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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Thursday, 12 March 2020

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में पटना में बाईक रैली Ride For Women's Safety का आयोजन किया गया




"जिस तरह से मनचले बाइक पर घूमते हुए राह चलती महिलाओं के गले से चैन छीनते हैं, उनकी बॉडी टच करते हैं तो ऐसे में यदि आज ये महिलाएं वुमेन सेफ्टी का सन्देश लेकर दुपहिया वाहनों पर निकली हैं तो यह उन मनचलों के लिए साफ़ सन्देश है कि देखो हम महिलाएं अब सशक्त हो चुकी हैं, तुम साइड हो जाओ हमें आगे बढ़ना है...."  यह कहना था अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर उपस्थित मुख्य अतिथि महिला थाना पटना की थानाध्यक्ष आरती जैसवाल का.
    बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन और स्कॉलर्स एबोड के संयुक्त तत्वावधान में इस 8 मार्च, 2020 को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में समाज को जागरूक करने हेतु पटना में एक बाईक रैली Ride For Women's Safety का आयोजन किया गया जिसमे 15-20 की संख्या में स्टूडेंट्स लड़कियों से लेकर वर्किंग वुमेन ने स्कूटी-बाईक चलाते हुए महिला सुरक्षा को लेकर जागरूकता सन्देश दिया.

8 मार्च की सुबह 8:00 बजे महिला बाईक रैली को मुख्य अतिथि महिला थाना पटना की थानाध्यक्ष आरती जायसवाल, विशिष्ट अतिथि स्कॉलर्स एबोड की प्राचार्या डॉ. बी. प्रियम. और मीडिया एक्सपर्ट रत्ना पुरकायस्थ ने इको पार्क गेट नं. 1 से हरी झंडी देकर रवाना किया गया जिसका समापन गांधी मैदान कारगिल चौक के पास हुआ. इस रैली को लीड किया साइकिल से पूरे देश का भ्रमण कर चुकीं सोशल एक्टिविस्ट तबस्सुम अली ने.

कार्यक्रम प्रभारी प्रीतम कुमार ने रैली में शामिल सभी महिलाओं का स्वागत किया. वहीं बोलो ज़िन्दगी के संस्थापक राकेश सिंह 'सोनू' ने बताया कि "पिछली बार हमलोगों ने महिला ऑटोरिक्शा चालकों को प्रोत्साहित करने हेतु महिला ऑटोरिक्शा स्वाभिमान रैली की थी और इस बार हमने महिला सुरक्षा के प्रति जागरूकता लाने के लिए यह महिला बाइक रैली का आयोजन किया है."

मौके पर मुख्य अतिथि आरती जायसवाल ने कहा कि "जब मैं पुलिस सेवा में आयी और जब मेरी पोस्टिंग पूर्णिया जिले में हुई थी तो उस वक़्त मैं यामाहा बाइक चलाती थी तब लोग मुझे हैरत भरी निगाहों से देखते थें कि अरे औरत बाइक चला के जा रही है..."
विशिष्ट अतिथि डॉ. बी. प्रियम ने अपने वक्तव्य में कहा कि "आज महिलाओं को एहसास हो चुका है कि वो कितनी पावरफुल हैं उनको अब एहसास कराने की जरूरत नहीं है और अब महिलाएं सिर्फ दुपहिया वाहन ही नहीं चला सकतीं बल्कि अब सबकुछ कर सकती हैं."

वहीँ डॉ. रत्ना पुरकायस्थ ने कहा "महिलाएं सशक्त हैं मगर मुझे लगता है कि वो अपनी ताकत पहचान नहीं पाती हैं क्यूंकि जब एक महिला घर संभालती हैं, बाहर नौकरी करती है तो इससे ज्यादा और क्या सबूत है कि वो मजबूत नहीं हैं."


इस वुमेन सेफ्टी बाइक रैली में शामिल होनेवाली महिलाओं के नाम हैं - तबस्सुम अली, नूतन कुमारी, हिना, अमरूता सोनी, राधा कुमारी, रेखा, राधा सिन्हा, मिनाक्षी, काकोली, हिमांशु मूंचाल, किरण कुमारी, अर्चना झा, मिन्की सिन्हा, शिखा सोनिया, रजनी कुमारी, बिन्नी बाला, शर्मिष्ठा मित्रा, अर्चना कुमारी एवं अन्य. इस कार्यक्रम में बोलो ज़िन्दगी के सदस्य दीपक कुमार का भी सराहनीय सहयोग रहा.

Tuesday, 28 January 2020

बोलो ज़िन्दगी फैमिली ऑफ़ द वीक : यू ब्लड बैंक की संस्थापिका शिखा मेहता की फैमिली, धवलपुरा, पटनासिटी



रविवार की शाम 26 जनवरी, रिपब्लिक डे के दिन 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटनासिटी के धवलपुरा इलाके में संस्था यू ब्लड बैंक की संचालिका शिखा मेहता के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में पटना सचिवालय में कार्यरत एवं सचिवालय कोऑपरेटिव बैंक के डायरेक्टर उदय कुमार भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों शिखा जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.  26 जनवरी, रिपब्लिक डे के मौके पर भी शिखा जी की टीम ने पटना के खुदा बक्स लायब्रेरी के पास बिहार यंग मेंस में रक्तदान शिविर का आयोजन किया था जहाँ निशुल्क नेत्र जाँच की व्यवस्था भी कराई गयी थी.

फैमली परिचय- शिखा अभी पटना यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट हैं, सोशोलॉजी से पीजी कर रही हैं. दो बहन और एक भाई में दूसरे नंबर पर हैं. छोटा भाई अभिनव शुभम कोटा में रहकर मेडिकल की तैयारी कर रहा है. बड़ी बहन मेधा की शादी हो चुकी है. पापा सुधीर कुमार कैमिकल का बिजनेस करते हैं. माँ अनीता देवी हाउसवाइफ हैं.

यू ब्लड बैंक ऑर्गेनाइजेशन की शुरुआत - संस्था यू ब्लड बैंक यानि यूनिवर्सल ब्लड बैंक की संस्थापिका शिखा ने बताया कि "28 सितंबर, 2016 में इसकी शुरुआत हुई थी. पहले अर्जेन्ट में किसी की मदद होती थी लेकिन अब हमलोग कैम्पेन के द्वारा करते हैं ताकि कभी रात के एक-दो बजे भी किसी ब्लड बैंक को हम हेल्प पहुंचा सकें." जब शिखा ने यू ब्लड बैंक की स्थापना की तो उन्हें घर-परिवार का भी अच्छा सपोर्ट मिला. उसी वक़्त ध्यान आया कि एक-दो जन के यूँ बल्ड दे देने से काम चलेगा नहीं इसलिए इनकी टीम ने ब्लड डोनेशन कैम्प लगाना शुरू किया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग अवेयर होकर रक्तदान कर सकें. इनका फोकस ज्यादातर युवाओं को इस मुहीम से जोड़ने का रहा और फिर उन्हें प्रेरित करके ये जितने भी ब्लड बैंक हैं पटना में सभी को ब्लड मुहैया कराते हैं, यह सोचकर कि किसी जरूरतमंद को वक़्त पर काम आये, ब्लड की कमी से किसी की मृत्यु ना हो.

प्रेरणा कहाँ से मिली ? - छोटा भाई अभिनव शुभम प्रेरणास्रोत बना. जब वो कोटा में ही था तो उसने देखा कि वहां ब्लड की काफी जरूरत है और कई ग्रुप ब्लड डोनेशन के लिए काम कर रहे हैं. वो चाहता था कि शिखा उसी तरह पटना में भी एक ग्रुप तैयार करें. पहले उसने कोटा में रहते हुए ही एक व्हाट्सप ग्रुप बनाया जिसके तहत एक-दो महीने काफी सक्रीय रहा. कभी वो तो कभी उसके दोस्त ब्लड डोनेट करने चले जाते थें. जब उसने शिखा को बताया तो उन्हें लगा कि ये हमसे होगा नहीं. फिर भाई ने समझाते हुए कहा कि "एक बार तुम ट्राई करके देखो." तब पहले शिखा ने पटना में अपना अलग एक व्हाट्सप ग्रुप बनाया और पहली बार 28 सितंबर को एक कैंसर पीड़ित महिला के लिए रक्तदान किया. ये बिल्कुल नया अनुभव था शिखा के लिए कि आप जिसे जानते नहीं हो उसे ब्लड देकर उसकी जान बचाते हो. इनके पापा के मन में चूँकि शुरू से समाज सेवा की भावना रही है इसलिए वो इनके काम को बढ़ावा देते हैं. जहाँ कहीं भी बैठते हैं तो बेटी के इस काम के बारे में बताते हैं हर किसी को कि "मेरी बेटी ऐसा कर रही, आपको भी करना चाहिए."

क्या मुश्किलें आयीं ? - शिखा को शुरुआत में समझ में नहीं आ रहा था कि शिविर आयोजित कर रहे हैं तो लोगों को कैसे एकत्रित करें. फिर सोशल मीडिया आधार बना. उसके जरिये लोगों को जोड़ना शुरू किया गया. सबसे पहले शिखा ने फैमिली मेंबर को जोड़ा. कोई रोक-टोक तो नहीं हुई...? यह पूछे जाने पर शिखा कहती हैं, "अगर आप समाज के लिए कुछ करने निकलते हैं तो पोसिटिव-निगेटिव दोनों बातें देखने को मिलती हैं लेकिन जब घर का सपोर्ट हो और खुद का विश्वास हो तो आपका हौसला बढ़ जाता है."

