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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Sunday, 28 April 2019

फैमली ऑफ़ द वीक : हास्य कवि विश्वनाथ वर्मा की फैमली, नॉर्थ श्रीकृष्णापुरी,पटना


28 अप्रैल, रविवार को 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार व तबस्सुम अली) पहुंची पटना के नॉर्थ श्रीकृष्णापुरी इलाके में लाफ्टर गुरु विश्वनाथ वर्मा की फैमली के घर. जहाँ हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में वरिष्ठ रंगकर्मी, लेखक एवं उद्घोषक डॉ. अशोक प्रियदर्शी भी शामिल हुयें.


स्पेशल गेस्ट के साथ 'बोलो ज़िन्दगी' की टीम 


इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों विश्वनाथ वर्मा की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.






फैमली परिचय- 82 वर्षीय विश्वनाथ वर्मा जी बिहार में ग्लैक्सो कम्पनी के हेड हुआ करते थें और मई 1995 में रिटायर्ड हुए. पत्नी गृहणी हैं मंजू वर्मा जिनके नाम को जोड़कर अब वर्मा जी मंजू पति विश्वनाथ वर्मा कहलाना पसंद करते हैं. इनके तीन बच्चे हैं. बड़ा बेटा प्राणनाथ प्राणु जो अमेरिका के फोर्ड कम्पनी में कार्यरत हैं. बहू अर्चना अम्बष्टा अमेरिका के ही स्कूल में टीचर हैं. बेटे के तीन बच्चे हैं. बेटी प्रीति सिन्हा भी अमेरिका के स्कूल में पढ़ाती हैं. विश्वनाथ जी के दामाद अलोक सिन्हा अमेरिका, आईटी सेक्टर में हैं और उनकी बेटियां यानि विश्वनाथ जी की नतिनी हैं श्रुति सिन्हा और अनिका सिन्हा. विश्वनाथ जी के दूसरे बेटे प्रीतम प्रीतू जो जापान में आईबीएम में हैं. इनका छोटा पोता अनिकेत जो जापान में पढ़ रहा है, जब वो 6 ठी क्लास में था उसी समय उसने एक इंटरनेशनल ऑनलाइन एक्जाम 'मैथाथालौन' दिया था, जिसमे उसे वर्ल्ड रैंक वन मिला.
इस कार्यक्रम को अमेरिका से वीडियो कॉलिंग के माध्यम से
देखती हुई विश्वनाथ जी की बेटी प्रीति सिन्हा की फैमली 
विश्वनाथ वर्मा जी के घर पर जब बोलो जिंदगी का यह कार्यक्रम चल रहा था तभी अमेरिका से उनकी बेटी प्रीति सिन्हा का कॉल आया और फिर अमेरिका से ही पूरे परिवार ने हमारे इस कार्यक्रम को वीडियो कॉलिंग के जरिये ऑनलाइन देखा. मौके पर विश्वनाथ जी के घर उनकी चचेरी बहन निनी वर्मा, भतीजा नवनीत कुमार , भतीजे की पत्नी अनुभूति जो खगड़िया के हाई स्कूल में म्यूजिक टीचर हैं, उनके दोनों बेटे आयुष व अनुभव जिसने जिमनास्टिक में कई अवार्ड जीते हैं, एक और बहू रीना भी मौजूद थीं.


कैसे बनें विश्वनाथ वर्मा जी हास्यसम्राट ?- रिटायरमेंट के बाद घर के सभी लोग बोलते थें कि इतना काम किया जीवन में कि परिवार के बीच समय बिताने की भी फुरसत नहीं मिली. इसलिए अब आप आराम कीजिये. तब विश्वनाथ जी ने कहा कि, आराम करेंगे तो चल बसेंगे. लेकिन सवाल उठा कि आराम नहीं करेंगे तो फिर क्या किया जाये..? और उसी समय इन्होने कहीं पढ़ा कि अगर आप हँसते हैं तो आप ईश्वर की प्राथना करते हैं. और अगर आप किसी दूसरे को हँसाते हैं तो ईश्वर आपको आशीर्वाद देता है, ईश्वर आपके लिए प्राथना करता है. ये बात विश्वनाथ जी के दिमाग में घुस गयी और उसके बाद इन्होने बस हास्य की बातें शुरू कर दीं.

शुरू-शुरू में लोगों ने टोका- शुरुआत में कई लोगों में आलोचना की कि अरे क्या बक-बक-बक करते हो. बहुत तरह की बातें सुनी. पत्नी ने भी कहा लगता है पागल हो गए हैं. लेकिन इन्होने अपना प्रयास नहीं छोड़ा. धीरे-धीरे हास्य के क्षेत्र में पहचान बनने लगी. एक आसु कवि की तरह अपनी प्रस्तुतियां देने लगें. एक दफा अपने बेटे-बेटी के पास जब ये अमेरिका प्रवास पर गए तो वहां की महफ़िल में उनकी हास्य प्रस्तुतियों ने ऐसा मन मोहा कि सभी इंडियंस इनके फैन हो गएँ. वहां सीनियर चैप्टर होता है सीनियर सिटीजनों का जहाँ इनका एक कार्यक्रम हुआ जो 3 घंटे का नॉनस्टॉप 300 लोगों के बीच ये हँसाते रहें. वहां से पहचान बनी. उसके बाद बड़े-बड़े कवि सम्मेलनों में इनका जाना और गोवा, मेघालय व बिहार के राज्यपाल जैसे बड़े नामों द्वारा सम्मानित होने का दौर शुरू हो गया. दैनिक जागरण बागवान क्लब के हास्य रत्न बनें. एशिया के सबसे बड़े गांव यू.पी. के गहमर में बुलाकर इनको विशेष तौर पर सम्मानित किया गया. हास्य कवितायेँ सुनाते -सुनाते 2017 में इन्हे लाफ्टर योगा टीचर की जिम्मेदारी भी दे दी गयी जिसका बखूबी इन्होने निर्वाह किया. श्री कृष्णापुरी पार्क में सैकड़ों लोगों को ये घंटो हँसाते रहें. इसका वीडियो किसी ने व्हाट्सअप पर डाल दिया. जो वायरल होते हुए वर्ल्ड लाफ्टर गुरु डॉ. मदन कटारिया के पास पहुँच गया और फिर उन्हें लाफ्टर यूनिवर्सिटी में ट्रेनिंग के लिए न्योता आया जहाँ जाने पर कई देशों से आये हास्य कवि चौंक गएँ कि 80 साल की उम्र का यह आदमी कितनी एनर्जी के साथ लोगों को हंसाता है...सभी जानना चाहते थें कि आखिर इनकी सेहत का राज क्या है..! 

विश्वनाथ जी को हास्य के क्षेत्र में मिला सम्मान - समन्वय श्री, हास्यरत्न, हास्यावतार, बिहार गौरव, हास्यरसावतार, पंडित गोवर गणेश स्मृति सम्मान.


निनी वर्मा ने भी दिखाया टैलेंट - मौके पर मौजूद विश्वनाथ वर्मा जी की चहेरी बहन निनी वर्मा जो हाजीपुर, बी.डी.पब्लिक स्कूल में प्राइमरी सेक्शन की टीचर हैं कुछ लोकगीत सुनाया. बचपन से ही विद्यापति जी के गीत गाने का शौक था. मिथिला का चर्चित लोकगीत और सास-बहू की नोकझोंक पर आधारित गीत सुनाया जिसकी सभी ने खूब सराहना की.

https://www.youtube.com/watch?v=ebODZ5nKk-I&t=6s

सन्देश: मौके पर बतौर स्पेशल गेस्ट डॉ. अशोक प्रियदर्शी ने अपने सन्देश में कहा कि - "मनुष्य की जिंदगी में सुख-दुःख दोनों बराबर रूप में रहता है. कुछ लोग दुःख को ही ढ़ोते रहते हैं और सुख को नहीं अपना पातें. ज़िन्दगी ईश्वर ने दी है कुछ काम करने के लिए और काम के साथ हंसी-मजाक का वातावरण बनाये रखने के लिए. आज की जो युवा पीढ़ी दुःख में डूबी हुई है फ्रस्टेट होकर जो सोचती है कि मैं कुछ कर नहीं सकता, क्यूंकि ये रास्ता बंद है, वो रास्ता बंद है. उसे उन्ही रास्तों में से ही अपना लक्ष्य ढूंढ निकालना होगा, क्यूंकि कोयले में से ही हीरा निकलता है. और हास्य कवि विश्वनाथ जी आज 80 प्लस में हैं और ये साबित कर चुके हैं कि वो आज भी 20-22 साल के युवा हैं. इसलिए जीवन ठहराव नहीं है, हमें हँसते हुए गुजरना है.



Saturday, 20 April 2019

फैमली ऑफ़ द वीक : चित्रकार शुभ्रा सिन्हा की फैमली, त्रिलोकनगर, अगमकुआं,पटना

20 अप्रैल, शनिवार को 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार तबस्सुम अली) पहुंची पटना के त्रिलोकनगर, अगमकुआं इलाके में चित्रकार शुभ्रा सिन्हा की फैमली के घर. जहाँ हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में बिहार के जानेमाने कार्टूनिस्ट पवन टून भी शामिल हुयें.





स्पेशल गेस्ट के साथ बोलो ज़िन्दगी की टीम 




इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों शुभ्रा की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.






