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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Saturday 8 July 2017

वेजिटेरियन होते हुए नॉनवेज खाना महँगा पड़ गया: रितु रीना, शिक्षिका, डी.ए.वी.पब्लिक स्कूल, बी.एस.ई.बी.

ससुराल के वो शुरूआती दिन 
By: Rakesh Singh 'Sonu'



मेरा मायका पटना के अनीसाबाद में है और ससुराल कृष्णा नगर में. मेरी शादी हुई 2007 में. शादी के पहले मैं प्योर वेजिटेरियन थी और यह बात ससुरालवालों को पता नहीं थी. लेकिन मन में यही सोचती थी कि अब तो कैसे भी वहां मुझे एडजस्ट करते हुए नॉनवेज की आदत डालनी पड़ेगी. जब ससुराल आयी तो एक दिन पति घर में मटन लेकर आ गए. मुझे बनाने तो आता नहीं था लेकिन मैंने किसी तरह बना ही लिया. सौभाग्य से मटन अच्छा बन गया था. मैं जब खाने बैठी तो बिना चबाये ही मटन धीरे धीरे निगल गयी. मेरा पेट एकदम भरा भरा सा लग रहा था. रात में जब डाइजेस्ट नहीं हुआ तो पूरा बोमेटिंग हो गया. बेसिन भर गया था और मेरी तबियत भी थोड़ी ख़राब हो गयी. तब मेरी सासु माँ ने मेरी बहुत हेल्प की और मेरे पति सोये ही रह गए उन्हें कुछ पता ही नहीं चला. फिर जब अगले दिन वहाँ सबको पता चला कि मैं नॉनवेज नहीं खाती हूँ तो मुझसे कहा गया कि, 'जब ऐसा है तो कोई जबरदस्ती थोड़े है, आईंदा से तुम नॉनवेज नहीं खाना.'  लेकिन फिर धीरे धीरे मैंने खुद ही आदत डाल लिया और थोड़ा थोड़ा करके खाने लगी. अब तो इतना पसंद आता है कि बिना नॉनवेज खाये हम से रहा नहीं जाता और खुद ही पति से कहते हैं कि 'आज नॉनवेज ले आइए, खाने का मन कर रहा है.'  उन्ही शुरूआती दिनों का एक और वाक्या याद है जब हम गाजर का हलवा बना रहे थें. तब नए नए हम रसोई में डब्बा भी नहीं पहचानते थें कि किसमे चीनी है और किसमे चावल. चूल्हे पर गाजर का हलवा चढ़ा था, उसमे दूध भी डाल दिए. जब चीनी डालने का समय आया तो एक डब्बे से चीनी समझकर डाल दिए और इंतज़ार करने लगे कि अब हलवा बनेगा. कुछ देर बाद मैंने देखा कि बर्तन में चावल जैसा पकने लगा. जब हम वो डब्बा चेक किये तो मालूम चला कि गलती से हम चीनी की जगह खीर के लिए रखा छोटा बासमती चावल डाल दिए हैं. फिर मैंने उसमे और दूध-चीनी डालकर फिर से पकाया और आखिर में गाजर का हलवा बन ही गया. जब मैंने हलवा घरवालों को परोसा तो किसी ने बुराई नहीं की और सब आराम से खा लिए.
  शुरू शुरू में मेरे पति की पोस्टिंग मुजफरपुर में थी. मुझे भी मन था कि उनके साथ वहाँ जाऊँ मगर वो कभी ले नहीं जाते थें. इसी बात को लेकर तब हम दोनों में बहुत झगड़ा होता था. एक दिन मैंने गुस्से में आलमीरा का पूरा कपड़ा निकालकर फेंक दिया था. फिर पति मनाने आये और जब मुझे ले जाने को राजी हुए तब जाकर मेरा गुस्सा शांत हुआ. मैं उनके साथ मुजफ्फरपुर गयी और उनके साथ वहाँ एक महीना रही भी, फिर उनका यहीं पटना में ट्रांसफर हो गया. 

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