सहयोगी - यू ब्लड बैंक संस्था के अभी 5 ग्रुप हैं. टीम की बात करें तो शिखा के सहयोगियों की संख्या 15 से 20 है जिनमे संतोष पाठक, सत्यदीप पाठक, अमरजीत कुमार, आमोद कुमार शेखावत, अविनाश कुमार मेहता, प्रेमचंद कुमार, पुष्पलता कुमारी, राजेश गुप्ता, मनोज कुमार मंडल, रंजना मेहता, विवेक कुमार, आशीष यादव ,आलोक कुमार, ब्यूटी सिंह, सृष्टि कुमारी, मनोज यादव, सूरज सिंह तोमर का वोलेंटियर के रूप में बहुत अच्छा सहयोग मिलता है. लेकिन जो ब्लड डोनेट करनेवाले सदस्य हैं उनकी संख्या हजार से ऊपर है. इसके आलावा बाल लीला गुरुद्वारा, पटना साहिब से बाबा कश्मीर सिंह भूरीवाले, बाबा गुरविंदर सिंह एवं सामाजिक कार्यों से जुड़े सभी युवाओं के लिए अभिभावक के रूप में गुरमीत सिंह जी का हमेशा सहयोग रहता है यू ब्लड बैंक के नेक कार्य में.

आगे का लक्ष्य -  शिखा बताती हैं, "शिविर करने से लोग जागरूक तो होते ही हैं और एक प्लस पॉइन्ट ये होता है कि हर तीन महीने पर रक्तदान करने की अच्छी लत उन्हें लग जाती है. हमारी इच्छा है कि वैसे गांव-कस्बों में जहाँ लोग रक्तदान को लेकर कुछ सोचते तक नहीं हैं वहां जाकर हम ब्लड डोनेशन कैम्प लगाएं, उनके बीच डोर टू डोर जाकर जागरूक करें कि आपके गांव में भी अगर किसी की ब्लड की कमी से मृत्यु हो जाती होगी, प्रसव के दौरान कई महिलाएं ब्लड की कमी की वजह से दम तोड़ देती हैं तो अगर आप इस चीज में आगे आएंगे तो कई लोगों की जान बचा सकते हैं." इसी लक्ष्य को लेकर 2020 में शिखा जी कि टीम ने पहली बार पटना से बाहर फतुहा इलाके में भी रक्तदान शिविर आयोजित किया.

हॉबी - शिखा गाने सुनने, गार्डनिंग और फोटोग्राफी का भी शौक रखती हैं. इनके पापा भी पुराने गाने बहुत सुनते हैं. उन्हें बागवानी का भी शौक है तभी अपने घर की छत पर फल-फूल और शब्जियों के कई पौधे लगा रखे हैं जैसे निम्बू, सपाटू, जामुन, अमरुद, आम का पेड़, सब्जी में टमाटर, नेनुआ, कद्दू, भिंडी, पालक, मूली, धनिया इत्यादि.


स्पेशल मोमेंट - बोलो ज़िन्दगी की फरमाईश पर शिखा मेहता ने एक गाना गुनगुनाकर सुनाया. जब टीम कि नज़र घर में राखी कुछ ट्रॉफियों पर गयीं तो शिखा के पिता जी ने फख्र से कहा कि "ये सम्मान मेरी बेटी को मिले हैं उसके नेक कार्यों को देखते हुए...." और यह कहते हुए बोलो ज़िन्दगी की टीम ने करीब से महसूस किया अपनी बेटी की सराहना करते हुए एक पिता की आँखों में दिख रही खास चमक को जो गर्व का एहसास करा रही थी. शिखा और उनकी फैमिली से मिलकर बोलो ज़िन्दगी टीम के साथ आये स्पेशल गेस्ट उदय कुमार ने शिखा की तारीफ करते हुए यह आश्वासन भी दिया कि, आपकी योजनाओं और मुहीम को हम सरकार तक पहुँचाने में मदद करेंगे.

अब रात हो चुकी थी और बोलो ज़िन्दगी की टीम यहाँ से विदा लेने ही वाली थी कि शिखा के पिता जी के आग्रह पर बोलो ज़िन्दगी की टीम सीढ़ियां चढ़ते हुए घर के छत पर पहुँची और उनकी खूबसूरत बागवानी कला का मुआयना करके ही वापस लौटी.

 (इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है.)















Tuesday, 21 January 2020

बोलो ज़िन्दगी फैमिली ऑफ़ द वीक : फाइनआर्ट टीचर उपासना दत्ता की फैमिली, शास्त्रीनगर, पटना



18 जनवरी, शनिवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के बेलीरोड, शास्त्रीनगर इलाके में फाइनआर्ट टीचर उपासना दत्ता जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में ह्यूमन बूस्ट संस्था की सेक्रेट्री हेमलता भारती भी शामिल हुईं. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों उपासना दत्ता जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- उपासना दत्ता फाइन आर्ट की टीचर हैं जिन्होंने आइजीएमएस, डीएवी में काम किया है. फ़िलहाल फ्रीलांस करती हैं. पेंटिंग बहुत पसंद है. खासकर मधुबनी पेंटिंग और टिकुली आर्ट पर ज्यादा फोकस रहता है. बच्चों को सिखाने का क्रम भी चलता रहता है. घर में शिल्पायन नाम की संस्था के तहत सैटरडे- संडे को क्लास लेती हैं. कई ऐसे अभावग्रस्त बच्चे हैं जिन्हे फ्री में भी सिखाती हैं. इनके अपार्टमेंट के बहुत से बच्चों ने भी इनसे सीखा है. इनके खुद के बच्चे भी इन्ही बच्चों के ग्रुप में बैठकर सीखते हैं और एक सुंदर सा मौहौल बना रहता है. भागलपुर से बिलॉन्ग करती हैं लेकिन अभी मायका पटना सिटी में है. पिता जी बिहार सर्वेक्षण विभाग में थें, अब रिटायर्ड हैं. पति अनूप कुमार दत्ता एलआईसी में कार्यरत हैं. इनकी छोटी उम्र में ही माँ का स्वर्गवास हो गया था. पहले बहुत सारे शौक थें लेकिन पिता के अचानक गुजर जाने से जिम्मेदारियों ने मौका नहीं दिया. बड़ा बेटा दिव्यरूप दत्ता और छोटा बेटा कार्तिकेय दत्ता 5 वीं में तो घर की लाडली बेटी जॉयति क्लास 2 में है. तीनों ही संत एल्बर्ट स्कूल में पढ़ते हैं.

पूरे परिवार का टैलेंट - पेंटिंग के अलावा उपासना दत्ता ने इलाहबाद यूनिवर्सिटी के तहत गुलाटी जी महाराज के सानिध्य में शास्त्रीय संगीत भी सीखा है. सुधा कपूर जी ने भी उन्हें बहुत अच्छी शिक्षा दी है. गायन अब छूट गया है लेकिन कुछ भूली नहीं हैं और चाहती हैं कि ये परम्परा इनके बच्चों तक जाये और उन्हें कुछ हासिल हो सके. ये मानती हैं कि म्यूज़िक और पेंटिंग में बहुत सुकून है. इनके पति बचपन में जब स्कूल में गाना गाते थें तो टीचर चाव से सुनते थें. बचपन से ही पेंटिंग और क्विज में पार्टिसिपेट करने का बहुत शौक था. बड़ा बेटा दिव्यरूप चेस बहुत अच्छा खेलता है. जहाँ जहाँ उसने पार्टिसिपेट किया प्राइज लेकर ही आया. छोटा बेटा कार्तिकेय माइकल जैक्शन का डांस फॉलो करके खुद से ही सीखता रहता है, पेंटिंग बहुत अच्छा कर लेता है. कई पेंटिंग कॉम्पटीशन में इनाम जीते हैं. खुद का एक यू ट्यूब चैनल भी है गेमिंग मास्टर के नाम से जिसमे ये गेमिंग के वीडियोस डालते हैं.  छोटी बेटी जॉयति दत्ता को सिंगिंग, डांसिंग और पेंटिंग बहुत पसंद है. कम उम्र में ही उसे कुकिंग का शौक जग गया है. एक बार उपासना जी बीमार पड़ीं और फीवर से उठ नहीं पा रही थीं तो जॉयति ने कहा "माँ मैं बना देती हूँ..." जबतक उपासना जी कुछ समझ पातीं तबतक जॉयति सत्तू पुरी बनाकर झट से ले आयी.