शुभ्रा सिन्हा की फैमली 
फैमली परिचय- कुछ बोल-सुन नहीं पानेवाली आर्टिस्ट शुभ्रा ने अभी 12 वीं पास की है और ग्रेजुएशन आर्ट्स कॉलेज से करना चाहती है. जुलाई,2018 से वह शनिवार और रविवार को पटना के महाराजा कॉमर्शियल काम्प्लेक्स के पास ज्योत्स्ना आर्ट्स सेंटर में पेंटिंग और डांस क्लास करने जाती है. वहां डांस और पेंटिंग दोनों का ही एक एक हजार फ़ीस है लेकिन इसकी प्रतिभा को देखकर इंस्टीच्यूट की ऑनर मैडम ने शुभ्रा के लिए फ़ीस माफ़ कर दिया है.


शुभ्रा के पिता अंजनी कुमार इस्लामपुर के वित्तरहित कॉलेज में टीचिंग करते हैं. माँ बिन्दा सिन्हा हाउसवाइफ हैं. शुभ्रा की बड़ी बहन श्वेता सिन्हा ग्रेजुएशन कर जेनरल कम्पटीशन की तैयारी कर रही है. छोटा भाई आदित्य राज 12 वीं करके इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है.



कार्टूनिस्ट पवन टून के साथ शुभ्रा 
शुभ्रा का एचीवमेंट - 14  नंबर, 2015 , बाल दिवस की शाम पटना के बिहार बाल भवन किलकारी में जिन 18 प्रतिभावान बच्चों को ‘बाल श्री सम्मान’ से सम्मानित किया गया उनमे से एक थी शुभ्रा सिन्हा जिन्हे पेंटिंग के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए सराहा गया.






शुभ्रा की बनाई पेंटिंग्स 
पुस्तक मेला 2012 -2013 , बिहार दिवस 2013 , गाँधी संग्रहालय 2012 , राजगीर महोत्सव 2012 , इन प्रमुख जगहों पर शुभ्रा की एकल पेंटिंग प्रदर्शनियों ने धूम मचाई है. दर्जनों अवार्ड अपने नाम कर चुकी शुभ्रा की गिनती तब राष्ट्रीय स्तर पर होने लगी जब उसने दिसंबर 2013  में केंद्रीय जल बोर्ड द्वारा आयोजित पेंटिंग कम्पटीशन में तृतीय पुरस्कार जीता.  1 अक्टूबर 2015 ( सशक्त नारी सम्मान समारोह) पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल के स्टेज पर सम्मानित हो रही महिलाओं के बीच इस बच्ची को पुरस्कार पाते देख कितनो की आँखें चौंक पड़ी थीं. लेकिन कहते हैं ना कि प्रतिभा किसी उम्र की मोहताज़ नहीं होती.

शुभ्रा के पिता का सहयोग - शुभ्रा के शिक्षक पिता को वेतन थोड़ा बहुत ही मिल पाता है इस वजह से वे घर चलाने के लिए साइड से यूनिवर्सिटी, बोर्ड वैगेरह का कुछ काम कर लेते हैं. लेकिन इस आभाव के बावजूद भी अंजनी जी ने बचपन से लेकर अभी तक शुभ्रा के शौक को दबाने की कोशिश नहीं की और उसके लिए हमेशा पेंटिंग के लिए कागज, कलम और कलर की व्यवस्था करते रहें. तभी तो शुभ्रा की ओर देखकर मुस्कुराते हुए उनकी आँखों की चमक यह बयां करती है कि वो अपनी बच्ची की ख़ुशी के आगे अपनी समस्याओं को भी दरकिनार कर रहे हैं. शुभ्रा के पिता गर्व से कहते हैं - "हमारे पूरे खानदान में शुभ्रा जैसा कोई कलाकार पैदा नहीं हुआ."

मेमोरेबल मोमेंट - कुछ बोल-सुन नहीं पानेवाली शुभ्रा की लाजवाब बोलती हुई पेंटिंग को देखकर बोलो ज़िन्दगी की टीम भी हतप्रभ थी और वहीँ टीम के सदस्यों ने आज के स्पेशल गेस्ट कार्टूनिस्ट पवन जी से रिक्वेस्ट कि की शुभ्रा के इस आर्ट को एक सही प्लेटफॉर्म दिलाएं. पवन जी ने भी वादा किया कि वे शुभ्रा के लिए जरूर कुछ करेंगे. और इन सारी बातों को वहीँ पास में बैठी हुई शुभ्रा सभी के होठों के मूवमेंट को देखकर  समझ गयी और मुस्कुरा उठी.

कहानी शुभ्रा की - शुभ्रा की माँ श्रीमती बिन्दा सिन्हा बताती हैं कि जब शुभ्रा ढ़ाई साल की थी तभी एहसास हुआ कि जिधर आवाज आती है वो उधर देख नहीं पा रही. तब डॉक्टर को दिखाने पर पता चला कि बोलने-सुनने में दिक्कत है. फिर 7-8  साल की उम्र में जीभ का ऑपरेशन कराए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. स्पीच थेरेपी और ईयर मशीन की वजह से कुछ वर्ड बोल सुन पाती है लेकिन बहुत असुविधा होती है. पढ़कर भी वाक्य और शब्दों को ठीक से नहीं समझ पाती लेकिन ईशारों की भाषा आसानी से समझ लेती है. बहुत छोटी उम्र में ही अख़बार में कार्टून देखकर शुभ्रा खुद से बनाने लगी. बड़ी बहन को ड्राइंग क्लास में जो होमवर्क मिलता उसे शुभ्रा कम्प्लीट करती और दीदी से भी बहुत अच्छी पेंटिंग बनाने लगी. सन्डे-के-सन्डे मोहल्ले में संतोष मेकर जी एक प्रशिक्षण केंद्र चलाते थे जहाँ बड़ी बहन के कहने पर शुभ्रा को पेंटिंग सीखने भेजा जाने लगा. साथ में छोटा भाई भी जाता जो शुभ्रा और टीचर के बीच संवाद स्थापित कराता था . (शुभ्रा की पूरी कहानी bolozindagi.com के कॉलम 'तारे जमीं पर' में पढ़ सकते हैं.)



सन्देश: मौके पर कार्टूनिस्ट पवन टून ने शुभ्रा की कलाकारी को सराहते हुए कहा कि "इतनी कम उम्र में इतना शानदार काम देखकर मैं खुद चकित हूँ. अभी चुनाव को लेकर व्यस्तता है लेकिन चुनाव बाद हम कोशिश करेंगे कि शुभ्रा के आर्ट को सिर्फ पटना में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पहचान मिले और लोग इसके लिए आगे आएं. सुनना और बोलना ये अलग बात है लेकिन शुभ्रा की सोच का लेवल बहुत हाई है जो इसकी पेंटिंग में झलकता है. ग्रेजुएट स्तर के कलाकारों के बनिस्पत शुभ्रा का काम मुझे बहुत उम्दा लगा. और मैं शुरू से ही इस तरह की प्रतिभा को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी लेता रहा हूँ तो अब मेरा फ़र्ज़ बनता है कि शुभ्रा के उज्जवल भविष्य के लिए कुछ बढ़िया प्लान करूँ." 




Tuesday, 16 April 2019

'एक जुदा सा लड़का' के माध्यम से उपन्यासकार ने भटकते युवा मन को रोकने की कोशिश की है

पुस्तक समीक्षा 

कृति: एक जुदा सा लड़का (लघु उपन्यास)
कृतिकार: राकेश सिंह ‘सोनू’
प्रकाशकः जानकी प्रकाशन,
अशोक राजपथ, चैहट्टा
पटना-800004
पृष्ठः 96 मूल्यः 125/-
समीक्षकः मुकेश कुमार सिन्हा

हम-आप प्रायः अखबारों को पढ़ते हैं। सरसरी तौर पर खबरों को पढ़कर अखबार को एक किनारे फेंक देते हैं। नकारात्मक खबरों को पढ़कर माथे पर सिकन तक महसूस नहीं करते। बेफिक्री से अखबार फेंककर हम निश्चिंत भाव से अपने कार्यों में जुट जाते हैं, मानों सब कुछ ठीक-ठाक हो! लेकिन, कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपनी संजीदगी का परिचय देते हैं। खबर पर रोते हैं, मायूस होते हैं, अफसोस जताते हैं। विचार लिखते हैं और प्रतिकार करते हैं।
राकेश सिंह ‘सोनू’ एक ऐसा ही नाम है, जो अखबार के संजीदा पाठक रहे हैं। नकारात्मक खबरों ने इन्हें उद्वेलित किया, सोचने को विवश किया। उद्वेलित मन ने ऐसे भावों को लिखने को बाध्य किया, फिर ऐसे भाव कागज पर उतरते चले गये। फिर, एक दिन ऐसा भी आया कि पन्ने-पन्ने को जोड़-जोड़कर एक उपन्यास की आधारशिला रख दी गयी। ‘एक जुदा सा लड़का’ के सृजन की यही कहानी है।

बकौल सोनू, ‘इस लघु उपन्यास की कल्पना कभी मैंने अपने काॅलेज के शुरुआती दिनों में की थी, जब सुबह का अखबार पढ़ने के क्रम में रोजाना महिलाओं एवं बच्चों के साथ छेड़खानी और बलात्कार की दिल दहला देने वाली खबरें पढ़कर मन घृणा और क्षोभ से भर उठता था। तब मैं ठीक उपन्यास के नायक राज की तरह ही देवी दुर्गा से मन ही मन ये आराधना करता था कि वे मेरे अंदर ऐसी दिव्य शक्ति दे दें, ताकि मैं अपने समाज में पीड़ित हो रही महिलाओं की आबरू बचा सकूँ।

