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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Sunday, 22 December 2019

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : सोशल वर्कर पूजा ऋतुराज की फैमली, पूर्वी लोहानीपुर, पटना




20 दिसंबर, शुक्रवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के पूर्वी लोहानीपुर इलाके में सोशल एक्टिविस्ट पूजा ऋतुराज जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में जदयू कला संस्कृति प्रकोष्ठ बिहार के उपाध्यक्ष अमर सिन्हा भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों पूजा ऋतुराज जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- पूजा ऋतुराज जी नवसृजन एवं सर्वांगीण विकास संस्था की सेक्रेटरी हैं. पूजा जी का ससुराल मोकामा है. मायका मसौढ़ी के पास सिमरी गांव में है लेकिन ये बचपन से ही पटना में रहीं. समाजसेवा के साथ साथ पत्रकारिता में भी रूचि है. भारतीय क्षेत्रीय पत्रकार संघ की सेक्रेटरी भी हैं. साहित्य से भी लगाव है. कविता, लघुकथा लिखती हैं और कई मंचों से कविता पाठ भी कर चुकी हैं.
इनके पति श्री संतोष कुमार सचिवालय में कार्यरत हैं. पति को काम के अलावा अन्य चीजों में रूचि नहीं थी लेकिन शादी बाद वे पत्नी के शौक के अनुसार ढ़लने लगें. जब घर में भी मदद के लिए घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं सुबह-सुबह पहुँचने लगीं तो ऋतुराज जी से ज्यादा कदर वो करते कि उनको नाश्ता दो, चाय दो, उसे जहाँ तक मदद हो सके उसके लिए परेशान हो जाते कि कैसे दूर होगा उनका कष्ट. बड़ी बेटी सौम्या शंकर संत जोशफ कॉन्वेंट हाई स्कूल 12 वीं की स्टूडेंट हैं. छोटी बेटी महिमा शंकर संत जोशफ कॉन्वेंट हाई स्कूल, क्लास 10 वीं की स्टूडेंट हैं. दोनों ही बेटियां आर्टिस्ट एवं सोशल वर्कर हैं.

ऋतुराज जी का सोशल वर्क -  ऋतुराज नवसृजन एवं सर्वांगीण विकास संस्था के लिए घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए काम करती हैं. पटना के लोहानीपुर इलाके के आस-पास के झुग्गी-झोपड़ियों में रहनेवाली महिलाएं अपने ही पतियों की हिंसा की शिकार होती हैं. पत्नी एवं बच्चों की अक्सर छोटी-छोटी बातों पर उनके पति पिटाई करते हैं और कई बार मामला काफी सीरियस हो जाता है. इन स्लम इलाकों की कुछ वैसी बच्चियां भी आती हैं जिनके साथ उनके पिता ही गलत आचरण करते हैं. इन सारे केसों को ऋतुराज सोशल वर्क के तहत देखती हैं.

समाजसेवा से कैसे हुआ जुड़ाव ? - जब ऋतुराज 13 साल की थीं तभी से समाज सेवा की तरफ माँ-पिताजी की वजह से आ गयीं. तब इनके घर के आँगन में निम्नवर्गीय घरों के तीन-चार सौ बच्चे इकठ्ठा होते थें और ये पापा के कहने पर स्कूल से आने के बाद उनको मुफ्त में पढ़ाती थी. इस तरह बचपन से ही सोशल वर्क से जुड़ गयीं. और जब शादी हुई तो ये हसबैंड के काम की वजह से पटना में ही रहीं. नौकरी के लिए बहुत प्रयास कीं पर वो किस्मत में नहीं थी. समाजसेवा इनका लक्ष्य था इसलिए वे इसी ओर चल पड़ीं.

पूजा ऋतुराज की बेटियों का सराहनीय कार्य - बड़ी बेटी सौम्या शंकर की माँ ऋतुराज इनकी रोल मॉडल बनीं इसी वजह से ये खुद भी सोशल वर्क में आ गयीं. सौम्या बताती हैं, "अपने इलाके के अभावग्रस्त व आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को डांस, पेंटिंग जो भी मुझे आता है उनको सिखाती हूँ अपने फ्री टाइम में." सौम्या ने इसी साल किड्स लिटिल मिस इंडिया में पार्टिशिपेट किया था, बिहार का प्रतिनिधित्व करते हुए टॉप 10 फाइनलिस्ट भी बनीं जहाँ पूरे 29 स्टेट के बच्चों ने हिस्सा लिया था. चेस और बॉल बैडमिंटन में भी रूचि है.
       छोटी बेटी महिमा शंकर की हॉबी डांसिंग, सिंगिंग, पेंटिंग, चेस, टेराकोटा,बॉल बैडमिंटन एन्ड क्रिकेट में है और वे ये खेलती भी हैं. स्टेट लेवल चेस चैम्पियनशिप में बिहार को रिप्रजेंट कर चुकी हैं. डांस में नेशनल तक गयी हैं. और ऋतुराज की इन बेटियों की सबसे खास बात कि ज़रूरतमंद बच्चों को ये दोनों बहने फ्री में पढ़ाती भी हैं.

स्पेशल गेस्ट की टिप्पणी - बोलो ज़िन्दगी टीम के साथ पहुँचे बतौर स्पेशल गेस्ट जदयू कला संस्कृति प्रकोष्ठ बिहार के उपाध्यक्ष अमर सिन्हा ने कहा, "मुझे ऐसे परिवार में आने का मौका मिला जिसके सभी सदस्यों में कला-संस्कृति के साथ साथ सामाजिक सरोकार रग-रग में बसा है. यहाँ आकर अच्छा लगा कि पूजा ऋतुराज जी खुद समाजसेवा से तो जुड़ी हीं, अपनी बच्चियों को भी इससे जोड़ा जो बहुत ही सराहनीय काम है." कई रियलिटी शो बना चुके अमर सिन्हा अभी डांस बिहार का सरताज रियलिटी शो लेकर आ रहे हैं जिसका नेक्स्ट ऑडिशन नए साल के जनवरी में है, तो उन्होंने ऋतू जी की बेटियों और उनकी संस्था द्वारा ट्रेंड की गयीं बच्चियों को ऑडिशन में आने का निमंत्रण भी दिया.

स्पेशल मोमेंट - जब फैमिली ऑफ़ द वीक के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम पूजा ऋतुराज जी के घर पहुँची तो लोहानीपुर झुग्गी-झोपड़ियों की वैसे बहुत सी कलाकार बच्चियों से मिलवाया गया जिन्हे उनकी बेटियां नृत्य-संगीत में पारंगत कराती हैं. हालांकि ये बच्चियां किसी काम से वहां आयी थीं, लेकिन ऋतू जी के आग्रह पर बोलो ज़िन्दगी ने स्पेशल गेस्ट के साथ उन बच्चियों का सुपर डांस परफॉर्मेंस देखा जिसकी सराहना सभी ने दिल खोलकर की. इसके साथ-ही-साथ पूजा ऋतुराज जी की बेटियाँ सौम्या शंकर एवं महिमा शंकर ने अपने नृत्य से सभी को जैसे सम्मोहित सा कर दिया.

(इस पूरे कार्यक्रम को बोलोजिन्दगी डॉट कॉम पर भी देखा जा सकता है.)



















Monday, 16 December 2019

पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ भाजपा बिहार ने मनाया विजय दिवस


दिनांक 16/12/19  को हर साल कि तरह विजय दिवस मनाने का कार्यक्रम पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ भाजपा बिहार द्वारा आयोजित किया गया।1971 में आज ही के दिन पाकिस्तान पर भारतीय सैनिकों ने विजय का परचम लहराया था जिसे आज हम सब बांग्लादेश के नाम से जानते है। कार्यक्रम की शुरुआत दो मिनट का मौन रखकर शहीदों को याद किया गया तथा। मुख्य अतिथि स्थानीय विधायिका आशा सिन्हा ने दीप जलाकर उद्घाटन किया।

प्रदेश संयोजक पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ भाजपा अरुण फौजी की अध्यक्षता में कार्यक्रम  हुआ। इस मौके पर शहीद सैनिकों के पत्नियों को शॉल देकर सम्मानित किया गया। श्रीमती आशा सिन्हा ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में वीर नारियों को देखकर मैं भी अपने आप को गर्व महसूस कर रही हूं क्युकी में भी एक वीरांगना हूं। भाषण के दौरान सभी लोग भावुक हो उठे। डॉ विजय राज सिंह ने कहा कि में एक फौजी का बेटा होने के नाते आपके किसी भी प्रकार के रोग में सहायता करने के लिए तैयार हूं। 

1971 की लड़ाई लड़े वीर सैनिक एस.बी. सिंह ने कहा कि लड़ाई जीतने के बाद एक हफ्ते तक हम लोग जश्न मनाते रहे। मौके पर धर्मेन्द्र जी,ललन साहब, एस.एन.सिंह, निशा सिंह, आर. एन. उपाध्याय ने अपने अपने विचार रखे।मंच संचालन मनोज जी ने किया।समापन समारोह प्रदेश मीडिया प्रभारी उपेन्द्र सिंह ने किया।इस मौके पर मीता देवी,रीता देवी, मनिमाला,पारस सिंह,राजेश पाल,अजीत यादव,पप्पू कुमार,राहुल, भरत सिंह,हरेश पांडे,प्रमोद कुमार गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

Wednesday, 11 December 2019

पटना के युवाओं ने जाना कॅरियर में सफलता के गुर



11 दिसंबर, पटना कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय में पूर्वाहन 11:30 बजे मेधा फाउंडेशन के तत्वावधान में एक सेमिनार का आयोजन किया गया. युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य और कॅरियर द्वन्द्ध को लेकर आज डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक द्वारा बङी संख्या में मौजूद छात्र-छात्राओं के जिज्ञासा का समाधान किया गया . इस कार्यक्रम की शुरुआत विद्यार्थियों के अभिवादन व स्वागतकर्ता फाउंडेशन की निधि राय‌ द्वारा किया गया ।
इस अवसर पर डॉ॰ मनोज द्वारा बताया गया की पटना कॉलेज सूबे का एक ऐतिहासिक महाविद्यालय है। यह विधालय अपने यहाँ के छात्रों के प्रतिभा से जाना जाता है। स्टुडेन्ट जीवन में कॅरियर एक अहम पङाव है। इस समय छात्रों को बहुत तरह की मानसिक परेशानियों का सामना करना पङता है। खासतौर से उन युवाओं में जो अपने शैक्षणिक उपलब्धि से संतुष्ट नही होते।उनके भीतर असंतोष की भावना से बहुत सारे मनोविकार उत्पन्न हो जाते हैं। इन सब से उनका चयनित कॅरियर प्रभावित व अव्यवस्थित हो जाता है। विद्यार्थियों में पहचान संकट एक बङा मसला है। अपने खराब मानसिक स्वास्थ्य की वजह से वह अपना वजूद सोशल मीडिया में तलाशते है। कुछ मामले में नकली आइडी बनाकर गर्लफ्रेंड या व्यायफ्रेड की तलाश करते हैं। फिर आर्टीफिशियल इंमोशन्स का सहारा लेकर खुद को दिलासा दिलाते हैं। इन सब में उनका ज्यादातर समय निकल जाता है और युवावस्था की यह उर्वर समय कॅरियर पर फोकस के बजाय कहीं और चला जाता है। इस अवसर पर डॉ॰ कुमार छात्रों को इस बात पर जोर देने की बात करते हैं की जिन युवाओं में अपने परिवार से जुङने और उनसे उचित संवाद स्थापित करने से मनचाहे प्रोफेशन में सफलता जल्दी मिल जाती है। अपनो से बङे लोगों के सान्निध्य में रहने से मन से असुरक्षा की भावना घटती है और तनाव का निवारण भी होता है। इस तरह के प्रैक्टिस दिनचर्या में शामिल करने से आत्मविश्वास में बढोतरी व अपने भीतर मौजूद क्षमताओं का आंकलन युवा मन कर सकता है।

सेमिनार में बङी संख्या में युवाओं  ने अपने मन के उलझन से संबंधित सवाल पूछे, जिनका जवाब डॉ॰ कुमार द्वारा सरलता से दिया गया। इस कार्यक्रम में करीब 150 विद्यार्थियों,शिक्षको व अन्य शिक्षकेत्तर कर्मियों सहित वरिष्ठ लोगों ने शिरकत की।

Monday, 9 December 2019

पटना मारवाड़ी महिला समिति और राधा रानी ग्रुप के सहयोग से दो अनाथ बच्चों की हुई शादी



दिनांक 9.12.19 को पटना मारवाड़ी महिला समिति और राधा रानी ग्रुप के सहयोग से दो अनाथ बच्चों को एक नई जिंदगी की शुरुआत करने के लिए उन्हें गोद लेकर शादी का आयोजन दिन में 1 बजे से 5 बजे तक निशांत बाल गृह, गाय घाट में किया गया.

