24 अगस्त,
शनिवार की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह
'सोनू', तबस्सुम अली एवं प्रीतम कुमार) पहुंची ईस्ट बोरिंग कैनाल रोड इलाके में आर्ट
ऑफ़ लिविंग की टीचर व सिंगर पूनम त्रिवेदी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट
के रूप में पुरोधालय के सचिव श्री प्रणय कुमार सिन्हा भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम
को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के
हाथों पूनम त्रिवेदी जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.
फैमली परिचय-
पूनम त्रिवेदी आर्ट ऑफ़ लिविंग संस्था में टीचर हैं और योग, प्राणायाम, ध्यान और सुदर्शन
क्रिया सिखाती हैं. सोशल वर्क से भी जुड़ाव है, मायका और ससुराल दोनों भागलपुर में ही
है. पति श्री सचिन्द्र कुमार त्रिवेदी स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से एक्सक्यूटिव मैनेजर
के पद से रिटायर्ड हैं. इनकी इकलौती बेटी शाम्भवी त्रिवेदी इंजीनियरिंग करके बिहार
से बाहर गयी हैं. अभी टीसीएस कम्पनी में असिस्टेंट इंजीनयर हैं.
पूनम त्रिवेदी
और उनके फैमिली मेंबर का टैलेंट - सिंगिंग
हॉबी है, संगीत में प्रभाकर किया है प्रयाग समिति से और गुरु श्री राजीव सिन्हा से
संगीत की तालीम ली है. पूनम त्रिवेदी को भजन के अलावा फोक, गजल और सूफी गाना पसंद है.
बेटी शाम्भवी ने वहीँ से 6 ठा ईयर कम्प्लीट किया है. गवर्नमेंट के कई प्रोग्राम में
भी पटना में वो गए चुकी हैं. हारमोनियम तो अब चलता नहीं है तो पूनम जी तानपुरा रखकर
काम करती हैं और इनको साथ देते हैं प्रवीर कुमार जी जो आर्ट ऑफ़ लिविंग में तबला बजाते
हैं. जब पूनम जी की बेटी शाम्भवी छुटियों में पटना आती है तो हर 8 दिन में तबलावादक
प्रवीर जी को बुलाते हैं और फिर साथ में रियाज करते हैं.
पूनम त्रिवेदी
के संगीतमय सफऱ की कहानी - पूनम जी जब शादी करके ससुराल आयीं तो संगीत का इतना शौक
था कि तब भी गाती थी. शुरू में गुरु तो नहीं मिलें लेकिन कुछ लोग ज़रूर मिलें जो इन्हे
गाइड करते थें. स्कूल और कॉलेज में भी स्टेज पर चांस मिला गायन का उसके बाद फिर जब
शादी हो गयी तब लगा कि अब संगीत छूट जायेगा लेकिन जब सौरल आयीं तो देखीं पति के पास
गजल का बहुत सारा कलेक्शंस था. उस वक़्त पूनम गजल भी बहुत गाती थीं. इसपर पूनम खुश हुईं
कि पति को भी गाने सुनने का शौक है तभी तो इतना नायाब कलेक्शंस है. कम से कम ये तो
नहीं होगा कि उन्हें गाने को लेकर कोई टोक-टाक करे. उसके बाद जब पूनम ने अपनी इक्छा
जाहिर की और जब ससुरालवालों ने गायन सुना तो फिर एक टीचर प्रोवाइड किया शुबीर मुखोपाध्याय
जी को जो सिखाने लगें. हारमोनियम वगैरह की व्यवस्था हुई. फिर वहां से सीखते-सीखते करीब
चार साल बाद पति का ट्रांसफर धनबाद से गिरिडीह में हो गया. उसके बाद गिरिडीह में थोड़ा
बहुत गाने का चला लेकिन फिर जब पूनम ने देखा कि कुछ खास नहीं हो रहा तब लॉ की पढ़ाई
शुरू कर दी. फिर कुछ समय बाद वहाँ पर जो भी स्टेज वैगेरह का प्रोग्राम होता था पूनम
जी ने भाग लेना शुरू किया. फिर धीरे-धीरे मौके मिलते चले गएँ. जब पटना आयीं तो लगा
कि अब इनसे गायन नहीं हो पायेगा. लेकिन जब आर्ट ऑफ़ लिविंग ज्वाइन किया तो वहाँ पर जो
भजन होते हैं वो बहुत मधुर और राग पर आधारित होते हैं, वो इनको बहुत अट्रैक्ट किया.
पूनम जी ने जब उसको ज्वाइन किया तो बहुत अच्छा लगा. फिर वहां सिंगर के रूप में सत्संग
में गाने लगीं. फिर जब एहसास हुआ कि उनका हारमोनियम वगैरह पड़ा हुआ है तो फिर पूनम जी
ने अपनी बेटी को भी सिखाना शुरू किया. सेकेण्ड ईयर उसने जब कर लिया तब पता चला संस्था
निनाद के बारे में तो फिर पूनम त्रिवेदी अपनी बेटी के लिए वहां गयी लेकिन फिर वे खुद
भी वहां के राजीव सिन्हा जी से संगीत की बारीकियां सीखीं.
संगीत विरासत
में मिला - पूनम जी की माँ का नाम विशाखा पांडेय है जो एक ज़माने में गाया करती थीं
और इनके पापा श्री कृष्णानंद पांडेय जो बहुत अच्छी बांसुरी बजाया करते थें. मायके में
भी संगीत का शौक सबमे होते हुए भी बाकि लोगों ने संगीत सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं
दिखाई लेकिन पूनम इस दिशा में थोड़ा आगे बढ़ गयीं.
ससुराल का
सपोर्ट - ससुराल वालों ने बहुत सपोर्ट किया तभी आगे बढ़ पायीं. पूनम जी ने एक राज की
बात बताई कि "ससुराल में जब हमलोग टेबल पर खाना खाते थें तो खाना खाने के बाद
टेबल पर ही बैठकर हमलोग गाना सुनने-सुनाने लगते थें. फिर 11-12 बजने को आएं, तानपुरा
लगा हुआ है और हमलोगों का गायन चल रहा है, इस तरह से बहुत मज़ा आता था. जब गलतियां होतीं
तो लोग टोकते भी थें कि यहाँ गलती हुई है, ऐसा नहीं कि कुछ भी सुनकर आप बस वाह-वाह
कर रहे हैं."
अब विदा
लेने से पहले बोलो ज़िन्दगी टीम ने पूनम त्रिवेदी की फैमली को एक साथ बैठाया और प्रीतम
कुमार ने उनका फैमिली पिक्चर क्लिक कर लिया.
(इस पूरे
कार्यक्रम को bolozindagi.com पर भी देखा जा सकता है)
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