उपन्यास का नायक ‘राज’ है। ‘राज’ एक साधारण लड़का है, लेकिन दैवीय शक्ति मिल जाने के बाद वह असाधारण हो जाता है। फिर, वह लेता है संकल्प समाज को सुधारने का, समाज को नई दिशा देने का। राज नवजवान है और वह भी अखबार में खबरें पढ़ता है, लेकिन अखबारों में खबरें पढ़कर वह शांत नहीं रहता, बल्कि मंथन करता है, मनन करता है। फिर, खुद के स्तर से कोशिश भी करता है समाज को सुधारने का। उसे माँ का आशीर्वाद मिला है, तो उसे कामयाबी भी हासिल होती है।
लघु उपन्यास में उपन्यासकार ने नई पीढ़ी को सीख और सलाह देने की कोशिश की है। साहित्य तो समाज का आईना होता है। साहित्यकार तो समाज को नई दिशा देते हैं। ऐसे में, राकेश सिंह ‘सोनू’ का यह प्रयास सफल है, बशर्ते नई पीढ़ी बस संदेश को दिल में उतार लें।

राज-कंचन के बीच संवाद के क्रम में राज ने कहा-जो लोग यह समझते हैं कि प्यार गहरा होने के लिए तन-मन का मिलना जरूरी है, वे कोई प्रेमी नहीं होते, बल्कि शारीरिक सुख पाने के लिए प्यार का नाटक करते हैं, क्यूँकि सच्चा प्यार अंग की खूबसूरती नहीं, मन की खूबसूरती पर टिका होता है। युवा कहानीकार की यह सीख है पाठकों को।

बिल्कुल प्यार का संबंध देह से कतई नहीं है, किंतु पश्चिमी सभ्यता ने युवाओं के पाँव को इस कदर भटका दिया है कि उनके लिए प्यार का मतलब केवल शरीर का भोग है। प्यार के नाम पर तरह-तरह के किस्से सुनने को मिलते हैं। दरअसल, अब प्यार होता कहाँ? प्यार में अपनत्व होता है, समर्पण होता है, त्याग होता है। लेकिन, अब प्यार का सीधा मतलब देह से हो गया है। देह का सुख ही प्यार है बस। ‘अंशु के सिर से उतरा प्रेम का भूत’ में लेखक ने ठीक कहा-आजकल प्यार एक फैशन बन गया है। कुछ को छोड़कर सभी प्रेमी एक-दूसरे से कुछ हासिल करने के फिराक में रहते हैं। कोई किसी के पैसे पर ऐश करने के लिए प्रेम करता है, तो कोई अपनी हवस की पूर्ति के लिए। सच्चा प्यार भावनाओं पर आधारित होता है, जो हृदय से होता है।
आज की युवा पीढ़ी प्यार-व्यार के चक्कर में फंसकर अपना कैरियर बर्बाद कर रही है। प्यार देह तक सिमट जा रहा है। राज और कंचन की शुरू हुई लव स्टोरी में राज ने कहा-देखो, पलभर के आकर्षण को प्यार नहीं कहा जाता और प्यार के लिए अभी बहुत उम्र पड़ी है। मुझे तो अपना कैरियर संवारना है, जो प्यार के चक्कर में चैपट हो जायेगा।

उपन्यासकार युवा हैं, उन्हें मालूम है युवाओं का मिजाज। इसलिए, लघु उपन्यास में युवाओं के मन और मिजाज को ही टटोलने की कोशिश की गयी है। गोलगप्पे वाले से गलती से प्राप्त दस रुपये वापस करने पर ममेरे भाई केशव द्वारा तर्क रखने पर राज ने कहा-अगर तुम्हारी नियत अच्छी है, तो फिर तुम जीवन भर अच्छे रास्ते पर चलोगे और बुरी नियत रखोगे, तो फिर तुम पहले ही राह से भटक जाओगे। वैसे भी छल-कपट एवं बेईमानी करने वाले इंसान को भगवान भी पसंद नहीं करते।

‘राज का जलवा’ के माध्यम से यह कहने की सफल कोशिश की गयी है कि न भूत होता है और न ही डायन। अपनी हनक कायम करने के लिए साजिशन किसी के मत्थे डायन का आरोप मढ़ दिया जाता है, ताकि अपनी गोटी लाल होती रहे। बीमारी में अस्पताल जाना चाहिए, न कि जादू-टोने बाजों के पास।

आस-पास की घटनाओं को आधार बनाते हुए उपन्यासकार ने अपनी बात कहने की कोशिश की है। उपन्यासकार ने जो कुछ भी देखा, उसे ही कहानी का अपना विषय बनाया है। आज देखिए न, जीवन में थोड़ी सी भी परेशानी आने पर लोग बौखला जाते हैं। असफल होते नहीं कि लोग मौत के दरवाजे पर दस्तक देने से बाज नहीं आते? ऐसे लोग बुजदिल होते हैं! दुनिया भी ऐसे लोगों के नाम पर थूकती है। उपन्यासकार ने लिखा-जीवन में किसे दुख नहीं झेलना पड़ता, लेकिन इसका मतलब ये थोड़े है कि आज इतनी जल्दी बिना लड़े ही परेशानियों से हार बैठें। यहाँ लगभग हर किसी को कड़ा संघर्ष करना पड़ता है आगे की जिंदगी को बेहतन बनाने के लिए।

राज के माध्यम से उपन्यासकार ने भटकते युवा मन को रोकने की कोशिश की है। साथ ही यह संदेश देने का प्रयत्न किया है कि जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है। इसलिए सार्थक कदम सार्थक दिशा की ओर बढ़ाने की जरूरत है।

युवा कहानीकार द्वारा लिखित यह उपन्यास नई पीढ़ी के लिए संजीवनी है। नई पीढ़ी इसे पढ़ेंगे, तो खुद में बदलाव पायेंगे। युवा की क्या अहमियत है देश और समाज में, यह राज के माध्यम से उपन्यासकार ने रेखांकित करने की उत्कृष्ट कोशिश की है। आखिर राज ने ही तो गाँव में बाल विवाह रूकवाया था और शराबबंदी करवायी।

राज का देवी माँ के प्रति आस्था है। चाहे बस लुटते लुटेरों की पुलिसिया गिरफ्तारी हो या फिर बैग में अश्लील साहित्य की जगह धार्मिक पुस्तक या फिर बेचैन माँ-बाप की तसल्ली के लिए पिता की पाती। इन सबमें माँ का चमत्कार है। लेकिन क्या यह आधुनिक युग में संभव है? क्या यह अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता? क्या यह एक कल्पना से परे नहीं है? यह उपन्यासकार का अनूठा प्रयोग हो सकता है, लेकिन पाठक इसे किस रूप में लेते हैं, यह पाठकों पर निर्भर करता है। फिर भी लघु उपन्यास पाठकों को संदेश देने में सफल होती दिख रही है।

Sunday, 14 April 2019

फैमली ऑफ़ द वीक : शास्त्रीय गायक रजनीश कुमार की फैमली, अनीसाबाद, बेउर, पटना

14 अप्रैल, रविवार को 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार तबस्सुम अली) पहुंची पटना के अनीसाबाद, बेउर इलाके में बिहार के जानेमाने मशहूर शास्त्रीय गायक रजनीश जी की फैमली के घर. जहाँ हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में स्कॉलर्स एबोड स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. बी.प्रियम भी शामिल हुईं.



स्पेशल गेस्ट के साथ बोलो जिंदगी की टीम 



इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों रजनीश कुमार जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.












फैमली परिचय- शास्त्रीय गायक रजनीश कुमार के संस्थान में हर उम्र वर्ग के लोग क्लासिकल-वोकल सीखने आते हैं. इनकी पत्नी बिन्नी बाला राजकीय त्रिभुवन उच्च मध्य विधालय, नौबतपुर में संस्कृत की शिक्षिका हैं. बिन्नी बाला भी गायन से जुड़ी हैं.



इनको एक बेटा और एक बेटी है. बेटा अथर्व डीपीएस में 7 वीं क्लास में और सवा तीन साल की बेटी हिया ने अभी प्ले स्कूल जाना शुरू किया है. रजनीश जी के पिता श्री मुद्रिका शर्मा जो रिटायर्ड संस्कृत शिक्षक हैं. बिन्नी बाला जी की ननद पूनम कुमारी भी साथ में रहती हैं, उनके दो बच्चे हैं. रजनीश जी का भांजा राहुल बीसीए करके मुजफ्फरपुर, जीविका में जॉब करते हैं. भांजी प्रियंका प्रियदर्शी पटना वीमेंस कॉलेज में बीए सेकेण्ड ईयर की स्टूडेंट है.

