सशक्त नारी
By: Rakesh Singh 'Sonu'



वैष्णवी ने कई पुरस्कार और सम्मान भी हासिल किये हैं . 2008 में बिहार व्यावसायिक विकलांग पुनर्वास केंद्र के सौजन्य से जबलपुर में आयोजित ओलम्पिक में जहाँ 5 राज्यों के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था वहां हैण्ड निटिंग (बुनाई) में तृतीय स्थान प्राप्त कर कांस्य पदक जीता फिर 2010 में गोल्ड मैडल जीता. उसके बाद उनका आत्मविश्वास इतना बढ़ा कि फिर कई जगहों पर आयोजित नृत्य, संगीत, हस्तकला आदि में ढ़ेरों पुरस्कार अपने नाम किये. 2009 में सामाजिक संस्था 'प्रयास' की तरफ से उन्हें दिव्यांगों के लिए किये गए प्रशंसनीय कार्यों के लिए पुरस्कृत किया गया. 2012 में मुंबई की एक संस्था द्वारा आयोजित प्रोग्राम में उन्हें महाराष्ट्र के गवर्नर ने सम्मानित किया. 2013 में उन्हें अहिल्या देवी महिला सशक्तिकरण अवार्ड दिया गया. 2013 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के हाथों बिहार महिला सशक्तिकरण अवार्ड से सम्मानित किया गया.
2014 में युवा रत्न अवार्ड दिया गया. इसके आलावा और भी कई संस्थाओं द्वारा उन्हें सम्मानित किया जा चुका है. वैष्णवी बताती हैं कि 'गांव में, परिवारों में दिव्यांगों की विवाह-शादी को लेकर कोई पहल नहीं करता, कोई उनकी फीलिंग नहीं समझता, कोई ये नहीं समझ पाता कि उनके भी सपने हैं, वो किसी का बोझ ना बनकर आम लोगों की तरह खुद का घर बसाना चाहते हैं. तो यही सब सोचते-विचारते मन में यह बात आयी कि क्यों ना उनके इस सपने को पूरा कराया जाये. फिर हमने सरकार से बात की और 2016 में बिहार सरकार से प्रोत्साहन राशि पास करवाई. उसके बाद पहली बार हमने विकलांग अधिकार मंच के तहत 'अनोखा विवाह' के नाम से दिव्यांगों की सामूहिक शादियां करवायीं जिनमे 7 जोड़े थें. इस आयोजन में बिहार के तत्कालीन राजपाल श्री रामनाथ कोविंद जी जो वर्तमान में देश के राष्ट्रपति हैं , ग्रामीण विकास कार्य मंत्री और केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद भी शामिल हुए. 2017 में हमने 9 दिव्यांग जोड़ों की शादियां करवायीं. इस आयोजन में स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया का बहुत ज्यादा सहयोग मिला. उनकी तरफ से हर जोड़े को सिलाई मशीन, बर्तन और आलमीरा देकर उनके घर बसाने के सपने को पूरा किया गया. समाज के अन्य लोगों से भी अच्छा सहयोग मिला.' एक बार वैष्णवी के मन में आया कि क्या वे भी कभी वैष्णो देवी के दर्शन कर सकती हैं? फिर अपने मित्रों के ग्रुप के साथ वहां जाने का प्लान बनाया. चढ़ाई घोड़े पर बैठकर की और वापस बैशाखी के सहारे पैदल लौटकर आयीं. उसके बाद 2012 से उन्होंने अपनी संस्था की तरफ से दिव्यांग लोगों के लोए धार्मिक -ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों की यात्रायें शुरू की. वैष्णवी जब घर से बाहर निकलकर दूर-दूर जाकर दूसरे दिव्यांग लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने लगीं तो ऐसे में उन्हें घरवालों का पूरा सपोर्ट मिला लेकिन पड़ोसी एवं रिश्तेदार ताना मारने लगें कि 'खुद का तो ठिकाना नहीं चली है दूसरों का भार उठाने.' लेकिन वैष्णवी ने कभी उनके तानों की परवाह नहीं की और सिर्फ अपने दिल की सुनी. आज वही ताना मारनेवाले लोग वैष्णवी के कार्यों की सराहना करते नहीं थकते. वैष्णवी मानती हैं कि दिव्यांगों की आज गांव-घरवालों द्वारा कराई गयी 80 % शादियां सक्सेस नहीं हो पा रहीं. फिर बाद में उन्हें या तो छोड़ दिया जाता है या उनके रहते हुए दूसरी शादी कर ली जाती है जिससे उनकी ज़िन्दगी बद से बदतर हो जाती है. या फिर लोभ में की जा रही हैं. वैष्णवी चाहती हैं कि वे दिव्यांग लड़कियों को इतना सशक्त कर दें कि वे भविष्य में कभी कोई जुल्म ना सहें. अपने अधिकारों को समझें, उसके लिए खुद लड़ें. आज भी वे अकेली बाहर निकल पाएंगी कि नहीं ये उनका परिवार तय करता है, तो आगे से वे खुद निर्णय लेकर अकेले बहार निकले, पढ़े-लिखें और आत्मनिर्भर बनें, बोल्ड बने ताकि फिर कोई उन्हें बोझ और बेचारा न समझे.
No comments:
Post a Comment