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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Sunday, 22 September 2019

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : डांस टीचर नवीन की फैमिली, खगौल, पटना




21 सितंबर, शनिवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के खगौल इलाके में 'ओपन लाइफ डांस एकेडमी' के ऑनर नवीन कुमार के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में एमवे कम्पनी में कार्यरत और Iconoclasts Sports & Entertainment Pvt Ltd कम्पनी के ऑनर अजय झा भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों नवीन कुमार की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय-  पापा श्री कृष्णा प्रसाद रेलवे में जॉब करते थें अब रिटायर्ड हैं. माँ संध्या देवी गृहणी हैं, भाई नितीश कुमार अभी कम्पटीशन की तैयारी कर रहे हैं. दो बहने हैं जिनकी शादी हो चुकी है. परिवार में किसी को डांस में रूचि नहीं थी लेकिन नवीन को देखते-देखते उनकी भतीजी रतन प्रिया जो अभी 5 वीं में है डांस सीखने लगी. नवीन को शुरू से ही फैमिली सपोर्ट मिला है.

ओपन लाइफ डांस एकेडमी की शुरुआत - नवीन फिजिक्स ऑनर्स से ग्रेजुएशन करने के बाद डांस के क्षेत्र में ही रम गएँ. चार-पांच सालों से डांस सीख रहे थें. पहले एक फ्रेंड की एकेडमी में डांस सिखाते थें लेकिन बाद में कुछ मनमुटाव होने के बाद वहां छोड़कर खुद की डांस एकेडमी शुरू की. रोहित पार्टनर के रूप में साथ दे रहे हैं. इनके एक भइया हैं विशाल यादव उनके सपोर्ट से ही इन्होने एकेडमी खोली. पहले दूसरे एकेडमी में जहाँ बच्चों को सिखाते थें फिर जब छोड़ दिए तो उन्ही बच्चों में से कुछ ने कहा कि "सर आप अपना एकेडमी खोलिये हमलोग आपसे वहां सीखने आएंगे." क्यूंकि पहले वाली एकेडमी में बच्चे संतुष्ट नहीं थें, वहां के टीचर से वे खुश नहीं थें. जब पहलेवाली डांस एकेडमी छोड़ी तब नवीन को बहुत अकेलापन महसूस हुआ. बच्चों को सिखाते थें तो उनके साथ की उन्हें आदत पड़ चुकी थी. जब खाली होकर घर बैठ गएँ तो वही बच्चे अक्सर पूछा करते कि "सर अपना डांस एकेडमी आप कब खोल रहे हैं...?" फिर उसी वक़्त विशाल यादव मिलें और उन्होंने अपने स्कूल में नवीन को डांस सिखाने का ऑफर किया. फिर उनके सलाह पर ही नवीन ने खुद की एकेडमी भी खोली. उन्होंने ही जगह दिलाई और करीब एक साल तक एकेडमी का किराया भी नहीं लिया. फिर जैसे-जैसे नवीन के पास स्टूडेंट बढ़ते गएँ उन्होंने कुछ किराया देना चालू किया. एकेडमी में 3 साल के बच्चों से लेकर 25 साल तक के युवा भी हैं. नवीन एकेडमी क्लास में हिप हॉप, क्लासिकल, लिरिकल, स्टंट, फोक, सेमि क्लासिकल इत्यादि सिखाते हैं.

गरीब बच्चों को फ्री ट्रेनिंग - जब नवीन ने एकेडमी खोली तो बहुत से बच्चे ऐसे आएं जो बहुत ही गरीब फैमली से थें और वो फ़ीस देने में सक्षम नहीं थें. लेकिन उन्हें डांस सीखने का जुनून था तो हुआ यूँ कि जब उन्हें ट्यूशन पढ़ने के लिए घर से कुछ पैसे मिलते थें तो वे लाकर पैसे नवीन को दे देते थें. फिर जब नवीन को उनकी सच्चाई पता चली तब उन्होंने उन बच्चों का फीस माफ़ कर दिया. अभी एकेडमी में 35 बच्चे हैं जिनमे लगभग 20 बच्चों से वे फ़ीस नहीं लेते क्यूंकि वो सक्षम नहीं हैं. इसलिए अभी डांस एकेडमी चलाने में नवीन को थोड़ी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा है. फिर भी नवीन कहते हैं, "लेकिन बच्चों के चेहरों पर जो ख़ुशी देखने को मिलती है वो अनमोल है."

