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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Wednesday 6 December 2017

पटना पुस्तक मेला में कथाकार एवं पत्रकार गीता श्री के उपन्यास 'हसीनाबाद' का हुआ लोकार्पण

सिटी हलचल
Reporting : BOLO ZINDAGI 


पुस्तक मेला में 'हसीनाबाद' के लॉन्चिंग के वक़्त उपन्यास की लेखिका
 गीता श्री के साथ 'बोलो ज़िन्दगी' के एडिटर राकेश सिंह 'सोनू'
पटना, 6 दिसंबर, ज्ञान भवन, पटना पुस्तक मेला में कथाकार एवं आउटलुक की पूर्व सहायक सम्पादक गीता श्री के पहले उपन्यास 'हसीनाबाद' का लोकार्पण हुआ. वाणी प्रकाशन से आयी इस पुस्तक का लोकार्पण किया जाने-माने साहित्यकार हृषिकेश शुलभ, अवधेश प्रीत एवं पद्मश्री डॉ. उषा किरण खान जी ने.
पुस्तक लोकार्पण के बाद जब लेखिका गीता श्री से पूछा गया कि 'वो कौन सी वजह थी जो आप कहानी लिखते-लिखते उपन्यास की तरफ आयीं?'  इसपर गीता श्री ने कहा- 'मेरी कुछ सीमाएं थीं...पत्रकारिता ने मुझे बांधा, कहानी ने मुझे खोला और उपन्यास ने मुझे विराट कर दिया. ये उपन्यास मेरी रचनात्मकता के विराट होने की यात्रा है. जो चीज बंधी हुई थी, जो मैं नहीं कह पा रही थी अपनी कहानियों में उसे कहने के लिए मुझे 'हसीनाबाद' तक आना पड़ा. पिछले 8 साल पहले एक गरीब,पिछड़ी, गुमनाम बस्ती में घूमते हुए एक पत्रकार के तौर पर मेरी यात्रा थी और उस तकलीफ में मैंने 15 -20 दिन रहकर जो रिसर्च किया उसे मैं कहानी में नहीं समेट सकती थी. कुछ दुःख आपकी पहुँच से बाहर होते हैं तो कुछ दुःख आपकी हथेली, आपकी उंगलियां पकड़ लेते हैं. वो दुःख 8 साल पहले मेरे जीवन से चिपक गया था. चाहे स्त्री होने के नाते, चाहे साहित्यकार होने के नाते जब मैंने उस गुमनाम बस्ती की उन उजाड़ सी औरतों को, निष्कासित आँखों को, उस उदास समय को और उस बेदखल हंसी को मैंने देखा था जिनके लिए जिंदगी के कोई मायने नहीं थे. जिनके लिए जमाना कभी बदला ही नहीं था. जो अपनी मौत तक के इंतज़ार में घिसट-घिसट के जी रही थीं. उनकी वो तकलीफ जो तब मेरे भीतर तक आयी थी उसे मैं कहानी में नहीं समेट सकती थी. चाहती तो छोटी सी कहानी लिखकर मुक्त हो सकती थी लेकिन उपन्यास बहुत बड़ी चुनौती है जिसके लिए तैयार होने में मुझे दो साल लगा.'

उपन्यास 'हसीनाबाद' का लोकार्पण करते हुए दाएं से कथाकार अवधेश प्रीत,
हृषिकेश सुलभ, डॉ. उषा किरण खान, गीता श्री एवं वाणी प्रकाशन की अदिति
 
