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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Wednesday, 29 November 2017

प्रांगण कला केंद्र के 'लोकरंग' कार्यक्रम में विभिन्न राज्यों के लोकनृत्यों की हुई प्रस्तुति

सिटी हलचल
Reporting : BOLO ZINDAGI 

नृत्य नाटिका प्रस्तुत करते बच्चों के साथ
'बोलो जिंदगी' के एडिटर राकेश सिंह 'सोनू' 
पटना, 29 नवम्बर, भारतीय नृत्य कला मंदिर बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद्, पटना(बिहार) के सहयोग से हॉराइज़न सीरिज के अंतर्गत 'प्रांगण' द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम 'लोकरंग' में बच्चों द्वारा विभिन्न प्रदेशों के लोकनृत्यों की मनमोहक प्रस्तुति की गयी. जिसमे बिहार, बंगाल, राजस्थान, हरियाणा, गोवा, गुजरात, द.भारत आदि राज्यों के लोकनृत्यों की रंगारंग प्रस्तुति की गयी.



इस कार्यक्रम में प्रांगण कला केंद्र के लगभग 40 बच्चों ने भाग लिया. समस्त नृत्यों का निर्देशन श्रीमती सोमा चक्रवर्ती एवं श्रीमती अर्पिता घोष ने किया और उनका सहयोग आतिश कुमार ने किया. कार्यक्रम का शुभारम्भ श्री प्रवीण मोहन सहाय, क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी सह क्षेत्रीय निदेशक, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद्, पटना के करकमलों द्वारा दीप प्रज्वलन से किया गया. कार्यक्रम में पासपोर्ट कार्यालय के वरीय पदाधिकारीगण सर्वश्री अन्तर्यामी राय, विकास चक्रवर्ती एवं प्रांगण, पटना के श्री मधुरेश कांत शरण, अभय सिन्हा, अनिल वर्मा, संजय वर्णावल , नीलेश्वर मिश्रा, हरिकृष्ण सिंह, संजय सिंह, अमिताभ रंजन, रवि कुमार, रामकृष्ण सिंह, आशुतोष कुमार, श्रीपर्णा, सृजित इत्यादि समस्त पदाधिकारी, सदस्य, कलाकार एवं अभिभावकगण के साथ काफी संख्या में कलाप्रेमी उपस्थित थें.

'लोकरंग' कार्यक्रम का उद्घाटन करते मुख्य अतिथि
(ऊपर) एवं पूरी 'प्रांगण' परिवार की टीम (नीचे)



नृत्य निर्देशिका सोमा चक्रवर्ती ने 'बोलो जिंदगी' को बताया कि 'इस नृत्य नाटिका कार्यक्रम में सभी उम्र के बच्चे हैं जिन्हें आई.सी.सी. आर. की तरफ से जो मंच मिला है वह अपनेआप में तारीफ के काबिल है. क्यूंकि आई.सी.सी. आर. की तरफ से कार्यक्रम करना किसी भी कलाकार के लिए बड़े सम्मान की बात होती है. और इन्हे इतनी छोटी उम्र में यह मंच मिल रहा है वह इनके एवं हम प्रांगण परिवार के लिए भी सौभाग्य की बात है.'



कार्यक्रम में अलग-अलग प्रांतों की 12 नृत्य नाटिकाएं प्रस्तुत की गयी जो इस तरह हैं,



विभिन्न राज्यों का लोकनृत्य प्रस्तुत करते बच्चे


1. मुकन्दा-मुकन्दा - (कलाकार- सृष्टि सिन्हा, दृष्टि सिन्हा, मान्या घोष, रिया सहा, श्रेया बसक)
2. बांग्ला संथाली डांस- (कलाकार- स्नेहा,रिया चक्रवर्ती, वनिषिका राव, तनिष्ठा गुप्ता, गुरप्रीत, तनिष्क राज)
3. मिथिलांचल फोक डांस, झिझिया - ( कलाकर- वर्षा, निधि रॉय, कुमारी पूजा, रितिका चक्रवर्ती, एकता कुमारी.)
4. राजस्थानी डांस बलम जी - (कलाकार- आस्था आनंद, अनन्य गुप्ता, हिरण्या, सौम्या, रिद्धि, सिद्धि, पीहू.)
5. हरयाणवी डांस - (कलाकार- सृष्टि सिन्हा, दृष्टि सिन्हा, मान्या घोष, ऐश्वर्या, राधिका, श्रुति, सृष्टि मित्रा)
6. मुखौटा डांस - (कलाकार- रिया, रितिका, तनिष्क, वनिष्का, गुरप्रीत, तनिष्ठा)
7. भोजपुरी, कजरी - (कलाकार - नव्या, कृति, काजल, ऐश्वर्या, सृष्टि मित्रा, राधिका)
8. गोवा डांस - ( कलाकार- आस्था, अनन्या, हिरण्या, सौम्या, रिद्धि, केशव)
9. झूमर डांस - (कलाकार- वर्षा, निधि, पूजा, मानसी, एकता, रितिका)
10. जाट-जाटीन - (कलाकार - आतिश कुमार, मानसी श्रीवास्तव)
11. उड़ी-उड़ी जाये - (कलाकार- सृष्टि सिन्हा, दृष्टि सिन्हा, मान्या घोष, रिया सहा, ऐश्वर्या, सृष्टि मित्रा, राधिका, श्रेया.)
12. गुजराती डांडिया डांस - (कलाकार- रिया, वनिष्का, गुरप्रीत, तनिष्ठा, रितिका, तनिष्क

Monday, 27 November 2017

बढ़ता बिहार-बदलता बिहार कार्यक्रम में बिहार की 85 महिलाएं की गयीं सम्मानित

सिटी हलचल
Reporting : BOLO ZINDAGI 

'मिसेज इंडिया ग्लैमर 2017' आरती सिंह के साथ (ऊपर),
पटना की मेयर सीता साहू एवं सामयिक परिवेश की प्रधान संपादक
ममता मेहरोत्रा के साथ 'बोलो ज़िन्दगी' के एडिटर राकेश सिंह 'सोनू' 



पटना ,27 नवम्बर, अभिलेख भवन में हिंदी दैनिक सन्मार्ग एवं सामयिक परिवेश पत्रिका के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम 'बढ़ता बिहार-बदलता बिहार' में अपने -अपने क्षेत्र में सराहनीय कार्य करनेवाली 85 महिलाओं को सम्मनित किया गया. जिनमे से पूर्णिमा शेखर, विजयालक्ष्मी, सीमा त्रिपाठी, विणा गुप्ता, पूनम, डॉ. मनीषा सिंह, रंजना झा,रेशमा,देवोप्रियदत्तता, रत्ना पुरकायस्थ, पूनम चौधरी, मृदुला प्रकाश, पद्मश्री उषा किरण खान, विभा सिंह, मौसम शर्मा, दीपा सिन्हा, शांति जैन, बिंदिया, मिसेज इंडिया आरती सिंह, कराटे चैम्पियन अनन्या, वैष्णवी, ख़ुशी एवं अन्य कई महिलाओं के नाम शामिल हैं. मुख्य अतिथि मंजू वर्मा (समाज कल्याण मंत्री) एवं पटना की मेयर सीता साहू ने दीप प्रज्वलित करके इस कार्यक्रम की शुरुआत की.



कार्यक्रम का उद्घाटन करती हुईं रुजिका दिवेकर,
मंत्री मंजू वर्मा, मेयर सीता साहू एवं अन्य 
समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा जी ने इस अवसर पर कहा कि 'महिलाओं का सम्मान पुराने ज़माने से होता रहा है. सभी ने सुना होगा कि सीता जी का स्वयंवर हुआ था. यानि तब बेटियां अपना मन-पसंद वर चुनती थीं. मतलब उन्हें अधिकार और पूरा-पूरा सम्मान प्राप्त था. लेकिन धीरे-धीरे जब महिलाओं के प्रति छेड़खानी की घटनाएं बढ़ने लगीं तो उन्हें पर्दानशी कर दिया गया. समाज ने उनके पैरों में बेड़ियाँ दाल दीं. और आज के युग में भी महिलाओं को वो हक़ एवं अधिकार प्राप्त नहीं है. तभी समाज में इनके अधिकारों के लिए समय-समय पर लड़ाई लड़नी पड़ती है. और इस लड़ाई में हम सभी महिलाओं को एक-दूसरे का साथ देना चाहिए. मैं बधाई देना चाहूंगी इस कार्यक्रम के आयोजकों को जिन्होंने ऐसे आयोजन से महिलाओं का मान बढ़ाया है.'
    सामयिक परिवेश की प्रधान संपादक ममता मेहरोत्रा जी ने 'बोलो जिंदगी' को बताया कि 'सम्मानित होनेवाली सभी महिलायें अपने-अपने क्षेत्र में अग्रणी हैं, कोई भी परिचय की मोहताज नहीं हैं.और हमलोगों को ये कहते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि इन महिलाओं ने सम्मान स्वीकार करके हमलोगों को अनुग्रहित किया है और हमारी संस्स्था को एक तरीके से ताक़त प्रदान की है. इस महिला सम्मान समारोह का उद्देश्य ये भी था कि इन महिलाओं को प्रोत्साहित करना ताकि वो और अच्छा कार्य करें.'
   वहीँ सन्मार्ग के एडिटर प्रेम जी ने बताया कि 'इन सभी महिलाओं के ऊपर सन्मार्ग एक सप्लीमेंट निकालेगा जिसमे हर वीमेन अचीवर्स की कहानी होगी. आगे सन्मार्ग और सामयिक परिवेश जो भी कोई प्रोजेक्ट करेगा उसमे समय-समय पर इन सभी महिलाओं की सहभागिता एवं परामर्श लेता रहेगा.'

बढ़ता बिहार-बदलता बिहार के अंतर्गत सम्मानित होतीं महिलाएं 
कार्यक्रम में महिलाओं को सम्मानित करने से पहले मुंबई से आयीं बॉलीवुड की जानी-मानी डायटीशियन रुजिका दिवेकर जिनकी कुछ किताबें बेस्ट सेलर भी रही हैं ने अपने व्याख्यान में पटना वासियों को बताया कि 'आज के इस फ़ास्ट लाइफ में खुद को फिट एंड फाइन रखें. और उसके लिए जरुरी है अपनी डाइट पर ध्यान देने की. कुछ चीजें हैं जिसे आपको रेगुलर डाइट में लेना चाइये, जैसे भात (चावल), अच्छे स्किन एवं डायजेशन के लिए घी, मिनरल्स के लिए सत्तू, गन्ना यानि ऊख. खाने के वक़्त सिर्फ खाना हो दूसरी कोई ऐक्टिविटी नहीं. एक्सरसाइज बहुत जरुरी है, कम से कम दिन का आधा घंटा.'

इन महिलाओं को सम्मनित करने के साथ-साथ दो चाइल्ड एचिवर्स को भी विशेष तौर पर सम्मानित किया गया. जिनमे से डी.पी.एस.वर्ल्ड की नन्ही कृष्णप्रिया जिसने इस छोटी सी उम्र में ही रामायण, महाभारत एवं अन्य शास्त्रों के कठिन श्लोक कंठस्थ करके सभी को अचंभित किया हुआ है. और दूसरी है प्रियंतरा जो 8 वीं की स्टूडेंट है जिसने अपने भाई एवं दोस्त के साथ मिलकर खुद का अख़बार निकाला है.  