उपासना दत्ता का स्ट्रगल - बचपन में बहुत ज्यादा तबियत खराब होने की वजह से सबने कहा कि अब ये बच नहीं पायेगी. डॉक्टर्स के फॉल्ट और बहुत सारी वजहों से प्रॉब्लम आयी थी. लेकिन फाइनली कई जगह से थक हारकर दिल्ली एम्स में जब गयीं तो डॉक्टर अजय रॉय चौधरी की वजह से नया जीवन मिला. फिर पढ़ाई के बाद तुरंत शादी हो गयी. शादी के बाद एक ट्विस्ट आया लाइफ में स्टेप मदर इन लॉ का होना. उसी दौरान हसबैंड का बाहर ट्रांसफर हो जाना जैसे कई सारे फेजेस को स्ट्रॉन्ग्ली फेस किया. कई बार सोचा कि अब नहीं हो पायेगा, लेकिन हसबैंड के सपोर्ट से बच्चों के लिए आगे बढ़ती गयीं और निरंतर प्रयासरत रहीं. उपासना जी कहती हैं , "उसी हालातों में मैं खुद को कहीं डिस्टर्ब न पाऊं इसके लिए मैंने पेंटिंग जारी रखी और इससे मेरी घर की ज़रूरतें भी पूरी हुईं. क्यूंकि कई बार हसबैंड की बीमारी ने भी मुझे हालातों से लड़ने लायक बनाया. लाइफ में बहुत अप एन्ड डाउन देखें लेकिन पेंटिंग में रमी रहती हूँ तब सारे दर्द भूल जाती हूँ."


स्पेशल मोमेंट - बोलो ज़िन्दगी टीम की फरमाईश पर जहाँ उपासना जी ने अपनी आवाज में कुछ गीत सुनाएँ तो वहीँ छोटे बेटे कार्तिकेय ने माइकल जैक्शन डांस और बेटी जॉयति ने हारमोनियम पर मधुर धुन बजाकर सुनाया. उपासना जी ने हर तरह की बनायीं अपनी कुछ पेंटिंग्स का दीदार कराया तो
ओवर ऑल इस फैमिली पैक प्रदर्शन को देखकर बोलो ज़िन्दगी टीम और स्पेशल गेस्ट के रूप में मौजूद हेमलता भारती जी ने इस फैमिली की खूब प्रशंसा की. चूँकि घर में बोलो ज़िन्दगी टीम के प्रवेश करने के साथ ही उसका स्वागत चाय-नाश्ते से हो चुका था और जैसे ही कार्यक्रम खत्म करते ही टीम के मेंबर्स विदा लेने को उठें तो उपासना जी ने सबको डायनिंग टेबल पर आमंत्रित करने के साथ ही रात का खाना परोसने की तैयारी शुरू कर दी. खाने के लिए जब टीम ने मना किया तो घर की लाडली नन्ही जॉयति ने बड़ी ही मासूमियत के साथ कहा कि "अरे वाह, आप ऐसे ही चले जायेंगे ! फिर हमारी मम्मी ने जो इतनी मेहनत से सबके लिए खाना बनाया है वो तो वेस्ट जायेगा ना..." उसका इतना प्यारा आग्रह सुनकर पूरी टीम के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी और अब कोई भी प्यारी जॉयति को नाराज नहीं करना चाहता था. खाने में वेज और नॉनवेज दोनों की ही व्यवस्था थी, बोनस में गुलाबजामुन भी था . उपासना जी के हाथ से बने स्वादिष्ट व्यंजनों का लुफ्त उठाने के बाद रात में बोलो जिंदगी की टीम अपने गंतव्य की ओर लौट पड़ी.
(इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है.)







Monday, 13 January 2020

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : स्टोरी टेलर शाइस्ता अंजुम की फैमली, गुलजारबाग़, पटनासिटी




पिछले दिनों 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटनासिटी के गुलजारबाग़ इलाके में सोशल एक्टिविस्ट एवं स्टोरी टेलर शाइस्ता अंजुम जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में पटना हाईकोर्ट की एडवोकेट एवं सोशल एक्टिविस्ट मधु श्रीवास्तव भी शामिल हुईं. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों शाइस्ता अंजुम जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- शाइस्ता अंजुम- मायका और ससुराल दोनों ही भागलपुर में है. पोलिटिकल साइंस और वीमेन स्टडीस इन दो सब्जेक्ट से एम.ए. किया है. शौक - बच्चों को कहानियां सुनाना, लोगों की मदद करना, गाना सुनना, प्लांट लगाना, पशु-पक्षियों से बहुत लगाव है तभी मेरे घर में फिश, पैरोट, रैबिट और लव बर्ड ये सभी अब मेरे घर के सदस्य हैं. नए-नए तरह के डिश बनाने का भी शौक है.
डॉ. मो. रब्बान अली  - ओरियंटल कॉलेज में वाइस प्रिंसिपल हैं और पोलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. मैट्रिक तक संस्कृत में पढ़े हैं, स्कूली दिनों में क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था. अभी पैदल चलना, बैडमिंटन खेलना, अख़बार पढ़ना शौक में शामिल है. बहुत पहले चोरी-छिपे शेरो-शायरी लिखने का बहुत शौक चढ़ा था और जब से पत्नी का साथ मिला तो वो छूट चूका शौक फिर से जवां हो उठा. क्यूंकि पत्नी प्रेरित करती हैं आज भी लिखने के लिए तो थोड़ा बहुत लिख लेते हैं. मैं सैड वाली चीजें ज्यादा लिखते हैं उसकी वजह ये कि हमने ज़िन्दगी में उदासियाँ बहुत देखी हैं.
बच्चे- मो. अनस रब्बानी, क्लास 8, संत. ऐंस हाई स्कूल, गेमिंग का शौक है, यू ट्यूब पर गेमिंग का चैनल बनाने की तयारी में लगे हैं. बास्केटबॉल और पेंटिंग में भी रूचि है लेकिन इधर पढ़ाई के लोड की वजह से इन सब से अभी दूरी है.
आमना रब्बानी- मगध महिला कॉलेज, पटना यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन लास्ट ईयर की स्टूडेंट हैं. केमेस्ट्री ऑनर्स है. स्कूल में बहुत सारे कॉप्टीशन में पार्टिसिपेट किया. डिबेट किया. बेस्ट स्टूडेंट और स्केल हेड रह चुकी हूँ. इंजीनियरिंग मेरा ड्रीम था लेकिन आर्थिक प्रॉब्लम की वजह से वो मैं कर नहीं पायी.स्कूल में पेंटिंग में रूचि थी, थोड़ा बहुत सिंगिंग का भी शौक रखती हूँ. टिकटॉक वीडियो भी बहुत सारे बनाये हैं.

शाइस्ता जी का स्ट्रगल - शाइस्ता जी इस बाबत बताती हैं , "जब अपने मायके भागलपुर में थी तो स्कूली दिनों में तब वहां लाइट रहती नहीं थी लेकिन पढ़ने का बहुत शौक था. मेरी पूरी फैमिली पर्दा प्रथा वाली थी. हमलोग सैय्यद बिरादरी से आते हैं तो तब यह था कि लड़कियां बाहर नहीं जाएँगी. मुझे याद है कि मेरी अम्मी को अगर चूड़ी भी पहननी होती तो चूड़ीवाली हमलोगों के घर में आती थी. इस तरह मैंने सबको तब पर्दे में ही देखा. लेकिन मेरा थोड़ा सा अलग ही दिमाग था. मैं पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा मशगूल रहती तो मेरी अम्मी बोलतीं कि पता नहीं ये कौन तरह की लड़की पैदा हो गयी है. अब मेरे पापा और अम्मी नहीं हैं सिर्फ भाई लोग हैं. तब मैं पढ़ने के साथ ही साथ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगी क्यूंकि मैं अपने घर की आर्थिक स्थिति ठीक करना चाहती थी. तब मेरे पापा का मेजर एक्सीडेंट हो गया था और उनका बाहर निकलना बंद हो गया. घर में पापा, अम्मी और हम 6 भाई-बहन थें. लेकिन उस वक़्त हमें कोई सपोर्ट नहीं मिला. तब घर को सँभालने के लिए मुझे बाहर निकलना पड़ा. अपने भाई-बहनों को पढ़ाने के साथ- साथ खुद भी पढ़ती गयी.


कहानी लेखन की शुरुआत - शाइस्ता जी कहती हैं, "आजकल के बच्चों के पास मनोरंजन का बहुत साधन है लेकिन हमलोगों को उस वक़्त ऐसा कुछ था नहीं. मेरी बेस्ट फ्रेंड मधु हमारे पड़ोसी पुजारी जी की बेटी थी. हमलोग साथ ही स्कूल जाते थें. हमें तब उतना पैसा मिलता नहीं था तो हम और मेरी दोस्त आपस में मिलकर चंदा करते थें और अपने मोहल्ले में एक पुरानी किताब की दुकान थी वहाँ पैसा देकर आठ आने - चार आने देकर किराये पर कॉमिक्स पढ़ने ले आते लाते थें और फिर या तो स्कूल में या अमरूद के पेड़ के नीचे एक साथ बैठ जाते थें. कई और दोस्त भी हमारी मण्डली में शामिल हो जाते थें. हर दिन हम लोगों में से ही कोई एक कॉमिक्स पढ़ता और सभी चाव से सुनते थें. तब यूँ ही कहानियां सुनते-सुनते लिखने का शौक भी शुरू हो गया. स्कूल में डिबेट कॉम्पटीशन में फर्स्ट प्राइज जीतें थें. इंटर के दौरान भागलपुर आकाशवाणी में मेरा युववाणी कार्यक्रम में कहानियां-कवितायेँ सुनाना शुरू हो गया. फिर बाल-मंजूषा कार्यक्रम में बच्चों के साथ मेरी जुगलबंदी होने लगी. नए पल्ल्व प्रकाशन की किताब घरौंदा जिसमे कई लोगों की साझा कहानियां हैं उसमें मेरी पहली कहानी 'नन्ही छुटकी' प्रकाशित हुई फिर कई पत्रिकाओं यथा गृहशोभा इत्यादि और दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हिंदुस्तान आदि अख़बारों में कहानियां प्रकाशित हुईं.