अपने वक्तव्य में डॉ. उषा किरण खान जी ने कहा कि  'मैं यहाँ ज्याद कुछ नहीं कहूँगी क्यूंकि मैंने गीता श्री का उपन्यास पढ़ा नहीं है मगर मैं जानती हूँ कि पहला जो उपन्यास होता है उसमे लेखक खुद ज्यादा दिखता है. उसके बाद धीरे-धीरे वो और समृद्ध होने लगता है. गीता श्री का व्यक्तित्व, उसका विचार, उसके भाव सब समृद्ध होंगे लेकिन यह उपन्यास जरूर मिल का पत्थर साबित होगा क्यूंकि यह विशेष प्रकार का उपन्यास है जिसमे कला है ,संगीत है, इतिहास इसके दिलो-दिमाग में घूम रहा है और उसके बाद इस उपन्यास ने राजनीति तक की यात्रा की है.'
वहीं हृषिकेश सुलभ ने कहा कि  'लगभग डेढ़ साल पहले दिल्ली के त्रिवेणी सभागार के कॉफी हॉउस में बैठा हुआ मैं गीता के साथ कॉफी पी रहा था. मुझे वो दोपहर याद है कि कैसे लबालब अपने उपन्यास से भरी हुई गीता ने अपने पहले उपन्यास के लिखे जाने की सूचना ही सिर्फ नहीं दी थी बल्कि इसके कई पात्रों से मेरी मुलाकात भी करवाई थी. यह उपन्यास इतना जरूर आश्वस्त करता है कि गीता जिस तरह का लेखन करती रही हैं और स्त्रियों के जीवन के कई ऐसे पहलु जो बिलकुल सामन्य लगते हैं उसे वो जिस विस्फोटक तरीके से उजागर करती रही हैं उस क्रम में एक लेखक को जो बदनामियाँ झेलनी पड़ती हैं वो बदनामियाँ भी गीता ने उठाई हैं. एक लुप्त और बदनाम बस्ती की कहानी इस उपन्यास में है.'
वरिष्ठ कथाकार एवं दैनिक हिंदुस्तान के पूर्व सहायक संपादक अवधेश प्रीत ने कहा कि  'पिछले कुछ वर्षों में जिन कथा लेखिकाओं ने हिंदी कथा परिदृश्य पर एक हलचल पैदा की, अपनी उपस्थिति बेहद मजबूती के साथ दर्ज की उनमे से ही गीता श्री हैं. इनकी लगभग तमाम कहानियां मैं पढ़ चुका हूँ. मैं गीता श्री के कथा लेखन को एक वाक्य में कहना चाहूंगा कि एक नयी स्त्री के अन्वेषण की यात्रा में निकली हुई कहानी. गीता श्री की कविताओं की स्त्रियां, कहानियों की स्त्रियों की तरह ही मैं उम्मीद करता हूँ कि इस उपन्यास में भी एक स्त्री बहुत ही ताक़त के साथ उभरकर सामने आयी होगी. सबसे दिलचस्प बात ये है इनकी कहानियों में कि वह ऐसे ऐसे प्रसंगों को और ऐसे-ऐसे तथ्यों को सामने लाती हैं जिनपर कई बार यकीं नहीं होता कि इस तरीके से भी लिखा जा सकता है. गीता श्री ने बहुत कम समय में अपनी उपस्थिति दर्ज की है तो इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि उन्होंने कहानी लिखने के लिए कोई गढ़ा-गढाया फॉर्मूला नहीं अपनाया. उन्होंने अपनी तरफ से अपनी लीक निर्मित की है और उस लीक पर चलते हुए तमाम विरोधों को झेलते हुए दृढ़ता से आगे बढ़ी हैं.'
'हसीनाबाद' के जन्म पर प्रकाश डालते हुए वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिती ने कहा कि 'हसीनाबाद की कहानी शायद दो साल पहले शुरू हुई जब पता चला की गीता जी एक ऐसे सब्जेक्ट पर लिखना चाहती हैं लौंग फॉर्मेट में जो कहीं ना कहीं उन पात्रों को, उस जगह को उजागर करता है जिसे बड़े शहरों में बैठा सभ्य समाज एक क्लिनिकल क्लींजिंग के तहत बुरा मानता है. हम स्क्रिप्ट देखकर रोमांचित थें क्यूंकि ये पहला उपन्यास गीता श्री का आ रहा था और सभी यह जानना चाहते थें कि जब एक कहानीकार उपन्यासकार बनता है तो क्या होता है. बहुत उम्दा एडिटिंग के साथ हमने इस किताब को निकाला है और मुझे पूरी उम्मीद है कि पाठक इस उपन्यास को एक किताब के रूप में ना पढ़कर एक जर्नी के रूप में देख पाएंगे. मुझे लगता है कि आनेवाले समय में 'हसीनाबाद' पर कोई धारावाहिक या फिल्म बहुत जल्दी बनेगी क्यूंकि घटनाक्रम एक दृश्य की तरह आपकी निगाह के सामने से गुजरता चला जाता है.'
अंत में हसीनाबाद के फेमस डायलॉग 'गोलमी सपने देखती नहीं बुनती है बाबू....' बोलने के साथ ही गीता श्री ने 'बोलो ज़िन्दगी' को बताया कि 'यह एक नर्तकी की कथा है जो ऊँचे सपने देखती है, बहुत ऊपर पहुँचने की चाहत रखती है, लेकिन आगे जाकर उसको पता चलता है कि दूसरों की बनाई जमीं पर बहुत धोखा ही धोखा है और फिर वहां से वो वापस लौटकर अपनी जमीं तैयार करने का हौसला दिखाती  है.' 

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