Saturday, 25 November 2017

'बेटी जिंदाबाद' अभियान के तहत महिला हिंसा के विरुद्ध निकाला गया स्कूटी जागरूकता मार्च

सिटी हलचल
Reporting : BOLO ZINDAGI


कारगिल चौक पहुंचकर 'बेटी जिंदाबाद' के
नारे लगाती स्कूटी जागरूकता रैली

पटना, 25 नवम्बर, एक्शन एड के द्वारा 'बेटी जिंदाबाद' अभियान के तहत महिला हिंसा के विरुद्ध स्कूटी जागरूकता मार्च विधानसभा गोलंबर से कारगिल चौक, गाँधी मैदान, पटना तक निकाला गया जिसे श्रीमती मंजू वर्मा (समाज कल्याण विभाग, बिहार),प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. दिवाकर तेजस्वी, एक्शन एड के क्षेत्रीय प्रबंधक श्री सौरभ कुमार के द्वारा संयुक्त रूप से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया. इस स्कूटी जागरूकता रैली में शामिल लोगों ने कारगिल चौक, गाँधी मैदान पहुंचकर रैली का समापन करते हुए एक स्वर में यह नारा लगाया कि 'हर बेटी अब कहे पुकार....हमें भी है जीने का अधिकार' और 'दहेज़ नहीं संपत्ति में बराबर का अधिकार चाहिए...हम बेटियों को जन्म लेने का अधिकार चाहिए.' 
इस अवसर पर एक्शन एड के क्षेत्रीय प्रबंधक श्री सौरभ कुमार ने बताया कि 'हर वर्ष 25 नवम्बर से 10 दिसंबर तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिला हिंसा के विरुद्ध एक पखवाड़ा मनाया जाता है. इसे ध्यान में रखते हुए आज एक राज्य स्तरीय स्कूटी/ मोटरसाइकल द्वारा जागरूकता मार्च का आयोजन विकलांग अधिकार मंच एवं एक्शन एड के 'बेटी जिंदाबाद' अभियान द्वारा संयुक्त रूप से किया गया.'

महिला हिंसा के विरुद्ध स्कूटी जागरूकता रैली को रवाना करते अतिथिगण 
इस मुहीम में एक्शन एड की कार्यक्रम पदाधिकारी शाहदा बारीएकराम, रत्नेश, विकलांग अधिकार मंच की अध्यक्षा कुमारी वैष्णवी, सचिव दीपक कुमार, शुभ राजपूत, ममता भारती, अभिनव आलोक, आदर्श पाठक, आलोक कुमार, लव, रश्मि कुमारी, राधा कुमारी, महिला अधिकार मोर्चा की उषा जी, दलित अधिकार मंच से साधु शरण पासवान, सहयोगी संस्था की रजनी, दोस्तान सफर की रेशमा प्रसाद, साइकल से पूरा इंडिया घूमकर आनेवाली तबस्सुम एवं 'बोलो ज़िन्दगी' के एडिटर राकेश सिंह 'सोनू' के साथ मुजफ्फरपुर, नालंदा, भोजपुर, पटना, बक्सर, नवादा, गया, वैशाली, अरवल, औरंगाबाद, दरभंगा, सहरसा, चम्पारण, पूर्णिया, कटिहार, समस्तीपुर, खगड़िया के साथ-साथ विभिन्न जिलों से 250 स्कूटी/ मोटरसाईकल सहित लगभग 500 अन्य लोग शामिल हुए.'
इस मौके पर श्रीमती मंजू वर्मा ने कहा कि 'एक्शन एड का बेटी जिंदाबाद अभियान सराहनीय है, इसके द्वारा विगत कुछ वर्षों से बेटियों के बीच बहुत जागरूकता आई है और वे अपने अधिकारों के लिए पहले से अधिक सजग एवं मुखर हुई हैं इसलिए इस मुहीम में पूरे समाज को साथ देना चाहिए.'

कुमारी वैष्णवी ने 'बोलो ज़िन्दगी' को बताया कि 'हमें पुरुषों को भी साथ लेकर चलना पड़ेगा, उनको जागरूक करना है कि कदम से कदम मिलाकर चलें. बेटी जन्म लेती है तभी से बेटी जिंदाबाद है. बेटी बहुत कुछ कर सकती है बस उसको एक मौका मिलना चाहिए. अब आप उसकी परवरिश जिस रूप में करेंगे, जो समझायेंगे वैसा ही वो करेगी. अगर उनको ये बताया जाये कि कम हंसना, कम बोलना, धीरे चलना, लोगों का मान सम्मान रखना और किसी की बातें सुनकर रह जाना ही एक अच्छी नारी की पहचान है तो वो वही सीखेगी. फिर वो ससुराल में जाकर पीटेगी, मर जाएगी लेकिन कुछ नहीं बोलेगी. हर चोट को बर्दाश्त करके रहते हुए उनको तो मालूम ही नहीं पड़ता कि उनके साथ हिंसा हो रही है. एक व्यक्ति के जिंदाबाद बोलने से कुछ नहीं होगा इसलिए आज यहाँ सभी समुदाय के लोग एक ही बैनर तले समाज को जागरूक करने के लिए इकट्ठे हुए हैं. ये बहुत ख़ुशी की बात है कि महिलाओं के प्रति इस जागरूकता कार्यक्रम में अधिक संख्या में भागीदारी पुरुषों की रही. 

Thursday, 23 November 2017

वुशू (मार्शल आर्ट) में देश के लिए गोल्ड मैडल जीतना चाहती हैं ट्रैक्टर मैकेनिक की बेटी नूतन

शाबाश
By : Rakesh Singh 'Sonu'

'कन्धों से कन्धा मिला रही हैं लड़कों से आज लड़कियां
दकियानूसी और जंग लगे दरवाजे तोड़ रही हैं आज लड़कियां,
माँ-बाप का हर सपना साकार कर रही हैं आज लड़कियां 
ज़रूरत पड़ने पर खुद बेटा बन जा रही हैं आज लड़कियां...'

इन पंक्तियों को चरितार्थ कर रही हैं आरा (बिहार) की रहनेवाली वुशू (मार्शल आर्ट) की इंटरनेशनल प्लेयर नूतन. पहली बार 2008 में इंडोनेशिया के बाली में हुए सेकेण्ड वर्ल्ड वुशू चैम्पियनशिप में इण्डिया का प्रतिनिधित्व करते हुए नूतन ने कांस्य पदक जीता. फिर 2009 में चीन के मकाउ में हुए पांचवे एशियन वुशू चैम्पियनशिप में भी कांस्य पदक हासिल किया. इसके अलावे नूतन के नाम दर्ज हैं नेशनल लेवल पर देश के विभिन्न हिस्सों में हुए वुशू चैम्पियनशिप में जीते गए दर्जनों अवार्ड. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झाड़खंड, उड़ीसा एवं महाराष्ट्र में नूतन गोल्ड मैडल जीतकर बिहार का नाम रौशन कर चुकी है. सितम्बर, 2016, पंजाब में हुए तीसरे फेडरेशन कप वुशू चैम्पियनशिप में नूतन ने फिर से गोल्ड जीता और अक्टूबर 2017, आसाम में हुए 26 वें सीनियर नेशनल वुशू चैम्पियनशिप में सिल्वर जीतकर आयी है. फरवरी 2017, आंध्रप्रदेश के गुंटूर में खेलो इण्डिया के तहत हुए नेशनल स्कूल स्पोर्ट्स चैम्पियनशिप में नूतन बिहार की टीम की कोच बनकर गयीं और उनकी टीम ने वहां 2 गोल्ड एवं 3 ब्रॉन्ज जीता. नूतन का फ़िलहाल एक ही सपना है कि वो देश के लिए गोल्ड मैडल जीतकर लाये. उनके प्रदर्शन को देखते हुए अब तक बिहार सरकार उन्हें 5 बार सम्मानित भी कर चुकी है. नूतन के सराहनीय प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें 2016 में 'सिनेमा इंटरटेनमेंट' द्वारा 'सशक्त नारी सम्मान' से सम्मानित किया जा चुका है. स्पोर्ट्स कोटे के तहत नूतन पटना कलेक्ट्रियट में 2012 से एल.डी.सी. के पद पर कार्यरत हैं. नवम्बर, 2016 में नूतन इंटरनेशनल बॉक्सर, अनिल कुमार के साथ परिणय सूत्र में बंध चुकी हैं.

अपने पुराने दिनों को याद करते हुए नूतन बताती हैं कि 'बचपन में मैं बहुत सीधी-सादी लड़की थी. हर बार दूसरे बच्चों से मार खाकर रोती-बिलखती घर चली आती थी. तब पापा मुझे डाँटते हुए कहते कि क्यों मार खाकर आ गयी, तुम भी मारो. ऐसा नहीं था कि वो मुझे मारपीट के लिए उकसाया करते थे बल्कि उनका इरादा मुझे निडर एवं साहसी बनाने का था. बचपन में जिस गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी अक्सर उसके छत से बगल में ही कुछ लड़कों को जूडो-कराटे सीखते हुए देखा करती थी. मेरा भी मन होता सीखने का, लेकिन तब वहां लड़कियों के लिए माहौल अनुकूल नहीं था. मेरे घर में भी इसकी इजाजत नहीं थी. मैंने स्कूल में कबड्डी, तीरंदाजी जैसे कई खेलों में हिस्सा लिया लेकिन मुझे मार्शल आर्ट्स ने ज्यादा प्रभावित किया. वुशू जिसे पहले कुंगफू के नाम से जानते हैं, इसकी ट्रेनिंग देने वाले सर ने मुझे इस खेल के लिए प्रेरित किया. मैं भी वुशू खेलने लगी. लेकिन मेरे आस-पास का माहौल अच्छा नहीं था. पड़ोसी व रिश्तेदार ताने देते कि, इस खेल को खेलकर क्या करोगी? मारपीट वाला गेम लड़कियों के लिए अच्छा नहीं होता. मुँह-नाक में चोट लग गयी तो शादी भी नहीं होगी. यही बात मम्मी के दिल में बैठ गयी इसलिए वो भी चाहती थीं कि इस खेल को मैं जबतक स्कूल में हूँ तब तक ही खेलूं, आगे नहीं. मगर पापा ने मुझे कभी नहीं टोका. जब चौथी क्लास में थी तभी से पापा ने मुझे बाइक चलाना, स्केटिंग करना सीखा दिया था. तब मैं मम्मी और रिश्तेदारों से कहती कि हर जगह मुझे आप बचाने आएंगे क्या ? मुझे अपने लिए खुद ही तो लड़ना होगा. फिर मैं धीरे-धीरे पदक जीतकर घर लाने लगी. पहली बार महारष्ट्र में हुए ताइक्वांडो प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल जीतकर घर आई तो पापा-मम्मी बहुत खुश हुए. उन्हें मुझपर विश्वास होने लगा.'
   
पहले बिहार में ट्रेनिंग के लिए लड़कियां पार्टनर के रूप में कम मिलती थीं. इसलिए वुशू गेम की ट्रेनिंग नूतन को मज़बूरी में लड़कों के साथ करनी पड़ती थी. धीरे-धीरे जब प्रैक्टिस में नूतन लड़कों को भी मात देने लगी तब उनका आत्मविश्वास बढ़ गया. 2008 में जब मध्य प्रदेश में ट्रेनिंग के लिए एकेडमी में नूतन का सेलेक्शन हुआ तो नूतन अकेले वहां गयी. उनका रहना, खाना-पीना, पढ़ाई और खेल की ट्रेनिंग का जिम्मा एकेडमी के ऊपर था. घरवालों की कमी खल रही थी लेकिन सपना सच करना था तो उनसे दूर होकर रहना ही पड़ा. पहली बार नूतन दिसंबर 2008 में सेकेण्ड वर्ल्ड वुशू चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने विदेशी धरती पर गयी. रास्ते में लैंग्वेज प्रॉब्लम को लेकर वह चिंतित थीं कि वहां कैसे दूसरों से बातें करेंगी. वह पहली दफा विदेशी लड़कियों से फाइट करनेवाली थीं. टर्की-रसिया की लड़कियां बहुत लम्बी-चौड़ी थीं तो नूतन सोच रही थी कि कैसे इनका मुकाबला करेंगी. लेकिन जब खेलने उतरी तो जोश इतना था कि सबकुछ भूल गयी और सिर्फ खेल पर ही ध्यान लगाने लगी. विदेशों में खेल का माहौल नूतन को बहुत अच्छा लगा. लड़कियां भी लड़कों की तरह ही ट्रेनिंग ले रही थीं. हमारे यहाँ लड़कियां प्रैक्टिस के वक़्त शर्म से और बचाव के लिए चेस्ट गार्ड लगाती हैं. लेकिन वहां उन्होंने देखा लड़कियां बिना संकोच और बिना चेस्ट गार्ड के लड़कों के साथ प्रैक्टिस कर रही हैं. वुशू पकड़ने और पटकने का भी गेम है लेकिन अपने यहाँ आमतौर पर लड़कों के साथ प्रैक्टिस में ऐसे हालात में लोग बुरा समझते होंगे. लेकिन ऐसा कुछ विदेश में नहीं था. जब पहली बार नूतन देश के लिए कांस्य मैडल जीतकर घर लौटी तो जो सम्मान मिला कभी उसे नहीं भूल सकती. ताना मरनेवाले लोगों ने भी शाबाशी दी और फिर कभी नूतन ने नहीं सुना किसी से कि ये गेम ही क्यों चुना ?

