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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Tuesday, 16 July 2019

शुरू के 6 महीना बाद ही मैं बिना बताये सेट छोड़कर घर भाग गया था - चेतन शर्मा, उड़ान फेम डायरेक्टर


मैं गोरखपुर यू.पी. से बिलॉन्ग करता हूँ, लेकिन मेरी पैदाइश और परवरिश सब मुंबई में हुई है. ग्लैमर इंडस्ट्री की तरफ कभी मेरा फोकस रहा ही नहीं लाइफ में. मगर एक चीज इतना पता था कि जो एक काम करूँगा उसे चेंज नहीं करूँगा. हम मीडिल क्लास फॅमिली से बिलॉन्ग करते हैं. पहले से कुछ प्लान नहीं था कि ग्रेजुएशन के बाद क्या करना है. घर में बोला गया कि अब अपने पैरों पर खड़े हो जाओ, कोई काम करो. फिर मैंने अपने एक अंकल से कहा- "काम क्या करूँ मैं ?" उन्होंने कुछ बोला नहीं. सिर्फ यही कहा- "कल सुबह 5 बजे तैयार होकर आ जाना." मैं सुबह उठकर पहुँच गया उनके घर. वे बाइक निकाले अपना, मुझे बैठाएं और लेकर चले गएँ. बारिश भी हो रही थी. याद है मुझे गोरेगांव में बाला जी का सबसे बड़ा स्टूडियो है 'संक्रमण', वे वहां लेकर गएँ. मैं वहां कैमरा-लाइट देखकर चौंका, काम चालू था. कसौटी जिंदगी की शो का सूट चल रहा था. शो के डायरेक्टर मेरे अंकल के दोस्त थें. वे डायरेक्टर से मिलवाएं और बोलें- "मेरा भतीजा है, इसको रख लो अपने साथ." वे बोले- "ठीक है." अंकल उनसे कुछ बातचीत किये और फिर बाहर आकर मुझसे बोले- "देख, तू अभी इनके साथ लग जा और ये जैसा बोलेंगे वैसा ही करना." मैंने कहा- "मगर मुझे तो ये सब करना होगा पता ही नहीं था." तो अंकल ने एक बात बोली- "मैंने बचपन से तुझे ऑबजर्व किया है और तेरा जो दिमाग है ना वो क्रिएटिव माइंड वाला है. तू वैसा आदमी नहीं है जो 9 टू 6 वाली ड्यूटी कर सकता है. मुझे ऐसा लगा कि तुझे यहाँ पर होना चाहिए इसके लिए मैं तुझे यहाँ पर लेकर आया हूँ. बाकि ये रास्ता तेरा है, तू कहाँ तक जा सकता है और कहाँ तक अचीव करेगा ये तेरे को डिसाइड करना है."
पहला दिन था मुझे कुछ काम का पता नहीं था. डायरेक्टर साहब बोलें- "जाओ जाकर आर्टिस्ट को बुलाकर ले आओ." मैं गया बुलाने. सबसे पहले मैंने कसौटी ज़िन्दगी की सीरियल की मुख्य अभिनेत्री कामोलिका यानि उर्वशी ढ़ोलकिया का दरवाजा नॉक कर के बोला- "मैडम, शार्ट रेडी है." तो मेरे को देखकर वे बोलीं- "तुम नए आये हो क्या यहाँ पर ?" मैंने बोला- "हाँ". उन्होंने फिर पूछा- "कब ज्वाइन किया ?" मैंने कहा- "आज सुबह." फिर वो हंसने लगीं और कहा- "चलो ठीक है आती हूँ." तब बाद में मुझे मालूम चला कि उनका एक टाइमिंग होता है, जब वो सेट पर आती हैं और उनको कोई बुलाने जाता नहीं है. वो सेट पर आयीं तो मैं वहीँ बैठा हुआ था. मेरे सामने जब कैमरा रोल हुआ और उनका जब एक्टिंग शुरू हुआ तो मैं जोर से हंस पड़ा. जबकि सेट पर शूट के वक़्त साइलेंट होता है. वो मुझे देखीं और पूछ बैठीं "क्यों हंस रहे हो तुम" और इसी के साथ शूटिंग रुकवा दी. डायरेक्टर साहब तो हमारे पहचान के थें वो बुलाएँ हमें और पूछे- "क्या हुआ...