पटना, "कुछ काम करो, कोई तुम्हें लड़की भी नहीं देगा...." कलाकार तो हो, मगर करते क्या हो...?"
अगर लोग किसी कलाकार से यह पूछें तो उसे कितना दर्द महसूस होता होगा..... एक सफल कलाकार के लिए उसकी कला ही उसका काम है, उसकी तपस्या है फिर भी लोग अगर उसकी वेदना समझ ना पाएं तो इससे दुखद और क्या होगा...? कला और कलाकार से जुड़े कुछ ऐसे ही तल्ख़ हकीकत का सामना हो रहा था पटना के गाँधी मैदान में.
30 जनवरी, पटना के गाँधी मैदान में महात्मा गांधी के शहादत दिवस के अवसर पर संस्था 'लोक पंच' की प्रस्तुति "नाटय शिक्षक की बहाली" (यह नाटक नहीं आंदोलन है) का जहाँ मंचन हुआ. इस नुक्कड़ नाटक के जरिये रंगकर्मियों के दर्द को समाज से रु-ब-रु कराया गया.
साथ-ही-साथ कलाकरों ने सरकार से मांग की कि बिहार के स्कूल और कॉलेजों में नाटक की पढ़ाई हो एवं नाटय शिक्षक की बहाली हो. इसके लिए समस्त रंगकर्मी साथियों को सहयोग देने की अपील की.
और कार्यक्रम के समापन पर जाते-जाते कलाकारों द्वारा लगाया गया यह नारा दर्शकों के अंतर्मन में भी गूंज उठा - 'जय रंगकर्म', 'जय रंगकर्मी', 'जय बिहार'....
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