सशक्त नारी सम्मान से सम्मानित होतीं नूतन 
2009 में जब नूतन इण्डिया कैम्प, मेरठ में थी तो पैर में चोट लगने की वजह से प्लास्टर चढ़ गया था. चाइना जाने में थोड़े ही दिन बचे थे. वह सेलेक्शन का मौका खोना नहीं चाहती थी. जब उन्होंने अपनी चिंता कोच के समक्ष व्यक्त की तब कोच ने कहा कि खेलना है तो प्रैक्टिस जरुरी है. चाहो तो प्लास्टर तोड़ दो. फिर नूतन ने 3 दिन में ही प्लास्टर तोड़कर प्रैक्टिश शुरू कर दिया. ट्रायल के बाद  सेलेक्शन भी हो गया. फिर दूसरी बार इंडिया का प्रतिनिधित्व करने वें चाइना गयीं और वहां भी कांस्य पदक जीतकर लौटीं. अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी बनने के बाद जब एक दफा नूतन आरा के वीर कुंवर सिंह स्टेडियम में प्रैक्टिस करने पहुंची तो, वहीँ एक अभिभावक अपनी बच्चियों के साथ वॉक कर रहे थें. वे अपनी बच्चियों को नूतन के पास लेकर आएं और उनसे कहने लगे कि 'तुम लोग भी नूतन दीदी से सीखो और इनके जैसा ही बनो.' उनकी बात सुनकर तब नूतन को बहुत गर्व महसूस हुआ. एक और घटना याद करते हुए नूतन बताती हैं कि जब शुरूआती दिनों में वे सीखने ग्राउंड में जाती थीं तो लड़के कमेंट करते कि 'देखो, लगता है ये लड़का ही बन जाएगी.' कभी-कभी इससे भी भद्दे कमेंट पास होते जिन्हें वे हर बार इग्नोर कर देती. तब नूतन यही सोचती कि एक दिन मैं ऐसा कुछ कर दिखाउंगी कि ये लड़के तब खुद अपने आप पर शर्मिंदा होंगे. नूतन बताती हैं कि 'पापा जितेंद्र प्रसाद ट्रैक्टर मैकेनिक और माँ गृहिणी, जाहिर है ऐसे में आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी तो नहीं ही होगी. तब पापा अपनी मेहनत की कमाई हम सब की देखभाल में खर्च कर रहे थें. जब मैं अपने पैर पर खड़ी हो गयी तो अच्छा लगा घर की जिम्मेदारी निभाने और भाई-बहनों के सपने पूरे करने में.' शादी के बाद भी नूतन को अपने पति का सपोर्ट मिल तो रहा है लेकिन जहाँ पहले वह 3 टाइम प्रैक्टिस करती थीं अब शादी बाद घर गृहस्थी और जॉब की वजह से नूतन एक टाइम ही प्रैक्टिस कर पाती हैं. मगर फिर भी नूतन के जज्बे और लगन को देखते हुए लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब वह इंडिया के लिए गोल्ड जीतकर लाएंगी. 

Tuesday, 21 November 2017

बच्चों ने 4 पन्नों का निकाला मासिक अखबार 'आज उठी है आवाज'

सिटी हलचल
Reporting : BOLO ZINDAGI

खुद का अखबार निकालनेवाले बच्चों के साथ (दाएं) 'बोलो ज़िन्दगी'
 के एडिटर राकेश सिंह 'सोनू' एवं (बीच में) कार्टूनिस्ट पवन 
पटना , 20 नवम्बर, गाँधी मैदान में वर्ल्ड चिल्ड्रन डे के अवसर पर 4 पन्नों के एक मासिक अखबार का लोकार्पण हुआ. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी श्री संजय अग्रवाल, एस.डी.ओ. भावेश मिश्रा, रेडियो जॉकी शशि, काटूर्निस्ट पवन, किलकारी की निदेशिका ज्योति परिहार एवं स्टूडेंट फ्रेंड के शिव शंकर भोला ने बच्चों द्वारा निकाले जा रहे मासिक अख़बार का विमोचन करके बच्चों का उत्साहवर्धन किया. बच्चों ने ही इस पत्रिका की संस्थापना की, परिकल्पना की, संपादन किया और शीर्षक रखा, 'आज उठी है आवाज'. पाटलिपुत्रा सर जीडी पब्लिक स्कूल के अश्वनी कुमार, सेंट जेवियर हाई स्कूल के अभिनन्दन गोपाल, विधा निकेतन गर्ल्स स्कूल की प्रियंतरा, प्रियस्वरा एवं वाणिज्य महाविधालय से मनीष कुमार ने मिलकर इस मासिक पत्रिका को शुरू किया है.


अखबार का विमोचन करते पटना के डी.एम. और साथ में अखबार
 टीम के बच्चे, कार्टूनिष्ट पवन, आर. जे. शशि एवं अन्य
 
मुख्य अतिथि पटना के जिलाधिकारी संजय अग्रवाल जी ने विमोचन के बाद अपनी शुभकामनाएं देते हुए कहा कि 'मैं इस पूरी टीम को धन्यवाद दूंगा कि इन्होने बहुत अच्छा काम किया है इस अख़बार को शुरू कर के. बच्चों के मन में कई ऐसी भावनाएं होती हैं जिसको वे सामने लाना चाहते हैं - कहना चाहते हैं. बड़े जो कुछ कहते हैं सोच-समझकर कहते हैं. लेकिन बच्चे बिना लाग-लपेट के कह डालते हैं. वे इनोसेंट माइंड से कहते हैं तो वो बात कई बार अच्छी होती है. मैं चाहूंगा इन बच्चों से कि इस क्रम को आगे भी रखें और इसमें अन्य बच्चों को भी जोड़ें. कई बच्चों में बहुत अच्छी लेखन शैली होती है तो उनको इससे एक प्लेटफॉर्म मिलेगा.'
किलकारी की ज्योति परिहार ने उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि 'सभी बच्चों ने बहुत अच्छी शुरुआत की और इन्हें स्नेह मिला सभी बड़ों का ये बड़ी बात है. इन्होने कदम बढ़ाया और सबलोग सपोर्ट में खड़े हो गए. अब इनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है, लगातार मेहनत करनी है, अपने को साबित करना है कि हमसे बेहतर कोई नहीं है और इस अख़बार को बहुत आगे लेकर जाना है.'
       
बच्चों द्वारा निकाला गया अखबार 'आज उठी है आवाज'
वहीँ इस मौके पर काटूर्निस्ट पवन ने 'बोलो ज़िन्दगी' को  बताया कि 'आज से दो दिन पहले ये तीन-चार बच्चे मुझे फोन कर रहे थें. मैं बार-बार पूछ रहा था कि क्या बात है या कुछ कार्यक्रम है? तो वे बोले- नहीं, एक काम हमलोग किये हैं वो सिर्फ दिखाना चाहते हैं. जब मिलने गएँ तो बहुत आश्चर्य लगा उनकी उम्र देखकर कि कोई आठवीं में तो कोई नौवीं क्लास में है. उन्होंने एक अख़बार की डमी दिखाई और कहा ये हमलोग निकाले हैं. स्कूल से जब लौटते हैं तो इसी में 10 बजे रात तक लगे रहते हैं. हमको अपना पुराना वक़्त याद आ गया जिस समय हम स्कूल में पढ़ते हुए कार्टून बनाते थें और उसी समय दैनिक अमृतवर्षा में बच्चों का एक पूरा पेज शुरू करवाए थें जिसे हमलोग देखते थें. तो वो दौर याद आया कि बिल्कुल मेरी तरह ये बच्चे भी खुद पढ़ रहे हैं और अपने अख़बार की सोच रहे हैं. ये मुझे बहुत पसंद आया. बच्चों ने कहा कि कैसे इसका लॉन्चिंग कराएं कि लोग जाने. फिर मैंने इनके लिए कुछ विशिष्ट लोगों को कॉल करके आज के दिन कार्यक्रम में बुलवाया और एक कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार की. आज जितना ये खुश हैं उतना ही हम इनके चेहरे पर आयी मुस्कान देखकर खुश हैं. मैं आगे भी इनको गाइड करता रहूँगा कि अख़बार कैसे चलाया जाये और लोगों को कैसे जोड़ा जाये.'

बच्चों का हौसला बढ़ाते हुए मुख्य अतिथि 
अभिनन्दन ने बताया कि - 'अख़बार निकालने से पहले बहुत लोगों से सलाह लिया और उसके बाद बहुत लोगों ने मना भी किया ये कहकर कि अखबार की मार्केटिंग बहुत हार्ड होती है. लेकिन फिर भी हमने हिम्मत करके ये फैसला किया कि एक बार रिस्क लेकर देखते हैं. और फिर सबकुछ बहुत कम समय में जल्दी-जल्दी हुआ. फिर बड़े लोगों के सहयोग से यह अख़बार सबके सामने है.' 10 वीं कक्षा के अश्वनी जो इस अखबार के संस्थापक होने के साथ-साथ संपादक मण्डली में शामिल हैं ने बताय कि 'मैं साहित्य समेलन से जुड़ा हुआ हूँ. वहां अक्सर कवि सम्मलेन होते हैं. एक बार मैं बस वहां गया था तो मैंने वहां स्टेज पर कविता सुनाई थी. वहां मेरी ही उम्र के कुछ दोस्तों ने कहा कि ऐसा है कि हम भी लिखते हैं तो हम सबको किसी अख़बार से जुड़ना चाहिए. वापस लौटने के बाद इस सन्दर्भ में मुझे ख्याल आया कि हमें एक अख़बार निकालना चाहिए. उसी दिन मैंने नाम भी तय कर लिया फिर साथियों के साथ मिलकर सारे कॉलम तय कर लिए. हमने सम्पादक टीम बना ली. रचनओं पर काम किया फिर कुछ दिन में ये छप कर आ गयी. आज इस अख़बार के लॉन्चिंग में विशेष मदद की भोला जी ने और गाइड का काम किया कार्टूनिस्ट पवन जी ने. इसके संपादक मण्डली में मेरे अलावा हैं प्रियंतरा और अभिनन्दन गोपाल वहीँ इस अखबार के लिए रचनात्मक काम में मेरा सहयोग देनेवाले मित्र हैं प्रियस्वरा और मनीष.'
           वहीँ आर.जे. शशि ने माहौल में गुदगुदी भरी और हंसी की फुलझड़ी के साथ बच्चों को प्रोत्साहित किया.  शशि ने अख़बार में छपी एक कविता पढ़कर सुनाई. बच्चों ने इस अवसर पर कार्टूनिस्ट पवन को इस आयोजन में विशेष योगदान के लिए,जिसमे उन्होंने एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाई तहे दिल से धन्यवाद दिया. खास सहयोग के लिए भोला जी को भी धन्यवाद दिया. काफी उत्साह एवं जुनून के साथ बच्चों ने इसे और भी आगे बढ़ाते रहने का फैसला किया.


Monday, 20 November 2017

भव्य झांकी एवं वीरता सम्मान के साथ मना रानी झाँसी लक्ष्मी बाई का जयंती समारोह

सिटी हलचल
Reporting : BOLO ZINDAGI 

माँ जानकी मिथिला पुनर्जागरण समिति द्वारा
निकाली गयी झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की भव्य झांकी  
पटना, 19 नवम्बर, मौर्या होटल स्थित जेपी गोलंबर से झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई अपने सिपहसलारों के साथ हाथ में तलवार व खडग थामे घोड़े पर सवार होकर बाजे-गाजे के साथ अपना काफिला लिए डाकबंगला चौराहा होते हुए भारी भीड़ के साथ विधापति भवन तक आयीं. यह भव्य झांकी देखने को मिली रानी लक्ष्मी बाई की जयंती के अवसर पर जिसे माँ जानकी मिथिला पुनर्जागरण समिति के बैनर तले आयोजित किया गया था. झांकी के पश्चात विधापती भवन में रानी लक्ष्मी बाई की तस्वीर पर माल्यार्पण करने के बाद कार्यक्रम का उद्घाटन किया पथ निर्माण मंत्री श्री नंदकिशोर यादव ने.



