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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Friday 11 October 2019

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : 'बीइंग हेल्पर' के फाउंडर शुभम कुमार 'सन्नी', राजीवनगर, पटना


पिछले हफ्ते 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के राजीवनगर इलाके में बीइंग हेल्पर टीम के फाउंडर व युवा समाजसेवी शुभम कुमार 'सन्नी' के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में जानेमाने चिकित्स्क एवं सोशल एक्टिविस्ट डॉ. दिवाकर तेजस्वी भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों शुभम की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.
https://www.youtube.com/watch?v=AhktzrP6-Gs

फैमली परिचय- बिहार के भागलपुर से ताल्लुक रखनेवाले सोशल वर्कर एवं बीइंग हेल्पर के फाउंडर शुभम कुमार 'सन्नी' एक सिविल इंजीनियर हैं. एलएनटी, बैंगलोर में साढ़े चार साल जॉब कर चुके हैं.  बाइक राइडिंग में लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में नाम दर्ज करा चुके हैं. डांस का भी बहुत शौक है, कभी बूगी-बूगी में भी हाथ आजमा चुके हैं. उनकी पत्नी दीपशिखा पहले हिंदुस्तान लिवर कम्पनी, बैंगलोर  में काम करती थीं. वहां ढ़ाई साल जॉब करने के दौरान टीम लीडर भी रहीं. शुभम के पापा अमरेंद्र सिंह रियल स्टेट में हैं. माँ शोभा सिंह गृहणी हैं. पहले इनके पापा-मम्मी दोनों ही जॉब करते थें. माँ शोभा सिंह डबल एम ए की हैं. भइया कुमार आनंद लोयला स्कूल का टॉपर था और भूतपूर्व राष्ट्रपति ए पीजे अब्दुल कलाम द्वारा सम्मानित हो चुके हैं.


समाज सेवा से जुड़ाव - शुभम की पत्नी का बैंगलोर में ही जब एक्सीडेंट हुआ और कोई देखरेख करनेवाला नहीं था तो वे पत्नी संग पटना शिफ्ट हो गएँ. पटना में उन्हें कोई ऐसा कंस्ट्रक्शन कम्पनी नहीं दिखा जिसे ज्वाइन कर सकें तो फिर पापा के ही रियल स्टेट वर्क में जुड़कर छोटा सा काम शुरू किए. इस काम के बावजूद शुभम को दिनभर में बहुत टाइम मिल जाता था. तो टाइमपास घर में यूँ ही टीवी देखकर करते थें. तभी ख्याल आया कि कुछ किया जाये. फिर 15 अगस्त 2018 के दिन एक-दो लोगों के साथ वाईफ को लेकर एक स्लम एरिया में गएँ और वहां के बच्चों को जलेबी खिलाई. उनकी ख़ुशी देखकर उन्हें एहसास हुआ कि समाज के ऐसे लोगों के लिए हमे कुछ करना चाहिए. तब वाईफ को एक एक्सीडेंट की वजह से बच्चा नहीं हो पा रहा था. बहुत जगह दिखाएँ और बहुत पैसा भी खर्चा हुआ. लेकिन जैसे ही सोशल वर्क शुरू किए तीन महीने बाद ही गुड न्यूज सुनने को मिली और आखिर में उनकी पत्नी माँ बन पायीं. शुभम कहते हैं, "समझ लीजिये कि मदद किये गए लोगों की मुझे दुआएं लग गयीं. उसके बाद से ही मैं हर दिन कम-से-कम 2 घंटा सोशल वर्क के लिए देने लगा."

बीइंग हेल्पर टीम के बारे में - अभी टीम में 166  सक्रीय मेंबर हैं. सारे ग्रुप मेंबर चाहे वो वर्किंग पीपुल हों या स्टूडेंट्स जब भी फ्री होते हैं अपना योगदान देने आ जाते हैं. पटना के साथ-साथ बीइंग हेल्पर का सेटअप मुंगेर, भागलपुर और दिल्ली में भी जल्द शुरू होने जा रहा है. ये किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं लेते. बीइंग हेल्पर का मुख्य काम है गरीब, बेसहारा लोगों की मदद करना, स्लम एरिया के बच्चों को पढ़ाना. स्लम के बच्चों को पढ़ाने के लिए अभी खाजपुरा में एक स्कूल भी ओपन किया गया है. बहुत ही ज्यादा गरीब लोगों को ढूंढकर हर महीना इनकी टीम राशन भी मुहैया कराती है. बहुत बड़ी संख्या में लोगों का और बहुत सी संस्थाओं का भी सपोर्ट मिल रहा है. मुजफ्फरपुर के चमकी बुखार से पीड़ित बच्चे हों या पटना का बाढ़ग्रस्त इलाका टीम ने बहुत अच्छा वर्क किया.  पटना के डूबे इलाकों में कुछ लोगों के सपोर्ट से अबतक लगभग 10 हजार लोगों तक राहत सामग्री पहुंचा चुके हैं.

शुभम का स्ट्रगल - एक समय ऐसा आया कि घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी थी. पापा-मम्मी का जॉब छूट गया था और फिर परिवार को बहुत स्ट्रगल करना पड़ा. फिर धीरे धीरे जब शुभम के पापा रियल स्टेट में चले आएं और शुभम को उनके भइया पढ़ने के लिए बैंगलोर बुला लियें तो कुछ स्थिति में सुधार हुआ. सुभम का मैथेमैटिक्स मजबूत था तो पूरा इंजीनियरिंग इन्होने बैंगलोर में बच्चों को कोचिंग पढ़ाकर कम्प्लीट किया. उसके बाद वहीँ एलएनटी कम्पनी में जॉब किए.

https://www.youtube.com/watch?v=RWyCRn4V3RM&t=3s

स्पेशल गेस्ट की टिप्पणी - इस कार्यक्रम में बतौर स्पेशल गेस्ट के रूप में उपस्थित हुए डॉ. दिवाकर तेजस्वी जी शुभम और उनकी फॅमिली से मिलकर बहुत प्रभावित हुयें. उन्होंने शुभम के ज़ज़्बे और उसकी सेवा भावना को देखकर कहा कि "ऐसे युवाओं को देखकर हमलोगों को भी बहुत एनर्जी मिलती है."

(इस पूरे कार्यक्रम को बोलोजिन्दगी डॉट कॉम पर भी देखा जा सकता है.)
















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