठा किया और एक यादगार फैमली पिक्चर प्रीतम कुमार ने कमरे में कैद कर लिया.

 (इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है)





















Sunday, 21 July 2019

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : श्रीमती पूनम धानुका मोर की फैमली, नागेश्वर कॉलोनी, पटना



20 जुलाई , शनिवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार व तबस्सुम अली) पहुंची पटना के नागेश्वर कॉलोनी में भजन गायिका श्रीमती पूनम धानुका मोर जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में बिहार गौरव से सम्मानित वरिष्ठ गायक सत्येंद्र संगीत जी भी शामिल हुएं. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों पूनम जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- पूनम धानुका मोर जी के हसबैंड श्री सुनील मोर इन्कमटैक्स सेलटेक्स डिपार्टमेंट में एडवोकेट हैं, उनका भतीजा उनके ही साथ रहता है जो सीए है और उसकी पत्नी भी सीए है. भतीजा का नाम है पंकज मोर और उसकी पत्नी एकता मोर जो घर के ही एक कंसल्टेंसी फर्म में काम करते है. पूनम जी के दो बच्चे हैं. बड़ा बेटा है कार्तिक मोर, छोटा बेटा है तेजस मोर और दोनों ही इंजीनियरिंग लाइन में हैं. बड़ा बेटा हैदराबाद में तो छोटा केरल में है.
   पूनम जी का मायका है रांची. ये तीन बहने हैं और तीनों की शादी एक ही घर में हुई है. ये एक यूनिक चीज है कि तीन सगी बहनों की शादी एक ही घर के तीन सगे भाइयों से हुई है. इसलिए उनके भतीजा-भतीजी उन्हें चाची ना बोलकर मौसी ही बोलते हैं. ऐसे तो पूनम जी का ससुराल है दुमका में जहाँ इनकी पूरी ज्वाइंट फैमिली रहती है.

पूनम धानुका मोर का टैलेंट - पूनम जी बोलो ज़िन्दगी को बताती हैं, "नार्मली हॉउस वाइफ की ज़िन्दगी जी रही थीं लेकिन अब तीन-चार सालों से भजन गायिकी कर रही हूँ. बचपन का शौक था भजन गाना. पहले पटना में ही लोकल गाती थी लेकिन अब बाहर भी जाने लगी हूँ. मैं चूँकि राजस्थान कल्चर से बिलॉन्ग करती हूँ और माड़वाड़ियों में जो हमारा होता है श्याम जी का पाठ, मंगल पाठ, दादी जी का पाठ, भजन कीर्तन, अखंड ज्योत ये सारे भजन से रिलेटेड जितने भी प्रोग्राम होते हैं करती हूँ. इस तरह के प्रोग्राम में मैंने देखा है कि लोग लाऊड भी गाते हैं लेकिन मुझे शौक है कि मैं थोड़े शांत भाव के भजन गाउँ."

https://www.youtube.com/watch?v=Nlag4m9FNPY

उपलब्धि -  पूनम जी ने बताया कि, "2016 में मेरा म्यूजिक एल्बम आया था 'मंदिर सज गया प्यारा-प्यारा' जिसमे 25 भजन हैं. उसमे देवी गीत, श्याम जी और हनुमान जी के भी गीत हैं. अगले हफ्ते एक और एल्बम के लिए शूट होने वाला है, पहले उस भजन का वीडिओ एल्बम मैं अपने यू ट्यूब पर डालूंगी. मेरा यू ट्यूब चैनल है मोर फिल्म्स उसमे मेरे जितने भी स्टेज प्रोग्राम हैं उसके लाइव और ऑडियो सॉन्ग्स मिल जायेंगे. मैं इधर खुद से भजन लिखना भी शुरू की हूँ. धुन भी दिमाग में आ जाता है.

YOUTUBE LINK :-
https://www.youtube.com/channel/UC1el9iCkseCypooNjreOChA

   बिहार में समस्तीपुर,सिवान और दरभंगा जा चुकी हूँ. बिहार के बाहर की बात करूँ तो मैंने लखनऊ में बड़ा स्टेज प्रोग्राम किया है, वहां 26 जनवरी को हमेशा डोली उत्सव प्रोग्राम होता है जहाँ दो जोड़ों की शादी कराई जाती है, उनके प्रोग्राम में मैं गा चुकी हूँ. दादी मंगल पाठ में मुझे बहुत ज्यादा मज़ा आता है."


स्ट्रगल - पूनम जी आगे बताती हैं कि, "थोड़ा स्ट्रगल इसलिए करना पड़ा क्यूंकि पहले फैमिली से इजाजत नहीं मिली थी लेकिन चूँकि मेरे हसबैंड बहुत सपोर्टिव हैं और उन्होंने कभी भी मुझे किसी भी चीज के लिए रोका नहीं. जब मेरे दोनों बच्चे बड़े हो गएँ और बाहर चले गएँ तो लगता था कि मुझे भी कुछ करना चाहिए. तो मैं पहले हसबैंड के साथ ऑफिस करती थी. घर पर हमारा ऑफिस था तो मैंने ऑफिस ज्वाइन कर रखा था लेकिन जब घर से बाहर ऑफिस शिफ्ट हुआ तो मैंने छोड़ दिया. फिर मुझे दिनभर घर में यूँ ही खाली रहना अच्छा नहीं लगता था तो मैंने बचपन के शौक सिंगिंग पर ध्यान दिया. मैंने अभी तक कहीं किसी गुरु से संगीत की कोई शिक्षा नहीं ली है. धीरे-धीरे खुद से सीख भी रही हूँ और गा भी रही हूँ. दो साल पहले भारतीय नृत्य कला मंदिर में श्री मनोरंजन ओझा जी के पास गयी थी लेकिन एक महीने से ज्यादा कंटीन्यू सीख नहीं पायी क्यूंकि बीच में घर-गृहस्थी की थोड़ी प्रॉब्लम आने लगी. उसकी वजह से वो लिंक टूट गया लेकिन अब फिर से मैं उनसे सीखना चाहती हूँ. "

फिर बोलो ज़िन्दगी की फरमाइश पर पूनम मोर जी ने अपने मूड के भजन गीत गाकर सुनाएँ जो कर्णप्रिय लगें.

पूनम धानुका मोर जी को गायिकी का टिप्स और शुभकामना देने के बाद हमारे स्पेशल गेस्ट सत्येंद्र संगीत जी ने जाते-जाते बोलो जिंदगी के रिक्वेस्ट पर अपनी मधुर आवाज में भजन और सावन का कजरी गीत गाकर भी सुनाया.

https://www.youtube.com/watch?v=h8AggZqPX1k


















Saturday, 20 July 2019

ट्रांसजेंडर अमृता सोनी ने लॉन्च किया स्नैक्स स्टॉल "मल्लिका-ए-ज़ायका"


पटना, (स्टोरी-राकेश सिंह 'सोनू') अगर राह चलते आपको जोरों की भूख लग जाये और एक ट्रांसजेंडर "मल्लिका-ए-जायका" बनकर आपको ताजा और स्वस्थ भोजन जैसे- वाड़ा पाव, मीसा पाव, आलू पकोड़ा, प्याज़ पकोड़ा, बड़ा पकोड़ा एवं शाकाहारी खाद्य पदार्थ का जायका परोस दे और वो भी सस्ती दरों पर तो आपको थोड़ी हैरानी होगी ना !... जी हाँ, 19 जुलाई को पटना के एक्जीविशन रोड स्थित आशियाना टावर कैम्पस में ट्रांसजेंडर सोशल एक्टिविस्ट अमृता सोनी जी द्वारा आशियाना टावर एजेंसी के सेक्रेटरी और ध्येय क्लास एन्ड इंस्टीट्यूट के मालिक के सहयोग से "मल्लिका-ए-जायका" नाम से स्नैक्स कॉर्नर स्टॉल का एक छोटा सा स्टार्टअप शुरू किया गया.

