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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Saturday, 16 February 2019

फैमली ऑफ़ द वीक : प्राची झा फैमली, महेन्द्रू, पटना


'माँ वैष्णवी ज्वेलर्स' के सौजन्य से प्राची झा की फैमली को गिफ्ट
भेंट करतें बोलो ज़िंदगी के स्पेशल गेस्ट मुकेश हिसारिया

16 फरवरी की शाम
'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार व तबस्सुम अली) पहुंची पटना के महेन्द्रू मोहल्ले में प्राची झा की फैमली के घर. जहाँ हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में सोशल एक्टिविस्ट मुकेश हिसारिया भी शामिल हुयें. उभरती हुई युवा कवियत्री प्राची झा का हाल ही में 101 कविताओं का संग्रह प्रकाशित हुआ है 'अस्तित्व मेरा खास' जिसका लोकार्पण होना बाकी है. अबतक 500 से अधिक कविताएं लिख चुकीं प्राची की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं और 50 से अधिक कवि-सम्मेलनों में ये शिरकत भी कर चुकी हैं. प्राची ज्यादातर नारी प्रधान कवितायेँ लिखती हैं और उसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है...


बोलो जिंदगी की टीम 
इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है रामनगरी आशियाना नगर, पटना के 'माँ वैष्णवी ज्वेलर्स' ने जिनकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों प्राची झा की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

 
फैमली परिचय- प्राची झा इंटरनेशनल स्कूल में 12 वीं की स्टूडेंट हैं. प्राची की माँ रूबी झा हाउसवाइफ हैं, पिता अनिल कुमार झा कम्पटीशन बुक्स पब्लिकेशन लाइन में हैं. मधुबनी जिले से बिलॉन्ग करनेवाले अनिल झा जी के पिता पहले यहीं कोर्ट में काम करते थें, फ़िलहाल रिटायरमेंट के बाद मधुबनी गांव में रहते हैं. इनके छोटे बेटे यानि प्राची के छोटे भाई अंकित कुमार झा अभी 10 वीं में हैं और इस बार बोर्ड एक्जाम देनेवाले हैं.

प्राची झा की फैमली 
कैसे बनी प्राची झा कवियत्री ? -  कविताएँ तो प्राची बचपन से लिखती थीं लेकिन उनकी कविताओं में महिलाओं का दर्द तब से उभरने लगा जब खुद वे एक हादसे की शिकार हुईं. इससे पहले 8 वीं क्लास में वे जिस स्कूल में थीं तो उस स्कूल के 10 वीं क्लास के एक सीनियर लड़के ने उनसे छेड़खानी की. जब प्राची ने इसका विरोध किया तो लड़के ने धमकी देते हुए सीनियर होने का रौब दिखाया और उन्हें 'लड़की' होने की औकात तक याद दिलाई. जब प्राची इसकी शिकायत स्कूल के प्रिंसिपल से करने गईं तो उल्टा प्राची को ही स्कूल प्रसाशन की तरफ से सुनने को मिला कि "अगर तुम्हें किसी लड़के ने कुछ बोल भी दिया तो यह नहीं भूलना चाहिए कि तुम एक 'लड़की' हो." उसके बाद प्रिंसिपल का रवैया यह था कि अगर प्राची माफी मांगेगी तभी आगे से स्कूल आ सकती है. लेकिन प्राची ने बिना अपनी गलती के माफी मांगने की बजाए खुद ही स्कूल जाना बंद कर दिया. वो ऐसा दौर था जब प्राची मानसिक रूप से टूटकर बिखर सकती थीं लेकिन उसने कभी अपनी हिम्मत को टूटने नहीं दिया और अपने हक़ की लड़ाई लड़ती रहीं. नतीजतन सच्चाई की जीत हुई और स्कूल के प्रिंसिपल को प्राची से माफी मांगनी पड़ी. इन सब चीजों ने प्राची के मन में इतना प्रभाव डाला कि वे नारी मन की वेदना और समाज के इस पक्षपाती रूप को खुलकर अपनी कविताओं के जरिये सामने लाने लगीं.


प्राची झा की फैमली ने 'बोलो ज़िन्दगी' से अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि "जब यह हादसा प्राची के साथ घटा तो हमसब ना सिर्फ मानसिक रूप से बल्कि आर्थिक रूप से भी काफी परेशान हुए. प्राची के पिता का इसी टेंशन को लेकर बीच में काम-धंधा भी चौपट हुआ था क्यूंकि अपने काम पर से ध्यान हटाकर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और उनके साथ अचानक खड़ी हुई समस्या पर ही उनका सारा ध्यान केंद्रित हो गया."