डांस से जुड़ाव - नवीन को बचपन से ही डांस का शौक था. टीवी पर देखकर खुद से डांस करने की कोशिश करते थें. इनके गुरु का नाम है राजकुमार जो डांस की बदौलत ही रेलवे में जॉब पाएं तो उनसे प्रभावित होकर नवीन भी डांस सीखना शुरू किएँ. 13 साल की उम्र में जब राजकुमार सर के पास गए तो वहां उनसे 5 साल तक डांस सीखा.

अबतक क्या कुछ किया ? - 3 सालों से अपनी एकेडमी की तरफ से कुछ स्कूलों में भी परफॉर्म किया है. कम्पटीशन में भी हिस्सा लिए,शो के लिए समस्तीपुर, डेहरी ऑन सोन, लखनऊ इत्यादि जगहों पर जाकर शो कर चुके हैं. रेलवे के कार्यक्रमों में भी ये शो करते रहते हैं.

गेस्ट का सवाल - जब स्पेशल गेस्ट अजय झा ने नवीन से सवाल किया कि "अपने एकेडमी को लेकर या अपनी पर्स्नल लाइफ को लेकर अगले 5 सालों में देखें तो आपका विजन क्या है ?" नवीन ने कहा -  "एकेडमी की बात करें तो मेरा गोल है कि अभावग्रस्त बच्चों को सलेक्ट करके उन्हें उस मुकाम तक पहुंचाऊं कि मेरी एकेडमी का भी नाम हो और उन्हें भी एक मंजिल मिले. जहाँ तक मेरी पर्स्नल लाइफ की बात है तो मेरी अलग से कोई ख्वाहिश नहीं है. मेरे एकेडमी के बच्चे ही मेरे सपने हैं. अगर ये बच्चे हैं तभी मैं भी हूँ. उनकी सफलता ही मेरी सफलता होगी."

नवीन जब हमें अपनी डांस एकेडमी दिखाने और अपने एकेडमी के बच्चों से मिलवाने ले गएँ जो घर से थोड़ी ही दूर पर है तो बोलो जिंदगी टीम और स्पेशल गेस्ट की फरमाईश पर नवीन ने खुद और फिर एकेडमी के बच्चों का डांस भी दिखाया जिसे देख सभी ने दिल खोलकर सराहना की.
(इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है.)







Friday, 20 September 2019

बच्चेदानी के कैंसर से बचने के लिए हुआ जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन


पटना मारवाड़ी महिला समिति द्वारा दिनांक 19.9.19 की शाम 4 बजे से  आध्यात्मिक सत्संग समिति के सभागार में बच्चेदानी के कैंसर से बचने के लिए जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जागरूकता के लिए जानकारी देने के लिए रोटरी क्लब ऑफ चाणक्या और रोटरी पटना आर्यन से डॉक्टर्स की टीम आयी थी जिनमे शामिल थे डॉ श्रवण कुमार , डॉ विनीता त्रिवेदी, डॉ विनीश रंजन एवं डॉ श्रद्धा चक्खयार।


अध्य्क्ष नीना मोटानी ने बताया "महिलाओं में बच्चेदानी का कैंसर बहुत ज्यादा होता है। लेकिन अगर हम जागरूक होंगे तो परिवार और समाज को इस जानलेवा बीमारी से बचा सकते हैं।"
 सचिव सुमिता छावछरिया  ने बताया कि "बच्चेदानी के कैंसर से बचने के लिए एक नाटक- 'सावधानी हटी दुर्घटना घटी' का मंचन डॉ श्रवण कुमार और नीना मोटानी द्वारा किया गया.