       इस खास मौके पर एचआईवी पीड़ितों के लिए वर्क करनेवाली सोशल एक्टिविस्ट एवं स्टॉल ऑनर अमृता सोनी जी ने बोलो ज़िन्दगी को स्पेशली थैंक्स कहते हुए कहा कि "आपके बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन द्वारा आयोजित कुकिंग कॉन्टेस्ट "मल्लिका-ए-ज़ायका" में विनर बनने के बाद मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और मैंने सोचा क्यों ना अपने इस शौक को बाहरी दुनिया में प्रदर्शित किया जाए...फिर मुझे ये फूड स्टॉल खोलने का आइडिया आया जो स्पेशली दिव्यांग व ट्रांसजेंडर समुदाय द्वारा ही संचालित होगा. और तभी मैंने अपने इस पहले फूड स्टॉल का नाम भी "मल्लिका-ए-ज़ायका" रखा है, इसके प्रति प्रेरित करने के लिए मैं पूरी बोलो ज़िन्दगी टीम की शुक्रगुज़ार हूँ".

   https://www.youtube.com/watch?v=1JjsBKizCu0&t=14s

इस मौके पर डॉ. प्रियव्रत जी ने बोलो ज़िन्दगी को बताया की "जब अमृता जी अपने स्टॉल के लिए जगह तलाश रही थीं तो कई स्थानीय दुकानदारों ने इन्हे हतोत्साहित करते हुए डराया और ऐसा करने से मना भी किया. लेकिन किसी के कहने पर वे मुझसे मिलीं और मुझे अच्छा लगा कि एक ट्रांसजेंडर भी लीक से हटकर काम करते हुए ट्रांसजेंडर एवं दिव्यांग समुदाय के हित के लिए कुछ करने का जज्बा रखती हैं. इसलिए हमने आशियाना टावर कम्पनी के कई मेंबर्स के मना करने के बावजूद उन्हें स्टॉल के लिए जगह मुहैया कराया."

इनके 'मल्लिका-ए-जायका" फूड स्टॉल की ख़ासियत भी "नो वेरी स्पाइसी, नो वेरी ऑयली...ऑनली हेल्दी फ़ूड" थीम ही होगी. इस मौके पर बोलो ज़िन्दगी टीम से राकेश सिंह सोनू, तबस्सुम अली व प्रीतम कुमार के साथ-साथ विकलांग अधिकार मंच की अध्यक्षा कुमारी वैष्णवी, सदस्य बेबी कुमारी, किन्नर अधिकारी मंच बिहार के अध्यक्ष भरत कौशिक एवं आशियाना टावर के ज्वाइंट सेक्रेटरी डॉ.प्रियव्रत जी भी इस नेक कार्य के लिए अमृता सोनी की टीम को प्रोत्साहित करने के लिए मौजूद थें..



Tuesday, 16 July 2019

शुरू के 6 महीना बाद ही मैं बिना बताये सेट छोड़कर घर भाग गया था - चेतन शर्मा, उड़ान फेम डायरेक्टर


