पटना के मुकेश हिसारिया
का गोविन्द मित्रा रोड में दवा का व्यवसाय है. पार्ट टाइम में सोशल कार्यों के जरिये
अपने परिवार, समाज और आम लोगों के लिए आइडल बनने की कोशिश कर रहे हैं. जनसेवा के माध्यम
से जरूरतमंदों को ब्लड की जरुरत होती है. अगर उनके पास डोनर नहीं है और वो ब्लड के
लिए परेशां हो रहे हैं तो सोशल साईट के माध्यम से अपने 250 ग्रुप के लोगों के माध्यम
से ये उसको पूरा करने का प्रयास करते हैं. पूरे देश में बिहार से बाहर जाकर जो लोग
ट्रीटमेंट करा रहे हैं दिल्ली, बॉम्बे, मद्रास, कोलकाता इसके साथ लखनऊ और अम्बाला,
हरियाणा में भी यदि कहीं जा रहे हैं और किसी भी जगह अगर ब्लड की दिक्कत आ रही है और
उनका सम्पर्क यदि इनके ग्रुप से हो रहा है तो ये सोशल साईट पर अपने मित्रों के माध्यम
से उनतक निशुल्क ब्लड पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं. अभी सोशल साईट के माध्यम से इनके
लोगों को जरूरतमंदों का जैसे ही मैसेज मिलता है वे लोग वहां जाकर उनकी स्थिति देखकर
अपना ब्लड डोनेट करके उनको नयी जिंदगी प्रदान करते हैं. 'माँ वैष्णोदेवी सेवा समिति'
संसथान जिसे 2009 में 11 बिजनेस मैन ने मिलकर बनाया था. संस्थान का मोटो सिर्फ और सिर्फ
जरूरतमंदों की सेवा करना है और वो सेवा किसी भी रूप में कहीं भी और किसी भी समय हो
सकती है. संस्था के फाउंडर मेंबर में मुकेश हिसारिया, गोपी तुलसियान जी और संजय जी
तीन लोग हैं. अभी ये लोग फाउंडर मेंबर की हैसियत से काम कर रहे हैं. इनकी टीम पिछले
9 वर्षों से श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में 51 बेहद जरूरतमंद बच्चियों की शादी का कार्यक्रम
'एक विवाह ऐसा भी' करा रही है. इस बार भी 7 जुलाई, 2019 को 10 वां संस्करण सम्पन्न
होगा. सबसे ज्यादा आश्चर्य इस बात से होगा कि इनमे से 100 जोड़े ऐसे हैं जो इस शादी
में आकर श्रमदान करते हैं, मतलब सुबह जो शादी का क्रायक्रम शुरू होता है और रात में
11 बजे समाप्त होता है तबतक वो श्रमदान के
माध्यम से अपना योगदान देते हैं.
1991 में मुकेश जी
को अपनी माँ को लेकर भेलौर, मद्रास जाना पड़ा था कृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल में.
वहां माँ का गैस्ट्रो का एक बड़ा ऑपरेशन होना था. डेढ़-दो महीने मुकेश जी को वहां रहने
का मौका मिला था उस दरम्यान वहां लगातार ब्लड बैंकों के आस-पास लोगों को ब्लड की कमी
होने की वजह से परेशां होते देखते थें.
