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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Sunday 17 March 2019

फैमली ऑफ़ द वीक : मोनिका प्रसाद जी की फैमली, पाटलिपुत्र कॉलोनी, पटना


17 मार्च, रविवार को 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार तबस्सुम अली) पहुंची पटना के पाटलिपुत्र कॉलोनी में गौरैया क्रियेशन्स की ऑनर मोनिका प्रसाद जी की फैमली के घर. जहाँ हमारी स्पेशल गेस्ट ए.एन. कॉलेज पटना की वाइस प्रिंसिपल एवं ज्योग्राफी डिपार्टमेंट की एच.ओ.डी. प्रो.पूर्णिमा शेखर सिंह भी शामिल हुईं. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है रामनगरी आशियाना नगर, पटना के 'माँ वैष्णवी ज्वेलर्स' ने जिनके सौजन्य से हमारी स्पेशल गेस्ट के हाथों मोनिका प्रसाद जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

स्पेशल गेस्ट के साथ बोलो ज़िन्दगी की टीम 
फैमली परिचय- मोनिका प्रसाद जी का मायका यू.पी. में है. इनके पति यशेंद्र प्रसाद फिल्ममेकर एवं राइटर हैं. वे जी पुरवैया, पटना में क्रिएटिव हेड व जी टेलीफिल्म्स, मुंबई में डायरेक्टर-प्रोड्यूसर रह चुके हैं. मुंबई में ज्योग्राफी एन्ड एनवायर्नमेंटल स्टडीज के लेक्चरर रह चुके हैं. इन्होने व्यक्ति, परिवार एवं समाज को सनातन धर्म से सुसंस्कृत एवं सुसंगठित करने हेतु 'आर्यकृष्टि वैदिक साधना विहार चैरिटेबल ट्रस्ट' की स्थापना भी की है.



 मोनिका जी के बेटे वेदेंद्र प्रसाद रेडिएंट स्कूल में 10 वीं के स्टूडेंट हैं और अभी बोर्ड एक्जाम दे रहे हैं. मोनिका जी के ससुर जी श्री आर.एस. प्रसाद स्टेटिस्टिक्स डिपार्टमेंट में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर थें. मोनिका जी की सास नहीं हैं, इनकी शादी के पहले ही उनका देहांत हो चुका था. फैमली परिचय देने के साथ ही मोनिका जी ने बताया कि "मेरी सासु माँ ने जो संस्कार इस घर में शुरू कर रखे थें उसको मैंने यहाँ आकर जारी रखें. यहाँ है कि सुबह उठकर पहले नहाकर, पूजाकर के ही कुछ काम करना है जबकि मेरे मायके का सिस्टम कुछ और था लेकिन मैंने एडजस्ट किया और वही आदत बाद में मुझे बहुत अच्छी लगने लगी. मैं प्योर वेजिटेरियन हूँ और मेरे मायके में प्याज-लहसुन तक नहीं यूज होता है तो भगवान की कृपा से मुझे ऐसा ससुराल मिला जहाँ के लोग प्याज-लहसुन तक नहीं खाते हैं."


बोलो ज़िन्दगी के साथ अपने संस्मरण साझा करतीं मोनिका प्रसाद 

गौरैया क्रियेशन्स की शुरुआत कैसे हुई ? -
पिछले साल अगस्त महीने में मैंने पॉलीथिन नहीं आने देने के लिए अपने लिए घर में कुछ बैग्स बनायें. उसको लेकर जब हम बाजार गएँ और सब्जियां लेने लगें तो देखा कि घर में पॉलीथिन बहुत कम आ रही हैं. फिर लोगों ने पूछा कि यह बहुत अच्छी चीज है, क्या मार्केट में मिल रहा है..?  तो मेरे दिमाग में आइडिया आया कि पॉलीथिन को रिप्लेस करने के लिए इस प्रोडक्ट को मार्किट में लाना चाहिए और यहाँ पॉलीथिन बैन होने के बहुत पहले से ही मैंने इसकी शुरुआत कर दी थी.
ये बैग्स कॉटन और जूट के बने होते हैं जो इको फ्रेंडली हैं. शुरू में अपने आइडिया को लेकर मैं एक लेडिस के ग्रुप में गयी और उन्हें बताया तो उन्होंने कहा कि प्रोडक्ट लेकर आओ हम देखते हैं. अगले दिन हम लेकर गएँ तो जितनी लेडिस थीं सबने मुझसे खरीदा. वहां से जो रिस्पॉन्स मुझे मिला तो आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली. जूट कैनवास के बने बैग 100 रूपए में सेल करती हूँ. 150 रूपए के सेट में 5 छोटे बैग्स होते हैं. एक मीडियम साइज वाला बैग 200 रूपए में और सबसे बड़ा साइज वाला बैग सात पैकेट वाला जो मल्टीपर्पस होता है उसका रेट है 350 रूपए. जूट कैनवास के बैग की खासियत है कि वो जल्दी फटेंगे ही नहीं. इसमें यूज होनेवाले मैटेरियल्स कुछ हम कोलकाता से मंगवाते हैं तो बाकि पटना में ही मिल जाते हैं.