डॉक्टर विनीता त्रिवेदी और डॉ श्रद्धा चक्खयार ने महिलाओं को बताया बताया कि वो अगर हर तीन साल पर पैप स्मीयर टेस्ट कराती रहेंगी तो वो कैंसर का शिकार होने से बच सकती हैं और अगर कैंसर के पता चल जाता है तो भी उसका इलाज संभव है। उन्हें अपनी बच्चेदानी निकलवाने की जरूरत नही पड़ेगी। डॉ श्रद्धा द्वारा पैप स्मीयर जांच की फ्री व्यवस्था की पेशकश की गई ताकि जरूरतमंद महिलाएं भी इसका लाभ उठा सकें।


डॉक्टर श्रवण कुमार ने बताया कि अगर  हम सभी 9 से 15 साल की बच्चियों को 2 टीके और जिन्हें किसी कारणवश टीके  नही लग पाए 15 साल के बाद लड़कियों को 3 टीके लगाकर  कैंसर का खात्मा कर सकते हैं। कैंसर के विरुद्ध ये हमारे ब्रहमास्त्र हैं।
डॉ विनीश रंजन ने बताया कि आप  कैंसर से डरें नही लड़े। समय रहते ही बचाव करें।

 रोटरी डॉक्टर्स के द्वारा महिलाओं के लिए बच्चेदानी के कैंसर के ऊपर  Quiz कॉम्पिटिशन करवाया गया  जिसमे सभी महिलाओं ने भाग लिया और पुरस्कार जीते। महिलाओं द्वारा कैसर के ऊपर बहुत से प्रश्न भी पूछे गए जिनका सभी डॉक्टर्स ने
जवाब देकर उन्हें समझाया।

कार्यक्रम में 50 से ज्यादा महिलाओं ने अपनी भागीदारी दी और इस जागरूकता को जन जन में फैलाने के लिये ... I Can I WILL द्वारा संकल्प लिया।



कार्यक्रम में मुख्य रूप से शामिल थीं - उषा टिबड़ेवाल, चंदा बजाज, कविता गोयल, ममता भुवानिया, किरण चौधरी, कुसुम देवी, मंजू अग्रवाल, शकुंतला लोहिया, मंजू दादरिवाल, पूनम मस्करा, कुसुम तुलशयान, आशीष बंका, आलोक स्वरूप, अभिषेक लोहिया.

कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से सहयोग किया- रेखा जैन, सुषमा गुटगुटिया, कुमुद अग्रवाल, केसरी अग्रवाल, कांता अग्रवाल, लीलावती अग्रवाल आदि।

Monday, 16 September 2019

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : नवोदित कवि केशव कौशिक की फैमिली, महेन्द्रू, पटना



15 सितंबर, रविवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के महेन्द्रू इलाके में नवोदित कवि केशव कौशिक के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में इग्नू, दिल्ली में कार्यरत, सामायिक परिवेश पत्रिका के संपादक एवं कवि संजीव कुमार 'मुकेश' भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों केशव कौशिक की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- केशव सुपौल जिले के कोरियापट्टी गांव से ताल्लुक रखते हैं. अभी पटना कॉलेज में इंग्लिश ऑनर्स, थर्ड ईयर के स्टूडेंट हैं. पिता जी स्व. शम्भू प्रसाद सुमन जो किसान थें, उनका अपना बिजनेस भी था. केशव की माँ सुलेखा देवी सुपौल के कोरियापट्टी में कन्या प्राथमिक विधालय में हेडमास्टर हैं. सुलेखा जी को पहले सिलाई-कढ़ाई का बहुत शौक था लेकिन अब समय नहीं मिल पाता. केशव दो बहन एक भाई हैं. बड़ी बहन की शादी हो चुकी है और छोटी बहन अनुपम कुमारी, मगध महिला कॉलेज में केमस्ट्री ऑनर्स सेकेण्ड ईयर की स्टूडेंट है. अनुपम की हॉबी डांस है. केशव जब 4 साल की उम्र के थें तभी उनके सर से पिता का साया उठ गया था. तब उनकी माँ ने कठिन संघर्ष करते हुए सबकी परवरिश की, पढ़ाया-लिखाया और अभी भी इनके अच्छे करियर के लिए प्रयत्नशील हैं.

