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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Thursday, 12 March 2020

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में पटना में बाईक रैली Ride For Women's Safety का आयोजन किया गया




"जिस तरह से मनचले बाइक पर घूमते हुए राह चलती महिलाओं के गले से चैन छीनते हैं, उनकी बॉडी टच करते हैं तो ऐसे में यदि आज ये महिलाएं वुमेन सेफ्टी का सन्देश लेकर दुपहिया वाहनों पर निकली हैं तो यह उन मनचलों के लिए साफ़ सन्देश है कि देखो हम महिलाएं अब सशक्त हो चुकी हैं, तुम साइड हो जाओ हमें आगे बढ़ना है...."  यह कहना था अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर उपस्थित मुख्य अतिथि महिला थाना पटना की थानाध्यक्ष आरती जैसवाल का.
    बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन और स्कॉलर्स एबोड के संयुक्त तत्वावधान में इस 8 मार्च, 2020 को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में समाज को जागरूक करने हेतु पटना में एक बाईक रैली Ride For Women's Safety का आयोजन किया गया जिसमे 15-20 की संख्या में स्टूडेंट्स लड़कियों से लेकर वर्किंग वुमेन ने स्कूटी-बाईक चलाते हुए महिला सुरक्षा को लेकर जागरूकता सन्देश दिया.

8 मार्च की सुबह 8:00 बजे महिला बाईक रैली को मुख्य अतिथि महिला थाना पटना की थानाध्यक्ष आरती जायसवाल, विशिष्ट अतिथि स्कॉलर्स एबोड की प्राचार्या डॉ. बी. प्रियम. और मीडिया एक्सपर्ट रत्ना पुरकायस्थ ने इको पार्क गेट नं. 1 से हरी झंडी देकर रवाना किया गया जिसका समापन गांधी मैदान कारगिल चौक के पास हुआ. इस रैली को लीड किया साइकिल से पूरे देश का भ्रमण कर चुकीं सोशल एक्टिविस्ट तबस्सुम अली ने.

कार्यक्रम प्रभारी प्रीतम कुमार ने रैली में शामिल सभी महिलाओं का स्वागत किया. वहीं बोलो ज़िन्दगी के संस्थापक राकेश सिंह 'सोनू' ने बताया कि "पिछली बार हमलोगों ने महिला ऑटोरिक्शा चालकों को प्रोत्साहित करने हेतु महिला ऑटोरिक्शा स्वाभिमान रैली की थी और इस बार हमने महिला सुरक्षा के प्रति जागरूकता लाने के लिए यह महिला बाइक रैली का आयोजन किया है."

मौके पर मुख्य अतिथि आरती जायसवाल ने कहा कि "जब मैं पुलिस सेवा में आयी और जब मेरी पोस्टिंग पूर्णिया जिले में हुई थी तो उस वक़्त मैं यामाहा बाइक चलाती थी तब लोग मुझे हैरत भरी निगाहों से देखते थें कि अरे औरत बाइक चला के जा रही है..."
विशिष्ट अतिथि डॉ. बी. प्रियम ने अपने वक्तव्य में कहा कि "आज महिलाओं को एहसास हो चुका है कि वो कितनी पावरफुल हैं उनको अब एहसास कराने की जरूरत नहीं है और अब महिलाएं सिर्फ दुपहिया वाहन ही नहीं चला सकतीं बल्कि अब सबकुछ कर सकती हैं."

वहीँ डॉ. रत्ना पुरकायस्थ ने कहा "महिलाएं सशक्त हैं मगर मुझे लगता है कि वो अपनी ताकत पहचान नहीं पाती हैं क्यूंकि जब एक महिला घर संभालती हैं, बाहर नौकरी करती है तो इससे ज्यादा और क्या सबूत है कि वो मजबूत नहीं हैं."


इस वुमेन सेफ्टी बाइक रैली में शामिल होनेवाली महिलाओं के नाम हैं - तबस्सुम अली, नूतन कुमारी, हिना, अमरूता सोनी, राधा कुमारी, रेखा, राधा सिन्हा, मिनाक्षी, काकोली, हिमांशु मूंचाल, किरण कुमारी, अर्चना झा, मिन्की सिन्हा, शिखा सोनिया, रजनी कुमारी, बिन्नी बाला, शर्मिष्ठा मित्रा, अर्चना कुमारी एवं अन्य. इस कार्यक्रम में बोलो ज़िन्दगी के सदस्य दीपक कुमार का भी सराहनीय सहयोग रहा.

Tuesday, 28 January 2020

बोलो ज़िन्दगी फैमिली ऑफ़ द वीक : यू ब्लड बैंक की संस्थापिका शिखा मेहता की फैमिली, धवलपुरा, पटनासिटी



रविवार की शाम 26 जनवरी, रिपब्लिक डे के दिन 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटनासिटी के धवलपुरा इलाके में संस्था यू ब्लड बैंक की संचालिका शिखा मेहता के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में पटना सचिवालय में कार्यरत एवं सचिवालय कोऑपरेटिव बैंक के डायरेक्टर उदय कुमार भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों शिखा जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.  26 जनवरी, रिपब्लिक डे के मौके पर भी शिखा जी की टीम ने पटना के खुदा बक्स लायब्रेरी के पास बिहार यंग मेंस में रक्तदान शिविर का आयोजन किया था जहाँ निशुल्क नेत्र जाँच की व्यवस्था भी कराई गयी थी.