गौरैया क्रियेशन्स ही नाम क्यों? -  मोनिका जी ने बोलो जिंदगी टीम को बताया कि "मैं चूँकि बिना नाम के इसको स्टार्ट करनेवाली थी, लेकिन पति की सलाह पर मैंने इसे ब्रांड के रूप में पेश किया. तब गौरैया नाम रखने पर मोहर लगी क्यूंकि इसके माध्यम से देश से लुप्त हो रही गौरैया पक्षी को बचाने का सन्देश भी जा रहा था. फिर बैग्स पर छपने वाले स्लोगन बनें जो हिंदी के अलावा डिफरेंट लैंग्वेज जैसे जर्मन, फ्रेंच, चाइनीज़ आदि में लिखे होते हैं. लोगों को जागरूक करनेवाले कुछ स्लोगन यूँ हैं, "खुद को बचाएं, धरती बचाएं. कॉटन-जूट कैनवास के बैग अपनाएं." "आई प्रोटेक्ट अर्थ, से नो टू प्लास्टिक." "प्लास्टिक त्यागें, खुद बचें धरती बचाएं, हमेशा पर्यावरण संरक्षी झोले अपनाएं." मेरा  मानना है कि पॉलीथिन जो गवर्नमेंट बंद कर रही है उससे अच्छा है कि उससे पहले हमें खुद एक स्टेप आगे बढ़ना होगा और कोई ऐसी चीज यूज करनी चाहिए कि हमें प्लास्टिक उपयोग ना करना पड़े. हम कहीं बैठते हैं तो वहाँ भी लोगों को अवेयर करते हैं कि प्लास्टिक मत यूज करें, घर से अपना बैग लेकर जाएँ."

प्रो. पूर्णिमा शेखर को गौरैया क्रियेशन्स के जूट बैग दिखातीं हुईं मोनिका प्रसाद 
पहचान कब मिली ? - मोनिका जी बताती हैं, "पिछले साल के सितंबर में पटना के ज्ञान भवन में महिला उद्योग मेला लगा था उसके पहले हम अपने प्रोडक्ट को व्हाट्सअप पर सर्कुलेट कर चुके थें. फिर महिला उद्योग मेले की अध्यक्ष उषा झा ने मुझसे कॉन्टेक्ट किया और मुझे मेले में फ्री ऑफ़ कॉस्ट टेबल अरेंज करके दिया जहाँ हम पांच दिनों तक अपना प्रोडक्ट्स बनाकर सेल के लिए रखें. वहाँ बहुत अच्छे रिस्पॉन्स के बाद मेरे काम को एक पहचान मिली और मैंने होम डिलीवरी शुरू कर दी. अब मुझे कई जगहों से डिस्ट्रीब्यूट करने के लिए बैग्स बनाने के ऑर्डर मिलने लगे हैं. जब मेरे प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ने लगी है तो मैं कुछ स्थानीय जरूरतमंद महिलाओं को स्वरोजकर देने लगी. जिन महिलाओं के घर में सिलाई मशीन है उन्हें फोनकर के घर बुलाती हूँ. वे आती हैं तो मैं कटिंग करके मैटेरियल और धागा दे देती हूँ, फिर वे घर ले जाकर सिलकर मुझे दे देती हैं.

कहाँ-कहाँ सप्लाई हो रहा है ? - मोनिका जी कहती हैं, "अभीतक मेरा इको फ्रेंडली बैग पटना से बाहर मुंबई, गुड़गांव और इंडिया से बाहर अमेरिका, जर्मनी, इस्राइल तक जा चुका है. वहाँ तक पहुँचने की वजह सोशल मीडिया है. फेसबुक के जरिये लोगों ने देखा और व्हाट्सअप पर सर्कुलेट हुआ. विदेश वाले कस्टमर्स ने मेरे प्रोडक्ट को फेसबुक पर देखा और फिर इंडिया गए अपने फ्रेंड से मंगवा लिया. इंडिया में तो कुरियर के माध्यम से मैं भेजती हूँ लेकिन अब ऑनलाइन मार्केटिंग की शुरुआत करने की योजना है.

इसके साथ-साथ मैं सेमिनार व यूनिवर्सिटी के लिए जूट के कॉन्फ्रेंस बैग भी बनवा रही हूँ . सबसे बड़ा ऑर्डर मुझे श्री सीमेंट्स वालों की तरफ से 1000 बैग्स का मिला था जो उन्होंने डिस्ट्रीब्यूशन के लिए बनवाया था. और ये हमने अन्य महिलाओं के सहयोग से तीन-चार दिन में बनवाये थें. स्थानीय महिलाएं भी बैग्स सिलकर खुश हैं और बराबर उनका फोन आता है कि भाभी जी और ऑर्डर कब आ रहे हैं."






सन्देश : बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक की स्पेशल गेस्ट प्रो. पूर्णिमा शेखर सिंह ने मोनिका जी के प्रयास की सराहना करते हुए अपने सन्देश में कहा कि, "प्लास्टिक की बुराइयां देखते हुए कि यह किस तरह से पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहा है, अब यह समय की मांग हो गयी है कि प्लास्टिक को 'नो' कहा जाये. क्यूंकि यदि हमारा पर्यावरण सुरक्षित है तो हम भी सुरक्षित हैं. तो इस कड़ी में मोनिका जी ने जो इको फ्रेंडली बैंग्स का निर्माण शुरू किया है वो काबिले तारीफ है. यह कम आय वाली महिलाओं को स्वरोजगार भी मुहैया कराते हुए महिला उधमिता की सार्थक मिसाल भी पेश कर रही हैं."

मोनिका जी की फैमली से विदा लेते वक़्त यशेंद्र प्रसाद जी ने बोलो जिंदगी को इस बात का शुक्रिया कहा कि चूँकि वे खुद  ए.एन. कॉलेज, ज्योग्राफी ऑनर्स के स्टूडेंट रह चुके हैं तो आज गुरु के रूप में कॉलेज की ज्योग्राफी डिपार्टमेंट की एच.ओ.डी. प्रो. पूर्णिमा शेखर मैम का स्पेशल गेस्ट बनकर उनके घर पर आना बहुत ही सरप्राइजिंग कर गया.

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