समिति की अध्यक्ष नीना मोटानी ने बताया कि हमारी बिटिया प्रीति कुमारी है जो निशांत बाल गृह में रहती है 18 साल की होने पर वहीं देख रेख का काम करती है.
मुँहबोली बेटी प्रीति का कन्यादान कृष्णा अग्रवाल सत्यनारायण अग्रवाल के साथ मिल कर करेंगी।
हमारे बेटे का नाम अजय कुमार है जो  बाल गृह अपना घर में रहता था. 21 साल  का होने के बाद अभी पिछले 1 साल से कोकाकोला बोटलिंग फैक्टरी में 6000/ मासिक पर कार्य करता है।
मुँहबोले बेटे अजय की बारात अपना घर से मां श्रीमती मनीषा श्रीवास्तव लेकर आएंगी.


श्रीमती केसरी अग्रवाल ने बताया कि पिछले एक महीने से शादी की तैयारियां चल रही थीं.
शादी में प्रीति और अजय को उनके वैवाहिक जीवन की शुरूआत करने के लिए गृहस्थी की सारी तैयारियां कर  के दी गयी है। दोनों बच्चों को कपड़े गैस का चूल्हा पलंग गद्दा चादर तकिया रजाई कम्बल कूकर मिक्सी घड़ी स्टील का बर्तन रोजमर्रा के सामान एवं एक महीने का राशन इत्यादि दिया गया। कोषाध्यक्ष उषा टिबड़ेवाल ने बताया कि इस शादी में बिहार की प्रांतीय अध्यक्ष पुष्पा लोहिया, प्रांतीय सचिव सुमन सर्राफ एवं 2 और सदस्यों के साथ सीतामढ़ी से आकर वर वधु को आशीर्वाद दिया.

प्रांतीय अध्यक्ष पुष्पा लोहिया जी ने बताया की हमारी संस्था महिलाओं और बेटियों को सशक्त करने में हमेशा कार्य करती रहती है और इस शादी के द्वारा हमने समाज मे एक जागरूकता लाने की छोटी सी कोशिश की है.

पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती मीना गुप्ता जी ने बताया* कि हम सभी को यह संदेश देना चाहते हैं कि समाज आगे आये और बाल  गृह की बालिग लड़कियों से  लड़कों की शादी करने में पहल करे। पहली बार निशान्त बालिका गृह की बच्चियों ने जाना कि शादी कैसे होती है और इस शादी के क्रम में उनकी जिंदगी में भी कुछ खुशियों के पल आये और उनकी निराश आँखों और बुझे चेहरों  में भी भविष्य की एक नई आशा की झलक दिखी। इस शादी में समाज के सभी  वर्गों एवं बहुत सी संस्थाओं के सदस्यों ने अपने अपने स्तर से कार्यक्रम में आकर आयोजन को सफल बनाया.

कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से सहयोग दिया - समाज कल्याण विभाग बिहार सरकार के पदाधिकारी,  पटना के सभी बालिका गृह की अधीक्षक, बिहार प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन , मारवाड़ी युवा मंच, पटना नगर शाखा, रोटरी चाणक्य क्लब, भारत विकास परिषद इत्यदि.
100 से ज्यादा लोगों ने आकर इस जोड़ी को आशीर्वाद दिया। जुगल जोड़ी को आशीर्वाद देने मुख्य रूप से उपस्थित थे बिमल जैन, पूर्णिमा शेखर, कमल नोपानी, बिनोद तोदी ,महेश जालान, डॉ श्रवण कुमार , गणेश खेतरिवाल, अंजनी बंका.

कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से सहयोग दिया - इंदु कुमारी, केसरी अग्रवाल, शकुंतला लोहिया ,सविता खंडेलिया, मधु मोदी, इत्यादि ने। शादी में बालिका गृह की बच्चियों के साथ करीब 250 लोग सम्मिलित हुए. 

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : लेख्य-मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव की फैमली, रुकनपुरा, पटना




8 दिसंबर, रविवार की सुबह 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के रुकनपुरा इलाके में लेख्य मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में लघुकथा के पितामह कहे जानेवाले डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों विभा रानी जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- विभा रानी श्रीवास्तव जी का मायका सिवान जिले के मझवलिया गांव में है और ससुराल हुआ गोपालगंज के माणिकपुर में. उन्होंने बीएड और एलएलबी किया है. हसबैंड डॉ. अरुण कुमार श्रीवास्तव इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड से चीफ इंजीनियर के पद से सेवानिवृत हैं. एक बेटा है महबूब श्रीवास्तव जो अभी अमेरिका में इंजीनियर है. महबूब इंग्लिश में लिखते हैं. एक इंटरनेशनल संस्था है 'टोस्ट मास्टर' जिसमे वे जॉब से अलग विषयों पर लेक्चर देते हैं. बहु का नाम है माया शनॉय श्रीवास्तव जो साऊथ इंडियन है और बैंगलोर से बिलॉन्ग करती हैं. माया सीए हैं. विभा जी के घर का कॉन्सेप्ट था वन फैमली वन चाइल्ड इसलिए घर में लगभग सभी को एक ही बच्चे हैं.

लेखन की शुरुआत - विभा रानी जी की अभिव्यक्ति लेखन के रूप में डायरी के पन्नों पर बहुत पहले से जारी थी. लेकिन पूरी तरह से लेखन से जुड़ाव हुआ 2011 में जब ब्लॉग पर लिखना शुरू हुआ. ब्लॉग बनाने का आइडिया बेटे ने दिया था. उससे पहले विभा जी घर में सिलाई-बुनाई और पेपर ज्वेलरी बनाना सिखलाती थी. रूपसपुर गांव की निम्न वर्गीय परिवार की लड़कियां इनसे सीखने आती थीं. इससे पहले भी जहाँ कहीं रहीं क्लब खोलना, पेंटिंग सिखाना, एम्ब्रॉयडरी सिखाना जैसे काम करती रहीं. लेकिन जैसे जैसे इंटरनेट डेवलव हुआ और ब्यूटी पार्लर का कॉन्सेप्ट आया तो फिर इसमें लड़कियों की रूचि ज्यादा बढ़ी. चूँकि सिलाई-कढ़ाई में उन्हें कोई भविष्य नहीं नज़र आ रहा था. इसलिए धीरे-धीरे जब लड़कियों की संख्या कम होती गयीं और तभी विभा जी के हसबैंड की पोस्टिंग हो गयी थर्मल पावर बरौनी में जी एम  के पोस्ट पर. तो इन्हें पटना से वहां शिफ्ट होना पड़ा. फिर वहाँ इनकी ये सब एक्टिविटी लगभग बंद हो गयी. तबतक वे हाइकू लेखन से जुड़ चुकी थीं. यूँ तो कहा जाता है साहित्य की यह विधा जापान से आयातित है लेकिन विभा जी ने जो शोध किया है हरिद्वार, दिल्ली, लखनऊ जाकर तो यह राय बनी कि हाइकू यहीं से वहां गया होगा और वहां से मोडिफाइड होकर वापस भारत आया होगा. हाइकू के बाद विभा जी वर्ण पिरामिड, लघुकथा से भी जुड़ीं. 2011 में ब्लॉग शुरू किया 'सोच का सृजन' जिसमे कंटीन्यू लेखन आज भी जारी है. उसके पहले ब्लॉग था 'मृगतृष्णा' उसमे विभा जी अपनी अभिव्यक्ति लिखती थीं. लेकिन फिर नए ब्लॉग में एक-एक कर अपनी सभी साहित्यिक विधाओं को डालना शुरू किया.

साहित्यिक गतिविधियों की शुरुआत - विभा रानी बताती हैं, "2015 में हमलोग हाइकू और वर्ण पिरामिड की किताब दिल्ली के हिंदी भवन में लोकार्पण किये थें उसी समय यह तय हुआ था कि अगले साल 2016 में सौ साल पूरा हो रहा है हाइकू का तो उसका शताब्दी वर्ष मनाएंगे. कहा जाता है कि जब 1916 में रवीन्द्रनाथ टैगोर जापान यात्रा पर गए थें तो वहां के जो उन्होंने संस्मरण लिखें उसी में हाइकू की चर्चा थी कि जापान में ऐसे हाइकू लेखन पाए जाते हैं. उसी लिहाज से हमने 2016 को शताब्दी वर्ष माना. उस समय जब मनाने की योजना चल रही थी तो यह बात बनी कि एक पुस्तक भी लाया जाये. तो फिर मैंने सोचा चलो सौ हाइकुकार खोजते हैं पूरे देश में. संयोग से मेरे पास लगभग 125 हाइकू लेखकों कि रचनाएँ जमा हो गयीं. और फिर मैंने हाइकू की किताब छपवायी. जब लोकार्पण का समय आया उसी समय मेरे हसबैंड की तबियत थोड़ी खराब चलने लगी जिसकी वजह से दिल्ली जाकर सारा काम करना सम्भव नहीं हुआ. तो हुआ कि पटना कौन सा साहित्य की दृष्टि से कम महत्वपूर्ण है, इसलिए क्यों ना हमलोग पटना में ही आयोजन करें. तबतक मैं घर से ज्यादा बाहर नहीं जाती थी. इंरटनेट से पूरे विश्व का आइडिया था लेकिन अपने ही शहर में क्या हो रहा है तब यह आइडिया नहीं था. फिर भी मैं हाइकुकार खोजने के लिए आस-पास निकलने लगी उसी क्रम में मुलाकात हुई साहित्यकार डॉ. सतीश राज पुष्करणा जी से, अनीता राकेश, पूनम आनंद जी से. तो जब यहाँ लोकार्पण की बात हुई तो यह बात उठी कि एक मंच चाहिए क्यूंकि बिना मंच और बैनर का लोकार्पण करने का कोई मतलब नहीं है.