फैमली परिचय- शिखा अभी पटना यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट हैं, सोशोलॉजी से पीजी कर रही हैं. दो बहन और एक भाई में दूसरे नंबर पर हैं. छोटा भाई अभिनव शुभम कोटा में रहकर मेडिकल की तैयारी कर रहा है. बड़ी बहन मेधा की शादी हो चुकी है. पापा सुधीर कुमार कैमिकल का बिजनेस करते हैं. माँ अनीता देवी हाउसवाइफ हैं.

यू ब्लड बैंक ऑर्गेनाइजेशन की शुरुआत - संस्था यू ब्लड बैंक यानि यूनिवर्सल ब्लड बैंक की संस्थापिका शिखा ने बताया कि "28 सितंबर, 2016 में इसकी शुरुआत हुई थी. पहले अर्जेन्ट में किसी की मदद होती थी लेकिन अब हमलोग कैम्पेन के द्वारा करते हैं ताकि कभी रात के एक-दो बजे भी किसी ब्लड बैंक को हम हेल्प पहुंचा सकें." जब शिखा ने यू ब्लड बैंक की स्थापना की तो उन्हें घर-परिवार का भी अच्छा सपोर्ट मिला. उसी वक़्त ध्यान आया कि एक-दो जन के यूँ बल्ड दे देने से काम चलेगा नहीं इसलिए इनकी टीम ने ब्लड डोनेशन कैम्प लगाना शुरू किया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग अवेयर होकर रक्तदान कर सकें. इनका फोकस ज्यादातर युवाओं को इस मुहीम से जोड़ने का रहा और फिर उन्हें प्रेरित करके ये जितने भी ब्लड बैंक हैं पटना में सभी को ब्लड मुहैया कराते हैं, यह सोचकर कि किसी जरूरतमंद को वक़्त पर काम आये, ब्लड की कमी से किसी की मृत्यु ना हो.

प्रेरणा कहाँ से मिली ? - छोटा भाई अभिनव शुभम प्रेरणास्रोत बना. जब वो कोटा में ही था तो उसने देखा कि वहां ब्लड की काफी जरूरत है और कई ग्रुप ब्लड डोनेशन के लिए काम कर रहे हैं. वो चाहता था कि शिखा उसी तरह पटना में भी एक ग्रुप तैयार करें. पहले उसने कोटा में रहते हुए ही एक व्हाट्सप ग्रुप बनाया जिसके तहत एक-दो महीने काफी सक्रीय रहा. कभी वो तो कभी उसके दोस्त ब्लड डोनेट करने चले जाते थें. जब उसने शिखा को बताया तो उन्हें लगा कि ये हमसे होगा नहीं. फिर भाई ने समझाते हुए कहा कि "एक बार तुम ट्राई करके देखो." तब पहले शिखा ने पटना में अपना अलग एक व्हाट्सप ग्रुप बनाया और पहली बार 28 सितंबर को एक कैंसर पीड़ित महिला के लिए रक्तदान किया. ये बिल्कुल नया अनुभव था शिखा के लिए कि आप जिसे जानते नहीं हो उसे ब्लड देकर उसकी जान बचाते हो. इनके पापा के मन में चूँकि शुरू से समाज सेवा की भावना रही है इसलिए वो इनके काम को बढ़ावा देते हैं. जहाँ कहीं भी बैठते हैं तो बेटी के इस काम के बारे में बताते हैं हर किसी को कि "मेरी बेटी ऐसा कर रही, आपको भी करना चाहिए."

क्या मुश्किलें आयीं ? - शिखा को शुरुआत में समझ में नहीं आ रहा था कि शिविर आयोजित कर रहे हैं तो लोगों को कैसे एकत्रित करें. फिर सोशल मीडिया आधार बना. उसके जरिये लोगों को जोड़ना शुरू किया गया. सबसे पहले शिखा ने फैमिली मेंबर को जोड़ा. कोई रोक-टोक तो नहीं हुई...? यह पूछे जाने पर शिखा कहती हैं, "अगर आप समाज के लिए कुछ करने निकलते हैं तो पोसिटिव-निगेटिव दोनों बातें देखने को मिलती हैं लेकिन जब घर का सपोर्ट हो और खुद का विश्वास हो तो आपका हौसला बढ़ जाता है."

सहयोगी - यू ब्लड बैंक संस्था के अभी 5 ग्रुप हैं. टीम की बात करें तो शिखा के सहयोगियों की संख्या 15 से 20 है जिनमे संतोष पाठक, सत्यदीप पाठक, अमरजीत कुमार, आमोद कुमार शेखावत, अविनाश कुमार मेहता, प्रेमचंद कुमार, पुष्पलता कुमारी, राजेश गुप्ता, मनोज कुमार मंडल, रंजना मेहता, विवेक कुमार, आशीष यादव ,आलोक कुमार, ब्यूटी सिंह, सृष्टि कुमारी, मनोज यादव, सूरज सिंह तोमर का वोलेंटियर के रूप में बहुत अच्छा सहयोग मिलता है. लेकिन जो ब्लड डोनेट करनेवाले सदस्य हैं उनकी संख्या हजार से ऊपर है. इसके आलावा बाल लीला गुरुद्वारा, पटना साहिब से बाबा कश्मीर सिंह भूरीवाले, बाबा गुरविंदर सिंह एवं सामाजिक कार्यों से जुड़े सभी युवाओं के लिए अभिभावक के रूप में गुरमीत सिंह जी का हमेशा सहयोग रहता है यू ब्लड बैंक के नेक कार्य में.

