वो संघर्षमय दिन
By : Rakesh Singh 'Sonu'
मेरा गांव 'कोइल भूपत' बिहार के अरवल जिले में है. पटना के कंकड़बाग में हमारा पुस्तैनी मकान है. मेरा पूरा फैमली बैकग्राउंड जर्नलिस्टों वाला रहा है. मेरे पिता स्व. सर्वदेव ओझा सर्च लाइट' न्यूज पेपर के एडिटर थें. एक बार वे रिक्शे से जा रहे थें कि उनका एक्सीडेंट हो गया. वे रिक्शे से गीर गएँ और हार्ट अटैक से उनका देहांत हो गया. उस वक्त मेरी उम्र महज ढ़ाई साल थी और मेरे छोटे भाई की उम्र एक साल. पांच भाई-बहनों में तीनों बहनें मुझसे बड़ी थीं. हमारे परिवार के एक भईया अवधेश ओझा भी प्रसिद्ध पत्रकार थें. पहले 'आज' में काम करने के बाद वे 'दैनिक हिन्दुस्तान' में गए थें. उनके साथ ही हमलोग रहने लगें और बचपन से ही मैंने पत्रकार और पत्रकारिता के माहौल को बहुत ही नजदीक से देखा था. पापा के नहीं रहने से थोड़ी आर्थिक परेशानी आई. हम पांच भाई-बहन और भईया के भी पढ़नेवाले तीन बच्चे सभी ज्वाइंट फैमली में थें जिससे परिवार पर बहुत ज्यादा लोड था. इस वजह से ज्ञान निकेतन प्राइवेट स्कूल में हमलोग 6 क्लास तक ही पढ़े फिर 7 वीं में सर गणेश दत्त पाटलिपुत्रा हाई स्कूल में आ गए जो गवर्नमेंट स्कूल था. वहीँ से 1994 में मैंने मैट्रिक फर्स्ट डिवीजन से पास किया. उसके बाद प्लस टू की पढ़ाई किये पटना यूनिवर्सिटी से फिर ए. एन. कॉलेज से ग्रेजुएशन किये. लेखन एवं जर्नलिज्म में मेरा शुरू से ही रुझान था. मैट्रिक के बाद 'लेटर टू एडिटर' के साथ फीचर आर्टिकल लिखना शुरू कर दिया. मेरी पहली स्टोरी 'आज' में प्रकाशित हुई थी. तब मैं फीचर एडिटर के सामने नहीं जाता था इस डर से कि मुझे देखने के बाद कहीं वे मुझे बच्चा समझकर जो भी छप रहा है वो भी नहीं छापेंगे. इसलिए शाम की बजाये मैं दोपहर में जब भीड़ नहीं होती तब अलग अलग कॉलम के लिए स्टोरी लेकर जाता और बिना अपना चेहरा दिखाए वहां बने बॉक्स में डालकर चुपचाप लौट आता था. और मेरी स्टोरी अख़बार में छप जाती थी. जब इंटर में गया तो बाहर के मैगजीनों में भी लिखना शुरू किया. जब बी.ए. पार्ट -1 में था तब के एक बड़े जर्नलिस्ट अमरेंद्र किशोर की दिल्ली से एक मैगजीन निकलती थी 'युग' जिसके लिए मैंने फोन से कॉन्टेक्ट किया तो उन्होंने स्टोरी भेजने को कह दिया. उसी दरम्यान एक और अख़बार था 'राष्ट्रिय नवीन मेल' जो डाल्टेनगंज से छपता था उसमे भी फोन से ही बात करके मैंने भेजना शुरू किया. चूँकि तब मेरी उम्र कम थी इसलिए मैं सबसे अपनी उम्र छुपाता था. 'राष्ट्रिय नवीन मेल' में खबरें छपती थीं और वे मुझे डाक से अख़बार भेजते थें. तब एक्साइटमेंट इतना ज्यादा रहता था कि 2 से 3 बजे के करीब अख़बार आने का टाइम होते हुए भी मैं 12 बजे से ही पोस्टमैन का इंतज़ार करने लगता था. पार्ट-2 में पढ़ने के दौरान राष्ट्रिय स्तर की एक चर्चित पत्रिका आती थी जिसके संपादक से भी मैंने फोन पर बात की थी. उन्होंने कहा कि ' हमारा तो पटना में रिपोर्टर और ब्यूरो भी है फिर भी तुम स्टोरी भेजो, अगर अच्छी हुई तो हम छापेंगे.' फिर मैंने पटना से उस पत्रिका के लिए स्टोरी भेजनी शुरू की. कुछ समय बाद ऐसा हुआ कि उनके रिपोर्टर की जगह मेरी स्टोरी छप जाती थी. इसपर उनके रिपोर्टर को बहुत बुरा लगता था. मुझे याद है कि उन दिनों मौर्यालोक में अशोक जी का बहुत फेमस बुक स्टॉल था जहाँ देशभर के सारे मैगजीन रहते थें और वहां सभी सीनियर जर्नलिस्ट लोग मैगजीन लेने आते थें . बुक स्टॉल के ऑनर अशोक जी मुझे छोटे भाई की तरह मानते थें. एक दफा उस चर्चित पत्रिका के स्थानीय रिपोर्टर जो मुझसे खफा थें वहीँ आये हुए थें और मुझे देखकर उन्होंने कहा कि 'तुम लिखना बंद कर दो वरना ठीक नहीं होगा.' मैंने कहा - 'ठीक है, आपको बुरा लग रहा है तो मैं नहीं लिखूंगा, लेकिन मैं तो आपके ऑफबीट स्टोरी भेजता हूँ.' फिर भी उन्होंने कहा - 'नहीं, कुछ भी नहीं भेजना है.' खैर, उनके मना करने के बावजूद भी मैं स्टोरी भेजता रहा. 