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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Sunday, 10 December 2017

वरिष्ठ पत्रकार अवधेश प्रीत के पहले उपन्यास 'अशोक राजपथ' का हुआ लोकार्पण

सिटी हलचल
By : BOLO ZINDAGI

'अशोक राजपथ' उपन्यास के लेखक अवधेश प्रीत (दाएं)
के साथ 'बोलो जिंदगी' के एडिटर 'राकेश सिंह 'सोनू' 
पटना, 10 दिसंबर, ज्ञान भवन, पटना पुस्तक मेला में दैनिक हिंदुस्तान के पूर्व सहायक सम्पादक एवं कथाकार अवधेश प्रीत जी के उपन्यास 'अशोक राजपथ' का लोकार्पण किया गया. यह अवधेश प्रीत जी का पहला उपन्यास है, इसके पहले उनके 6 कहानी संग्रह आ चुके हैं. और विभिन्न विधाओं की पुस्तकें अभी आने वाली हैं. अशोक राजपथ के लोकार्पण के बाद वरिष्ठ कवि अरुण कमल ने अपने वक्तव्य में कहा कि 'दिन प्रतिदिन मैं बदलते हुए अशोक राजपथ को देखता चला आ रहा हूँ. अवधेश प्रीत जी ने उसी अशोक राजपथ के हलचल भरे जीवन को, विद्यार्थियों के जीवन को, परिसर के जीवन को और परिसर व राजनीति के अंतःसंबंधों को बहुत बढ़िया भाषा में उद्घाटित किया है. अवधेश प्रीत शानदार कलाकार हैं और उन्होंने जो अशोक राजपथ के भीड़ भरे जीवन को बहुत ही व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत किया है उसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ.'
वहीं अवधेश प्रीत ने अपने सम्बोधन में कहा कि 'मैं इस उपन्यास के बाबत बहुत कुछ नहीं बोलना चाहता क्यूंकि मैं यह मानता हूँ कि लेखक की बात उसकी रचनाएँ बोलती हैं. सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ इस अवसर पर कि हिंदी में युवा छात्र राजनीति को लेकर के बहुत कम उपन्यास लिखे गए हैं. दूसरी बात ये है कि बिहार में जो छात्र आंदोलन होते रहे हैं और उसी के बाद कई तरह की परिणीतियाँ सामाजिक जीवन में, सत्ता के जीवन में आयी हैं उसके फलस्वरूप सामाजिक न्याय, सामाजिक परिवर्तन जैसी चीजें भी आयीं तो इन तमाम चीजों के पीछे एक युवा शक्ति का भी हाथ रहा है. आप जानते हैं कि जब सत्ताएं बदलती हैं तो सत्ता की संस्कृतियां भी बदलती हैं. कुछ ये अक्स भी इस उपन्यास में देखने को मिलेगा.'
जब 'बोलो जिंदगी' ने लेखक अवधेश प्रीत से उपन्यास की कहानी को संक्षेप में जानना चाहा तो अवधेश प्रीत ने बताया कि 'इस उपन्यास के जरिये ये दिखाया गया है कि छात्र राजनीति को लेकर खासतौर से सामाजिक परिवर्तन की जो लड़ाई है, उस लड़ाई में किस तरीके से छात्रों का इस्तेमाल होता है और कैसे मूल्यों की राजनीति ध्वस्त होती है. लेकिन उसी मूल्य की राजनीति की रक्षा के लिए लगातार एक अन्वेषण की जो प्रक्रिया युवा के मन में है वह केंद्रीय तत्व है इस उपन्यास का और मैं कह सकता हूँ कि यह उपन्यास छात्रों के जीवन की हलचलों, शिक्षा में आ रही गिरावट और आज चल रहे कोचिंग संस्थानों इत्यादि को बड़े फलक पर रखकर लिखा गया है जिसमे एक नए तरह का आस्वाद भी मिलेगा और जो लम्बे समय से छात्र राजनीति पर कोई उपन्यास नहीं आया है उसकी कमी को भी पूरा करेगा.'

लोकार्पण समारोह की कुछ झलकियां 
'बोलो जिंदगी' ने पूछा कि  'उपन्यास का नाम 'अशोक राजपथ' ही क्यों ?' तो इसपर अवधेश प्रीत ने कहा कि 'पटना की जो बनावट है उसमे जो अशोक राजपथ है, उसी अशोक राजपथ पर पटना विश्विधालय के सारे शैक्षणिक संस्थान स्थित हैं. अशोक राजपथ जो सड़क है वो छात्रों की भी और शैक्षणिक गतिविधियों की भी गवाह हुआ करती है.'

लोकार्पण समारोह में मौजूद अवधेश प्रीत की जीवन संगिनी डॉ. स्नेहलता सिन्हा जी से जब 'बोलो जिंदगी' ने यह कहा कि एक पत्नी और पाठक के रूप में आप 'अशोकराजपथ' के निर्माण पर प्रकाश डालें तो उन्होंने कहा कि 'अवधेश जी जितना भी लिखते गए हैं उसकी मैं पांडुलिपियां पढ़ती गयी हूँ...वो दो पेज लिखें या चार पेज लिखें हम लगातार उनके उपन्यास के साथ ही रहे हैं और हमको वो सुनाते रहे हैं तभी किताब आगे बढ़ी है. एक पाठिका के रूप में अगर मैं बताऊँ तो उसके सभी पात्र जिवंत लगे हैं और अशोक राजपथ में जो कुछ भी होता रहा है उसे वो विस्तार से लिखे हैं. जब दो-दो पेज लिखकर वो सुनाते थें तब एक पाठक के रूप में जो कमियां मुझे नज़र आती थीं उसमे थोड़ा बहुत हम सुझाव देते थें....लेकिन वो लेखक ठहरें और हम पाठक तो जो सुझाव उन्हें सही लगा उसे वो मान लेते गएँ.'
अशोक राजपथ के अलावा भी अन्य दो पत्रकार लेखकों की पुस्तकों का लोकार्पण हुआ जिनमे से विकास कुमार झा जी का उपन्यास 'गयासुर संधान' और पुष्यमित्र जी की इतिहास के ऊपर आयी पुस्तक 'चम्पारण 1917' है. जहाँ 'गयासुर संधान' उपन्यास में बिहार के गया शहर की महिमा का बखान मिलेगा वहीँ 'चम्पारण 1917' में गाँधी जी के सत्याग्रह आंदोलन और तब के चम्पारण के इतिहास से पाठक रु-ब-रु होंगे.

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