आगे का लक्ष्य -  शिखा बताती हैं, "शिविर करने से लोग जागरूक तो होते ही हैं और एक प्लस पॉइन्ट ये होता है कि हर तीन महीने पर रक्तदान करने की अच्छी लत उन्हें लग जाती है. हमारी इच्छा है कि वैसे गांव-कस्बों में जहाँ लोग रक्तदान को लेकर कुछ सोचते तक नहीं हैं वहां जाकर हम ब्लड डोनेशन कैम्प लगाएं, उनके बीच डोर टू डोर जाकर जागरूक करें कि आपके गांव में भी अगर किसी की ब्लड की कमी से मृत्यु हो जाती होगी, प्रसव के दौरान कई महिलाएं ब्लड की कमी की वजह से दम तोड़ देती हैं तो अगर आप इस चीज में आगे आएंगे तो कई लोगों की जान बचा सकते हैं." इसी लक्ष्य को लेकर 2020 में शिखा जी कि टीम ने पहली बार पटना से बाहर फतुहा इलाके में भी रक्तदान शिविर आयोजित किया.

हॉबी - शिखा गाने सुनने, गार्डनिंग और फोटोग्राफी का भी शौक रखती हैं. इनके पापा भी पुराने गाने बहुत सुनते हैं. उन्हें बागवानी का भी शौक है तभी अपने घर की छत पर फल-फूल और शब्जियों के कई पौधे लगा रखे हैं जैसे निम्बू, सपाटू, जामुन, अमरुद, आम का पेड़, सब्जी में टमाटर, नेनुआ, कद्दू, भिंडी, पालक, मूली, धनिया इत्यादि.


स्पेशल मोमेंट - बोलो ज़िन्दगी की फरमाईश पर शिखा मेहता ने एक गाना गुनगुनाकर सुनाया. जब टीम कि नज़र घर में राखी कुछ ट्रॉफियों पर गयीं तो शिखा के पिता जी ने फख्र से कहा कि "ये सम्मान मेरी बेटी को मिले हैं उसके नेक कार्यों को देखते हुए...." और यह कहते हुए बोलो ज़िन्दगी की टीम ने करीब से महसूस किया अपनी बेटी की सराहना करते हुए एक पिता की आँखों में दिख रही खास चमक को जो गर्व का एहसास करा रही थी. शिखा और उनकी फैमिली से मिलकर बोलो ज़िन्दगी टीम के साथ आये स्पेशल गेस्ट उदय कुमार ने शिखा की तारीफ करते हुए यह आश्वासन भी दिया कि, आपकी योजनाओं और मुहीम को हम सरकार तक पहुँचाने में मदद करेंगे.

अब रात हो चुकी थी और बोलो ज़िन्दगी की टीम यहाँ से विदा लेने ही वाली थी कि शिखा के पिता जी के आग्रह पर बोलो ज़िन्दगी की टीम सीढ़ियां चढ़ते हुए घर के छत पर पहुँची और उनकी खूबसूरत बागवानी कला का मुआयना करके ही वापस लौटी.

 (इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है.)















Tuesday, 21 January 2020

बोलो ज़िन्दगी फैमिली ऑफ़ द वीक : फाइनआर्ट टीचर उपासना दत्ता की फैमिली, शास्त्रीनगर, पटना



18 जनवरी, शनिवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के बेलीरोड, शास्त्रीनगर इलाके में फाइनआर्ट टीचर उपासना दत्ता जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में ह्यूमन बूस्ट संस्था की सेक्रेट्री हेमलता भारती भी शामिल हुईं. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों उपासना दत्ता जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- उपासना दत्ता फाइन आर्ट की टीचर हैं जिन्होंने आइजीएमएस, डीएवी में काम किया है. फ़िलहाल फ्रीलांस करती हैं. पेंटिंग बहुत पसंद है. खासकर मधुबनी पेंटिंग और टिकुली आर्ट पर ज्यादा फोकस रहता है. बच्चों को सिखाने का क्रम भी चलता रहता है. घर में शिल्पायन नाम की संस्था के तहत सैटरडे- संडे को क्लास लेती हैं. कई ऐसे अभावग्रस्त बच्चे हैं जिन्हे फ्री में भी सिखाती हैं. इनके अपार्टमेंट के बहुत से बच्चों ने भी इनसे सीखा है. इनके खुद के बच्चे भी इन्ही बच्चों के ग्रुप में बैठकर सीखते हैं और एक सुंदर सा मौहौल बना रहता है. भागलपुर से बिलॉन्ग करती हैं लेकिन अभी मायका पटना सिटी में है. पिता जी बिहार सर्वेक्षण विभाग में थें, अब रिटायर्ड हैं. पति अनूप कुमार दत्ता एलआईसी में कार्यरत हैं. इनकी छोटी उम्र में ही माँ का स्वर्गवास हो गया था. पहले बहुत सारे शौक थें लेकिन पिता के अचानक गुजर जाने से जिम्मेदारियों ने मौका नहीं दिया. बड़ा बेटा दिव्यरूप दत्ता और छोटा बेटा कार्तिकेय दत्ता 5 वीं में तो घर की लाडली बेटी जॉयति क्लास 2 में है. तीनों ही संत एल्बर्ट स्कूल में पढ़ते हैं.