साहित्य से जुड़ाव - केशव बताते है कि "12 वीं के दौरान ही कुछ चीजें बिल्कुल पास से यूँ गुजरीं कि साहित्य के क्षेत्र में आने का रुझान पैदा हो गया. लिखने की शुरुआत हुई थी क्लास 10 वीं में. तब ही पहली कविता लिखी थी." पहले जब केशव बेगूसराय रहते थें तो वहां का हॉस्टल, टीचर्स और हिंदी का बेहतर माहौल होते हुए भी वहां चीजें महसूस नहीं हुई लेकिन तब एक पृष्ठभूमि जरूर तैयार हो रही थी. जब केशव 8 वीं -9 वीं में गएँ तो उन्हें ऐसा लगा कि हिंदी बेहतर तरीके से है मुझमे. फिर 10 वीं आते- आते उनके अंदर से कविता आयी. पिछले साल केशव के पटना में आने के साथ ही मंचों पर कविताई शुरू हो गयी. फिर 2018 के फरवरी में पहली बार मंच पर आने का अनुभव मिला. उसके बाद बिहार के बहुत सारे जिलों में कार्यक्रम किएँ.

अबतक क्या कुछ किया ? - कविताओं में श्रृंगार रस ज्यादा पसंद करनेवाले केशव कौशिक हाल-फ़िलहाल काठमांडू के अंतराष्ट्रीय कवि समेलन में भाग लेकर लौटे हैं. अबतक लगभग 30-40 मंचों पर कवितायेँ सुना चुके हैं. राष्ट्रिय कवि संगम में पटना जिला इकाई के सचिव भी रह चुके हैं. राष्ट्रिय कवि संगम के पटना इकाई के तहत पटना में दो कार्यक्रम करा चुके हैं. जब केशव ने ये संस्था छोड़ी तो बहुत से ऑफर आएं विभिन्न संस्थाओं में जुड़ने के लिए लेकिन तब उनके शुभचिंतकों ने समझाया कि - "संस्था के पीछे मत पड़ो अपनी रचना पर ध्यान दो वही तुम्हें आगे लेकर जाएगी, कभी संस्था तुम्हें आगे नहीं बढ़ाएगी." इसलिए तबसे कई संस्थाओं के आयोजन में परफॉर्म करने तो गएँ लेकिन कभी उसमे मेंबर के रूप में नहीं जुड़ें. पिछले साल केशव ने 'बनारसिया' के तत्वाधान में युवा रचनाकारों को लेकर तीन कार्यक्रम करवाया.


अभी क्या चल रहा है ? - पटना कॉलेज का स्टूडेंट होने के नाते केशव युवाओं को लेकर एक कार्यक्रम वहां भी कराना चाहते हैं लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है, प्रयास जारी है, कॉलेज प्रशासन अगर ध्यान दे तो यह सम्भव है. आगे का लक्ष्य लिटरेचर के क्षेत्र में ही कुछ करने का है. पोस्ट ग्रेजुएशन सेंट्रल यूनिवर्सिटी से करने की इक्छा है.


बोलो जिंदगी टीम और स्पेशल गेस्ट की फरमाईश पर केशव ने अपनी कुछ उम्दा रचनाएँ सुनायीं जिसे सुनकर सभी ने उनकी खूब सराहना की. फिर विदा लेने से पहले इस कार्यक्रम के स्पेशल गेस्ट संजीव कुमार 'मुकेश' जी ने बोलो जिंदगी के विशेष आग्रह पर अपनी भी एकाध रचनाएँ सुनायीं.
(इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है.)

Sunday, 8 September 2019

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : रीना सिन्हा जी की फैमिली, कालिकेत नगर, पटना



8 सितंबर, रविवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के बेली रोड, कालिकेत नगर में गायिका रीना सिन्हा जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में बीजेपी कला संस्कृति प्रकोष्ठ बिहार के प्रदेश अध्यक्ष वरुण कुमार सिंह भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों रीना जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- रीना सिन्हा ने इकोनॉमिक्स ऑनर्स में ग्रेजुएशन किया है. हसबैंड श्री अभय कुमार सिन्हा दो भाई दो बहन हुए. वे वैशाली जिले में सांख्यिकी विभाग में कार्यरत हैं. बिहार कोकिला के नाम से जनि जानेवाली लोकगायिका पद्मश्री स्व. विंध्यवासिनी देवी रीना सिन्हा जी के हसबैंड की फुआ थीं यानि वो रीना जी की फुआ सास लगीं. रीना सिन्हा का ससुराल बाढ़ में है और मायका मुजफ्फरपुर हुआ. इनकी सासु माँ कुसुम कुमारी सिन्हा बाढ़ गर्ल्स स्कूल की हेडमास्टर थीं. ससुर जी स्व. हरिनंदन प्रसाद सिन्हा कोलकाता यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थें जो रीना जी की शादी के पहले ही गुजर चुके थें. रीना जी को दो बेटे हैं, बड़े बेटे कुमार सौरभ मैकेनिकल से बीटेक करके पुणे की एक कम्पनी में ट्रेनिंग कर रहे हैं. बड़े बेटे को क्रिकेट में बहुत रूचि रही है. छोटा बेटा अपूर्व कुमार न्यू मॉडल दिल्ली पब्लिक स्कूल में 12 वीं का स्टूडेंट है.