मैं गोरखपुर यू.पी. से बिलॉन्ग करता हूँ, लेकिन मेरी पैदाइश और परवरिश सब मुंबई में हुई है. ग्लैमर इंडस्ट्री की तरफ कभी मेरा फोकस रहा ही नहीं लाइफ में. मगर एक चीज इतना पता था कि जो एक काम करूँगा उसे चेंज नहीं करूँगा. हम मीडिल क्लास फॅमिली से बिलॉन्ग करते हैं. पहले से कुछ प्लान नहीं था कि ग्रेजुएशन के बाद क्या करना है. घर में बोला गया कि अब अपने पैरों पर खड़े हो जाओ, कोई काम करो. फिर मैंने अपने एक अंकल से कहा- "काम क्या करूँ मैं ?" उन्होंने कुछ बोला नहीं. सिर्फ यही कहा- "कल सुबह 5 बजे तैयार होकर आ जाना." मैं सुबह उठकर पहुँच गया उनके घर. वे बाइक निकाले अपना, मुझे बैठाएं और लेकर चले गएँ. बारिश भी हो रही थी. याद है मुझे गोरेगांव में बाला जी का सबसे बड़ा स्टूडियो है 'संक्रमण', वे वहां लेकर गएँ. मैं वहां कैमरा-लाइट देखकर चौंका, काम चालू था. कसौटी जिंदगी की शो का सूट चल रहा था. शो के डायरेक्टर मेरे अंकल के दोस्त थें. वे डायरेक्टर से मिलवाएं और बोलें- "मेरा भतीजा है, इसको रख लो अपने साथ." वे बोले- "ठीक है." अंकल उनसे कुछ बातचीत किये और फिर बाहर आकर मुझसे बोले- "देख, तू अभी इनके साथ लग जा और ये जैसा बोलेंगे वैसा ही करना." मैंने कहा- "मगर मुझे तो ये सब करना होगा पता ही नहीं था." तो अंकल ने एक बात बोली- "मैंने बचपन से तुझे ऑबजर्व किया है और तेरा जो दिमाग है ना वो क्रिएटिव माइंड वाला है. तू वैसा आदमी नहीं है जो 9 टू 6 वाली ड्यूटी कर सकता है. मुझे ऐसा लगा कि तुझे यहाँ पर होना चाहिए इसके लिए मैं तुझे यहाँ पर लेकर आया हूँ. बाकि ये रास्ता तेरा है, तू कहाँ तक जा सकता है और कहाँ तक अचीव करेगा ये तेरे को डिसाइड करना है."
पहला दिन था मुझे कुछ काम का पता नहीं था. डायरेक्टर साहब बोलें- "जाओ जाकर आर्टिस्ट को बुलाकर ले आओ." मैं गया बुलाने. सबसे पहले मैंने कसौटी ज़िन्दगी की सीरियल की मुख्य अभिनेत्री कामोलिका यानि उर्वशी ढ़ोलकिया का दरवाजा नॉक कर के बोला- "मैडम, शार्ट रेडी है." तो मेरे को देखकर वे बोलीं- "तुम नए आये हो क्या यहाँ पर ?" मैंने बोला- "हाँ". उन्होंने फिर पूछा- "कब ज्वाइन किया ?" मैंने कहा- "आज सुबह." फिर वो हंसने लगीं और कहा- "चलो ठीक है आती हूँ." तब बाद में मुझे मालूम चला कि उनका एक टाइमिंग होता है, जब वो सेट पर आती हैं और उनको कोई बुलाने जाता नहीं है. वो सेट पर आयीं तो मैं वहीँ बैठा हुआ था. मेरे सामने जब कैमरा रोल हुआ और उनका जब एक्टिंग शुरू हुआ तो मैं जोर से हंस पड़ा. जबकि सेट पर शूट के वक़्त साइलेंट होता है. वो मुझे देखीं और पूछ बैठीं "क्यों हंस रहे हो तुम" और इसी के साथ शूटिंग रुकवा दी. डायरेक्टर साहब तो हमारे पहचान के थें वो बुलाएँ हमें और पूछे- "क्या हुआ...इसमें हंसनेवाली क्या चीज है ?" मैंने कहा- "नहीं, बस मुझे एक्टिंग देखकर हंसी आ गयी." वे बोले- "ठीक है, एक काम करो तुम पीछे बैठो, उनके सामने नहीं जाना वरना उनको बुरा लगेगा." फिर पीछे बैठकर मैंने मॉनिटर पर देखना शुरू किया और पहला दिन ऑबजर्व करना शुरू किया कि होता क्या है. पहला दिन ऐसे ही निकल गया. मैं बहुत ज्यादा कन्फ्यूज था, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है. मैंने वहां 6 महीने असिस्टेंट में किया और मुझे ये बस ड्यूटी जैसा ही लगा. लेकिन मैं फ्रस्टेड हो गया अपनी लाइफ से. किसी को बताया नहीं और सेट छोड़कर घर भाग गया. एक महीने तक मैं अपने घर पर बैठा था और झूठ बोलता रहा कि अभी शूटिंग बंद है, जब बुलाएँगे तब जाऊंगा. जब एक दिन अंकल का फोन गया डायरेक्टर साहब के पास तो वे बताएं कि वो लड़का तो आ ही नहीं रहा है. फिर अंकल घर पर आएं और वजह पूछी. "तो मैंने कहा- "समझ में नहीं आ रहा काम." वे बोले- "फिर करेगा क्या तू ?" मैंने कहा- "मुझे लगा ही नहीं वहां की मैं काम कर रहा हूँ." वे बोले- "ठीक है चलो एक बार और ट्राई करके देखते हैं क्या होता है ?" फिर मुझे वे सेट पर लेकर गएँ. डायरेक्टर ने पूछा- "तुझे प्रॉब्लम क्या हो रही है ये बता ?" मैंने कहा- "सर, मुझे काम नहीं समझ में आ रहा कि आपलोग करते कैसे हो ?" उन्होंने बोला - "एक काम करो, एक और डायरेक्टर हैं मैं तुझे उनके पास भेजता हूँ. एक बार उनके साथ जाकर काम करो. लेकिन एक बात याद रखना, उनके पास तू काम करेगा तो कोई गारंटी नहीं है वो तुझे मार भी देगा, गाली भी देगा मतलब वैसे आदमी हैं जो अपने काम के प्रति बहुत परफेक्शन रखते हैं." फिर मैं गया सोहेल तातारी के पास जो बड़े डायरेक्टर थें. मैंने उनके साथ पहले दिन जो काम किया मुझे मालूम हुआ कि काम होता क्या है. जो ऑबजर्वेशन उनकी स्क्रिप्ट पर होती है, जो एक्टर्स से उनकी बातचीत होती है और जो कैमरा एंगल लगवाते हैं वो मुझे अट्रैक्ट किया. फिर उनके काम को जब मैंने टेलीविजन पर देखा तब मुझे लगा ये चीज मुझे फील कर गयी है. फिर 6 महीने मैंने उन्हें असिस्ट किया. मैं सिदार्थ सेन गुप्ता के साथ ज्वाइन हो गया. 
सोहेल जी महीने में सिर्फ एक एपिसोड करते थें चार-पांच दिन का. और बाकि के 26 दिन घर पर बैठकर सिर्फ चार दिनों में मैं कुछ बन नहीं जाऊंगा. तो उन्होंने मुझे दूसरे डायरेक्टर सिद्धार्त सेन गुप्ता के साथ काम पर लगाया और जो एक्च्युल काम है मैंने उनके साथ सीखा. सिदार्थ सेन गुप्ता के साथ हमने एक शो शुरू किया था बालिका वधु. उनके 5 असिस्टेंट थें और उनमे पहले असिस्टेंट में मेरा नाम आने लग गया. फिर उन्होंने मुझसे पूछा- "तू करेगा क्या शो ?" मैंने कहा- "अगर इंडिपेंडेंट मिलेगा तो जरूर करूँगा." उन्होंने बताया कि एक शो आनेवाला है 'तेरे मेरे सपने' स्टार प्लस का, अगर तू चाहता है करना तो मैं बात करता हूँ वहां पर."मैंने कहा- 'आप कर लो बात." उनके रिफ्रेंस से मुझे वो काम मिल गया. मेरी लाइफ का पहला शो था बतौर डायरेक्टर, तब मेरी उम्र 24 साल थी. शुरू में मैं डरा हुआ रहता था कि पता नहीं क्या होगा ? कैमरामैन भी मुझसे बहुत सीनियर थें. और जितनी मेरी उम्र थी उतना उनका एक्सपीरयंस था. तो मैं उनको कैसे डायरेक्शन देता कि दादा ऐसे शॉट लगावो ? लेकिन मेरी घबराहट दूर होती गयी क्यूंकि वो बहुत सपोर्टिव निकलें. जब हमने शो शुरू किया चैनल को पसंद आया. चैनल को लगता था कि शो सिर्फ 100-150 एपिसोड करके जल्द ही बंद हो जायेगा. मगर ऐसा हुआ नहीं. साढ़े 6 सौ एपिसोड गया और दो साल तक चला. प्रोडक्शनवाले बोलते थें कि यह शो हमें अच्छा अर्न करके दे रहा है.
एक बार ऐसा हुआ कि हमारी जो लीड हीरोइन थी उसके डैडी एक्सपायर हो गए और चलती शूटिंग में हमको यह बैड न्यूज मिला. पर कहते हैं कि शूटिंग ऐसी चीज है कि कभी रूकती नहीं है. हर दिन का एक टारगेट अचीव करना होता है. मतलब मेरी लाइफ का वह पहला शो फिर मुझे ब्रेक मिलेगा की नहीं ये भी नहीं पता था. लेकिन फिर भी मैंने प्रोडक्शनवालों को बहुत रूडली कहा था कि "मैं शूटिंग नहीं करूँगा" और शूटिंग रोक दी थी. मेरा मानना था कि हम 16-17 घंटा सेट पर रहते हैं और यूनिट के साथ फैमली से ज्यादा वक़्त बिताते हैं तो उनके सुख-दुःख का ख्याल भी हमें रखना चाहिए. तब सेट पर एक मातम सा छा गया था यह खबर सुनकर. ऊपर से प्रोडक्शन का प्रेशर था कि काम करना है. लेकिन मैंने कहा- "पहले आप इनको घर भेजने का बंदोबस्त कीजिये, जब ये घर चली जाएँगी तब हम काम शुरू करेंगे. रही बात टारगेट की तो हम पूरी यूनिट मिलकर पूरा कर लेंगे. यूनिट के लिए मैं फेवरेट था क्यूंकि मेरा नेचर ऐसा है कि मेरे साथ जितने भी काम करते हैं मैं उनके बारे में बहुत ज्यादा सोचता हूँ. फिर प्रोडक्शन वालों ने हीरोइन एकता तिवारी को फ्लाइट का टिकट कराकर उन्हें घर भेजा तब हमने काम शुरू किया.
बालिका वधु के वक़्त ऐसा हुआ कि हमारे डायरेक्टर साहब सिद्धार्थ सेन गुप्ता सर का एक शो शुरू हो रहा था और उसका सेटअप करने के लिए उन्हें जाना था. तब उन्होंने प्रोडक्शनवालों से कहा- "जब तक  हम कोई मेन डायरेक्टर लाएंगे तब तक चेतन को चांस दो, ये कर लेगा सूट." प्रोडक्शन का भी मुझपर पहले से ही बहुत ज्यादा विश्वास था. बालिका वधु में बतौर डायरेक्टर काम करना बहुत बड़ा चैलेंज था क्यूंकि वहां जितने भी एक्टर थें उनको किसी सीन को लेकर मुझसे ज्यादा एक्सपीरियंस हो गया था. काम शुरू किया, सारे एक्टर्स का मुझे सपोर्ट मिला, इस वजह से मैं वहां अपना बेस्ट दे पाया. मेन डायरेक्टर के रूप में मैंने लगभग एक साल वहां काम किया फिर तेरे मेरे सपने करने चला गया जो उसी कम्पनी का था. बालिका वधु का मैं मेन डायरेक्टर नहीं था. उसमे सीरीज डायरेक्टर, एपिसोडिक डायरेक्टर, यूनिट डायरेक्टर होता है. तो मैं बालिका वधु में असिस्टेंट से सेकेण्ड यूनिट डायरेक्टर बना. दो यूनिट डायरेक्टर होते हैं. एक थें प्रदीप जाधव और दूसरा मैं था. लेकिन तेरे मेरे सपने में मैं मेन डायरेक्टर था.
'उड़ान' सीरियल का जो कैमरामैन था वो मेरा अच्छा दोस्त था. मैंने उससे बात किया तो उसने मेरी मीटिंग प्रोड्यूसर से करा दी. जब मैं मिला तो प्रोड्यूसर बोलें- "ठीक है, करते हैं." और 'बालिका वधु' के बाद तेरे मेरे सपने, एक चुटकी आसमान, प्रीतो, नादानियाँ करने के बाद मैं 'उड़ान' में आया था. इसके बाद 'मेरी दुर्गा' किया. सोनी लिव के लिए मैंने गुजराती वेब सीरीज 'काचो पापड़-पाको पापड़' किया. जब वेब सीरीज के प्रोड्यूसर से मेरी मीटिंग हुई थी और उन्हें पता चला कि मैं यू.पी. से हूँ तो उन्होंने कहा था, " मगर यह शो गुजराती है." मैंने बोला था- "मगर सिनेमा की कोई भाषा नहीं होती है." उन्हें यह बात पसंद आई फिर उन्होंने ओके कर दिया. गुजराती में काम करने का पहला अनुभव था और उसका जो रिजल्ट आया उसे देखकर चैनलवालों ने कहा- "हमलोग एक सीजन इसका और करेंगे." मैंने बीच के खाली समय में भोजपुरी फिल्मों के 50 वर्ष पूरे होने पर 'भोजपुरी फिल्मों का सफरनामा' डाक्यूमेंट्री फिल्म शूट की. बिहार के कटिहार में जो गंगा कटाव की समस्या है उसपर एक डाक्यूमेंट्री की. फ़िलहाल मेरा नया शो चल रहा है स्टार प्लस पर 'कुल्फी कुमार बाजेवाला.'  लेकिन आगे भविष्य में फिल्म करने की तमन्ना  है. 

Saturday, 13 July 2019

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : श्रीमती विभा सिन्हा की फैमली, आनंदपुरी, पटना






13 जुलाई , शनिवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार व तबस्सुम अली) पहुंची पटना के आनंदपुरी मोहल्ले में बिहार संगीत नाटक अकादमी की सहायक सचिव श्रीमती विभा सिन्हा जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में बिहार दूरदर्शन की एंकर एवं कवियत्री प्रेरणा प्रताप भी शामिल हुईं. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारी स्पेशल गेस्ट के हाथों विभा जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- विभा जी 1973 से आकाशवाणी से जुड़ीं फिर दूरदर्शन से भी जुड़ी रहीं. आज भी वे आकाशवाणी के सुगम संगीत की पैनल आर्टिस्ट हैं. आर्ट एण्ड कल्चर डिपार्टमेंट के द्वारा विभा जी 1992 में बिहार सरकार में शामिल हुईं और फ़िलहाल सहायक सचिव, बिहार संगीत नाटक अकादमी में कार्यरत हैं. विभा जी का ससुराल छपरा में है और मायका है वैशाली में. इनके पति और देवर साथ में मिलकर खुद का बिजनेस करते हैं. परिवार में हसबैंड तीन भाई हैं. तीन जेठानी-देवरानी हैं. विभा जी की एक ही संतान है बेटी के रूप में ऋतू, जो निफ्ट से फैशन डिजायनिंग करके अभी मुंबई में सेटल्ड हैं और अपना खुद का काम कर रही हैं. देवर अजित कुमार सिन्हा के तीन बच्चे हैं जिनमे दो बेटियां दिल्ली में हैं और एक बेटा आस्ट्रेलिया में है.