रजनीश जी का संगीतमय सफर -  रजनीश जी बचपन से ही संगीत सीखना फिर कम उम्र में ही संगीत सिखाना शुरू कर दिए थें. धीरे-धीरे संगीत सिखाते-सिखाते संगीत में ही वो इतना रम गएँ कि संगीत ही उनका सबकुछ हो गया. संगीत सीखनेवाले उनके विद्यार्थियों की जब संख्या बढ़ी फिर रजनीश जी ने जॉब करने का कभी सोचा ही नहीं. 2012 में बिहार के मुख्यमंत्री के हाथों बिहार कला पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं. दो बार संगीत नाटक अकादमी अवार्ड के लिए बिहार से नॉमिनेट भी हुए हैं. मुजफ्फरपुर में बिहार आइडियल के लिए एक कम्पटीशन होता है जिसमे जजमेंट के लिए हर साल ये जाते हैं. इसके अलावा भी युवा महोत्सव जैसे कई आयोजनों में जजमेंट कर चुके हैं. बहुत से स्टूडेंट जो यूनिवर्सिटी में फॉर्मल एजुकेशन ले रहे हैं लेकिन प्रैक्टिकली संगीत सीखने के लिए रजनीश जी के पास आते हैं.

रजनीश जी के बेटे अथर्व का टैलेंट - अथर्व स्कूल की पढ़ाई के साथ साथ म्यूजिक में शुरू से ही बहुत खास रहे हैं. दैनिक हिंदुस्तान द्वारा बिहार में आयोजित सिंगिंग कॉन्टेस्ट रॉकस्टार में जूनियर वर्ग में सेकेण्ड आ चुके हैं. पटना में होनेवाले बसंतोत्सव सिंगिंग कॉन्टेस्ट में भी फर्स्ट आ चुके हैं. ज़ी टीवी सारेगामापा के लिटिल चैम्प 2017 के लिए पटना से 500 बच्चों में से सेलेक्ट होकर दिल्ली गए थें. और अभी हाल ही में सोनी टीवी के लिए सिंगिंग सुपरस्टार के लिए अथर्व पटना से सेलेक्ट होकर कोलकाता ऑडिशन तक गए थें. अथर्व को क्रिकेट खेलना भी बहुत पसंद है लेकिन संगीत में ही वो करियर बनाने का लक्ष्य है. बोलो जिंदगी की फरमाईश पर अथर्व ने भी एक उम्दा क्लासिकल गीत पेश किया.




हिया का टैलेंट - हिया अभी सवा तीन साल की है और अभी एक हफ्ता हुआ है प्ले स्कूल जाते हुए. घर का मौहौल देखते हुए हिया का म्यूजिक के प्रति औब्जर्वेशन कमाल का है. तानपुरा शुरू होते ही हिया भी शुरू हो जाती है. बहुत सारे कठिन बंदिश भी ये गा लेती है. पुरियाधनासी जो एक सीनियर बच्चों का राग है ये उसकी बंदिश भी गा लेती है. इसके अलावे भीम पलासी, खमाज और यमन भी गाती है. जैसे जैसे उस राग में सुर लगता है वैसे ही वो सुर लगाती है, उसे बताना नहीं पड़ता क्यूंकि वह पापा को सुन रही है रोज. उसे याद नहीं कराना पड़ता. हिया फ़िल्मी गानों में पुराने, नए और गजल भी गाना पसंद करती है. बोलो जिंदगी टीम ने भी महसूस किया कि नन्ही हिया का जब मूड बने तब ही आप उससे गाने गवा सकते हैं, वरना वह गोल-मोल बातें करके घुमा देगी. जब हिया को गाने के लिए फुसलाया गया तो उसने पहले माइक लाने की जिद्द की, फिर जब वो चालू हुई तो एक-से-एक गाने सुनाकर ही मानी और कमाल की बात कि गाने खत्म होते ही वह खुद ही वाह-वाह कर उठी.

जब बोलो जिंदगी टीम ने रजनीश जी की पूरी फैमली को जमा किया एक फैमली पिक्चर लेने के लिए तो उसी दरम्यान बिन्नी बाला जी ने कहा कि "हमलोग इतने साल से एक साथ घर में रह रहे हैं लेकिन कभी कोई संयोग ही नहीं बना कि सभी का एक फैमली पिक्चर लिया जाये...चलिए आज आपलोगों के आने से वो भी हो गया."



संदेश: स्पेशल गेस्ट डॉ. बी. प्रियम ने कहा कि - "जितने भी बच्चे हैं मैं उनसे बोलना चाहूंगी की जो भी हुनर उनके पास है उसकी प्रैक्टिस वो बहुत छोटे से करना शुरू करें. और इतनी प्रैक्टिस एवं इतना हार्ड वर्क करके वो किसी भी ऊंचाई पर जा सकते हैं, जो बनना चाहें वो बन सकते हैं."



Sunday, 7 April 2019

फैमली ऑफ़ द वीक : संजीव कुमार की फैमली, जक्कनपुर, पटना


7 अप्रैल, रविवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार व तबस्सुम अली) पहुंची पटना के जक्कनपुर मोहल्ले में संजीव कुमार की फैमली के घर. जहाँ हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में पटना नाउ वेब मीडिया के ऑनर एवं ईटीवी व महुआ चैनल के पूर्व मार्केटिंग हेड निखिल केडी वर्मा भी शामिल हुयें.

स्पेशल गेस्ट के साथ बोलो जिंदगी की टीम 



इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों संजीव कुमार की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.






फैमली परिचय- संजीव कुमार एक व्यवसाई व लेखक हैं. इनकी पत्नी सुप्रिया संत जेवियर्स कॉलेज, दीघा, पटना में कम्प्यूटर साइंस की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. बेटी शान्या श्री संत माइकल में 6 ठी क्लास में है. संजीव के पिता जी का नाम श्री नागेंद्र नाथ सिंह बिजली विभाग में लेखा सहायक के रूप में थें.  इनकी माँ श्रीमती मंजू रानी हाउसवाइफ हैं.




कैसे निर्मित हुई संजीव की पुस्तक 'उड़ान' ? - संजीव साल 2000 में कम्प्यूटर के शो रूम का बिजनेस शुरू किये थें. जब बैचलर ऑफ़ कम्प्यूटर साइंस कर रहे थें तभी व्यापर का आइडिया आया. शुरुआत में बिजनेस में लॉस हुआ. एक बार इतना लॉस हुआ कि ये 6 महीना मेंटली डिस्टर्व रहें. क्यूंकि तब इन्हें बाजार की उतनी समझ नहीं थी. संजीव बताते हैं- "एक दिन कुछ लोग मेरे पास कम्प्यूटर खरीदने आएं. वे अनाथाश्रम जाकर जन्मदिन मानाने का प्लान कर रहे थें. मैं भी उनके साथ गया तो उन बच्चों को देखकर थोड़ी करुणा पैदा हुई. उसके बाद मन में आया कि इन बच्चों के लिए कुछ करूँ. अगर यूँ ही उनके नाम पर पैसे मांगता तो बहुत लोग शक की निगाह से देखतें, फिर मैंने सोचा कलम के माध्यम से समाज की मानसिकता भी बदलूँ और उससे जो पैसे आएं उनसे उन बच्चों की हेल्प करूँ." 

संजीव की पहली कहानी संग्रह की किताब 'उड़ान' आयी 2017 में जिसका विमोचन पद्मश्री सी.पी.ठाकुर जी के हाथों उसी अनाथाश्रम में हुआ था. संजीव को स्कूल के दिनों से ही लिखने का शौक था और जब 10 वीं में थें तभी राज्य स्तरीय कहानी प्रतियोगिता में इनका चयन हुआ था. 37 कहानियों के संग्रह 'उड़ान' में एक कहानी है 'वो मनहूस लड़की' जो बोल हरियाणा रेडियो चैनल से 72 देशों में 2018 में प्रसारित हो चुकी है. इस कहानी पर संजीव को बहुत अच्छे अच्छे कॉम्प्लिमेंट मिलें. इनकी नयी किताब 'अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो' की तैयारी चल रही है जिससे मिलनेवाला पैसा जायेगा शहीद की फैमली को. इस किताब में पटना के ऐसे 11 संस्थानों के बारे में जिक्र है जो देश के लिए काम कर रहे हैं और 21 कहानियां देशभक्ति व अन्य विषयों पर केंद्रित है.


सुप्रिया को क्यों ससुराल मायके जैसा लगता है ?-  संजीव कुमार की पत्नी सुप्रिया के पिता जी आर्मी में थें. इन्हें सिंगिंग का भी शौक है. जब बोलो जिंदगी टीम को यह बात पता चली तो सबने उनसे गाने का रिक्वेस्ट किया. फिर उन्होंने अपनी पसंद के दो प्यारे गीत गायें जो कर्णप्रिय लगें. जब सुप्रिया के पिता आर्मी में थें कई जगहों पर पोस्टेड हुए तो उनके साथ कई जगहों पर फैमली को जाना पड़ा. सुप्रिया जहाँ भी रहीं वहीँ से 10-12 दिन के लिए पटना रिलेटिव के लिए आती थीं. संजीव जी के मामा सुप्रिया के पिताजी के परिचित थें. जब सुप्रिया को कम्प्यूटर लेना था तो उनके पिता को संजीव के मामा ने कहा कि मेरा भांजा है उसके शॉप से मिल जायेगा. तब संजीव जी के दुकान से ही उनका कम्प्यूटर आया. फिर सुप्रिया जी ने फोन पर ही संजीव जी से सारा कम्प्यूटर सीखा.
सुप्रिया बताती हैं- "शादी के बाद मैंने मास्टर कम्प्लीट किया. 6 साल से टीचिंग प्रोफेशन में हूँ. मैं ससुराल में कभी भी बहू जैसा नहीं रही, कभी यहाँ के लोगों ने फील ही नहीं होने दिया. ससुराल में ही जब मेरी आगे की पढ़ाई शुरू हुई तब मैं जींस पहनकर कॉलेज जाती थीं और मेरी सास साथ में रिक्शे पर बैठकर मुझे छोड़ने जाती थीं. यहीं आकर मैंने पति से बाइक और कार चलाना भी सीखा. मेरे मायके का पटना में कोई अपना पर्सनल घर नहीं है तो मेरे पूरे मायके के लोगों को पटना में जितने दिन भी रुकना होता है यहीं आकर रहते हैं. कोई झिझक नहीं कि अरे बेटी के ससुराल में रुके हैं. क्यूंकि इनलोगों ने कभी यह एहसास ही नहीं होने दिया."जब सुप्रिया जी से बोलो जिंदगी की बातचीत चल रही थी इसी बीच समय का सदुपयोग करते हुए संजीव जी सभी के लिए कॉफी बनाने में जुट गएँ. इसपर सुप्रिया जी प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहती हैं कि, "इनका ये सपोर्टिव नेचर ही मुझे बहुत पसंद आता है."


