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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Sunday, 7 May 2017

ये बेटियां समाज बदल देंगीं


सशक्त नारी 
By: Rakesh Singh 'Sonu'


मुजफ्फरपुर(बिहार),नेउरा खानेजादपुर में मो.तस्लीम और शाहिदा खातून की बेटियां सादियाआफरीन ने अपने गांव और आस पास के गाँव में 'कोई बच्ची न मिले कूड़ेदान' के नाम से मुहीम चलाकर भ्रूण हत्या के खिलाफ पुरजोड़ तरीके से बिगुल फूंक दिया है. जिसका गवाह है मुजफ्फरपुर जिले का जमालाबाद,मुस्तफापुर, गंज बाजार, खानेजादपुर,राम सहाय छपरा, अली नेउरा जैसे कई कसबे. बीते तीन-चार सालों में दोनों बहनें दो दर्जन से अधिक भ्रूण हत्या रोक चुकी हैं. स्नातक कर चुकी सादिया जहाँ एक स्कूल में उर्दू की टीचर हैं वहीँ मैट्रिक टॉपर आफरीन ने अभी 12 वीं उत्तीर्ण किया है. लेकिन दोनों का जज्बा इनकी उम्र से कहीं ज्यादा बड़ा दिख रहा है. इनके ग्रुप में करीब 300  से भी अधिक लड़कियां व महिलाएं जुड़ चुकी हैं और ये घर-घर जाकर स्लोगन,पेंटिंग,कार्टून और शायरी-गीतों के माध्यम से सभी को जागरूक करती हैं ताकी बेटी की भ्रूण हत्या को रोका जा सके. 2013 में ऐसे ही एक जन्मी बच्ची को मारने की कोशिश की गयी जहाँ पहुंचकर इन दोनों बहनों ने उसे बचा लिया और उसे अपने घर लाकर परवरिश करने लगीं.तभी इनके मन में ख्याल आया कि जब एक बेटी को बचाया है तो फिर सैकड़ों बेटियों को क्यों नहीं बचा सकती.



घर में बात की तो माता -पिता ने पूरा समर्थन दिया फिर तो इनकी मुहीम शुरू हो गयी. दोनों बहनो के यूँ घर-घर जाकर जागरूक करने पर आस-पड़ोस के लोगों ने माँ-बाप को ताने देने शुरू कर दिए कि "मुस्लिम होकर जवान बेटियों से ये सब करा रहे हैं, क्या ये शोभा देता है ?" लेकिन न इन दोनों ने हिम्मत हारी और न ही इनके माता-पिता ने ही इनको रोका. और तो और पिता मो.तस्लीम लोगों को सामाजिक कुरीतियों  के प्रति जागरूक करने हेतु बेटियों के लिए गीत व शायरी लिखने लगें जिसे गाकर ये समाज में जागरूकता लाने लगीं.



मुहीम रंग लाई और धीरे धीरे इनके इस निस्वार्थ कार्य में एक-एक करके कई महिलाएं जुड़ती चली गईं. भ्रूण हत्या के अलावा दहेज़ प्रथा और बाल विवाह पर भी ये चोट करती हैं. इनके इस सराहनीय कार्य के लिए विभिन्न संस्थाओं द्वारा इन्हें कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है जिनमे सिनेमा इंटरटेनमेंट द्वारा 2016 में आयोजित 'सशक्त नारी सम्मान समारोह' का जिक्र यहाँ करना चाहेंगे. इनके योगदान को देखते हुए उक्त आयोजन में इन दोनों बहनों को ना सिर्फ सम्मानित किया गया बल्कि जब अपनी बात रखने के लिए इन्हे मंच पर बुलाया गया तो भ्रूण हत्या के खिलाफ इनका गाया एक गीत सुनकर वहां मौजूद तमाम ऑडियंस तालियाँ बजाने पर मजबूर हो गयी. कल तक जो समाज इन्हे कोसता था आज वही गांव-समाज सादिया और आफरीन के इस जज्बे को सलाम करता है.



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