'आज' अख़बार में भी कंटीन्यू लिख रहा था और तब राकेश प्रवीर जी इंचार्ज बनकर आ गए थें. मैंने तब 'आज' अख़बार में धीरे धीरे फुल पेज स्टोरी लिखनी शुरी कर दी थी. 'आज' के ही कुछ लोगों ने कहा - 'अरे तुम इतना बढ़िया लिखते हो, ऐस करो 'आज' में ज्वाइन कर लो.' मुझे याद है जिस दिन पटना में विमान हादसा हुआ था वेणी माधव चटर्जी जिसे सब दादा कहते थें का मेरे पास फोन आया और वे बोले - ' ऐसा करिये, आप आज से ही काम शुरू कर दीजिये और जाइये जहाँ विमान हादसा हुआ है वहां से स्टोरी लेकर आइये.'
तब मैं बी.ए.पार्ट 3 में था. फिर मैंने विमान हादसे पर दो-तीन स्टोरी किया. शाम में 6 पेज का विमान हादसे पर स्पेशल एडिसन निकला और उसमे मेरी स्टोरी कवर पेज पर छपी थी. देखकर पहले तो मुझे खुद यकीं नहीं हुआ क्यूंकि उस एडिसन में कई बड़े पत्रकारों की स्टोरी भी थी. उसी दिन 'आज' में मेरी विधिवत शुरुआत हुई थी. तब मेरा इंट्रेस्ट क्राइम रिपोर्टिं में था. और इसके पहले मैं दिल्ली से आनेवाली एक क्राइम पत्रिका 'मनोरम कहानियां' में स्टोरी लिखा करता था. और धीरे धीरे इंडिया टुडे और माया को छोड़ दें तो हिंदी का शायद ही कोई मैगजीन था जिसमे मेरी स्टोरी नहीं छपती थी. तब मेल करने की सुविधा नहीं थी और कुरियर करने में 4 दिन लग जाते थें. ऐसे में हम रातभर स्टोरी लिखते जो ए फोर साइज पेपर में 18 -20 पेज की स्टोरी होती थी. उसे पैक करके कुरियर से न भेजकर सुबह सुबह 4 बजे स्टेशन चले जाते वहां से अमृतसर मेल जाती थी और उस ट्रेन के कोच अटेंडेंट को 10 रूपए देकर लिफाफा पकड़ा देते थें. फिर कोच अटेंडेंट का नाम और बोगी नंबर दिल्ली फोन करके बता देते थें और अगले दिन वे लोग रिसीव कर लेते थें. ऐसा बहुत दिनों तक चला. उन मैगजीनों से अच्छा पेमेंट आ जाता था. 'आज' अख़बार ज्वाइन करने के बाद दादा बोले कि 'जब क्राइम रिपोर्टिंग करना चाहते हो तो जो सारे बाहुबली जेल में हैं उनका इंटरव्यू करके लाओ.' मैं गया और जेल में मुझे बृज बिहारी हत्याकांड का दोषी कैप्टन सुनील मिल गया जो कंकड़बाग का ही रहनेवाला था. उससे मैंने कहा कि मैं भी कंकड़बाग का हूँ तो फिर वही मुझे बाहुबली सूरजभान सिंह के पास लेकर गया. फिर मैंने उनका इंटरव्यू किया उसके बाद राजन तिवारी का किया. जब दोनों बाहुबली का इंटरव्यू लेकर दिया तो दादा को यकीं नहीं हुआ कि नया नया छोकरा कैसे जेल में बंद इन बाहुबलियों का आसानी से इंटरव्यू लेकर आ गया. फिर जब मैंने उनको हाथ में लगा जेल का मोहर जो अंदर जाते वक़्त लगता है दिखाया तब उन्हें यकीन हुआ. और उन दोनों का इंटरव्यू छप गया. उसके बाद हमने और भी कई बाहुबलियों का इंटरव्यू किया. इस बीच मुझे लगा की पोलिटिसियन से ज्यादा ये लोग कम्फर्टेवल होते हैं बात करने में. क्राइम रिपोर्टिंग में मेरी पहचान बनी बूटन सिंह हत्याकांड के वक़्त. बूटन सिंह समता पार्टी का पूर्णिया जिला अध्यक्ष था और पूर्णिया कोर्ट में उसकी हत्या कर दी गयी थी. मुझे एक सुराग मिला जिसके दम पर मैंने बताया कि पूरी हत्याकांड की साजिश बेउर जेल में रची गयी थी और सारे शूटर भी यहीं से गए थें. जब ये स्टोरी फ्रंट पेज पर छपी तो कुछ लोगों को यह सच्चाई हजम नहीं हुई. एक सीनियर पत्रकार तो मेरे 'आज' दफ्तर में आएं और आवेशित होकर बोले कि 'जो लिखे हो ये सब बनावटी बातें हैं जिनका सच्चाई से कोई वास्ता नहीं है.' उस समय मेरे चीफ रिपोर्टर थें अरुण अशेष जिन्होंने उनकी बातों को काटा और कहा कि 'नहीं, हमको अमिताभ पर भरोसा है और ये स्टोरी किया है तो सही ही होगा.' बाद में बूटन सिंह हत्याकांड की जांच सी.