संगीत से लगाव - बचपन से ही जब 8-9 साल के थें तो आकाशवाणी के बालमंडली एवं घरौंदा में गाते थें. स्कूल में एक विषय संगीत भी था जिसके तहत प्रोग्राम भी देते थें. फिर आगे पढ़ाई-लिखाई के क्रम में कुछ समय के लिए संगीत से नाता छूट गया. फिर 1991 जून में शादी हुई तो घर-गृहस्ती की वजह से संगीत साधना में थोड़ी कमी हुई. फिर जब बच्चे बड़े हुए तब संगीत का सफर पुनः शुरू हुआ. फिर से आकाशवाणी और दूरदर्शन से जुड़ें. राजेंद्रनगर में विंध्य कला केंद्र स्व. विंध्यवासिनी देवी जी की संस्था है जो बहुत वर्षों से चल रही है. उनकी बेटी चला रही हैं. रीना जी वहां की स्टूडेंट भी हैं, वहीँ से इन्होने लखनऊ से लोकगीत में डिग्री ली हुई है. 18 अप्रैल को स्व. विंध्यवासिनी देवी की पुण्यतिथि पर सांस्कृतिक कार्यक्रम जो कालिदास रंगालय या प्रेमचंद रंगशाला में आयोजित होते हैं में रीना सिन्हा मुख्य रूप से गाती हैं. पूर्णिया जिले में हुए श्रावणी महोत्सव में भी भाग लिया है. ये खुद के लिखे संस्कार गीत और देवी गीत को भी गाती हैं. हिंदी, मगही, बज्जिका भाषा में लिख चुकी हैं और म्यूजिक एलबम के लिए बात चल रही है. यू ट्यूब चैनल है रीना सिन्हा ट्रेडिशनल के नाम से जिसमे फुआ जी का गीत गायी हैं.

अभी क्या चल रहा है ? -  जब बिन्ध्य कला केंद्र में स्व.विंध्यवासिनी देवी जी की बेटी यानि दीदी आती हैं तो उनसे वहां रीना जी संगीत सीखती हैं लेकिन अभी जब दीदी अस्वस्थ हैं तो ये वहां के नए स्टूडेंट्स को सिखाती हैं.

बोलो जिंदगी टीम और स्पेशल गेस्ट वरुण सिंह जी की फरमाईश पर रीना जी ने अपनी फुआ सास स्व. विंध्यवासिनी जी के लिखे कजरी, धनकटनी और विवाह गीत को गाकर सुनाया जिसे सुनकर सभी ने उनकी खूब सराहना की.


(इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है.)

