जब हम जवां थें
By: Rakesh Singh 'Sonu'
मैं बी.एन.कॉलेज का विद्यार्थी था लेकिन ग्रेजुएशन बीच में ही छोड़ मुझे नौकरी करनी पड़ी.रेलवे मेल सर्विस में मैं आ गया. बचपन से ही नाटक का शौक था और मैं फुटबाल खिलाड़ी भी था. परिवारवालों को इस बात का शक था कि नाटक या खेल के चक्कर में कहीं मेरा जीवन ना बर्बाद हो जाये. इसलिए परिवार से बांधने के लिए 17 -18 वर्ष की उम्र में ही मेरी शादी कर दी गयी.लेकिन मैं नौकरी के साथ-साथ बराबर नाटकों में भाग लेता रहा. 'आकशवाणी ' का भी आर्टिस्ट बना. 1959 में मैं पटियाला में हो रहे ऑल इंडिया टूर्नामेंट में 'हैमर थ्रो' खेलने गया. लौटते समय मित्रों से मिलने दिल्ली चला गया. उनके कहने पर मैंने एन.एस.डी. संसथान में जाकर आवेदन किया.उनसे इंटरव्यू में बुलाने का अनुरोध किया. मैंने कहा - " मैं खिलाडी हूँ, मैदान में उतरकर अपना फैसला करना चाहता हूँ." कुछ दिनों बाद मेरा चुनाव हो गया,मुझे स्कॉलरशिप मिल गया.नाटक की पढ़ाई में सम्पूर्ण भारतवर्ष में मेरा दूसरा स्थान आया. सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए मुझे पुरस्कृत किया गया.मैंने नाटक निर्देशन में विशेषता प्राप्त की.वापस लौटकर मैंने फिर नौकरी ज्वाइन कर ली क्यूंकि पारिवारिक परिस्थितियां पटना से बहार जाने की अनुमति नहीं दे रही थीं. तब पटना में ही जमकर नाटक करना शुरू किया. मौका मिलने पर मैंने प्रकाश झा,श्याम बेनेगल, अनिल शर्मा, मृणाल सेन, रमेश सिप्पी जैसे फिल्मकारों के साथ काम किया.इसी बीच कई भोजपुरी फिल्मों व धारावाहिकों में भी काम किया. 'मुंगेरी लाल के हसीन सपने' धारावाहिक से काफी शोहरत मिली.
शुरूआती दिनों में मुझे भी स्ट्रगल करना पड़ा था, उस दरम्यान कई ऐसी घटनाएँ भी घटीं जिसकी मैंने कल्पना नहीं की थी. 1978 की एक घटना मैं सुनाता हूँ. बिहार के कलाकारों द्वारा फिल्म 'कल हमारा है' का निर्माण हुआ जिसमे मुझे खलनायक का किरदार निभाना था. शूटिंग पहाड़ पर की जा रही थी जहाँ लड़ाई के एक दृश्य में मैं घुड़सवारी कर रहा था. तभी तलवार,भाला व बंदूक देख मेरा घोडा भड़क गया और आगे के बजाये पीछे जाने लगा.वह जाकर रुका तो ऐसी जगह जहाँ से नीचे 40 फुट गहरी खायी थी. कैमरामैन चिल्लाया कि, प्यारे भाई को बचाओ. निर्देशक ने शूटिंग रोकी तो घोडा भी रुक गया लेकिन वहां से छः इंच भी पीछे जाता तो खायी में गिर जाता. मृत्यु निश्चित जान मैंने सबको शांत रहने को कहा. सोचा घोड़े से कूद जाऊं पर हिलना भी खतरनाक था. थोड़ी देर बाद सब शांत होने पर निर्देशक ने कहा कि इसी पोजीशन में शूटिंग शुरू करेंगे आप उतरें नहीं. अन्दर ही अन्दर मुझे गुस्सा आया पर मैं चुप रहा. मैंने होशियारी दिखाते हुए रिकाब से पैर निकल लिया. इश्वर की कृपा से मेरी जान बची. वहीँ एक दृश्य में पेड़ की ऊँची डाली पर भी चढ़वाया गया. आज जब मैं युवा कलाकारों को शॉर्टकट रास्ता अपनाते देखता हूँ तो थोड़ा मायूस होता हूँ.
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