कैसे हुई ब्लड डोनेशन
को लेकर अवेयर करने की पहल - आइये शुरुआत की कहानी जानते हैं हम खुद मुकेश हिसारिया
की जुबानी. "साल 1991 में जब मेरी माँ का ऑपरेशन हो रहा था और डॉकटर ने कहा कि
इनका बचने की सम्भावना ना के बराबर है तो हमने ऐसे ही कह दिया था अपने मन में कि भाई
अगर माँ बच गयी तो हम एक यूनिट ब्लड डोनेट करके आएंगे. और जिस दिन वहां से वापस आने
के लिए हमलोग ट्रेन पकड़ रहे थें मैं एक यूनिट ब्लड डोनेट करके आ रहा था और तभी से वो
सिलसिला चला जो 28 फरवरी 2018 को जाकर बंद हुआ. उसके बाद हम आज डायबटीज के मरीज हो
गए हैं. 19 यूनिट ब्लड देने के बाद आज हम ब्लड डोनेट नहीं कर पा रहे हैं. अब लोगों
को मैसेज के माध्यम से जरूरतमंदों तक मैसेज पहुंचाकर उस प्रक्रिया को लगातार चालू रखे
हुए हैं. वहां जो भैलोर में थें तो वहां रहते हुए 15-20 दिन बाद कई लोगों को हम कन्विंस
करके कम से कम 12-15 यूनिट ब्लड जरूरतमंदों के लिए डोनेट करवा दिए थे. हमारी माँ को
ब्लड की जरूरत नहीं पड़ी थी लेकिन हमलोग जब वहां खाली बैठे होते थे तो जिससे हमलोग सब्जी,
फल आदि खरीदते थें उससे बोलकर डोनेट करा देते थें. चूँकि उस समय मोबाईल का जमाना नहीं
था और आउटगोइंग कॉल रेट ज्यादा था तो हमलोग पीसीओ में बैठकर लोगों को कन्विंस करते
थें कि भाई देखिये, एक आदमी मर रहा है आप उनको ब्लड दे दीजिये. तो लोग जाते थें और
दे देते थें फिर उसके बाद क्या हुआ कि जब पटना आ गए और यहाँ पर शुरू किये तो लोग हँसते
थें कि खून कोई देने की चीज है. खून देने से तो आदमी मर जाता है. फिर भी मैंने अपना
काम जारी रखा फिर अचानक से ऑरकुट सोशल साईट आया .ऑरकुट पर हमने पहली बार पीएमसीएच का
एक मैसेज डाला कि एक गरीब मरीज है जो हाजीपुर से आया है, जिसे बी पोसिटिव ब्लड की जरूरत
है लेकिन उस समय ऑरकुट तो एक मनोरंजन की चीज थी. कई सारे लोगों ने मेरा मजाक उड़ाया
और ये भी कह दिया कि इस प्लेटफॉर्म को आप इस तरह के मैसेज से खराब नहीं कीजिये. इसके बावजूद मैंने मैसेज डाला और कुछ ही घंटे के
बाद कई लोग वहां ब्लड डोनेट करने पहुँच गए. एक रामानुजन करके आदमी थे जो उस समय पहली
बार ब्लड डोनेट किये थें. उसके बाद हमलोग लगातार ऑरकुट के माध्यम से मैसेज डालना चालू
रखें. कुछ लोग फिर भी कोसते रहे लेकिन हमलोगों ने काम चालू रखा. ऑरकुट के बाद फेसबुक
आया, फेसबुक के बाद हमारा कारवां ऐसे बढ़ा कि जो लोग ब्लड डोनेट करते थे उनका फोटो हमलोग
जाकर खींचते थे और बुलाकर सम्मानित करते थें. लोगों को बताते थें कि ये आज के हमारे
हीरो हैं, इन्होने पिछले 6 महीनों में ब्लड डोनेट किया है. तो लोगों को यह महसूस होने
लगा कि भाई हमलोगों के ब्लड डोनेट करने के बाद समाज से सम्मान मिलता है, समाज के लोग
हमें पहचानते हैं. सम्मानित होनेवाले लोगों के फोटो को हमलोग फेसबुक-वाट्सअप पर डालना
शुरू कर दिए. इससे लोगों में ब्लड डोनेशन को लेकर एक क्रांति आ गयी. फिर जो व्यक्ति
ने ब्लड डोनेट किया और उसके परिवार के किसी सदस्य को ब्लड की जरुरत पड़ी तो उसे भी आसानी
से समय पर ब्लड मिल गया. आपको यह जानकर बड़ा आश्चर्य होगा कि आज दुनिया, विज्ञान ने
चाहे जितनी भी तररकी कर ली हो लेकिन आजतक ब्लड का डुप्लीकेट नहीं बना सका, ब्लड एक
ऐसा चीज है जो आपको पटना में मिलेगा वही आपको अमेरिका में भी मिलेगा. लोगों को हमने
समझाया कि समाज के प्रति आपका यह कर्तव्य है कि जिस समाज से आपको हर उम्र में कदम-कदम
पर सहयोग मिलता हो, उस समाज के लिए आप कम-से-कम 0.01 % का रिटर्न तो दे ही सकते हैं
और ब्लड डोनेट करने से अच्छा भव्य दान क्या होगा. हमने लोगों को यह भी समझाया कि जीते-जी
तो आप रक्तदान करके अपने जीवन का महादान कर ही सकते हैं, पर मरने के बाद भी आप अपने
नेत्र डोनेट करके एक महादान कर सकते हैं. आपके मरने के बाद यदि आपकी दो आँखें किसी
अन्य व्यक्ति के माध्यम से इस दुनिया को देख रही हैं तो जरा सोचिये कि भला इससे बेहतर
और क्या हो सकता है.