पूरे परिवार का टैलेंट - पेंटिंग के अलावा उपासना दत्ता ने इलाहबाद यूनिवर्सिटी के तहत गुलाटी जी महाराज के सानिध्य में शास्त्रीय संगीत भी सीखा है. सुधा कपूर जी ने भी उन्हें बहुत अच्छी शिक्षा दी है. गायन अब छूट गया है लेकिन कुछ भूली नहीं हैं और चाहती हैं कि ये परम्परा इनके बच्चों तक जाये और उन्हें कुछ हासिल हो सके. ये मानती हैं कि म्यूज़िक और पेंटिंग में बहुत सुकून है. इनके पति बचपन में जब स्कूल में गाना गाते थें तो टीचर चाव से सुनते थें. बचपन से ही पेंटिंग और क्विज में पार्टिसिपेट करने का बहुत शौक था. बड़ा बेटा दिव्यरूप चेस बहुत अच्छा खेलता है. जहाँ जहाँ उसने पार्टिसिपेट किया प्राइज लेकर ही आया. छोटा बेटा कार्तिकेय माइकल जैक्शन का डांस फॉलो करके खुद से ही सीखता रहता है, पेंटिंग बहुत अच्छा कर लेता है. कई पेंटिंग कॉम्पटीशन में इनाम जीते हैं. खुद का एक यू ट्यूब चैनल भी है गेमिंग मास्टर के नाम से जिसमे ये गेमिंग के वीडियोस डालते हैं.  छोटी बेटी जॉयति दत्ता को सिंगिंग, डांसिंग और पेंटिंग बहुत पसंद है. कम उम्र में ही उसे कुकिंग का शौक जग गया है. एक बार उपासना जी बीमार पड़ीं और फीवर से उठ नहीं पा रही थीं तो जॉयति ने कहा "माँ मैं बना देती हूँ..." जबतक उपासना जी कुछ समझ पातीं तबतक जॉयति सत्तू पुरी बनाकर झट से ले आयी.


उपासना दत्ता का स्ट्रगल - बचपन में बहुत ज्यादा तबियत खराब होने की वजह से सबने कहा कि अब ये बच नहीं पायेगी. डॉक्टर्स के फॉल्ट और बहुत सारी वजहों से प्रॉब्लम आयी थी. लेकिन फाइनली कई जगह से थक हारकर दिल्ली एम्स में जब गयीं तो डॉक्टर अजय रॉय चौधरी की वजह से नया जीवन मिला. फिर पढ़ाई के बाद तुरंत शादी हो गयी. शादी के बाद एक ट्विस्ट आया लाइफ में स्टेप मदर इन लॉ का होना. उसी दौरान हसबैंड का बाहर ट्रांसफर हो जाना जैसे कई सारे फेजेस को स्ट्रॉन्ग्ली फेस किया. कई बार सोचा कि अब नहीं हो पायेगा, लेकिन हसबैंड के सपोर्ट से बच्चों के लिए आगे बढ़ती गयीं और निरंतर प्रयासरत रहीं. उपासना जी कहती हैं , "उसी हालातों में मैं खुद को कहीं डिस्टर्ब न पाऊं इसके लिए मैंने पेंटिंग जारी रखी और इससे मेरी घर की ज़रूरतें भी पूरी हुईं. क्यूंकि कई बार हसबैंड की बीमारी ने भी मुझे हालातों से लड़ने लायक बनाया. लाइफ में बहुत अप एन्ड डाउन देखें लेकिन पेंटिंग में रमी रहती हूँ तब सारे दर्द भूल जाती हूँ."


स्पेशल मोमेंट - बोलो ज़िन्दगी टीम की फरमाईश पर जहाँ उपासना जी ने अपनी आवाज में कुछ गीत सुनाएँ तो वहीँ छोटे बेटे कार्तिकेय ने माइकल जैक्शन डांस और बेटी जॉयति ने हारमोनियम पर मधुर धुन बजाकर सुनाया. उपासना जी ने हर तरह की बनायीं अपनी कुछ पेंटिंग्स का दीदार कराया तो
ओवर ऑल इस फैमिली पैक प्रदर्शन को देखकर बोलो ज़िन्दगी टीम और स्पेशल गेस्ट के रूप में मौजूद हेमलता भारती जी ने इस फैमिली की खूब प्रशंसा की. चूँकि घर में बोलो ज़िन्दगी टीम के प्रवेश करने के साथ ही उसका स्वागत चाय-नाश्ते से हो चुका था और जैसे ही कार्यक्रम खत्म करते ही टीम के मेंबर्स विदा लेने को उठें तो उपासना जी ने सबको डायनिंग टेबल पर आमंत्रित करने के साथ ही रात का खाना परोसने की तैयारी शुरू कर दी. खाने के लिए जब टीम ने मना किया तो घर की लाडली नन्ही जॉयति ने बड़ी ही मासूमियत के साथ कहा कि "अरे वाह, आप ऐसे ही चले जायेंगे ! फिर हमारी मम्मी ने जो इतनी मेहनत से सबके लिए खाना बनाया है वो तो वेस्ट जायेगा ना..." उसका इतना प्यारा आग्रह सुनकर पूरी टीम के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी और अब कोई भी प्यारी जॉयति को नाराज नहीं करना चाहता था. खाने में वेज और नॉनवेज दोनों की ही व्यवस्था थी, बोनस में गुलाबजामुन भी था . उपासना जी के हाथ से बने स्वादिष्ट व्यंजनों का लुफ्त उठाने के बाद रात में बोलो जिंदगी की टीम अपने गंतव्य की ओर लौट पड़ी.
(इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है.)