बी.आई. को सौंपी गयी और सी.बी.आई. ने भी अपने इन्वेस्टिगेशन में लाया कि इस कांड का बेउर जेल से लिंक था. तब आज अख़बार में मैंने एक कॉलम शुरू किया 'मोस्ट वांटेड' जिसमे शुरूआती दौर में पटना में फिर बिहार के जितने मोस्ट वांटेड थें उनकी तस्वीरों के साथ उनका क्राइम रिकॉर्ड, उनकी कमजोरी, उनकी ताकत आदि का ब्यौरा रहता था जो अपने समय में बहुत चर्चित हुआ था. उन्हीं दिनों मुझे बाहुबलियों से धमकी भी मिली और कुछ दोस्त भी बने. फिर क्राइम वर्ल्ड में बहुत अंदर तक मेरी पैठ बन गयी. तब उनकी धमकियों से मुझे डर नहीं लगता था क्यूंकि मेरा मानना था कि क्रिमनल बुरा नहीं है अगर आप उसके दिल की बात जान रहे हैं और उसके निगेटिव पॉइंट को अपने से मिर्च मसाला नहीं लगा रहे हैं तो वह आपका बुरा नहीं करेगा. मुझे याद है जब पटनासिटी में कमलिया हत्याकांड हुआ था और मैं घटना स्थल पर गया था. वहां से मुआयना करके आने के बाद स्टोरी लिखी कि इसमें सुल्तान मियां गैंग का हाथ है. लेकिन तब पटना पुलिस लोकल क्रिमनल का नाम ले रही थी. मेरी स्टोरी छपने के बाद सुल्तान मियां ने मुझे फोन किया 'आप मेरा नाम क्यों दिए?' मैंने कहा - ' इससे पहले तुम तीन मर्डर किये और तीनों मर्डर एक ही स्टाइल में हुई है.' उसने कहा - 'आप बहुत तेज बन रहे हो, गोली मार देंगे.' मैंने कहा - 'तुमको मारना है तो मारो, मैं 'आज' अख़बार में खिड़की के पास बैठता हूँ. मैं पुलिस का अफसर तो हूँ नहीं कि मेरे पास बॉर्डीगार्ड रहे. अगर तुम्हारा ईमान बोलता है कि मेरी बात गलत है तो फिर मार दो कोई दिक्कत नहीं है.' इस घटना के बाद सुल्तान मियां मेरा मुरीद हो गया. तब पटना में सुल्तान का खौफ इतना ज्यादा था कि उस समय के जो डी.जी.पी. थें उसे बिहार का लादेन कहते थें. फिर सुल्तान मियां को मेरी ईमानदारी पर इतना भरोसा हो गया कि उसने मुझे अपनी शादी में भी बुलाया और मैं गया भी था. जब उसने एक पार्लर में काम करनेवाली ब्राह्मण लड़की से शादी किया जो बाद में हिन्दू बनाम मुस्लिम मामला बन गया और काफी हाइलाइट हुआ था नेशनल लेवल पर कि पटना का इतना बड़ा एक मुस्लिम क्रिमनल एक हिन्दू लड़की को अगवा करके शादी कर लिया और पुलिस कुछ नहीं कर रही है. जब ये मामला हाईलाइट हुआ तो मैंने अख़बार में खबर छापी कि 'कई लाल बत्तीवाले आये थें सुल्तान की शादी में और पटना के बीचो बीच शादी हुई. मोस्ट वांटेड होने के बावजूद भी उसकी शादी में इतने वी.आई.पी. शरीक हुए थें. लेकिन हिन्दू बनाम मुस्लिम मामला हाईलाइट होते ही राष्ट्रिय महिला आयोग ने इस मामले को नोटिस कर लिया था. उस समय महिला आयोग की राष्ट्रिय अध्यक्ष थीं पूर्णिमा आडवाणी जो अपनी टीम के साथ बिहार आयी इस मामले की जाँच करने. जिस दिन वे पटना आयीं उसके एक दिन पहले मैंने कुछ एस्क्लुसिव तस्वीरों के साथ स्टोरी छापी थी कि सुल्तान मियां और उस हिन्दू लड़की का प्रेम प्रसंग था, कोई जबर्दस्ती शादी का मामला नहीं था. तो पूर्णिमा आडवाणी ये खबर देखने के बाद गुस्से से गरम हो गयीं. उसके बाद पाटलिपुत्रा थाने में जहाँ ये केस दर्ज था मुझे बुलाया गया और मुझसे कहा गया कि 'कुछ नहीं करना है, मैडम जो पूछेंगी बस उसका जवाब दे देना है.' तब नोटिस भेजा गया 'आज' दफ्तर में जिससे संपादक जी डर गए थें. बोलने