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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Saturday, 29 April 2017

कुश्ती और फ़िल्में देखने का शौक था : स्व. रामसुंदर दास, भूतपूर्व मुख्यमंत्री, बिहार

जब हम जवां थें
By: Rakesh Singh 'Sonu'




1941  में कोलकाता के विधासागर कॉलेज से इंटर करने के बाद राजनीति में चला आया और इतना रम गया कि फिर आगे पढाई नहीं कर पाया.लेकिन हाँकिताबें पढ़ने का शौक अनवरत जारी रहामैं कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में थाकर्पूरी ठाकुर के बाद 1979  में मैं मुख्यमंत्री बना.उसके पहले की एक घटना याद आती है जब मुझे 103 डिग्री बुखार लगा और मुझे देखने कांग्रेस के बुजुर्ग नेता भागवत सिंह और घिना सिंह आये थेआते ही बोल पड़े - ' बड़े नेता बने हुए होइतने दिन से बीमार हो और खबर भी नहीं करवाईक्या पार्टी छोड़ देने से सारे रिश्ते खत्म हो जाते हैं?' और उन दोनों ने ना सिर्फ मेरी दवा दारू की व्यवस्था की बल्कि एक सप्ताह तक नाश्ता-खाना भी भिजवाते रहेतब के नेताओं में राम मनोहर लोहिया और जे.पीसे हम ज्यादा प्रभावित थेजय प्रकाश जी के साथ हमने रहकर काम भी किया पर कभी महसूस भी नहीं होता था कि हम बड़े नेता के साथ बैठे हैंभाईचारा ही इतना अधिक था.
मुझे गाँव से ही कुश्ती से बड़ा लगाव था पर राजनीति में आने पर वह शौक भी छूट गयाहाँफिल्में देखने जाता था मगर कभी पसंद  आने पर इंटरवल के पहले या बाद में उठकर चल देता थाजब मैं इंटर में थावहां विधासागर  कॉलेज में बंगाली से ज्यादा बिहारियों की संख्या थी और कभी कभी किसी बात पर दोनों गुटों में भिड़ंत भी हो जाया करती थी पर बाद में सभी एक हो जाते थेउस वक़्त का एक वाक्या याद हैहमारे एक प्रोफ़ेसर साहब पान के शौक़ीन थे और हमारे एक मित्र के यहाँ अक्सर चाय पीने आया करते थेहमहमारे मित्र और उनका नौकर भी पान खाते थे मगर वह थोड़ा तीखा होता थाएक दिन मित्र के यहाँ हम सभी बैठे थेनौकर पान लेकर रख गयागलती से हमारा पान प्रोफ़ेसर साहब और उनका पान हमारे मित्र ने खा लियाउन्हें उलटी होने लगी फिर उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना पड़ावे ठीक होने पर गुस्से में सबसे यही कहते की मेरे मित्र और उनके नौकर ने उन्हें जान से मारने की साज़िश कीतब यह किस्सा हमारे कॉलेज में हास्यास्पद रूप से  गया था.




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