इस आयोजन सह मिलान समारोह में जिन सदस्यों ने भाग लिया उनमे संस्था के अध्यक्ष श्री रामदेव यादव (भूतपूर्व मंत्री), कार्यकारिणी अध्यक्ष श्री अशोक प्रियदर्शी, महासचिव श्री प्रणय कुमार सिन्हा, कोषाध्यक्ष संभुनाथ पांडेय, संजय कुमार सिन्हा एवं सर्वेश कुमार हैं.
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Saturday, 30 December 2017
'पुरोधालय' में हुआ लिट्टी-चोखा पार्टी का आयोजन
इस आयोजन सह मिलान समारोह में जिन सदस्यों ने भाग लिया उनमे संस्था के अध्यक्ष श्री रामदेव यादव (भूतपूर्व मंत्री), कार्यकारिणी अध्यक्ष श्री अशोक प्रियदर्शी, महासचिव श्री प्रणय कुमार सिन्हा, कोषाध्यक्ष संभुनाथ पांडेय, संजय कुमार सिन्हा एवं सर्वेश कुमार हैं.
Sunday, 10 December 2017
वरिष्ठ पत्रकार अवधेश प्रीत के पहले उपन्यास 'अशोक राजपथ' का हुआ लोकार्पण
सिटी हलचल
By : BOLO ZINDAGI
पटना, 10 दिसंबर, ज्ञान भवन, पटना पुस्तक मेला में दैनिक हिंदुस्तान के पूर्व सहायक सम्पादक एवं कथाकार अवधेश प्रीत जी के उपन्यास 'अशोक राजपथ' का लोकार्पण किया गया. यह अवधेश प्रीत जी का पहला उपन्यास है, इसके पहले उनके 6 कहानी संग्रह आ चुके हैं. और विभिन्न विधाओं की पुस्तकें अभी आने वाली हैं. अशोक राजपथ के लोकार्पण के बाद वरिष्ठ कवि अरुण कमल ने अपने वक्तव्य में कहा कि 'दिन प्रतिदिन मैं बदलते हुए अशोक राजपथ को देखता चला आ रहा हूँ. अवधेश प्रीत जी ने उसी अशोक राजपथ के हलचल भरे जीवन को, विद्यार्थियों के जीवन को, परिसर के जीवन को और परिसर व राजनीति के अंतःसंबंधों को बहुत बढ़िया भाषा में उद्घाटित किया है. अवधेश प्रीत शानदार कलाकार हैं और उन्होंने जो अशोक राजपथ के भीड़ भरे जीवन को बहुत ही व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत किया है उसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ.'
वहीं अवधेश प्रीत ने अपने सम्बोधन में कहा कि 'मैं इस उपन्यास के बाबत बहुत कुछ नहीं बोलना चाहता क्यूंकि मैं यह मानता हूँ कि लेखक की बात उसकी रचनाएँ बोलती हैं. सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ इस अवसर पर कि हिंदी में युवा छात्र राजनीति को लेकर के बहुत कम उपन्यास लिखे गए हैं. दूसरी बात ये है कि बिहार में जो छात्र आंदोलन होते रहे हैं और उसी के बाद कई तरह की परिणीतियाँ सामाजिक जीवन में, सत्ता के जीवन में आयी हैं उसके फलस्वरूप सामाजिक न्याय, सामाजिक परिवर्तन जैसी चीजें भी आयीं तो इन तमाम चीजों के पीछे एक युवा शक्ति का भी हाथ रहा है. आप जानते हैं कि जब सत्ताएं बदलती हैं तो सत्ता की संस्कृतियां भी बदलती हैं. कुछ ये अक्स भी इस उपन्यास में देखने को मिलेगा.'
जब 'बोलो जिंदगी' ने लेखक अवधेश प्रीत से उपन्यास की कहानी को संक्षेप में जानना चाहा तो अवधेश प्रीत ने बताया कि 'इस उपन्यास के जरिये ये दिखाया गया है कि छात्र राजनीति को लेकर खासतौर से सामाजिक परिवर्तन की जो लड़ाई है, उस लड़ाई में किस तरीके से छात्रों का इस्तेमाल होता है और कैसे मूल्यों की राजनीति ध्वस्त होती है. लेकिन उसी मूल्य की राजनीति की रक्षा के लिए लगातार एक अन्वेषण की जो प्रक्रिया युवा के मन में है वह केंद्रीय तत्व है इस उपन्यास का और मैं कह सकता हूँ कि यह उपन्यास छात्रों के जीवन की हलचलों, शिक्षा में आ रही गिरावट और आज चल रहे कोचिंग संस्थानों इत्यादि को बड़े फलक पर रखकर लिखा गया है जिसमे एक नए तरह का आस्वाद भी मिलेगा और जो लम्बे समय से छात्र राजनीति पर कोई उपन्यास नहीं आया है उसकी कमी को भी पूरा करेगा.'
'बोलो जिंदगी' ने पूछा कि 'उपन्यास का नाम 'अशोक राजपथ' ही क्यों ?' तो इसपर अवधेश प्रीत ने कहा कि 'पटना की जो बनावट है उसमे जो अशोक राजपथ है, उसी अशोक राजपथ पर पटना विश्विधालय के सारे शैक्षणिक संस्थान स्थित हैं. अशोक राजपथ जो सड़क है वो छात्रों की भी और शैक्षणिक गतिविधियों की भी गवाह हुआ करती है.'