'वेलनेस एन्ड हैप्पीनेस' के साथ मना पुरोधालय का दूसरा वर्षगांठ

पटना, 8 सितंबर, पुरोधालय का दूसरा वर्षगांठ ''वाह वेलनेस इनफाइनाइट फाउंडेशन" के सहयोग से 'वेलनेस एन्ड हैप्पीनेस' के नाम से मनाया गया. भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी श्री श्याम जी सहाय ने अपने कर कमलों द्वारा समारोह का उद्घाटन करते हुए बताया कि "बुजुर्ग स्वयं को निकृष्ट नहीं समझें, बल्कि अपने अनुभवों के अनमोल खजाने से वर्तमान समाज को परिष्कृत करें." दो सत्रों में आयोजित वेलनेस एवं हैप्पीनेस कार्यक्रम के पहले सत्र में चर्चित मनोचिकित्स्क डॉ. बिन्दा सिंह ने बुजुर्गों को वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं को ढ़ालकर आज की युवा पीढ़ी को भी गले लगाने की सलाह दी. इससे पूर्व योग विशेषज्ञ सुश्री कुंदन झा ने बुजुर्गों को अपने साथ योगाभ्यास कराया.
समारोह का दूसरा सत्र हैप्पीनेस कार्यक्रम के तहत बुजुर्गों द्वारा अपनी-अपनी प्रतिभा प्रस्तुति के साथ आरम्भ हुआ. हास्य गुरु विश्वनाथ वर्मा ने हास्य विनोद की प्रस्तुति से बुजुर्गों का मनोरंजन किया. इंद्रदेव सिंह ने पोपली आवाज में भोजपुरी कविता सुनाई. सुनील कुमार झा ने विधापति का गीत प्रस्तुत किया. पुरोधालय के सचिव प्रणय सिन्हा ने अपनी कवितायेँ पढ़ीं और गीत सुनाएँ. कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. अशोक प्रियदर्शी ने पूर्व आई.ए.एस. श्री श्याम जी सहाय, मनोचिकित्स्क डॉ. बिन्दा सिंह और कार्यक्रम संयोजक शिल्पी शर्मा को संस्था की और से स्मृति चिन्ह दिया. शंकर साह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ.

Monday, 2 September 2019

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : वागीशा झा की फैमिली, खगौल, पटना



2 सितंबर, सोमवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', तबस्सुम अली एवं प्रीतम कुमार) पहुंची खगौल इलाके में गायिका वागीशा झा के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में श्री सच्चा कला केंद्र संस्था की सचिव श्रीमती जनककिशोरी जी भी शामिल हुईं. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों वागीशा की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- गायिका वागीशा झा जेडी वीमेंस कॉलेज में म्यूजिक में पीजी सेकेण्ड सेमेस्टर की स्टूडेंट. 24 मई 2019 को इनकी शादी हुई है. इनके हसबैंड मि. पारस कुमार झा मुंबई में केमिकल इंजिनियर हैं. वागीशा का मायका और ससुराल दोनों ही पटना के खगौल में है. ससुराल में दो ननदें हैं जिनकी शादी हो चुकी है. सासु माँ हैं, एक देवर हैं जो दिल्ली में जॉब करते हैं. वागीशा दो भाई-बहन हैं. इनके भैया मि. देशबंधु कुमार गुड़गांव में जॉब करते हैं. वागीशा के पापा श्री जयमुकुंद झा बिजली विभाग में कार्यरत थें और मम्मी श्रीमती नीतू देवी गृहणी हैं.



वागीशा और उनके फैमिली मेंबर का टैलेंट - वागीशा के पापा तबला, नाल और हारमोनियम बजाने के साथ-साथ गाने भी बहुत अच्छा गाते हैं. वागीशा की मम्मी और सासु माँ भी संस्कर गीत गाती हैं. इनके पति पारस कभी बहुत अच्छा क्रिकेट खेला करते थें. कई बार स्टेट लेवल अवार्ड जीते हैं. परिस्थितियां ऐसी बनी कि पिता जी के बहुत जल्दी खो दने के बाद घर-परिवार की सारी जिम्मेदारियां उनके कंधों पर आ गयीं. वागीशा की सासु माँ ने बेटे से बोला भी था कि "क्रिकेट में मन लगता है तो तुम क्रिकेट में ही जाओ". लेकिन पारस सिचुएशन देखते हुए पढ़ाई फिर जॉब में ज्यादा मन लगाने लगें.