प्राची को लेकर क्या कहते हैं उनके माँ-बाप-  जब हमारी टीम मेंबर तबस्सुम अली ने प्राची की माँ से सवाल किया कि "अपने हक़ की लड़ाई लड़ती हुई प्राची अब जब अपनी खुद की पहचान बनाने में अग्रसर है तो ऐसे में आपको तो अपनी बेटी पर फख्र होता होगा..?" इसपर प्राची की माँ रूबी झा कहती हैं, "ऐसी बेटी हर घर में होनी चाहिए जिससे हर माँ-बाप अपने को खुशनसीब समझेंगे. हर चीज में ये अच्छी है चाहे वो पढ़ाई-लिखाई से संबंधित हो, या घर-परिवार को जोड़ने की बात हो, या कहीं भी बोल्डनेस की बात हो या फिर ईमानदारी की बात हो तो ऐसी बेटी हर घर में होनी चाहिए." वहीँ प्राची के पिता अनिल झा कहते हैं कि "शुरू-शुरू में जब प्राची कवितायेँ लिखती थी तो हमने उसके टैलेंट पर उतना गौर नहीं किया था लेकिन जब वह कवि गोष्ठियों में जाकर सराहना पाने लगी तब हमने पाया कि उसकी कविताओं का स्तर अपने समकक्ष लड़के-लड़कियों से कहीं ऊपर है. फिर हमने भी प्राची को प्रोत्साहित करना शुरू किया.


क्या कहती है प्राची ? - चार साल पहले दूसरे स्कूल में जिस टाइम मेरे साथ ये घटना घटी मैं 3 महीने स्कूल नहीं गयी तो उसी दरम्यान मेरे छोटे भाई को जो तब 6 ठी में था उसे तंग किया गया ताकि मेरे हौसले टूट जाएँ और मैं चुप बैठ जाऊं. जब प्रिंसिपल के माफ़ी मांगने के बाद मैंने फिरसे स्कूल जाना शुरू किया तो उस दौरान उक्त स्कूल में कुछ लेडीज टीचर मुझपर कमेंट करती थीं, जानबूझकर एक्जाम्स में मेरे मार्क्स काटती थीं क्यूंकि उन्हें लगता था कि उसकी वजह से दूसरे बच्चे भी जागरूक हो रहे हैं, वे चुप नहीं बैठेंगे. उन्होंने मेरे हौसलों को तोड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन मैंने फाइट किया और बात आयी गयी हो गयी. फिर भी आजतक वो टिस मेरे मन में बैठी हुई है कि मैं गलत नहीं थी तो मेरे साथ इतना गलत क्यों हुआ..? इसलिए मैं और लड़कियों को भी जागरूक करना चाहूंगी कि जो मेरे साथ हुआ फिर किसी के साथ ना हो." 

जब बोलो ज़िन्दगी के स्पेशल गेस्ट मुकेश हिसारिया ने प्राची से उसकी कोई कविता सुनने की इच्छा जाहिर कि तो प्राची ने लड़कियों को मोटिवेट करनेवाली एक कविता सुनाई.... प्राची ने बताया कि एक्जाम के बाद वह अपनी पहली कविता संग्रह की किताब का लोकार्पण करना चाहती है. तब मुकेश हिसारिया ने आस्वाशन दिया कि अगर लोकार्पण में कोई दिक्कत आये तो उन्हें बताएं वे सहयोग करेंगे. 



सन्देश- प्राची झा की फैमली के यहाँ से विदा होने से पहले बोलो जिंदगी के स्पेशल गेस्ट मुकेश हिसारिया जी ने एक वाक्या सुनाते हुए यह सन्देश दिया कि "सीतामढ़ी की डॉली झा जो अभी बैंगलोर में कार्यरत हैं, जब दिसबंर 2016 में उनके पिता का ऑपरेशन हो रहा था और उन्हें ए निगेटिव ब्लड की सख्त जरूरत थी. किसी माध्यम से वो हमतक पहुंची थीं और हमलोगों ने ए निगेटिव ब्लड डोनेट करवाया था. फिर बैंगलोर जाने के बाद डॉली झा ने अपने ऑफिस के लोगों को जोड़कर एक ग्रुप बनाया और रक्तदान की मुहीम को छेड़ दिया. और आज ठीक उससे मिलता जुलता उदाहरण हमारे बीच है प्राची झा के रूप में जिसके हौसलों की वजह से मुझे लगता है अन्य दूसरे विद्यार्थी भी अपने हक़ के प्रति जागरूक होंगे. मैं कहना चाहूंगा कि आज जो बच्चे चुप हैं उन्हें भी अपने साथ हुए अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए आगे आना चाहिए, अपने दिल की बात को सामने रखना चाहिए."
 

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