लेख्य-मंजूषा का आरम्भ - 22 जून 2016 को अचानक से फेसबुक पर खबर आयी कि दिल्ली में एक एनजीओ है जिसने घोषणा कर दी कि हाइकू और वर्ण पिरामिड का लोकार्पण होना है और पूरे देश से लोग जुट रहे हैं. और सभी लेखकों को मंच सम्मानित करेगा. तो उसी एनजीओ के रूप में विभा जी एवं उनसे जुड़े लोगों को एक बैनर मिल गया. उसी बैनर तले इनलोगों  ने 26 जून से काम करना शुरू कर दिया. इनको पटना में लोकार्पण करना था 4 दिसंबर को क्यूंकि उस दिन हाइकू दिवस होता है. प्रफेसर सत्यभूषण वर्मा जिन्होंने हाइकू के लिए बहुत सराहनीय कार्य किया हुआ है तो उन्ही के जन्म दिवस 4 दिसंबर को इनलोगों ने हाइकू दिवस के रूप में कन्वर्ट कर दिया. 4 दिसंबर के आयोजन को लेकर बैठकें होने लगीं, और 14 सितंबर से इनकी टीम ने मासिक गोष्ठी और त्रैमासिक कार्यक्रम की भी शुरुआत कर दी. लेकिन ये सारा काम उसी दिल्ली की संस्था के बैनर तले हो रहा था. जब दिसंबर नजदीक आने लगा तो इनलोगों ने दिल्ली वाले एनजीवो के हेड से कॉन्टेक्ट करके बैनर के लिए उनकी संस्था का लोगो और अन्य प्रक्रियाओं के लिए लेटर हेड मंगवाया तो उन्होंने यह कहकर इंकार कर दिया कि मेरे पास यह ऑथरिटी नहीं है कि मैं यह संस्था दिल्ली के अलावे बिहार में भी एक ब्रांच के रूप में खोल सकूँ. तो फिर सबको लगा कि ऐसे में तो हमारी इतने दिनों की सारी मेहनत बेकार हो जाएगी, सारे सदस्य हतोत्साहित हो जायेंगे. लेकिन अब ज्यादा समय नहीं बचा था विभा जी की टीम ने 4 दिसंबर का कार्यक्रम तो उसी एनजीओ के तहत किया लेकिन वहीं घोषणा कर दी कि हमलोग ये मंच छोड़ रहे हैं. और अपनी संस्था शुरू कर रहे हैं जिसके तहत हमलोगों का अपना कार्यक्रम होगा. और फिर तभी नई संस्था लेख्य-मंजूषा बन गयी लेकिन नामकरण में दो-चार दिन लग गएँ. जब बोलो ज़िन्दगी ने लेख्य-मंजूषा का अर्थ पूछा तो विभा जी ने बताया, "लेख्य का अर्थ हुआ लिखने योग्य और मंजूषा का अर्थ हुआ बक्शा या थैली. अब आप लेख्य मंजूषा का तातपर्य समझ ही गए होंगे."  इस संस्था में पूरे देश से लोग जुड़े हुए हैं. सतीश राज जी इस संस्था के अभिभावक हैं और उनके मार्गदर्शन में संस्था चल रही है. विभा जी के भइया सुनील कुमार श्रीवास्तव जो सिंचाई विभाग में इंजीनियर के पद से सेवानिवृत हैं जो साहित्य में रूचि रखते हैं. वे शुरू-शुरू में संस्था के संचालन में विभा जी को बहुत सहयोग किये थें.


लेख्य-मंजूषा के क्रियाकलाप - पहला कार्यक्रम 2017 जनवरी में हुआ मासिक गोष्ठी के रूप में. जनवरी से दिसंबर का इनका एक कैलेंडर है. एक महीना गध का काम होता है तो एक महीना पध पर काम होता है. और जो त्रैमासिक कार्यक्रम आता है वो भी एक बार गध तो दूसरी बार पध पर आधारित होता है. लेख्य मंजूषा का टैग लाइन है साहित्य और समाज के प्रति जागरूक करती संस्था. इसमें सिर्फ साहित्य के काम नहीं बल्कि सामाजिक कार्य भी होते हैं. उसके तहत आकांक्षा सेवा संस्थान जो झुग्गी-झोपड़ी के दलित बच्चों की शिक्षा पर काम करती है उसे हर महीने आर्थिक सपोर्ट करते हैं. वहां जब भी जरूरत होती है लेख्य-मंजूषा संस्था के लोग जाते हैं. अभी जो पटना में बाढ़ आयी थी टीम के सदस्यों ने शारीरिक सपोर्ट तो किया ही उसके साथ ही साथ फंड जुटाकर, कपडे, खाने-पीने के सामान, ब्लीचिंग पाउडर आदि का वितरण भी कराया. ठंढ में गरीबों को कंबल वितरण इत्यादि के कई कार्यक्रम चलते रहते हैं. पिछले दो साल से पटना पुस्तक मेले में संस्था अपने बैनर तले वहां साहित्यिक कार्यक्रम कर रहीं है. त्रैमासिक पत्रिका साहित्यिक स्पंदन भी निकलती है जिसमे पूरे देश के साहित्यकारों की रचनाएँ प्रकाशित होती हैं, जिसका सम्पादन विभा रानी ही करती हैं. संपादन में लगभग 8 पुस्तकें आ चुकी हैं, लघुकथा के 5, हायकू के दो और एक वर्ण पिरामिड की पुस्तक.
           अभी 4 दिसंबर को संस्था के वर्षगांठ कार्यक्रम में सामाजिक सन्देश देनेवाली एक शॉर्ट फिल्म 'षड्यंत्र' का प्रदर्शन भी हुआ जो विभा रानी जी की लघुकथा पर आधारित है. और इसके डायरेक्शन, म्यूजिक, सिनेमेटोग्राफी और एडिटिंग से लेकर एक्टिंग तक सभी हमारी ही संस्था के सदस्यों ने किया. पहले इसके निर्माण के लिए इन्होने मार्केट में प्रोफेशनल लोगों से सम्पर्क किया तो उन्होंने 45 हजार चार्ज बताया जो एक बार में शॉर्ट फिल्म के लिए देना इन्हे मुनासिब नहीं लगा. फिर जब फैसला हुआ कि ये लोग खुद ही फिल्म बनाएंगे और फिर इस फिल्म में शामिल 9 लोगों ने पांच- पांच सौ रुपये मिलाये और सिर्फ 45 सौ में लेख्य-मंजूषा की शॉर्ट फिल्म बनकर तैयार हो गयी. इससे संस्था के सदस्य और भी उत्साहित हुए.

नई पीढ़ी को सन्देश : विभा जी कहती हैं, "2013 में बेटे की शादी हुई तो इधर कुछ सालों से मेरी एक्टिविटी पुनः बढ़ी. मेरा मानना है कि कोई भी काम कभी भी किसी भी उम्र में किया जा सकता है. और मैं अपनी संस्था में मैं वैसे लोगों को जायदा से ज्यादा शामिल करती हूँ जो टैलेंट होते हुए भी कभी कुछ नहीं किये हों. कई वैसे लोगों को घर-जा-जाकर ढूंढा मैंने. तो जब मैं इस उम्र में सक्रीय रह सकती हूँ तो आप क्यों नहीं...?"

स्पेशल गेस्ट की मौजूदगी - इस कार्यक्रम में बतौर स्पेशल गेस्ट के रूप में उपस्थित लघुकथा के पितामह डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी ने भी विभा रानी श्रीवास्तव के प्रयासों की भूरी-भूरी प्रशंसा की और अपने संघर्ष के आरम्भिक दिनों के कुछ संस्मरण बोलो ज़िन्दगी के साथ साझा किए. फिर बोलो जिंदगी के रिक्वेस्ट पर विभा रानी और डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी ने अपनी लिखी हुई लघुकथाओं का पाठ करके सुनाया. मौके पर बोलो ज़िन्दगी के निदेशक राकेश सिंह 'सोनू' ने अपनी लिखी पुस्तकें "तुम्हें सोचे बिना नींद आये तो कैसे ?" और "एक जुदा सा लड़का" दोनों ही वरिष्ठ साहित्यकर्मियों को भेंट की.

(इस पूरे कार्यक्रम को बोलोजिन्दगी डॉट कॉम पर भी देखा जा सकता है.)













Saturday, 7 December 2019

दूसरी पुण्यतिथि पर याद किये गये 'अमृतवर्षा' के संस्थापक-संपादक स्व. पारसनाथ तिवारी



पटना, 7 नवंबर, पत्रकारिता जगत के लौह पुरूष कहे जाने वाले अमृतवर्षा हिन्दी दैनिक के संस्थापक संपादक स्वर्गीय पारसनाथ तिवारी बाबा की दूसरी पुण्यतिथि पर पत्रकारिता जगत ने उनको याद किया। दक्षिणी मंदिरी स्थित बिहार श्रमजीवी पत्रकार युनियन के कार्यालय परिसर में बिहार के जाने माने पत्रकारों ने उन्हें श्रद्धांजली प्रदान की तथा उन्हें याद किया। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश्वर, बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के महासचिव प्रेम कुमार, संजय शुक्ला, कृष्ण कांत ओझा, संजीव कुमार, बन बिहारी तिवारी, संतोष कुमार, अभिषेक मिश्र, अमित कुमार, कनिष्क सिंह, रमेंद्र सिंह, चंद्रकांत मिश्रा, अभिषेक कुमार सिंह, मृत्युंजय ,देव प्रकाश  , धर्मेन्द्र कुमार, राज किशोर प्रसाद , ओम प्रकाश श्रीवास्तव , मिथिलेश पाठक, समेत इलेक्ट्रॉनिक तथा प्रिंट मीडिया से जुड़े कई पत्रकार उपस्थित थे।
बाबा की पुण्यतिथि पर उनको याद करते हुए बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के महासचिव प्रेम कुमार ने कहा कि बाबा ने निडरता और निर्भिकता के साथ पत्रकारिता की। अपने मार्गदर्शन में काम करने वाले पत्रकारों को को भी उन्होंने निडर और निर्भिक बनाया। जाने माने पत्रकार और स्वत्व पत्रिका के संपादक कृष्णकांत ओझा ने कहा कि बाबा जीवनपर्यंत नैतिक मूल्यों के आधार पर निष्पक्ष एवं  समतामूलक पत्रकारिता करते रहे। आज के परिप्रेक्ष्य में उसी प्रकार के पत्रकारिता की जरूरत है। बाबा को याद करते हुए अमृतवर्षा हिन्दी दैनिक के संपादक बन बिहारी तिवारी ने कहा कि बाबा ने संघर्ष करना सिखाया। बाबा खुद मुश्किल राह पर चलते रहे, संघर्ष करते रहे। सच के साथ समझौता न करने की जिद की वजह से उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। बाबा की दूसरी पुण्यतिथि पर आयोजित श्रद्धांजली सभा में बिहार के कई जाने माने पत्रकारों ने शिरकत की। पत्रकारों ने बाबा की पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजली दी।

Wednesday, 4 December 2019

रोटरी चाणक्या ने दिव्यांग बच्चों के साथ विश्व दिव्यांग दिवस मनाया



पटना, हॉल में तेज म्यूजिक के साथ बॉलीवुड के हिट सॉन्ग बज रहे थें. लेकिन अचरज की बात ये कि कुछ बोल-सुन ना पानेवाले दिव्यांग बच्चे बिना सॉन्ग सुने ही कमाल का डांस परफॉर्मेंस कर रहे थें. उनका डांस जिसने भी देखा वाह-वाह कह उठा. यह नजारा था 3 दिसंबर की शाम पटना के रोटरी भवन में रोटरी चाणक्या द्वारा विश्व दिव्यांग दिवस के अवसर पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम का. 
जे. एम. इंस्टीटूट के मूक एवं बघिर बच्चों ने बेजोड़ नृत्य प्रस्तुत कर सभी को चकित कर दिया. उनके साथ-साथ सहारा होम के मेंटली डिसेबल बच्चों-युवतियों ने भी अपने नृत्यनाटिका से सभी का दिल जीत लिया. रंगारंग कार्यक्रम में रंग तब जमा जब मौजूद अतिथि भी नृत्य कर रहे दिव्यांग बच्चों की टोली में शामिल हो गएँ. इसी बीच एक स्पेशल गेस्ट सोशल एक्टिविस्ट दिव्यांग राधा जब व्हील चेयर के बिना ही डांस के जरिये अपनी ख़ुशी का इजहार करने लगी, तो उसकी इस ख़ुशी में वहां मौजूद मुख्य एवं विशिष्ठ अतिथिगण भी शामिल हो गएँ. उनके साथ-साथ कार्यक्रम के आयोजक भी डांस करते हुए राधा को सपोर्ट करने लगें.