जेपी से जुड़ाव -  विभा जी के फादर सोसलिस्ट थें और वे जेपी के बहुत क्लोज फ्रेंड थें. तो जेपी का जब 1960 में देहांत हुआ उसके बाद जेपी विभा जी और उनके परिवार को यहाँ पटना ले आएं. उसके बाद से उनकी ही संस्था महिला चरखा समिति में ये पलीं -बढ़ीं, फिर विभा जी की शिक्षा से लेकर शादी तक जेपी की गार्जियनशिप में ही हुई. श्रीमती विभा सिन्हा निरंतर 1962 से 1979 जेपी के सानिध्य में रहीं, लोकनायक की सभाओं में क्रांति गीत गाया करती थीं. 1974 के अक्टूबर में लोकनायक के आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुईं और हजारीबाग जेल में उनका प्रवास भी हुआ.

विभा जी की उपलब्धियां -  उपलब्धियों में प्रमुख है, सोहर से समदाउन तक, मैथिली वृतचित्र एवं पंचबजना, बाद्य यंत्रो पर वृतचित्रों की परिकल्पना. सन 2003 में 'लोक की दृष्टि में जयप्रकाश' पुस्तक का सम्पादन भी किया जो बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी से प्रकाशित हुई.  सन 2012 में आधी आबादी वीमेन अचीवर्स अवार्ड से सम्मानित हुईं. 2005 में 'बिहार गौरव गान' गीत में मुख्य स्वर दिया जिसके बाद माननीय मुख्यमंत्री ने भी इस गीत को बिहार का सिग्नेचर टयून घोषित किया.

बिहार गौरव गान के बारे में क्या बताया विभा जी ने ? - "2005 में जब नयी सरकार बनी तब बिहार में राष्ट्रीय युवा उत्सव का आयोजन हुआ जहाँ देशभर के यूथ इसमें पार्टिशिपेट किएँ, उस कार्यक्रम के लिए डॉ शांति जैन बिहार गौरव गान के नाम से एक गीत लिखा था - "दिशा दिशा में लोकरंग का तार-तार है, महका-महका सोंधी माटी का बिहार है..." इसमें श्रीराम सिंह का संगीत निर्देशन था और मुख्य स्वर मेरा है. . 2005 से इसकी प्रस्तुति शुरू हुई और अबतक लगभग सौ से ज्यादा प्रदर्शन इसका हो चुका है. मैं खुद भी टीम लीडर बनकर मॉरीशस गयी थी और बिहार की संस्कृति की पूरी जो झलक है वो इस बिहार गौरव गान में है जिसे हम 20 मिनट में दिखाते हैं."

परदेस में बिहार की संस्कृति परोसी - संगीत के क्षेत्र में जो काम किया है उसपर 15 दिन के लिए एक वर्कशॉप हुआ था 'शगुन और निर्गुण' के नाम से जो तुलसीदास जी से शुरू होकर कबीर तक खत्म होता है. उसके लिए 2017 में कैलिफोर्निया में 15 दिनों का वर्कशॉप किया. उसमे एक कीर्तन था जो विभा जी ने वहां गाया था- "जिस देश में, जिस वेश में, प्रदेश में रहो, श्री कृष्ण को भजो सदा श्री राम को भजो..." इस भजन को वहां की मण्डली ने भी सीखा और गाया. 2018 में ओमान में विभा जी का जाना हुआ जहाँ एक देवनागरी विंग खुला. देवनगरी विंग में हिंदी दिवस मनाया गाया तो उसमे विभा जी को आमंत्रित करके सम्मानित किया गया. उसी कार्यक्रम में विभा जी ने भी भजन और फोक के रूप में अपनी प्रस्तुति दी. मॉरीशस में जो रामायण पाठ होता है उसमे भी भाग लिया.


विभा जी की नायाब परिकल्पना - बोलो ज़िन्दगी के साथ बातचीत में विभा जी बताती हैं, "मेरे मन में ये परिकल्पना आयी कि बिहार या कहीं भी राजस्थान, गुजरात आदि प्रदेशों में देख लें लड़के के जन्म में काफी उत्साह रहता है वहीँ लड़कियों के जन्म में लोग उदास हो जाते हैं कि बेटी आयी है. लेकिन जब बेटी ही नहीं होगी तो बेटा कैसे होगा, वंश कैसे चलेगा ? तो इस परिकल्पना पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की सोची. मेरी परिभाषा ये थी कि जैसे तुलसी की पूजा हम करते हैं और तुलसी का रूप भी तो स्त्री ही है, गंगा मैया की पूजा करते हैं तो गंगा के गीत गाते हैं...तो ये सारी परिकल्पनाओं से मैंने इसको गढ़कर बेटी पर आधारित फिल्म का निर्माण किया. इसमें बेटी के जन्म से लेकर उसकी विदाई तक के सारे संस्कार हैं. फिर दूसरी फिल्म हमने बनाई जब बिहार के सौ साल पूरे हो रहे थें तो हमने उसकी परिकल्पना की. बिहार के लोक वाद्यों पर आजतक किसी ने काम नहीं किया था. बहुत सारे लोक वाद्य ऐसे हैं जिनसे हमारे आज के युवा अपरिचित हैं. तो उनको परिचित कराने के उद्देश्य से हमने इसमें लगभग 55 लोक वाद्यों का समावेश किया. उसका नाम 'पंचबजना' हमने इसलिए दिया क्यूंकि मटकोर जो पहले होता था उसमे पांच वाद्यों का समूह जो गीत गाता था आगे-आगे चलता था. और भी कई वाद्य समूह थें जिनको लेकर हमने काम किया. फिर भिखारी ठाकुर के साथ संगत करते हुए नाटकों में जो लोग शहनाई बजाते थें उनको हमने ढूंढा और सीधे उनकी लाइव रिकॉर्डिंग की फिर उनको हमने अपने वृत्तचित्र में समाहित किया. यह काम अकदामी ने किया पर परिकल्पना और शोध मेरा था.

आखिर में अपने ससुराल की तारीफ करते हुए विभा जी ने कहा कि "जब मैं आयी थी शादी करके तो बहुत पढ़ी भी नहीं थी, बस इंटर करके ससुराल आयी थी. लेकिन आगे का एजुकेशन, म्यूजिक की डिग्री सबकुछ ससुराल में ही हुआ और अगर फॅमिली का सपोर्ट नहीं होता तो मैं शयद यहाँ तक नहीं पहुँच पाती." फिर बोलो ज़िन्दगी की फरमाइश पर विभा जी ने निर्गुण और लोकगीत गाकर सुनाएँ.

शुभकामना : स्पेशल गेस्ट प्रेरणा प्रताप ने कहा कि "यहाँ आकर और विभा सिन्हा जी जैसी पर्स्नालिटी से मिलकर मैं भी गौरान्वित महसूस कर रहीं हूँ. यहाँ आने के बाद हमें साहित्यिक-सांगीतिक माहौल भी देखने को मिला. इनके परिवार से मिलकर बहुत ख़ुशी हुईं. जेपी के बारे में हमने सिर्फ किताबों में पढ़ा है तो विभा जी जब उनसे जुड़े संस्मरण साझा कर रहीं थीं ऐसा महसूस हुआ कि जेपी के दिनों का परिदृश्य जैसे उठकर हमारे सामने आ गाया हो. विभा जी ने गीत-संगीत के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है और अभी भी वो कुछ हटकर करने में लगी हुईं हैं. उनके प्रयास के लिए हमारी तरफ से उन्हें बहुत बहुत शुभकामनायें." फिर जाते-जाते बोलो जिंदगी के रिक्वेस्ट पर प्रेरणा प्रताप ने अपनी एक खूबसूरत कविता भी सुनाई.