लगें -'अरे ये क्या छाप दिए हो, कौन सा बवेला खड़ा हो गया है.' फिर स्टेट गेस्टहाउस में मैं पूर्णिमा जी के पास गया फिर बंद कमरे में उनके दो-तीन सहयोगियों के बीच मुझसे पूछा गया कि 'इस प्रकरण को आप इतना अंदर तक कैसे जानते हैं?' मैंने कहा- 'मैं एक क्राइम रिपोर्टर हूँ, मेरे पास इन्फॉर्मेशन आयी थी और उसी आधार पर मैंने स्टोरी किया.' उन्होंने कहा -'पुलिस को खबर नहीं और आपके पास खबर है ?' मैंने कहा- 'ये तो पुलिस की समस्या है मेरी नहीं.' उन्होंने पूछा -'आपने जो तस्वीरें छापी हैं ये कौन दिया आपको ?' मैंने कहा- 'जब मामला चल रहा था तभी सुल्तान के लोगों ने मुझसे संपर्क किया था. तो मैंने बोला था कि अगर वो लड़की कंचन मिश्रा अपनी मर्जी से शादी की है तो उसे प्रूव करना चाहिए. तब जाकर उन लोगों ने मुझे फोटो भिजवाया था.' कुछ और भी फोटो मैंने उन्हें दिखाया जो पेपर में पब्लिश नहीं हुआ था. फिर पूछा गया कि 'आप और क्या जानते हैं?' मैंने कहा -' कंचन मिश्रा के माँ-बाप दिव्यांग थें और वो ब्यूटी पार्लर में काम करती थी. उस पार्लर का मालिक उससे तीन बार रेप की कोशिश कर चुका था. सुल्तान मियां ने कंचन को बचाते हुए वार्निंग दी थी कि उस पर गलत निगाह रखोगे तो अच्छा नहीं होगा. लेकिन फिर जब पार्लर मालिक ने चौथी बार रेप की कोशिश की तब सुल्तान ने उसका मर्डर कर दिया. और उसके बाद कंचन ने अपनी मर्जी से सुल्तान के साथ शादी कर लिया.' फिर महिला आयोग की टीम वहीँ से मेरे बयान से संतुष्ट होकर वापस दिल्ली लौट गयी. बाद में जब उनका रिपोर्ट आया तो उसमे मेरे बयान का मेंशन था. उन्हीं दिनों का एक और वाक्या याद है जब मेरे साथ तीन बार लूटपाट हुई थी. रात में दो बजे हम एडिसन छोड़कर पैदल ही घर निकल जाते थें. एक बार रास्ते में मुझपर पिस्तौल भिड़ाया गया और चुपचाप मैंने मोबाईल वगैरह दे दिया फिर सुबह में जाकर उसी क्रिमनल से मांग भी लिया. चूँकि होता ये है कि क्रिमनल जब क्राइम करने जाता है तो वो आपसे सौ गुणा ज्यादा टेंशन में होता है. अगर आप थोड़ा सा उसे दिखाएंगे कि आप उसे जान गए हैं या उसे इरिटेट कीजियेगा तो वो आपको मार देगा. करीब 2002 में मैंने क्राइम हेड,ब्यूरो के पोस्ट पर 'दैनिक हिन्दुस्तान' ज्वाइन किया. एक क्राइम रिपोर्टर मेरी सबसे ज्यादा पहचान 'हिंदुस्तान' से ही बनी. मेरा एक चर्चित कॉलम आता था 'पुलिस डायरी'. तब हिंदुस्तान अख़बार के इतिहास में सबसे कम उम्र के रिपोर्टर का यह पहला कॉलम था. शुरुआत में पटना एडिसन छपा फिर देखते -देखते ये बिहार के सभी एडिसन में फॉलो किया जाने लगा. उसी दरम्यान मुझे ऑफर मिला बी.ए.जी. फिल्म्स की तरफ से. अजित अंजुम जी आये थें जिन्होंने इंटरव्यू लिया फिर मेरा सेलेक्शन हुआ. तब बड़ा मुश्किल था डिसीजन लेना प्रिंट मीडिया छोड़कर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जाना और वो भी हिंदुस्तान जैसे अख़बार में इतने अच्छे पोस्ट पर रहते हुए . तब 'हिंदुस्तान' में मैंने कई केस किये थें जिनमे पटना सिविल कोर्ट इक्जाम का पेपर लिक मामला बहुत चर्चित हुआ था. उन ढ़ाई साल के पीरियड में ही बहुत अच्छा काम रहा और तब शायद ही कोई इलाका ऐसा हो जहाँ के अपराधी, जहाँ के माफिया से मेरे ताल्लुकात नहीं हुए. इसलिए तब असमंजस में था कि प्रिंट मीडिया छोडूं कि नहीं. तब सौ में से नब्बे लोगों ने मना किया मुझे. लेकिन मेरे दिमाग में था कि 'अख़बार में तो सबलोग काम किये हैं, कुछ नया करना चाहिए.' और जिस दिन मेरा इंटरव्यू हुआ उसके एक दिन पहले मेरा इंगेजमेंट हुआ था. फिर 1 नवम्बर, 2005 से बी.ए.जी. से जुड़ गया.
