15 सितंबर, रविवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के महेन्द्रू इलाके में नवोदित कवि केशव कौशिक के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में इग्नू, दिल्ली में कार्यरत, सामायिक परिवेश पत्रिका के संपादक एवं कवि संजीव कुमार 'मुकेश' भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों केशव कौशिक की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.
फैमली परिचय- केशव सुपौल जिले के कोरियापट्टी गांव से ताल्लुक रखते हैं. अभी पटना कॉलेज में इंग्लिश ऑनर्स, थर्ड ईयर के स्टूडेंट हैं. पिता जी स्व. शम्भू प्रसाद सुमन जो किसान थें, उनका अपना बिजनेस भी था. केशव की माँ सुलेखा देवी सुपौल के कोरियापट्टी में कन्या प्राथमिक विधालय में हेडमास्टर हैं. सुलेखा जी को पहले सिलाई-कढ़ाई का बहुत शौक था लेकिन अब समय नहीं मिल पाता. केशव दो बहन एक भाई हैं. बड़ी बहन की शादी हो चुकी है और छोटी बहन अनुपम कुमारी, मगध महिला कॉलेज में केमस्ट्री ऑनर्स सेकेण्ड ईयर की स्टूडेंट है. अनुपम की हॉबी डांस है. केशव जब 4 साल की उम्र के थें तभी उनके सर से पिता का साया उठ गया था. तब उनकी माँ ने कठिन संघर्ष करते हुए सबकी परवरिश की, पढ़ाया-लिखाया और अभी भी इनके अच्छे करियर के लिए प्रयत्नशील हैं.
साहित्य से जुड़ाव - केशव बताते है कि "12 वीं के दौरान ही कुछ चीजें बिल्कुल पास से यूँ गुजरीं कि साहित्य के क्षेत्र में आने का रुझान पैदा हो गया. लिखने की शुरुआत हुई थी क्लास 10 वीं में. तब ही पहली कविता लिखी थी." पहले जब केशव बेगूसराय रहते थें तो वहां का हॉस्टल, टीचर्स और हिंदी का बेहतर माहौल होते हुए भी वहां चीजें महसूस नहीं हुई लेकिन तब एक पृष्ठभूमि जरूर तैयार हो रही थी. जब केशव 8 वीं -9 वीं में गएँ तो उन्हें ऐसा लगा कि हिंदी बेहतर तरीके से है मुझमे. फिर 10 वीं आते- आते उनके अंदर से कविता आयी. पिछले साल केशव के पटना में आने के साथ ही मंचों पर कविताई शुरू हो गयी. फिर 2018 के फरवरी में पहली बार मंच पर आने का अनुभव मिला. उसके बाद बिहार के बहुत सारे जिलों में कार्यक्रम किएँ.
अबतक क्या कुछ किया ? - कविताओं में श्रृंगार रस ज्यादा पसंद करनेवाले केशव कौशिक हाल-फ़िलहाल काठमांडू के अंतराष्ट्रीय कवि समेलन में भाग लेकर लौटे हैं. अबतक लगभग 30-40 मंचों पर कवितायेँ सुना चुके हैं. राष्ट्रिय कवि संगम में पटना जिला इकाई के सचिव भी रह चुके हैं. राष्ट्रिय कवि संगम के पटना इकाई के तहत पटना में दो कार्यक्रम करा चुके हैं. जब केशव ने ये संस्था छोड़ी तो बहुत से ऑफर आएं विभिन्न संस्थाओं में जुड़ने के लिए लेकिन तब उनके शुभचिंतकों ने समझाया कि - "संस्था के पीछे मत पड़ो अपनी रचना पर ध्यान दो वही तुम्हें आगे लेकर जाएगी, कभी संस्था तुम्हें आगे नहीं बढ़ाएगी." इसलिए तबसे कई संस्थाओं के आयोजन में परफॉर्म करने तो गएँ लेकिन कभी उसमे मेंबर के रूप में नहीं जुड़ें. पिछले साल केशव ने 'बनारसिया' के तत्वाधान में युवा रचनाकारों को लेकर तीन कार्यक्रम करवाया.
अभी क्या चल रहा है ? - पटना कॉलेज का स्टूडेंट होने के नाते केशव युवाओं को लेकर एक कार्यक्रम वहां भी कराना चाहते हैं लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है, प्रयास जारी है, कॉलेज प्रशासन अगर ध्यान दे तो यह सम्भव है. आगे का लक्ष्य लिटरेचर के क्षेत्र में ही कुछ करने का है. पोस्ट ग्रेजुएशन सेंट्रल यूनिवर्सिटी से करने की इक्छा है.
बोलो जिंदगी टीम और स्पेशल गेस्ट की फरमाईश पर केशव ने अपनी कुछ उम्दा रचनाएँ सुनायीं जिसे सुनकर सभी ने उनकी खूब सराहना की. फिर विदा लेने से पहले इस कार्यक्रम के स्पेशल गेस्ट संजीव कुमार 'मुकेश' जी ने बोलो जिंदगी के विशेष आग्रह पर अपनी भी एकाध रचनाएँ सुनायीं.
(इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है.)
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