कार्यकर्म में मुख्य अतिथि थे बिहार राज्य आयुक्त दिव्यांग, समाज कल्याण विभाग के डॉ. शिवजी कुमार. डॉ कुमार ने दिव्यांगों को कड़ी मेहनत करने की सलाह दी ताकि वे पैराओलंपिक प्रतियोगिता में देश का नाम रौशन कर सकें.
वहीँ रोटरी चाणक्या के अध्यक्ष डॉ श्रवण कुमार ने बताया कि "भगवान अगर किसी के अंग मे कमी देते हैं तो उसके अन्य अंग को दिव्य शक्ति प्रदान करते हैं इसीलिए हम इन्हें दिव्यांग कहते हैं. बस जरूरत है उसके दिव्य अंग की महत्ता को समझने और उसे सही मार्गदर्शन देने की."
जे एम इंस्टीटूट के डॉ मनोज कुमार ने बताया कि "उनके इंस्टिट्यूट में सभी बच्चे बहुत अच्छे काम कर रहे हैं."

कार्यक्रम के आयोजक सुनील सराफ, अभिषेक अपुर्व, संदीप चौधरी और क्लब के सचिव निखिल नटराज ने बच्चों को पारितोषिक देकर सम्मानित किया. इस कार्यक्रम का सन्चालन सोनल जैन ने किया और इसे सफल बनाने में आशीष बांका, नीना मोटानी, प्रकाश अग्रवाल, आशीष अग्रवाल, सीमा बंसल आदि ने साथ दिया.

मौके पर मौजूद थे रोटरी की पूर्व मंडलाध्यक्ष बिंदु सिंह, संदीप सराफ, बिपिन चचाण, नीना कुमार, नम्रता जी, अभिषेक अकेला, डॉ. रमित गुंजन, सुनील भालोटिया और बोलो ज़िन्दगी से राकेश सिंह सोनू, तबस्सुम अली, प्रीतम कुमार आदि.

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : शायरा ज़ीनत शेख़ की फैमली, फुलवारीशरीफ़, पटना



 1 दिसंबर, रविवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के फुलवारीशरीफ़ इलाके में शायरा ज़ीनत शेख़ जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में जीएसटी असिस्टेंट कमिश्नर एवं शायर समीर परिमल भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों ज़ीनत जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- जीनत शेख़ शायरा, कवियत्री, फेसबुक आरजे हैं. मायका गिरिडीह, झाड़खंड में है. इनके पिताजी अब्दुल ज़लील मिर्ज़ा सीनियर एडवोकेट हैं. माँ नसीमा मिर्ज़ा गवर्नमेंट स्कूल में प्रिंसिपल रह चुकी हैं. ये एक भाई एक बहन हैं. भाई मिर्ज़ा ज़फर कोलकाता में आईबीएम कम्पनी में सॉफ्टेयर इंजीनियर हैं. ज़ीनत जी का ससुराल रोहतास जिले के विक्रमगंज में है. ससुर शेख़ मोबिन अहमद आर्मी में थें. सास समीमआरा हाउसवाइफ थीं. ज़ीनत जी के हसबैंड साबिर शेख़ पुलिस ऑफिसर हैं. उन्हें पुराने गीत गाने का शौक है. तीन बच्चे हैं. बड़ी बेटी सोबिया फातिमा एनएमसीएच पटना में एमबीबीएस सेकेण्ड ईयर की स्टूडेंट है. छोटी बेटी सानिया फातिमा डीएबी बीएसईबी में 12 वीं क्लास में है. बेटा अयान शेख़ रेडियंट इंटरनेशनल में 8 वीं क्लास में है.


शेरो -शायरी की शुरुआत कैसे हुई ? - ज़ीनत जी को बचपन से ही साइंस की जगह आर्ट्स में रूचि थी. खासकर साहित्य से बहुत लगाव था. तब स्कूल में उर्दू सब्जेक्ट नहीं था इसलिए घर में ही उर्दू ट्यूशन शुरू हो गया. हिंदी-उर्दू की बहुत सारी मैगजीन्स घर में आती थी और बचपन से ही पढ़ने का शौक लग गया. धीरे-धीरे इनका इंट्रेस्ट लिखने-पढ़ने में बहुत बढ़ता चला गया. शुरू में 2 लाइन की शायरी लिखा करती थीं. स्कूल की मैगजीन्स के साथ-साथ राष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी रचनाएँ छपने लगीं.  गिरिडीह के वीमेंस कॉलेज से इंग्लिश लिटरेचर में ग्रेजुएशन किया उसके बाद शादी हो गयी. शादी बाद जब बच्चे हुए तो जिम्मेदारियों की वजह से लेखन का सिलसिला बंद हो गया. बच्चे जब बड़े व समझदार हुए, उनका वक़्त स्कूल में गुजरने लगा तो ज़ीनत जी ने फिरसे लिखना शुरू किया. एक दफा चार लाइनें इनकी बड़ी बेटी ने सुना तो कहा - मम्मी मोबाइल में एक ऐप है योरकुट ऐप तो आप क्यों नहीं उसमे लिखती हैं. बेटी ने योरकुट पर इनका एकाउंट बना दिया और उसपर ज़ीनत जी ने रोज लिखना शुरू कर दिया. उसपर बहुत सारे फॉलोवर्स हो गएँ. बहुत से लोग जानने लगें.

एचीवमेंट - जब योरकुट वालों ने पहला ओपेन माइक पटना में किया तो ज़ीनत जी को भी इन्वाइट किया. वहां पर उन्होंने एक कविता नारी पर सुनाई और सभी को बहुत पसंद आयी. फिर जब दूसरी बार ये आयोजन हुआ तो फिर मौका मिला. उसके बाद पेन ऑफ़ पटना के कार्यक्रम के कई एपिसोड इन्होने होस्ट किया. फिर इन्होने फेसबुक पर एमफोबिक पेज बनाया और उसपर ज़ीनत शेख़ के नाम से अपना प्रोग्राम शुरू किया. तो इसतरह से ये इण्डिया की पहली फेसबुक आरजे बन गयीं. उसके बाद विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं के साथ रेडियो -दूरदर्शन के प्रोग्राम के लिए निमंत्रण आने लगें. पहले शायरी ज्यादातर प्रेम के विषय पर लिखती थीं लेकिन अब ये चाहती हैं कि हर टॉपिक पर लिखें और खासकर समाज में बढ़ रही नफरतों के मौहौल में अपनी रफचनाओं के माध्यम से प्रेम का सन्देश देना चाहती हैं.  अबतक 25 -30 मुशायरा-कवि सम्मेलनों में हिस्सा ले चुकी हूँ. पीएजीएसी फाउंडेशन ने जब पटना की 10 सशक्त माँओं को सम्मान के लिए चुना तो उनमे से एक नाम ज़ीनत का भी था. हाल ही में काव्य योद्धा कार्यक्रम में प्रसिद्ध साहित्यकार भगवती प्रसाद दिवेदी जी के साथ जज की भूमिका के लिए भी इन्हे चुना गया. इसी साल पटना एम्स में पोयट्री कम्पटीशन हुआ था मेडिकल स्टूडेंट्स का तो उसमे भी इन्हें दो डॉक्टर्स के साथ बतौर निर्णायक जज सेलेक्ट किया गया था. अख़बारों में आज भी रचनाएँ छपती रहती हैं. समय-समय पर आकाशवाणी-दूरदर्शन के कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेती हैं.

फैमली मेंबर्स का टैलेंट - सोबिया फातिमा- पढ़ाई में तो अव्वल हैं ही उसके साथ-साथ सिंगिंग, डांसिंग, राइटिंग, पेंटिंग, कुकिंग, एम्ब्रायडरी का भी शौक रखती हैं. पटना एम्स में हुए फेस्ट में सारे मेडिकल स्टूडेंट्स के बीच हुए डिबेट में फर्स्ट आयी थीं. अपने स्कूल में बेस्ट ऑलराउंडर स्टूडेंट की ट्रॉफी मिली थी. दो साल लगातार स्कूल की हेड गर्ल भी बनाया गया.
सानिया फातिमा- लेखन एवं अभिनय के अलावा वो अच्छी स्पोर्ट्स गर्ल भी हैं. हमेशा स्कूल में रनिंग में फर्स्ट आती रही हैं.
अयान शेख़ - स्कूल के बेस्ट ओरेटर की ट्रॉफी जीत चुके हैं. स्कूल में हुए डिबेट कम्पटीशन में हमेशा फर्स्ट आते हैं. गाते भी अच्छा हैं. एसकेमेमोरियल में हुए कई कार्यक्रमों में सिंगिंग की है और सम्मानित भी हुए हैं.

फिर बोलो ज़िन्दगी टीम की मौजूदगी में इस फैमली ने अपना फैमिली पैक प्रेजेंटेशन दिया. जहाँ ज़ीनत शेख़ जी ने दो उम्दा गज़लें सुनायीं, उनके हसबैंड शेख़ साबिर जी ने अपनी दिलकश आवाज में दो सदाबहार गीत सुनाएँ. वहीँ इनके बेटे अयान ने कैलाश खेर का एक सूफी गीत सुनाया. बड़ी बेटी सोबिया फातिमा ने अपनी एक कविता एवं एक फ़िल्मी गीत सुनाया. और छोटी बेटी सानिया फातिमा ने एक शार्ट कॉमेडी एक्ट दिखाकर सभी को खूब हंसाया.
स्पेशल गेस्ट की टिप्पणी - इस कार्यक्रम में बतौर स्पेशल गेस्ट के रूप में उपस्थित शायर समीर परिमल जी ने अपनी टिप्पणी में जीनत शेख़ और उनके फैमिली मेंबर्स के टैलेंट की खूब सराहना की और कहा कि हम तो सभी का हुनर देख दंग रह गएँ. फिर आखिर में मजाकिया लहजे में ज़ीनत शेख़ के कुकिंग टैलेंट की तरफ इशारा करते हुए कहा कि - "यहाँ हर कला का डेमो दिखाया जा रहा है जिसके आधार पर हम अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं. लेकिन ज़ीनत जी जो इतना अच्छा खाना बनाती हैं अगर वो बनाकर खिलाएं तब तो हम कुछ खाने पर टिप्पणी करें." फिर एक जोर के ठहाके के साथ यही आम राय बनी कि किसी और दिन ज़ीनत जी के यहाँ फिरसे तशरीफ़ लाते हैं और उनके हाथों के बने लज़ीज व्यंजन चखते हैं. 

(इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है.)
























