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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Sunday 7 April 2019

फैमली ऑफ़ द वीक : संजीव कुमार की फैमली, जक्कनपुर, पटना


7 अप्रैल, रविवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार व तबस्सुम अली) पहुंची पटना के जक्कनपुर मोहल्ले में संजीव कुमार की फैमली के घर. जहाँ हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में पटना नाउ वेब मीडिया के ऑनर एवं ईटीवी व महुआ चैनल के पूर्व मार्केटिंग हेड निखिल केडी वर्मा भी शामिल हुयें.

स्पेशल गेस्ट के साथ बोलो जिंदगी की टीम 



इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों संजीव कुमार की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.






फैमली परिचय- संजीव कुमार एक व्यवसाई व लेखक हैं. इनकी पत्नी सुप्रिया संत जेवियर्स कॉलेज, दीघा, पटना में कम्प्यूटर साइंस की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. बेटी शान्या श्री संत माइकल में 6 ठी क्लास में है. संजीव के पिता जी का नाम श्री नागेंद्र नाथ सिंह बिजली विभाग में लेखा सहायक के रूप में थें.  इनकी माँ श्रीमती मंजू रानी हाउसवाइफ हैं.




कैसे निर्मित हुई संजीव की पुस्तक 'उड़ान' ? - संजीव साल 2000 में कम्प्यूटर के शो रूम का बिजनेस शुरू किये थें. जब बैचलर ऑफ़ कम्प्यूटर साइंस कर रहे थें तभी व्यापर का आइडिया आया. शुरुआत में बिजनेस में लॉस हुआ. एक बार इतना लॉस हुआ कि ये 6 महीना मेंटली डिस्टर्व रहें. क्यूंकि तब इन्हें बाजार की उतनी समझ नहीं थी. संजीव बताते हैं- "एक दिन कुछ लोग मेरे पास कम्प्यूटर खरीदने आएं. वे अनाथाश्रम जाकर जन्मदिन मानाने का प्लान कर रहे थें. मैं भी उनके साथ गया तो उन बच्चों को देखकर थोड़ी करुणा पैदा हुई. उसके बाद मन में आया कि इन बच्चों के लिए कुछ करूँ. अगर यूँ ही उनके नाम पर पैसे मांगता तो बहुत लोग शक की निगाह से देखतें, फिर मैंने सोचा कलम के माध्यम से समाज की मानसिकता भी बदलूँ और उससे जो पैसे आएं उनसे उन बच्चों की हेल्प करूँ." 

संजीव की पहली कहानी संग्रह की किताब 'उड़ान' आयी 2017 में जिसका विमोचन पद्मश्री सी.पी.ठाकुर जी के हाथों उसी अनाथाश्रम में हुआ था. संजीव को स्कूल के दिनों से ही लिखने का शौक था और जब 10 वीं में थें तभी राज्य स्तरीय कहानी प्रतियोगिता में इनका चयन हुआ था. 37 कहानियों के संग्रह 'उड़ान' में एक कहानी है 'वो मनहूस लड़की' जो बोल हरियाणा रेडियो चैनल से 72 देशों में 2018 में प्रसारित हो चुकी है. इस कहानी पर संजीव को बहुत अच्छे अच्छे कॉम्प्लिमेंट मिलें. इनकी नयी किताब 'अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो' की तैयारी चल रही है जिससे मिलनेवाला पैसा जायेगा शहीद की फैमली को. इस किताब में पटना के ऐसे 11 संस्थानों के बारे में जिक्र है जो देश के लिए काम कर रहे हैं और 21 कहानियां देशभक्ति व अन्य विषयों पर केंद्रित है.


