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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Saturday 20 April 2019

फैमली ऑफ़ द वीक : चित्रकार शुभ्रा सिन्हा की फैमली, त्रिलोकनगर, अगमकुआं,पटना

20 अप्रैल, शनिवार को 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार तबस्सुम अली) पहुंची पटना के त्रिलोकनगर, अगमकुआं इलाके में चित्रकार शुभ्रा सिन्हा की फैमली के घर. जहाँ हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में बिहार के जानेमाने कार्टूनिस्ट पवन टून भी शामिल हुयें.





स्पेशल गेस्ट के साथ बोलो ज़िन्दगी की टीम 




इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों शुभ्रा की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.






शुभ्रा सिन्हा की फैमली 
फैमली परिचय- कुछ बोल-सुन नहीं पानेवाली आर्टिस्ट शुभ्रा ने अभी 12 वीं पास की है और ग्रेजुएशन आर्ट्स कॉलेज से करना चाहती है. जुलाई,2018 से वह शनिवार और रविवार को पटना के महाराजा कॉमर्शियल काम्प्लेक्स के पास ज्योत्स्ना आर्ट्स सेंटर में पेंटिंग और डांस क्लास करने जाती है. वहां डांस और पेंटिंग दोनों का ही एक एक हजार फ़ीस है लेकिन इसकी प्रतिभा को देखकर इंस्टीच्यूट की ऑनर मैडम ने शुभ्रा के लिए फ़ीस माफ़ कर दिया है.


शुभ्रा के पिता अंजनी कुमार इस्लामपुर के वित्तरहित कॉलेज में टीचिंग करते हैं. माँ बिन्दा सिन्हा हाउसवाइफ हैं. शुभ्रा की बड़ी बहन श्वेता सिन्हा ग्रेजुएशन कर जेनरल कम्पटीशन की तैयारी कर रही है. छोटा भाई आदित्य राज 12 वीं करके इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है.



कार्टूनिस्ट पवन टून के साथ शुभ्रा 
शुभ्रा का एचीवमेंट - 14  नंबर, 2015 , बाल दिवस की शाम पटना के बिहार बाल भवन किलकारी में जिन 18 प्रतिभावान बच्चों को ‘बाल श्री सम्मान’ से सम्मानित किया गया उनमे से एक थी शुभ्रा सिन्हा जिन्हे पेंटिंग के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए सराहा गया.






शुभ्रा की बनाई पेंटिंग्स 
पुस्तक मेला 2012 -2013 , बिहार दिवस 2013 , गाँधी संग्रहालय 2012 , राजगीर महोत्सव 2012 , इन प्रमुख जगहों पर शुभ्रा की एकल पेंटिंग प्रदर्शनियों ने धूम मचाई है. दर्जनों अवार्ड अपने नाम कर चुकी शुभ्रा की गिनती तब राष्ट्रीय स्तर पर होने लगी जब उसने दिसंबर 2013  में केंद्रीय जल बोर्ड द्वारा आयोजित पेंटिंग कम्पटीशन में तृतीय पुरस्कार जीता.  1 अक्टूबर 2015 ( सशक्त नारी सम्मान समारोह) पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल के स्टेज पर सम्मानित हो रही महिलाओं के बीच इस बच्ची को पुरस्कार पाते देख कितनो की आँखें चौंक पड़ी थीं. लेकिन कहते हैं ना कि प्रतिभा किसी उम्र की मोहताज़ नहीं होती.

शुभ्रा के पिता का सहयोग - शुभ्रा के शिक्षक पिता को वेतन थोड़ा बहुत ही मिल पाता है इस वजह से वे घर चलाने के लिए साइड से यूनिवर्सिटी, बोर्ड वैगेरह का कुछ काम कर लेते हैं. लेकिन इस आभाव के बावजूद भी अंजनी जी ने बचपन से लेकर अभी तक शुभ्रा के शौक को दबाने की कोशिश नहीं की और उसके लिए हमेशा पेंटिंग के लिए कागज, कलम और कलर की व्यवस्था करते रहें. तभी तो शुभ्रा की ओर देखकर मुस्कुराते हुए उनकी आँखों की चमक यह बयां करती है कि वो अपनी बच्ची की ख़ुशी के आगे अपनी समस्याओं को भी दरकिनार कर रहे हैं. शुभ्रा के पिता गर्व से कहते हैं - "हमारे पूरे खानदान में शुभ्रा जैसा कोई कलाकार पैदा नहीं हुआ."

