डायरी : डॉ. किशोर सिन्हा, पूर्व सहायक निदेशक, आकाशवाणी पटना
आज की सुबह वैसी ही है, जैसी पिछ्ली थी, नर्म, मुलायम, धुली सी, ललछौंहा सूरज ने मेरे कमरे की खिड़की पर वैसे ही दस्तक देकर जगाया, गौरैये की चोंच की कटर पटर् उसी तरह सुनाई दे रही थी, सुबह दरवाज़े के नीचे से हॉकर द्वारा डाले गये अख़बार को उठाते हुए यही ख्याल आया कि बदला तो कुछ भी नहीं है, सब वैसे ही तो है।
फिर भी, बहुत कुछ है जो बदल गया है। अब अख़बार की हेड लाइन पढ़ते हुए बार बार घड़ी देखने की ज़रूरत नहीं, पत्नी को जल्दी उठ के चाय का पानी चूल्हे पर नहीं चढ़ाना, आठ बजते ना बजते शेव करते हुए ये सोचते रहना कि ऑफिस की ज़रूरी फाइलें बैग में रखा या नहीं, इसकी भी दरकार नहीं। क्योंकि पिछले तीस सालों से यही क्रम चलता रहा है।
आज जब ये सब लिखने बैठा हूं और मुझे पता है कि अब कहीं जाने की कोई जल्दी नहीं है, फिर भी ऐसा कहीं से नहीं लगता कि मुझसे कुछ छूट चुका है। आकाशवाणी की सेवा से मुक्त होकर मेरी घर वापसी ज़रूर हुई है, लेकिन आकाशवाणी और रेडियो मेरे मन- प्राणों में इतना समाया हुआ है कि लगता ही नहीं कि मैं इस से अलग हुआ हूँ।
लगता है, कल की ही बात हो. 1988 में रीवा की मेरी पहली पोस्टिंग से लेकर आज जनवरी 2019 में अवकाशप्राप्ति तक के सफ़र में कई सहयात्री हुए, कुछ आज तक साथ हैं, कुछ ने साथ छोड़ दिया। इस पूरे सेवा काल में विभाग ने मुझसे शत-प्रतिशत काम की उम्मीद की, मैंने अपना दो सौ प्रतिशत दिया। सेवा, निष्ठा, ईमानदारी में मैंने कोई कमी नहीं की, बावजूद इसके जो मिलना था, वो नहीं मिला, तरक्की नहीं मिली, सेवा का आर्थिक लाभ नहीं मिला, ये दुख रहा, फिर भी, इस संस्था में रहते हुए लोगों से जो प्यार, दुलार, सम्मान, हौसला मिला, उसके सामने जो हासिल नहीं हुआ, वो दुःख बहुत छोटा है।
इस लंबे सफ़र में ऐसा नहीं कि तकलीफें नहीं थीं, कई जगह तो, लोगों द्वारा तकलीफें पैदा की गयीं, जान बूझकर, मेरे निर्दोषपन् के बावजूद, पर मैंने उनके लिए यही कहा कि 'हे ईश्वर, इन्हें माफ करना, क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।
उन तकलीफों से जूझना, पार पाना कतई आसान नहीं था, पर मेरी दुनिया ऐसे क्रूर, संवेदनहीन लोगों से अलग और ऊपर थी, जिसने मुझे अपरिमित प्यार दिया, सहारा दिया, सम्मान दिया, मेरे ज़ख्मों को सहलाया, मुझे समस्याओं के कीचड़, धूल भरे कंटकाकीर्ण रास्तों से निकाला, और दिया अटूट विश्वास।
मेरी कोशिश रहेगी कि उस विश्वास को कभी खंडित ना होने दूँ। उस विश्वास का दायरा बहुत बड़ा है। उसमें मेरे साथ हर पड़ाव पर मेरा साथ देने वाले मेरे मित्र और सहकर्मी हैं, मुझपर अपना निर्व्याज स्नेह आशीर्वाद बरसाने वाले अग्रज, गुणीजन हैं, मुझे अटूट भाव से चाहने वाले उद्घोषक कंपीयर्, नाट्य और संगीत कलाकार, रंगकर्मी तथा साहित्यकारों की बहुत बड़ी दुनिया है, मैं सबका हृदय से कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने अपने आत्मीय, स्नेह-बंधनों में मुझे आबद्ध रखा, मेरे इस लंबे सफ़र में साथ निभाया।
"सितारों के आगे जहाँ और भी हैं", हाँ, इसके बाद एक और बड़ी दुनिया प्रतीक्षारत है, जहाँ काम है, चुनौतियां हैं, और उम्मीदें भी। बस यही कहूंगा,
"ऐ फ़रिश्ते तौफ़ीक दे मुझे कि जो भी करूँ,
फ़ना भी होऊँ तो लगे कुछ किया ही नहीं। "
No comments:
Post a Comment