घर की लाड़ली शान्या श्री का टैलेंट - शान्या की हॉबी कई चीजों में है. कराटे में उसने कई पुरस्कार जीते हैं. पेंटिंग, राइटिंग ( छोटी-छोटी कहनाइयाँ) और रीडिंग हैबिट है. इंग्लिश चिल्ड्रन मैगजीन या चिल्ड्रन नॉवेल में इतना इंट्रेस्ट कि दो से तीन दिन में बुक खत्म कर देती है. लोगों की आदत रहती है कि वाशरूम में फोन लेकर जाने की, लेकिन इसकी आदत है बुक लेकर चली जाती है. संजीव जी के बड़े भाई आउट ऑफ़ बिहार रहते हैं, एक अमेरिकन सॉफ्टवेयर कम्पनी जो एयर क्राफ्ट डिजाइन करती है उसके टीम लीडर हैं. और वहीँ संजीव की भाभी साइंटिस्ट हैं तो उनसे फोन पर बात करके उनके मार्गदर्शन में शान्या ने अभी रिमोट कंट्रोल कार बनाना शुरू किया है.


मंजू रानी जी की अनोखी कहानी - यूँ तो संजीव की माँ एक गृहणी हैं लेकिन महिलाओं के लिए बहुत काम कर चुकी हैं. बहुत पहले सिलाई-बुनाई प्रशिक्षण का स्कूल खोली थीं और कई महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करा चुकी हैं. अभी कुछ सालों से ये दर्जी के पास से कुछ बेकार हो चुके कपड़े इकट्ठे कर हाथ से हैंड बैग बनाती हैं. रात के एक-दो बजे तक बैठकर बैग बनाती रहती हैं. इतनी मेहनत से बैग बनाकर भगवान का आशीर्वाद स्वरुप बताकर लोगों में मुफ्त वितरित करती हैं. इस बाबत मंजू जी कहती हैं कि - "श्री कृष्ण भगवान 16 हजार108 शादी किये हैं तो मेरा निश्चय है कि मैं 16 हजार बैग बनाकर लोगों को बांटूं." ये अबतक 5000 बैग बनाकर बाँट चुकी हैं. इनका मानना है कि कृष्णा उससे यह करा रहे हैं और जिसकी किस्मत में लिखा होता है उसे यह बैग मिल जाता है. बोलो जिंदगी की टीम तब बहुत भावुक हो गयी जब मंजू जी ने बड़ी ही मासूमियत से कहा कि "हमने तो कल्पना ही नहीं कि थी कि कभी हमारे काम को टीवी पर भी दिखाया जायेगा...आपलोग हमारे घर आएं तो आज बहुत ख़ुशी महसूस हो रही है."



संदेश: स्पेशल गेस्ट निखिल केडी वर्मा ने कहा कि - "हैरत में हूँ इस फैमली से मिलकर जहाँ सभी एक-से बढ़कर एक टैलेंटेड हैं और खास बात कि सभी एक दूसरे का बखूबी सपोर्ट करते हैं. तो इनकी तरह ही हर परिवार को अपने सभी सदस्यों का सपोर्ट करना चाहिए ताकि परिवार के किसी भी सदस्य के अंदर जो भी टैलेंट हो वो उभरकर सबके सामने आ सके."  







लौटते वक़्त संजीव जी की माँ ने स्पेशल गेस्ट के साथ-साथ बोलो जिंदगी टीम के सभी सदस्यों को आशीर्वाद स्वरूप खुद से बनाया हैण्ड मेड बैग भेंट किया.

Wednesday, 3 April 2019

हनुमान कथा के अंतिम दिन सम्मानित हुईं 25 संघर्षशील महिलाएं


पटना, 3 अप्रैल, पश्चिमी बोरिंग केनाल रोड, आनंदपुरी के राधा कृष्ण उत्सव हॉल में सच्चा कृपा फाउंडेशन के तत्वधान में आयोजित हनुमान कथा का अंतिम दिन था जहाँ समापन समारोह भव्य अंदाज में सम्पन्न हुआ. हजारों की तादाद में जमा हुई भक्तों की भीड़ प्रयाग से आयीं करुणामयी गुरु माँ के भजनों पर एक साथ खड़ी होकर खूब आनंद से नाच-झूम उठी. आरती के बाद श्रद्धालु महिलाएं गुरु माँ का आशीर्वाद लेने की चाह में उतावली सी दिखीं. हनुमान कथा के अंतिम दिन आये श्रद्धालुओं के लिए भव्य भंडारे का भी आयोजन किया गया था.

सच्चा कृपा फाउंडेशन के पटना शाखा के 25 वें वर्षगांठ पर आयोजित इस कार्यक्रम में संस्था से 25 वर्षों से लगातार जुड़ी श्री सच्चा कला केंद्र की सचिव जनक किशोरी जी ने विभिन क्षेत्रों की 25  महिलाओं को गुरु माँ के पुण्य हाथों से सम्मानित करवाया.

बोलो ज़िन्दगी ने जब जनक किशोरी जी से पूछा - "आज के दिन 25 महिलाओं को सम्मानित करने का विचार मन में कैसे आया ?" इसपर जनक ने बताया - "मैं देख रही थी कि हमारे समाज में कुछ ऐसी महिलाएं हैं जो कड़े संघर्ष करके एक मुकाम हासिल की हैं और हर एक  फिल्ड में आगे बढ़ रही हैं. अगर हम उन्हें सम्मानित करते हैं तो उनसे प्रेरणा लेकर अन्य महिलाओं को भी आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिलेगा."
जब बोलो जिंदगी ने यह जानना चाहा कि "आपने 25 महिलाओं को कैसे चयन किया..?" तो जनक किशोरी जी ने बताया कि "बहुत सी महिलाओं को तो मैं आज पहली बार देख पायी जब वे यहाँ सम्मानित होने आयीं. वैसी महिलाएं जो अपने फिल्ड में काम करने के अलावा समाज सेवा के क्षेत्र में भी अच्छा प्रयास कर रही हैं मैंने उन महिलाओं का पता लगाया. बहुत सी महिलाओं के नंबर लेकर उनसे बातचीत करके इस कार्यक्रम में आने का आग्रह किया."

श्री सच्चा कला केंद्र द्वारा सच्चा कृपा फाउंडेशन की पटना शाखा के 25 वे वर्षगांठ पर सम्मानित होनेवाले 25 महिलाओं की नाम सूचि निम्नलिखित है.
वीणा सिंह - धर्म के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए.
निर्मला तिवारी- इवेंट
माधुरी जी - धार्मिक अनुष्ठान
डॉ. कुसुम गोपाल कपूर - चिकित्सा
उषा झा - उधमी
आभा चौधरी - प्रोफेसर
विभा सिन्हा - लोक कलाकार
श्वेता सुरभि- आर. जे. बिग एफ. एम.
अल्का प्रियदर्शिनी - आकाशवाणी
शालिनी सिन्हा - सामाजिक कार्यकर्ता
सिद्धि जी - सन्यासी
स्वर्णा शर्मा - इंजीनियर
ऐश्वर्या शर्मा - मोटिवेटर
हेमलता भारती - सामाजिक कार्य लोकगीत में.
इनके आलावा मीरा सिन्हा, पूनम जी, सावित्री वाम, सत्यवती, आरती वर्मा, आशा वर्मा, किरण चौहान,
उषा रानी एवं अन्य महिलाएं भी सम्मानित कि गयीं.



