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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Monday 13 January 2020

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : स्टोरी टेलर शाइस्ता अंजुम की फैमली, गुलजारबाग़, पटनासिटी




पिछले दिनों 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटनासिटी के गुलजारबाग़ इलाके में सोशल एक्टिविस्ट एवं स्टोरी टेलर शाइस्ता अंजुम जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में पटना हाईकोर्ट की एडवोकेट एवं सोशल एक्टिविस्ट मधु श्रीवास्तव भी शामिल हुईं. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों शाइस्ता अंजुम जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- शाइस्ता अंजुम- मायका और ससुराल दोनों ही भागलपुर में है. पोलिटिकल साइंस और वीमेन स्टडीस इन दो सब्जेक्ट से एम.ए. किया है. शौक - बच्चों को कहानियां सुनाना, लोगों की मदद करना, गाना सुनना, प्लांट लगाना, पशु-पक्षियों से बहुत लगाव है तभी मेरे घर में फिश, पैरोट, रैबिट और लव बर्ड ये सभी अब मेरे घर के सदस्य हैं. नए-नए तरह के डिश बनाने का भी शौक है.
डॉ. मो. रब्बान अली  - ओरियंटल कॉलेज में वाइस प्रिंसिपल हैं और पोलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. मैट्रिक तक संस्कृत में पढ़े हैं, स्कूली दिनों में क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था. अभी पैदल चलना, बैडमिंटन खेलना, अख़बार पढ़ना शौक में शामिल है. बहुत पहले चोरी-छिपे शेरो-शायरी लिखने का बहुत शौक चढ़ा था और जब से पत्नी का साथ मिला तो वो छूट चूका शौक फिर से जवां हो उठा. क्यूंकि पत्नी प्रेरित करती हैं आज भी लिखने के लिए तो थोड़ा बहुत लिख लेते हैं. मैं सैड वाली चीजें ज्यादा लिखते हैं उसकी वजह ये कि हमने ज़िन्दगी में उदासियाँ बहुत देखी हैं.
बच्चे- मो. अनस रब्बानी, क्लास 8, संत. ऐंस हाई स्कूल, गेमिंग का शौक है, यू ट्यूब पर गेमिंग का चैनल बनाने की तयारी में लगे हैं. बास्केटबॉल और पेंटिंग में भी रूचि है लेकिन इधर पढ़ाई के लोड की वजह से इन सब से अभी दूरी है.
आमना रब्बानी- मगध महिला कॉलेज, पटना यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन लास्ट ईयर की स्टूडेंट हैं. केमेस्ट्री ऑनर्स है. स्कूल में बहुत सारे कॉप्टीशन में पार्टिसिपेट किया. डिबेट किया. बेस्ट स्टूडेंट और स्केल हेड रह चुकी हूँ. इंजीनियरिंग मेरा ड्रीम था लेकिन आर्थिक प्रॉब्लम की वजह से वो मैं कर नहीं पायी.स्कूल में पेंटिंग में रूचि थी, थोड़ा बहुत सिंगिंग का भी शौक रखती हूँ. टिकटॉक वीडियो भी बहुत सारे बनाये हैं.

शाइस्ता जी का स्ट्रगल - शाइस्ता जी इस बाबत बताती हैं , "जब अपने मायके भागलपुर में थी तो स्कूली दिनों में तब वहां लाइट रहती नहीं थी लेकिन पढ़ने का बहुत शौक था. मेरी पूरी फैमिली पर्दा प्रथा वाली थी. हमलोग सैय्यद बिरादरी से आते हैं तो तब यह था कि लड़कियां बाहर नहीं जाएँगी. मुझे याद है कि मेरी अम्मी को अगर चूड़ी भी पहननी होती तो चूड़ीवाली हमलोगों के घर में आती थी. इस तरह मैंने सबको तब पर्दे में ही देखा. लेकिन मेरा थोड़ा सा अलग ही दिमाग था. मैं पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा मशगूल रहती तो मेरी अम्मी बोलतीं कि पता नहीं ये कौन तरह की लड़की पैदा हो गयी है. अब मेरे पापा और अम्मी नहीं हैं सिर्फ भाई लोग हैं. तब मैं पढ़ने के साथ ही साथ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगी क्यूंकि मैं अपने घर की आर्थिक स्थिति ठीक करना चाहती थी. तब मेरे पापा का मेजर एक्सीडेंट हो गया था और उनका बाहर निकलना बंद हो गया. घर में पापा, अम्मी और हम 6 भाई-बहन थें. लेकिन उस वक़्त हमें कोई सपोर्ट नहीं मिला. तब घर को सँभालने के लिए मुझे बाहर निकलना पड़ा. अपने भाई-बहनों को पढ़ाने के साथ- साथ खुद भी पढ़ती गयी.


