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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Thursday, 31 August 2017

तब ससुरालवालों के कमेंट सुनकर गुस्सा आ जाता था : डॉ. शेफाली राय, एच.ओ.डी.,पोलिटिकल साइंस, पटना वीमेंस कॉलेज

ससुराल के वो शुरूआती दिन
By : Rakesh Singh 'Sonu'

हमारा था तो प्रेम विवाह लेकिन दोनों तरफ के परिवारों ने मिलकर अरेंज्ड बना दिया. इससे हम अपनी उपलब्धि पर काफी खुश थें. मजे की बात यह थी कि मायका-ससुराल दोनों पटना में ही था. हालाँकि शादी के पहले भी मैं अपने ससुराल जा चुकी थी लेकिन शादी के बाद पहली बार ससुराल जाने का अनुभव ही कुछ और था. रिश्तेदारों से घर भरा हुआ था. शर्म और डर का एक मिश्रित भाव मन में था. आम शादियों की तरह मेरी माँ ने शौक के कुछ सामान साथ दिए थें. टी.वी. देखकर मेरा चचेरा देवर बोला - ' टी.वी. है या डब्बा, चलता ही नहीं.' मैंने मन ही मन सोचा कैसा गंवार है, पहले कभी टी.वी. नहीं देखा है क्या? गुस्सा भी आया लेकिन चुप रही. मेरे पति आनंद की बुआ आयी थीं जो जरा ऊँचा सुनती थीं और जोर से बोलती भी थीं. साथ लाये पीतल के तसले को देख बोलीं - 'अच्छा है लेकिन छोटा है, हमारे बेटे की शादी में बहू इससे बड़ा लायी थी. खैर मेरा परिवार भी बड़ा है.'  तब मुझे गुस्से से रोना आ रहा था. किसी तरह खुद को संभाला. सुकून इस बात का था कि मेरे सास-ससुर एवं पति ऐसा कुछ नहीं कह रहे थें. शादी के तीसरे दिन मेरी बड़ी ननद का सालगिरह था. हमारी आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी. आनंद ने कहा कि जीजा जी को माँ अंगूठी देना चाहती है. मुझे जो चढ़ा है उसमे से एक दे दूँ ?' इतना कहना था कि मैं आपे से बाहर हो गयी और स्पष्ट रूप से ना कह दिया. वे चुपचाप चले गए. फिर मैंने सोचा कि दो हज़ार रूपए दे देती हूँ, कुछ खरीद लेंगे. आनंद तुरंत दो हज़ार रूपए गिनकर दीदी को दे आये. फिर आई बारी मेरे खाना बनाने की. मायके में शायद ही कभी किचन में गयी थी फिर भी अपनी बड़ी बहन से रेसिपी लेकर डरते-डरते पनीर की सब्जी बनायी. मेरी ननद ने कहा- 'कोशिश करती रहो, सीख जाओगी खाना बनाना.' सासु माँ ने कमेंट किया- 'रोगी का सब्जी बना है.' मैंने तपाक से अपने पति आनंद को कह दिया- 'सुनो मुझसे यह मत एक्सपेक्ट करना कि मैं रोज खाना बनाऊं, कॉलेज में पढ़ाऊँ और तुम्हारी फैमली के कमेंट सुनूं.'  आनंद परेशान सा मुझे देखते रहें. मैंने उन्हें कुछ बोलने का मौका भी नहीं दिया. वैसे मेरे पति बहुत अंडरस्टैंडिंग रहें. वे शांत प्रकृति के हैं और मुझे प्यार से समझाते रहें. हाँ एक बात तो बताना भूल गयी. मेरी एक छोटी ननद भी है जो दिव्यांग है. जब भी कोई गेस्ट मेरे घर आता तो वो सामने आ जाती और मुझे तब बहुत बुरा लगता था. मगर आज मेरी सास की मृत्यु के बाद वो हमारे साथ ही रहती है. अब मैं खुद उसे ड्राइंगरूम में गेस्ट के साथ बैठाती हूँ. शायद वो मेरा लड़कपन था.

शेफाली राय अपने पति आनंद जी के साथ 
हाँ तो मैं बता रही थी ससुराल के शुरूआती दिन. धीरे-धीरे घर खाली हो गया. रिश्तेदार वापस चले गए. आनंद और मैंने मुंह दिखाई के पैसे जोड़े और हनीमून को चल दिए. पैसे कम थे मगर पति का प्यार बहुत था. लौटते समय सबके लिए छोटे-छोटे गिफ्ट खरीदें. धीरे-धीरे ससुराल वालों की आदत से मैं परिचित हुई. उनलोगों ने भी मेरे स्वभाव को परखा. और इस तरह हम कब एक परिवार हो गए पता भी नहीं चला. मैं रम गयी पर हाँ अब कुछ बातों को याद कर हंसी आती है. अब लगता है कि काश फिर से वो पल आयें तो हम सभी प्रेम से अनमोल रिश्तों को जी पाते. एक बात और कहना चाहूंगी कि माँ की भूमिका अहम होती है. जब मैं गुस्से में मायके आ जाती थी तो मेरी माँ मुझे प्यार से मेरी गलती बताती फिर शाम तक मेरा गुस्सा शांत हो जाता और आनंद मुझको घर ले जाते. धन्य थी मेरी माँ. मैं भी अपनी बिटिया को यही संस्कार देना चाहती हूँ. लचीलापन आवश्यक होता है नए परिवेश में जीने के लिए. आज अकेलापन महसूस होता है. सासु माँ की कमी खलती है. काश वो वक़्त लौट पाता.

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