Monday, 13 January 2020

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : स्टोरी टेलर शाइस्ता अंजुम की फैमली, गुलजारबाग़, पटनासिटी




पिछले दिनों 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटनासिटी के गुलजारबाग़ इलाके में सोशल एक्टिविस्ट एवं स्टोरी टेलर शाइस्ता अंजुम जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में पटना हाईकोर्ट की एडवोकेट एवं सोशल एक्टिविस्ट मधु श्रीवास्तव भी शामिल हुईं. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों शाइस्ता अंजुम जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- शाइस्ता अंजुम- मायका और ससुराल दोनों ही भागलपुर में है. पोलिटिकल साइंस और वीमेन स्टडीस इन दो सब्जेक्ट से एम.ए. किया है. शौक - बच्चों को कहानियां सुनाना, लोगों की मदद करना, गाना सुनना, प्लांट लगाना, पशु-पक्षियों से बहुत लगाव है तभी मेरे घर में फिश, पैरोट, रैबिट और लव बर्ड ये सभी अब मेरे घर के सदस्य हैं. नए-नए तरह के डिश बनाने का भी शौक है.
डॉ. मो. रब्बान अली  - ओरियंटल कॉलेज में वाइस प्रिंसिपल हैं और पोलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. मैट्रिक तक संस्कृत में पढ़े हैं, स्कूली दिनों में क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था. अभी पैदल चलना, बैडमिंटन खेलना, अख़बार पढ़ना शौक में शामिल है. बहुत पहले चोरी-छिपे शेरो-शायरी लिखने का बहुत शौक चढ़ा था और जब से पत्नी का साथ मिला तो वो छूट चूका शौक फिर से जवां हो उठा. क्यूंकि पत्नी प्रेरित करती हैं आज भी लिखने के लिए तो थोड़ा बहुत लिख लेते हैं. मैं सैड वाली चीजें ज्यादा लिखते हैं उसकी वजह ये कि हमने ज़िन्दगी में उदासियाँ बहुत देखी हैं.
बच्चे- मो. अनस रब्बानी, क्लास 8, संत. ऐंस हाई स्कूल, गेमिंग का शौक है, यू ट्यूब पर गेमिंग का चैनल बनाने की तयारी में लगे हैं. बास्केटबॉल और पेंटिंग में भी रूचि है लेकिन इधर पढ़ाई के लोड की वजह से इन सब से अभी दूरी है.
आमना रब्बानी- मगध महिला कॉलेज, पटना यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन लास्ट ईयर की स्टूडेंट हैं. केमेस्ट्री ऑनर्स है. स्कूल में बहुत सारे कॉप्टीशन में पार्टिसिपेट किया. डिबेट किया. बेस्ट स्टूडेंट और स्केल हेड रह चुकी हूँ. इंजीनियरिंग मेरा ड्रीम था लेकिन आर्थिक प्रॉब्लम की वजह से वो मैं कर नहीं पायी.स्कूल में पेंटिंग में रूचि थी, थोड़ा बहुत सिंगिंग का भी शौक रखती हूँ. टिकटॉक वीडियो भी बहुत सारे बनाये हैं.

शाइस्ता जी का स्ट्रगल - शाइस्ता जी इस बाबत बताती हैं , "जब अपने मायके भागलपुर में थी तो स्कूली दिनों में तब वहां लाइट रहती नहीं थी लेकिन पढ़ने का बहुत शौक था. मेरी पूरी फैमिली पर्दा प्रथा वाली थी. हमलोग सैय्यद बिरादरी से आते हैं तो तब यह था कि लड़कियां बाहर नहीं जाएँगी. मुझे याद है कि मेरी अम्मी को अगर चूड़ी भी पहननी होती तो चूड़ीवाली हमलोगों के घर में आती थी. इस तरह मैंने सबको तब पर्दे में ही देखा. लेकिन मेरा थोड़ा सा अलग ही दिमाग था. मैं पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा मशगूल रहती तो मेरी अम्मी बोलतीं कि पता नहीं ये कौन तरह की लड़की पैदा हो गयी है. अब मेरे पापा और अम्मी नहीं हैं सिर्फ भाई लोग हैं. तब मैं पढ़ने के साथ ही साथ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगी क्यूंकि मैं अपने घर की आर्थिक स्थिति ठीक करना चाहती थी. तब मेरे पापा का मेजर एक्सीडेंट हो गया था और उनका बाहर निकलना बंद हो गया. घर में पापा, अम्मी और हम 6 भाई-बहन थें. लेकिन उस वक़्त हमें कोई सपोर्ट नहीं मिला. तब घर को सँभालने के लिए मुझे बाहर निकलना पड़ा. अपने भाई-बहनों को पढ़ाने के साथ- साथ खुद भी पढ़ती गयी.