वागीशा के संगीतमय सफऱ की कहानी - वागीशा जब डीएवी खगौल में पढ़ती थी तो स्कूल में सलेक्टेड लोगों को मौका मिलता था और तब वे दरवाजे के पास से देखती थी. क्लास में जब कोई पीरियड नहीं होता था तो सबको गाना सुनाती थी. क्लास में टीचर लोग आतीं तो जब उन्हें पढ़ाने का मन नहीं होता या स्टूडेंट्स को पढ़ने का मन नहीं होता तो वे बोलतीं कि जिसमे जो टैलेंट है वो प्रस्तुत करे. तब सब स्टूडेंट वागीशा का नाम लेकर बोलतें कि बहुत अच्छा गाती है. फिर टीचर इनको बुलातीं गाना सुनाने के लिए. फिर धीरे-धीरे लोगों को पता चला और तभी से स्कूल के सारे प्रोग्राम में गाने लगी. कॉलेज में भी कुछ मौके मिलें. स्टेज का पहला अनुभव खगौल में मिला. एक थें बिनू अंकल जो रेलवे में ऑफिसर थें, जिन्हे म्यूजिक से बहुत लगाव था और वे वागीशा के घर के बगल में रहते थें . सन्डे को उनके घर पर प्रैक्टिस होता था. वागीशा वहां जाती तो अंकल सिखाते थें. एक दफा खगौल में ही जागरण हो रहा था उसमे बिनू अंकल ने ही वागीशा को पहला ब्रेक दिया.  वागीशा का जन्म भले ही सहरसा में हुआ लेकिन खगौल से ज्याद लगाव था. क्यूंकि यहीं से ये चलना शुरू की थीं. पापा बिजली विभाग में थें तो उन्हें हर कोई जाननेवाला था. इसलिए तब वागीशा बहुत ज्यादा एक्साइटेड थी कि क्या पहनेंगी, सबलोग देखेंगे. इस तरह उनका पहला स्टेज परफॉर्मेंस खगौल से ही शुरू हुआ.

संगीत विरासत में मिला - वागीशा के पापा बचपन से ही गाते थें मगर उस वक़्त उनके पैरेंट चाहते थें कि पढ़ाई-लिखाई करें और सेटल हो जाएँ. लेकिन इनके पापा को म्यूजिक में बहुत इंट्रेस्ट था लेकिन उन्हें सपोर्ट नहीं मिल पाया. जब वागीशा जन्म ली तो उनके पापा वागीशा में वो ख्वाब देखने लगें. जब वागीशा 5 साल की हुई तो थोड़ा बहुत गुनगुनाने लगी जिसे देखकर पापा-मम्मी को लगा कि ये गायेगी, फिर पापा हारमोनियम पर बैठाकर सारेगामापादानिशा सिखाना शुरू कर दिए. वागीशा के पहले गुरु इस तरह उनके पापा बन गएँ.


वहां से बड़ा अचीवमेंट - वागीशा पटना में 2016 में कराओके सिंगिंग स्टार में फर्स्ट रनरअप चुनी गयीं, 2017 में सारेगामापा रंग पुरवैया में टॉप 12 तक गयी. रेडियो मिर्ची सिंगिंग कम्पटीशन में फर्स्ट रही, पीटीएन चैनल के 'स्वर-झंकार' में फर्स्ट आयीं, जिसमे लोकगायिका देवी द्वारा 51 हज़ार रुपए इनाम में मिलें. इसके बाद सरस मेला, बसंत उत्सव, सावन महोत्सव, सोनपुर मेला, एक शाम शहीदों के नाम जैसे समारोहों में अपनी गायिकी का जादू चलाया. अभी 2019 में बिहार गौरव सम्मान से भी सम्मानित हुईं. संगीत में गोल्ड मेडलिस्ट हैं और दो-बार इनको गोल्ड मैडल मिला, 2013 और 2015 में. 2013 में मधुबनी में हुए युवा महोत्सव में स्टेट लेवल टॉपर भी बनीं.

फोक में दिलचस्पी कब से बढ़ी ? - चांदनी फेम प्ले बाइक सिंगर जॉली मुखर्जी जब धूम-3 का कमली-कमली इनका गाना सुने थें तो उन्होंने कहा था - "तुम्हारी आवाज बिल्कुल फोक के लिए बनी हुई है. तुम फोक पर फोकस करो. तब देखना तुम बहुत आगे जाओगी." उस दिन से ही सही मायने में वागीशा ने फोक गाना शुरू किया.

फोक के आलावा ये सूफी, सुगम संगीत, फ़िल्मी गीत भी गाती हैं. लोकल म्यूजिक एलबमों में बहुत काम किया है लेकिन अब तमन्ना है राष्ट्रिय स्तर की म्यूजिक कंपनियों में गाने की. इस बाबत वागीशा कहती हैं "लेकिन वहां मैं अपनी कला की वजह से जाना चाहती हूँ ना कि किसी पैरवी-पहुँच से."