समाज सेवा की भावना - पशु-पक्षियों से आज भी लगाव है और तब भी था जिस वजह से बचपन में पड़ोसी बच्चों को जानवरों और पक्षियों को तंग करते देखकर शाइस्ता जी उनसे लड़ पड़ती थीं. भागलपुर के अख़बार 'नयी बात' में इनकी रचनाएँ अक्सर छपती थीं. 90 के दशक में उन्ही दिनों प्रौढ़ शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने के लिए कुछ कॉलेज स्टूडेंट का चयन करके उन्हें भेजा जाता था. शाइस्ता भी तब प्रौढ़ शिक्षा केंद्र कार्यक्रम में जाती थीं. 1995 में भागलपुर में भयानक बाढ़ आयी थी तो वहीँ के एक बाढ़ग्रस्त इलाके में मदद पहुँचाने जाना पड़ा था. वहां बाढ़ से त्रस्त लोगों को चूड़ा वगैरह वितरित करना था. शाइस्ता जी बताती हैं कि "तब उनकी स्थिति देखकर मेरी आँखों से आंसू निकल आये थें. वहां से आकर हमने उस घटना पर एक आर्टिकल लिखा था जो हिंदी-उर्दू के कुछ अख़बारों में छपी थी. फिर वहीँ से मन में समाज सेवा कि भावना घर करनी शुरू हो गयी."


सराहनीय कार्य - शाइस्ता जी सोशल वर्क में कई संस्थाओं से जुडी हुईं हैं. पटना के राजेंद्रनगर में कहानीघर नाम से एक संस्था है जहाँ झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चे, रिक्शा-ठेला चलानेवालों के बच्चे और नशे की लत लगा चुके बच्चे आते हैं. मीनाक्षी मैडम और रौनक सर संस्था का संचालन करते हैं. वहाँ इन स्लम के बच्चों को कहानियों के माध्यम से चरित्र चित्रण किया जाता है.
शाइस्ता जी बताती हैं, "पटना में संस्था कहानीघर के संचालक से फेसबुक के माध्यम से सम्पर्क हुआ. उन्होंने बुलाया तो मैं वहाँ गयी और जब पहले ही दिन बच्चों के बीच कहानी सुनाएँ तो उनलोगों को बेहद पसंद आया. फिर ऐसा हो गया कि हम रेगुलर हर सैटरडे को जाने लगें. हम वहाँ पहुंचे नहीं कि बच्चे मुझे घेर लेते थें." इनकी हर कोशिश में इनके हसबैंड ने हमेशा साथ दिया. एक दिन शाइस्ता जी ने सोचा क्यों न पटनासिटी में मदरसे के बच्चों के लिए कुछ करें क्यूंकि ये वो बच्चे हैं जो यतीमख़ानों के अंदर कैद सा रहते हैं, तो उन बच्चों को भी ये  कहानी के माध्यम से बहुत सी जानकारियां देना चाहती थीं. लेकिन चैलेन्ज ये था कि मुस्लिम औरतें मदरसा जाती नहीं हैं. तो अल्लाह का नाम लेकर शाइस्ता जी आगे बढ़ीं और उनके कहने पर मदरसे के ऑनर से हसबैंड ने बात किया. उस मदरसे के ट्रस्टी अमरीका में रहते थें. शाइस्ता जी अपने बच्चों और पति के साथ मदरसा जब पहले दिन पहुंची तो उन्हें नहीं पता था कि वे जो कहानी सुना रही  हैं उसका लाइव प्रदर्शन अमरीका में भी हो रहा है और जो ट्रस्टी थे वो वहीँ से देख रहे थें. शाइस्ता जी जब कहानी सुनाने लगीं तो कहानी सुनाने का अंदाज़ बच्चों को इतना पसंद आया कि वे इतना इंज्वाय करने लगें कि उनको छोड़ ही नहीं रहे थें. एक हफ्ते बाद जब शाइस्ता जी के हसबैंड कॉलेज से घर आएं तो उन्होंने बताया कि "जो ट्रस्टी हैं उन्होंने कहा है कि जब आपको फुर्सत मिले आप मैडम को लेकर मदरसे में आईये और उनको कहिये कि वे दो घंटा बच्चों का क्लास भी लेंगी." और फिर शाइस्ता जी का वहां जाने का सिलसिला शुरू हो गया.


स्पेशल मोमेंट - बोलो ज़िन्दगी टीम की फरमाईश पर शाइस्ता अंजुम ने अपनी एक कविता व बच्चों के लिए तैयार की गयी एक कहानी सुनाई. उनके पति मो. रब्बान अली ने भी एक ग़ज़ल सुनाई, वहीँ उनकी बेटी आमना ने एक बॉलीवुड सॉन्ग सुनाया. ओवर ऑल इस फैमिली पैक प्रदर्शन को देखकर बोलो ज़िन्दगी टीम और स्पेशल गेस्ट के रूप में मौजूद एडवोकेट मधु श्रीवास्तव जी ने इस फैमिली की खूब प्रशंसा की. वहीँ जब मेहमाननवाजी के वक़्त शाइस्ता जी ने अपने हाथ की बनी एक डिश जर्दा (मीठा पुलाव) खिलाया तो उसके स्वाद से प्रभावित होकर मधु जी ने लगे हाथों उनसे इस डिश की पूरी रेसिपी सीख ली और कहा कि "मैं आज ही घर जाकर ये बनाने का प्रयास करुँगी."

(इस पूरे कार्यक्रम को बोलोजिन्दगी डॉट कॉम पर भी देखा जा सकता है.)








Tuesday, 7 January 2020

"पत्रकार कवि सम्मेलन- Season 2"



कवि सम्मेलन की महफ़िल में पत्रकार कवियों की जमात सजी थी. यहाँ देश-समाज की खबरें, प्यार-मोहब्बत के एहसास सभी कुछ कविता के रूप में व्यक्त किये जा रहे थें. बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन ने  रविवार, 5 जनवरी, 2020 को पटना, दीघा स्थित पिंक महल मैरेज हॉल में "पत्रकार कवि सम्मेलन- Season 2" का आयोजन किया, जहाँ शहर के विभिन्न प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कवि पत्रकार बन्धुओं ने काव्य पाठ के साथ नए साल का गर्मजोशी से स्वागत किया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, अमिताभ ओझा, एसोसिएट एडिटर, न्यूज 24 (बिहार-झाड़खंड), विशिष्ट अतिथि - पवन टून, कार्टूनिस्ट, दैनिक हिंदुस्तान, बंटी चौधरी, विधायक, सिकंदरा- जमुई, कुमार प्रभंजन, सीएमडी, नेक्स्टजेन वर्ल्ड, मृत्युंजय कु. सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, बिहार पुलिस एसोसिएशन, ऋतू जायसवाल, मुखिया, सिंहवाहिनी पंचायत ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की. कार्यक्रम शुरू होने से पहले बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन के निदेशक राकेश सिंह 'सोनू' एवं बोलो ज़िन्दगी की प्रोग्रामिंग हेड तबस्सुम अली ने आमंत्रित अतिथियों को सम्मानित किया.

कार्यक्रम के आयोजक एवं बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन के निदेशक राकेश सिंह 'सोनू' ने बताया कि "पहली बार इस अनूठे कॉन्सेप्ट को लेकर हमने जनवरी 2019 में पत्रकार कवि सम्मेलन आयोजित किया था. चूँकि मैं खुद एक पत्रकार हूँ और मैंने देखा है कि ज्यादातर पत्रकार मंचीय कवि नहीं होते बल्कि वे सिर्फ शौकिया लिखा करते हैं. कुछ एक पत्रकारों को छोड़ दें तो बहुत से कविता रचनेवाले पत्रकार झिझक की वज़ह से कवि गोष्ठियों में जाने से बचा करते हैं. तो उन्ही पत्रकार कवियों की झिझक तोड़ने और सभी पत्रकार कवियों को एक मंच पर इकट्ठा करने के उद्देश्य से हमने 'पत्रकार कवि सम्मलेन' की शुरुआत की और पिछले साल इस कार्यक्रम के सफल होते ही हमने यह तय किया कि यह कार्यक्रम आगे भी जारी रखा जाये. इस कार्यक्रम की निरंतरता बनाये रखने के लिए मुझे अपने कवि पत्रकार बंधुओं का भी अच्छा सहयोग मिला."