कहानी लेखन की शुरुआत - शाइस्ता जी कहती हैं, "आजकल के बच्चों के पास मनोरंजन का बहुत साधन है लेकिन हमलोगों को उस वक़्त ऐसा कुछ था नहीं. मेरी बेस्ट फ्रेंड मधु हमारे पड़ोसी पुजारी जी की बेटी थी. हमलोग साथ ही स्कूल जाते थें. हमें तब उतना पैसा मिलता नहीं था तो हम और मेरी दोस्त आपस में मिलकर चंदा करते थें और अपने मोहल्ले में एक पुरानी किताब की दुकान थी वहाँ पैसा देकर आठ आने - चार आने देकर किराये पर कॉमिक्स पढ़ने ले आते लाते थें और फिर या तो स्कूल में या अमरूद के पेड़ के नीचे एक साथ बैठ जाते थें. कई और दोस्त भी हमारी मण्डली में शामिल हो जाते थें. हर दिन हम लोगों में से ही कोई एक कॉमिक्स पढ़ता और सभी चाव से सुनते थें. तब यूँ ही कहानियां सुनते-सुनते लिखने का शौक भी शुरू हो गया. स्कूल में डिबेट कॉम्पटीशन में फर्स्ट प्राइज जीतें थें. इंटर के दौरान भागलपुर आकाशवाणी में मेरा युववाणी कार्यक्रम में कहानियां-कवितायेँ सुनाना शुरू हो गया. फिर बाल-मंजूषा कार्यक्रम में बच्चों के साथ मेरी जुगलबंदी होने लगी. नए पल्ल्व प्रकाशन की किताब घरौंदा जिसमे कई लोगों की साझा कहानियां हैं उसमें मेरी पहली कहानी 'नन्ही छुटकी' प्रकाशित हुई फिर कई पत्रिकाओं यथा गृहशोभा इत्यादि और दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हिंदुस्तान आदि अख़बारों में कहानियां प्रकाशित हुईं.

समाज सेवा की भावना - पशु-पक्षियों से आज भी लगाव है और तब भी था जिस वजह से बचपन में पड़ोसी बच्चों को जानवरों और पक्षियों को तंग करते देखकर शाइस्ता जी उनसे लड़ पड़ती थीं. भागलपुर के अख़बार 'नयी बात' में इनकी रचनाएँ अक्सर छपती थीं. 90 के दशक में उन्ही दिनों प्रौढ़ शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने के लिए कुछ कॉलेज स्टूडेंट का चयन करके उन्हें भेजा जाता था. शाइस्ता भी तब प्रौढ़ शिक्षा केंद्र कार्यक्रम में जाती थीं. 1995 में भागलपुर में भयानक बाढ़ आयी थी तो वहीँ के एक बाढ़ग्रस्त इलाके में मदद पहुँचाने जाना पड़ा था. वहां बाढ़ से त्रस्त लोगों को चूड़ा वगैरह वितरित करना था. शाइस्ता जी बताती हैं कि "तब उनकी स्थिति देखकर मेरी आँखों से आंसू निकल आये थें. वहां से आकर हमने उस घटना पर एक आर्टिकल लिखा था जो हिंदी-उर्दू के कुछ अख़बारों में छपी थी. फिर वहीँ से मन में समाज सेवा कि भावना घर करनी शुरू हो गयी."


सराहनीय कार्य - शाइस्ता जी सोशल वर्क में कई संस्थाओं से जुडी हुईं हैं. पटना के राजेंद्रनगर में कहानीघर नाम से एक संस्था है जहाँ झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चे, रिक्शा-ठेला चलानेवालों के बच्चे और नशे की लत लगा चुके बच्चे आते हैं. मीनाक्षी मैडम और रौनक सर संस्था का संचालन करते हैं. वहाँ इन स्लम के बच्चों को कहानियों के माध्यम से चरित्र चित्रण किया जाता है.
शाइस्ता जी बताती हैं, "पटना में संस्था कहानीघर के संचालक से फेसबुक के माध्यम से सम्पर्क हुआ. उन्होंने बुलाया तो मैं वहाँ गयी और जब पहले ही दिन बच्चों के बीच कहानी सुनाएँ तो उनलोगों को बेहद पसंद आया. फिर ऐसा हो गया कि हम रेगुलर हर सैटरडे को जाने लगें. हम वहाँ पहुंचे नहीं कि बच्चे मुझे घेर लेते थें." इनकी हर कोशिश में इनके हसबैंड ने हमेशा साथ दिया. एक दिन शाइस्ता जी ने सोचा क्यों न पटनासिटी में मदरसे के बच्चों के लिए कुछ करें क्यूंकि ये वो बच्चे हैं जो यतीमख़ानों के अंदर कैद सा रहते हैं, तो उन बच्चों को भी ये  कहानी के माध्यम से बहुत सी जानकारियां देना चाहती थीं. लेकिन चैलेन्ज ये था कि मुस्लिम औरतें मदरसा जाती नहीं हैं. तो अल्लाह का नाम लेकर शाइस्ता जी आगे बढ़ीं और उनके कहने पर मदरसे के ऑनर से हसबैंड ने बात किया. उस मदरसे के ट्रस्टी अमरीका में रहते थें. शाइस्ता जी अपने बच्चों और पति के साथ मदरसा जब पहले दिन पहुंची तो उन्हें नहीं पता था कि वे जो कहानी सुना रही  हैं उसका लाइव प्रदर्शन अमरीका में भी हो रहा है और जो ट्रस्टी थे वो वहीँ से देख रहे थें. शाइस्ता जी जब कहानी सुनाने लगीं तो कहानी सुनाने का अंदाज़ बच्चों को इतना पसंद आया कि वे इतना इंज्वाय करने लगें कि उनको छोड़ ही नहीं रहे थें. एक हफ्ते बाद जब शाइस्ता जी के हसबैंड कॉलेज से घर आएं तो उन्होंने बताया कि "जो ट्रस्टी हैं उन्होंने कहा है कि जब आपको फुर्सत मिले आप मैडम को लेकर मदरसे में आईये और उनको कहिये कि वे दो घंटा बच्चों का क्लास भी लेंगी." और फिर शाइस्ता जी का वहां जाने का सिलसिला शुरू हो गया.