मैं तब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए एकदम नया नया था लेकिन अजित अंजुम काफी मोटिवेट करते थें. फिर कई अच्छी स्टोरी की मैंने चाहे वो किडनैपिंग हो, बाहुबलियों पर आधारित सीरीज हो. सनसनी और रेड अलर्ट के लिए काम करने के दौरान कई जगह खतरा भी हुआ. सबसे बढ़िया अनुभव रहा जब हम बगहा के जंगलों में गए थें जहाँ डकैतों का राज चलता था. उन लोगों के पास जाकर इंटरव्यू करना तब अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती थी. तब बी.ए.जी. के लिए पहली बार बिहार में हमने स्टिंग ऑपरेशन किया. पहला स्टिंग किया 'डॉकटर कंस' जिसमे भ्रूण हत्या को लेकर टॉप के डाक्टरों की संलिप्तता उजागर की थी. तब बड़े बड़े 7 -8 स्टिंग हमने किये थें. तब अख़बार से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खुद को स्थापित करना बहुत बड़ी चुनौती थी जिसे मैंने पूरा किया. तब लोग बोले कि 'यहाँ भी आकर ये जम गया.' बी.ए.जी. के अंतर्गत जब 2007 में न्यूज 24 की लॉन्चिंग हुई तो हमारे पास दो ऑप्शन थें. या तो न्यूज 24 में रहिये या स्टार प्लस के 'सनसनी' प्रोग्राम में चले जाइये. लेकिन चूँकि अजित अंजुम सर न्यूज 24 में थें और हमलोगों को लेकर वही आये थें. फिर मेरे दिल में था कि वही मेरे आइडियल हैं तो मैं न्यूज 24 में ही रह गया. फिर 2005 से लगातार बीएजी फिल्म्स और न्यूज 24 से जुड़ा हूँ. यह मेरे लिए परिवार के जैसा है और यही वजह है कि कभी ख्याल ही नहीं आता कि अपने परिवार से अलग जाऊं. मैं बिहार का ब्यूरो चीफ हूँ लेकिन साथ ही पश्चिम बंगाल और नेपाल की खबरें भी देखता हूँ. 2015 में नेपाल में आये जबर्दस्त भूकंप के वक़्त कैमरामैन के साथ वहीँ काठमांडू में 15 दिनों तक रहकर मैंने रिपोर्टिंग की थी. बंगाल में जब बड़ा बाजार में आग लगी तब वहां भी हम गए. बिहार में नकली खून के कारोबार का भी पर्दाफाश किये. शराबबंदी में हमने दिखया कि कैसे नए नए शराब माफिया बन रहे हैं. फिर 2017 में जब नोटबंदी हुई तब उस समय हम नेपाल बॉर्डर पर गए थें और स्टिंग में दिखाए की ब्लैक मार्केटिंग में कैसे पैसा जाता है. इस खबर से बिल्डरों में खलबली मच गयी और फिर पटना में इंकमटैक्स की रेड पड़नी शुरू हो गयी. अभी बाढ़ में मैं अकेला चम्पारण से लेकर किशनगंज तक कवर करने गया. मेरा मानना है कि जिसमे जोश, जुनून और जिज्ञासा नहीं वो पत्रकार नहीं. जब रिपोर्टर में काम करने की क्षमता खत्म हो जाएगी तब वो रिपोर्टर नहीं रहेगा. न्यूज 24 में रहते हुए भी मैं सोशल इशू पर ज्यादा जोर देता हूँ. मैं फेसबुक पर भी होता हूँ तो लोग सबसे ज्यादा मेरे क्राइम न्यूज को ही देखने वाले होते हैं. और अभी का जो दौर है वो चेंजेवल है, बहुत ज्यादा चैलेंजिंग है, क्यूंकि आज सोशल मीडिया के रूप में लोगों के पास बहुत बड़ा हथियार है. थोड़ा सा भी अगर गलत दिखाते हैं या डायवर्ट करने की कोशिश करते हैं तो आपके पास तुरंत रिएक्शन आने शुरू हो जाते हैं. इसलिए मैं जितना चैनल पर एक्टिव हूँ उतना ही सोशल मीडिया पर भी हूँ. कई लोग मुझे फेसबुक पर ही खबर भेजते हैं या उनकी जो प्रॉब्लम होती है कोशिश करता हूँ कि सबको मैं शॉर्टआउट करूँ.