Friday, 12 July 2019

गांधी फिल्म ने मुझे डायरेक्शन की तरफ आकर्षित कर दिया : किरणकांत वर्मा, भोजपुरी फिल्म निर्देशक



मेरा जन्म आरा के बाबूबाजार मोहल्ले में हुआ था. मेरे पिताजी बिहार सरकार की सेवा में थे लेकिन उनका रंगमंच से शुरू से जुड़ाव रहा है और मेरी जो नाटक, कविता-साहित्य एवं रंगमंच में रूचि है वह पिताजी के कारण ही है...जब हम 5 -6 साल के थे तो पिताजी के साथ नाटक में जाते थें और जब पिता जी को नाटक में नायिका का किरदार निभाते देखते तो हमको बहुत हंसी आती थी. हम नादानीवश उनसे पूछा करते थे कि "बाबूजी रउआ काहे माई नियन साडी पहिरेलीं." तब हम नहीं जानते थें कि उन दिनों नाटकों के लिए नायिकाओं को ढूँढना कितना मुश्किल हुआ करता था. क्योंकि उस समय रंगमंच में उतनी महिलाएं नहीं हुआ करती थी. 

मेरी पढाई लिखाई सातवीं कक्षा तक आरा टाउन स्कूल में हुई उसके बाद हम पिताजी के साथ पटना आ गए. मुझे किसी ने बताया कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद यहाँ टीके घोष अकादमी में पढ़े थें तो मैंने पिताजी से जिद्द की कि मुझे भी वहीँ दाखिला करा दें. फिर वहीँ मेरी दसवीं तक की पढाई हुई. 1960 में मैट्रिक किये उसके बाद बारहवीं और फिर बी.एन. कॉलेज से समाजशास्त्र में ऑनर्स किएं. इक्तेफाक से तभी पटना यूनिवर्सिटी में सोशियोलॉजी का वह पहला बैच था और उसमे हम टॉप किये थें. उसके बाद पोस्ट ग्रेजुएट फिर 1967 में लॉ किएं. 1968 में आईपीएस की तैयारी करने लगे और पहली ही बार में रिटेन में हम कम्पीट तो कर गएँ लेकिन इंटरव्यू में नहीं हुआ और तब मुझे इस बात का बहुत दुःख हुआ था. हम हिंदी मीडियम से पढ़े थें इसलिए अंग्रेजी फटाफट बोलनेवाली आदत में नहीं थी. लेकिन आज मुझे इस बात का दुःख नहीं है क्योकि यदि तब मैं आईपीएस बन गया होता तो आज जो ये कविता और रंगमंच से जुड़ाव है वो नहीं हो पाता. उसके बाद पिता जी को बहुत लोग कहते थे कि मैं सरकारी नौकरी में सेट हो जाऊं और पिताजी भी यही चाहते थें. उसके बाद हम बीपीएससी में भी क्वालीफाई किएं फिर हमको मौका मिल गया जनगणना विभाग में और तब हम भी पिताजी की तरह सरकारी नौकरी में रहते हुए रंगमंच, साहित्य और सिनेमा से जुड़ गएँ. बचपन में हम बहुत शरारती थे और किसी न किसी बहाने पिताजी से रोज मार खाते थें. कॉलेज के टाइम हम लोग बहुत मस्ती करते थे. मेरी एक बुरी आदत थी, सिगरेट हम कम उम्र में पिने लगे थे लेकीन जैसे हम काजीपुर मोह्हले में रहते थे तो मोहल्ले के सभी बड़े- बुजुर्गों से छुपा के पीते थे. क्रिकेट हम बहुत खेलते थे, काजीपुर क्रिकेट क्लब की स्थापना हम ही किये थे. नौकरी में आने तक हम क्रिकेट खेलते रहें. उस समय राजेंद्र नगर बस ही रहा था. उन दिनों हमलोग आम के पेड़ पर टिन का एक कनस्तर बांध के रखते थे और खेल शुरू करने से पहले उसको बजा देते थे कि सब लोग सावधान हो जाईये अब हमलोग खेलेंगे. तब खेलना शुरू करते थे लेकिन कभी अनुशासन नहीं तोड़े. शिक्षकों के साथ हमारा रिश्ता शुरू से बहुत अच्छा रहा. याददाश्त मेरी शुरू से बहुत अच्छी रही है और पहली क्लास से लेकर बीए - एमए तक हम जो भी पढ़े हैं आज भी याद है. इसलिए टीचर भी सारे हमसे खुश रहते थें और बदमाशियां मेरी माफ़ हो जाती थीं. जब हम लॉ कॉलेज जाते थें तो एक दिन मूड आया तो खड़ाऊ पहनकर क्लास में चले गएँ. तब रमणी बाबू एक प्रोफेसर हुआ करते थें, जब वो खट-खट की आवाज सुनें तो पहले खूब गुस्साएं कि कौन आया है इस तरह. फिर जब हमको देखें तो प्यार से डांटकर समझाएं कि ऐसा नहीं करो भाई, पढ़ते-लिखते हो तो थोड़ा कायदा-कानून ध्यान में रखो." 

फिल्मों में हम इत्तेफाक से आये क्योंकि हम तो क्रिकेटर बनना चाहते थे. मुझे याद है यूनिवर्सिटी क्रिकेट टीम का जब सिलेक्शन था उसी दिन हमलोग पिकनिक मानाने राजगीर चले गए थे क्योकि हमको तो लगा कि मेरा सेलेक्शन हो ही जायेगा और हम सेलेक्शन में नहीं जाकर राजगीर चले गएँ. बाद में जब लौटकर आएं तो मेरा सलेक्शन नहीं हुआ और तब से क्रिकेट छूट गया. तब हम पटना कलेक्टेरियेट से क्रिकेट खेलते थे. कॉलेज लाइफ से ही रंगमंच पर जाकर बड़े बड़े कलाकारों जैसे, दिलीप कुमार, मनोज कुमार, देवानंद का मिमिक्री करते थे. उन दिनों नाटककार सतीश आनद के साथ हमलोग क्रिकेट खेला करते थे और एक दिन अचानक से राजेंद्रनगर चौराहे पर वह मुझे मिल गया. फिर हमारी बातचित शुरू हुई तो हम पूछे कि "क्या कर रहे हो आजकल ?" तो पता चला कि नाटक कर रहे हैं तो हम हँस दिए फिर वो बोला कि "मजाक लगता है क्या तुमको...?" तो हमने कहा- "और नहीं तो क्या." फिर वो बोला कि "इतना ही आसान लगता है तो आ जाओ कल और कर के दिखाओ." हम भी मजाक-मजाक में चैलेन्ज के रूप में इसे स्वीकार कर चल दिए. उस समय वो तुगलक नाटक कर रहा था. वो मेरे लाइफ का पहला नाटक था, उसमे मेरा आजम नाम के चोर का रोल था. प्ले के बाद वो आश्चर्यचकित था कि हम इतना अच्छा प्ले कर लेते हैं. तब सतीश ने कहा कि "तुम नाटक क्यों नहीं करते हो.." हमने कहा "पागल हैं जो नाटक करेंगे, ये तो बस यूँ ही मजाक में हो गया. फिर जब सतीश मेरे पीछे पड़ गया तो हमने भी कहा- "अच्छा चलो, तुम कहते हो तो कर लेते हैं" और वहां से मुझे नाटक का कीड़ा लग गया.
      हम सब लोग तब पटना के डाकबंगला कॉफ़ी हाउस में मिला करते थे जहाँ दिगज्ज कवि- साहित्यकार आया करते थें. उनसे भी बातचीत होने लगी और उनकी शोहबत का ऐसा असर हुआ कि फिर नाटक के साथ-साथ हम कविता लिखने लगे, कवि सम्मेलनों में जाने लगे. लेकिन जब हम पूरी तरह से रंगमंच में काम करने लगें तो फिर कविता लेखन छूट गया.
उन दिनों मेरे एक मित्र थें योग बत्रा जो दिल्ली दूरदर्शन में थें, वो मुझे ढूंढते हुए आये और कहने लगें कि "विदेश से एटनबरो की टीम आयी हुई है गांधी फिल्म शूट करने." फिर हमको बोलें कि तुमको उनकी मदद करनी है. फिर दोस्ती में हम चले गए एटनबरो से मिलने जो पटना के होटल मौर्या में ठहरे हुए थें. हम चाह रहे थे कि वो हमको रिजेक्ट कर दे इसलिए हम जानबूझकर उसी तरह से हरकत कर रहे थे. बातचीत के बाद जब मेहनताने की बारी आयी तो हम बहुत ज्यादा पैसा मांग दिए यह सोचकर कि अब तो रिजेक्ट कर ही देगा. लेकिन उसमे भी वो लोग तैयार हो गएँ तब हमको लगा कि अब तो हम फंस गए. फिर हम गाँधी सिनेमा में हेल्पर का काम किये, 13 दिन की शूटिंग थी. जैसे जो उनको चाहिए था हम इंतजाम करते थें. यदि क्राउड जुटानी है तो हम लग जाते थें लोगों को लाने में. तब कॉफी हॉउस में बैठनेवाले अधिकतर चेहरे आपको गाँधी फिल्म में नज़र आएंगे.  फिर भी हमको फिल्म में उतनी दिलचस्पी नहीं जग रही थी लेकिन कैमरा के पीछे रहकर देखते थें कि कैसे शूटिंग हो रही है. फिर रोजाना देखते-देखते फिल्म मेकिंग अच्छा लगने लगा. इक्तेफाक से एक दिन हमारे मित्र शंकर शर्मा हमको बोले कि "आपको फिल्म डायरेक्ट करनी है तो हमने यह कहकर मना किया कि अरे डायरेक्शन टेक्निकल चीज है हमको उसका एबीसीडी भी नहीं आती है. लेकिन वो जिद किये और बोले कि "नहीं आपको ही करना है, हम जानते हैं आप कर लीजियेगा." फिर हम चल दिए डायरेक्ट करने और पहली बार जब हम फिल्म डायरेक्टर के नाते डबिंग रूम में गए थे तो हमको यह नहीं पता था कि डबिंग क्या होती है. जब सिनेमा में आ गए तो नाटक पीछे छूट गया. 
शादी मेरी 1971 में हुई थी. बारात जा रही थी पटना के पुनाईचक तो खुली जीप में हम दूल्हा बनकर बैठे हुए थें. लेकिन सिगरेट पिने की बीमारी मेरी कम तो हुई नहीं थी. और जब दूल्हे के वेश में जीप में सिगरेट पि रहे थें और जैसे ही पुनाईचक मोहल्ले में मेरी गाडी घुसी तो नुकाद पर खड़े दो-चार लड़के हंसकर कमेंट दिए की देखो-देखो दिलीप कुमार जा रहा है.