जब बोलो ज़िंदगी की टीम वागीशा के ससुराल पहुंची तो वहां इनके पति पारस भी मुंबई से आये हुए थें. वागीशा की सासु माँ और उनके मम्मी-पापा भी मौके पर मौजूद थें. तब बोलो जिंदगी की फरमाईश पर वागीशा के साथ-साथ उनके पापा श्री जयमुकुंद झा ने भी गीत गाकर सुनाया.


(इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है)

विपुल ने मालद्वीव मे भारत के लिए जीतें 3 मैडल


पटना, मालद्वीव मे हुए चारदिवसीय ग्लोबल यूथ पीस एम्बेसडर ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए बिहार के छपरा, मकेर निवासी अरुण कुमार सिन्हा और विभा श्रीवास्तव के बेटे विपुल शरण को आमंत्रित किया गया l 
विपुल शरण को मालद्वीव मे ग्लोबल यूथ एम्बेसडर मेडल देकर मिनिस्ट्री ऑफ यूथ एंड स्पोर्ट,  गवर्मेंट ऑफ मालदीव और रीजनल अलायन्स फॉर फोस्टरिंग यूथ राफी नामक संस्था द्वारा  मालदीव की राजधानी माले में भारतीय प्रतिनिधि मंडल के साथ सम्मानित किया गया है l  इस कार्यक्रम में 30 देशों के वैसे लोगो को जो अपने देश मे विभिन्न सामाजिक विषयो पर उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं उन्हें सम्मानित करने को आमंत्रित किया गया l 
साथ ही उन्हें ग्लोबल यूथ पीस एम्बेस्डर घोषित किया गया, जिनमे से एक विपुल भी हैं l 
कार्यक्रम मे मालद्वीव के जेंडर मिनिस्टर, सोशल सर्विस मिनिस्टर और यूथ मिनिस्टर विशिष्ट अतिथि रहे l 
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मालदीव के सिविल सर्विसेज एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अली शमीम रहे जिन्होंने ग्लोबल पीस को एक नया बदलाव बताया है. 
भारत का स्थान अभी ग्लोबल रैंकिंग मे 141 है इसके बारे मे विपुल ने भी अपने सेशन मे कई बातें बताई और समस्याओं पर भी चर्चा की l 

इस चार दिवसीय कार्यक्रम मे विपुल ने सभी इवेंट मे हिस्सा लिया और 3 मेडल भारत के लिए हासिल किये जिनमे ग्लोबल यूथ पीस वाक मेडल,  स्नॉर्केलिंग फॉर ग्लोबल पीस मेडल और ग्लोबल यूथ पीस एम्बेस्डर मेडल शामिल है l 
विपुल एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और IIT खरगपुर से उद्यमिता की ट्रेनिंग लेने के बाद अपनी नौकरी छोड़कर स्वउद्यमिता के क्षेत्र मे कदम रखें l अपने संस्था स्किल माइंड्स के माध्यम से विपुल युवाओं को कौशल युक्त बनाकर उन्हें नौकरी के योग्य बनाते हैँ और अपने संसाधनों की मदद से उन्हें नौकरी दिलाने मे भी मदद करते हैँ l 
छपरा से विपुल को उनके कार्यों को देखते हुए इस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया l 
विपुल इसके अलावे भी अब तक 10 से ज्यादा राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किये जा चुके हैँ जिनमे 2018 मे कोलंबो, श्रीलंका मे हुए दक्षिण एशियाई युवा महासम्मेलन का पीपल्स चॉइस लीडर अवार्ड और राष्ट्र प्रेरणा अवार्ड तक शामिल है l विपुल को आगामी नवम्बर मे यूनाइटेड नेशंस और आई-कोंगो द्वारा रेक्स कर्मवीर चक्र देकर सम्मानित करने के लिए भी चुना गया है l 
विपुल का मानना है कि खुद के लिए तो सब जीते हैँ.... जो दूसरों के उत्थान के लिए जिये उसे ही चेंज मेकर कहा जाता है. और विपुल अपने प्रयासों से चेंज मेकर्स की फ़ौज बनाना चाहते हैँ l 
विपुल ने मालद्वीव मे 3 मेडल भारत के लिए जीतकर और मालद्वीव सरकार द्वारा सम्मानित होकर अपने गाँव मकेर, ज़िला छपरा, राज्य बिहार और देश का नाम रौशन किया है  l

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