आमंत्रित पत्रकार कवि थें-  अमलेंदु अस्थाना (दैनिक भास्कर), चंदन द्विवेदी (दैनिक हिंदुस्तान),
कुमार रजत (दैनिक जागरण), आरजे श्वेता सुरभि (बिग एफएम), अभिषेक मिश्रा (रेड एफएम), प्रेरणा प्रताप (दूरदर्शन बिहार), बीरेंद्र ज्योति (वरिष्ठ पत्रकार), श्रीकांत व्यास (वरिष्ठ पत्रकार), समीर परिमल (पूर्व संपादक, सामयिक परिवेश) दिल्ली से आये संजीव मुकेश (संपादक, सामयिक परिवेश), नवादा से आये मुकेश सिन्हा (पूर्व पत्रकार), ऋचा शर्मा (फर्स्ट बिहार झाड़खंड न्यूज पोर्टल).

बिहार के 13 पत्रकार कवियों ने अपनी काव्य रचना सुनाई जो यूँ है,
अमलेंदु अस्थाना ने सुनाया-
"शब्द शब्द टकराये है,
देखो तो किधर जाए है.
नफ़रत की इस आंधी में
शोला वोला भड़काए है.
कोई मज़हब-मज़हब शोर करे
कोई जाति-जाति चिल्लाए है."

कुमार रजत ने सुनाया-
"ज़िद ने साजिश बड़ी की है।
घर में दीवार खड़ी की है।
हम यूं कभी रोए नहीं थे
मुहब्बत ने कहीं गड़बड़ी की है।"

चंदन द्विवेदी ने सुनाया-
"राग हो रंग हो इस नए साल में
साथ हो संग हो इस नए साल में
सबको विज्ञान देता रहे सन्मति
न कोई जंग हो इस नए साल में."

प्रेरणा प्रताप ने सुनाया-
"कौन सी कविता लिखूं ,
लिखूं कौन सा गीत,
स्याही अश्रु बहा रही
जब हृदय हुआ व्यथित."

समीर परिमल ने सुनाया-
"जो न करना था कर गया पानी
देखो हद से गुज़र गया पानी
जब जगह मिल सकी न आँखों में
हर गली घर में भर गया पानी."

आरजे श्वेता सुरभि ने सुनाया-
"कुछ ख्वाहिशें झांकती है झरोखों से..कुछ हसरतें दस्तक देती हैं खिड़कियों पर.."

अभिषेक कु. मिश्रा ने सुनाया-  "अगर मैं लड़की होता को क्या लिखता...मैं अपना डर लिखता या अपना गुस्सा लिखता."

राकेश सिंह 'सोनू' ने सुनाया-
"तेरे आने से तब मौसम बदलता था तेरे जाने से अब मेरी रात जगती है...क्या बताऊँ, मेरी आदत बनकर तू अब भी मुझमे दिन-रात गुजरती है."

बीरेंद्र ज्योति जी ने सुनाया-
"नया साल मुबारक नया साल मुबारक. उसको नफरत की आग मुबारक हमें इश्क का एक चिराग मुबारक."

संजीव कुमार मुकेश ने सुनाया-
"जीवन के हर शब्द-शब्द
अक्षर-अक्षर में माँ,
माँ ही गीता-वेद-रामायण
 वाणी स्वर में माँ."

मुकेश कुमार सिन्हा ने सुनाया -
"भय,भूख,भ्रष्टाचार से
लड़ाई हो आर-पार.
हमेशा जगती रहे कलम
ताकि सोये न सरकार."

ऋचा शर्मा ने सुनाया-
"चाहत नहीं विवाद हो
आदत नहीं फसाद हो
है तीव्र लालसा यही
बस सत्य शंखनाद हो."

श्रीकांत व्यास ने सुनाया -
"दस्त में हैं मौत के ख़ंजर लिए,
बागवां भी अब दिखे बंजर लिए..."

कार्यक्रम में एंकरिंग की बोलो ज़िन्दगी के प्रीतम कुमार ने तो कवि सम्मेलन का संचालन किया रेड एफएम के अभिषेक मिश्रा ने. इन पत्रकार कवियों की कवितायेँ सुनकर देर शाम तक महफ़िल में वाह-वाह और तालियों की आवाज गूंजती रही. सभी प्रतिभागी पत्रकार कवियों को मौजूद अतिथियों ने मोमेंटो देकर सम्मानित किया. प्रतिभागियों एवं सम्मानित अतिथियों को कार्यक्रम के गिफ्ट पार्टनर की तरफ से देसी फ़ूड 'सत्तूज' का गिफ्ट पैक वितरण किया गया.
       
कार्यक्रम के समापन के बाद मुख्य अतिथि न्यूज 24 के एसोसिएट एडिटर अमिताभ ओझा ने बोलो ज़िन्दगी के निदेशक राकेश सिंह सोनू से अपने दिल की बात शेयर करते हुए कहा कि "अपने पत्रकार साथियों को यूँ काव्य पाठ करते हुए देखकर मुझे भी कुछ-कुछ होने लगा और अगली बार मैं गेस्ट की कुर्सी पर नहीं बल्कि कवि पत्रकारों की जमात में बैठकर खुद भी कविता सुनाना पसंद करूँगा."

इस कार्यक्रम को सफल बनाने में बोलो ज़िन्दगी के प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली, दीपक, नीरज, सतीश कुमार, राहुल राज एवं दीनू मिश्रा का बहुत योगदान रहा. मुख्य अतिथि अमिताभ ओझा ने कार्यक्रम के अन्य सहयोगी प्रायोजक रिलेक्स सर्विकॉन प्राइवेट लिमिटेड के सीएमडी विकास कुमार को  सम्मानित किया. विशिष्ट अतिथि मशहूर कार्टूनिस्ट पवन टून ने फोटोग्राफी पार्टनर येलो स्टूडियो के अनिमेष रंजन और गिफ्ट पार्टनर 'सत्तूज़' के मिस्टर आर्यन को सम्मानित किया. वहीँ बोलो ज़िन्दगी के राकेश सिंह 'सोनू' ने वेन्यू पार्टनर पिंक महल मैरेज हॉल के ऑनर ए. के. वाजपेयी उर्फ़ सीटू जी को सम्मानित किया.  

Sunday, 22 December 2019

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : सोशल वर्कर पूजा ऋतुराज की फैमली, पूर्वी लोहानीपुर, पटना




20 दिसंबर, शुक्रवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के पूर्वी लोहानीपुर इलाके में सोशल एक्टिविस्ट पूजा ऋतुराज जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में जदयू कला संस्कृति प्रकोष्ठ बिहार के उपाध्यक्ष अमर सिन्हा भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों पूजा ऋतुराज जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- पूजा ऋतुराज जी नवसृजन एवं सर्वांगीण विकास संस्था की सेक्रेटरी हैं. पूजा जी का ससुराल मोकामा है. मायका मसौढ़ी के पास सिमरी गांव में है लेकिन ये बचपन से ही पटना में रहीं. समाजसेवा के साथ साथ पत्रकारिता में भी रूचि है. भारतीय क्षेत्रीय पत्रकार संघ की सेक्रेटरी भी हैं. साहित्य से भी लगाव है. कविता, लघुकथा लिखती हैं और कई मंचों से कविता पाठ भी कर चुकी हैं.
इनके पति श्री संतोष कुमार सचिवालय में कार्यरत हैं. पति को काम के अलावा अन्य चीजों में रूचि नहीं थी लेकिन शादी बाद वे पत्नी के शौक के अनुसार ढ़लने लगें. जब घर में भी मदद के लिए घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं सुबह-सुबह पहुँचने लगीं तो ऋतुराज जी से ज्यादा कदर वो करते कि उनको नाश्ता दो, चाय दो, उसे जहाँ तक मदद हो सके उसके लिए परेशान हो जाते कि कैसे दूर होगा उनका कष्ट. बड़ी बेटी सौम्या शंकर संत जोशफ कॉन्वेंट हाई स्कूल 12 वीं की स्टूडेंट हैं. छोटी बेटी महिमा शंकर संत जोशफ कॉन्वेंट हाई स्कूल, क्लास 10 वीं की स्टूडेंट हैं. दोनों ही बेटियां आर्टिस्ट एवं सोशल वर्कर हैं.

ऋतुराज जी का सोशल वर्क -  ऋतुराज नवसृजन एवं सर्वांगीण विकास संस्था के लिए घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए काम करती हैं. पटना के लोहानीपुर इलाके के आस-पास के झुग्गी-झोपड़ियों में रहनेवाली महिलाएं अपने ही पतियों की हिंसा की शिकार होती हैं. पत्नी एवं बच्चों की अक्सर छोटी-छोटी बातों पर उनके पति पिटाई करते हैं और कई बार मामला काफी सीरियस हो जाता है. इन स्लम इलाकों की कुछ वैसी बच्चियां भी आती हैं जिनके साथ उनके पिता ही गलत आचरण करते हैं. इन सारे केसों को ऋतुराज सोशल वर्क के तहत देखती हैं.

समाजसेवा से कैसे हुआ जुड़ाव ? - जब ऋतुराज 13 साल की थीं तभी से समाज सेवा की तरफ माँ-पिताजी की वजह से आ गयीं. तब इनके घर के आँगन में निम्नवर्गीय घरों के तीन-चार सौ बच्चे इकठ्ठा होते थें और ये पापा के कहने पर स्कूल से आने के बाद उनको मुफ्त में पढ़ाती थी. इस तरह बचपन से ही सोशल वर्क से जुड़ गयीं. और जब शादी हुई तो ये हसबैंड के काम की वजह से पटना में ही रहीं. नौकरी के लिए बहुत प्रयास कीं पर वो किस्मत में नहीं थी. समाजसेवा इनका लक्ष्य था इसलिए वे इसी ओर चल पड़ीं.