आपलोगों के ब्लड बैंक
की खासियत क्या होगी ? - हीमोफिलिया बीमारी
से ग्रसित बिहार में कुल 1500 मरीज हैं, इनको एक बाहर की मल्टीनेशनल कम्पनी से फैक्टर
8 दवा खरीदनी पड़ती है जो कि प्लाज़्मा से बनता है. आपको यह जानकर काफी हैरानी होगी कि
ये प्लाज्मा बिहार से बॉम्बे जाता है और वहां से फैक्टर 8 बनकर पांच सौ गुना ज्यादा
रेट में यहाँ बिकता है. हमलोग जो ब्लड बैंक स्थापित करेंगे उसकी खासियत होगी कि हमलोग
प्लाज्मा को फैक्टर 8 बनानेवाली कंपनियों को तब बेचेंगे जब वो सब्सिडी रेट में हमे
फैक्टर 8 देंगे. फैक्टर 8 की यदि बाजार में कीमत 9000 है तो हमलोग उसे 1500 -2000 के
रेट में बेचेंगे. प्रोसेसिंग फी सबसे ज्यादा मायने रखता है, किसी भी जरूरतमंद को यदि
ब्लड लेना होता है, प्लेटलेट्स लेना होता है, प्लाज्मा लेना होता है तो उनको जाकर बदले
में प्रोसेसिंग फी देना पड़ता है जिसे सरकार ने एक रेट तय किया है. लेकिन यहाँ के सारे
प्राइवेट ब्लड बैंक प्रोसेसिंग फी अपने मन मुताबिक ले रहे हैं. प्राइवेट हॉस्पिटल,
प्राइवेट ब्लड सेल का 2400 वसूल रहे हैं जो कि सरकारी गाइडलाइन के अनुसार 500 रूपए
का है. कई प्राइवेट ब्लड बैंक वाले एनबीटीसी के गाइडलाइन को फॉलो नहीं करते हैं. हमारे
यहाँ कहीं भी न्यूक्लिक एसिड टेस्ट की सुविधा नहीं है. यहाँ पर एफआरएसएस मशीन नहीं
है, जिससे ब्लड से प्लाज्मा निकाला जाता है. तो हमलोगों का मकसद है कि एफआरएसएस मशीन
लगाएंगे, न्यूक्लिक एसिड टेस्ट मशीन लगाएंगे. मैंने डॉक्टर की पढ़ाई तो नहीं कि है पर
अध्ययन करने के बाद अपना अनुभव बता रहा हूँ. यहाँ पर रैपिड टेस्ट जो है उसमे 2-3 महीना
पुराना एचआईवी होगा तो आपको पता नहीं चल पायेगा. आपने यह जरूर सुना होगा कि अमिताभ
बच्चन जी को संक्रमित ब्लड चढाने से 10-15 साल बाद अब जाकर उनको इंफेक्शन हुआ. रैपिड
टेस्ट की जगह अभी जो नयी तकनीक आयी है उसे केमी टेस्ट बोलते हैं. यह टेस्ट करने से
आपको 20-25 दिन के भी एचआईवी के बारे में पता चल जायेगा. सबसे लेटेस्ट जो जाँच चल रहा
है वह है न्यूक्लिक एसिड टेस्ट इस जाँच से 3 दिन पुराना एचआईवी और हैप्टाइटस भी पकड़
में आ जायेगा. यह तकनीक अभी तक बिहार के एक निजी अस्पताल ने लगा रखी है. वो लोग जाँच
के नाम पर अनाप-शनाप पैसा ले रहे हैं. हम इन सारी बातों को बोलो जिंदगी के माध्यम से
सरकार और जन-जन तक पहुँचाना चाहते हैं.