कहानी लेखन की शुरुआत - शाइस्ता जी कहती हैं, "आजकल के बच्चों के पास मनोरंजन का बहुत साधन है लेकिन हमलोगों को उस वक़्त ऐसा कुछ था नहीं. मेरी बेस्ट फ्रेंड मधु हमारे पड़ोसी पुजारी जी की बेटी थी. हमलोग साथ ही स्कूल जाते थें. हमें तब उतना पैसा मिलता नहीं था तो हम और मेरी दोस्त आपस में मिलकर चंदा करते थें और अपने मोहल्ले में एक पुरानी किताब की दुकान थी वहाँ पैसा देकर आठ आने - चार आने देकर किराये पर कॉमिक्स पढ़ने ले आते लाते थें और फिर या तो स्कूल में या अमरूद के पेड़ के नीचे एक साथ बैठ जाते थें. कई और दोस्त भी हमारी मण्डली में शामिल हो जाते थें. हर दिन हम लोगों में से ही कोई एक कॉमिक्स पढ़ता और सभी चाव से सुनते थें. तब यूँ ही कहानियां सुनते-सुनते लिखने का शौक भी शुरू हो गया. स्कूल में डिबेट कॉम्पटीशन में फर्स्ट प्राइज जीतें थें. इंटर के दौरान भागलपुर आकाशवाणी में मेरा युववाणी कार्यक्रम में कहानियां-कवितायेँ सुनाना शुरू हो गया. फिर बाल-मंजूषा कार्यक्रम में बच्चों के साथ मेरी जुगलबंदी होने लगी. नए पल्ल्व प्रकाशन की किताब घरौंदा जिसमे कई लोगों की साझा कहानियां हैं उसमें मेरी पहली कहानी 'नन्ही छुटकी' प्रकाशित हुई फिर कई पत्रिकाओं यथा गृहशोभा इत्यादि और दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हिंदुस्तान आदि अख़बारों में कहानियां प्रकाशित हुईं.

समाज सेवा की भावना - पशु-पक्षियों से आज भी लगाव है और तब भी था जिस वजह से बचपन में पड़ोसी बच्चों को जानवरों और पक्षियों को तंग करते देखकर शाइस्ता जी उनसे लड़ पड़ती थीं. भागलपुर के अख़बार 'नयी बात' में इनकी रचनाएँ अक्सर छपती थीं. 90 के दशक में उन्ही दिनों प्रौढ़ शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने के लिए कुछ कॉलेज स्टूडेंट का चयन करके उन्हें भेजा जाता था. शाइस्ता भी तब प्रौढ़ शिक्षा केंद्र कार्यक्रम में जाती थीं. 1995 में भागलपुर में भयानक बाढ़ आयी थी तो वहीँ के एक बाढ़ग्रस्त इलाके में मदद पहुँचाने जाना पड़ा था. वहां बाढ़ से त्रस्त लोगों को चूड़ा वगैरह वितरित करना था. शाइस्ता जी बताती हैं कि "तब उनकी स्थिति देखकर मेरी आँखों से आंसू निकल आये थें. वहां से आकर हमने उस घटना पर एक आर्टिकल लिखा था जो हिंदी-उर्दू के कुछ अख़बारों में छपी थी. फिर वहीँ से मन में समाज सेवा कि भावना घर करनी शुरू हो गयी."


