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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Saturday 29 April 2017

बिहारी लोगों को बोली गयी बात मन में चुभ गयी : बिहार कोकिला स्व.विंध्यवासिनी देवी,लोक गायिका

जब हम जवां थें
By: Rakesh Singh 'Sonu'



सन 1948 में जब पटना में 'आकाशवाणी' की शुरुआत हुई , तबसे मेरा काम और बढ़ता गया. यूँ कहें कि मैं बिहार के लिए आकाशवाणी की देन हूँ, वही मेरा मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा बन गया. सन 1948  में आकाशवाणी के उद्घाटन पर मैंने यह पहला गीत लिखकर दिया था,-
भइले पटना में रेडिओ के शोर तनी सुनअ सखिया....
26  जनवरी,सन 48 , दिवस सोमवार के उद्घाटन भईल
शुभ मुहूर्त में हाथों श्री सरदार( वल्लभभाई पटेल)
सारे देशवा में मची गईले शोर तनी खोलअ सखिया...
    सन 1955  में आकशवाणी केंद्र, पटना में लोकसंगीत-प्रोड्यूसर के पद पर मैं कार्यरत हुई तो मैंने बिहार की सभी बोलियों पर काम किया. सन 1962  में जब भारत-चीन युद्ध हुआ तो मैं जवानों की हौसला-अफजाई के लिए हर रोज एक लोकगीत लिखती थी. यह सिलसिला लड़ाई चलने तक चलता रहा. इसके अलावा मैंने पंचशील के सिद्धांत, पंचवर्षीय योजनाओं, दहेज़, शिक्षा, परिवार नियोजन और खेती की समस्याओं को भी अपने लोकगीतों का विषय बनाया.
मेरी शादी 14 वर्ष कि उम्र में ही हो गयी थी और सन 1945  में मैं आकर पटना की हो गयी. पति ने पहले खुद मुझे संगीत सिखाया, फिर गुरुजनो से भी सिखलाया. नीना देवी, गिरिजा देवी, रामचतुर मल्लिक, प्रह्लाद मिश्र जैसे गुणीजन लोकगायकों से मुझे बहुत कुछ सिखने को मिला. उसी दरम्यान आर्य कन्या विधालय में बतौर संगीत शिक्षिका कार्यरत हुई. सन 1954 -55  में आजादी के बाद मेरा पहला सांस्कृतिक कार्यक्रम संगीत नाटक अकादमी द्वारा दिल्ली के लालकिला के दीवानेआम में हुआ था. एक पार्श्व गायिका के रूप में मेरे लोकगीतों का पहला एलबम एच. एम. वी. कैसेट कम्पनी ने जारी किया था. मैंने फिर संगीतकार चित्रगुप्त जी के साथ भोजपुरी फिल्म 'भइया' और संगीतकार भूपेन हज़ारिका के साथ 'छठी मइया की महिमा' फिल्म में काम किया. 'कन्यादान' फिल्म में गायिकी के साथ साथ संगीत भी दिया. एक घटना ने मेरा जीवन ही बदल दिया. जब पहली बार किसी ने मुझसे कहा कि 'बिहार के लोग खाना जानते हैं, गाना नहीं' तो मेरे मन को चुभ गयी. बस तभी से मैंने लोकगीत गाने की मन में ठान ली.



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