लोकार्पण समारोह में मौजूद अवधेश प्रीत की जीवन संगिनी डॉ. स्नेहलता सिन्हा जी से जब 'बोलो जिंदगी' ने यह कहा कि एक पत्नी और पाठक के रूप में आप 'अशोकराजपथ' के निर्माण पर प्रकाश डालें तो उन्होंने कहा कि 'अवधेश जी जितना भी लिखते गए हैं उसकी मैं पांडुलिपियां पढ़ती गयी हूँ...वो दो पेज लिखें या चार पेज लिखें हम लगातार उनके उपन्यास के साथ ही रहे हैं और हमको वो सुनाते रहे हैं तभी किताब आगे बढ़ी है. एक पाठिका के रूप में अगर मैं बताऊँ तो उसके सभी पात्र जिवंत लगे हैं और अशोक राजपथ में जो कुछ भी होता रहा है उसे वो विस्तार से लिखे हैं. जब दो-दो पेज लिखकर वो सुनाते थें तब एक पाठक के रूप में जो कमियां मुझे नज़र आती थीं उसमे थोड़ा बहुत हम सुझाव देते थें....लेकिन वो लेखक ठहरें और हम पाठक तो जो सुझाव उन्हें सही लगा उसे वो मान लेते गएँ.'
अशोक राजपथ के अलावा भी अन्य दो पत्रकार लेखकों की पुस्तकों का लोकार्पण हुआ जिनमे से विकास कुमार झा जी का उपन्यास 'गयासुर संधान' और पुष्यमित्र जी की इतिहास के ऊपर आयी पुस्तक 'चम्पारण 1917' है. जहाँ 'गयासुर संधान' उपन्यास में बिहार के गया शहर की महिमा का बखान मिलेगा वहीँ 'चम्पारण 1917' में गाँधी जी के सत्याग्रह आंदोलन और तब के चम्पारण के इतिहास से पाठक रु-ब-रु होंगे.
By : BOLO ZINDAGI
'अशोक राजपथ' उपन्यास के लेखक अवधेश प्रीत (दाएं) के साथ 'बोलो जिंदगी' के एडिटर 'राकेश सिंह 'सोनू' |
वहीं अवधेश प्रीत ने अपने सम्बोधन में कहा कि 'मैं इस उपन्यास के बाबत बहुत कुछ नहीं बोलना चाहता क्यूंकि मैं यह मानता हूँ कि लेखक की बात उसकी रचनाएँ बोलती हैं. सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ इस अवसर पर कि हिंदी में युवा छात्र राजनीति को लेकर के बहुत कम उपन्यास लिखे गए हैं. दूसरी बात ये है कि बिहार में जो छात्र आंदोलन होते रहे हैं और उसी के बाद कई तरह की परिणीतियाँ सामाजिक जीवन में, सत्ता के जीवन में आयी हैं उसके फलस्वरूप सामाजिक न्याय, सामाजिक परिवर्तन जैसी चीजें भी आयीं तो इन तमाम चीजों के पीछे एक युवा शक्ति का भी हाथ रहा है. आप जानते हैं कि जब सत्ताएं बदलती हैं तो सत्ता की संस्कृतियां भी बदलती हैं. कुछ ये अक्स भी इस उपन्यास में देखने को मिलेगा.'
जब 'बोलो जिंदगी' ने लेखक अवधेश प्रीत से उपन्यास की कहानी को संक्षेप में जानना चाहा तो अवधेश प्रीत ने बताया कि 'इस उपन्यास के जरिये ये दिखाया गया है कि छात्र राजनीति को लेकर खासतौर से सामाजिक परिवर्तन की जो लड़ाई है, उस लड़ाई में किस तरीके से छात्रों का इस्तेमाल होता है और कैसे मूल्यों की राजनीति ध्वस्त होती है. लेकिन उसी मूल्य की राजनीति की रक्षा के लिए लगातार एक अन्वेषण की जो प्रक्रिया युवा के मन में है वह केंद्रीय तत्व है इस उपन्यास का और मैं कह सकता हूँ कि यह उपन्यास छात्रों के जीवन की हलचलों, शिक्षा में आ रही गिरावट और आज चल रहे कोचिंग संस्थानों इत्यादि को बड़े फलक पर रखकर लिखा गया है जिसमे एक नए तरह का आस्वाद भी मिलेगा और जो लम्बे समय से छात्र राजनीति पर कोई उपन्यास नहीं आया है उसकी कमी को भी पूरा करेगा.'
लोकार्पण समारोह की कुछ झलकियां |
लोकार्पण समारोह में मौजूद अवधेश प्रीत की जीवन संगिनी डॉ. स्नेहलता सिन्हा जी से जब 'बोलो जिंदगी' ने यह कहा कि एक पत्नी और पाठक के रूप में आप 'अशोकराजपथ' के निर्माण पर प्रकाश डालें तो उन्होंने कहा कि 'अवधेश जी जितना भी लिखते गए हैं उसकी मैं पांडुलिपियां पढ़ती गयी हूँ...वो दो पेज लिखें या चार पेज लिखें हम लगातार उनके उपन्यास के साथ ही रहे हैं और हमको वो सुनाते रहे हैं तभी किताब आगे बढ़ी है. एक पाठिका के रूप में अगर मैं बताऊँ तो उसके सभी पात्र जिवंत लगे हैं और अशोक राजपथ में जो कुछ भी होता रहा है उसे वो विस्तार से लिखे हैं. जब दो-दो पेज लिखकर वो सुनाते थें तब एक पाठक के रूप में जो कमियां मुझे नज़र आती थीं उसमे थोड़ा बहुत हम सुझाव देते थें....लेकिन वो लेखक ठहरें और हम पाठक तो जो सुझाव उन्हें सही लगा उसे वो मान लेते गएँ.'