पुराने दिनों की यादगार तस्वीरें बहुत थीं लेकिन अब मेरे पास नहीं हैं.. इसलिए कि जब मेरी पहली पोलिटिकल फ़िल्म 'हक के लड़ाई' हिट नहीं हो पाई तो फ्रस्टेशन में आकर मैंने अपनी लिखी कविताओं की डायरी, रंगमंच से जुड़े दस्तावेज, ट्रॉफियां और पुरानी तस्वीरों को दो बोरों में भरकर गांधी सेतु पुल पर ले जाकर गंगा नदी में फेंक दिया था. जिसका मुझे आज भी बहुत अफसोस होता है.

1984-85 की बात है, मुझे आज भी अच्छे से याद है. जब जयप्रकाश बाबू डायलिसिस पर रहते थें और नाटक देखने आये थें. जयप्रकाश बाबू के सामने भारतीय नृत्यकला मंदिर में 'सिंघासन खाली करो' में हीरो का रोल निभाए थे. जब नाटक छूटा तो सिनेमा पकड़ा गया. सबसे पहले हम भोजपुरी फिल्म 'बबुआ हमार' का डायरेक्शन किये उसके बाद एक के बाद एक बहुत सिनेमा किए. कुछ साल पहले रवि किशन के साथ फिल्म हमार देवदास किएं जिसकी बहुत सराहना मिली. वैसे तो बहुत सारे अवार्ड मिले लेकिन अभी सबसे हाल में बिहार सरकार द्वारा 2017 में लाइफटाइम अचीव मेन्ट अवार्ड भी मिला है.



Tuesday, 9 July 2019

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : दिव्यांग नेत्रहीन काजल की फैमली, बाकरगंज, पटना



8 जुलाई, सोमवार को 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार व तबस्सुम अली) पहुंची पटना के बाकरगंज इलाके में बालश्री से सम्मानित दिव्यांग नेत्रहीन बच्ची काजल के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में बीजेपी कला संस्कृति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष श्री वरुण कुमार सिंह भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों काजल की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय-  काजल दिल्ली के राष्ट्रिय बृजानंद अंध कन्या विधालय में 12 वीं की स्टूडेंट है और अभी छुट्टियों में अपने घर पटना आयी थी. काजल के पटना, बाकरगंज स्थित घर में पापा विपिन राय, मम्मी विभा देवी और उससे छोटे तीन भाई है. पापा एक टेस्टोरेन्ट में काम करते हैं.

काजल का अचीवमेंट - काजल कविता लेखन के लिए राष्ट्रपति द्वारा ‘बाल श्री’ अवार्ड से सम्मानित हो चुकी है. उसे कविता लेखन के लिए चार टॉपिक मिले थें – बारिश, माँ, रोटी व स्कूल बैग. काजल ने बारिश और माँ के टॉपिक पर लिखा और देश के कई सारे बच्चों के बीच उसकी कविता को सर्वाधिक पसंद किया गया. 2014 से उसने कविता लेखन की शुरुआत की थी. फिर किलकारी बालभवन से जुड़कर कई जगह हुई कविता प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और ढेरों इनाम जीते. काजल गायन में भी उस्ताद है और बड़े- बड़े आयोजनों में लोकगीत खासकर कजरी और झूमर प्रस्तुत कर चुकी है. 2013 में स्कूल स्तर पर दिल्ली में हुई गायन प्रतियोगिता में थर्ड प्राइज जीता था. दिल्ली में ही 2016 के कला उत्सव कार्यक्रम में नेशनल लेवल पर हुई गायन प्रतियोगिता में काजल ने सेकेण्ड प्राइज जीता था. पटना के कालिदास रंगालय, कृष्ण मेमोरियल जैसे कई मंचों से उसने अपनी गायिकी का टैलेंट दिखाया है. 2012 में कोलकाता में नेशनल लेवल पर हुए डांस कम्पटीशन में उसने क्लासिकल डांस में सेकेण्ड प्राइज अपने नाम किया था. पटना के अंतर्ज्योति बालिका विधालय में पढ़ने के दौरान काजल कराटे भी सीखा करती थी और उसे येलो बेल्ट मिल चुका है.

https://www.youtube.com/watch?v=5WJ1r3g4dBE

काजल का शौक - आजकल के नए गाने उसे उतने पसंद नहीं आते जितने की पुराने गाने. लता मंगेशकर, कुमार शानू और उदित नारायण के गाने उसे बहुत आनंदित करते हैं. काजल डांस का भी शौक रखती है. क्लासिकल के अलावा उसे गुजराती गरबा और डांडिया डांस करना भी पसंद है. इसके आलावा हस्तकला (क्राफ्ट) में भी काजल की रूचि है. वह हाथ से बैग, झूमर,झूला,तोरण और मोज़े की गुड़िया बनाना सीख चुकी है. कभी कभी स्टोरी भी लिख लेनेवाली काजल सिंगिंग और राइटिंग दोनों को लेकर चलना चाहती है.

क्या कड़वी सचाई बताई काजल के पापा ने ? - पापा विपिन राय ने बोलो ज़िन्दगी को बताया कि जब गांव में काजल के जन्म के कुछ दिनों बाद पता चला कि ये देख ही नहीं सकती तो गांव के कुछ लोगों ने उन्हें राय दी थी कि "ऐसी बच्ची को रखकर क्या होगा. आगे चलकर बदनामी ही होगी इसलिए इसे मार ही दीजिये तो अच्छा है." मगर काजल की मम्मी ने कह दिया कि "पहला बच्चा है इसलिए हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे." फिर जब काजल के पापा विपिन राय पटना में काजल को बड़े डॉक्टरों के पास ले गए तो उन्होंने कह दिया कि, "इसकी दृष्टिहीनता पैदाइश है, अब आँखों की रौशनी आने की उम्मीद नहीं है." तब विपिन राय पटना में अकेले रहते थें और काजल के साथ साथ बाकी फैमली गांव में रहती थी. एक दिन उन्हें किसी ने बताया कि "काजल जैसे बच्चों के लिए अलग से एक स्कूल है इसलिए उसे गांव से पटना ले आओ." तब विपिन जी अपनी पूरी फैमली के साथ काजल को शहर ले आये. फिर उन्होंने काजल को अंतर्ज्योति बालिका विधालय में ले जाकर दाखिला करा दिया. काजल जब वहां हॉस्टल में रहकर पढ़ने लगी तब उसके माँ-बाप की फ़िक्र थोड़ी कम हुई और आज काजल का टैलेंट जब लोगों को प्रभावित कर रहा है तब ऐसे में उसके माँ-बाप कहते हैं "हमारी बेटी सर्वगुण संपन्न है, और ऐसी बेटी पाकर हमें गर्व है."

बोलो ज़िन्दगी के रिक्वेस्ट पर मौके पर ही काजल ने एक खूबसूरत लोकगीत गाकर सुनाया और खुद अपने हाथों से बनाया हैण्ड बैग भी दिखाया.

