सशक्त नारी
By: Rakesh Singh 'sonu'
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बिजली मिस्त्री का काम करती हुईं सीता देवी |
गया के राय काशी नाथ मोड़ के पास फुटपाथ पर लगभग 12-13 सालों से
सीता देवी बिजली उपकरणों की मरम्मत का काम करते हुए नारी सशक्तिकरण की मिसाल पेश कर रही हैं. पेशे से बिजली मिस्त्री और सीता देवी के पति
जितेंद्र जब एकबार 6 महीनों तक गंभीर रूप से बीमार पड़ गए तो उनके इलाज और बाल-बच्चों की भूख मिटाने के लिए सीता देवी ने मर्दों का यह काम चुना. घर पर ही बीमार पति से 2-3 महीने में ट्रेनिंग लेकर उसी फुटपाथ पर बैठकर बिजली मिस्त्री के रूप में काम शुरू कर दिया. बिजली का पंखा, कूलर, मोटर, मिक्सी इत्यादि की मरम्मत में माहिर सीता देवी के पास सी.एफ.एल. बल्ब की मरम्मत का काम ज्यादा आता है. शुरुआत में मुसीबत की उस परिस्थिति में रिश्तेदार काम तो नहीं आये मगर यह ताना ज़रूर देते कि 'औरत होकर रोड पर बैठकर काम करती है, शर्म भी नहीं आती.' लेकिन कभी भी सीता देवी ने इन तानों की परवाह नहीं की और अपने काम में डटी रहीं. उनके काम से प्रेरित होकर गया के तत्कालीन जिलाधिकारी संजय जी भी सीता देवी की खबर सुनकर काशीनाथ मोड़ पर इनको देखने आये फिर सम्मानित करने के साथ ही ग्रामीण बैंक से एक लाख का लोन दिलवाये. उसी पैसे से सी.एफ.एल.-एल.ई.डी. बल्ब बनाने का कारखाना खोलने की कोशिश में हैं. डी.एम.साहब ने फुटपाथ पर बैठनेवाली जगह का नाला बनवा दिया और उनके लिए एक बोर्ड भी लगवा दिया. आज भी 30-40 महिलाएं सीता देवी से मुफ्त प्रशिक्षण पा रही हैं. इनके 4 बच्चे हैं दो बेटा और दो बेटी, जिनमे बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है बाकि बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. सीता देवी के पति जितेंद्र जी शादी के पहले मुंबई फिर दिल्ली के कारखाना में बिजली मिस्त्री का काम करते थें.
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सशक्त नारी सम्मान समारोह 2016 में सम्मानित होती हुईं सीता देवी |
सीता देवी बताती हैं - 'पति जब एक बार 6 महीना लम्बा बीमार पड़े तो उस वक़्त वे रह-रहकर बेहोश हो जाते थें. उन्हें काम छोड़कर घर बैठना पड़ गया. फुटपाथ के दुकान पर ही उन्होंने कुछ स्टाफ रखें थें. धीरे-धीरे सब भाग गए तब घर-परिवार चलाने के लिए मैंने खुद मोर्चा संभाला. फ़ुटपाती दुकान पर जो लेबर थें वो अपना काम करके खुद पैसा रख लेते थें और ऊपर से तनख्वाह भी मांगते थें. पति का इलाज भी कराना था इसलिए बीमार पति से घर में ही खुद बिजली मिस्त्री का काम सीखने लगी और 2-3 महीने में ही पूरा सीख गयी.' आज 12-13 साल हो गए हैं इनको बिजली मिस्त्री के रूप में काम करते हुए. अब एक दो साल से बड़ा लड़का पढ़ाई से थोड़ा टाइम निकाल माँ के साथ बैठकर काम करने लगा है. अब सीता देवी को घर पर मन नहीं लगता. वे सुबह में ही 4 बजे उठकर खाना बनाकर, सबको नास्ता कराकर चली आती हैं. सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक दुकान पर काम करती हैं फिर घर जाकर रात में खाना बनाती हैं. बाइंडिंग मशीन जो घर पर है वो भी चलाती हैं. सीता देवी ने पति का बहुत इलाज कराया फिर भी वे अभी तक पूरा ठीक नहीं हुए इसलिए या तो घर में रहते हैं या साथ दुकान पर बैठकर इनका हौसला बढ़ाते हैं. इनके पास सी.एफ.एल. बल्ब बनाने का काम ज्यादा आता है. सीता देवी कहती हैं 'बाल-बच्चा भूखे मर जाता इसलिए मुसीबत से निकलने के लिए मैंने ये मर्दों का काम चुना.'
2011 में 'बिहार दिवस' के मौके पर सीता देवी को बिहार सरकार की तरफ से सम्मानित किया जा चुका है. सिनेमा इंटरटेनमेंट ने भी इनके सराहनीय प्रदर्शन को देखकर इन्हें अक्टूबर 2016 में 'सशक्त नारी सम्मान' से सम्मानित किया है.
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