अशोक राजपथ के अलावा भी अन्य दो पत्रकार लेखकों की पुस्तकों का लोकार्पण हुआ जिनमे से विकास कुमार झा जी का उपन्यास 'गयासुर संधान' और पुष्यमित्र जी की इतिहास के ऊपर आयी पुस्तक 'चम्पारण 1917' है. जहाँ 'गयासुर संधान' उपन्यास में बिहार के गया शहर की महिमा का बखान मिलेगा वहीँ 'चम्पारण 1917' में गाँधी जी के सत्याग्रह आंदोलन और तब के चम्पारण के इतिहास से पाठक रु-ब-रु होंगे.
Wednesday, 6 December 2017
पटना पुस्तक मेला में कथाकार एवं पत्रकार गीता श्री के उपन्यास 'हसीनाबाद' का हुआ लोकार्पण
सिटी हलचल
Reporting : BOLO ZINDAGI
पटना, 6 दिसंबर, ज्ञान भवन, पटना पुस्तक मेला में कथाकार एवं आउटलुक की पूर्व सहायक सम्पादक गीता श्री के पहले उपन्यास 'हसीनाबाद' का लोकार्पण हुआ. वाणी प्रकाशन से आयी इस पुस्तक का लोकार्पण किया जाने-माने साहित्यकार हृषिकेश शुलभ, अवधेश प्रीत एवं पद्मश्री डॉ. उषा किरण खान जी ने.
पुस्तक लोकार्पण के बाद जब लेखिका गीता श्री से पूछा गया कि 'वो कौन सी वजह थी जो आप कहानी लिखते-लिखते उपन्यास की तरफ आयीं?' इसपर गीता श्री ने कहा- 'मेरी कुछ सीमाएं थीं...पत्रकारिता ने मुझे बांधा, कहानी ने मुझे खोला और उपन्यास ने मुझे विराट कर दिया. ये उपन्यास मेरी रचनात्मकता के विराट होने की यात्रा है. जो चीज बंधी हुई थी, जो मैं नहीं कह पा रही थी अपनी कहानियों में उसे कहने के लिए मुझे 'हसीनाबाद' तक आना पड़ा. पिछले 8 साल पहले एक गरीब,पिछड़ी, गुमनाम बस्ती में घूमते हुए एक पत्रकार के तौर पर मेरी यात्रा थी और उस तकलीफ में मैंने 15 -20 दिन रहकर जो रिसर्च किया उसे मैं कहानी में नहीं समेट सकती थी. कुछ दुःख आपकी पहुँच से बाहर होते हैं तो कुछ दुःख आपकी हथेली, आपकी उंगलियां पकड़ लेते हैं. वो दुःख 8 साल पहले मेरे जीवन से चिपक गया था. चाहे स्त्री होने के नाते, चाहे साहित्यकार होने के नाते जब मैंने उस गुमनाम बस्ती की उन उजाड़ सी औरतों को, निष्कासित आँखों को, उस उदास समय को और उस बेदखल हंसी को मैंने देखा था जिनके लिए जिंदगी के कोई मायने नहीं थे. जिनके लिए जमाना कभी बदला ही नहीं था. जो अपनी मौत तक के इंतज़ार में घिसट-घिसट के जी रही थीं. उनकी वो तकलीफ जो तब मेरे भीतर तक आयी थी उसे मैं कहानी में नहीं समेट सकती थी. चाहती तो छोटी सी कहानी लिखकर मुक्त हो सकती थी लेकिन उपन्यास बहुत बड़ी चुनौती है जिसके लिए तैयार होने में मुझे दो साल लगा.'
अपने वक्तव्य में डॉ. उषा किरण खान जी ने कहा कि 'मैं यहाँ ज्याद कुछ नहीं कहूँगी क्यूंकि मैंने गीता श्री का उपन्यास पढ़ा नहीं है मगर मैं जानती हूँ कि पहला जो उपन्यास होता है उसमे लेखक खुद ज्यादा दिखता है. उसके बाद धीरे-धीरे वो और समृद्ध होने लगता है. गीता श्री का व्यक्तित्व, उसका विचार, उसके भाव सब समृद्ध होंगे लेकिन यह उपन्यास जरूर मिल का पत्थर साबित होगा क्यूंकि यह विशेष प्रकार का उपन्यास है जिसमे कला है ,संगीत है, इतिहास इसके दिलो-दिमाग में घूम रहा है और उसके बाद इस उपन्यास ने राजनीति तक की यात्रा की है.'
वहीं हृषिकेश सुलभ ने कहा कि 'लगभग डेढ़ साल पहले दिल्ली के त्रिवेणी सभागार के कॉफी हॉउस में बैठा हुआ मैं गीता के साथ कॉफी पी रहा था. मुझे वो दोपहर याद है कि कैसे लबालब अपने उपन्यास से भरी हुई गीता ने अपने पहले उपन्यास के लिखे जाने की सूचना ही सिर्फ नहीं दी थी बल्कि इसके कई पात्रों से मेरी मुलाकात भी करवाई थी. यह उपन्यास इतना जरूर आश्वस्त करता है कि गीता जिस तरह का लेखन करती रही हैं और स्त्रियों के जीवन के कई ऐसे पहलु जो बिलकुल सामन्य लगते हैं उसे वो जिस विस्फोटक तरीके से उजागर करती रही हैं उस क्रम में एक लेखक को जो बदनामियाँ झेलनी पड़ती हैं वो बदनामियाँ भी गीता ने उठाई हैं. एक लुप्त और बदनाम बस्ती की कहानी इस उपन्यास में है.'