पहले लोग ब्लड नहीं देते थें लेकिन आज लोग
ब्लड देना सीख रहे हैं, हमलोग कहीं भी खड़े हो जाते हैं, लोगों से ब्लड के लिए आग्रह
करते हैं तो देखिये आज सरकार को भी हमलोगों से आग्रह करना पड़ता है कि भाई ब्लड कैम्प
करना है आप आइये. पर हमें इस बात का जरा सा भी घमंड नहीं है, हम सरकार के अभिन्न अंग
हैं और हमारा सामाजिक दायित्व है कि समय-समय पर हमलोगों को सेवा के भाव को और विस्तृत
करने की जरूरत है और ब्लड एक ऐसा माध्यम है जिससे जीते जी आप बहुत लोगों की सेवा कर
सकते हैं. जब 60-65 साल के बड़े बुजुर्ग आकर हमारे पैर पकड़ते हैं तो सच कहें उस समय
मेरा दिल बैठ जाता है और ऐसा लगता है कि यदि हमारे पास 200 यूनिट भी ब्लड हो तो हमलोग
उनको ऐसे ही दे दें. आज बाहर से ब्लड लेने आते हैं लोग, कोई मरीज पीएमसीएच से आ गया,
कोई आइजीएमएस से आ गया. ब्लड नहीं मिलने की वजह से आप उसे तड़पते देखिएगा कि उसके पास
ब्लड नहीं है और डोनर नहीं है तो बहुत दुःख होता है. ऊपर से यहाँ के सारे ब्लड बैंक
का रवैया बहुत खराब है. आज हमलोग ब्लडबैंक को लेकर बहुत कुछ सोच रहे हैं. बहुत कुछ
करने का प्रयास भी कर रहे हैं, बहुत सारी कम्पनीस को बुलाकर उनसे आईडिया ले रहे हैं
कि एक नेक नॉन-कमर्शियल ब्लड बैंक को सही ढंग से कैसे स्थापित करें. कई सारे लोगों
को ऐसा लगता है कि आखिर हमलोग इस तरह के ब्लड बैंक मॉडल को कैसे चला पाएंगे...! तो
मैं उन सभी से यही कहूंगा कि हमलोग इसे आमजनों के सहयोग और भगवान के आशीर्वाद से सही
और सुचारु ढ़ंग से चलाएंगे. हमारे पास अपना फंड है, हमें किसी भी लेवल पर किसी भी तरह
के सरकारी फण्ड की जरूरत नहीं है ब्लड बैंक के लिए. और आजतक यहाँ जो भी ब्लड बैंक हैं
और उसमे जो-जो चीजें नहीं हैं, हमलोग चाहेंगे कि हमारे ब्लड बैंक में डे वन से सारी
जरुरी चीजें मिलें, हमलोग स्टेप-बाई-स्टेप सारे टेस्टों को अपने यहाँ मुहैया कराएँगे
और एफआरएसएस मशीन भी लगाएंगे. हमलोगों को इससे एक पैसे की भी कमाई करने का मकसद नहीं
है. यदि हमलोग कंपनियों को प्लाज्मा बेचेंगे तो फैक्टर 8 की मांग करेंगे और आजतक इंडिया
में किसी ने भी प्लाज्मा के बदले फैक्टर 8 लेने की डील कंपनियों से नहीं की है, क्यूंकि
सबका अपना कॉमर्शियल मोटो रहता है. यह डील करने का हमलोगों का यह मकसद है कि फैक्टर
8 दवा हेमोफिलिया के मरीज को आसानी से कम दाम पर उपलब्ध कराके सेवा कर सकें. हमलोगों
का प्रयास होगा कि हमारे ब्लड बैंक में बिना रिप्लेसमेंट प्रोसेसिंग फी के लोगों तक
ब्लड मुहैया हो सके.