Monday, 2 December 2019

पटना की लड़कियों को मासिक सुरक्षा के प्रति किया गया जागरूक



दिनांक 2.12.19 को पटना  मारवाड़ी महिला समिति द्वारा ज्ञान निकेतन गर्ल्स हाई स्कूल ,दीघा रोड में लड़कियों के स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक वेंडिंग मशीन की जानकारी और मासिक सुरक्षा के प्रति जागरूकता कार्यक्रम किया गया।

समिति की अध्यक्ष नीना मोटानी ने बताया कि "अक्सर जागरूकता के अभाव में लड़कियां और महिलाएं गंदे पुराने कपड़े ,प्लास्टिक और राख का उपयोग करती हैं। सफाई के अभाव में वे असमय बच्चेदानी के कैंसर का शिकार भी हो जाती हैं।" अतः समिति की ओर से स्कूल में एक सैनिटरी वेंडिंग मशीन का डेमो दिया गया कि जहां कहीं भी ये मशीन हो वे 5 रूपए का सिक्का डालकर पैड निकाल सकती हैं।

श्रीमती केसरी अग्रवाल ने बच्चियों को मासिक के समय सफाई रखने का संदेश दिया और सैनिटरी पैड के उपयोग के लिए प्रेरित किया।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से उपस्थित थीं -  केसरी अग्रवाल ,शकुन्तला लोहिया, उर्मिला संथालिया, लीलावती अग्रवाल, रेणु वाष्र्णेय,  नाज़ों कौशिक इत्यादि।

Sunday, 1 December 2019

रोटरी चाणक्या द्वारा आयोजित हुआ मेगा हेल्थ चेकअप



पटना, दिनांक 1.12.19 आध्यात्मिक सत्संग समिति, लवकुश टॉवर में रोटरी चाणक्या द्वारा आयोजित हुआ मेगा हेल्थ चेकअप, जिसमे करीब 100 लोगों ने शहर के प्रख्यात  चिकित्सको  से सलाह ली जो अपने विषय के विशेषज्ञ हैं । उनमे डॉ एस के डिडवानिया, डॉ उषा डिडवानिया, डॉ श्रवण कुमार, डॉ मनोज कुमार , डॉ विनीता त्रिवेदी, डॉ अरविंद कुमार, डॉ रमित गुंजन, डॉ संजीव कुमार, डॉ सुभाष कुमार, डॉ पीयूष खेतान, डॉ सुधाकर मिश्र, डॉ राहुल मुनका आदि प्रमुख थे।


कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे श्री गणेश खेतेरिवालर, वहीँ विशिष्ठ अतिथि में रोटरी के मंडलाध्यक्ष श्री गोपाल खेमका, पूर्व मंडलाध्यक्ष श्रीमती बिंदु सिंह एवं अनेक गण्यमान व्यक्तियों का समावेश था।
क्लब के अध्यक्ष डॉ श्रवण कुमार ने बताया कि "इस कार्यक्रम में सभी को बहुत लाभ  प्राप्त हुआ।
कुछ लोगों को उनकी बीमारियों की जांच द्वारा पता चला जिसे वो जानते तक नहीं थे।"
मेगा हेल्थ चेकअप के आयोजक आलोक स्वरूप एवं अभिषेक अपुर्व  ने बताया कि "यहां ब्लड शुगर, लिपिड प्रोफाइल, सी बी सी के लिए ब्लड टेस्ट और B M D द्वारा बोन की मजबूती का पता किया गया।"


कार्यक्रम को सफल बनाने में  निखिल नटराज, आशीश बांका, संदीप चौधरी, आशीष अग्रवाल, चिंतन जैन, नीना मोटानी, सुनील सराफ, जया स्वरूप, प्रकाश अग्रवाल  नितिन कृष्णा, कृष्णा रुंगटा आदि प्रमुख थे। कार्यक्रम को लोगो ने बहुत सराहा और आगे भी इस तरह का हेल्थ कैम्प होता रहे इसकी आशा की।



Wednesday, 27 November 2019

शहरी कल्चर में पले-बढ़े बच्चे कार्यक्रम 'आओ गांव चलें' से हुए ग्रामीण संस्कृति से रूबरू



पटना, 24 नवम्बर, रविवार, “शिक्षा दे शक्ति,बाल-मजदूरी से मुक्ति…”, “चलो अब शुरुआत करें, बाल-विवाह का नाश करें…”, “ऐसा कोई काम नहीं जो बेटियाँ ना कर पायी हैं, बेटियाँ तो आसमान से तारे तोड़ लायी हैं…”, “दहेज हटाओ, बहु नहीं बेटी बुलाओ…”, “पर्यावरण का रखें ध्यान, तभी देश बनेगा महान…”  अपने-अपने हाथों में जागरूकता हेतु ये स्लोगन की तख्तियां लेकर जब लगभग 40 की संख्या में शहर से आये बच्चे स्कूली बस से उतरें तो यह देखकर ‘बीर’ गांव के निवासी भी दंग रह गयें. यह नजारा था कार्यक्रम “आओ गाँव चलें” का जिसका आयोजन बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन ने किया था. जिसके तहत स्कॉलर्स एबोड स्कूल के वैसे बच्चों को धनरुआ प्रखंड के बीर-ओरियारा गाँव भ्रमण पर ले जाया गया जो आज़तक कभी गाँव नहीं गए थें, जिन्होंने रियल लाइफ में गाँव होता कैसा है देखा ही नहीं था. जिन्होंने इससे पहले गाँव को सिर्फ किताबों में पढ़ा और फ़िल्म-टीवी में देखा था. इस कार्यक्रम का उद्देश्य था शहरी कल्चर में पले-बढ़े बच्चों को ग्रामीण संस्कृति से रूबरू कराने के साथ ही उन्हें किताबों से इतर व्यवहारिक शिक्षा भी देना.

https://www.youtube.com/watch?v=scquzR79T2Q

गाँव जा रहे बच्चों के स्कूली बस को रविवार की सुबह हरी झंडी देकर रवाना किया पटना के जानेमाने चिकित्सक डॉ. दिवाकर तेजस्वी, स्कॉलर्स एबोड की प्राचार्या डॉ. बी. प्रियम एवं बोलो ज़िन्दगी के निदेशक राकेश सिंह ‘सोनू’ ने. ये सभी अतिथि स्कूली बच्चों के साथ खुद भी गाँव भ्रमण पर गयें.

हरी झंडी देने के पहले इस अवसर पर बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन के डायरेक्टर राकेश सिंह ‘सोनू’ ने कहा कि “कभी पटना में वैसे एक-दो बच्चों से मुलाक़ात हुई थी जो कभी गांव ही नहीं गए थें, तब वहीं से आइडिया आया कि ऐसे बहुत से बच्चे शहर में होंगे तो क्यों नहीं उन्हें ले जाकर ग्रामीण संस्कृति से रु-ब-रु कराया जाए…कि जो अनाज हम खाते हैं उसकी फ़सल गांव के किसान कैसे उपजाते हैं, उन्हें खेत-खलिहान भी दिखाया जाए, डायनिंग टेबल पर खानेवाले बच्चों को गांव में दरी पर बैठाकर पत्तल में खिलाया जाए, मिट्टी के चुक्के में पानी पिलाया जाए. मतलब उन्हें भी गाँव की संस्कृति से जोड़ा जाए.”


वहीं स्कॉलर्स एबोड की प्राचार्या डॉ. बी. प्रियम ने कहा ” सच में इस यात्रा से हमारे बच्चे कुछ-ना-कुछ अच्छा सीखकर ही अपने घर लौटेंगे यह हमें विश्वास है. और तमाम अभिभावकों से हम यही अपील करना चाहेंगे कि वो अपने बच्चों को कभी-कभी गाँव ज़रूर घुमाएं जिससे उनका अनुभव बेहतर होगा.”

वहीं डॉ. दिवाकर तेजस्वी ने कहा कि “यह स्कूली बच्चे जिस गाँव (बीर) में जा रहे हैं वो मेरा खुद का गांव है. ‘बीर’ गाँव में बच्चे किसानों और गाँव के मुखिया से मिलेंगे, खेत-खलिहान और फसलों को देखेंगे, गांव के  सरकारी स्कूल, मंदिर, तालाब का भी भ्रमण करेंगे. खुद से पौधरोपण कर पर्यावरण संरक्षण का सन्देश भी देंगे. कभी गाँव नहीं गए बच्चों के लिए यह नया अनुभव होगा.”

पहली बार गांव देखने की उत्सुकता लिए ये बच्चे ‘बीर’ गांव में सबसे पहले तालाब के रास्ते से चलते हुए गांव के प्राइमरी एवं मीडिल स्कूल में पहुँचे. हालाँकि रविवार की छुट्टी होने की वजह से स्कूल की कक्षाएं बंद थीं लेकिन फिर भी सभी बच्चों ने जिज्ञासावश स्कूल परिसर में दाखिल होकर यह देखना चाहा कि आखिर गांव का सरकारी स्कूल दिखता कैसा है…! वहां से बच्चों को साथ लिए फाउंडेशन की टीम गांव के मुखिया के घर पहुंची. उसी क्रम में कुछ बच्चों ने जानना चाहा कि मुखिया किसे कहते हैं…? तो किसी ने उनकी जिज्ञासा यह कहकर शांत की कि मुखिया गांव का हेड होता है. मुखिया विभा देवी जी घर में मौजूद नहीं थीं तो बच्चे जब उनके सास-ससुर से मिलें तो यह सवाल पूछ बैठें कि “आपलोग गांव के हेड हो तो आप पूरे गांव को कैसे सँभालते हो…?” इसपर मुखिया के ससुर जी ने वाजिब जवाब देकर बच्चों की जिज्ञासा शांत की. वे भी इस कार्यक्रम का उद्देश्य जानकर इतने खुश हुए कि संग-संग बच्चों की टोली के साथ बाहर गांव की सैर पर निकल पड़ें.

रास्ते में बच्चों ने गांव का पोस्ट ऑफिस देखा, घास चरती हुईं बकरियों को देखा, खेतों में किसानों को काम करते हुए देखा. और जब एक जगह चांपाकल देखा तो फिर चांपाकल चलाकर पानी पीने की बच्चों में होड़ सी लग गयी. गला तर करते ही तारीफ के शब्द भी निकलें कि “वाह, कितना मीठा पानी है.”

वहां से बच्चों का जत्था पहुँचा गांव में खुली संस्था ‘पहल’ के ऑफिस में जिसे डॉ. दिवाकर तेजस्वी एवं उनके कुछ दोस्तों ने शुरू किया है. बच्चों को ‘पहल’ के बारे में यह जानकारी दी गयी कि यहाँ गांव कि लड़कियों-महिलाओं को मुफ्त में कम्प्यूटर व सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें. फिर डॉ. साहब के नेतृत्व में स्कूली बच्चों ने वहीँ पास के खेत में चलकर खुद अपने हाथों पौधरोपण करने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का सन्देश दिया. 