वरिष्ठ कथाकार एवं दैनिक हिंदुस्तान के पूर्व सहायक संपादक अवधेश प्रीत ने कहा कि 'पिछले कुछ वर्षों में जिन कथा लेखिकाओं ने हिंदी कथा परिदृश्य पर एक हलचल पैदा की, अपनी उपस्थिति बेहद मजबूती के साथ दर्ज की उनमे से ही गीता श्री हैं. इनकी लगभग तमाम कहानियां मैं पढ़ चुका हूँ. मैं गीता श्री के कथा लेखन को एक वाक्य में कहना चाहूंगा कि एक नयी स्त्री के अन्वेषण की यात्रा में निकली हुई कहानी. गीता श्री की कविताओं की स्त्रियां, कहानियों की स्त्रियों की तरह ही मैं उम्मीद करता हूँ कि इस उपन्यास में भी एक स्त्री बहुत ही ताक़त के साथ उभरकर सामने आयी होगी. सबसे दिलचस्प बात ये है इनकी कहानियों में कि वह ऐसे ऐसे प्रसंगों को और ऐसे-ऐसे तथ्यों को सामने लाती हैं जिनपर कई बार यकीं नहीं होता कि इस तरीके से भी लिखा जा सकता है. गीता श्री ने बहुत कम समय में अपनी उपस्थिति दर्ज की है तो इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि उन्होंने कहानी लिखने के लिए कोई गढ़ा-गढाया फॉर्मूला नहीं अपनाया. उन्होंने अपनी तरफ से अपनी लीक निर्मित की है और उस लीक पर चलते हुए तमाम विरोधों को झेलते हुए दृढ़ता से आगे बढ़ी हैं.'
'हसीनाबाद' के जन्म पर प्रकाश डालते हुए वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिती ने कहा कि 'हसीनाबाद की कहानी शायद दो साल पहले शुरू हुई जब पता चला की गीता जी एक ऐसे सब्जेक्ट पर लिखना चाहती हैं लौंग फॉर्मेट में जो कहीं ना कहीं उन पात्रों को, उस जगह को उजागर करता है जिसे बड़े शहरों में बैठा सभ्य समाज एक क्लिनिकल क्लींजिंग के तहत बुरा मानता है. हम स्क्रिप्ट देखकर रोमांचित थें क्यूंकि ये पहला उपन्यास गीता श्री का आ रहा था और सभी यह जानना चाहते थें कि जब एक कहानीकार उपन्यासकार बनता है तो क्या होता है. बहुत उम्दा एडिटिंग के साथ हमने इस किताब को निकाला है और मुझे पूरी उम्मीद है कि पाठक इस उपन्यास को एक किताब के रूप में ना पढ़कर एक जर्नी के रूप में देख पाएंगे. मुझे लगता है कि आनेवाले समय में 'हसीनाबाद' पर कोई धारावाहिक या फिल्म बहुत जल्दी बनेगी क्यूंकि घटनाक्रम एक दृश्य की तरह आपकी निगाह के सामने से गुजरता चला जाता है.'
अंत में हसीनाबाद के फेमस डायलॉग 'गोलमी सपने देखती नहीं बुनती है बाबू....' बोलने के साथ ही गीता श्री ने 'बोलो ज़िन्दगी' को बताया कि 'यह एक नर्तकी की कथा है जो ऊँचे सपने देखती है, बहुत ऊपर पहुँचने की चाहत रखती है, लेकिन आगे जाकर उसको पता चलता है कि दूसरों की बनाई जमीं पर बहुत धोखा ही धोखा है और फिर वहां से वो वापस लौटकर अपनी जमीं तैयार करने का हौसला दिखाती है.'
Reporting : BOLO ZINDAGI
पुस्तक मेला में 'हसीनाबाद' के लॉन्चिंग के वक़्त उपन्यास की लेखिका गीता श्री के साथ 'बोलो ज़िन्दगी' के एडिटर राकेश सिंह 'सोनू' |
पुस्तक लोकार्पण के बाद जब लेखिका गीता श्री से पूछा गया कि 'वो कौन सी वजह थी जो आप कहानी लिखते-लिखते उपन्यास की तरफ आयीं?' इसपर गीता श्री ने कहा- 'मेरी कुछ सीमाएं थीं...पत्रकारिता ने मुझे बांधा, कहानी ने मुझे खोला और उपन्यास ने मुझे विराट कर दिया. ये उपन्यास मेरी रचनात्मकता के विराट होने की यात्रा है. जो चीज बंधी हुई थी, जो मैं नहीं कह पा रही थी अपनी कहानियों में उसे कहने के लिए मुझे 'हसीनाबाद' तक आना पड़ा. पिछले 8 साल पहले एक गरीब,पिछड़ी, गुमनाम बस्ती में घूमते हुए एक पत्रकार के तौर पर मेरी यात्रा थी और उस तकलीफ में मैंने 15 -20 दिन रहकर जो रिसर्च किया उसे मैं कहानी में नहीं समेट सकती थी. कुछ दुःख आपकी पहुँच से बाहर होते हैं तो कुछ दुःख आपकी हथेली, आपकी उंगलियां पकड़ लेते हैं. वो दुःख 8 साल पहले मेरे जीवन से चिपक गया था. चाहे स्त्री होने के नाते, चाहे साहित्यकार होने के नाते जब मैंने उस गुमनाम बस्ती की उन उजाड़ सी औरतों को, निष्कासित आँखों को, उस उदास समय को और उस बेदखल हंसी को मैंने देखा था जिनके लिए जिंदगी के कोई मायने नहीं थे. जिनके लिए जमाना कभी बदला ही नहीं था. जो अपनी मौत तक के इंतज़ार में घिसट-घिसट के जी रही थीं. उनकी वो तकलीफ जो तब मेरे भीतर तक आयी थी उसे मैं कहानी में नहीं समेट सकती थी. चाहती तो छोटी सी कहानी लिखकर मुक्त हो सकती थी लेकिन उपन्यास बहुत बड़ी चुनौती है जिसके लिए तैयार होने में मुझे दो साल लगा.'