अमिताभ बच्चन और शाहरुख़
खान से कैसे मिलना हुआ ? - 2013 में हमलोग बतौर ऑडियंस केबीसी में गए थें. हमें सिदार्थ
बासु सर ने बुलाया था. उस शो में कार्यक्रम समाप्त होने के बाद अमिताभ बच्चन जी ने
लगभग 15 मिनटों तक हमसे बात की थी. उन्होंने हमसे पूछा कि "आपलोग ब्लड बैंक कब
से शुरू करना चाहते हैं ?" तो हमलोगों ने बताया कि जैसे ही हमें पर्याप्त जगह
मिल जायेगा. तो उन्होंने हमसे कहा कि "जब भी ब्लड बैंक शुरू हो जाये आप हमें खबर
जरूर भेजिएगा." केबीसी में हमलोग कुल 20 लोग गए थें और उस ग्रुप का नेतृत्व मैं कर रहा था. अमित जी से हमलोगों ने 51 जोड़ियों की शादी की चर्चा भी की जिसे सुनकर अमित
जी काफी प्रभावित हुए.
फिर 2015 में फैन फिल्म
के प्रमोशन के दौरान शाहरुख़ खान ने भी हमें इन्वाइट किया था जिसमे इंडिया से 10 लोगों
को बुलाया गया था, जिसमे एक मैं भी था. शाहरुख़ एक-एक करके सभी से पूछ रहे थें कि 'आप
किसके फैन हैं ?" सभी लोगों ने कहा - "सर, हमलोग तो बस आपके ही फैन हैं."
जब उन्होंने मुझसे पूछा कि "आप किसके फैन हैं ?" मैंने कहा कि "मैं तो ब्लड डोनेशन का फैन हूँ."
इस बात को सुनकर शाहरुख़ को काफी आश्चर्य हुआ तो उन्होंने मुझसे पूछा कि "मैं ब्लड
डोनेशन के लिए क्या कर सकता हूँ..?" तो मैंने कहा- सर, आप चाहें तो अपने जन्मदिन
के दिन, अपनी फिल्म रिलीजिंग के दिन ब्लड डोनेट कर सकते हैं. फिर उन्होंने पूछा
"और क्या कर सकता हूँ ?" तो मैंने कहा- आप चाहें तो अपनी फिल्म में ब्लड
डोनेट करते हुए कोई सीन डाल सकते हैं, जिससे लोग जरूर जागरूक होंगे इसके प्रति. देखिये
हमलोग जब भी किसी सेलिब्रिटी के पास जाते हैं तो हमारा यही मकसद होता है कि हम उनके
द्वारा लोगों तक ब्लड डोनेशन के प्रति जागरूकता के मैसेज पहुंचाएं, जिसमे हमलोग लगातार
सफल भी हो रहे हैं.