सन्देश : बोलो ज़िन्दगी के स्पेशल गेस्ट वरुण कुमार सिंह ने मौके पर काजल के प्रदर्शन को देखते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि "काजल यूँ तो दिव्यांग नेत्रहीन बच्ची है लेकिन टैलेंट उसके अंदर कूट-कूटकर भरा हुआ है. जन्म से नेत्रहीन पैदा हुई इस बच्ची को देखकर तब इसके ही गांव के लोगों ने दोहरा रूप अपनाया था लेकिन जब ये बच्ची राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित हुई तो इसके नाम से इसके माँ-बाप और पूरे गांव का भी नाम रौशन हुआ. हमें गर्व है ऐसी बेटी पर जो हमारे पटना, बिहार का नाम रौशन कर रही है. ऐसे दिव्यांग बच्चों के लिए हमारे बिहार ही नहीं, केंद्र सरकार द्वारा तरह-तरह की योजनाएं चलायी जा रही हैं लेकिन ज़रूरत है उनतक यह जानकारी पहुँचाने की. इसके प्रति अवेयरनेस की जो कमी है वो हम व आप भी आगे आकर दूर कर सकते हैं. सरकार के साथ-साथ हमलोग भी अपने प्रयासों से ऐसे बच्चों को समाज के बीच से निकालकर उन्हें आगे बढ़ने का अवसर दे सकते हैं. इसके लिए एक जुझारूपन की ज़रूरत है जो हम में आप में सभी में है. ताकि ऐसी बेटियां जो अच्छा कर रही हैं और आगे बढ़ें, आत्मनिर्भर बनें, सरकारी क्षेत्रों में नौकरी पाएं एवं कला के क्षेत्र में भी अच्छी पहचान बनायें."

https://www.youtube.com/watch?v=4RRy2-zkAUY

(इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है.)

नेत्रदान-अंगदान-रक्तदान के सन्देश के साथ दहेजमुक्त 51 जोड़ियों का संपन्न हुआ सामूहिक विवाह


पटना, जब 51 घोड़ों पर बैठकर 51 दूल्हे एक साथ बारात में निकलें तो राह में लोग ऐसी अनोखी बारात आश्चर्य से देखते ही रह गएँ. एक ही साथ जब 51 जोड़ियों का जयमाल हुआ तो इस हसीं पल के गवाह शहर के सैकड़ों लोग बनें...51 मंडपों में 51 पंडितों ने मंत्रोचार करते हुए जब एक साथ 51 जोड़ों को हमेशा-हमेशा के लिए परिणय सूत्र में बाँध दिया तो उन्हें आशीर्वाद देनेवालों का हुजूम जमा हो गया. यह नजारा था बीते रविवार, 7 जुलाई की शाम का जहाँ माँ वैष्णो देवी सेवा समिति द्वारा इस वर्ष भी 51 जोड़ियों का पुनः दहेज मुक्त सामूहिक विवाह (एक विवाह ऐसा भी) का 10 वा संस्करण श्री कृष्ण मेमोरिअल हॉल में आयोजित किया गया। इस अनूठे विवाह में उपमुख्यमंत्री श्री सुशील कुमार मोदी जी मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित हुए और जोड़ो को अपना आशिर्वाद प्रदान किएँ।

https://www.youtube.com/watch?v=XRvZ0IIn1LY&t=4s

अतिथियों का स्वागत करते हुए समिति के अध्यक्ष सुशील सुन्दरका ने कहा कि "समिति बिहार के आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की बेटी, बेटो को एक मंच पर लाकर दहेज मुक्त विवाह का संदेश लोगो तक पहुचाने मे विश्वास रखती है। इससे पूर्व सचिव कमलेश सिंह ने बताया कि "महाराणा प्रताप भवन में 11 बजे से संगीत और मेहंदी का भी आयोजन किया गया और साथ मे पारंपरिक गीत के साथ रस्मो को पूरा किया गया ! महाराणा प्रताप भवन से संध्या 3,50 बजे 51 लड़को की बारात 51 घोड़ो पर बाजे गाजे के साथ निकली।" वहीँ कोषाध्यक्ष सतीश अग्रवाल ने कहा कि "पटना के तीन प्रमुख बैंड पार्टी श्री दुर्गा बैंड, श्री शंकर बैंड एवं माँ दुर्गा बैंड अपनी निःशुल्क सेवा दिए एवं बारातियो के साथ बैंड बाजा बजाते हुए महाराणा प्रताप भवन से विवाह एवं कार्यक्रम स्थल श्री कृष्णा मेमोरियल हॉल तक आये।"

कृष्णा मेमोरियल हॉल के बाहरी परिसर में विवाह हेतु 15 हजार स्क्वायर फ़ीट में एक पंडाल बनाया गया था जिसके नीचे 51 मंडप में 51 पंडित द्वारा 51 जोड़ो का विधिपूर्वक विवाह सम्पन करवाया गया। 51 जोड़ो के विवाह के आयोजन के साथ सामाजिक सरोकार के तहत जीते जी रक्त दान और मरणोपरांत देहदान/नेत्रदान के संबंध में जागरूकता का संदेश देने के लिए पटना आये 'आज तक' के संजय सिन्हा ,लोकप्रिय गायक दिवाकर शर्मा और गायिका सुश्री इशिता विश्वकर्मा से बिहार के अनूठे दानवीर भी रूबरू हुए।
     इसी के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी कृष्णा मेमोरियल हाल में आयोजित किये गए। ज़ी टीवी के लोकप्रिय शो" सा रे गा मा पा" की विजेता सुश्री ईशिता विश्वकर्मा और लोकप्रिय नेत्रहीन गायक दिवाकर शर्मा ने अपने गीतों से लोगो को मंत्रमुग्ध किया। कृष्णा मेमोरियल हॉल में संध्या 5,30 बजे से कार्यक्रम की सुरुवात हुई। डांस एवं कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम से शुरुआत की गयी। बारात आगमन पर 6000 लोगो ने स्वरुचि भोज किया.
        हर साल की तरह इस साल भी माँ वैष्णो देवी सेवा सम्मान 2019 के लिए 5 लोगो का चयन किया गया, जिसमे लोक गायिका पद्मश्री श्रीमति शारदा सिन्हा जी , स्वेता साही (अंतररष्ट्रीय रग्बी प्लेयर), आंनद दत्ता एवं टीम (समाज सेवा ),पवन कुमार (कला एवं संस्कृति यूट्यूब), गुड्डु खेतान (सोशल मीडिया) जैसे युवा हैं जो अपने देश का परचम दुनिया मे लहरा रहे है।
     कार्यक्रम के अंत मे सभी नवविवाहित दम्पत्तियों को घर-गृहस्थी संबंधित ऊपहार देकर विदा किया गया। इस भव्य कार्यक्रम को सफल बनाने में समिति के सुशील सुन्दरका, कमलेश सिंह, सतीश अग्रवाल, अरविंद आनंद (प्रवक्ता), जगजीवन सिंह, मुकेश हिसारिया, कन्हैया अग्रवाल, जितेन्द्र जीतू, गोपी तुलसियान, प्रदीप अग्रवाल, आलोक अग्रवाल, राजेश बजाज, मनीष बनेटिया, संजयजी, सतीश खेमानी, मनीष जी, सुभाष अग्रवाल , श्रवण टिबरेवाल, सुनील गोयल, पंकज लहुरका, उमेश कुमार, कन्हैया लाल सिंघल, पण्डित चंद्रमोहन भट्ट, अरविंद सर्राफ, दिलीप अग्रवाल, विनय बजाज, राजीव कुमार, विनय जी, श्रवण जी, मोहन सर्राफ, महेश कुमार (बालाजी कैटरर), नरेश अग्रवाल, अरुणेश मिश्रा आदि का सहयोग रहा।

Wednesday, 3 July 2019

बिहार के चार युवाओं में विपुल शरण ने भी पाया राष्ट्र प्रेरणा अवार्ड



30 जून, वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति विकास संस्थान, इंदौर ने समाज में उत्कृष्ट सेवा प्रदान करने के लिए  विपुल शरण, तरुण चंद , बिपुल राज और प्रियतम अभिनव को राष्ट्र प्रेरणा अवार्ड से सम्मानित किया.

विपुल शरण को छपरा ज़िला से उनके सामाजिक उद्यमिता के क्षेत्र मे उत्कृष्ट कार्य करने के लिए इस सम्मान से इंदौर मे पद्मश्री डॉक्टर विजय कुमार शाह के हाथों सम्मानित किया गया. 26 साल की उम्र में अपने खुद का उद्यम आरंभ करके विपुल सफलता के नित्य नए कृतिमान रच रहे हैं. 26 साल की उम्र में ज्यादा से ज्यादा लोगो को रोजगार प्रदान करने के मकसद से विपुल ने वर्ष 2017 मे स्किल माइंड्स फाउंडेशन की नींव रखी. 2 वर्ष से लगातार प्रयासरत विपुल को अपने प्रयासों के लिए राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली है. कुछ दिनों पहले विपुल अंतररष्ट्रीय पीपल्स च्वॉइस अवार्ड के लिए नामांकित हुए हैं और  इसका आयोजन पेरिस (फ्रांस) में 19-22 दिसंबर के बीच होना है.  इसी कड़ी में उनका चयन 30 जून 2019 को इंदौर में होने वाले राष्ट्र प्रेरणा अवार्ड के लिए हुआ.