सम्मानित होती साहसी महिलाएं (ऊपर बाएं से) संध्या सिंह, जया देवी,
प्रियंबदा, पूनम चौरसिया, निर्मला कुमारी, सादिया-आफरीन एवं अन्य 
इस  समारोह में बिहार के विभिन्न जिलों से चयनित महिलाओं को रानी लक्ष्मी बाई वीरता सम्मान से सम्मानित किया गया जिन्होंने सराहनीय सामाजिक और साहसिक कार्य किये थें. उनमे से हैं, अमेरिका निवासी बिजनेस वुमेन संध्या सिंह, सीतामढ़ी, सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया ऋतू जयसवाल, जीनियस गर्ल सादिया व आफरीन, छात्रा प्रियंवदा भारती, साबिया परवीन, डी.एस.पी.(बी.एम.पी.)निर्मला कुमारी, 'ग्रीन लेडी' जया देवी, सामाजिक कार्यकर्ता पूनम चौरसिया एवं रानी लक्ष्मी बाई बनी कलाकार महिला और उनकी दो सहयोगी अन्य महिला कलाकार.


विधापति भवन में कार्यक्रम की मुख्य झलकियां 
श्री नंदकिशोर यादव ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि 'पुरुषों की तो बहुत जयंती मनाई जाती है लेकिन महिलाओं की जयंती वह भी महारानी लक्ष्मी बाई जैसी वीरांगना की जयंती मनाना अपने आप में बहुत सौभाग्य की बात है.'  वहीँ मुख्य अतिथि केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री रामकृपाल यादव ने कहा कि 'हमारा देश वीरांगनाओं का देश है. इस देश ने एक से बढ़कर एक वीरांगना दी हैं जिनमे से रानी लक्ष्मी बाई को हम सर्वोच्च मानते हैं.'  अपने सम्बोधन में बिहार सरकार के स्वास्थ मंत्री श्री मंगल पांडेय ने कहा कि 'प्रधानमंत्री जी का 'बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ' कार्यक्रम इसी परिपेक्ष्य में है कि बेटियां पढ़ेंगी तो ही आगे चलकर उनमे से कोई लक्ष्मी बाई बनकर देश के दुश्मनों से बचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगी.'  कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए माँ जानकी मिथिला पुनर्जागरण समिति के संरक्षक अध्यक्ष श्री मृत्युंजय झा ने कहा कि ' यह सिर्फ एक शुरुआत है. जानकी सेना इस देश की ऐसी और वीरांगनाओं और वीर योद्धाओं की जयंती एवं पुण्यतिथि आगे भी भव्य स्तर पर आयोजित करती रहेगी.' इस कार्यक्रम में विशिष्ठ अतिथि के तौर पर राष्ट्रिय स्वंयसेवक संघ के क्षेत्रीय सम्पर्क प्रमुख अनिल ठाकुर, राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष दिलमणि देवी, सदस्य डॉ. उषा विद्यार्थी, नीलम साहनी, पटना की महापौर सीता साहू, कुम्हरार विधायक अरुण कुमार सिन्हा, विधान पार्षद डॉ. सूरजनंदन कुशवाहा, बिहार सरकार की पूर्व मंत्री सुखदा पांडेय, बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती निशा झा उपस्थित हुईं.

साहसी महिलाओं की खोज के लिए 'बोलो ज़िन्दगी' के एडिटर
राकेश सिंह 'सोनू' को सम्मानित करते स्वास्थ मंत्री श्री मंगल पांडेय 
'बोलो ज़िन्दगी' के संपादक राकेश सिंह 'सोनू' को भी पुरस्कृत होनेवाली साहसी महिलाओं की खोज के लिए स्वास्थ मंत्री श्री मंगल पांडेय ने सम्मानित किया.
इस कार्यक्रम में आयोजन समिति के सभी सदस्यों को सम्मानित किया गया. वहीँ '
    मंच संचालन कार्यक्रम की संयोजिका श्रीमती सजल झा ने किया. मंच पर से पुरस्कृत महिलाओं की संक्षिप्त जानकारी अचल सिन्हा ने दी, वहीँ उनका सहयोग किया सीमा सिंह ने . इस कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से प्रदेश प्रवक्ता एवं मीडिया प्रभारी आनंद पाठक, योगेंद्र शर्मा, वरुण कुमार सिंह, अचल सिन्हा, राजेश कुमार झा, शैलेश महाजन, राजीव उपाध्याय, रविंद्र सिंह, दिलीप मिश्रा, अनामिका शंकर, सीमा सिंह, कोमल चौधरी, अर्चना ठाकुर, रूपम सिंह, प्रकाश पांडेय, प्रदीप यादव, राजकुमार साहनी, सुजीत मिश्रा, विजय शंकर मिश्रा, मनीष पोद्दार, अंजनी निषाद एवं अनिल दुबे का योगदान रहा. मीडिया प्रभारी आनंद पाठक ने विशेष तौर पर मीडिया बंधुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि 'ऐसे सफल एवं यादगार कार्यक्रम का सन्देश जनता तक पहुँच पाना बिना आपके सहयोग से मुमकिन नहीं है. हमारे देश-समाज में अनगिनत साहसी एवं वीर महिलाएं हैं जिनको मीडिया के माध्यम से ही आगे बढ़ाया जा सकता है.'

Thursday, 16 November 2017

औरत को आज भी सीता की तरह अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है : ममता मेहरोत्रा, लेखिका, समाजसेविका एवं प्राचार्या (डी.पी.एस.वर्ल्ड)

वो संघर्षमय दिन
By : Rakesh Singh 'sonu'

मेरा जन्म लखनऊ में हुआ और मेरी परवरिश व शिक्षा- दीक्षा भी लखनऊ में हुई. लरुटो कॉन्वेंट से मैंने 12 वीं तक की पढ़ाई की फिर लखनऊ में ही आई. टी. कॉलेज से साइंस में ग्रेजुएशन किया. मेरी शादी 1991 में हुई. शादी के बाद मैं बिहार आ गयी क्यूंकि मेरे पति सरकारी जॉब में हैं और नौकरी के संदर्भ में ही उनको बिहार आना पड़ा. सबसे पहले उनकी पोस्टिंग बिहार के साहिबगंज जिले में हुई. वहीँ से मैंने अपने जीवन की बिहार में शुरुआत की. फिर बिहार ही मेरी कर्मभूमि हो गयी. यहाँ रहते हुए मुझे 28-29 साल हो गए. मैं यह नहीं जानती कि मैं बिहारवासी हूँ कि मैं यू.पी. की हूँ. क्यूंकि मैं अपने काम की वजह से बिहार को रिप्रजेंट करती हूँ इसलिए खुद को बिहारी मानती हूँ. लिखने-पढ़ने का मेरा शुरू से शौक रहा. अमूमन शादी के बाद एक कामकाजी महिला के जीवन में एक ठहराव आ जाता है क्यूंकि वह कोई भी काम करती है तो शादी के बाद उसके ऊपर बहुत सी जिम्मेदारियां आ जाती हैं जो उसके लिए बिल्कुल नयी होती हैं. ससुराल में आपके बहुत सारे ऐसे कार्य होते हैं जो नयी बहू के तौर पर करने पड़ते हैं, उन जिम्मेदारियों को समेटना पड़ता है. शादी के तुरंत बाद मैं माँ बनी और मुझे एहसास हुआ कि बच्चे की परवरिश अपने आप में बहुत ही कठिन कार्य है. इस दरम्यान मेरी आगे की पढ़ाई-लिखाई सब रुक गयी और 10 सालों तक मैं कुछ भी नहीं कर पाई. इसी क्रम में करीब 1997 में मैंने जूलॉजी में पीजी किया. तब तक मेरी कविता-कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में छपनी शुरू हो गयी थीं. यहाँ मेरे व पति के अलावा ससुराल का कोई नहीं था, मुझे अकेला ही सब संभालना पड़ा और बच्चों को सँभालने में थोड़ी दिक्कत हुई जिसकी वजह से मुझे हर प्रकार से पढ़ाई में, लेखन में, सामाजिक कार्यों में थोड़ा रुक जाना पड़ा. तब मेरी जो एक पर्स्नालिटी है वो कहीं ना कहीं सिर्फ घर की चार दीवारी के अंदर जिम्मेदारियों तले दबकर रह गयी. सब समझते हैं कि शादी का अर्थ हो गया कि अब आप एक बहुत परिपक्व व्यक्ति हो गएँ. तो उसमे अपने जीवन से जुड़े हुए लोगों के प्रति आपकी नैतिकता बढ़ जाती है. शादी बाद बिहार के एक छोटे से जिले साहिबगंज में मेरा एक साल व्यतीत हुआ. कहाँ मैं लखनऊ में थी और कहाँ मैं साहिबगंज में आ गयी. तब पति के ऊपर कार्य की इतनी ज्यादा जिम्मेदारियां थीं कि वो घर में समय नहीं दे पाते थें. हमलोग एक कमरे के घर में रहते थें. उसी में हमारा किचन भी चलता था. एक तरीके से मेरा सारा दिन घर के अंदर ही बीत जाता था. तब मैंने सपने देखना ही छोड़ दिया था. आँखों के अंदर भी वो तैरते नहीं थें क्यूंकि लगता था कि इतना काम बाकि है, इतना कुछ करना बाकि है कि पहले ये तो खत्म करें.

राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद को अपनी पुस्तक भेंट करतीं ममता महलोत्रा 
धीरे-धीरे करके मैंने आगे की पढ़ाई पूरी की. चूँकि पढ़ने का शौक शुरू से रहा है इसलिए स्वध्याय मैं आज भी कर रही हूँ. मुझे उम्र के इस पड़ाव पर भी पढ़ने का, डिग्री लेने का, निरंतर आगे बढ़ने का जुनून है. मैं आज भी अपने आप को एक विद्यार्थी ही मानती हूँ. तो कहीं-न कहीं वो सीखने की प्रक्रिया आज भी चल रही है जिसकी वजह से अंदर से मैं अपने आप को बहुत जवां महसूस करती हूँ. साहेबगंज के बाद लम्बी यात्रा शुरू हो गयी. वहां से गया, बेतिया, छपरा, मुजफ्फरपुर, लोहरदग्गा, चाईंबासा, जमशेदपुर, पटना कई जगहों पर पति के ट्रांसफर की वजह से घूमती रही. मेरी लाइफ में टर्न आया गया जिले से. गया आते-आते मेरे दोनों बच्चे थोड़े बड़े हो गए थें. तब एक तरीके से अपने आप को मानसिक रूप से स्वतंत्र महसूस करने लगी. उसी स्वतन्त्रता के दौरान मैंने पुनः लेखन कार्य शुरू किया. मेरी पहली पुस्तक (कहानी संग्रह) 2005 में आई. मेरा एक कहानी संग्रह 'माटी के घर' का आठ भाषाओँ में समीक्षा हो चुकी है जिसको लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में स्थान मिल चुका है.