Tuesday, 2 April 2019

चैती छठ पर रिलीज हो रही है बॉलीवुड फिल्म 'जय छठी माँ'


(रिपोर्टिंग : प्रीतम कुमार) पटना, 2 अप्रैल, होटल रिपब्लिक में बॉलीवुड फिल्म 'जय छठी माँ' की रिलीज को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित किया गया. जहाँ मौके पर मौजूद थीं मोहबत्तें फेम अभिनेत्री प्रीति झिंगानिया जो फिल्म में छठी माँ के किरदार में नजर आएँगी. साथ ही मौजूद थें फिल्म के निर्देशक मुरारी सिन्हा, निर्माता जोड़ी रजनी गूंज व रूचि गुप्ता. फिल्म के निर्माता-निर्देशक ने जानकारी दी कि मुख्य भूमिका में भोजपुरी के सुपर स्टार रवि किशन नजर आएंगे. यूँ तो बॉलीवुड में अबतक कई धार्मिक विषयों पर फिल्म बनी है. मगर यह पहली बार है, जब लोक आस्था के महापर्व छठ पर कोई फिल्म बनी है. 'जय छठी माँ' 5 अप्रैल को देशभर में रिलीज हो रही है.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलो जिंदगी ने जब अभिनेत्री प्रीति झिंगयानी से पूछा कि "क्या पहले से आपको छठ पर्व के बारे में पता था...?" तो प्रीति झिंगयानी ने बताया कि "नहीं इससे पहले मुझे ज्यादा जानकारी नहीं थी छठ पर्व को लेकर लेकिन हाँ टीवी न्यूज देखकर थोड़ी बहुत जानकारी हो गयी थी कि छठ कब और कहाँ मनाया जाता है, किसकी पूजा कि जाती है. लेकिन जब फिल्म करने लगी और स्क्रिप्ट पढ़ी तो मैं बहुत कुछ जान पायी और फिल्म करते हुए छठी माँ के प्रति आस्था का भाव करीब से महसूस करने का मुझे मौका मिला." जब उनसे बोलो जिंदगी ने पूछा कि "चूँकि फिल्म छठ पर्व पर बनी है तो यह फिल्म बिहार-यूपी में ही ज्यादा चलेगी? आपको क्या लगता है ?"  इसपर प्रीति ने कहा कि - "नहीं, मेरा मानना है कि छठ पर्व की जो महिमा है वो विश्व व्यापक है इसलिए मुझे लगता है ये फिल्म पूरे देश में सफल होगी."

वहीँ निर्देशक मुरारी सिन्हा से जब बोलो जिंदगी ने पूछा कि "यूपी-बिहार के सबसे बड़े महापर्व छठ पूजा को एक फिल्म के रूप में सबके बीच लाने का विचार आपके मन में कैसे आया...?" इसपर फिल्म कजे निर्देशक ने कहा कि " मुझे बचपन से ही फिल्म बनाने का शौक था और दिल्ली में रहते हुए मैं जब एक बार छठ पर्व देखने घाट पर गया तो इस पर्व को बारीकी से जानने की कोशिश की कि आखिर क्यों ये छठ पर्व किया जाता है. फिर घर में पूछ-ताछ के बाद पता चला कि मुख्यतः लोगों का यह मानना है कि जो निसंतान होते हैं उन्हें छठी माँ के प्रति यह आस्था होती है कि वो उनकी गोद भरती हैं. फिर पूजन की जो विधि और अन्य मान्यताएं हैं वो सब जानने के बाद मैंने यह निर्णय लिया कि मैं इस पूरे प्रकरण को फिल्म का रूप दूँ. ताकि इस महापर्व की जो महिमा है वो उन तक भी पहुंचे जो इसके महत्व को लेकर ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं.
          बोलो जिंदगी ने अगला सवाल किया कि "छठ पूजा में हमलोग पूजा सूर्य की करते हैं जो साक्षात दिखाई  देते हैं परन्तु जिनको हम छठी माँ कहते हैं उनका कोई भी रूप लोग नहीं देख पाते हैं तो आपने अपनी फिल्म में छठी माँ के उस रूप को कैसे तैयार किया?" निर्देशक ने बताया कि "इतनी बारीक़ जानकारी तो आपको फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा क्यूंकि बड़ी लम्बी कहानी है कि छठी माँ किस रूप में और कैसे आती हैं.. उनको हम छठी माँ क्यों कहते हैं...लोगों को अच्छी तरह से समझाने के लिए हमने फिल्म को दो तरह से पेश किया है, एक सोशल और दूसरा मायथोलॉजिकल रूप में."

 निर्माता रजनी गूंज व रूचि गुप्ता ने बताया कि "छठी माँ पर कोई फिल्म अबतक बॉलीवुड में नहीं देखने को मिली. इसलिए हमे लगा कि बिहार के इस पवित्र महापर्व को दुनिया के सामने लाना चाहिए. इसलिए हम ये फिल्म लेकर आये हैं जो बिहार के लोगों के साथ-साथ देशभर के लोगों की आस्था को इस पर्व से जोड़ेगी. इस फिल्म में बहुत ज्यादा स्पेशल इफेक्ट्स का इस्तेमाल हुआ है.'

फिल्म 'जय छठी माँ' का निर्माण शाइनिंग स्क्रीन के बैनर तले हुआ है. सह निर्माता नीलेश हैं जबकि संगीत दिया है नयन मणि ने. फिल्म में रवि किशन, प्रीति झिंगयानी के आलावा गुरलीन चोपड़ा, शीतल काले, निशा सिंह, राहुल जैन भी सशक्त भूमिकाओं में नजर आएंगे.

Monday, 1 April 2019

जरूरतमंदों के लिए नॉन कमर्शियल ब्लड बैंक खोलना चाहते हैं मुकेश हिसारिया : फाउंडर, माँ वैष्णो देवी सेवा समिति


पटना के मुकेश हिसारिया का गोविन्द मित्रा रोड में दवा का व्यवसाय है. पार्ट टाइम में सोशल कार्यों के जरिये अपने परिवार, समाज और आम लोगों के लिए आइडल बनने की कोशिश कर रहे हैं. जनसेवा के माध्यम से जरूरतमंदों को ब्लड की जरुरत होती है. अगर उनके पास डोनर नहीं है और वो ब्लड के लिए परेशां हो रहे हैं तो सोशल साईट के माध्यम से अपने 250 ग्रुप के लोगों के माध्यम से ये उसको पूरा करने का प्रयास करते हैं. पूरे देश में बिहार से बाहर जाकर जो लोग ट्रीटमेंट करा रहे हैं दिल्ली, बॉम्बे, मद्रास, कोलकाता इसके साथ लखनऊ और अम्बाला, हरियाणा में भी यदि कहीं जा रहे हैं और किसी भी जगह अगर ब्लड की दिक्कत आ रही है और उनका सम्पर्क यदि इनके ग्रुप से हो रहा है तो ये सोशल साईट पर अपने मित्रों के माध्यम से उनतक निशुल्क ब्लड पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं. अभी सोशल साईट के माध्यम से इनके लोगों को जरूरतमंदों का जैसे ही मैसेज मिलता है वे लोग वहां जाकर उनकी स्थिति देखकर अपना ब्लड डोनेट करके उनको नयी जिंदगी प्रदान करते हैं. 'माँ वैष्णोदेवी सेवा समिति' संसथान जिसे 2009 में 11 बिजनेस मैन ने मिलकर बनाया था. संस्थान का मोटो सिर्फ और सिर्फ जरूरतमंदों की सेवा करना है और वो सेवा किसी भी रूप में कहीं भी और किसी भी समय हो सकती है. संस्था के फाउंडर मेंबर में मुकेश हिसारिया, गोपी तुलसियान जी और संजय जी तीन लोग हैं. अभी ये लोग फाउंडर मेंबर की हैसियत से काम कर रहे हैं. इनकी टीम पिछले 9 वर्षों से श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में 51 बेहद जरूरतमंद बच्चियों की शादी का कार्यक्रम 'एक विवाह ऐसा भी' करा रही है. इस बार भी 7 जुलाई, 2019 को 10 वां संस्करण सम्पन्न होगा. सबसे ज्यादा आश्चर्य इस बात से होगा कि इनमे से 100 जोड़े ऐसे हैं जो इस शादी में आकर श्रमदान करते हैं, मतलब सुबह जो शादी का क्रायक्रम शुरू होता है और रात में 11  बजे समाप्त होता है तबतक वो श्रमदान के माध्यम से अपना योगदान देते हैं.
1991 में मुकेश जी को अपनी माँ को लेकर भेलौर, मद्रास जाना पड़ा था कृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल में. वहां माँ का गैस्ट्रो का एक बड़ा ऑपरेशन होना था. डेढ़-दो महीने मुकेश जी को वहां रहने का मौका मिला था उस दरम्यान वहां लगातार ब्लड बैंकों के आस-पास लोगों को ब्लड की कमी होने की वजह से परेशां होते देखते थें.