उपन्यास 'हसीनाबाद' का लोकार्पण करते हुए दाएं से कथाकार अवधेश प्रीत, हृषिकेश सुलभ, डॉ. उषा किरण खान, गीता श्री एवं वाणी प्रकाशन की अदिति |
वहीं हृषिकेश सुलभ ने कहा कि 'लगभग डेढ़ साल पहले दिल्ली के त्रिवेणी सभागार के कॉफी हॉउस में बैठा हुआ मैं गीता के साथ कॉफी पी रहा था. मुझे वो दोपहर याद है कि कैसे लबालब अपने उपन्यास से भरी हुई गीता ने अपने पहले उपन्यास के लिखे जाने की सूचना ही सिर्फ नहीं दी थी बल्कि इसके कई पात्रों से मेरी मुलाकात भी करवाई थी. यह उपन्यास इतना जरूर आश्वस्त करता है कि गीता जिस तरह का लेखन करती रही हैं और स्त्रियों के जीवन के कई ऐसे पहलु जो बिलकुल सामन्य लगते हैं उसे वो जिस विस्फोटक तरीके से उजागर करती रही हैं उस क्रम में एक लेखक को जो बदनामियाँ झेलनी पड़ती हैं वो बदनामियाँ भी गीता ने उठाई हैं. एक लुप्त और बदनाम बस्ती की कहानी इस उपन्यास में है.'
वरिष्ठ कथाकार एवं दैनिक हिंदुस्तान के पूर्व सहायक संपादक अवधेश प्रीत ने कहा कि 'पिछले कुछ वर्षों में जिन कथा लेखिकाओं ने हिंदी कथा परिदृश्य पर एक हलचल पैदा की, अपनी उपस्थिति बेहद मजबूती के साथ दर्ज की उनमे से ही गीता श्री हैं. इनकी लगभग तमाम कहानियां मैं पढ़ चुका हूँ. मैं गीता श्री के कथा लेखन को एक वाक्य में कहना चाहूंगा कि एक नयी स्त्री के अन्वेषण की यात्रा में निकली हुई कहानी. गीता श्री की कविताओं की स्त्रियां, कहानियों की स्त्रियों की तरह ही मैं उम्मीद करता हूँ कि इस उपन्यास में भी एक स्त्री बहुत ही ताक़त के साथ उभरकर सामने आयी होगी. सबसे दिलचस्प बात ये है इनकी कहानियों में कि वह ऐसे ऐसे प्रसंगों को और ऐसे-ऐसे तथ्यों को सामने लाती हैं जिनपर कई बार यकीं नहीं होता कि इस तरीके से भी लिखा जा सकता है. गीता श्री ने बहुत कम समय में अपनी उपस्थिति दर्ज की है तो इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि उन्होंने कहानी लिखने के लिए कोई गढ़ा-गढाया फॉर्मूला नहीं अपनाया. उन्होंने अपनी तरफ से अपनी लीक निर्मित की है और उस लीक पर चलते हुए तमाम विरोधों को झेलते हुए दृढ़ता से आगे बढ़ी हैं.'
'हसीनाबाद' के जन्म पर प्रकाश डालते हुए वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिती ने कहा कि 'हसीनाबाद की कहानी शायद दो साल पहले शुरू हुई जब पता चला की गीता जी एक ऐसे सब्जेक्ट पर लिखना चाहती हैं लौंग फॉर्मेट में जो कहीं ना कहीं उन पात्रों को, उस जगह को उजागर करता है जिसे बड़े शहरों में बैठा सभ्य समाज एक क्लिनिकल क्लींजिंग के तहत बुरा मानता है. हम स्क्रिप्ट देखकर रोमांचित थें क्यूंकि ये पहला उपन्यास गीता श्री का आ रहा था और सभी यह जानना चाहते थें कि जब एक कहानीकार उपन्यासकार बनता है तो क्या होता है. बहुत उम्दा एडिटिंग के साथ हमने इस किताब को निकाला है और मुझे पूरी उम्मीद है कि पाठक इस उपन्यास को एक किताब के रूप में ना पढ़कर एक जर्नी के रूप में देख पाएंगे. मुझे लगता है कि आनेवाले समय में 'हसीनाबाद' पर कोई धारावाहिक या फिल्म बहुत जल्दी बनेगी क्यूंकि घटनाक्रम एक दृश्य की तरह आपकी निगाह के सामने से गुजरता चला जाता है.'
अंत में हसीनाबाद के फेमस डायलॉग 'गोलमी सपने देखती नहीं बुनती है बाबू....' बोलने के साथ ही गीता श्री ने 'बोलो ज़िन्दगी' को बताया कि 'यह एक नर्तकी की कथा है जो ऊँचे सपने देखती है, बहुत ऊपर पहुँचने की चाहत रखती है, लेकिन आगे जाकर उसको पता चलता है कि दूसरों की बनाई जमीं पर बहुत धोखा ही धोखा है और फिर वहां से वो वापस लौटकर अपनी जमीं तैयार करने का हौसला दिखाती है.'