By : Rakesh Singh 'Sonu'
तब मैं बी.ए.पार्ट 3 में था. फिर मैंने विमान हादसे पर दो-तीन स्टोरी किया. शाम में 6 पेज का विमान हादसे पर स्पेशल एडिसन निकला और उसमे मेरी स्टोरी कवर पेज पर छपी थी. देखकर पहले तो मुझे खुद यकीं नहीं हुआ क्यूंकि उस एडिसन में कई बड़े पत्रकारों की स्टोरी भी थी. उसी दिन 'आज' में मेरी विधिवत शुरुआत हुई थी. तब मेरा इंट्रेस्ट क्राइम रिपोर्टिं में था. और इसके पहले मैं दिल्ली से आनेवाली एक क्राइम पत्रिका 'मनोरम कहानियां' में स्टोरी लिखा करता था. और धीरे धीरे इंडिया टुडे और माया को छोड़ दें तो हिंदी का शायद ही कोई मैगजीन था जिसमे मेरी स्टोरी नहीं छपती थी. तब मेल करने की सुविधा नहीं थी और कुरियर करने में 4 दिन लग जाते थें. ऐसे में हम रातभर स्टोरी लिखते जो ए फोर साइज पेपर में 18 -20 पेज की स्टोरी होती थी. उसे पैक करके कुरियर से न भेजकर सुबह सुबह 4 बजे स्टेशन चले जाते वहां से अमृतसर मेल जाती थी और उस ट्रेन के कोच अटेंडेंट को 10 रूपए देकर लिफाफा पकड़ा देते थें. फिर कोच अटेंडेंट का नाम और बोगी नंबर दिल्ली फोन करके बता देते थें और अगले दिन वे लोग रिसीव कर लेते थें. ऐसा बहुत दिनों तक चला. उन मैगजीनों से अच्छा पेमेंट आ जाता था. 'आज' अख़बार ज्वाइन करने के बाद दादा बोले कि 'जब क्राइम रिपोर्टिंग करना चाहते हो तो जो सारे बाहुबली जेल में हैं उनका इंटरव्यू करके लाओ.' मैं गया और जेल में मुझे बृज बिहारी हत्याकांड का दोषी कैप्टन सुनील मिल गया जो कंकड़बाग का ही रहनेवाला था. उससे मैंने कहा कि मैं भी कंकड़बाग का हूँ तो फिर वही मुझे बाहुबली सूरजभान सिंह के पास लेकर गया. फिर मैंने उनका इंटरव्यू किया उसके बाद राजन तिवारी का किया. जब दोनों बाहुबली का इंटरव्यू लेकर दिया तो दादा को यकीं नहीं हुआ कि नया नया छोकरा कैसे जेल में बंद इन बाहुबलियों का आसानी से इंटरव्यू लेकर आ गया. फिर जब मैंने उनको हाथ में लगा जेल का मोहर जो अंदर जाते वक़्त लगता है दिखाया तब उन्हें यकीन हुआ. और उन दोनों का इंटरव्यू छप गया. उसके बाद हमने और भी कई बाहुबलियों का इंटरव्यू किया. इस बीच मुझे लगा की पोलिटिसियन से ज्यादा ये लोग कम्फर्टेवल होते हैं बात करने में. क्राइम रिपोर्टिंग में मेरी पहचान बनी बूटन सिंह हत्याकांड के वक़्त. बूटन सिंह समता पार्टी का पूर्णिया जिला अध्यक्ष था और पूर्णिया कोर्ट में उसकी हत्या कर दी गयी थी. मुझे एक सुराग मिला जिसके दम पर मैंने बताया कि पूरी हत्याकांड की साजिश बेउर जेल में रची गयी थी और सारे शूटर भी यहीं से गए थें. जब ये स्टोरी फ्रंट पेज पर छपी तो कुछ लोगों को यह सच्चाई हजम नहीं हुई. एक सीनियर पत्रकार तो मेरे 'आज' दफ्तर में आएं और आवेशित होकर बोले कि 'जो लिखे हो ये सब बनावटी बातें हैं जिनका सच्चाई से कोई वास्ता नहीं है.' उस समय मेरे चीफ रिपोर्टर थें अरुण अशेष जिन्होंने उनकी बातों को काटा और कहा कि 'नहीं, हमको अमिताभ पर भरोसा है और ये स्टोरी किया है तो सही ही होगा.' बाद में बूटन सिंह हत्याकांड की जांच सी.बी.आई. को सौंपी गयी और सी.बी.