पूजा ऋतुराज की बेटियों का सराहनीय कार्य - बड़ी बेटी सौम्या शंकर की माँ ऋतुराज इनकी रोल मॉडल बनीं इसी वजह से ये खुद भी सोशल वर्क में आ गयीं. सौम्या बताती हैं, "अपने इलाके के अभावग्रस्त व आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को डांस, पेंटिंग जो भी मुझे आता है उनको सिखाती हूँ अपने फ्री टाइम में." सौम्या ने इसी साल किड्स लिटिल मिस इंडिया में पार्टिशिपेट किया था, बिहार का प्रतिनिधित्व करते हुए टॉप 10 फाइनलिस्ट भी बनीं जहाँ पूरे 29 स्टेट के बच्चों ने हिस्सा लिया था. चेस और बॉल बैडमिंटन में भी रूचि है.
       छोटी बेटी महिमा शंकर की हॉबी डांसिंग, सिंगिंग, पेंटिंग, चेस, टेराकोटा,बॉल बैडमिंटन एन्ड क्रिकेट में है और वे ये खेलती भी हैं. स्टेट लेवल चेस चैम्पियनशिप में बिहार को रिप्रजेंट कर चुकी हैं. डांस में नेशनल तक गयी हैं. और ऋतुराज की इन बेटियों की सबसे खास बात कि ज़रूरतमंद बच्चों को ये दोनों बहने फ्री में पढ़ाती भी हैं.

स्पेशल गेस्ट की टिप्पणी - बोलो ज़िन्दगी टीम के साथ पहुँचे बतौर स्पेशल गेस्ट जदयू कला संस्कृति प्रकोष्ठ बिहार के उपाध्यक्ष अमर सिन्हा ने कहा, "मुझे ऐसे परिवार में आने का मौका मिला जिसके सभी सदस्यों में कला-संस्कृति के साथ साथ सामाजिक सरोकार रग-रग में बसा है. यहाँ आकर अच्छा लगा कि पूजा ऋतुराज जी खुद समाजसेवा से तो जुड़ी हीं, अपनी बच्चियों को भी इससे जोड़ा जो बहुत ही सराहनीय काम है." कई रियलिटी शो बना चुके अमर सिन्हा अभी डांस बिहार का सरताज रियलिटी शो लेकर आ रहे हैं जिसका नेक्स्ट ऑडिशन नए साल के जनवरी में है, तो उन्होंने ऋतू जी की बेटियों और उनकी संस्था द्वारा ट्रेंड की गयीं बच्चियों को ऑडिशन में आने का निमंत्रण भी दिया.

स्पेशल मोमेंट - जब फैमिली ऑफ़ द वीक के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम पूजा ऋतुराज जी के घर पहुँची तो लोहानीपुर झुग्गी-झोपड़ियों की वैसे बहुत सी कलाकार बच्चियों से मिलवाया गया जिन्हे उनकी बेटियां नृत्य-संगीत में पारंगत कराती हैं. हालांकि ये बच्चियां किसी काम से वहां आयी थीं, लेकिन ऋतू जी के आग्रह पर बोलो ज़िन्दगी ने स्पेशल गेस्ट के साथ उन बच्चियों का सुपर डांस परफॉर्मेंस देखा जिसकी सराहना सभी ने दिल खोलकर की. इसके साथ-ही-साथ पूजा ऋतुराज जी की बेटियाँ सौम्या शंकर एवं महिमा शंकर ने अपने नृत्य से सभी को जैसे सम्मोहित सा कर दिया.

(इस पूरे कार्यक्रम को बोलोजिन्दगी डॉट कॉम पर भी देखा जा सकता है.)



















Monday, 16 December 2019

पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ भाजपा बिहार ने मनाया विजय दिवस


दिनांक 16/12/19  को हर साल कि तरह विजय दिवस मनाने का कार्यक्रम पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ भाजपा बिहार द्वारा आयोजित किया गया।1971 में आज ही के दिन पाकिस्तान पर भारतीय सैनिकों ने विजय का परचम लहराया था जिसे आज हम सब बांग्लादेश के नाम से जानते है। कार्यक्रम की शुरुआत दो मिनट का मौन रखकर शहीदों को याद किया गया तथा। मुख्य अतिथि स्थानीय विधायिका आशा सिन्हा ने दीप जलाकर उद्घाटन किया।

प्रदेश संयोजक पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ भाजपा अरुण फौजी की अध्यक्षता में कार्यक्रम  हुआ। इस मौके पर शहीद सैनिकों के पत्नियों को शॉल देकर सम्मानित किया गया। श्रीमती आशा सिन्हा ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में वीर नारियों को देखकर मैं भी अपने आप को गर्व महसूस कर रही हूं क्युकी में भी एक वीरांगना हूं। भाषण के दौरान सभी लोग भावुक हो उठे। डॉ विजय राज सिंह ने कहा कि में एक फौजी का बेटा होने के नाते आपके किसी भी प्रकार के रोग में सहायता करने के लिए तैयार हूं। 

1971 की लड़ाई लड़े वीर सैनिक एस.बी. सिंह ने कहा कि लड़ाई जीतने के बाद एक हफ्ते तक हम लोग जश्न मनाते रहे। मौके पर धर्मेन्द्र जी,ललन साहब, एस.एन.सिंह, निशा सिंह, आर. एन. उपाध्याय ने अपने अपने विचार रखे।मंच संचालन मनोज जी ने किया।समापन समारोह प्रदेश मीडिया प्रभारी उपेन्द्र सिंह ने किया।इस मौके पर मीता देवी,रीता देवी, मनिमाला,पारस सिंह,राजेश पाल,अजीत यादव,पप्पू कुमार,राहुल, भरत सिंह,हरेश पांडे,प्रमोद कुमार गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

Wednesday, 11 December 2019

पटना के युवाओं ने जाना कॅरियर में सफलता के गुर



11 दिसंबर, पटना कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय में पूर्वाहन 11:30 बजे मेधा फाउंडेशन के तत्वावधान में एक सेमिनार का आयोजन किया गया. युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य और कॅरियर द्वन्द्ध को लेकर आज डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक द्वारा बङी संख्या में मौजूद छात्र-छात्राओं के जिज्ञासा का समाधान किया गया . इस कार्यक्रम की शुरुआत विद्यार्थियों के अभिवादन व स्वागतकर्ता फाउंडेशन की निधि राय‌ द्वारा किया गया ।
इस अवसर पर डॉ॰ मनोज द्वारा बताया गया की पटना कॉलेज सूबे का एक ऐतिहासिक महाविद्यालय है। यह विधालय अपने यहाँ के छात्रों के प्रतिभा से जाना जाता है। स्टुडेन्ट जीवन में कॅरियर एक अहम पङाव है। इस समय छात्रों को बहुत तरह की मानसिक परेशानियों का सामना करना पङता है। खासतौर से उन युवाओं में जो अपने शैक्षणिक उपलब्धि से संतुष्ट नही होते।उनके भीतर असंतोष की भावना से बहुत सारे मनोविकार उत्पन्न हो जाते हैं। इन सब से उनका चयनित कॅरियर प्रभावित व अव्यवस्थित हो जाता है। विद्यार्थियों में पहचान संकट एक बङा मसला है। अपने खराब मानसिक स्वास्थ्य की वजह से वह अपना वजूद सोशल मीडिया में तलाशते है। कुछ मामले में नकली आइडी बनाकर गर्लफ्रेंड या व्यायफ्रेड की तलाश करते हैं। फिर आर्टीफिशियल इंमोशन्स का सहारा लेकर खुद को दिलासा दिलाते हैं। इन सब में उनका ज्यादातर समय निकल जाता है और युवावस्था की यह उर्वर समय कॅरियर पर फोकस के बजाय कहीं और चला जाता है। इस अवसर पर डॉ॰ कुमार छात्रों को इस बात पर जोर देने की बात करते हैं की जिन युवाओं में अपने परिवार से जुङने और उनसे उचित संवाद स्थापित करने से मनचाहे प्रोफेशन में सफलता जल्दी मिल जाती है। अपनो से बङे लोगों के सान्निध्य में रहने से मन से असुरक्षा की भावना घटती है और तनाव का निवारण भी होता है। इस तरह के प्रैक्टिस दिनचर्या में शामिल करने से आत्मविश्वास में बढोतरी व अपने भीतर मौजूद क्षमताओं का आंकलन युवा मन कर सकता है।

सेमिनार में बङी संख्या में युवाओं  ने अपने मन के उलझन से संबंधित सवाल पूछे, जिनका जवाब डॉ॰ कुमार द्वारा सरलता से दिया गया। इस कार्यक्रम में करीब 150 विद्यार्थियों,शिक्षको व अन्य शिक्षकेत्तर कर्मियों सहित वरिष्ठ लोगों ने शिरकत की।

Monday, 9 December 2019

पटना मारवाड़ी महिला समिति और राधा रानी ग्रुप के सहयोग से दो अनाथ बच्चों की हुई शादी



दिनांक 9.12.19 को पटना मारवाड़ी महिला समिति और राधा रानी ग्रुप के सहयोग से दो अनाथ बच्चों को एक नई जिंदगी की शुरुआत करने के लिए उन्हें गोद लेकर शादी का आयोजन दिन में 1 बजे से 5 बजे तक निशांत बाल गृह, गाय घाट में किया गया.