अब बच्चों को भूख लगनी शुरू हो गयी थी. कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव में बोलो जिंदगी फाउंडेशन की टीम उन्हें लेकर पास के ही ओरियारा गांव पहुंची जहाँ के प्रसिद्ध महादेव मंदिर का दर्शन कराने के बाद वहीँ के धर्मंशाला परिसर में भोजन कराने की व्यवस्था शुरू हुई. शायद पहली बार जमीं पर एक साथ पंगत में बैठकर ये बच्चे यूँ खाना खाने बैठे थें. उन्हें पत्ते के पत्तल पर पूरी, सब्जी और खीर परोसकर खिलाया गया और मिट्टी के कुल्हड़ में पानी पिलाया गया. इस तरह से भोजन करने और मिट्टी के कुल्हर में पानी पीने का बहुत ही सुखद अनुभव महसूस किया बच्चों ने. बच्चों के खाने-पीने की व्यवस्था का सारा दारोमदार बोलो जिंदगी फाउंडेशन की टीम-कॉर्डिनेटर तबस्सुम अली का था. और सुबह से शाम तक की इस यात्रा में शामिल सारे बच्चों की देखरेख भी तबस्सुम के नेतृत्व में हुआ. 

वहीं फाउंडेशन के प्रोग्रामिंग हेड प्रीतम कुमार ने इस कार्यक्रम के सञ्चालन के साथ ही फोटोग्राफी का दायित्व भी उठा रखा था. शाम 5 बजे गाँव से सभी बच्चों को साथ लेकर फाउंडेशन की टीम पटना के लिए रवाना हुई. रास्ते में बच्चों की आपस में यही बातचीत चल रही थी कि घर पहुंचकर हम मम्मी-पापा को बताएँगे कि गांव में हमने क्या-क्या देखा और किस तरह से इंज्वाय किया. शाम के इस सफर को और सुहाना बनाने के लिए बोलो जिंदगी फाउंडेशन की तबस्सुम अली एवं प्रीतम कुमार ने बच्चों को दो ग्रुप में बांटकर अंत्याक्षरी की महफ़िल सजा दी. पटना पहुँचते हुए देर शाम हो चुकी थी लेकिन इन बच्चों के चेहरे पर थकान का ज़रा सा भी एहसास नहीं हो रहा था सिवाए उल्लास और आनंद के.
“आओ गाँव चलें” कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. बी. प्रियम, अनुजा श्रीवास्तव, पंकज कुमार, डॉ. दिवाकर तेजस्वी, राकेश सिंह ‘सोनू’, तबस्सुम अली, प्रीतम कुमार, नीरज कुमार, दीपक कुमार एवं सुबी फौजिया का विशेष योगदान रहा.



बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : सोशल वर्कर विवेक विश्वास की फैमली, राजीवनगर, आशियाना-दीघा रोड, पटना




शनिवार, 23 नवंबर की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के आशियाना-दीघा रोड, राजीवनगर  इलाके में सोशल वर्कर विवेक विश्वास के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में ट्राई  संस्था में कार्यरत बिहार-झाड़खंड की हेल्थ डायरेक्टर अमरूता सोनी भी शामिल हुईं. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों विवेक विश्वास की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.


फैमली परिचय- विवेक विश्वास राजीव नगर, दीघा-आशियाना रोड इलाके में रहते हैं जो एफएमसीजी में सेल्स ऑफिसर हैं. जॉब के दरम्यान ही राह में जो भी लावारिश व्यक्ति बीमार या घायल अवस्था में दिख जाये तो वे निस्वार्थ भाव से उसकी मदद करते हैं. चोट लगे पशु-पक्षियों की भी सेवा करते हैं. और इस काम के लिए विभिन्न संस्थाओं द्वारा विवेक सम्मानित भी हो चुके हैं. फैमिली में पापा श्री धर्मेंद्र कुमार हैं, भइया-भाभी हैं. भइया विकास कुमार रिटेल सेक्टर में हैं, अभी टाटा में स्टोर मैनेजर हैं. जॉब के अलावे इनके भइया विकास कुमार ब्लड डोनेशन के लिए पर्सनली काम करते हैं. खुद भी डोनेट करते हैं और उनके अंडर काम करनेवाले 150 लड़के हैं, जब भी जरूरत पड़े वे ब्लड डोनेशन को तैयार रहते हैं.  भाभी हॉउस वाईफ हैं. भइया की एक बेटी हुई है जो अभी 2 महीने की है. विवेक की हाल ही में सुमन कुमारी से शादी हुई है. इनकी बहनों का घर भी आस-पास के इलाके में ही है. बड़ी बहनों का नाम है रूचि रंजन और मनीषा. 

सेवा की भावना कब से जगी - विवेक हमेशा ट्रेन से सफर करते रहे हैं, नानी घर गया में है तो पटना - गया बहुत आना-जाना हुआ. उनका अपना पुस्तैनी घर हुआ लखीसराय में तो ट्रेन से ही आते-जाते थें. बचपन से ही जब किसी को देखते थें कि वो भूखा है, लावारिस सा गिरा पड़ा है, सिसक रहा है, उसको कोई देखनेवाला नहीं है तो वहीँ से भावना जगी कि अगर बड़ा हुए तो इनके लिए कुछ करेंगे. जब आठवीं कक्षा में थें तो एक पोस्टर पर स्लोगन देखें विवेकानद जी का कि "मैं उस प्रभु की सेवा करता हूँ जिसे ज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं." वो पंक्तियाँ बहुत गहरे से विवेक के जेहन में समा गयीं. जैसे-जैसे बड़े होते गएँ अच्छे लोगों का भी साथ मिलता गया और लोगों की सेवा बदस्तूर जारी रही.

सोशल वर्क की शुरुआत कैसे हुई - शिवपुरी में पहले विवेक जी का ब्वॉयस हॉस्टल चलता था, तब रोजाना 50-60 रोटियां बच जाने पर फेंकनी पड़ जाती थी. एक तो दिमाग में था कि बाहर कुछ लोग भूखे हैं और दूसरी ये कि इधर रोटियां नाली में डाली जा रही हैं. तो उन बची हुई रोटियों के इस्तेमाल के लिए विवेक ने एक आइडिया निकाला. तब  दो-ढ़ाई किलो आलू का भुजिया बनवाते थें और सबका चार-चार का बंडल बनाकर बाहर ले जाकर भूखों को बाँट देते थें. यह लगातार दो-तीन साल चला. लेकिन बॉयस हॉस्टल बंद होने के बाद ये काम बीच में बंद हो गया. उस दरम्यान रोटी का बंडल बनाकर जब बांटते थें तब देखते कि कोई बीमार है, चोट से कराह रहा है तो वैसे लोगों को पीएमसीएच में ले जाकर इलाज करा देते थें. तो निःसहायों की सेवा की आदत उसी समय से लगनी शुरू हो गयी. और तब से लेकर आजतक वो सिलसिला जारी है. विवेक ऐसे असहाय-लावारिस लोगों का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने लगें और लोगों से अपील करने लगें कि आप भी अपने आस-पास के ऐसे लोगों की मदद करें. अब इन्हें सामने से कॉल भी आते हैं कि कोई यहाँ बीमार है, कोई इंसान लावारिस हालत में पड़ा हुआ है, उसे देखनेवाला कोई नहीं है तो फिर विवेक वहां पहुँचते हैं, सरकारी एम्बुलेंस जो फ्री है को बुलाते हैं, सरकारी डॉक्टर जो फ्री में इलाज करने के लिए तैयार हैं, ऐसे लोगों के लिए सरकारी हॉस्पिटल पीएमसीएच में लावारिश वार्ड है जहाँ सारी दवाएं मुफ्त में मुहैया हो जाती हैं. लेकिन बहुत से लोग जो इनकी मदद करना चाहते हैं उनको जानकारी का आभाव रहता है तो उनको कैसे जागरूक किया जाये, उसके लिए ही ये ऐसे लोगों का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया के माध्यम से अवेयरनेस फैलाते हैं. विवेक की रिक्वेस्ट पर अच्छे समाजसेवक लोग अब खुद से आगे आने लगे हैं. अभी तक इन कामों के लिए चाहे वो कोई आम व्यक्ति हो या प्रशासनिक अधिकारी कभी किसी ने मना नहीं किया. रिस्पॉन्स अच्छा मिलता है. इससे एक फायदा ये भी होता है कि ऐसे कुछ विक्षिप्त लोग जो लावारिस हालत में अपने घर-परिवार से दूर हो गए हैं, सोशल मीडिया के माध्यम से जब उनके घरवालों को उनका पता चलता है तो वे उन्हें लेने भी आते हैं.


बेजुबां जानवरों के भी मसीहा - जब विवेक जी को पता चलता है या कोई कॉल कर के बताता है कि यहाँ एक गाय या कुत्ता बीमार पड़ा है, लहूलुहान है, दर्द से कराह रहा है तो विवेक वहां भी जानवरों की सेवा करने पहुँच जाते हैं. विवेक अबतक 15-20 जानवरों को हॉस्पिटल में एडमिट करा चुके हैं. ऐसे में उनके मित्र जो वेटनरी डॉक्टर हैं बंटी जी उनका बहुत सहयोग मिलता है. उन्हें कभी भी बुलाएँ वे हाजिर हो जाते हैं, रात के 10-11 बजे भी अगर कॉल चला जाये तो वे आ जाते हैं और निशुल्क सेवा देते हैं.

फैमिली की रोकटोक - फैमिली की रोकटोक चलती रहती है, इसलिए उनसे छुप-छुपाकर ये काम करना पड़ता है. भइया को विवेक के काम से नफरत नहीं है बल्कि उन्हें हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं वे किसी लफड़े में ना फंस जाएँ. अच्छा करने के चक्कर में कहीं अपनी जिंदगी जोखिम में न डाल दें. कई लावारिस इंसान, जानवरों के शरीर से इतनी बदबू आती है, मख्खियां भिनभिनाती हैं, जहाँ लोग नाक बंद करके निकल लेते हैं, कोई उनके पास नहीं जाना चाहता. ऐसे में जब विवेक उनकी देखभाल करते हैं   तो उनके परिवार को भी ये भय लगा रहता है कि कहीं वे  भी किसी महामारी के चपेट में ना आ जाएँ. बड़ी बहनों ने बताया कि "वैसे विवेक काम तो बहुत अच्छा कर रहा है लेकिन बचपन से ही मानव सेवा का इसको इतना क्रेज है कि अगर इसे कोई घर का काम करने सौंपा जाये तो वे बीच रास्ते में असहाय लोगों को देखकर जिस काम से जा रहा है उसे भूलकर लोगों की सहायता में लग जाता है. इसलिए कभी-कभी उसे घर का ज़रूरी काम सौंपते हुए सबको हिचक भी होती है." विवेक के घरवाले इस बात पर भी नाराज रहते हैं कि रोजाना टिफिन ले जाने के बावजूद ये खुद ना खाकर किसी ना किसी को खिला देते हैं और जब रात में घर आते हैं तो पता चलता है कि ज्यादा देर भूखे रहने की वजह से एसिडिटी की प्रॉब्लम हो गयी. इस बाबत विवेक कहते हैं कि "मेरे पास खाना है और हम किसी भूखे को देखकर नज़र फेरकर चले जाएँ यह दिल इजाजत नहीं देता. और यही वजह है कि मेरी पत्नी भी मेरे से नाराज़ होती है कि लोगों की सेवा करते हुए खुद को बीमार क्यों कर लेते हैं. और यह काम हम अपना जॉब छोड़कर नहीं करतें बल्कि मेरा मार्केटिंग का काम है, दिनभर रोड पर ही आना-जाना लगा रहता है तो राह चलते अगर हम लावारिस लोगों के कुछ काम आ भी गएँ तो उससे मुझे क्या हानि होगी ?"