इसमें हंसनेवाली क्या चीज है ?" मैंने कहा- "नहीं, बस मुझे एक्टिंग देखकर हंसी आ गयी." वे बोले- "ठीक है, एक काम करो तुम पीछे बैठो, उनके सामने नहीं जाना वरना उनको बुरा लगेगा." फिर पीछे बैठकर मैंने मॉनिटर पर देखना शुरू किया और पहला दिन ऑबजर्व करना शुरू किया कि होता क्या है. पहला दिन ऐसे ही निकल गया. मैं बहुत ज्यादा कन्फ्यूज था, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है. मैंने वहां 6 महीने असिस्टेंट में किया और मुझे ये बस ड्यूटी जैसा ही लगा. लेकिन मैं फ्रस्टेड हो गया अपनी लाइफ से. किसी को बताया नहीं और सेट छोड़कर घर भाग गया. एक महीने तक मैं अपने घर पर बैठा था और झूठ बोलता रहा कि अभी शूटिंग बंद है, जब बुलाएँगे तब जाऊंगा. जब एक दिन अंकल का फोन गया डायरेक्टर साहब के पास तो वे बताएं कि वो लड़का तो आ ही नहीं रहा है. फिर अंकल घर पर आएं और वजह पूछी. "तो मैंने कहा- "समझ में नहीं आ रहा काम." वे बोले- "फिर करेगा क्या तू ?" मैंने कहा- "मुझे लगा ही नहीं वहां की मैं काम कर रहा हूँ." वे बोले- "ठीक है चलो एक बार और ट्राई करके देखते हैं क्या होता है ?" फिर मुझे वे सेट पर लेकर गएँ. डायरेक्टर ने पूछा- "तुझे प्रॉब्लम क्या हो रही है ये बता ?" मैंने कहा- "सर, मुझे काम नहीं समझ में आ रहा कि आपलोग करते कैसे हो ?" उन्होंने बोला - "एक काम करो, एक और डायरेक्टर हैं मैं तुझे उनके पास भेजता हूँ. एक बार उनके साथ जाकर काम करो. लेकिन एक बात याद रखना, उनके पास तू काम करेगा तो कोई गारंटी नहीं है वो तुझे मार भी देगा, गाली भी देगा मतलब वैसे आदमी हैं जो अपने काम के प्रति बहुत परफेक्शन रखते हैं." फिर मैं गया सोहेल तातारी के पास जो बड़े डायरेक्टर थें. मैंने उनके साथ पहले दिन जो काम किया मुझे मालूम हुआ कि काम होता क्या है. जो ऑबजर्वेशन उनकी स्क्रिप्ट पर होती है, जो एक्टर्स से उनकी बातचीत होती है और जो कैमरा एंगल लगवाते हैं वो मुझे अट्रैक्ट किया. फिर उनके काम को जब मैंने टेलीविजन पर देखा तब मुझे लगा ये चीज मुझे फील कर गयी है. फिर 6 महीने मैंने उन्हें असिस्ट किया. मैं सिदार्थ सेन गुप्ता के साथ ज्वाइन हो गया. 
सोहेल जी महीने में सिर्फ एक एपिसोड करते थें चार-पांच दिन का. और बाकि के 26 दिन घर पर बैठकर सिर्फ चार दिनों में मैं कुछ बन नहीं जाऊंगा. तो उन्होंने मुझे दूसरे डायरेक्टर सिद्धार्त सेन गुप्ता के साथ काम पर लगाया और जो एक्च्युल काम है मैंने उनके साथ सीखा. सिदार्थ सेन गुप्ता के साथ हमने एक शो शुरू किया था बालिका वधु. उनके 5 असिस्टेंट थें और उनमे पहले असिस्टेंट में मेरा नाम आने लग गया. फिर उन्होंने मुझसे पूछा- "तू करेगा क्या शो ?" मैंने कहा- "अगर इंडिपेंडेंट मिलेगा तो जरूर करूँगा." उन्होंने बताया कि एक शो आनेवाला है 'तेरे मेरे सपने' स्टार प्लस का, अगर तू चाहता है करना तो मैं बात करता हूँ वहां पर."मैंने कहा- 'आप कर लो बात." उनके रिफ्रेंस से मुझे वो काम मिल गया. मेरी लाइफ का पहला शो था बतौर डायरेक्टर, तब मेरी उम्र 24 साल थी. शुरू में मैं डरा हुआ रहता था कि पता नहीं क्या होगा ? कैमरामैन भी मुझसे बहुत सीनियर थें. और जितनी मेरी उम्र थी उतना उनका एक्सपीरयंस था. तो मैं उनको कैसे डायरेक्शन देता कि दादा ऐसे शॉट लगावो ? लेकिन मेरी घबराहट दूर होती गयी क्यूंकि वो बहुत सपोर्टिव निकलें. जब हमने शो शुरू किया चैनल को पसंद आया. चैनल को लगता था कि शो सिर्फ 100-150 एपिसोड करके जल्द ही बंद हो जायेगा. मगर ऐसा हुआ नहीं. साढ़े 6 सौ एपिसोड गया और दो साल तक चला. प्रोडक्शनवाले बोलते थें कि यह शो हमें अच्छा अर्न करके दे रहा है.