कैसे हुई ब्लड डोनेशन को लेकर अवेयर करने की पहल - आइये शुरुआत की कहानी जानते हैं हम खुद मुकेश हिसारिया की जुबानी. "साल 1991 में जब मेरी माँ का ऑपरेशन हो रहा था और डॉकटर ने कहा कि इनका बचने की सम्भावना ना के बराबर है तो हमने ऐसे ही कह दिया था अपने मन में कि भाई अगर माँ बच गयी तो हम एक यूनिट ब्लड डोनेट करके आएंगे. और जिस दिन वहां से वापस आने के लिए हमलोग ट्रेन पकड़ रहे थें मैं एक यूनिट ब्लड डोनेट करके आ रहा था और तभी से वो सिलसिला चला जो 28 फरवरी 2018 को जाकर बंद हुआ. उसके बाद हम आज डायबटीज के मरीज हो गए हैं. 19 यूनिट ब्लड देने के बाद आज हम ब्लड डोनेट नहीं कर पा रहे हैं. अब लोगों को मैसेज के माध्यम से जरूरतमंदों तक मैसेज पहुंचाकर उस प्रक्रिया को लगातार चालू रखे हुए हैं. वहां जो भैलोर में थें तो वहां रहते हुए 15-20 दिन बाद कई लोगों को हम कन्विंस करके कम से कम 12-15 यूनिट ब्लड जरूरतमंदों के लिए डोनेट करवा दिए थे. हमारी माँ को ब्लड की जरूरत नहीं पड़ी थी लेकिन हमलोग जब वहां खाली बैठे होते थे तो जिससे हमलोग सब्जी, फल आदि खरीदते थें उससे बोलकर डोनेट करा देते थें. चूँकि उस समय मोबाईल का जमाना नहीं था और आउटगोइंग कॉल रेट ज्यादा था तो हमलोग पीसीओ में बैठकर लोगों को कन्विंस करते थें कि भाई देखिये, एक आदमी मर रहा है आप उनको ब्लड दे दीजिये. तो लोग जाते थें और दे देते थें फिर उसके बाद क्या हुआ कि जब पटना आ गए और यहाँ पर शुरू किये तो लोग हँसते थें कि खून कोई देने की चीज है. खून देने से तो आदमी मर जाता है. फिर भी मैंने अपना काम जारी रखा फिर अचानक से ऑरकुट सोशल साईट आया .ऑरकुट पर हमने पहली बार पीएमसीएच का एक मैसेज डाला कि एक गरीब मरीज है जो हाजीपुर से आया है, जिसे बी पोसिटिव ब्लड की जरूरत है लेकिन उस समय ऑरकुट तो एक मनोरंजन की चीज थी. कई सारे लोगों ने मेरा मजाक उड़ाया और ये भी कह दिया कि इस प्लेटफॉर्म को आप इस तरह के मैसेज से खराब नहीं कीजिये.  इसके बावजूद मैंने मैसेज डाला और कुछ ही घंटे के बाद कई लोग वहां ब्लड डोनेट करने पहुँच गए. एक रामानुजन करके आदमी थे जो उस समय पहली बार ब्लड डोनेट किये थें. उसके बाद हमलोग लगातार ऑरकुट के माध्यम से मैसेज डालना चालू रखें. कुछ लोग फिर भी कोसते रहे लेकिन हमलोगों ने काम चालू रखा. ऑरकुट के बाद फेसबुक आया, फेसबुक के बाद हमारा कारवां ऐसे बढ़ा कि जो लोग ब्लड डोनेट करते थे उनका फोटो हमलोग जाकर खींचते थे और बुलाकर सम्मानित करते थें. लोगों को बताते थें कि ये आज के हमारे हीरो हैं, इन्होने पिछले 6 महीनों में ब्लड डोनेट किया है. तो लोगों को यह महसूस होने लगा कि भाई हमलोगों के ब्लड डोनेट करने के बाद समाज से सम्मान मिलता है, समाज के लोग हमें पहचानते हैं. सम्मानित होनेवाले लोगों के फोटो को हमलोग फेसबुक-वाट्सअप पर डालना शुरू कर दिए. इससे लोगों में ब्लड डोनेशन को लेकर एक क्रांति आ गयी. फिर जो व्यक्ति ने ब्लड डोनेट किया और उसके परिवार के किसी सदस्य को ब्लड की जरुरत पड़ी तो उसे भी आसानी से समय पर ब्लड मिल गया. आपको यह जानकर बड़ा आश्चर्य होगा कि आज दुनिया, विज्ञान ने चाहे जितनी भी तररकी कर ली हो लेकिन आजतक ब्लड का डुप्लीकेट नहीं बना सका, ब्लड एक ऐसा चीज है जो आपको पटना में मिलेगा वही आपको अमेरिका में भी मिलेगा. लोगों को हमने समझाया कि समाज के प्रति आपका यह कर्तव्य है कि जिस समाज से आपको हर उम्र में कदम-कदम पर सहयोग मिलता हो, उस समाज के लिए आप कम-से-कम 0.01 % का रिटर्न तो दे ही सकते हैं और ब्लड डोनेट करने से अच्छा भव्य दान क्या होगा. हमने लोगों को यह भी समझाया कि जीते-जी तो आप रक्तदान करके अपने जीवन का महादान कर ही सकते हैं, पर मरने के बाद भी आप अपने नेत्र डोनेट करके एक महादान कर सकते हैं. आपके मरने के बाद यदि आपकी दो आँखें किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से इस दुनिया को देख रही हैं तो जरा सोचिये कि भला इससे बेहतर और क्या हो सकता है.
  
आपलोगों के ब्लड बैंक की खासियत क्या होगी ? -  हीमोफिलिया बीमारी से ग्रसित बिहार में कुल 1500 मरीज हैं, इनको एक बाहर की मल्टीनेशनल कम्पनी से फैक्टर 8 दवा खरीदनी पड़ती है जो कि प्लाज़्मा से बनता है. आपको यह जानकर काफी हैरानी होगी कि ये प्लाज्मा बिहार से बॉम्बे जाता है और वहां से फैक्टर 8 बनकर पांच सौ गुना ज्यादा रेट में यहाँ बिकता है. हमलोग जो ब्लड बैंक स्थापित करेंगे उसकी खासियत होगी कि हमलोग प्लाज्मा को फैक्टर 8 बनानेवाली कंपनियों को तब बेचेंगे जब वो सब्सिडी रेट में हमे फैक्टर 8 देंगे. फैक्टर 8 की यदि बाजार में कीमत 9000 है तो हमलोग उसे 1500 -2000 के रेट में बेचेंगे. प्रोसेसिंग फी सबसे ज्यादा मायने रखता है, किसी भी जरूरतमंद को यदि ब्लड लेना होता है, प्लेटलेट्स लेना होता है, प्लाज्मा लेना होता है तो उनको जाकर बदले में प्रोसेसिंग फी देना पड़ता है जिसे सरकार ने एक रेट तय किया है. लेकिन यहाँ के सारे प्राइवेट ब्लड बैंक प्रोसेसिंग फी अपने मन मुताबिक ले रहे हैं. प्राइवेट हॉस्पिटल, प्राइवेट ब्लड सेल का 2400 वसूल रहे हैं जो कि सरकारी गाइडलाइन के अनुसार 500 रूपए का है. कई प्राइवेट ब्लड बैंक वाले एनबीटीसी के गाइडलाइन को फॉलो नहीं करते हैं. हमारे यहाँ कहीं भी न्यूक्लिक एसिड टेस्ट की सुविधा नहीं है. यहाँ पर एफआरएसएस मशीन नहीं है, जिससे ब्लड से प्लाज्मा निकाला जाता है. तो हमलोगों का मकसद है कि एफआरएसएस मशीन लगाएंगे, न्यूक्लिक एसिड टेस्ट मशीन लगाएंगे. मैंने डॉक्टर की पढ़ाई तो नहीं कि है पर अध्ययन करने के बाद अपना अनुभव बता रहा हूँ. यहाँ पर रैपिड टेस्ट जो है उसमे 2-3 महीना पुराना एचआईवी होगा तो आपको पता नहीं चल पायेगा. आपने यह जरूर सुना होगा कि अमिताभ बच्चन जी को संक्रमित ब्लड चढाने से 10-15 साल बाद अब जाकर उनको इंफेक्शन हुआ. रैपिड टेस्ट की जगह अभी जो नयी तकनीक आयी है उसे केमी टेस्ट बोलते हैं. यह टेस्ट करने से आपको 20-25 दिन के भी एचआईवी के बारे में पता चल जायेगा. सबसे लेटेस्ट जो जाँच चल रहा है वह है न्यूक्लिक एसिड टेस्ट इस जाँच से 3 दिन पुराना एचआईवी और हैप्टाइटस भी पकड़ में आ जायेगा. यह तकनीक अभी तक बिहार के एक निजी अस्पताल ने लगा रखी है. वो लोग जाँच के नाम पर अनाप-शनाप पैसा ले रहे हैं. हम इन सारी बातों को बोलो जिंदगी के माध्यम से सरकार और जन-जन तक पहुँचाना चाहते हैं.
       पहले लोग ब्लड नहीं देते थें लेकिन आज लोग ब्लड देना सीख रहे हैं, हमलोग कहीं भी खड़े हो जाते हैं, लोगों से ब्लड के लिए आग्रह करते हैं तो देखिये आज सरकार को भी हमलोगों से आग्रह करना पड़ता है कि भाई ब्लड कैम्प करना है आप आइये. पर हमें इस बात का जरा सा भी घमंड नहीं है, हम सरकार के अभिन्न अंग हैं और हमारा सामाजिक दायित्व है कि समय-समय पर हमलोगों को सेवा के भाव को और विस्तृत करने की जरूरत है और ब्लड एक ऐसा माध्यम है जिससे जीते जी आप बहुत लोगों की सेवा कर सकते हैं. जब 60-65 साल के बड़े बुजुर्ग आकर हमारे पैर पकड़ते हैं तो सच कहें उस समय मेरा दिल बैठ जाता है और ऐसा लगता है कि यदि हमारे पास 200 यूनिट भी ब्लड हो तो हमलोग उनको ऐसे ही दे दें. आज बाहर से ब्लड लेने आते हैं लोग, कोई मरीज पीएमसीएच से आ गया, कोई आइजीएमएस से आ गया. ब्लड नहीं मिलने की वजह से आप उसे तड़पते देखिएगा कि उसके पास ब्लड नहीं है और डोनर नहीं है तो बहुत दुःख होता है. ऊपर से यहाँ के सारे ब्लड बैंक का रवैया बहुत खराब है. आज हमलोग ब्लडबैंक को लेकर बहुत कुछ सोच रहे हैं. बहुत कुछ करने का प्रयास भी कर रहे हैं, बहुत सारी कम्पनीस को बुलाकर उनसे आईडिया ले रहे हैं कि एक नेक नॉन-कमर्शियल ब्लड बैंक को सही ढंग से कैसे स्थापित करें. कई सारे लोगों को ऐसा लगता है कि आखिर हमलोग इस तरह के ब्लड बैंक मॉडल को कैसे चला पाएंगे...! तो मैं उन सभी से यही कहूंगा कि हमलोग इसे आमजनों के सहयोग और भगवान के आशीर्वाद से सही और सुचारु ढ़ंग से चलाएंगे. हमारे पास अपना फंड है, हमें किसी भी लेवल पर किसी भी तरह के सरकारी फण्ड की जरूरत नहीं है ब्लड बैंक के लिए. और आजतक यहाँ जो भी ब्लड बैंक हैं और उसमे जो-जो चीजें नहीं हैं, हमलोग चाहेंगे कि हमारे ब्लड बैंक में डे वन से सारी जरुरी चीजें मिलें, हमलोग स्टेप-बाई-स्टेप सारे टेस्टों को अपने यहाँ मुहैया कराएँगे और एफआरएसएस मशीन भी लगाएंगे. हमलोगों को इससे एक पैसे की भी कमाई करने का मकसद नहीं है. यदि हमलोग कंपनियों को प्लाज्मा बेचेंगे तो फैक्टर 8 की मांग करेंगे और आजतक इंडिया में किसी ने भी प्लाज्मा के बदले फैक्टर 8 लेने की डील कंपनियों से नहीं की है, क्यूंकि सबका अपना कॉमर्शियल मोटो रहता है. यह डील करने का हमलोगों का यह मकसद है कि फैक्टर 8 दवा हेमोफिलिया के मरीज को आसानी से कम दाम पर उपलब्ध कराके सेवा कर सकें. हमलोगों का प्रयास होगा कि हमारे ब्लड बैंक में बिना रिप्लेसमेंट प्रोसेसिंग फी के लोगों तक ब्लड मुहैया हो सके.

अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ खान से कैसे मिलना हुआ ? - 2013 में हमलोग बतौर ऑडियंस केबीसी में गए थें. हमें सिदार्थ बासु सर ने बुलाया था. उस शो में कार्यक्रम समाप्त होने के बाद अमिताभ बच्चन जी ने लगभग 15 मिनटों तक हमसे बात की थी. उन्होंने हमसे पूछा कि "आपलोग ब्लड बैंक कब से शुरू करना चाहते हैं ?" तो हमलोगों ने बताया कि जैसे ही हमें पर्याप्त जगह मिल जायेगा. तो उन्होंने हमसे कहा कि "जब भी ब्लड बैंक शुरू हो जाये आप हमें खबर जरूर भेजिएगा." केबीसी में हमलोग कुल 20 लोग गए थें और उस ग्रुप का नेतृत्व मैं  कर रहा था. अमित जी से हमलोगों ने 51  जोड़ियों की शादी की चर्चा भी की जिसे सुनकर अमित जी काफी प्रभावित हुए.
फिर 2015 में फैन फिल्म के प्रमोशन के दौरान शाहरुख़ खान ने भी हमें इन्वाइट किया था जिसमे इंडिया से 10 लोगों को बुलाया गया था, जिसमे एक मैं भी था. शाहरुख़ एक-एक करके सभी से पूछ रहे थें कि 'आप किसके फैन हैं ?" सभी लोगों ने कहा - "सर, हमलोग तो बस आपके ही फैन हैं." जब उन्होंने मुझसे पूछा कि "आप किसके फैन हैं ?"  मैंने कहा कि "मैं तो ब्लड डोनेशन का फैन हूँ." इस बात को सुनकर शाहरुख़ को काफी आश्चर्य हुआ तो उन्होंने मुझसे पूछा कि "मैं ब्लड डोनेशन के लिए क्या कर सकता हूँ..?" तो मैंने कहा- सर, आप चाहें तो अपने जन्मदिन के दिन, अपनी फिल्म रिलीजिंग के दिन ब्लड डोनेट कर सकते हैं. फिर उन्होंने पूछा "और क्या कर सकता हूँ ?" तो मैंने कहा- आप चाहें तो अपनी फिल्म में ब्लड डोनेट करते हुए कोई सीन डाल सकते हैं, जिससे लोग जरूर जागरूक होंगे इसके प्रति. देखिये हमलोग जब भी किसी सेलिब्रिटी के पास जाते हैं तो हमारा यही मकसद होता है कि हम उनके द्वारा लोगों तक ब्लड डोनेशन के प्रति जागरूकता के मैसेज पहुंचाएं, जिसमे हमलोग लगातार सफल भी हो रहे हैं.

क्या है 51 जोड़ियों की शादी का कॉन्सेप्ट ? -  हमलोग 2009 में जब माँ वैष्णो देवी सेवा समिति बनायें तो हमलोगों ने पैसे भी इकट्ठे कर लिए, पर कोई समाज सेवा का काम समझ में नहीं आ रहा था तो हमलोगों ने माँ भगवती पर ही छोड़ दिया कि वही जो कराना होगा करेंगी. फिर अचानक से एक दिन हमलोगों ने न्यूज़ में देखा कि वैशाली में राजपाकर जगह पर एक साथ कई शादियां कैंसल हो गयी हैं. फिर हम न्यूज़ में दिए गए पते की मदद से अगले दिन वहां पहुँच गएँ और फिर वहीँ से शादी का कार्यक्रम शुरू हो गया जो पिछले 9 वर्षों से लगातार जारी है. अभी तक जो हमलोगों ने 51 जोड़ों की शादियों का बीड़ा उठाया है वो लगातार चल रहा है. इस साल भी जुलाई, 2019 में श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में भव्य कार्यक्रम है और मैं बोलो जिंदगी के माध्यम से लोगों से निवेदन करता हूँ कि यदि आपके आस-पड़ोस में कोई ऐसी जरूरतमंद लड़की है जिसकी आयु 18 साल से ऊपर है और उसके लिए परिवारवाले वर खोज चुके हैं मगर पैसे के आभाव के कारण शादी में दिक्क्त हो रही है तो वो मुझसे आकर मिल सकते हैं. हमलोगों को काफी आश्चर्य होता है कि जिन जोड़ों की शादी पहले यहाँ से हो चुकी है वो इस कार्यक्रम में आकर बहुत ख़ुशी से श्रमदान करते हैं.
सबसे पहले जब हमलोगों ने यह निर्णय ले लिया कि हमें एक साथ 51 शादियां करानी हैं तो महाराणा प्रताप भवन एक संस्था है उन्होंने कहा कि, यदि आपलोग समाजहित में कोई भी कार्यक्रम करेंगे तो हम जीवन भर आपको निशुल्क सेवा प्रदान करेंगे. इस बात से हमें काफी हौसला मिला, क्यूंकि महाराणा प्रताप भवन के द्वारा निशुल्क सेवा दने के बाद हमारा एक लाख रुपये का किराया बच रहा था. जब कोई नए तरह का काम करता है तो थोड़ी बहुत परेशानी होती है. ईश्वर की हमपर बहुत ही कृपा है और समय-समय पर सहयोग मिलता रहा है. न्यूज़ 24 की मालकिन अनुराधा प्रसाद तो डे वन से इस संस्था से जुड़ी हुई हैं. शुरूआती दौर में तब परेशानी हुई थी जब कुछ जोड़ियां सामान के लालच में शादी के लिए आ जाती थीं. लेकिन अब वैसा कुछ नहीं होता क्यूंकि उसके पहले हम अच्छे से रिसर्च और पूरी जाँच-पड़ताल करते हैं. हमारे समूह में ज्यादातर लोग व्यवसायी हैं और उनके दूर-दराज़ के ग्राहक भी हैं तो हमलोग उनको भी ये सारी जानकारियां देते हैं. और लगभग प्रत्येक वर्ष 1000 बैनर बनवाकर हर एक ग्राहक को देते हैं, और वे लोग अपने जगह जाकर लगवाते हैं . बैनर पर हमारा नंबर और पता लिखा रहता है जिससे वो लोग हमसे सम्पर्क करते हैं.

क्या है शादी की प्रक्रिया ? - जिन जोड़ों की शादी होती है उनका हम सबसे पहले रजिस्ट्रेशन करते हैं, फिर कोर्ट से एफिडेविट करवाते हैं कि जो भी शादी हमारे यहाँ हो रही है उसमे वर-वधु दोनों बालिग हैं तथा बिना किसी दहेज़ के शादी की रस्म हो रही है, फिर हमलोग वर-वधु के परिवारवालों की काउंसिलिंग करते हैं. इसके बाद अच्छे मुहूर्त वाले दिन उनकी शादियां करा देते हैं.
जब हमने संस्था बनायीं थी तब सिर्फ 3 लोग थें. अगले सप्ताह आते-आते 11 लोग हो गए और आज लगभग 300 लोग हैं. हमलोगों का एक मकसद है, यदि हम अपने समाज के लिए एक प्रतिशत भी कोई नेक काम कर लेते हैं तो हमारा जीवन सार्थक हो जायेगा. 




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