सामाजिक कार्यों के लिए सम्मानित होतीं ममता मेहरोत्रा 
जब मैं मुजफ्फरपुर में थी 2001 से मैंने शिक्षण कार्य भी शुरू कर दिया. पटना आना हुआ 2005 के आस-पास उसके बाद हमलोग पटना में ही रह गए. सामाजिक कार्य मैंने 1993 से ही शुरू कर दिया था. हमलोग गांव-गांव जाकर महिलाएं के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप बनातें थें. उस समय ये नई बात थी, नयी-नयी सोच थी. इसको हमलोग एक मुकाम देने की कोशिश करते थे कि जो गांव की महिलाएं हैं उन्हें किस तरह से आत्मनिर्भर बना सकें. सामाजिक कार्य की शुरुआत मुजफ्फरपुर से हुई थी. तब हमलोगों का कोई एन.जी.ओ. नहीं था. और अभी भी मैं किसी एन.जी.ओ. के तहत कुछ नहीं कर रही. 2002 से मैंने घरेलू हिंसा केस के लिए इण्डिया में पहली वूमेन हेल्प लाइन शुरू की. 2005 में घरेलू हिंसा अधिनियम आया लेकिन मैं इसपर 2002 से ही कार्य कर रही हूँ. मैंने कम से कम 1000 घरेलू हिंसा के मामलों को सहजता पूर्वक सुलझाया है. इसके ऊपर मेरी एक किताब है इंग्लिश में जिसका नाम है (We Wemen) जिसमे मेरे निजी अनुभव हैं. मैं अलग-अलग एन.जी.ओ. से जुड़कर कार्य करती हूँ. इन सामाजिक कार्यों के लिए मुझे कई अवार्ड भी मिलें. कभी भी एक महिला घर की चार-दीवारी छोड़कर बहार आती है तो उसके ऊपर तरह-तरह के आक्षेप लगते हैं. पहली बात तो लोग ये सोचते हैं कि एक महिला जो घर में सुख से रह सकती है उसे क्या ज़रूरत पड़ी है बाहर जाने की. तो एक औरत के लिए सबसे पहला स्ट्रगल वहीँ से शुरू हो जाता है. क्यूंकि जब आप घर की चार दीवारी लांघते हैं तो जैसे देवी सीता के लिए कहा गया था ना कि ये लक्ष्मण रेखा है इसको नहीं लांघना है, वैसे ही महिलाओं के लिए घर की चार दीवारी लक्ष्मण रेखा है. उसको जब आप लांघते हैं तो अनेक रावण जो आपके आस-पास घूमते रहते हैं वे कई प्रकार से अपने बाणों द्वारा आपको घायल करते रहते हैं. लेकिन कार्यक्षेत्र में मुझे अपने पति से बहुत सहयोग मिला. किसी भी कार्य में उनका हस्तक्षेप नहीं रहता. मगर फिर भी मुझे बाहर जगह बनाने के लिए झूझना पड़ा. अपनी समकक्ष महिलाओं के ताने भी सहने पड़े. जब आपको उपलब्धियां मिलने लगती हैं तो आप ही के आस-पास की महिलाएं जो ये स्वीकार ही नहीं कर पाती हैं कि अरे कोई महिला कैसे आगे बढ़ रही है. अगर मैं मेहनत करके, सही काम करके अपना जीविकोपार्जन कर रही हूँ तो ये भी बहुत सारी महिलाओं को बर्दाश्त नहीं होता है.

अपने स्कूल के बच्चों को सम्मानित करतीं हुईं ममता मेहरोत्रा 
अभी मैं डी.पी.एस. वर्ल्ड स्कूल की प्रिंसपल हूँ. शिक्षण क्षेत्र में भी मुझे बहुत संघर्ष झेलना पड़ा. सर्वप्रथम होता ये है कि जब आप प्रिंसिपल की कुर्सी पर बैठते हैं तो आपके अधीनस्थ पुरुष ये स्वीकार नहीं कर पाते कि एक महिला से आदेश कैसे लूँ....? तो उन्हें समझाना पड़ता है कि ठीक है, मैं महिला नहीं हूँ, मैं उस कुर्सी पर बैठी हूँ तो मैं एक प्रिंसिपल हूँ, उस नाते मेरी बातों को आप स्वीकार करें और काम करें. वर्तमान स्कूल में तो ये बातें कभी नहीं झेलनी पड़ीं लेकिन इसके पहले मैं जिस स्कूल में थी वहां मुझे 17 साल संघर्ष करना पड़ा अपने आप को साबित करने में. तो मेरा मानना है कि पुरुषों की यह सोच बदलते ही महिलाओं के प्रति होनेवाली हिंसा भी कम हो जाएगी. 

Tuesday, 14 November 2017

लेखन एवं गायन में मुकाम पाना चाहती है आँखों से दुनिया ना देख पानेवाली काजल

तारे ज़मीं पर 
By : Rakesh Singh 'Sonu'

वह देख नहीं सकती लेकिन उसकी मन की आँखों से देखी गयी दुनिया में सौ रंग हैं... वह अपना हर काम खुद कर लेती है तो ऐसे में जब कोई उसे बेचारी कहता है, उसे बहुत बुरा लगता है. हम बात कर रहे हैं अंतर्ज्योति बालिका विधालय, कुम्हरार (पटना) की 10 वीं की दृष्टिहीन छात्रा काजल की जिसे इस साल कविता लेखन के लिए राष्ट्रपति द्वारा 'बाल श्री' अवार्ड से सम्मानित किया जायेगा. उसे कविता लेखन के लिए चार टॉपिक मिले थें - बारिश, माँ, रोटी व स्कूल बैग. काजल ने बारिश और माँ के टॉपिक पर लिखा और देश के कई सारे बच्चों के बीच उसकी कविता को सर्वाधिक पसंद किया गया. 2014 से उसने कविता लेखन की शुरुआत की थी. फिर किलकारी बालभवन से जुड़कर कई जगह हुई कविता प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और ढेरों इनाम जीते. काजल गायन में भी उस्ताद है और बड़े- बड़े आयोजनों में लोकगीत खासकर कजरी और झूमर प्रस्तुत कर चुकी है. 2013 में स्कूल स्तर पर दिल्ली में हुई प्रतियोगिता में थर्ड प्राइज जीता था. दिल्ली में ही 2016 के कला उत्सव कार्यक्रम में नेशनल लेवल पर हुई गायन प्रतियोगिता में काजल ने सेकेण्ड प्राइज जीता था. पटना के कालिदास रंगालय, कृष्ण मेमोरियल जैसे कई मंचों से उसने अपनी गायिकी का टैलेंट दिखाया है. लता मंगेशकर, कुमार शानू और उदित नारायण के गाने उसे बहुत आनंदित करते हैं.

आजकल के नए गाने उसे उतने पसंद नहीं आते जितने की पुराने गाने. काजल डांस का भी शौक रखती है. क्लासिकल के अलावा उसे गुजराती गरबा और डांडिया डांस करना भी पसंद है. 2012 में कोलकाता में नेशनल लेवल पर हुए डांस कम्पटीशन में उसने क्लासिकल डांस में सेकेण्ड प्राइज अपने नाम किया था. स्कूल में काजल कराटे भी सीखती है और उसे येलो बेल्ट मिल चुका है. इसके आलावा हस्तकला (क्राफ्ट) में भी काजल की रूचि है. वह हाथ से बैग, झूमर,झूला, तोरण और मोज़े की गुड़िया बनाना सीख चुकी है. कभी कभी स्टोरी भी लिख लेनेवाली काजल सिंगिंग और राइटिंग दोनों को लेकर चलना चाहती है.
   
अपनी फैमली के संग काजल (ऊपर) एवं मुँहबोली आंटी व
 मुँहबोली दादी इना पटेल के साथ काजल (नीचे)
काजल 2008 में, पहली कक्षा से ही अंतर्ज्योति बालिका विधालय के हॉस्टल में रहकर पढ़ रही है. उसके बाकरगंज स्थित घर में पापा विपिन राय, मम्मी विभा देवी और उससे छोटे तीन भाई है. पापा रुपाली टेस्टोरेन्ट में काम करते हैं. जब छुट्टियों में काजल घर आती है तो माँ के कामों में हाथ बंटाने लगती है. बहुत अच्छे से पोंछा लगाना, बर्तन धोना, सब्जी काटना ये सब कर लेती है. काजल का गांव मुजफ्फरपुर जिले के डोरा छपरा में है और वह अपने गांव की एकमात्र लड़की है जो रेगुलर पढ़ते हुए अपने टैलेंट के बल पर इतना आगे बढ़ी है. पढ़ाई की बात करें तो उसे हिंदी और संस्कृत पढ़ने में बहुत मन लगता है. खुद से वो मोबाईल से नंबर लगाना और कंप्यूटर चलाना जानती है. पहनावे में उसे जींस-टॉप और फ्रॉक-सूट पहनना ज्यादा पसंद है. खाने की बात करें तो वेज ज्यादा अच्छा लगता है. फास्टफूड में चाट तो खाने में चावल-दाल और आलू-चना की सब्जी बहुत पसंद है. पापा विपिन राय बताते हैं कि जब गांव में काजल के जन्म के कुछ दिनों बाद पता चला कि ये देख ही नहीं सकती तो गांव के कुछ लोगों ने उन्हें राय दी कि 'ऐसी बच्ची को रखकर क्या होगा. आगे चलकर बदनामी ही होगी इसलिए इसे मार ही दीजिये तो अच्छा है.' मगर काजल की मम्मी ने कह दिया कि  'पहला बच्चा है इसलिए हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे.' फिर जब उसके पापा विपिन राय पटना में काजल को बड़े डॉक्टरों के पास ले गए तो उन्होंने कह दिया कि, ये दृष्टिहीनता पैदाइश है, अब आँखों की रौशनी आने की उम्मीद नहीं है. तब विपिन राय पटना में अकेले रहते थें और काजल के साथ साथ बाकी फैमली गांव में रहती थी. काजल के पापा को रुपाली रेस्टोरेंट के मालिक स्व. रसिक भाई पटेल का बहुत सहयोग मिला. बचपन से ही विपिन जी उनके रेस्टोरेंट में काम करते थें और आज भी उनके नहीं रहने पर उनके रेस्टोरेंट की देखभाल किया करते हैं. एक दिन उनकी मकानमालकिन और रुपाली रेस्टोरेंट की मालकिन इना पटेल जी ने उनसे कहा कि 'काजल जैसे बच्चों के लिए अलग से एक स्कूल है इसलिए उसे गांव से पटना ले आओ.' तब विपिन जी अपनी पूरी फैमली के साथ काजल को शहर ले आये. फिर उनकी मालकिन इना पटेल जिनको काजल प्यार से दादी कहती है काजल को अंतर्ज्योति बालिका विधालय में ले जाकर दाखिला करा आयीं. काजल जब वहां हॉस्टल में रहकर पढ़ने लगी तब उसके माँ-बाप की फ़िक्र थोड़ी कम हुई और आज काजल का टैलेंट जब लोगों को प्रभावित कर रहा है तब ऐसे में उसके माँ-बाप कहते हैं ' हमारी बेटी सर्वगुण संपन्न है, और ऐसी बेटी पाकर हमें गर्व है.' 

Friday, 10 November 2017

काम बुरा नहीं तो ऊँगली उठानेवालों की परवाह नहीं : सीता देवी, बिजली मिस्त्री

सशक्त नारी
By: Rakesh Singh 'sonu'

बिजली मिस्त्री का काम करती हुईं सीता देवी 
गया के राय काशी नाथ मोड़ के पास फुटपाथ पर लगभग 12-13 सालों से सीता देवी बिजली उपकरणों की मरम्मत का काम करते हुए नारी सशक्तिकरण की मिसाल पेश कर रही हैं. पेशे से बिजली मिस्त्री और सीता देवी के पति जितेंद्र जब एकबार 6 महीनों तक गंभीर रूप से बीमार पड़ गए तो उनके इलाज और बाल-बच्चों की भूख मिटाने के लिए सीता देवी ने मर्दों का यह काम चुना. घर पर ही बीमार पति से 2-3 महीने में ट्रेनिंग लेकर उसी फुटपाथ पर बैठकर बिजली मिस्त्री के रूप में काम शुरू कर दिया. बिजली का पंखा, कूलर, मोटर, मिक्सी इत्यादि की मरम्मत में माहिर सीता देवी के पास सी.एफ.एल. बल्ब की मरम्मत का काम ज्यादा आता है. शुरुआत में मुसीबत की उस परिस्थिति में रिश्तेदार काम तो नहीं आये मगर यह ताना ज़रूर देते कि 'औरत होकर रोड पर बैठकर काम करती है, शर्म भी नहीं आती.' लेकिन कभी भी सीता देवी ने इन तानों की परवाह नहीं की और अपने काम में डटी रहीं. उनके काम से प्रेरित होकर गया के तत्कालीन जिलाधिकारी संजय जी भी सीता देवी की खबर सुनकर काशीनाथ मोड़ पर इनको देखने आये फिर सम्मानित करने के साथ ही ग्रामीण बैंक से एक लाख का लोन दिलवाये. उसी पैसे से सी.एफ.एल.-एल.ई.डी. बल्ब बनाने का कारखाना खोलने की कोशिश में हैं. डी.एम.साहब ने फुटपाथ पर बैठनेवाली जगह का नाला बनवा दिया और उनके लिए एक बोर्ड भी लगवा दिया. आज भी 30-40 महिलाएं सीता देवी से मुफ्त प्रशिक्षण पा रही हैं. इनके 4 बच्चे हैं दो बेटा और दो बेटी, जिनमे बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है बाकि बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. सीता देवी के पति जितेंद्र जी शादी के पहले मुंबई फिर दिल्ली के कारखाना में बिजली मिस्त्री का काम करते थें.
   
