11 अगस्त, रविवार की सुबह 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', तबस्सुम अली एवं प्रीतम कुमार) पहुंची पटना के नाला रोड इलाके में पर्यावरण संरक्षक नरेश अग्रवाल के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में मुकेश अम्बानी द्वारा रियल हीरो के ख़िताब से नवाजे गए समाजसेवी गुड्डू बाबा भी शामिल हुएं. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों नरेश अग्रवाल की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.
फैमली परिचय- पेशे से कपड़ा व्यवसाई नरेश अग्रवाल के पिता जी को पटना में आये लगभग 40 -45 साल हो गएँ. ये राजस्थान के चूरू जिले से बिलॉन्ग करते हैं. पिताजी श्री गोपी राम अग्रवाल भी व्यापारी हैं. माँ पुष्पा देवी हाउसवाइफ हैं. परिवार में एक छोटा भाई प्रवीण अग्रवाल, बड़ी बहन सुमन अग्रवाल और एक छोटी बहन रूबी अग्रवाल हैं. दोनों बहनों की शादी हो चुकी है. भाई प्रवीण अग्रवाल एसबीआई, रफीगंज में कार्यरत है. नरेश जी की पत्नी हैं श्वेता अग्रवाल. 8 साल का एक बेटा है उमंग जो सेकेण्ड क्लास में पढ़ता है.
प्लांटेशन का शौक - बचपन से पेड़-पौधों व जानवरों से बहुत लगाव रहा है. आज से साल-डेढ़ साल पहले पटना के बेली रोड में रोड चौड़ीकरण के नाम पर पेड़ कट रहे थें. शायद सरकार की मज़बूरी रही होगी फिर भी बहुत पेड़ काटे गएँ. 100 -150 सौ साल पुराने पेड़. वहां मौजूद अधिकारीयों से नरेश अग्रवाल ने सम्पर्क साधा. पूछना चाहा - "ये क्यों हो रहा है और इसके एवज में पेड़ कहाँ लगाए जा रहे हैं." उन्हें राजीवनगर का पता दिया गया यह कहते हुए कि "जाइये आप पर्यावरण विभाग के औफिस में मिलिए यहाँ कुछ बोलने से फायदा नहीं है." वहां जाने पर भी कोई सटीक जवाब नहीं मिला. फिर नरेश जी ने पर्यावरण विभाग को मेल किया. मेल किये महीने भर बाद भी कोई रिप्लाई नहीं आया. फिर वही मेल इन्होने फॉरवर्ड किया राज्य के मुख्यमंत्री को. उनकी तरफ से वो मेल नरेश जी को फॉरवर्ड किया गया पर्यावरण विभाग को अटैच करके. लेकिन पर्यावरण विभाग को उसका भी डर नहीं था कि मुख्यमंत्री ने यह मेल फॉरवर्ड किया है. कोई कार्यवाही नहीं की गयी. उस दिन के बाद नरेश जी ने ठान लिया कि अगर सिर्फ सरकार के भरोसे रहें तो कुछ नहीं होने वाला. तब पटना में ऐसे ग्रिल चिन्हित किये जो गंदे पड़े थें, जिनमे पौधे सूख चुके थें. और उनकी साफ़-सफाई करते चले गएँ, उसमे प्लांटेशन करते चले गएँ. फिर जहाँ भी खाली जगह मिलती नरेश उसमे प्लांटेशन करते. और ये सिलसिला जारी रहा. ऐसे तो एक-डेढ़ सालों में इन्होने तीन-चार सौ पेड़ लगाएं लेकिन कुछ जानवर खा गए तो कुछ लोगों द्वारा उखाड़ दिए गएँ. लेकिन अभी इनकी देख-रेख में लगभग 200 पौधे होंगे जो कभी एक इंच लगाए थें वो अब 10 -15 फिट के हो चुके हैं.
चुनौतियाँ - साल भर पहले जब स्टार्ट किया था तो कई बार अपने लोग भी रोड पर देखते ग्रिल से गंदगी निकालते हुए तो घर पर आकर पैरेंट्स से शिकायत करते थें या लोगों को बोलते थें कि देखो पागल है, मारवाड़ी का बच्चा है और सड़क पर गंदगी साफ़ कर रहा है. लेकिन फिर भी अपने आप को कभी छोटा महसूस नहीं किए. जब शिकायत हुई तो सभी की तरह मेरे गार्जियन ने भी समझाया - "काम पर ध्यान दो, ये सबसे कुछ नहीं मिलनेवाला." लेकिन कहते हैं ना, आदत एवं जुनून ऐसी चीज होती है जिसे कभी आदमी नहीं बदल सकता. तो उनकी बातों को ये एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते क्यूंकि बिजनेस छोड़कर ये पर्यावरण के लिए समय नहीं दे रहे थें बल्कि सुबह 6 से 9 बजे तक के खाली वक़्त में ही इसके प्रति समर्पित रहते हैं. फिर इनका बिजनेस का समय 10 बजे के बाद शुरू होता है.