आई. ने भी अपने इन्वेस्टिगेशन में लाया कि इस कांड का बेउर जेल से लिंक था. तब आज अख़बार में मैंने एक कॉलम शुरू किया 'मोस्ट वांटेड' जिसमे शुरूआती दौर में पटना में फिर बिहार के जितने मोस्ट वांटेड थें उनकी तस्वीरों के साथ उनका क्राइम रिकॉर्ड, उनकी कमजोरी, उनकी ताकत आदि का ब्यौरा रहता था जो अपने समय में बहुत चर्चित हुआ था. उन्हीं दिनों मुझे बाहुबलियों से धमकी भी मिली और कुछ दोस्त भी बने. फिर क्राइम वर्ल्ड में बहुत अंदर तक मेरी पैठ बन गयी. तब उनकी धमकियों से मुझे डर नहीं लगता था क्यूंकि मेरा मानना था कि क्रिमनल बुरा नहीं है अगर आप उसके दिल की बात जान रहे हैं और उसके निगेटिव पॉइंट को अपने से मिर्च मसाला नहीं लगा रहे हैं तो वह आपका बुरा नहीं करेगा. मुझे याद है जब पटनासिटी में कमलिया हत्याकांड हुआ था और मैं घटना स्थल पर गया था. वहां से मुआयना करके आने के बाद स्टोरी लिखी कि इसमें सुल्तान मियां गैंग का हाथ है. लेकिन तब पटना पुलिस लोकल क्रिमनल का नाम ले रही थी. मेरी स्टोरी छपने के बाद सुल्तान मियां ने मुझे फोन किया 'आप मेरा नाम क्यों दिए?' मैंने कहा - ' इससे पहले तुम तीन मर्डर किये और तीनों मर्डर एक ही स्टाइल में हुई है.' उसने कहा - 'आप बहुत तेज बन रहे हो, गोली मार देंगे.' मैंने कहा - 'तुमको मारना है तो मारो, मैं 'आज' अख़बार में खिड़की के पास बैठता हूँ. मैं पुलिस का अफसर तो हूँ नहीं कि मेरे पास बॉर्डीगार्ड रहे. अगर तुम्हारा ईमान बोलता है कि मेरी बात गलत है तो फिर मार दो कोई दिक्कत नहीं है.' इस घटना के बाद सुल्तान मियां मेरा मुरीद हो गया. तब पटना में सुल्तान का खौफ इतना ज्यादा था कि उस समय के जो डी.जी.पी. थें उसे बिहार का लादेन कहते थें. फिर सुल्तान मियां को मेरी ईमानदारी पर इतना भरोसा हो गया कि उसने मुझे अपनी शादी में भी बुलाया और मैं गया भी था. जब उसने एक पार्लर में काम करनेवाली ब्राह्मण लड़की से शादी किया जो बाद में हिन्दू बनाम मुस्लिम मामला बन गया और काफी हाइलाइट हुआ था नेशनल लेवल पर कि पटना का इतना बड़ा एक मुस्लिम क्रिमनल एक हिन्दू लड़की को अगवा करके शादी कर लिया और पुलिस कुछ नहीं कर रही है. जब ये मामला हाईलाइट हुआ तो मैंने अख़बार में खबर छापी कि 'कई लाल बत्तीवाले आये थें सुल्तान की शादी में और पटना के बीचो बीच शादी हुई. मोस्ट वांटेड होने के बावजूद भी उसकी शादी में इतने वी.आई.पी. शरीक हुए थें. लेकिन हिन्दू बनाम मुस्लिम मामला हाईलाइट होते ही राष्ट्रिय महिला आयोग ने इस मामले को नोटिस कर लिया था. उस समय महिला आयोग की राष्ट्रिय अध्यक्ष थीं पूर्णिमा आडवाणी जो अपनी टीम के साथ बिहार आयी इस मामले की जाँच करने. जिस दिन वे पटना आयीं उसके एक दिन पहले मैंने कुछ एस्क्लुसिव तस्वीरों के साथ स्टोरी छापी थी कि सुल्तान मियां और उस हिन्दू लड़की का प्रेम प्रसंग था, कोई जबर्दस्ती शादी का मामला नहीं था. तो पूर्णिमा आडवाणी ये खबर देखने के बाद गुस्से से गरम हो गयीं. उसके बाद पाटलिपुत्रा थाने में जहाँ ये केस दर्ज था मुझे बुलाया गया और मुझसे कहा गया कि 'कुछ नहीं करना है, मैडम जो पूछेंगी बस उसका जवाब दे देना है.' तब नोटिस भेजा गया 'आज' दफ्तर में जिससे संपादक जी डर गए थें. बोलने लगें -'अरे ये क्या छाप दिए हो, कौन सा बवेला खड़ा हो गया है.' फिर स्टेट गेस्टहाउस में मैं पूर्णिमा जी के पास गया फिर बंद कमरे में उनके दो-तीन सहयोगियों के बीच मुझसे पूछा गया कि 'इस प्रकरण को आप इतना अंदर तक कैसे जानते हैं?' मैंने कहा- 'मैं एक क्राइम रिपोर्टर हूँ, मेरे पास इन्फॉर्मेशन आयी थी और उसी आधार