स्पेशल गेस्ट की टिप्पणी - इस कार्यक्रम में बतौर स्पेशल गेस्ट के रूप में उपस्थित ट्राई की हेल्थ डायरेक्टर अमरूता सोनी ने बोलो ज़िंदगी टीम के साथ विवेक जी की कहानी से रूबरू होने पर विवेक जी की तारीफ करते हुए कहा कि "एक लावारिस का दर्द क्या होता है वह मैंने बहुत करीब से देखा है इसलिए मैं समझ सकती हूँ कि ऐसे रह चलते लावारिसों की सेवा तो दूर लोग जल्दी उनके आस-पास भी नहीं फटकते हैं. ऐसे में विवेक जी निस्वार्थ भाव से इनकी मदद को तैयार रहते हैं तो यह बहुत बड़ी बात है. इंसान ही नहीं बीमार और लाचार जानवरों के दर्द को देखकर भी विवेक जी का दिल धड़कता है तो इससे ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये कितने नेकदिल इंसान होंगे. मैं यही कहना चाहूंगी कि यह काम आप आगे भी जारी रखिये चाहे कितनी ही परेशानियाँ क्यों न आएं, क्यूंकि एक तो दूसरे लोग भी जागरूक होंगे और ऐसे असहायों की सेवा से ईश्वर की भी दुआ मिलती है."
(इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है.)

Tuesday, 26 November 2019

पत्रकार जयकांत चौधरी की पिटाई मामले में एडीजी ने दिया कार्रवाई का आश्वासन


पटना, 26 नवम्बर, पत्रकार जयकांत चौधरी की पाटलिपुत्र थाने में पुलिसकर्मियों द्वारा की गयी पिटाई की बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन घोर निंदा करता है। जयकांत को पीटने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग को लेकर मंगलवार को यूनियन का एक प्रतिनिध मंडल महासचिव प्रेम कुमार के नेतृत्व में डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे से मिलने पहुंचा। डीजीपी के नहीं रहने के कारण एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) अमित कुमार से मिला। एडीजी ने तुरंत इसपर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया। यूनियन के महासचिव प्रेम कुमार ने घटना में शामिल पुलिसकर्मियों पर 24 घंटे के अंदर कार्रवाई करने की मांग की है। प्रतिनिधि मंडल में विशाल चौहान, रामजी प्रसाद, राजीव कमल, चंद्र मोहन पांडे, रवि रंजन, शरद प्रकाश झा, पारसनाथ, नीरज कुमार कर्मशील, बालकृष्ण कुमार, निखिल कुमार वर्मा, नवनीत कुमार, मदन कुमार,अक्षय आनंद, अविनव रंजन, मनन गोस्वामी, इंद्रमोहन पांडे, असलम अब्बास, समीम, सुजीत कुमार गुप्ता, जयकांत की पत्नी रीना चौधरी सहित अन्य पत्रकार शामिल थे।

Monday, 25 November 2019

"आओ गांव चलें" कार्यक्रम के तहत शहरी बच्चे पहली बार गयें गांव घूमने


(स्टोरी - राकेश सिंह 'सोनू', रिपोर्टिंग - प्रीतम कुमार) पटना, 24 नवम्बर, रविवार, "शिक्षा दे शक्ति,बाल-मजदूरी से मुक्ति...", "चलो अब शुरुआत करें, बाल-विवाह का नाश करें...", "ऐसा कोई काम नहीं जो बेटियाँ ना कर पायी हैं, बेटियाँ तो आसमान से तारे तोड़ लायी हैं...", "दहेज हटाओ, बहु नहीं बेटी बुलाओ...", "पर्यावरण का रखें ध्यान, तभी देश बनेगा महान..."  अपने-अपने हाथों में जागरूकता हेतु ये स्लोगन की तख्तियां लेकर जब लगभग 40 की संख्या में शहर से आये बच्चे स्कूली बस से उतरें तो यह देखकर 'बीर' गांव के निवासी भी दंग रह गयें. यह नजारा था कार्यक्रम "आओ गाँव चलें" का जिसका आयोजन बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन ने किया था. जिसके तहत स्कॉलर्स एबोड स्कूल के वैसे बच्चों को धनरुआ प्रखंड के बीर-ओरियारा गाँव भ्रमण पर ले जाया गया जो आज़तक कभी गाँव नहीं गए थें, जिन्होंने रियल लाइफ में गाँव होता कैसा है देखा ही नहीं था. जिन्होंने इससे पहले गाँव को सिर्फ किताबों में पढ़ा और फ़िल्म-टीवी में देखा था. इस कार्यक्रम का उद्देश्य था शहरी कल्चर में पले-बढ़े बच्चों को ग्रामीण संस्कृति से रूबरू कराने के साथ ही उन्हें किताबों से इतर व्यवहारिक शिक्षा भी देना.

गाँव जा रहे बच्चों के स्कूली बस को रविवार की सुबह हरी झंडी देकर रवाना किया पटना के जानेमाने चिकित्सक डॉ. दिवाकर तेजस्वी, स्कॉलर्स एबोड की प्राचार्या डॉ. बी. प्रियम एवं बोलो ज़िन्दगी के निदेशक राकेश सिंह 'सोनू' ने. ये सभी अतिथि स्कूली बच्चों के साथ खुद भी गाँव भ्रमण पर गयें.
    हरी झंडी देने के पहले इस अवसर पर बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन के डायरेक्टर राकेश सिंह 'सोनू' ने कहा कि "कभी पटना में वैसे एक-दो बच्चों से मुलाक़ात हुई थी जो कभी गांव ही नहीं गए थें, तब वहीं से आइडिया आया कि ऐसे बहुत से बच्चे शहर में होंगे तो क्यों नहीं उन्हें ले जाकर ग्रामीण संस्कृति से रु-ब-रु कराया जाए...कि जो अनाज हम खाते हैं उसकी फ़सल गांव के किसान कैसे उपजाते हैं, उन्हें खेत-खलिहान भी दिखाया जाए, डायनिंग टेबल पर खानेवाले बच्चों को गांव में दरी पर बैठाकर पत्तल में खिलाया जाए, मिट्टी के चुक्के में पानी पिलाया जाए. मतलब उन्हें भी गाँव की संस्कृति से जोड़ा जाए."
     वहीं स्कॉलर्स एबोड की प्राचार्या डॉ. बी. प्रियम ने कहा " सच में इस यात्रा से हमारे बच्चे कुछ-ना-कुछ अच्छा सीखकर ही अपने घर लौटेंगे यह हमें विश्वास है. और तमाम अभिभावकों से हम यही अपील करना चाहेंगे कि वो अपने बच्चों को कभी-कभी गाँव ज़रूर घुमाएं जिससे उनका अनुभव बेहतर होगा."
    वहीं डॉ. दिवाकर तेजस्वी ने कहा कि "यह स्कूली बच्चे जिस गाँव (बीर) में जा रहे हैं वो मेरा खुद का गांव है. 'बीर' गाँव में बच्चे किसानों और गाँव के मुखिया से मिलेंगे, खेत-खलिहान और फसलों को देखेंगे, गांव के  सरकारी स्कूल, मंदिर, तालाब का भी भ्रमण करेंगे. खुद से पौधरोपण कर पर्यावरण संरक्षण का सन्देश भी देंगे. कभी गाँव नहीं गए बच्चों के लिए यह नया अनुभव होगा."
     .पहली बार गांव देखने की उत्सुकता लिए ये बच्चे 'बीर' गांव में सबसे पहले तालाब के रास्ते से चलते हुए गांव के प्राइमरी एवं मीडिल स्कूल में पहुँचे. हालाँकि रविवार की छुट्टी होने की वजह से स्कूल की कक्षाएं बंद थीं लेकिन फिर भी सभी बच्चों ने जिज्ञासावश स्कूल परिसर में दाखिल होकर यह देखना चाहा कि आखिर गांव का सरकारी स्कूल दिखता कैसा है...! वहां से बच्चों को साथ लिए फाउंडेशन की टीम गांव के मुखिया के घर पहुंची. उसी क्रम में कुछ बच्चों ने जानना चाहा कि मुखिया किसे कहते हैं...? तो किसी ने उनकी जिज्ञासा यह कहकर शांत की कि मुखिया गांव का हेड होता है. मुखिया विभा देवी जी घर में मौजूद नहीं थीं तो बच्चे जब उनके सास-ससुर से मिलें तो यह सवाल पूछ बैठें कि "आपलोग गांव के हेड हो तो आप पूरे गांव को कैसे सँभालते हो...?" इसपर मुखिया के ससुर जी ने वाजिब जवाब देकर बच्चों की जिज्ञासा शांत की. वे भी इस कार्यक्रम का उद्देश्य जानकर इतने खुश हुए कि संग-संग बच्चों की टोली के साथ बाहर गांव की सैर पर निकल पड़ें. रास्ते में बच्चों ने गांव का पोस्ट ऑफिस देखा, घास चरती हुईं बकरियों को देखा, खेतों में किसानों को काम करते हुए देखा. और जब एक जगह चांपाकल देखा तो फिर चांपाकल चलाकर पानी पीने की बच्चों में होड़ सी लग गयी. गला तर करते ही तारीफ के शब्द भी निकलें कि "वाह, कितना मीठा पानी है." वहां से बच्चों का जत्था पहुँचा गांव में खुली संस्था 'पहल' के ऑफिस में जिसे डॉ. दिवाकर तेजस्वी एवं उनके कुछ दोस्तों ने शुरू किया है. बच्चों को 'पहल' के बारे में यह जानकारी दी गयी कि यहाँ गांव कि लड़कियों-महिलाओं को मुफ्त में कम्प्यूटर व सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें. फिर डॉ. साहब के नेतृत्व में स्कूली बच्चों ने वहीँ पास के खेत में चलकर खुद अपने हाथों पौधरोपण करने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का सन्देश दिया.
  अब बच्चों को भूख लगनी शुरू हो गयी थी. कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव में बोलो जिंदगी फाउंडेशन की टीम उन्हें लेकर पास के ही ओरियारा गांव पहुंची जहाँ के प्रसिद्ध महादेव मंदिर का दर्शन कराने के बाद वहीँ के धर्मंशाला परिसर में भोजन कराने की व्यवस्था शुरू हुई. शायद पहली बार जमीं पर एक साथ पंगत में बैठकर ये बच्चे यूँ खाना खाने बैठे थें. उन्हें पत्ते के पत्तल पर पूरी, सब्जी और खीर परोसकर खिलाया गया और मिट्टी के कुल्हड़ में पानी पिलाया गया. इस तरह से भोजन करने और मिट्टी के कुल्हर में पानी पीने का बहुत ही सुखद अनुभव महसूस किया बच्चों ने. बच्चों के खाने-पीने की व्यवस्था का सारा दारोमदार बोलो जिंदगी फाउंडेशन की टीम-कॉर्डिनेटर तबस्सुम अली का था. और सुबह से शाम तक की इस यात्रा में शामिल सारे बच्चों की देखरेख भी तबस्सुम के नेतृत्व में हुआ.
      वहीं फाउंडेशन के प्रोग्रामिंग हेड प्रीतम कुमार ने इस कार्यक्रम के सञ्चालन के साथ ही फोटोग्राफी का दायित्व भी उठा रखा था. शाम 5 बजे गाँव से सभी बच्चों को साथ लेकर फाउंडेशन की टीम पटना के लिए रवाना हुई. रास्ते में बच्चों की आपस में यही बातचीत चल रही थी कि घर पहुंचकर हम मम्मी-पापा को बताएँगे कि गांव में हमने क्या-क्या देखा और किस तरह से इंज्वाय किया. शाम के इस सफर को और सुहाना बनाने के लिए बोलो जिंदगी फाउंडेशन की तबस्सुम अली एवं प्रीतम कुमार ने बच्चों को दो ग्रुप में बांटकर अंत्याक्षरी की महफ़िल सजा दी. पटना पहुँचते हुए देर शाम हो चुकी थी लेकिन इन बच्चों के चेहरे पर थकान का ज़रा सा भी एहसास नहीं हो रहा था सिवाए उल्लास और आनंद के.
     "आओ गाँव चलें" कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. बी. प्रियम, अनुजा श्रीवास्तव, पंकज कुमार, डॉ. दिवाकर तेजस्वी, राकेश सिंह 'सोनू', तबस्सुम अली, प्रीतम कुमार, नीरज कुमार, दीपक कुमार एवं सुबी फौजिया का विशेष योगदान रहा.