Sunday, 3 December 2017
दिव्यांगों को दी जानेवाली सुविधाओं के सही क्रियान्वन हेतु जागरूकता फैलाते हुए दिव्यांगों ने निकाला कैंडल मार्च
सिटी हलचल
Reporting : BOLO ZINDAGI
पटना, 3 दिसंबर, बेटी जिंदाबाद अभियान के तहत विश्व विकलांगता दिवस के अवसर पर विकलांग अधिकार मंच द्वारा कारगिल चौक पर कैंडल मार्च निकाला गया जिसमे शहर के कई दिव्यांग जन सम्मिलित हुए. हर साल 3 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांग व्यक्तियों का दिवस मानाने की शुरुआत हुई थी. दिव्यांगों के प्रति सामाजिक कलंक को मिटाने और उनके जीवन के तौर तरीकों को बेहतर बनाने के उद्देश्य से इसे सालाना मनाने के लिए इस दिन को खास महत्व दिया जाता है. विकलांग अधिकार मंच की अध्यक्षा कुमारी वैष्णवी ने कहा कि 'देश में दिव्यांगों के लिए कई कानून एवं योजनाएं बनायीं गयी हैं लेकिन इसका किर्यान्वन आज भी सही तरीके से नहीं हो पा रहा है. जिससे दिव्यांग जनों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.'
वहीँ मंच के सचिव दीपक कुमार ने कहा कि 'इस वर्ष आयी भारी प्राकृतिक आपदा में दिव्यांगों को बहुत ज्यादा क्षति पहुंची लेकिन अविवाहित होने के कारण उन्हें सरकार से मिलनेवाली प्रोत्साहन राशि भी नहीं मिल पायी. अतः मै सरकार से आग्रह करूँगा कि विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदा से बचने हेतु दिव्यांगों को विशेष प्रशिक्षण देने एवं विवाहित व अविवाहित सबों को सरकार से मिलनेवाली सुविधा प्रदान करने की पहल की जाये.'
मंच के सलाहकार एवं मीडिया प्रभारी अभिनव आलोक ने कहा कि 'समाज में दिव्यांगों के प्रति फैली नकारात्मकता धीरे-धीरे कम हो रही है और दिव्यांग भी समाज में अपनी पहचान बना रहे हैं. सरकार द्वारा दिव्यांगों को दी जानेवाली प्रतोसहन योजनाओं का क्रियान्वन तो काफी सराहनीय है परन्तु इसपर मॉनिटरिंग की जरुरत है.' इस कैंडल मार्च में तबस्सुम अली, शुभ राजपूत, राधा, सी.के.मिश्रा, आलोक, ममता भारती, आदर्श पाठक, अनूप आदि सदस्य शामिल हुए.
Reporting : BOLO ZINDAGI
कैंडल मार्च के बाद कारगिल चौक पर मोबत्तियां प्रजवल्लित करते मंच के लोग |
मंच के सलाहकार एवं मीडिया प्रभारी अभिनव आलोक ने कहा कि 'समाज में दिव्यांगों के प्रति फैली नकारात्मकता धीरे-धीरे कम हो रही है और दिव्यांग भी समाज में अपनी पहचान बना रहे हैं. सरकार द्वारा दिव्यांगों को दी जानेवाली प्रतोसहन योजनाओं का क्रियान्वन तो काफी सराहनीय है परन्तु इसपर मॉनिटरिंग की जरुरत है.' इस कैंडल मार्च में तबस्सुम अली, शुभ राजपूत, राधा, सी.के.मिश्रा, आलोक, ममता भारती, आदर्श पाठक, अनूप आदि सदस्य शामिल हुए.
Saturday, 2 December 2017
विभिन्न संस्थाओं के दिव्यांग बच्चों ने चित्रकला प्रतियोगिता में दिखाया अपना हुनर
सिटी हलचल
Reporting : BOLO ZINDAGI
पटना, 02 दिसंबर, संजय गाँधी जैविक उद्धान में विश्व विकलांगता दिवस की पूर्व संध्या पर 'बेटी ज़िंदाबाद' अभियान के तहत विकलांग अधिकार मंच द्वारा दिव्यांग छात्र-छात्राओं के लिए चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित की गयी. जिसमे विभिन्न दिव्यांग वर्ग के 200 छात्र-छात्राओं ने भाग लिया. उक्त प्रतियोगिता में विकलांग अधिकार मंच, आशा दीप, जे.एम. इंस्टीच्यूट, उमंग बाल विकास के स्टूडेंट्स ने हिस्सा लिया. इस आयोजन में विकलांग अधिकार मंच का सहयोग किया एक्शन एड संस्था ने. चित्रकला के माध्यम से छात्र-छात्राओं ने अपनी कल्पना को कैनवास पर उकेरा,जिसे देखकर अतिथिगण भाव विभोर हो उठें. एक्शन एड के सौरभ कुमार, लेखिका ममता मेहरोत्रा, जेनरल फिजिशियन डॉ. चितरंजन, मैक्स लाइफ के नीरज कुमार सिन्हा, पेटल्स क्राफ्ट की उषा झा, लायंस क्लब के धनंजय कुमार ने प्रतियोगियों को पुरस्कृत किया. वहीं लैन्डिसा के विनय ओहदार, कोबरा सिक्यूरिटी के सुजय सौरभ, तब्बसुम अली ने अपने विचार व्यक्त करते हुए इस नेक कार्यक्रम की सराहना की.