स्पेशल मोमेंट - बोलो ज़िन्दगी टीम की फरमाईश पर शाइस्ता अंजुम ने अपनी एक कविता व बच्चों के लिए तैयार की गयी एक कहानी सुनाई. उनके पति मो. रब्बान अली ने भी एक ग़ज़ल सुनाई, वहीँ उनकी बेटी आमना ने एक बॉलीवुड सॉन्ग सुनाया. ओवर ऑल इस फैमिली पैक प्रदर्शन को देखकर बोलो ज़िन्दगी टीम और स्पेशल गेस्ट के रूप में मौजूद एडवोकेट मधु श्रीवास्तव जी ने इस फैमिली की खूब प्रशंसा की. वहीँ जब मेहमाननवाजी के वक़्त शाइस्ता जी ने अपने हाथ की बनी एक डिश जर्दा (मीठा पुलाव) खिलाया तो उसके स्वाद से प्रभावित होकर मधु जी ने लगे हाथों उनसे इस डिश की पूरी रेसिपी सीख ली और कहा कि "मैं आज ही घर जाकर ये बनाने का प्रयास करुँगी."

(इस पूरे कार्यक्रम को बोलोजिन्दगी डॉट कॉम पर भी देखा जा सकता है.)








Tuesday, 7 January 2020

"पत्रकार कवि सम्मेलन- Season 2"



कवि सम्मेलन की महफ़िल में पत्रकार कवियों की जमात सजी थी. यहाँ देश-समाज की खबरें, प्यार-मोहब्बत के एहसास सभी कुछ कविता के रूप में व्यक्त किये जा रहे थें. बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन ने  रविवार, 5 जनवरी, 2020 को पटना, दीघा स्थित पिंक महल मैरेज हॉल में "पत्रकार कवि सम्मेलन- Season 2" का आयोजन किया, जहाँ शहर के विभिन्न प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कवि पत्रकार बन्धुओं ने काव्य पाठ के साथ नए साल का गर्मजोशी से स्वागत किया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, अमिताभ ओझा, एसोसिएट एडिटर, न्यूज 24 (बिहार-झाड़खंड), विशिष्ट अतिथि - पवन टून, कार्टूनिस्ट, दैनिक हिंदुस्तान, बंटी चौधरी, विधायक, सिकंदरा- जमुई, कुमार प्रभंजन, सीएमडी, नेक्स्टजेन वर्ल्ड, मृत्युंजय कु. सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, बिहार पुलिस एसोसिएशन, ऋतू जायसवाल, मुखिया, सिंहवाहिनी पंचायत ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की. कार्यक्रम शुरू होने से पहले बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन के निदेशक राकेश सिंह 'सोनू' एवं बोलो ज़िन्दगी की प्रोग्रामिंग हेड तबस्सुम अली ने आमंत्रित अतिथियों को सम्मानित किया.

कार्यक्रम के आयोजक एवं बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन के निदेशक राकेश सिंह 'सोनू' ने बताया कि "पहली बार इस अनूठे कॉन्सेप्ट को लेकर हमने जनवरी 2019 में पत्रकार कवि सम्मेलन आयोजित किया था. चूँकि मैं खुद एक पत्रकार हूँ और मैंने देखा है कि ज्यादातर पत्रकार मंचीय कवि नहीं होते बल्कि वे सिर्फ शौकिया लिखा करते हैं. कुछ एक पत्रकारों को छोड़ दें तो बहुत से कविता रचनेवाले पत्रकार झिझक की वज़ह से कवि गोष्ठियों में जाने से बचा करते हैं. तो उन्ही पत्रकार कवियों की झिझक तोड़ने और सभी पत्रकार कवियों को एक मंच पर इकट्ठा करने के उद्देश्य से हमने 'पत्रकार कवि सम्मलेन' की शुरुआत की और पिछले साल इस कार्यक्रम के सफल होते ही हमने यह तय किया कि यह कार्यक्रम आगे भी जारी रखा जाये. इस कार्यक्रम की निरंतरता बनाये रखने के लिए मुझे अपने कवि पत्रकार बंधुओं का भी अच्छा सहयोग मिला."

आमंत्रित पत्रकार कवि थें-  अमलेंदु अस्थाना (दैनिक भास्कर), चंदन द्विवेदी (दैनिक हिंदुस्तान),
कुमार रजत (दैनिक जागरण), आरजे श्वेता सुरभि (बिग एफएम), अभिषेक मिश्रा (रेड एफएम), प्रेरणा प्रताप (दूरदर्शन बिहार), बीरेंद्र ज्योति (वरिष्ठ पत्रकार), श्रीकांत व्यास (वरिष्ठ पत्रकार), समीर परिमल (पूर्व संपादक, सामयिक परिवेश) दिल्ली से आये संजीव मुकेश (संपादक, सामयिक परिवेश), नवादा से आये मुकेश सिन्हा (पूर्व पत्रकार), ऋचा शर्मा (फर्स्ट बिहार झाड़खंड न्यूज पोर्टल).