सुप्रिया को क्यों ससुराल मायके जैसा लगता है ?-  संजीव कुमार की पत्नी सुप्रिया के पिता जी आर्मी में थें. इन्हें सिंगिंग का भी शौक है. जब बोलो जिंदगी टीम को यह बात पता चली तो सबने उनसे गाने का रिक्वेस्ट किया. फिर उन्होंने अपनी पसंद के दो प्यारे गीत गायें जो कर्णप्रिय लगें. जब सुप्रिया के पिता आर्मी में थें कई जगहों पर पोस्टेड हुए तो उनके साथ कई जगहों पर फैमली को जाना पड़ा. सुप्रिया जहाँ भी रहीं वहीँ से 10-12 दिन के लिए पटना रिलेटिव के लिए आती थीं. संजीव जी के मामा सुप्रिया के पिताजी के परिचित थें. जब सुप्रिया को कम्प्यूटर लेना था तो उनके पिता को संजीव के मामा ने कहा कि मेरा भांजा है उसके शॉप से मिल जायेगा. तब संजीव जी के दुकान से ही उनका कम्प्यूटर आया. फिर सुप्रिया जी ने फोन पर ही संजीव जी से सारा कम्प्यूटर सीखा.
सुप्रिया बताती हैं- "शादी के बाद मैंने मास्टर कम्प्लीट किया. 6 साल से टीचिंग प्रोफेशन में हूँ. मैं ससुराल में कभी भी बहू जैसा नहीं रही, कभी यहाँ के लोगों ने फील ही नहीं होने दिया. ससुराल में ही जब मेरी आगे की पढ़ाई शुरू हुई तब मैं जींस पहनकर कॉलेज जाती थीं और मेरी सास साथ में रिक्शे पर बैठकर मुझे छोड़ने जाती थीं. यहीं आकर मैंने पति से बाइक और कार चलाना भी सीखा. मेरे मायके का पटना में कोई अपना पर्सनल घर नहीं है तो मेरे पूरे मायके के लोगों को पटना में जितने दिन भी रुकना होता है यहीं आकर रहते हैं. कोई झिझक नहीं कि अरे बेटी के ससुराल में रुके हैं. क्यूंकि इनलोगों ने कभी यह एहसास ही नहीं होने दिया."जब सुप्रिया जी से बोलो जिंदगी की बातचीत चल रही थी इसी बीच समय का सदुपयोग करते हुए संजीव जी सभी के लिए कॉफी बनाने में जुट गएँ. इसपर सुप्रिया जी प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहती हैं कि, "इनका ये सपोर्टिव नेचर ही मुझे बहुत पसंद आता है."


घर की लाड़ली शान्या श्री का टैलेंट - शान्या की हॉबी कई चीजों में है. कराटे में उसने कई पुरस्कार जीते हैं. पेंटिंग, राइटिंग ( छोटी-छोटी कहनाइयाँ) और रीडिंग हैबिट है. इंग्लिश चिल्ड्रन मैगजीन या चिल्ड्रन नॉवेल में इतना इंट्रेस्ट कि दो से तीन दिन में बुक खत्म कर देती है. लोगों की आदत रहती है कि वाशरूम में फोन लेकर जाने की, लेकिन इसकी आदत है बुक लेकर चली जाती है. संजीव जी के बड़े भाई आउट ऑफ़ बिहार रहते हैं, एक अमेरिकन सॉफ्टवेयर कम्पनी जो एयर क्राफ्ट डिजाइन करती है उसके टीम लीडर हैं. और वहीँ संजीव की भाभी साइंटिस्ट हैं तो उनसे फोन पर बात करके उनके मार्गदर्शन में शान्या ने अभी रिमोट कंट्रोल कार बनाना शुरू किया है.


मंजू रानी जी की अनोखी कहानी - यूँ तो संजीव की माँ एक गृहणी हैं लेकिन महिलाओं के लिए बहुत काम कर चुकी हैं. बहुत पहले सिलाई-बुनाई प्रशिक्षण का स्कूल खोली थीं और कई महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करा चुकी हैं. अभी कुछ सालों से ये दर्जी के पास से कुछ बेकार हो चुके कपड़े इकट्ठे कर हाथ से हैंड बैग बनाती हैं. रात के एक-दो बजे तक बैठकर बैग बनाती रहती हैं. इतनी मेहनत से बैग बनाकर भगवान का आशीर्वाद स्वरुप बताकर लोगों में मुफ्त वितरित करती हैं. इस बाबत मंजू जी कहती हैं कि - "श्री कृष्ण भगवान 16 हजार108 शादी किये हैं तो मेरा निश्चय है कि मैं 16 हजार बैग बनाकर लोगों को बांटूं." ये अबतक 5000 बैग बनाकर बाँट चुकी हैं. इनका मानना है कि कृष्णा उससे यह करा रहे हैं और जिसकी किस्मत में लिखा होता है उसे यह बैग मिल जाता है. बोलो जिंदगी की टीम तब बहुत भावुक हो गयी जब मंजू जी ने बड़ी ही मासूमियत से कहा कि "हमने तो कल्पना ही नहीं कि थी कि कभी हमारे काम को टीवी पर भी दिखाया जायेगा...आपलोग हमारे घर आएं तो आज बहुत ख़ुशी महसूस हो रही है."



संदेश: स्पेशल गेस्ट निखिल केडी वर्मा ने कहा कि - "हैरत में हूँ इस फैमली से मिलकर जहाँ सभी एक-से बढ़कर एक टैलेंटेड हैं और खास बात कि सभी एक दूसरे का बखूबी सपोर्ट करते हैं. तो इनकी तरह ही हर परिवार को अपने सभी सदस्यों का सपोर्ट करना चाहिए ताकि परिवार के किसी भी सदस्य के अंदर जो भी टैलेंट हो वो उभरकर सबके सामने आ सके."  







लौटते वक़्त संजीव जी की माँ ने स्पेशल गेस्ट के साथ-साथ बोलो जिंदगी टीम के सभी सदस्यों को आशीर्वाद स्वरूप खुद से बनाया हैण्ड मेड बैग भेंट किया.

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