समिति की अध्यक्ष नीना मोटानी ने बताया कि हमारी बिटिया प्रीति कुमारी है जो निशांत बाल गृह में रहती है 18 साल की होने पर वहीं देख रेख का काम करती है.
मुँहबोली बेटी प्रीति का कन्यादान कृष्णा अग्रवाल सत्यनारायण अग्रवाल के साथ मिल कर करेंगी।
हमारे बेटे का नाम अजय कुमार है जो  बाल गृह अपना घर में रहता था. 21 साल  का होने के बाद अभी पिछले 1 साल से कोकाकोला बोटलिंग फैक्टरी में 6000/ मासिक पर कार्य करता है।
मुँहबोले बेटे अजय की बारात अपना घर से मां श्रीमती मनीषा श्रीवास्तव लेकर आएंगी.


श्रीमती केसरी अग्रवाल ने बताया कि पिछले एक महीने से शादी की तैयारियां चल रही थीं.
शादी में प्रीति और अजय को उनके वैवाहिक जीवन की शुरूआत करने के लिए गृहस्थी की सारी तैयारियां कर  के दी गयी है। दोनों बच्चों को कपड़े गैस का चूल्हा पलंग गद्दा चादर तकिया रजाई कम्बल कूकर मिक्सी घड़ी स्टील का बर्तन रोजमर्रा के सामान एवं एक महीने का राशन इत्यादि दिया गया। कोषाध्यक्ष उषा टिबड़ेवाल ने बताया कि इस शादी में बिहार की प्रांतीय अध्यक्ष पुष्पा लोहिया, प्रांतीय सचिव सुमन सर्राफ एवं 2 और सदस्यों के साथ सीतामढ़ी से आकर वर वधु को आशीर्वाद दिया.

प्रांतीय अध्यक्ष पुष्पा लोहिया जी ने बताया की हमारी संस्था महिलाओं और बेटियों को सशक्त करने में हमेशा कार्य करती रहती है और इस शादी के द्वारा हमने समाज मे एक जागरूकता लाने की छोटी सी कोशिश की है.

पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती मीना गुप्ता जी ने बताया* कि हम सभी को यह संदेश देना चाहते हैं कि समाज आगे आये और बाल  गृह की बालिग लड़कियों से  लड़कों की शादी करने में पहल करे। पहली बार निशान्त बालिका गृह की बच्चियों ने जाना कि शादी कैसे होती है और इस शादी के क्रम में उनकी जिंदगी में भी कुछ खुशियों के पल आये और उनकी निराश आँखों और बुझे चेहरों  में भी भविष्य की एक नई आशा की झलक दिखी। इस शादी में समाज के सभी  वर्गों एवं बहुत सी संस्थाओं के सदस्यों ने अपने अपने स्तर से कार्यक्रम में आकर आयोजन को सफल बनाया.

कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से सहयोग दिया - समाज कल्याण विभाग बिहार सरकार के पदाधिकारी,  पटना के सभी बालिका गृह की अधीक्षक, बिहार प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन , मारवाड़ी युवा मंच, पटना नगर शाखा, रोटरी चाणक्य क्लब, भारत विकास परिषद इत्यदि.
100 से ज्यादा लोगों ने आकर इस जोड़ी को आशीर्वाद दिया। जुगल जोड़ी को आशीर्वाद देने मुख्य रूप से उपस्थित थे बिमल जैन, पूर्णिमा शेखर, कमल नोपानी, बिनोद तोदी ,महेश जालान, डॉ श्रवण कुमार , गणेश खेतरिवाल, अंजनी बंका.

कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से सहयोग दिया - इंदु कुमारी, केसरी अग्रवाल, शकुंतला लोहिया ,सविता खंडेलिया, मधु मोदी, इत्यादि ने। शादी में बालिका गृह की बच्चियों के साथ करीब 250 लोग सम्मिलित हुए. 

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : लेख्य-मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव की फैमली, रुकनपुरा, पटना




8 दिसंबर, रविवार की सुबह 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के रुकनपुरा इलाके में लेख्य मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में लघुकथा के पितामह कहे जानेवाले डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों विभा रानी जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- विभा रानी श्रीवास्तव जी का मायका सिवान जिले के मझवलिया गांव में है और ससुराल हुआ गोपालगंज के माणिकपुर में. उन्होंने बीएड और एलएलबी किया है. हसबैंड डॉ. अरुण कुमार श्रीवास्तव इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड से चीफ इंजीनियर के पद से सेवानिवृत हैं. एक बेटा है महबूब श्रीवास्तव जो अभी अमेरिका में इंजीनियर है. महबूब इंग्लिश में लिखते हैं. एक इंटरनेशनल संस्था है 'टोस्ट मास्टर' जिसमे वे जॉब से अलग विषयों पर लेक्चर देते हैं. बहु का नाम है माया शनॉय श्रीवास्तव जो साऊथ इंडियन है और बैंगलोर से बिलॉन्ग करती हैं. माया सीए हैं. विभा जी के घर का कॉन्सेप्ट था वन फैमली वन चाइल्ड इसलिए घर में लगभग सभी को एक ही बच्चे हैं.

लेखन की शुरुआत - विभा रानी जी की अभिव्यक्ति लेखन के रूप में डायरी के पन्नों पर बहुत पहले से जारी थी. लेकिन पूरी तरह से लेखन से जुड़ाव हुआ 2011 में जब ब्लॉग पर लिखना शुरू हुआ. ब्लॉग बनाने का आइडिया बेटे ने दिया था. उससे पहले विभा जी घर में सिलाई-बुनाई और पेपर ज्वेलरी बनाना सिखलाती थी. रूपसपुर गांव की निम्न वर्गीय परिवार की लड़कियां इनसे सीखने आती थीं. इससे पहले भी जहाँ कहीं रहीं क्लब खोलना, पेंटिंग सिखाना, एम्ब्रॉयडरी सिखाना जैसे काम करती रहीं. लेकिन जैसे जैसे इंटरनेट डेवलव हुआ और ब्यूटी पार्लर का कॉन्सेप्ट आया तो फिर इसमें लड़कियों की रूचि ज्यादा बढ़ी. चूँकि सिलाई-कढ़ाई में उन्हें कोई भविष्य नहीं नज़र आ रहा था. इसलिए धीरे-धीरे जब लड़कियों की संख्या कम होती गयीं और तभी विभा जी के हसबैंड की पोस्टिंग हो गयी थर्मल पावर बरौनी में जी एम  के पोस्ट पर. तो इन्हें पटना से वहां शिफ्ट होना पड़ा. फिर वहाँ इनकी ये सब एक्टिविटी लगभग बंद हो गयी. तबतक वे हाइकू लेखन से जुड़ चुकी थीं. यूँ तो कहा जाता है साहित्य की यह विधा जापान से आयातित है लेकिन विभा जी ने जो शोध किया है हरिद्वार, दिल्ली, लखनऊ जाकर तो यह राय बनी कि हाइकू यहीं से वहां गया होगा और वहां से मोडिफाइड होकर वापस भारत आया होगा. हाइकू के बाद विभा जी वर्ण पिरामिड, लघुकथा से भी जुड़ीं. 2011 में ब्लॉग शुरू किया 'सोच का सृजन' जिसमे कंटीन्यू लेखन आज भी जारी है. उसके पहले ब्लॉग था 'मृगतृष्णा' उसमे विभा जी अपनी अभिव्यक्ति लिखती थीं. लेकिन फिर नए ब्लॉग में एक-एक कर अपनी सभी साहित्यिक विधाओं को डालना शुरू किया.

साहित्यिक गतिविधियों की शुरुआत - विभा रानी बताती हैं, "2015 में हमलोग हाइकू और वर्ण पिरामिड की किताब दिल्ली के हिंदी भवन में लोकार्पण किये थें उसी समय यह तय हुआ था कि अगले साल 2016 में सौ साल पूरा हो रहा है हाइकू का तो उसका शताब्दी वर्ष मनाएंगे. कहा जाता है कि जब 1916 में रवीन्द्रनाथ टैगोर जापान यात्रा पर गए थें तो वहां के जो उन्होंने संस्मरण लिखें उसी में हाइकू की चर्चा थी कि जापान में ऐसे हाइकू लेखन पाए जाते हैं. उसी लिहाज से हमने 2016 को शताब्दी वर्ष माना. उस समय जब मनाने की योजना चल रही थी तो यह बात बनी कि एक पुस्तक भी लाया जाये. तो फिर मैंने सोचा चलो सौ हाइकुकार खोजते हैं पूरे देश में. संयोग से मेरे पास लगभग 125 हाइकू लेखकों कि रचनाएँ जमा हो गयीं. और फिर मैंने हाइकू की किताब छपवायी. जब लोकार्पण का समय आया उसी समय मेरे हसबैंड की तबियत थोड़ी खराब चलने लगी जिसकी वजह से दिल्ली जाकर सारा काम करना सम्भव नहीं हुआ. तो हुआ कि पटना कौन सा साहित्य की दृष्टि से कम महत्वपूर्ण है, इसलिए क्यों ना हमलोग पटना में ही आयोजन करें. तबतक मैं घर से ज्यादा बाहर नहीं जाती थी. इंरटनेट से पूरे विश्व का आइडिया था लेकिन अपने ही शहर में क्या हो रहा है तब यह आइडिया नहीं था. फिर भी मैं हाइकुकार खोजने के लिए आस-पास निकलने लगी उसी क्रम में मुलाकात हुई साहित्यकार डॉ. सतीश राज पुष्करणा जी से, अनीता राकेश, पूनम आनंद जी से. तो जब यहाँ लोकार्पण की बात हुई तो यह बात उठी कि एक मंच चाहिए क्यूंकि बिना मंच और बैनर का लोकार्पण करने का कोई मतलब नहीं है.