Friday, 15 November 2019

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : फ्लूट आर्टिस्ट बीएमपी जवान विष्णु थापा की फैमली, अनीसाबाद , पटना



शुक्रवार,15 नवंबर को 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के अनीसाबाद इलाके में फ्लूट आर्टिस्ट विष्णु थापा के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में एक्टर एवं डांस टीचर विकास मेहरा भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों विष्णु थापा की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

फैमली परिचय- विष्णु थापा बिहार पुलिस के अंतर्गत आर्मर के रूप में बी.एम.पी.1 गोरखा बटालियन में तैनात हैं जिनका काम है हथियारों की जाँच-परख करना. ये अगस्त 2002 में बहाल हुए थें. सिलीगुड़ी से बिलॉन्ग करते हैं. इनका एक घर नेपाल के जनकपुर में भी है. चूँकि इनका परिवार बिहार में है तो वहां बहुत कम आना-जाना होता है. इनके पिताजी का स्वर्गवास हुए तीन साल हो गए हैं. इनकी माँ दीदी के पास जनकपुर में रहती हैं. विष्णु जी दो भाई दो बहन हैं. बहनों की शादी हो चुकी है. इनके भइया कविराज आर्मी में हैं, दानापुर में पोस्टेड हैं. विष्णु जी ने बहुत कम उम्र में ही लव मैरेज कर ली थी. इनका ससुराल पटना,बिहार में ही है. इनकी पत्नी बसंती देवी का जन्म एवं परवरिश यहीं पटना में हुई है. इसलिए वो इनसे ज्यादा अच्छी भोजपुरी बोल लेती हैं. विष्णु जी का बड़ा बेटा तिलक कुमार थापा संत कैरेंस में 12 वीं का स्टूडेंट है तो छोटा बेटा रोहित थापा एस.राजा स्कूल में 8 वीं क्लास में है.

https://www.youtube.com/watch?v=G6NN91EV3PE&t=8s

संगीत से जुड़ाव - म्यूजिक में बचपन से शौक था. 15 साल से बांसुरी वादन कर रहे हैं. इनके गुरु जी हैं बजेन्द्र सिंह जी जो पंजाब से बिलॉन्ग करते हैं और बहुत बड़े फ्लूट आर्टिस्ट हैं. ये ऑनलाइन उनको ही फॉलो करते हुए सीखते हैं. शुरुआत में बीएमपी के ही सुखबीर भइया से बेसिक सीखा था. पहले जब बचपन में बहुत सारा सॉन्ग सुनते थें तो उसमे बांसुरी की धुन बहुत ज्यादा पसंद आती थी. कृष्ण भगवान के भजन भी बहुत सुना करते थें तो फिर बांसुरी वादन के प्रति आकर्षित हुए. फिर पहले खुद से ही सीखने लगें. विष्णु जी बताते हैं- बांसुरी वादन को शास्त्रीय संगीत में ही लिया जाता है. जब आप राग वगैरह सारी चीजें सीख लेते हैं तो उन्ही रागों के आधार पर आप खुद भी स्वरों की रचना कर सकते हैं.

स्ट्रगल- मैट्रिक तक की पढ़ाई सिलीगुड़ी में हुई फिर पुलिस सेवा में आ गएँ और पहली पोस्टिंग बिहार में हुई. विष्णु जी के परिवार में इससे पहले किसी का सरकारी जॉब नहीं था. इनका पहले प्रयास में ही जॉब हो गया. पुलिस का जॉब ही क्यों...? यह पूछने पर थापा जी बताते हैं, "क्यूंकि मेरा शौक था कि देश के लिए कुछ करें.चाहे संगीत के माध्यम से या सरकारी सेवा के माध्यम से देश का नाम रौशन करूँ." ये मीडिल क्लास फैमली से हैं तो जानते हैं कि ऐसे में जॉब कितना मायने रखता है. परिस्थितियां इनको सरकारी सेवा में ले आयी. पुलिस जॉब और म्यूजिक दोनों अलग-अलग क्षेत्र है फिर भी विष्णु जी बैलेंस कर लेते हैं.

अब तक कला का प्रदर्शन - बिहार के बहुत से सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसे सोनपुर महोत्सव, राजगीर महोत्सव, पाटलिपुत्र महोत्सव, और पुलिस विभाग के जितने भी कार्यक्रम हैं उसमे अवसर मिलता रहा है. दूरदर्शन अदि के कई कार्यक्रमों में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं.

समझते हैं संयुक्त परिवार का महत्व - कभी कभी फेस्टिवल और बच्चों की स्कूली छुटियों के समय जब विष्णु जी की पूरी फॅमिली पटना इनके घर पर इकट्ठी होती है. बहन और बहनोई भी यहाँ आ जाते हैं तो सभी को एक भरे-पूरे परिवार में इंज्वाय करते हुए बहुत अच्छा लगता है. फिर थापा जी ने बोलो जिंदगी टीम से अपने बीवी-बच्चों और सिलीगुड़ी से आयी हुई अपनी बहन, जीजा और ससुर जी से मिलवाया. अपने भइया से भी मिलवाया. जब बोलो जिंदगी टीम की तबस्सुम ने पूछा- "आप अरसे से बिहार में हैं, ससुराल भी यहीं है तो अब आप खुद को नेपाली कहलाना पसंद करते हैं या बिहारी..?" थापा जी का सॉलिड जवाब आया - "मैं खुद को हिंदुस्तानी कहलाना पसंद करता हूँ क्यूंकि हिंदुस्तानी देश के किसी कोने में भी रह सकते हैं."


जब मजाक में ही तबस्सुम ने पूछा- "संगीतकार लोग तो बहुत सॉफ्ट दिल के होते हैं, ऐसे में जब आपको क्रिमनल मिल जाते होंगे तो आप कहाँ उन्हें पकड़ते होंगे ? आप तो उसको बांसुरी सुनाकर छोड़ देते होंगे." सभी हंस पड़ें. थापा जी हंसकर बोले - "ऐसा नहीं है, हमलोग शपथ लिए होते हैं.... भले ही हम गाने-बजाने का शौक रखते हैं लेकिन जब देश सेवा की बात आती है तो हम पीछे नहीं हटते." 


लाइव परफॉर्मेंस -  फिर बोलो जिंदगी टीम के सामने जब थापा जी ने बांसुरी वादन शुरू किया तो बोलो जिंदगी के निदेशक राकेश सिंह सोनू ने उनसे एक विशेष फरमाईस की कि " पहले आप मेरी पसंद का एक सॉन्ग हाफ गर्लफ्रेंड फिल्म से 'मैं फिर भी तुमो चाहूंगा....' की धुन बजाकर सुनाएँ क्यूंकि आपके माध्यम से यह सॉन्ग मैं अपनी प्रेमिका को डेडिकेट करना चाहता हूँ."  और फिर.... सच में उनकी बांसुरी की धुन सुनकर सभी भावुक हो गएँ. कुछ और अपनी पसंदीदा गीतों पर थापा जी ने बांसुरी की धुन सुनाई जो एकदम रूह को छूकर निकल रही थी.


स्पेशल गेस्ट की टिप्पणी - इस कार्यक्रम में बतौर स्पेशल गेस्ट के रूप में उपस्थित एक्टर एवं डांस टीचर विकास मेहरा जी ने बोलो ज़िंदगी टीम के साथ विष्णु जी का टैलेंट देखकर उनकी खुलकर तारीफ करते हुए कहा कि "पारिवारिक जिम्मेदारियों तले दबे होने के बावजूद भी ये दोनों क्षेत्रों के साथ न्याय कर रहे हैं. अपनी कला को कभी मरने नहीं दिए ये बहुत बड़ी बात है. और आज भी संयुक्त परिवार से जुड़े हुए हैं और उसका महत्त्व समझते हैं."

(इस पूरे कार्यक्रम को बोलोजिन्दगी डॉट कॉम पर भी देखा जा सकता है.)























Saturday, 9 November 2019

पटना के उमंग बाल विकास केंद्र दीघा के दिव्यांग बच्चों के बीच कराई गयी पेंटिंग एवं निबंध प्रतियोगिता



दिनांक 9.11.19, उमंग बाल विकास केंद्र दीघा में पटना मारवाड़ी महिला समिति रोटरी चाणक्य और राधा रानी ग्रुप द्वारा दिब्यांग बच्चों के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।


रोटरी क्लब के अध्य्क्ष डॉ श्रवण कुमार ने बताया कि उमंग आवासीय हैंडीकैप्ड सेन्टर में करीब 150 बच्चे रहते हैं जिनके मनोबल को बढ़ाने और हौसला आफजाई करने के लिए कार्यक्रम किया गया। इसमे ज्यादातर बच्चे मूक और बघिर हैं।


पटना मारवाड़ी महिला समिति अध्यक्ष नीना मोटानी ने बताया कि दिव्यांग बच्चों के लिए पेंटिंग प्रतियोगिता और निबंध प्रतियोगिता का आयोजन अलग अलग ग्रुप के बच्चों के अनुसार किया गया।निबंध का विषय था-मेरे सपनों का भारत और मेरी भूमिका ।
पेंटिंग प्रतियोगिता का विषय था - पर्यावरण और तुलसी।                
उमंग के बच्चों को तुलसी की उपयोगिता के बारे में जानकारी दी गयी।
साथ ही तुलसी के शरीर पर प्रभाव , तुलसी हर घर में होना क्यों अनिवार्य है बच्चों को बताया गया। बच्चों को तुलसी खाने के लिए प्रेरित किया गया और आध्यात्मिक, आयुर्वेदिक, पर्यावरण  के दृष्टिकोण से उन्हें तुलसी के प्रति जागरूक किया गया।
रोटेरियन संदीप बंसल ने बताया कि हर
ग्रुप से 5 बच्चों को पुरस्कार दिया गया। 5 ग्रुप से कुल 25 बच्चों को पुरस्कृत
 किया गया।

श्रीमती केसरी अग्रवाल ने बताया कि बच्चों के बीच कम्बल, फल, मिठाई और बिस्कुट टॉफी का वितरण किया गया।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से उपस्थित थे - अनुराधा सर्राफ, अभिषेक अपूर्व, आलोक स्वरूप, रुचि बंसल, अंजनी बंका इत्यादि।


कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से सहयोग दिया - कृष्णा अग्रवाल, लीलावती अग्रवाल, उषा टिबरेवाल, रेखा अग्रवाल, कांता अग्रवाल, उर्मिला संथालीया, परमात्मा भगत ने ।

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अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में पटना में बाईक रैली Ride For Women's Safety का आयोजन किया गया

"जिस तरह से मनचले बाइक पर घूमते हुए राह चलती महिलाओं के गले से चैन छीनते हैं, उनकी बॉडी टच करते हैं तो ऐसे में यदि आज ये महिला...