पर मैंने स्टोरी किया.' उन्होंने कहा -'पुलिस को खबर नहीं और आपके पास खबर है ?' मैंने कहा- 'ये तो पुलिस की समस्या है मेरी नहीं.' उन्होंने पूछा -'आपने जो तस्वीरें छापी हैं ये कौन दिया आपको ?' मैंने कहा- 'जब मामला चल रहा था तभी सुल्तान के लोगों ने मुझसे संपर्क किया था. तो मैंने बोला था कि अगर वो लड़की कंचन मिश्रा अपनी मर्जी से शादी की है तो उसे प्रूव करना चाहिए. तब जाकर उन लोगों ने मुझे फोटो भिजवाया था.' कुछ और भी फोटो मैंने उन्हें दिखाया जो पेपर में पब्लिश नहीं हुआ था. फिर पूछा गया कि 'आप और क्या जानते हैं?' मैंने कहा -' कंचन मिश्रा के माँ-बाप दिव्यांग थें और वो ब्यूटी पार्लर में काम करती थी. उस पार्लर का मालिक उससे तीन बार रेप की कोशिश कर चुका था. सुल्तान मियां ने कंचन को बचाते हुए वार्निंग दी थी कि उस पर गलत निगाह रखोगे तो अच्छा नहीं होगा. लेकिन फिर जब पार्लर मालिक ने चौथी बार रेप की कोशिश की तब सुल्तान ने उसका मर्डर कर दिया. और उसके बाद कंचन ने अपनी मर्जी से सुल्तान के साथ शादी कर लिया.' फिर महिला आयोग की टीम वहीँ से मेरे बयान से संतुष्ट होकर वापस दिल्ली लौट गयी. बाद में जब उनका रिपोर्ट आया तो उसमे मेरे बयान का मेंशन था. उन्हीं दिनों का एक और वाक्या याद है जब मेरे साथ तीन बार लूटपाट हुई थी. रात में दो बजे हम एडिसन छोड़कर पैदल ही घर निकल जाते थें. एक बार रास्ते में मुझपर पिस्तौल भिड़ाया गया और चुपचाप मैंने मोबाईल वगैरह दे दिया फिर सुबह में जाकर उसी क्रिमनल से मांग भी लिया. चूँकि होता ये है कि क्रिमनल जब क्राइम करने जाता है तो वो आपसे सौ गुणा ज्यादा टेंशन में होता है. अगर आप थोड़ा सा उसे दिखाएंगे कि आप उसे जान गए हैं या उसे इरिटेट कीजियेगा तो वो आपको मार देगा. करीब 2002 में मैंने क्राइम हेड,ब्यूरो के पोस्ट पर 'दैनिक हिन्दुस्तान' ज्वाइन किया. एक क्राइम रिपोर्टर मेरी सबसे ज्यादा पहचान 'हिंदुस्तान' से ही बनी. मेरा एक चर्चित कॉलम आता था 'पुलिस डायरी'. तब हिंदुस्तान अख़बार के इतिहास में सबसे कम उम्र के रिपोर्टर का यह पहला कॉलम था. शुरुआत में पटना एडिसन छपा फिर देखते -देखते ये बिहार के सभी एडिसन में फॉलो किया जाने लगा. उसी दरम्यान मुझे ऑफर मिला बी.ए.जी. फिल्म्स की तरफ से. अजित अंजुम जी आये थें जिन्होंने इंटरव्यू लिया फिर मेरा सेलेक्शन हुआ. तब बड़ा मुश्किल था डिसीजन लेना प्रिंट मीडिया छोड़कर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जाना और वो भी हिंदुस्तान जैसे अख़बार में इतने अच्छे पोस्ट पर रहते हुए . तब 'हिंदुस्तान' में मैंने कई केस किये थें जिनमे पटना सिविल कोर्ट इक्जाम का पेपर लिक मामला बहुत चर्चित हुआ था. उन ढ़ाई साल के पीरियड में ही बहुत अच्छा काम रहा और तब शायद ही कोई इलाका ऐसा हो जहाँ के अपराधी, जहाँ के माफिया से मेरे ताल्लुकात नहीं हुए. इसलिए तब असमंजस में था कि प्रिंट मीडिया छोडूं कि नहीं. तब सौ में से नब्बे लोगों ने मना किया मुझे. लेकिन मेरे दिमाग में था कि 'अख़बार में तो सबलोग काम किये हैं, कुछ नया करना चाहिए.' और जिस दिन मेरा इंटरव्यू हुआ उसके एक दिन पहले मेरा इंगेजमेंट हुआ था. फिर 1 नवम्बर, 2005 से बी.ए.जी. से जुड़ गया.
अमिताभ ओझा बाढ़ में रिपोर्टिंग करते हुए |
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