बिहार के 13 पत्रकार कवियों ने अपनी काव्य रचना सुनाई जो यूँ है,
अमलेंदु अस्थाना ने सुनाया-
"शब्द शब्द टकराये है,
देखो तो किधर जाए है.
नफ़रत की इस आंधी में
शोला वोला भड़काए है.
कोई मज़हब-मज़हब शोर करे
कोई जाति-जाति चिल्लाए है."

कुमार रजत ने सुनाया-
"ज़िद ने साजिश बड़ी की है।
घर में दीवार खड़ी की है।
हम यूं कभी रोए नहीं थे
मुहब्बत ने कहीं गड़बड़ी की है।"

चंदन द्विवेदी ने सुनाया-
"राग हो रंग हो इस नए साल में
साथ हो संग हो इस नए साल में
सबको विज्ञान देता रहे सन्मति
न कोई जंग हो इस नए साल में."

प्रेरणा प्रताप ने सुनाया-
"कौन सी कविता लिखूं ,
लिखूं कौन सा गीत,
स्याही अश्रु बहा रही
जब हृदय हुआ व्यथित."

समीर परिमल ने सुनाया-
"जो न करना था कर गया पानी
देखो हद से गुज़र गया पानी
जब जगह मिल सकी न आँखों में
हर गली घर में भर गया पानी."

आरजे श्वेता सुरभि ने सुनाया-
"कुछ ख्वाहिशें झांकती है झरोखों से..कुछ हसरतें दस्तक देती हैं खिड़कियों पर.."

अभिषेक कु. मिश्रा ने सुनाया-  "अगर मैं लड़की होता को क्या लिखता...मैं अपना डर लिखता या अपना गुस्सा लिखता."

राकेश सिंह 'सोनू' ने सुनाया-
"तेरे आने से तब मौसम बदलता था तेरे जाने से अब मेरी रात जगती है...क्या बताऊँ, मेरी आदत बनकर तू अब भी मुझमे दिन-रात गुजरती है."

बीरेंद्र ज्योति जी ने सुनाया-
"नया साल मुबारक नया साल मुबारक. उसको नफरत की आग मुबारक हमें इश्क का एक चिराग मुबारक."

संजीव कुमार मुकेश ने सुनाया-
"जीवन के हर शब्द-शब्द
अक्षर-अक्षर में माँ,
माँ ही गीता-वेद-रामायण
 वाणी स्वर में माँ."

मुकेश कुमार सिन्हा ने सुनाया -
"भय,भूख,भ्रष्टाचार से
लड़ाई हो आर-पार.
हमेशा जगती रहे कलम
ताकि सोये न सरकार."

ऋचा शर्मा ने सुनाया-
"चाहत नहीं विवाद हो
आदत नहीं फसाद हो
है तीव्र लालसा यही
बस सत्य शंखनाद हो."

श्रीकांत व्यास ने सुनाया -
"दस्त में हैं मौत के ख़ंजर लिए,
बागवां भी अब दिखे बंजर लिए..."

कार्यक्रम में एंकरिंग की बोलो ज़िन्दगी के प्रीतम कुमार ने तो कवि सम्मेलन का संचालन किया रेड एफएम के अभिषेक मिश्रा ने. इन पत्रकार कवियों की कवितायेँ सुनकर देर शाम तक महफ़िल में वाह-वाह और तालियों की आवाज गूंजती रही. सभी प्रतिभागी पत्रकार कवियों को मौजूद अतिथियों ने मोमेंटो देकर सम्मानित किया. प्रतिभागियों एवं सम्मानित अतिथियों को कार्यक्रम के गिफ्ट पार्टनर की तरफ से देसी फ़ूड 'सत्तूज' का गिफ्ट पैक वितरण किया गया.
       
कार्यक्रम के समापन के बाद मुख्य अतिथि न्यूज 24 के एसोसिएट एडिटर अमिताभ ओझा ने बोलो ज़िन्दगी के निदेशक राकेश सिंह सोनू से अपने दिल की बात शेयर करते हुए कहा कि "अपने पत्रकार साथियों को यूँ काव्य पाठ करते हुए देखकर मुझे भी कुछ-कुछ होने लगा और अगली बार मैं गेस्ट की कुर्सी पर नहीं बल्कि कवि पत्रकारों की जमात में बैठकर खुद भी कविता सुनाना पसंद करूँगा."

इस कार्यक्रम को सफल बनाने में बोलो ज़िन्दगी के प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली, दीपक, नीरज, सतीश कुमार, राहुल राज एवं दीनू मिश्रा का बहुत योगदान रहा. मुख्य अतिथि अमिताभ ओझा ने कार्यक्रम के अन्य सहयोगी प्रायोजक रिलेक्स सर्विकॉन प्राइवेट लिमिटेड के सीएमडी विकास कुमार को  सम्मानित किया. विशिष्ट अतिथि मशहूर कार्टूनिस्ट पवन टून ने फोटोग्राफी पार्टनर येलो स्टूडियो के अनिमेष रंजन और गिफ्ट पार्टनर 'सत्तूज़' के मिस्टर आर्यन को सम्मानित किया. वहीँ बोलो ज़िन्दगी के राकेश सिंह 'सोनू' ने वेन्यू पार्टनर पिंक महल मैरेज हॉल के ऑनर ए. के. वाजपेयी उर्फ़ सीटू जी को सम्मानित किया.  

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