बदलाव - नरेश जी के शौक को लेते हुए इनकी कहानी जब अख़बारों में छपी तो इनपर हँसनेवाले लोगों ने भी देखा-पढ़ा तो सोचें- वाकई में ये सचाई है और जो ये कर रहा है उसका परिणाम सामने आ रहा है. तब वही लोग अब इनसे कहते हैं कि "चलो समय है तो मैं भी चलूँगा, प्लांट चाहिए तो मैं भी दूंगा." कुछ लोग बुलाकर 5 से 10 प्लांट दे देते हैं. एक समय था जब लोग पौधे उखाड़ कर फेंक देते थें, अब धीरे-धीरे पौधे बढ़ रहे हैं. आज 6 महीने में देख रहे हैं कि बाहरी लोग हों या परिवार से जुड़े लोग या फिर सरकार इतने जागरूक हैं कि हर कोई आज प्लांटेशन कर रहे हैं. और इसकी जानकारी आपको सोशल मीडिया और अख़बारों में छपी तस्वीरों से मिल जाएगी.
नरेश किराये के मकान में पिछले 25 साल से रह रहे हैं. मकानमालिक का बहुत सपोर्ट मिलता है. कई जगह मकान में लोग एक गमला तक नहीं रखने देते लेकिन इन्होने यहाँ मकान की छत पर सैकड़ों गमले रखे हैं. उसमे फल-फूल, सब्जियां उगती हैं. फिर नरेश जी बोलो ज़िन्दगी की टीम को घर की छत पर ले गएँ अपनी बागवानी दिखाने.
अन्य समाजसेवा - नरेश जी नियमित रक्तदाता हैं और हर तीन महीने पर रक्तदान करते हैं. थोड़ा बहुत लिखने का भी शौक है इसलिए सामाजिक कुरीतियों पर कुछ लिखना पसंद करते हैं. बेटियों को समर्पित उनकी एक कविता है "बेटी बोझ नहीं लाठी" जिसे इन्होने बेटियों की भ्रूण हत्या को लेकर जागरूक करने हेतु लिखी थी. ये कविता नरेश जी ने 2017 में लिखी थी जिसे प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा प्रशंसित भी किया गया है. पटना के पूर्व सीनियर एसएसपी मनु महाराज द्वारा भी प्रशंसा पत्र भेजा गया है. ये कविता अख़बार और मैगजीन में भी छप चुकी है. कविता कुछ यूँ है -
(बोझ नहीं लाठी हैं बेटियां)
बोये जाते हैं बेटे , उग जाती हैं बेटियां
खाद-पानी बेटों में, पर लहलहाती हैं बेटियां.
एवरेस्ट पर ठेले जाते हैं बेटे, पर चढ़ जाती हैं बेटियां.
रुलाते हैं बेटे, और रोती हैं बेटियां.
कई तरह से गिराते हैं बेटे, पर संभाल लेती हैं बेटियां.
माँ से प्यार है
बहन से प्यार है
पत्नी से प्यार है
फिर गर्भ में पल रही बेटी से क्यों नहीं....?
बेटे उमंग का टैलेंट - दूसरी क्लास में पढ़नेवाला मात्र 8 वर्षीय उमंग अपनी उम्र के बाकि बच्चों की तरह अपना खाली वक़्त सिर्फ खेल-कूद में नहीं बिताता बल्कि घर में रखी अनावश्यक चीजों को इकट्ठा कर उसमे साइंस ट्रिक्स जोड़कर अभी से ही कुछ इनोवेशन तैयार करने में लगा हुआ है. वह यू ट्यूब पर कार्टून शो नहीं देखकर साइंस और टेक्नोलॉजी से संबंधित चीजों को बारीकी से अध्यन करके उसे प्रैक्टिकली बनाने की कोशिश करता है.
जब नरेश जी ने बोलो जिंदगी से पूछा- आपकी नज़र में इसके लिए कोई बेहतर ऑप्शन हो तो बताइये हम इसे कहाँ ले जाएँ जहाँ इसके टैलेंट को और बल मिले. हमने सलाह दी की इसके लिए किलकारी से बढ़िया प्लेटफॉर्म और कुछ नहीं होगा. आपके घर से किलकारी बाल भवन ज्यादा दूर भी नहीं है. क्यूंकि आपके बेटे में हमे भी भविष्य के साइंटिस्ट वाले लक्षण दिखाई दे रहे हैं.
मौके पर हमारे स्पेशल गेस्ट गुड्डू बाबा ने भी नरेश अग्रवाल द्वारा पर्यावरण के प्रति किये जा रहे नेक कार्यों की दिल खोलकर सराहना की और खासकर के उनके बेटे उमंग के टैलेंट ने काफी प्रभावित किया.
अब विदा लेने से पहले बोलो ज़िन्दगी टीम ने नरेश अग्रवाल की फैमली को एक साथ बैठाया और प्रीतम कुमार ने उनका फैमिली पिक्चर क्लिक कर लिया. विदा लेते वक़्त बोलो ज़िन्दगी टीम और स्पेशल गेस्ट को नरेश अग्रवाल ने आर्युवैदिक गुणों से युक्त कपूर तुलसी का पौधा भी भेंट किया.
(इस पूरे कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है)
No comments:
Post a Comment