कार्यक्रम में परिवहन विभाग द्वारा इन छात्र-छात्राओं के आवागमन के लिए निशुल्क वाहन की व्यवस्था की गयी. वहीं चिड़ियाघर में बच्चों के घूमने के लिए जू-प्रशासन द्वारा ई- रिक्शा की व्यवस्था की गयी एवं रेंज ऑफिसर मनोज कुमार द्वारा आगे भी इस तरह के कर्यक्रम में सहयोग प्रदान करने का आश्वासन दिया गया. कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों का स्वागत विकलांग अधिकार मंच की अध्य्क्ष कुमारी वैष्णवी एवं सचिव दीपक कुमार, संचालन शशांक शेखर एवं धन्यवाद ज्ञापन शाहदा बारी ने किया. मौके पर मो.एकराम, आदर्श पाठक, शुभ राजपूत, प्रेम किशोर, अभिनव आलोक उपस्थित थें. जब मुख्य अतिथि अपने विचार और अनुभव व्यक्त कर रहे थें तो वहीं दिव्यांग बच्चों में शामिल कुछ डेफ के भी बच्चे थें जो बोल-सुन नहीं सकते थें लेकिन उनको इशारों में समझाने-बताने का सराहनीय काम किया अभिनाश ने.
अपने वक्तव्य में संस्था आशा दीप के उमेश जी ने कहा- 'यहाँ इस आयोजन में आकर इन बच्चों को यह भी अनुभव हुआ कि सिर्फ हम ही नहीं और भी हमारे जैसे बच्चे हैं और हममे इतना सारा हुनर है.'
जे.एम. इंस्टीच्यूट के प्रिंसिपल पी.एल.राय ने कहा- 'मैं सभी लोगों से आग्रह करता हूँ कि इस तरह का कार्यक्रम होता रहे तो बच्चों का मनोबल बढ़ता रहेगा. ऐसे आयोजन में विभिन्न संस्थाओं के बच्चे शामिल होते हैं और इंजॉय करते हैं.'
लेखिका-सामाजिक कार्यकर्ता ममता मेहरोत्रा ने कहा - 'मैंने भी जे.एम. इंस्टीच्यूट से दो साल स्पेशल एजुकेशन कोर्स किया हुआ है क्यूंकि मैं खुद दिव्यांग पैदा हुई थी. शुरुआत के 4 साल मेरे पैरों में बहुत परेशानी और दर्द थें. और शायद वो दर्द मेरे अंदर आज भी है जिसने मुझे प्रेरित किया इन दिव्यांग बच्चों से जुड़ने के लिए. इसलिए ऐसे बच्चों को आगे बढ़ने में मेरा जितना योगदान बन पड़ेगा मैं दूंगी.'
विकलांग अधिकार मंच की कुमारी वैष्णवी ने कहा- 'इस आयोजन को सफल बनाने में सबकी भूमिका है. इसमें जो बड़ी मेहनत दिख रही है वो हमारे साथियों की है. हमरे विकलांग अधिकार मंच के सचिव दीपक कुमार जो अक्सर परदे के पीछे रहकर विकलांग अधिकार मंच को मजबूती देते रहे हैं और हमारे साथी वोलेंटियर के सहयोग से यह कार्यक्रम सफल हो पाया.... आज हमलोग जो एक छत के नीचे बैठे तो मुझे यही नज़र आया कि यह कोई कम्पटीशन नहीं है, कम्पटीशन केवल नाम का है. ये ज़ज़्बा ही काफी है जो बच्चे यहाँ आकर हाथों में स्केज लेकर बैठे हैं. हमारा उद्देश्य यही था कि इन बच्चों को एक साथ बैठाकर उनकी प्रतिभा को देखना, मूल्यांकन करना.'
विकलांग अधिकार मंच के सचिव दीपक कुमार ने कहा- 'विकलांग अधिकार मंच' की सोच है कि दिव्यांगों के लिए काम करनेवाले जितने भी संगठन हैं उन सभी का हमें साथ मिले और हम सभी एक साथ मिलकर दिव्यांगों के अधिकारों के लिए काम करें. और सभी की भागीदारी का ही नतीजा है आज का यह सफल कार्यक्रम. मैं विशेष तौर पर तब्बसुम अली को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने कड़ी मेहनत करके इन सारे स्कूल एवं इंस्टीच्यूट के बच्चों को इस आयोजन से जोड़ा.'
