लघु कथा
"बताओ न क्या हुआ, वे मान गए ना " प्रेमिका ने उतावलेपन से पूछा. "जिसका डर था वही हुआ, घरवालों ने इंकार कर दिया" प्रेमी ने निरास होते हुए कहा. "तो क्या सोचा है,चलो फिर किसी दिन मंदिर में चलकर शादी कर लें" प्रेमिका ने सलाह दी. "नहीं, ये नहीं हो सकता, मैं घरवालों की मर्ज़ी के खिलाफ नहीं जा सकता इसलिए अच्छा यही होगा तुम मुझे भूल जाओ" प्रेमी बोला.
"मेरे घरवाले भी तो नहीं मान रहे थे मगर मैंने मनाया न उन्हें. अब मैं कैसे रहूंगी कभी सोचा है तुमने. तुम्हीं तो कहा करते थे हर हाल में प्यार निभाओगे, अब कैसे बदल गए" प्रेमिका निरास होकर बोली. "जो भविष्य में बड़े आदमी बन जाते हैं वे कुछ भी करें समाज कुछ नहीं कहता, लेकिन मुझ जैसे आम लोग जब अंतरजातीय विवाह करते हैं समाज उनसे घृणा करता है, जीना दूभर कर देता है. मैं सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए माँ-पिता जी को दुःख नहीं दे सकता.इसलिए सनम अच्छा यही होगा कि आज से हम दोनों अजनबी बन जाएँ." इतना कहकर प्रेमी उसकी नज़रों से दूर जाने लगा. प्रेमिका फूट फूटकर रोने लगी और सोचने लगी बीती बातें जब पहली बार प्रेमी ने शारीरिक सम्बन्ध बनाने की जिद्द की थी और वह मना कर रही थी. तब प्रेमी ने उसे बड़ा ही इमोशनल डायलॉग बोलकर राजी कर लिया था कि "हम दोनों का रिश्ता पति-पत्नी की तरह है न तो फिर हमारे बीच अब शर्म कैसी? और शायद तुम्हें नहीं पता कि फिजीकल रिलेशन बनने से प्यार और भी गहरा हो जाता है"....!
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