सशक्त नारी सम्मान समारोह 2016 में सम्मानित होती हुईं सीता देवी 
सीता देवी बताती हैं - 'पति जब एक बार 6 महीना लम्बा बीमार पड़े तो उस वक़्त वे रह-रहकर बेहोश हो जाते थें. उन्हें काम छोड़कर घर बैठना पड़ गया. फुटपाथ के दुकान पर ही उन्होंने कुछ स्टाफ रखें थें. धीरे-धीरे सब भाग गए तब घर-परिवार चलाने के लिए मैंने खुद मोर्चा संभाला. फ़ुटपाती दुकान पर जो लेबर थें वो अपना काम करके खुद पैसा रख लेते थें और ऊपर से तनख्वाह भी मांगते थें. पति का इलाज भी कराना था इसलिए बीमार पति से घर में ही खुद बिजली मिस्त्री का काम सीखने लगी और 2-3 महीने में ही पूरा सीख गयी.' आज 12-13 साल हो गए हैं इनको बिजली मिस्त्री के रूप में काम करते हुए. अब एक दो साल से बड़ा लड़का पढ़ाई से थोड़ा टाइम निकाल माँ के साथ बैठकर काम करने लगा है. अब सीता देवी को घर पर मन नहीं लगता. वे सुबह में ही 4 बजे उठकर खाना बनाकर, सबको नास्ता कराकर चली आती हैं. सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक दुकान पर काम करती हैं फिर घर जाकर रात में खाना बनाती हैं. बाइंडिंग मशीन जो घर पर है वो भी चलाती हैं. सीता देवी ने पति का बहुत इलाज कराया फिर भी वे अभी तक पूरा ठीक नहीं हुए इसलिए या तो घर में रहते हैं या साथ दुकान पर बैठकर इनका हौसला बढ़ाते हैं. इनके पास सी.एफ.एल. बल्ब बनाने का काम ज्यादा आता है. सीता देवी कहती हैं 'बाल-बच्चा भूखे मर जाता इसलिए मुसीबत से निकलने के लिए मैंने ये मर्दों का काम चुना.'
  2011 में 'बिहार दिवस' के मौके पर सीता देवी को बिहार सरकार की तरफ से सम्मानित किया जा चुका है. सिनेमा इंटरटेनमेंट ने भी इनके सराहनीय प्रदर्शन को देखकर इन्हें अक्टूबर 2016 में 'सशक्त नारी सम्मान' से सम्मानित किया है.
 

Wednesday, 8 November 2017

मैं गांव-ससुराल में टीवी वाली बहू के नाम से फेमस हो गयी थी : प्रतिभा सिंह, एंकर, पटना दूरदर्शन (बिहार बिहान)

ससुराल के वो शुरूआती दिन
By : Rakesh Singh 'Sonu'

टीवी चैनल में एंकरिंग करती प्रतिभा सिंह 
मेरा ससुराल भोजपुर जिले के पडुंरा रामपुर गांव में है. मायका भी भोजपुर में ही है लेकिन गांव से कनेक्शन कभी नहीं रहा क्यूंकि गांव पर कोई रहता ही नहीं, सारे लोग पटना शहर में ही रहते हैं. मैं शुरू से पुनाईचक,पटना में ही रही. अक्सर सुना करती थी कि गांव में ऐसा माहौल होता है, ऐसे लोग करते हैं, महिलाएं ऐसे रहती हैं. तो वो चीज बस सुनी-सुनाई थी और लगता था कि कभी मौका मिला वहां रहने का तो मैं कैसे रहूंगी ? क्यूंकि जन्म मेरा कोलकाता में हुआ फिर पटना आयी तो यहीं से मेरी संत कैरेंस से स्कूलिंग हुई, मगध यूनिवर्सिटी के जे.डी.वीमेंस कॉलेज से ग्रेजुएशन हुआ. मतलब शुरुआत से ही शहर में रहते हुए गांव की कभी झलक तक नहीं देखी थी. जब मैं जयपुर में न्यूज इंडिया चैनल में जॉब कर रही थी तो ऐसे ही एक दिन मम्मी ने कहा -'तुम्हारे लिए एक लड़का देखा है, हमलोगों को बहुत पसंद है.' जब किसी शख्स के जीवन में निरसता आ जाती है और अकेले रहते रहते इंसान ऊब जाता है तो लगता है कि चलो शादी कर लें. उस टाइम मैंने समझा नहीं था कि शादी के बाद क्या अनुभव होता है, क्या जिम्मेदारियां रहती हैं. हवा महल जैसा लोग जैसे सोचते हैं ना कि हाँ शादी के बाद बहुत अच्छा होगा, ऐसे घुमेंगे-फिरेंगे, हसबेंड खूब घुमायेगा. तो इस तरह का कॉन्सेप्ट मेरे मन में भी था. मैंने सोचा कि ठीक है वैसे भी अब शादी की उम्र हो चली है तो मैंने हाँ कर दी. और जयपुर से आकर पटना में दूरदर्शन ज्वाइन कर लिया. फिर जल्दी से इंगेजमेंट हुई और शादी हो गयी.

पति राहुल और बच्ची के साथ प्रतिभा 

मुझे पता चला कि अब मुझे कुछ दिन के लिए ससुराल जाना है गांव में जो पहले से तय नहीं था. मैं थोड़ी घबराई लेकिन पति ने समझाया कि एक बार गांव जाना होगा. मेरे सास-ससुर तो अब नहीं हैं लेकिन जेठ-जेठानी गांव में ही रहते हैं. मेरे पति बैंक में हैं और उनकी फर्स्ट पोस्टिंग शिमला थी फिर वे पटना शिफ्ट हो गए थे. पति के समझाने के बाद मैं पटना से विदाई करके ससुराल गांव में पहुंची. वहां जाने के बाद एक कम्प्लीटली चेंज नज़र आया मुझे. वो घूँघट करना, अपने रूम से बाहर नहीं निकलना, भैंसुर-ससुर के सामने नहीं जाना. मतलब सारी चीजें एकदम से चेंज हो गयीं. मैं कहाँ थी और एकदम से उठाकर एक अलग बैकग्राउंड में मुझे रख दिया गया. बहुत सारे नियम के बीच कि ये नहीं करना, वो नहीं करना है. चूँकि मैं अपने मम्मी-पापा की इकलौती लड़की हूँ और एक भाई है मेरा. मेरे ऊपर कोई बंदिश नहीं थी. जिस फिल्ड में आना था मैं आयी, जो करना था किया. ये पहना वो पहना, डिस्को गयी, खूब घूमी और कभी मेरे ऊपर कोई जिम्मेदारियां नहीं थी. ऐसे में गांव-ससुराल में पहुंचकर अजीब लगने लगा.

शादी के पहले मस्ती के मूड में प्रतिभा 
हिन्दू रीति-रिवाज के तहत नयी बहू को सवा महीना तक सुबह-सुबह उठकर सिंदूर करना होता है. साल 2016, अप्रैल का महीना था. सुबह-सुबह 4 बजे मुझे उठा दिया जाता था फिर नहाकर- तैयार होकर जल्दी से सिंदूर करना होता था. और सुबह 6 बजते बजते मैं ऊँघने लगती थी. मतलब लगता था कि अब मेरे सोने का सेकेंड फेज आ गया है. ससुरालवालों ने भी समझा कि बहू ये सब चीजें कभी देखी नहीं है, शहर से है इसलिए इसे सब नहीं पता. तो मुझे वे 6 बजे सो जाने देते थें और सुबह-सुबह नहाकर-सिंदूर करके, खोइंछा में दी जानेवाली मिठाई खाकर मैं फिर से सो जाती थी. वहां गांव में एक ब्रह्मस्थान है मतलब कुल देवता का मंदिर, जहाँ पूजा करने जाना होता था. अप्रैल की गर्मी और ऊपर से लू बहुत चल रही थी. जिस दिन मैं गांव पहुंची थी उसी दिन चौठारी भी था जिसे शहर में रिसेप्शन कहते हैं. मड़वा,शादी फिर चौठारी तीनों एकदम बैक-टू-बैक पड़ गया था तो तीन-चार दिन से मैं लगभग भूखी थी, ठीक से खाना-पीना नहीं हो पाया था. चौठारी के दिन उस गर्मी में इतना बड़ा घूँघट डाले मुझे मंदिर जाना पड़ा था वो भी एक दो किलोमीटर उबड़-खाबड़ रास्ते में पैदल चलते हुए. एक साड़ी का पल्लू, एक शादीवाले दुपट्टे का पल्लू डाले हुए मैं बस किसी तरह पैर बढ़ा रही थी और मेरी चार ननदें दोनों साइड से मुझे पकड़कर संभाले हुए थीं. शहरों में शादी के बाद का ट्रेडिशनल कल्चर शॉर्टकट में निपटा दिया जाता है लेकिन गांव में पूरे नियम से फॉलो करना पड़ता है. वो 10 दिन जो मैंने काटे वहां पर एकदम चेंज नज़र आया मुझमे. लाइट भी वहां सुबह-सुबह कट जाती थी और 9-10 बजते बजते लगता था जैसे आग बरस रही है गर्मी से. मेरे घर में किसी को यकीं नहीं था कि ये लड़की गांव में इतने अच्छे से सब मैनेज कर लेगी. क्यूंकि मैं लाइफ में फर्स्ट टाइम गांव गयी थी. इससे पहले मैंने गांव का 'ग' भी नहीं देखा था.
     
गांव में छठ के दौरान पर्पल साड़ी में लम्बा घूंघट डाले हुए प्रतिभा सिंह 
फिर शादी बाद पहला छठ करने जब गांव गयी तो वहां मैं लम्बा सा घूँघट करके पैदल घाट तक जाती थी, वहीँ पर बैठती और अर्घ्य देती थी. तब जानबूझकर मैंने ट्रांसपैरेंट साड़ी पहनी थी यह सोचकर कि चलो आर-पार दिखेगा, मैं गिरूँगी तो नहीं. अर्घ्य देने के लिए जैसे ही थोड़ा सा घूँघट हटाया मैंने तो वहां घाट पर जितने भी यंग लोग थें सब अपना काम छोड़ मुझे गौर से देखने-हुलकने लगें कि देखो अरे ये फलाने घर की बहू है. वहां पहले से मेरी चर्चा थी कि गांव में टीवी वाली बहू आ रही है. शादी के पहले से ही गांव में हल्ला मच गया था कि फलाने घर की बहू टीवी में काम करती है. तो गांव के लोगों में एक उत्सुकता थी कि टीवी में काम करनेवाली कैसी होती है, जरा शक्ल देखनी चाहिए क्यूंकि मैं हमेशा घूँघट में ही रहती थी. शादी करके जब गयी थी तो दिनभर में 50 -60 महिलाएं आ जाती थीं रोजाना मुँह दिखाई के लिए. महिलाओं के आलावा छोटे बच्चे भी आकर तक-झांक करते ये कहते हुए कि टीवी की हीरोइन आई है. और मैं तब तक बैठी रहती थी सज-धजकर आदर्श बहू की तरह जब तक सभी चले नहीं जाते. पहले मम्मी बताया करती थी कि गांव में ऐसा होता है, वैसे होता है. लेकिन जो एक्सपीरियंस आप मायके में लेते हैं वो ससुराल में नहीं ले सकते क्यूंकि वहां आपको नियम-कानून से रहना है. तो हमारे ग्रामीण कल्चर में आज भी नयी बहू के लिए पर्दा सिस्टम है. ऐसे में मुझे वहां समझाया जाता कि जेठ जी आएं तो तुमको उधर रूम में चले जाना है. और होता यह था कि मुझे जैसे भनक लगती कि कोई अंदर आ रहा है फिर मैं साड़ी पकड़कर दौड़ते हुए अंदर रूम में भाग पड़ती थी. यह देखकर मेरी ननदें बहुत हंसती और कहतीं कि 'ये इस तरह से दौड़ने की वजह से एक दिन गिर जाएगी.' गांव के उन कड़े रीति-रिवाजों को अच्छे से फॉलो किया मैंने और फिर जब मेरी विदाई हुई, मैं पटना आयी फिर सबको बताई तो लोग आश्चर्य कर रहे थें कि ये शहर की मॉडर्न लड़की कैसे गांव में 24 घंटे साड़ी-गहने पहने हुए हँसते-हँसते सारा विध कर गई. शुरू-शुरू में मैं सोचती कि मम्मी-पापा ने मुझे कहाँ भेज दिया. जब 10 दिन गांव में रहकर मेरी हालत पतली हो गयी तो अक्सर होली-दिवाली-छठ आदि पर्व त्योहारों में गांव आना जाना तो पड़ेगा ही फिर मैं कैसे बर्दाश्त करुँगी. लेकिन फिर धीरे-धीरे मैं गांव के माहौल में एडजस्ट होती चली गयी और अब पटना में रहते हुए हमेशा उत्सुकता रहती है कि फिर कब गांव चलें. मैं आज की लड़कियों को यही कहना चाहूंगी कि आप कभी भी अपने कल्चर-अपने ट्रेडिशन को ठुकराओ नहीं. जैसा देश वैसा वेश की तर्ज पर हर माहौल में एडजस्ट करना चाहिए और इसी में असली मजा है. 