मेमोरेबल मोमेंट - कुछ बोल-सुन नहीं पानेवाली शुभ्रा की लाजवाब बोलती हुई पेंटिंग को देखकर बोलो ज़िन्दगी की टीम भी हतप्रभ थी और वहीँ टीम के सदस्यों ने आज के स्पेशल गेस्ट कार्टूनिस्ट पवन जी से रिक्वेस्ट कि की शुभ्रा के इस आर्ट को एक सही प्लेटफॉर्म दिलाएं. पवन जी ने भी वादा किया कि वे शुभ्रा के लिए जरूर कुछ करेंगे. और इन सारी बातों को वहीँ पास में बैठी हुई शुभ्रा सभी के होठों के मूवमेंट को देखकर  समझ गयी और मुस्कुरा उठी.

कहानी शुभ्रा की - शुभ्रा की माँ श्रीमती बिन्दा सिन्हा बताती हैं कि जब शुभ्रा ढ़ाई साल की थी तभी एहसास हुआ कि जिधर आवाज आती है वो उधर देख नहीं पा रही. तब डॉक्टर को दिखाने पर पता चला कि बोलने-सुनने में दिक्कत है. फिर 7-8  साल की उम्र में जीभ का ऑपरेशन कराए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. स्पीच थेरेपी और ईयर मशीन की वजह से कुछ वर्ड बोल सुन पाती है लेकिन बहुत असुविधा होती है. पढ़कर भी वाक्य और शब्दों को ठीक से नहीं समझ पाती लेकिन ईशारों की भाषा आसानी से समझ लेती है. बहुत छोटी उम्र में ही अख़बार में कार्टून देखकर शुभ्रा खुद से बनाने लगी. बड़ी बहन को ड्राइंग क्लास में जो होमवर्क मिलता उसे शुभ्रा कम्प्लीट करती और दीदी से भी बहुत अच्छी पेंटिंग बनाने लगी. सन्डे-के-सन्डे मोहल्ले में संतोष मेकर जी एक प्रशिक्षण केंद्र चलाते थे जहाँ बड़ी बहन के कहने पर शुभ्रा को पेंटिंग सीखने भेजा जाने लगा. साथ में छोटा भाई भी जाता जो शुभ्रा और टीचर के बीच संवाद स्थापित कराता था . (शुभ्रा की पूरी कहानी bolozindagi.com के कॉलम 'तारे जमीं पर' में पढ़ सकते हैं.)



सन्देश: मौके पर कार्टूनिस्ट पवन टून ने शुभ्रा की कलाकारी को सराहते हुए कहा कि "इतनी कम उम्र में इतना शानदार काम देखकर मैं खुद चकित हूँ. अभी चुनाव को लेकर व्यस्तता है लेकिन चुनाव बाद हम कोशिश करेंगे कि शुभ्रा के आर्ट को सिर्फ पटना में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पहचान मिले और लोग इसके लिए आगे आएं. सुनना और बोलना ये अलग बात है लेकिन शुभ्रा की सोच का लेवल बहुत हाई है जो इसकी पेंटिंग में झलकता है. ग्रेजुएट स्तर के कलाकारों के बनिस्पत शुभ्रा का काम मुझे बहुत उम्दा लगा. और मैं शुरू से ही इस तरह की प्रतिभा को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी लेता रहा हूँ तो अब मेरा फ़र्ज़ बनता है कि शुभ्रा के उज्जवल भविष्य के लिए कुछ बढ़िया प्लान करूँ." 




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