चित्रकला प्रतियोगिता के विजेताओं की सूचि
Mentally Challenges (MR)
सीनियर ग्रुप-
फर्स्ट - आयुषी कुमारी, जे.एम.इंस्टीच्यूट
सेकेण्ड- शुभम कुमार - उमंग बाल विकास
थर्ड - चुनचुन कुमार, जे.एम.इंस्टीच्यूट
जूनियर ग्रुप-
फर्स्ट - मेहर अहमद, उमंग बाल विकास
सेकेण्ड- चन्दन कुमार, आशा दीप
थर्ड - कैलाश कुमार, जे.एम.इंस्टीच्यूट
H.I. Hearing Impaired
सीनियर ग्रुप -
फर्स्ट- धनंजय कुमार, जे.एम.इंस्टीच्यूट
सेकेण्ड- कोमल कुमारी, जे.एम.इंस्टीच्यूट
थर्ड- कुलदीप कुमार, आशा दीप एवं अंकित कुमार, जे.एम. इंस्टीच्यूट
जूनियर ग्रुप-
फर्स्ट - हरून, आशा दीप
सेकेण्ड- रौशनी कुमारी, आशा दीप
थर्ड- अभिषेक गुप्ता, आशा दीप
Ortho Impaired
सीनियर ग्रुप-
फर्स्ट- गोरख रजक, जमुई
जूनियर ग्रुप-
फर्स्ट- शुभम कुमार, कुम्हरार
सेकेण्ड- अनिरुद्ध कुमार, कुम्हरार
Reporting : BOLO ZINDAGI
कार्यक्रम में विकलांग अधिकार मंच की अध्यक्षा वैष्णवी एवं सचिव दीपक के साथ 'बोलो ज़िन्दगी' के एडिटर राकेश सिंह 'सोनू' (बीच में) |
ममता मेहरोत्रा एवं अन्य मुख्य अतिथियों द्वारा पुरस्कृत होते बच्चे |
अपने वक्तव्य में संस्था आशा दीप के उमेश जी ने कहा- 'यहाँ इस आयोजन में आकर इन बच्चों को यह भी अनुभव हुआ कि सिर्फ हम ही नहीं और भी हमारे जैसे बच्चे हैं और हममे इतना सारा हुनर है.'
जे.एम. इंस्टीच्यूट के प्रिंसिपल पी.एल.राय ने कहा- 'मैं सभी लोगों से आग्रह करता हूँ कि इस तरह का कार्यक्रम होता रहे तो बच्चों का मनोबल बढ़ता रहेगा. ऐसे आयोजन में विभिन्न संस्थाओं के बच्चे शामिल होते हैं और इंजॉय करते हैं.'
लेखिका-सामाजिक कार्यकर्ता ममता मेहरोत्रा ने कहा - 'मैंने भी जे.एम. इंस्टीच्यूट से दो साल स्पेशल एजुकेशन कोर्स किया हुआ है क्यूंकि मैं खुद दिव्यांग पैदा हुई थी. शुरुआत के 4 साल मेरे पैरों में बहुत परेशानी और दर्द थें. और शायद वो दर्द मेरे अंदर आज भी है जिसने मुझे प्रेरित किया इन दिव्यांग बच्चों से जुड़ने के लिए. इसलिए ऐसे बच्चों को आगे बढ़ने में मेरा जितना योगदान बन पड़ेगा मैं दूंगी.'
विकलांग अधिकार मंच की कुमारी वैष्णवी ने कहा- 'इस आयोजन को सफल बनाने में सबकी भूमिका है. इसमें जो बड़ी मेहनत दिख रही है वो हमारे साथियों की है. हमरे विकलांग अधिकार मंच के सचिव दीपक कुमार जो अक्सर परदे के पीछे रहकर विकलांग अधिकार मंच को मजबूती देते रहे हैं और हमारे साथी वोलेंटियर के सहयोग से यह कार्यक्रम सफल हो पाया.... आज हमलोग जो एक छत के नीचे बैठे तो मुझे यही नज़र आया कि यह कोई कम्पटीशन नहीं है, कम्पटीशन केवल नाम का है. ये ज़ज़्बा ही काफी है जो बच्चे यहाँ आकर हाथों में स्केज लेकर बैठे हैं. हमारा उद्देश्य यही था कि इन बच्चों को एक साथ बैठाकर उनकी प्रतिभा को देखना, मूल्यांकन करना.'
विकलांग अधिकार मंच के सचिव दीपक कुमार ने कहा- 'विकलांग अधिकार मंच' की सोच है कि दिव्यांगों के लिए काम करनेवाले जितने भी संगठन हैं उन सभी का हमें साथ मिले और हम सभी एक साथ मिलकर दिव्यांगों के अधिकारों के लिए काम करें. और सभी की भागीदारी का ही नतीजा है आज का यह सफल कार्यक्रम. मैं विशेष तौर पर तब्बसुम अली को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने कड़ी मेहनत करके इन सारे स्कूल एवं इंस्टीच्यूट के बच्चों को इस आयोजन से जोड़ा.'
कार्यक्रम की कुछ विशेष झलकियां |
Mentally Challenges (MR)
सीनियर ग्रुप-
फर्स्ट - आयुषी कुमारी, जे.एम.इंस्टीच्यूट
सेकेण्ड- शुभम कुमार - उमंग बाल विकास
थर्ड - चुनचुन कुमार, जे.एम.इंस्टीच्यूट
जूनियर ग्रुप-
फर्स्ट - मेहर अहमद, उमंग बाल विकास
सेकेण्ड- चन्दन कुमार, आशा दीप
थर्ड - कैलाश कुमार, जे.एम.इंस्टीच्यूट
H.I. Hearing Impaired
सीनियर ग्रुप -
फर्स्ट- धनंजय कुमार, जे.एम.इंस्टीच्यूट
सेकेण्ड- कोमल कुमारी, जे.एम.इंस्टीच्यूट
थर्ड- कुलदीप कुमार, आशा दीप एवं अंकित कुमार, जे.एम. इंस्टीच्यूट
जूनियर ग्रुप-
फर्स्ट - हरून, आशा दीप
सेकेण्ड- रौशनी कुमारी, आशा दीप
थर्ड- अभिषेक गुप्ता, आशा दीप
Ortho Impaired
सीनियर ग्रुप-
फर्स्ट- गोरख रजक, जमुई
जूनियर ग्रुप-
फर्स्ट- शुभम कुमार, कुम्हरार
सेकेण्ड- अनिरुद्ध कुमार, कुम्हरार
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