Tuesday, 7 November 2017

मशहूर गायिका स्व.गिरिजा देवी की स्मृति में हुआ ठुमरी व गजल गायन का कार्यक्रम

सिटी हलचल
Reporting : BOLO ZINDAGI

कार्यक्रम में बाएं से गायिका रानी सिंह, 'बोलो जिंदगी' के एडिटर
राकेश सिंह 'सोनू', शास्त्रीय गायक रजनीश कुमार एवं गायिका दिव्या रानी
 
पटना, 7 नवम्बर, भाजपा प्रदेश कार्यालय के कैलाशपति मिश्र सभागार में प्रसिद्ध गायिका स्व. गिरिजा देवी जी के स्मृति में श्रद्धांजलि सह सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया. जहाँ मैथिलि और भोजपुरी की सुप्रसिद्ध गायिका श्रीमती रंजना झा ने राग वागेश्वरी में (छोटा ख्याल) 'साजन नहीं आये, ऐ री माई...' (दादरा में) 'सांवरिया प्यारा रे मोरी गुईयां....' (ठुमरी में) 'पिया नहीं आये-कारी बदरिया बरसे'.., (भजन में) 'बाबुल मोरा नईहर छूटा जाये...' जैसे गीतों पर लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया. रानी सिंह ने 'चिट्ठी ना कोई सन्देश....' और 'रोज जब आफताब...' साथ ही साथ दिव्या रानी ने 'याद पिया की आये...' और 'आज जाने की जिद ना करो..' जैसे गीतों से गिरिजा जी को श्रद्धांजलि अर्पित किया.

मंच पर गायिकी प्रस्तुत करती हुई गायिका
 (ऊपर से) रंजना झा, रानी सिंह एवं दिव्या रानी 
वाध यंत्रों में वायलन पर विजय सिन्हा, हारमोनियम पर प्रेम चंद लाल, तानपुरा पर रजनीश झा एवं तबला पर राज शेखर जी ने इनका भरपूर साथ दिया. मंच का सफल संचालन किया जाने-माने गायक सत्येंद्र कुमार संगीत ने. वहीँ इन कलाकारों की हौसला अफजाई के लिए दर्शक दीर्घा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई लोकप्रिय शास्त्रीय गायक रजनीश कुमार एवं संगीतज्ञ डॉ. शांति जैन ने.
     इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और उद्घाटनकर्ता केंद्रीय मंत्री श्री राम कृपाल यादव ने स्व.गिरिजा देवी की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद उन्हें श्रद्धा सुमन याद करते हुए कहा कि 'आज हमसब एक ऐसे शख्सियत की श्रदांजलि सभा में उपस्थित हुए हैं जिन्होंने अपनी धरती की मिट्टी की खुशबू सिर्फ देश में नहीं बल्कि दुनिया भर में फैलाने का काम किया. स्व.गिरिजा देवी ने खासतौर पर अपने गजल और ठुमरी के गायन से सबको मंत्रमुग्ध कर रखा था. उनके आज नहीं रहने से देश ने बहुत कुछ खोया है. गिरिजा देवी जैसे चोटी के कलाकार ने देश की गरिमा को बढ़ाने का काम किया है. भारत की जनता उन्हें कभी नहीं भूल पायेगी.'


श्रद्धांजलि सह सांस्कृतिक संध्या का उद्घाटन करते केंद्रीय मंत्री श्री रामकृपाल यादव 
इस कार्यक्रम का सफल आयोजन करनेवाले कला संस्कृति प्रकोष्ठ के संयोजक वरुण कुमार सिंह ने कहा कि 'गिरिजा जी की पहचान ठुमरी गायन में अंतराष्ट्रीय स्तर पर थी. उन्हें कई तरह के सम्मान से नवाजा गया था. जिसमे पद्मश्री एवं पद्मभूषण जैसे राष्ट्रिय पुरस्कार शामिल थें. उनके जाने से संगीत जगत को बहुत बड़ी क्षति हुई है.' वहीँ कला संस्कृति प्रकोष्ठ के सह-संयोजक आनंद पाठक ने कहा कि 'गिरिजा जी जैसी गायिका बिरले पैदा होती हैं. शास्त्रीय संगीत विधा में विशेषकर ठुमरी और दादरा गायिकी की इन दो विधाओं में उनका कोई सानी नहीं है.'
                 इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से कला संस्कृति प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष श्री आनंद मिश्रा, बांकीपुर विधायक श्री नितिन नविन, प्रदेश सह संयोजक विनीता मिश्रा, प्रदेश कोषाध्यक्ष सह प्रवक्ता नीरज झा, नीरज दुबे, शैलेश महाजन, मनीष झा, 'बोलो ज़िन्दगी' के एडिटर राकेश सिंह 'सोनू', सिनेमा इंटरटेनमेंट के रंजीत श्रीवास्तव, अमरजीत, मनीष चंद्रेश, अक्षत प्रियेश, चंदू आर्यन एवं कार्यकर्ता बंधू उपस्थित हुए. 

Sunday, 5 November 2017

गोवा की राज्यपाल डॉ.मृदुला सिन्हा ने किया ममता मेहरोत्रा और सुषमा सिन्हा की पुस्तकों का लोकार्पण

सिटी हलचल
Reporting : BOLO ZINDAGI


वरिष्ठ लेखिका ममता मेहरोत्रा की पुस्तक का
लोकार्पण करतीं गोवा की गवर्नर डॉ. मृदुला सिन्हा 
पटना, 5 नवम्बर, भारतीय नृत्यकला मंदिर बहुद्देशीय परिसर में 29 वें लघुकथा सम्मलेन के समापन समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि गोवा की राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा ने वरिष्ठ लेखिका ममता मेहरोत्रा और सुषमा सिन्हा की पुस्तकों का लोकार्पण किया. लेखिका ममता मेहरोत्रा की तीन किताबों का लोकार्पण हुआ जिनमे दो लघुकथा संग्रह 'विश्वासघात तथा अन्य कहानियां' और 'मेरी प्रिय कहानियां' हैं . उनकी तीसरी पुस्तक है महिलाओं के मुद्दों पर 'क्राइम अगेंस्ट वूमेन इन इंडिया'. ममता जी की दोनों ही किताबें प्रभात प्रकाशन से आयीं हैं. वहीँ लेखिका सुषमा सिन्हा के लघुकथा संग्रह 'एहसास' का भी लोकार्पण हुआ. पुस्तक लोकार्पण के बाद 'अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच' के तहत पटना और देश के अन्य राज्यों से आये लघुकथाकारों और कुछ समाज सेवकों को डॉ. मृदुला सिन्हा के हाथों सम्मानित किया गया.  भोपाल से आयीं वरिष्ठ लेखिका कल्पना भट्ट, वाराणसी से आयीं वरिष्ठ लेखिका सुषमा सिन्हा, पटना के लेखक एवं पर्यावरणविद मेहता नागेंद्र सिंह, छपरा से आयीं प्रोफ़ेसर डॉ.अनीता राकेश, पटना की लेखिका डॉ.विभा रानी श्रीवास्तव, पत्रकार एवं लेखक ए.आर.हाशमी , मधुदीप और मालती महावर भार्गव को 'लघुकथा मंच सम्मान' से सम्मानित किया गया. वहीं 'लघुकथा मंच अंकुर सम्मान' के लिए किलकारी पटना से जुड़ी बच्चियों सरिता रानी और रानी कुमारी को लघुकथा लेखन के लिए सम्मानित किया गया.
लघुकथा मंच सम्मान 2017 से सम्मानित जन 
इसके बाद विशिष्ट सम्मान से अपने गांव में युद्धस्तर पर किये गए विकास कार्य के लिए सीतामढ़ी जिले की सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया सुश्री ऋतू जायसवाल, नाट्य निर्देशक एवं मीठापुर दयानन्द गर्ल्स हाई स्कूल की शिक्षिका अर्चना चौधरी, रंगकर्मी रवि भूषण मुकुल और पटना छठ पर्व के दौरान अच्छी व्यवस्था के लिए जिलाधिकारी पटना, संजय अग्रवाल को को महामहिम द्वारा सम्मानित किया गया.
इसके बाद लघुकथा मंच द्वारा लघुकथा के वर्तमान एवं भविष्य पर परिचर्चा आयोजित की गयी. इस संदर्भ में गोवा की गवर्नर डॉ. मृदुला सिन्हा ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि 'आज जिन लोगों को सम्मानित किया गया मैं उन्हें बधाइयाँ देती हूँ . जो लोग सम्मानित नहीं हुए हैं और जो लघुकथा लिखते हैं उन्हें भी उम्मीद बंधी होगी कि अगली बार हमें भी सम्मानित किया जायेगा. और जो नहीं लिखते हैं वो लिखने के लिए प्रयास करेंगे. क्यूंकि इस प्रकार के कार्यक्रम को देख मैं जब अपना बचपन स्मरण करती हूँ तो मुझे ऐसा लगता है कि मेरे स्कूल में या और भी संस्थाओं में मैं नीचे बैठकर देखती थी. मंच पर जिसको सम्मानित किया जाता था उसे देख मेरे मन में एक इच्छा उत्पन्न होती थी कि मुझे कब सम्मानित किया जायेगा. और मैं स्कूल-कॉलेज में जाती हूँ तो सबसे कहती हूँ कि ये इच्छा बलवती होनी चाहिए सबके मन में कि हम वहां कब बैठेंगे, हमे कब उस मंच से सम्मानित किया जायेगा. ये सकारात्मक इच्छा है, ये होनी चाहिए सबके मन में, इसमें कोई बुराई नहीं है. यहाँ तो सचमुच 'संग चले जब तीन पीढ़ियां, साधे विकास की सभी सीढियाँ.' मतलब यहाँ तीनों पीढ़ियां बैठी हैं. और समाज की तीन पीढ़ियां जब एकत्रित हो जाती हैं तो परिवार बहुत आगे बढ़ता है, समाज आगे बढ़ता है. पीढ़ियां जब अलग-अलग हो जाती हैं तो परिवार भी कमजोर पड़ जाता है. ये भी तो लघुकथा परिवार है. यहाँ एक चीज और मैं बताना चाहूंगी कि मैंने देखा कि कोई विचार आता था तो मन में ऐसा लगता था कि अभी समय नहीं है कि इसको कहानी बना सकूँ, समय नहीं है कि उपन्यास बना सकूँ. फिर मैंने सोचा अच्छा होगा मैं इसको लघुकथा लिख लूँ  और जब समय मिलेगा तो उसी कथावस्तु को विस्तार देकर कहानी लिख लूंगी, उपन्यास लिख लूंगी. और ये सिर्फ मैं यहाँ अपनी बात नहीं कर रही बल्कि कोई भी लेखक ऐसा कर सकता है.'  इस मौके पर कार्यक्रम के अध्यक्ष पटना विश्वविधालय के कुलपति डॉ. रासबिहारी सिंह ने भी सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि 'लघुकथा न्यूक्लियर व मिसाइल है जो सीधे पाठकों के दिलों को बेध जाती है.'  इस पूरे कार्यक्रम का सफल मंच संचालन लघुकथा मंच के महासचिव प्रोफेसर ध्रुव कुमार ने किया.
             