सराहनीय कार्य - शाइस्ता जी सोशल वर्क में कई संस्थाओं से जुडी हुईं हैं. पटना के राजेंद्रनगर में कहानीघर नाम से एक संस्था है जहाँ झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चे, रिक्शा-ठेला चलानेवालों के बच्चे और नशे की लत लगा चुके बच्चे आते हैं. मीनाक्षी मैडम और रौनक सर संस्था का संचालन करते हैं. वहाँ इन स्लम के बच्चों को कहानियों के माध्यम से चरित्र चित्रण किया जाता है.
शाइस्ता जी बताती हैं, "पटना में संस्था कहानीघर के संचालक से फेसबुक के माध्यम से सम्पर्क हुआ. उन्होंने बुलाया तो मैं वहाँ गयी और जब पहले ही दिन बच्चों के बीच कहानी सुनाएँ तो उनलोगों को बेहद पसंद आया. फिर ऐसा हो गया कि हम रेगुलर हर सैटरडे को जाने लगें. हम वहाँ पहुंचे नहीं कि बच्चे मुझे घेर लेते थें." इनकी हर कोशिश में इनके हसबैंड ने हमेशा साथ दिया. एक दिन शाइस्ता जी ने सोचा क्यों न पटनासिटी में मदरसे के बच्चों के लिए कुछ करें क्यूंकि ये वो बच्चे हैं जो यतीमख़ानों के अंदर कैद सा रहते हैं, तो उन बच्चों को भी ये  कहानी के माध्यम से बहुत सी जानकारियां देना चाहती थीं. लेकिन चैलेन्ज ये था कि मुस्लिम औरतें मदरसा जाती नहीं हैं. तो अल्लाह का नाम लेकर शाइस्ता जी आगे बढ़ीं और उनके कहने पर मदरसे के ऑनर से हसबैंड ने बात किया. उस मदरसे के ट्रस्टी अमरीका में रहते थें. शाइस्ता जी अपने बच्चों और पति के साथ मदरसा जब पहले दिन पहुंची तो उन्हें नहीं पता था कि वे जो कहानी सुना रही  हैं उसका लाइव प्रदर्शन अमरीका में भी हो रहा है और जो ट्रस्टी थे वो वहीँ से देख रहे थें. शाइस्ता जी जब कहानी सुनाने लगीं तो कहानी सुनाने का अंदाज़ बच्चों को इतना पसंद आया कि वे इतना इंज्वाय करने लगें कि उनको छोड़ ही नहीं रहे थें. एक हफ्ते बाद जब शाइस्ता जी के हसबैंड कॉलेज से घर आएं तो उन्होंने बताया कि "जो ट्रस्टी हैं उन्होंने कहा है कि जब आपको फुर्सत मिले आप मैडम को लेकर मदरसे में आईये और उनको कहिये कि वे दो घंटा बच्चों का क्लास भी लेंगी." और फिर शाइस्ता जी का वहां जाने का सिलसिला शुरू हो गया.


स्पेशल मोमेंट - बोलो ज़िन्दगी टीम की फरमाईश पर शाइस्ता अंजुम ने अपनी एक कविता व बच्चों के लिए तैयार की गयी एक कहानी सुनाई. उनके पति मो. रब्बान अली ने भी एक ग़ज़ल सुनाई, वहीँ उनकी बेटी आमना ने एक बॉलीवुड सॉन्ग सुनाया. ओवर ऑल इस फैमिली पैक प्रदर्शन को देखकर बोलो ज़िन्दगी टीम और स्पेशल गेस्ट के रूप में मौजूद एडवोकेट मधु श्रीवास्तव जी ने इस फैमिली की खूब प्रशंसा की. वहीँ जब मेहमाननवाजी के वक़्त शाइस्ता जी ने अपने हाथ की बनी एक डिश जर्दा (मीठा पुलाव) खिलाया तो उसके स्वाद से प्रभावित होकर मधु जी ने लगे हाथों उनसे इस डिश की पूरी रेसिपी सीख ली और कहा कि "मैं आज ही घर जाकर ये बनाने का प्रयास करुँगी."

(इस पूरे कार्यक्रम को बोलोजिन्दगी डॉट कॉम पर भी देखा जा सकता है.)








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