एक बार ऐसा हुआ कि हमारी जो लीड हीरोइन थी उसके डैडी एक्सपायर हो गए और चलती शूटिंग में हमको यह बैड न्यूज मिला. पर कहते हैं कि शूटिंग ऐसी चीज है कि कभी रूकती नहीं है. हर दिन का एक टारगेट अचीव करना होता है. मतलब मेरी लाइफ का वह पहला शो फिर मुझे ब्रेक मिलेगा की नहीं ये भी नहीं पता था. लेकिन फिर भी मैंने प्रोडक्शनवालों को बहुत रूडली कहा था कि "मैं शूटिंग नहीं करूँगा" और शूटिंग रोक दी थी. मेरा मानना था कि हम 16-17 घंटा सेट पर रहते हैं और यूनिट के साथ फैमली से ज्यादा वक़्त बिताते हैं तो उनके सुख-दुःख का ख्याल भी हमें रखना चाहिए. तब सेट पर एक मातम सा छा गया था यह खबर सुनकर. ऊपर से प्रोडक्शन का प्रेशर था कि काम करना है. लेकिन मैंने कहा- "पहले आप इनको घर भेजने का बंदोबस्त कीजिये, जब ये घर चली जाएँगी तब हम काम शुरू करेंगे. रही बात टारगेट की तो हम पूरी यूनिट मिलकर पूरा कर लेंगे. यूनिट के लिए मैं फेवरेट था क्यूंकि मेरा नेचर ऐसा है कि मेरे साथ जितने भी काम करते हैं मैं उनके बारे में बहुत ज्यादा सोचता हूँ. फिर प्रोडक्शन वालों ने हीरोइन एकता तिवारी को फ्लाइट का टिकट कराकर उन्हें घर भेजा तब हमने काम शुरू किया.
बालिका वधु के वक़्त ऐसा हुआ कि हमारे डायरेक्टर साहब सिद्धार्थ सेन गुप्ता सर का एक शो शुरू हो रहा था और उसका सेटअप करने के लिए उन्हें जाना था. तब उन्होंने प्रोडक्शनवालों से कहा- "जब तक  हम कोई मेन डायरेक्टर लाएंगे तब तक चेतन को चांस दो, ये कर लेगा सूट." प्रोडक्शन का भी मुझपर पहले से ही बहुत ज्यादा विश्वास था. बालिका वधु में बतौर डायरेक्टर काम करना बहुत बड़ा चैलेंज था क्यूंकि वहां जितने भी एक्टर थें उनको किसी सीन को लेकर मुझसे ज्यादा एक्सपीरियंस हो गया था. काम शुरू किया, सारे एक्टर्स का मुझे सपोर्ट मिला, इस वजह से मैं वहां अपना बेस्ट दे पाया. मेन डायरेक्टर के रूप में मैंने लगभग एक साल वहां काम किया फिर तेरे मेरे सपने करने चला गया जो उसी कम्पनी का था. बालिका वधु का मैं मेन डायरेक्टर नहीं था. उसमे सीरीज डायरेक्टर, एपिसोडिक डायरेक्टर, यूनिट डायरेक्टर होता है. तो मैं बालिका वधु में असिस्टेंट से सेकेण्ड यूनिट डायरेक्टर बना. दो यूनिट डायरेक्टर होते हैं. एक थें प्रदीप जाधव और दूसरा मैं था. लेकिन तेरे मेरे सपने में मैं मेन डायरेक्टर था.
'उड़ान' सीरियल का जो कैमरामैन था वो मेरा अच्छा दोस्त था. मैंने उससे बात किया तो उसने मेरी मीटिंग प्रोड्यूसर से करा दी. जब मैं मिला तो प्रोड्यूसर बोलें- "ठीक है, करते हैं." और 'बालिका वधु' के बाद तेरे मेरे सपने, एक चुटकी आसमान, प्रीतो, नादानियाँ करने के बाद मैं 'उड़ान' में आया था. इसके बाद 'मेरी दुर्गा' किया. सोनी लिव के लिए मैंने गुजराती वेब सीरीज 'काचो पापड़-पाको पापड़' किया. जब वेब सीरीज के प्रोड्यूसर से मेरी मीटिंग हुई थी और उन्हें पता चला कि मैं यू.पी. से हूँ तो उन्होंने कहा था, " मगर यह शो गुजराती है." मैंने बोला था- "मगर सिनेमा की कोई भाषा नहीं होती है." उन्हें यह बात पसंद आई फिर उन्होंने ओके कर दिया. गुजराती में काम करने का पहला अनुभव था और उसका जो रिजल्ट आया उसे देखकर चैनलवालों ने कहा- "हमलोग एक सीजन इसका और करेंगे." मैंने बीच के खाली समय में भोजपुरी फिल्मों के 50 वर्ष पूरे होने पर 'भोजपुरी फिल्मों का सफरनामा' डाक्यूमेंट्री फिल्म शूट की. बिहार के कटिहार में जो गंगा कटाव की समस्या है उसपर एक डाक्यूमेंट्री की. फ़िलहाल मेरा नया शो चल रहा है स्टार प्लस पर 'कुल्फी कुमार बाजेवाला.'  लेकिन आगे भविष्य में फिल्म करने की तमन्ना  है. 

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