लघुकथा प्रदर्शनी का अवलोकन करते दर्शक 


सम्मलेन में धन्यवाद ज्ञापन मंच के अध्यक्ष सतीश राज पुष्करणा ने किया. कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल सिन्हा, डॉ.तारण राय, वीरेंद्र कुमार सहित अन्य कई लोग मौजूद थें.
आयोजन स्थल 'भारतीय नृत्य कला मंदिर बहुद्देशीय परिसर' के बाहर लघुकथाकरों के लघुकथाओं की एक प्रदर्शनी भी लगायी गयी थी जिसमे थीम पर बनी पेंटिंग से कहानियां जिवंत हो गयी थीं. कार्यक्रम के अंत में लौटते वक़्त महामहिम ने कुछ देर खड़े होकर इस प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया. 

Saturday, 4 November 2017

पति और माँ-बाप के सहयोग से हर स्ट्रगल आसान हो गया : निभा श्रीवास्तव, एंकर (दूरदर्शन बिहार) एवं भोजपुरी कम्पियर (आकाशवाणी पटना)

वो संघर्षमय दिन
By : Rakesh Singh 'Sonu'

दूरदर्शन बिहार के 'कृषिदर्शन' में एंकरिंग करते हुए और
आकाशवाणी पटना में भोजपुरी एनाउंसर के रूप में निभा श्रीवास्तव 
मेरा ससुराल है आरा, बड़का डुमरा और मायका है आरा, रामगढ़िया में. मेरे पति श्री कृष्ण भूषण प्रसाद स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया में अधिकारी हैं. बचपन से ही मेरा कला के प्रति रुझान रहा. मेरे पिता जी शिक्षक थें लेकिन शिक्षा के साथ साथ उनका संगीत एवं नाटकों से बहुत लगाव था. वे मानते थें कि मेरी बेटी बेटा से कम नहीं है. उन्हें बहुत शौक था कि हमलोग संगीत सीखें और इस क्षेत्र में आगे बढ़ें. 1982 में मैंने मैट्रिक किया और उस ज़माने में छोटे से शहर आरा में आप सोच सकते हैं कितना ताना सुनने को मिलता होगा. हमलोग संगीत सीखने जाते थें, नाटक-स्टेज शो करते थें. उस वक़्त लोग बहुत ताना मारते थें पिता जी को सम्बोधित करते हुए कि 'ये खुद टीचर हैं और नाच-गाना का घर में टीम तैयार कर रहे हैं.' सुनकर बुरा तो लगता था कि हम आखिर क्या गलत कर रहे हैं जो लोग ऐसा बोल रहे हैं. लेकिन फिर भी हमलोग उसपर ध्यान नहीं देते थें और आगे बढ़ते रहें. कॉलेज के समय से ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेते रहें. मगध यूनिवर्सिटी में क्लासिकल संगीत का कम्पटीशन हुआ तो उसमे मैंने फर्स्ट प्राइज जीता. आरा में 'नागरिक प्रचारिणी' एक हॉल था जहाँ नाटक और गायन होता था. वहां हमलोग भी लोकगीत गाते थें. चूँकि भोजपुर की रहनेवाली हूँ तो भोजपुरी से बहुत लगाव है. घर में दादी-नानी जो गीत गति थीं तो इच्छा होती थी कि इसको हम मरने नहीं दें. ये हमारी संस्कृति है, और अपनी संस्कृति को हम खत्म नहीं होने दें. इनसे यदि हम सीखते हैं तो अपनी अगली पीढ़ी को बता सकते हैं. और इसको हम जिवंत रख सकते हैं. इसलिए लोकगीत की तरफ भी हमारा रुझान गया.

कॉलेज के दिनों में स्टेज शो करते हुए निभा श्रीवास्तव 
जब कॉलेज में म्यूजिक सीख रहे थें तभी नवोदय विधालय में वेकैंसी निकला तो उसमे अप्लाई कर दिए और मेरा वहां म्यूजिक टीचर के रूप में ज्वाइनिंग हो गया. वहां हम 6 महीना नौकरी किये. उसी समय मेरी शादी तय हो गयी. तब हसबेंड की पोस्टिंग पटना में थी और शादी के बाद मैं हसबेंड के साथ पटना रहने आ गयी. पटना में मेरा कोई जान-पहचान वाला नहीं था, अकेलापन महसूस होता था. पति के ऑफिस चले जाने के बाद टाइम काटने के लिए रेडिओ सुनती थी क्यूंकि रेडियो से मेरा नाता शादी के पहले से ही रहा है. कॉलेज के दिनों में ही मेरे पिता जी मुझे पटना रेडियो स्टेशन ले आते थें लोकगीत गाने के लिए. हम दो बहनें सीमा श्रीवास्तव-निभा श्रीवास्तव ऑडिशन देने पटना आये और 1983 में पास करके हम दोनों ग्रुप में साथ गाने लगें. लेकिन जब दीदी की शादी हुई, वो ससुराल चली गयी. बाद में हम भी पटना आ गए तो ऐसे में कभी कार्यक्रम मिलता तो हमदोनों के अलग-अलग होने से रिहर्सल-रियाज नहीं हो पाता था जिस वजह से हमारी जोड़ी टूट गयी. फिर 1992 में मैंने आकाशवाणी में एकल गायन के लिए ऑडिशन दिया और सेलेक्ट होने के बाद आजतक मैं लोकगीत गा रही हूँ. फिर मैं 'कला संगम' नाट्य संस्था से जुड़ी. सतीश आनंद, हृषिकेश सुलभ जैसे दिग्गजों के साथ काम करने का मुझे मौका मिला. उसके बाद मैं पटना की नाट्य संस्था 'प्रांगण' और 'कला जागरण' से जुड़ी. आज करीब 20 -25 साल हो गए मुझे नाटक प्ले करते और म्यूजिक टीचर के रूप में काम करते हुए. जब 1991 में आकाशवाणी में वेकैंसी निकला कि भोजपुरी कम्पियर की आवश्यकता है तो चूँकि भोजपुरी मेरी मतृभाषा भी है तो मैंने एक्जाम दिया और पास करके भोजपुरी कम्पियर के रूप में जुड़ गयी. उसके बाद पटना दूरदर्शन में 2002 के बाद एक्जाम देकर बतौर एंकर 'कृषि दर्शन' प्रोग्राम से जुड़ी और अभी तक कार्यरत हूँ.

भोजपुरी फिल्म में अभिनेता पवन सिंह के साथ
 उनकी माँ के किरदार में निभा श्रीवास्तव
 
उसी दरम्यान स्टेज शो करने के दरम्यान हमारे एक साथी ने कहा- 'भोजपुरी फिल्म करोगी?' मैंने कहा- 'बिलकुल करुँगी.' उसके बाद एक भोजपुरी फिल्म में सीनियर एनाउंसर सुमन कुमार ने अभिनेता पवन सिंह के पिता और मैंने माँ का रोल निभाया. मेरी पहली फिल्म थी 'प्यार बिना चैन कहाँ रे' जिसमे पवन सिंह की माँ बनी थी. इसके निर्देशक थें मनोज श्रीपति. फिल्म की शूटिंग मोतिहारी में हुई थी. उसके बाद फिर पवन सिंह की माँ के ही रोल में 'लागल नथुनिया के धक्का' किया जिसके निर्देशक सुनील सिन्हा थें. उसके बाद मैंने लगभग10 शॉर्ट फ़िल्में कीं जिसमे इसी साल 2017 में कालिदास रंगालय में हुए शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में 'ए बार्गेन टू टिल डेथ' दिखाई गयी थी. उसमे मेरा करेक्टर गरीब मजदूर की पत्नी का था जो कैंसर से पीड़ित है. वह घर में बीमारी की अवस्था में मूर्तियां बना-बनाकर रखती थी और उसकी बेटी ले जाकर मूर्तियां बेच आती थी. और उन्हीं पैसों से वो माँ का इलाज कराती थी. अंत में मेरे किरदार की मृत्यु हो जाती है. इस फिल्म और मेरे किरदार को बहुत सराहना मिली. जी-पुरवईया चैनल पर एक सीरियल चला था 'बस एक चाँद मेरा भी' जिसमे मैंने माँ का ही करेक्टर निभाया. इन सब के दरम्यान स्ट्रगल बहुत रहा क्यूंकि तब बच्चे छोटे थें. पहले तो मुझे लगा कहीं बाहर शूटिंग में मुझे जाने की इजाजत मेरे पति शायद ना दें लेकिन उन्होंने मुझे फुल सपोर्ट किया. मगर समस्या थी कि पटना से बाहर शूटिंग में बच्चों को छोड़कर कैसे जाऊँ? लेकिन वो मुश्किल भी दूर हो गयी मेरी माँ के सपोर्ट से. जब जब मुझे फिल्म-सीरियल के लिए शूटिंग में जाना होता मेरी माँ आरा से हमारे पास पटना चली आती और बच्चों को संभालती-देखती. शुरू-शुरू में बाहर काम के दौरान मुझे घर की ही चिंता लगी रहती कि बच्चे कैसे होंगे, मेरी कमी महसूस कर रहे होंगे. लेकिन फिर धीरे धीरे माँ की वजह से मेरी वो टेंशन दूर होने लगी और मैं मन लगाकर अपने काम पर ध्यान देने लगी. मैं मानती हूँ कि आज मैं पति और माँ के सहयोग से इतना आगे बढ़ पायी हूँ. उन दिनों और आज भी जब फिल्म करने के बाद घर या ससुराल जाना होता है तो इधर-उधर से जान-पहचानवाले थोड़ी चुटकी लेते कि जब भाभी जी के ओरिजनल पति मौजूद हैं तो फिल्मों में किसी और के साथ कपल वाला सीन करती हैं. पतिदेव को बुरा नहीं लगता होगा...?' हालाँकि यह टोन मजाक में ही मारे जाते हैं लेकिन कभी-कभी यह मजाक मेरा मन सीरियसली ले लेता था. मेरे कार्य को कुछ लोग शायद आज भी बुरा मानते हों लेकिन मेरे पति का फुल सपोर्ट मेरे साथ रहता है इसलिए मुझे बाकि दुनिया की परवाह नहीं रहती. अब तो मेरे बच्चों का भी मुझे सपोर्ट मिलने लगा है. मेरे तीन बच्चे हैं, दो बेटियां ग्रेजुएशन करके कम्पटीशन की तैयारी में लगी हैं और छोटा बेटा 10 वीं में है. बेटियां भी संगीत सीखी हैं और बेटा गिटार बहुत अच्छा बजाता है, वह कहानी-कविता भी अच्छा लिख लेता है.
        स्ट्रगल फेज को याद करते हुए मैंने एक बात गौर की है कि जब कॉलेज में थी और नाटक-गायन करती थी और आज शादी बाद भी वह करती हूँ तब मैं पाती हूँ कि आज भी लड़कियों-महिलाओं के प्रति समाज की सोच नहीं बदली है. मतलब 30 साल पहले जो सोच थी वही आज भी है. हांलाकि उस वक़्त हमें बहुत ज्यादा सुनने को मिलता था. तब हम ध्यान नहीं देते थें. बोलनेवाले बोल रहे हैं फिर भी हमारा जो काम है उसे करना है, आगे बढ़ना है यही हमारी सोच थी. मेरे माता-पिता हमारे साथ थें. जहाँ भी जाना होता कभी पिता जी तो कभी माँ हमें लेकर जाती थी. और ऐसे में बोलनेवाले तो चलते समय राह में पीछे से भी अनाप-शनाप बोलते थें. लेकिन हम नजरअंदाज कर देते थें. अभी भी पर्मानेंट की जगह एक कैजुअल कम्पियर के रूप में हम काम कर रहे हैं तो यहाँ भी स्ट्रगल है. स्ट्रगल तो पूरी लाइफ चलती रहेगी लेकिन इसमें ही हम सबको निखरकर आगे बढ़ना है.

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