इस प्रतिष्ठित पुरूस्कार के लिए सम्पूर्ण हिंदुस्तान से 40 लोगो का चयन हुआ है. इस पुरूस्कार समारोह का आयोजन वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति संस्थान, इंदौर द्वारा किया गया. इस कार्यक्रम में पद्मश्री डॉक्टर्स विजय कुमार शाह ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की. इनके अतिरक्त 2019 की मिस इंडिया अयंग मोती याओ , मनमोहन सिंह के पौत्र रणदीप सिंह कोहली, लाल बहादुर राणा आदि ने विशेष अतिथि के रुप में इस आयोजन में हिस्सा लिया.
          विपुल की इस सफलता से परिवारजनों में हर्ष का माहौल है. आपको बताते चले विपुल की कंपनी वर्तमान में IT और शिक्षा से सम्बंधित 10 से ज्यादा सेवाएं प्रदान कर रही है. स्किल माइंड्स के मंच के माध्यम से विपुल ने अबतक 100 से ज्यादा लोगों को स्किल देकर उन्हें रोज़गार प्रदान किया है.  उनकी सामाजिक कार्यों में बहुत रुचि है और उनकी संस्था अलग- अलग स्रोतों से पुस्तकें, सूचनाएं इकठ्ठा करके जरूरतमंद लोगो तक पहुंचती है.




“मल्लिका-ए-जायका” प्रतियोगिता में विशेष रूप से सम्मानित की गयीं तीन कुक महिलाएं




पटना, 30 जून, रविवार की सुबह बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन ने 'मल्लिका-ए-जायका' के नाम से रेसिपी कॉन्टेस्ट का आयोजन किया जिसमे पटना की 10 चयनित महिलाओं ने हिस्सा लिया. और इस प्रतियोगिता में मल्लिका-ए-जायका बनीं अमृता सोनी, फर्स्ट रनरअप रही रूपम झा तो सेकेंड रनरअप रहीं मोनिका प्रसाद.

यह कॉन्टेस्ट मोतीमहल डिलक्स रेस्टोरेंट, ईस्ट बोरिंग केनाल रोड में आयोजित हुआ. इस कार्यक्रम का स्पेशल मोमेंट था जब घर-घर जाकर खाना बनानेवाली तीन जरूरतमंद कुक महिलाओं उर्मिला देवी, सुमित्रा देवी एवं सुमन देवी को विशेष तौर पर बोलो ज़िन्दगी द्वारा सम्मानित किया गया. बोलो ज़िन्दगी के निदेशक राकेश सिंह 'सोनू' ने यह सम्मान खुद ना देकर अपनी माँ श्रीमती ललिता देवी के हाथों दिलवाया. वहीँ इन तीनों ही कुक महिलाओं को मौके पर 500 रुपये की सहयोग राशि प्रदान कर उनका हौसला बढ़ाया स्कॉलर्स एबोड की मैनेजर स्मृति रावत ने.
  इस आयोजन के मुख्य स्पॉन्सर्ड थें ईस्ट बोरिंग कैनाल रोड स्थित मोतीमहल डिलक्स रेस्टुरेंट और
कार्यक्रम को सफल बनाने में स्कॉलर्स एबोड की ऑनर डॉ. बी. प्रियम, रामनगरी आशियाना, माँ वैष्णवी ज्वेलर्स के ऑनर पप्पू जी का भी सपोर्ट रहा.

इस अवसर पर बोलो ज़िन्दगी के निदेशक राकेश सिंह 'सोनू' ने कहा कि "जिन महिलाओं के हाथों में स्वाद का जादू है, जिनके रसोई में जाने से खाने की खुशबू बढ़ जाती है और नए-नए रेसिपी बनाना जिनका शौक है, उन्हें बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन ने मौका दिया "मल्लिका-ए-जायका" बनने का. उनके हुनर के लिए पहली शर्त है हेल्दी फूड यानी रेसिपी कम स्पाइसी और कम ऑयली हो."

     मल्लिका-ए-जायका रेसिपी कॉन्टेस्ट की जज बनी थीं वैसी 4 महिलाएं जिनका वास्ता खाने-पकाने से है. 1) स्वाति शिखा- मास्टर सेफ सीज़न -1 (स्टार प्लस) की फाइनलिस्ट एन्ड कूकरी ऑथर, 2) जनक किशोरी - ऑनर, मनाची फूड प्रोडक्ट, 3) किरण उपाध्याय - ऑनर, किरण उपाध्याय की रसोई यूट्यूब चैनल एवं  4) बिभा कुमारी, ब्लॉगर, बिभास किचेन.
     और इस रेसिपी कॉन्टेस्ट में भाग लेनेवाली 10 महिलाएं थीं - फ़िरोज़ा खातून, आरती कुमारी, मधु श्रीवास्तव, श्वेता सागर, मोनिका प्रसाद, किरण भगत, नेहा पासवान, अमृता सोनी, ताहिरा अली एवं रूपम झा.

     दीप प्रज्वलन के बाद चारों सेलिब्रेटी महिलाओं को पौधा भेंटकर स्वागत किया मोती महल डिलक्स रेस्टोरेंट के ऑनर संतोष कुमार पांडेय जी ने. कार्यक्रम में हिस्सा लेनेवाली सभी प्रतिभागियों को गाइड व कुकिंग कॉन्टेस्ट का संचालन कर रही थीं बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन की टीम कॉर्डिनेटर तबस्सुम अली और उनका साथ दे रहे थें कार्यक्रम हेड प्रीतम. वहीँ मीडिया को इंटरटेन कर रहे थें उज्जवल.

सभी प्रतिभागी महिलाओं को सम्मानित करने के लिए बोलो ज़िन्दगी ने कुछ यूनिक मोमेंटो की व्यवस्था की हुई थी. वुडेन छोलनी के रूप में रिएल किचेन आइटम से यह खास मोमेंटो तैयार किया गया था. यह मोमेंटों विजेताओं के अलावा सभी भाग लेनेवाले कॉंटेस्टेंट को दिया गया.
मोतीमहल डिलक्स के ऑनर संतोष कुमार पांडेय ने सभी प्रतिभागियों को अपने रेस्टोरेंट का विशेष फ़ूड कूपन भेंट किया. इसपर जजेस ने चुटकी लेते हुए रेस्टोरेंट के ऑनर से कहा कि "सिर्फ प्रतिभागियों को ही ये विशेष कूपन मिलेगा हमलोगों को नहीं...?" तब ऑनर संतोष पांडेय जी ने कहा- "आपलोग भी आएँगी तो आप पर भी पूरा ध्यान दिया जायेगा."  बोलो जिंदगी फाउंडेशन की तरफ से टॉप 3 विजयी प्रतिभागियों को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया. वहीँ बोलो ज़िन्दगी के निदेशक राकेश सिंह 'सोनू' के पहले नॉवेल 'एक जुदा सा लड़का' भी गिफ्ट स्वरूप सभी प्रतिभागियों को दिया गया.

मल्लिका -ए-जायका - विजेता बनीं अमृता सोनी किन्नर समाज से आती हैं, काफी संघर्षों के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी को एक मुकाम पर लाया है. वो एच आई वी पीड़ितों के लिए सामाजिक कार्य भी करती हैं. उन्होंने प्रतियोगिता जितने के बाद अपने वक्तव्य में कहा कि - "कभी उनकी माँ ने कहा था कि अगर किसी का दिल जितना है तो सबसे पहले उसके पेट को खुश करो... अगर उसे टेस्टी खाना खिलाओगे तो वो कभी भी आपको माइंड से नहीं निकाल सकता. बस वही बात को ध्यान में रखकर मैंने इस रेसिपी प्रतियोगिता में भाग लिया और सारे नियम भी कायदे से फॉलो किए." अमृता जी की जिस रेसिपी ने उनको विनर बनाया वो है मल्टीग्रेन टिक्की जो सोयाबीन, मूंग, काबली, ओट के मिश्रण से तैयार हुई थी जिसमे ज्यादा तेल-मसाले का भी इस्तेमाल नहीं हुआ. जजेस ने भी माना कि बहुत कम तेल-मसाले से तैयार हुई यह टिक्की एक हेल्दी फ़ूड भी है.

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