अब यही खुशियों का आशियाना,
वो दोस्तों के संग हुल्लड़पन
वो नटखट सा मेरा बचपन,
हाँ अपनी यादें समेटकर
गलियों की खुशबू बटोरकर
दुनिया को दिखाने अपना हुनर
मैं आ गयी एक पराये शहर."
अक्सर युवा लड़कियां घर से दूर बड़े शहर में कुछ मकसद लेकर आती हैं, अपना सपना साकार करना चाहती हैं. चाहे कॉलेज की पढाई हो या प्रतियोगिता परीक्षा, उसके लिए एक अजनबी शहर में लड़कियों का आशियाना गर्ल्स हॉस्टल से बेहतर क्या हो सकता है. पर दूसरे माहौल में, नए सांचे में ढ़लने में थोड़ा समय लगता है. आईये जानते हैं ऐसी ही हॉस्टल की लड़कियों से कि उनका हॉस्टल में पहला दिन कैसे गुजरा.......
By: Rakesh Singh 'Sonu'
बच्चियों से एडजस्ट करना सीखा
पटना के एक हॉस्टल में रहकर ग्रेजुएशन कर चुकी मुजफ्फरपुर जिले की शैली शर्मा कहती हैं - मेरे पापा आर्मी में हैं तो उनका ट्रांसफर हमेशा लगा ही रहता था. जब मैंने 10 वीं कर ली तब पापा की पोस्टिंग अरुणाचल प्रदेश में हो गयी जहाँ फैमली साथ रखना मना था. फिर डिसाइड हुआ कि मैं और मेरा भाई पटना हॉस्टल में चले जायेंगे. लेकिन मैं हॉस्टल जाने को तैयार नहीं थी. तब एक अज्ञात सा भय था मन में कि पता नहीं हॉस्टल कैसा होता होगा? पर पापा ने मुझे दो ही ऑपशन दिए. या तो पढाई छोड़ दो या फिर हॉस्टल चली जाओ. फिर मैं तैयार हुई तो पापा शाम में मुझे और भाई को पटना लेकर आये. शॉपिंग करने के बाद पहले भाई को बॉय हॉस्टल में छोड़ा फिर मुझे गर्ल्स हॉस्टल में ले गए. मुझे छोड़कर जाने लगे तो मेरा रोना देख पापा भी रोने लगे. तब लाइफ में पहली बार मैंने पापा को रोते हुए देखा. वहां मेरे सीनियर और जूनियर मेरा हाल चाल पूछने लगे. मुझसे दोस्ती करने लगे. फिर रात में ही हम सभी गाने और डांस के साथ इन्जॉय करने लगे. उनका मोटिव था कि मुझे यहाँ का माहौल तब बुरा न लगे, किसी तरह उस दिन मेरा टाइम पास हो जाये. स्कूल की बहुत छोटी छोटी बच्चियां भी थीं हॉस्टल में. उन्हें खुश देखकर ख्याल आया जब ये एडजस्ट कर सकती हैं तो मैं इतनी बड़ी होकर क्यों नहीं एडजस्ट कर सकती. फिर तो मैंने भी अपने आंसू पोंछकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया और अब हॉस्टल मेरे लिए नया नहीं रहा.
पहली रात आँखों में कटी

मेरा हॉस्टल में आना 2012 में हुआ. मैं वैशाली जिले की रहनेवाली हूँ जहाँ पटना जैसी अच्छी पढ़ाई नहीं होती.मेरा व मेरी छोटी बहन का शुरू से ही लक्ष्य था सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने का.हमे पटना भेजने के लिए गार्जियन भी तैयार थे. मेरा मन था पटना में प्राइवेट रूम लेकर रहा जाये लेकिन पापा-मम्मी को मेरा यह विचार सही नहीं लगा. फिर कॉलेज के द्वारा पटना के एक हॉस्टल का पता चला. तब मुझे छोड़ने लगभग पूरी फैमली साथ आई थी. मुझे और मेरी बहन को हॉस्टल में एडमिशन कराकर जब मेरे गार्जियन गाड़ी में बैठकर विदा ले रहे थे तो हमारे साथ साथ पूरी फैमली रो पड़ी. उनके चले जाने के बाद अंदर से हम दोनों को बुरा लग रहा था. सबकी बहुत याद आ रही थी. उसी समय मेरी हॉस्टल ऑनर मेरे पास आईं और मेरा हाथ पकड़कर बोलीं,"आज से तुम दोनों की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है.समझ लो मैं ही तुम्हारी माँ हूँ और एक दोस्त भी." रात में सोने के वक़्त मुझे नींद नहीं आ रही थी. काफी देर यूँ ही सोचती रही कि आगे कैसे कटेगा.समय व्यतीत करना मुश्किल हो रहा था.बाद में लैपटॉप पर मूवी देखकर मैं सुबह होने की राह तकती रही. उसी रात फैसला कर लिया कि पटना छोड़ना है तो सॉफ्टवेयर इंजिनियर बनने के बाद ही.
रूममेट के साथ बातचीत से मन हुआ हल्का

रूममेट ने संभाला मुझे
गोपालगंज जिले की ऋषा सिंह कहती हैं - मेरे ख्याल से एक अनजान शहर में नई लड़की के लिए प्राइवेट फ्लैट की जगह हॉस्टल ज्यादा बेहतर होता है क्यूंकि वहां वार्डन के रूप में एक गार्जियन होता है. जब पहले दिन हॉस्टल भाई के साथ आई तो हॉस्टल मुझे मस्त लगा और बहुत एक्साइटमेंट हो रही थी. लेकिन जब तक भाई साथ था तब तक ठीक था. जैसे ही वह जाने लगा कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. छत पर से उसे जाते देख मुझे रोना आ रहा था. तब मायूस होकर यही सोच रही थी कि मैं बेकार यहाँ आ गयी,नहीं आना चाहिए था. काश! अपने लक्ष्य के साथ समझौता कर मैं भाई के साथ वापस घर लौट जाती. लेकिन अब जो होना था हो चुका था. रात में पापा का फोन आया तो पता चला मेरी याद में भाई बहुत रो रहा था. खाने की इक्छा नहीं थी. मेरी रूममेट जो मेरी बेस्ट फ्रेंड बन चुकी है उसने मुझे बहुत संभाला. उसने समझाया कि पढ़ना है, कुछ बनना है तो घर-परिवार से दूर जाकर रहना पड़ता है.
सपना था हॉस्टल में रहना
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