क्या है 51 जोड़ियों
की शादी का कॉन्सेप्ट ? - हमलोग 2009 में जब
माँ वैष्णो देवी सेवा समिति बनायें तो हमलोगों ने पैसे भी इकट्ठे कर लिए, पर कोई समाज
सेवा का काम समझ में नहीं आ रहा था तो हमलोगों ने माँ भगवती पर ही छोड़ दिया कि वही
जो कराना होगा करेंगी. फिर अचानक से एक दिन हमलोगों ने न्यूज़ में देखा कि वैशाली में
राजपाकर जगह पर एक साथ कई शादियां कैंसल हो गयी हैं. फिर हम न्यूज़ में दिए गए पते की
मदद से अगले दिन वहां पहुँच गएँ और फिर वहीँ से शादी का कार्यक्रम शुरू हो गया जो पिछले
9 वर्षों से लगातार जारी है. अभी तक जो हमलोगों ने 51 जोड़ों की शादियों का बीड़ा उठाया
है वो लगातार चल रहा है. इस साल भी जुलाई, 2019 में श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में भव्य
कार्यक्रम है और मैं बोलो जिंदगी के माध्यम से लोगों से निवेदन करता हूँ कि यदि आपके
आस-पड़ोस में कोई ऐसी जरूरतमंद लड़की है जिसकी आयु 18 साल से ऊपर है और उसके लिए परिवारवाले
वर खोज चुके हैं मगर पैसे के आभाव के कारण शादी में दिक्क्त हो रही है तो वो मुझसे
आकर मिल सकते हैं. हमलोगों को काफी आश्चर्य होता है कि जिन जोड़ों की शादी पहले यहाँ
से हो चुकी है वो इस कार्यक्रम में आकर बहुत ख़ुशी से श्रमदान करते हैं.
सबसे पहले जब हमलोगों
ने यह निर्णय ले लिया कि हमें एक साथ 51 शादियां करानी हैं तो महाराणा प्रताप भवन एक
संस्था है उन्होंने कहा कि, यदि आपलोग समाजहित में कोई भी कार्यक्रम करेंगे तो हम जीवन
भर आपको निशुल्क सेवा प्रदान करेंगे. इस बात से हमें काफी हौसला मिला, क्यूंकि महाराणा
प्रताप भवन के द्वारा निशुल्क सेवा दने के बाद हमारा एक लाख रुपये का किराया बच रहा
था. जब कोई नए तरह का काम करता है तो थोड़ी बहुत परेशानी होती है. ईश्वर की हमपर बहुत
ही कृपा है और समय-समय पर सहयोग मिलता रहा है. न्यूज़ 24 की मालकिन अनुराधा प्रसाद तो
डे वन से इस संस्था से जुड़ी हुई हैं. शुरूआती दौर में तब परेशानी हुई थी जब कुछ जोड़ियां
सामान के लालच में शादी के लिए आ जाती थीं. लेकिन अब वैसा कुछ नहीं होता क्यूंकि उसके
पहले हम अच्छे से रिसर्च और पूरी जाँच-पड़ताल करते हैं. हमारे समूह में ज्यादातर लोग
व्यवसायी हैं और उनके दूर-दराज़ के ग्राहक भी हैं तो हमलोग उनको भी ये सारी जानकारियां
देते हैं. और लगभग प्रत्येक वर्ष 1000 बैनर बनवाकर हर एक ग्राहक को देते हैं, और वे
लोग अपने जगह जाकर लगवाते हैं . बैनर पर हमारा नंबर और पता लिखा रहता है जिससे वो लोग
हमसे सम्पर्क करते हैं.
क्या है शादी की प्रक्रिया
? - जिन जोड़ों की शादी होती है उनका हम सबसे पहले रजिस्ट्रेशन करते हैं, फिर कोर्ट
से एफिडेविट करवाते हैं कि जो भी शादी हमारे यहाँ हो रही है उसमे वर-वधु दोनों बालिग
हैं तथा बिना किसी दहेज़ के शादी की रस्म हो रही है, फिर हमलोग वर-वधु के परिवारवालों
की काउंसिलिंग करते हैं. इसके बाद अच्छे मुहूर्त वाले दिन उनकी शादियां करा देते हैं.
जब हमने संस्था बनायीं
थी तब सिर्फ 3 लोग थें. अगले सप्ताह आते-आते 11 लोग हो गए और आज लगभग 300 लोग हैं.
हमलोगों का एक मकसद है, यदि हम अपने समाज के लिए एक प्रतिशत भी कोई नेक काम कर लेते
हैं तो हमारा जीवन सार्थक हो जायेगा.
No comments:
Post a Comment