लेख्य-मंजूषा का आरम्भ - 22 जून 2016 को अचानक से फेसबुक पर खबर आयी कि दिल्ली में एक एनजीओ है जिसने घोषणा कर दी कि हाइकू और वर्ण पिरामिड का लोकार्पण होना है और पूरे देश से लोग जुट रहे हैं. और सभी लेखकों को मंच सम्मानित करेगा. तो उसी एनजीओ के रूप में विभा जी एवं उनसे जुड़े लोगों को एक बैनर मिल गया. उसी बैनर तले इनलोगों  ने 26 जून से काम करना शुरू कर दिया. इनको पटना में लोकार्पण करना था 4 दिसंबर को क्यूंकि उस दिन हाइकू दिवस होता है. प्रफेसर सत्यभूषण वर्मा जिन्होंने हाइकू के लिए बहुत सराहनीय कार्य किया हुआ है तो उन्ही के जन्म दिवस 4 दिसंबर को इनलोगों ने हाइकू दिवस के रूप में कन्वर्ट कर दिया. 4 दिसंबर के आयोजन को लेकर बैठकें होने लगीं, और 14 सितंबर से इनकी टीम ने मासिक गोष्ठी और त्रैमासिक कार्यक्रम की भी शुरुआत कर दी. लेकिन ये सारा काम उसी दिल्ली की संस्था के बैनर तले हो रहा था. जब दिसंबर नजदीक आने लगा तो इनलोगों ने दिल्ली वाले एनजीवो के हेड से कॉन्टेक्ट करके बैनर के लिए उनकी संस्था का लोगो और अन्य प्रक्रियाओं के लिए लेटर हेड मंगवाया तो उन्होंने यह कहकर इंकार कर दिया कि मेरे पास यह ऑथरिटी नहीं है कि मैं यह संस्था दिल्ली के अलावे बिहार में भी एक ब्रांच के रूप में खोल सकूँ. तो फिर सबको लगा कि ऐसे में तो हमारी इतने दिनों की सारी मेहनत बेकार हो जाएगी, सारे सदस्य हतोत्साहित हो जायेंगे. लेकिन अब ज्यादा समय नहीं बचा था विभा जी की टीम ने 4 दिसंबर का कार्यक्रम तो उसी एनजीओ के तहत किया लेकिन वहीं घोषणा कर दी कि हमलोग ये मंच छोड़ रहे हैं. और अपनी संस्था शुरू कर रहे हैं जिसके तहत हमलोगों का अपना कार्यक्रम होगा. और फिर तभी नई संस्था लेख्य-मंजूषा बन गयी लेकिन नामकरण में दो-चार दिन लग गएँ. जब बोलो ज़िन्दगी ने लेख्य-मंजूषा का अर्थ पूछा तो विभा जी ने बताया, "लेख्य का अर्थ हुआ लिखने योग्य और मंजूषा का अर्थ हुआ बक्शा या थैली. अब आप लेख्य मंजूषा का तातपर्य समझ ही गए होंगे."  इस संस्था में पूरे देश से लोग जुड़े हुए हैं. सतीश राज जी इस संस्था के अभिभावक हैं और उनके मार्गदर्शन में संस्था चल रही है. विभा जी के भइया सुनील कुमार श्रीवास्तव जो सिंचाई विभाग में इंजीनियर के पद से सेवानिवृत हैं जो साहित्य में रूचि रखते हैं. वे शुरू-शुरू में संस्था के संचालन में विभा जी को बहुत सहयोग किये थें.


लेख्य-मंजूषा के क्रियाकलाप - पहला कार्यक्रम 2017 जनवरी में हुआ मासिक गोष्ठी के रूप में. जनवरी से दिसंबर का इनका एक कैलेंडर है. एक महीना गध का काम होता है तो एक महीना पध पर काम होता है. और जो त्रैमासिक कार्यक्रम आता है वो भी एक बार गध तो दूसरी बार पध पर आधारित होता है. लेख्य मंजूषा का टैग लाइन है साहित्य और समाज के प्रति जागरूक करती संस्था. इसमें सिर्फ साहित्य के काम नहीं बल्कि सामाजिक कार्य भी होते हैं. उसके तहत आकांक्षा सेवा संस्थान जो झुग्गी-झोपड़ी के दलित बच्चों की शिक्षा पर काम करती है उसे हर महीने आर्थिक सपोर्ट करते हैं. वहां जब भी जरूरत होती है लेख्य-मंजूषा संस्था के लोग जाते हैं. अभी जो पटना में बाढ़ आयी थी टीम के सदस्यों ने शारीरिक सपोर्ट तो किया ही उसके साथ ही साथ फंड जुटाकर, कपडे, खाने-पीने के सामान, ब्लीचिंग पाउडर आदि का वितरण भी कराया. ठंढ में गरीबों को कंबल वितरण इत्यादि के कई कार्यक्रम चलते रहते हैं. पिछले दो साल से पटना पुस्तक मेले में संस्था अपने बैनर तले वहां साहित्यिक कार्यक्रम कर रहीं है. त्रैमासिक पत्रिका साहित्यिक स्पंदन भी निकलती है जिसमे पूरे देश के साहित्यकारों की रचनाएँ प्रकाशित होती हैं, जिसका सम्पादन विभा रानी ही करती हैं. संपादन में लगभग 8 पुस्तकें आ चुकी हैं, लघुकथा के 5, हायकू के दो और एक वर्ण पिरामिड की पुस्तक.
           अभी 4 दिसंबर को संस्था के वर्षगांठ कार्यक्रम में सामाजिक सन्देश देनेवाली एक शॉर्ट फिल्म 'षड्यंत्र' का प्रदर्शन भी हुआ जो विभा रानी जी की लघुकथा पर आधारित है. और इसके डायरेक्शन, म्यूजिक, सिनेमेटोग्राफी और एडिटिंग से लेकर एक्टिंग तक सभी हमारी ही संस्था के सदस्यों ने किया. पहले इसके निर्माण के लिए इन्होने मार्केट में प्रोफेशनल लोगों से सम्पर्क किया तो उन्होंने 45 हजार चार्ज बताया जो एक बार में शॉर्ट फिल्म के लिए देना इन्हे मुनासिब नहीं लगा. फिर जब फैसला हुआ कि ये लोग खुद ही फिल्म बनाएंगे और फिर इस फिल्म में शामिल 9 लोगों ने पांच- पांच सौ रुपये मिलाये और सिर्फ 45 सौ में लेख्य-मंजूषा की शॉर्ट फिल्म बनकर तैयार हो गयी. इससे संस्था के सदस्य और भी उत्साहित हुए.

नई पीढ़ी को सन्देश : विभा जी कहती हैं, "2013 में बेटे की शादी हुई तो इधर कुछ सालों से मेरी एक्टिविटी पुनः बढ़ी. मेरा मानना है कि कोई भी काम कभी भी किसी भी उम्र में किया जा सकता है. और मैं अपनी संस्था में मैं वैसे लोगों को जायदा से ज्यादा शामिल करती हूँ जो टैलेंट होते हुए भी कभी कुछ नहीं किये हों. कई वैसे लोगों को घर-जा-जाकर ढूंढा मैंने. तो जब मैं इस उम्र में सक्रीय रह सकती हूँ तो आप क्यों नहीं...?"

स्पेशल गेस्ट की मौजूदगी - इस कार्यक्रम में बतौर स्पेशल गेस्ट के रूप में उपस्थित लघुकथा के पितामह डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी ने भी विभा रानी श्रीवास्तव के प्रयासों की भूरी-भूरी प्रशंसा की और अपने संघर्ष के आरम्भिक दिनों के कुछ संस्मरण बोलो ज़िन्दगी के साथ साझा किए. फिर बोलो जिंदगी के रिक्वेस्ट पर विभा रानी और डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी ने अपनी लिखी हुई लघुकथाओं का पाठ करके सुनाया. मौके पर बोलो ज़िन्दगी के निदेशक राकेश सिंह 'सोनू' ने अपनी लिखी पुस्तकें "तुम्हें सोचे बिना नींद आये तो कैसे ?" और "एक जुदा सा लड़का" दोनों ही वरिष्ठ साहित्यकर्मियों को भेंट की.

(इस पूरे कार्यक्रम को बोलोजिन्दगी डॉट कॉम पर भी देखा जा सकता है.)













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