तारे ज़मीं पर
By: Rakesh Singh 'Sonu'
" जब था मैं ढ़लता सूरज मेरे सपने भी डूब रहे थें, अभिषेक कुमार
अब जो उगने लगा हूँ ख्वाब भी मेरे चमक रहे हैं."
वह खुद स्कूल पढ़ने जाता है और घर लौटकर खेलने की बजाए छोटे बच्चों को पढ़ाता है. पतंगबाजी के मौसम में वो पतंग बेचता है. 26 जनवरी और 15 अगस्त के अवसरों पर वह झंडे बेचता है. दिवाली पर अपने हाथों से घरौंदे बनाकर, बेचकर उससे आए पैसों से अपना व अपने परिवार के घरौंदे की रौनक बढ़ाता है. दानापुर में रहनेवाला अभिषेक 10 वी का स्टूडेंट है जिसके पिता भीम पंडित एक रिक्शाचालक हैं और जिन्हें आँख की बीमारी है. एक आँख खराब हो जाने की वजह से वो अब बहुत कम ही रिक्शा चला पाते हैं. दो भाई-बहनों में इकलौते भाई अभिषेक के नन्हें कन्धों पर आ गई है अब दोहरी जिम्मेदारी. एक, अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सम्बल प्रदान करना तो दूसरी है अपने सपनों को साकार करना. अब तक इस गुदड़ी के लाल ने इतनी काम उम्र में 17 से अधिक नाटकों में जीवंत अदाकारी दिखाकर अपने हुनर को साबित कर दिखाया है. घर की परेशानी को महसूस करते हुए करीब 5 साल पहले घर पर ही बहुत छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया,जो स्कूल नहीं जाते थें. धीरे धीरे प्रचार हुआ तो सामने से और भी बच्चों को पढ़ाने के ऑफर मिलने लगे. पहले सुबह 7 से 9 बजे तक कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों को पढ़ाकर अभिषेक खुद पढ़ने स्कूल चला जाता है. अपनी मैट्रिक की परीक्षा को ध्यान में रखकर वह खुद भी ट्यूशन पढ़ने जाता है फिर लौटकर शाम में बच्चों की ट्यूशन क्लास लेता है. अभी अपनी पढ़ाई देखते हुए अभिषेक सिर्फ शनिवार-रविवार को ही थियेटर करने 'कालिदास रंगालय' में जा पाता है.
स्कूल में अक्सर खेल-कूद व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेनेवाले इस होनहार का रुझान नाटकों के प्रति कुछ ज्यादा ही था. तब स्कूल वालों ने ही उसके इस रुझान को देखकर बिहार बाल भवन 'किलकारी' में ऑडिशन के लिए भेजा. ऑडिशन सफल रहा और स्कॉलरशिप भी मिला. फिर 'किलकारी' के माध्यम से अभिषेक का कालिदास रंगालय में ऑडिशन हुआ जहाँ उसने पुनः बाज़ी मार ली. वहां भी सीखने के लिए संस्था की तरफ से स्कॉलरशिप और आने-जाने के लिए एक साइकल दिया गया. इसी साइकल की बदौलत दानापुर से आना-जाना अभिषेक के लिए आसान हो चला. रंगमंच में शुरुआत हुई अप्रैल 2013 में टीचर सुमन सौरभ के सानिध्य में पहले नाटक 'ईदगाह' से और पहले ही नाटक में निभाए किरदार से जो हौसला व पहचान अभिषेक को मिली वो आगे का सफर आसान कर गया. फिर तो कालिदास और प्रेमचंद रंगशाला में एक-एक करके अबतक लगभग दो दर्जन नाटकों में प्ले किया. दो शॉर्ट फ़िल्में यू ट्यूब पर जारी हो चुकी हैं. निर्देशक कार्तिक की शॉर्ट फिल्म 'सोच की छलांग' जो चाइल्ड लेबर थीम पर है में भी एक्टिंग किया है जिसे 31 जनवरी,2016 को गोआ फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया है. घर में टीवी न रहने के कारण अभिषेक को पता न चला कि पटना में 'इंडियाज बेस्ट ड्रामेबाज' का ऑडिशन कब पूरा भी हो गया. उसे उम्मीद थी कि पहले ही राउंड में उसका चयन हो जाता. अभी जो भी कमाता है वो पैसे घर चलाने को मम्मी-पापा को दे देता है. अभिषेक का अब एक ही लक्ष्य है बड़े होकर कामयाब एक्टर बनना और अपने घर-परिवार की स्थिति ठीक करना.
By: Rakesh Singh 'Sonu'
" जब था मैं ढ़लता सूरज मेरे सपने भी डूब रहे थें, अभिषेक कुमार
अब जो उगने लगा हूँ ख्वाब भी मेरे चमक रहे हैं."
वह खुद स्कूल पढ़ने जाता है और घर लौटकर खेलने की बजाए छोटे बच्चों को पढ़ाता है. पतंगबाजी के मौसम में वो पतंग बेचता है. 26 जनवरी और 15 अगस्त के अवसरों पर वह झंडे बेचता है. दिवाली पर अपने हाथों से घरौंदे बनाकर, बेचकर उससे आए पैसों से अपना व अपने परिवार के घरौंदे की रौनक बढ़ाता है. दानापुर में रहनेवाला अभिषेक 10 वी का स्टूडेंट है जिसके पिता भीम पंडित एक रिक्शाचालक हैं और जिन्हें आँख की बीमारी है. एक आँख खराब हो जाने की वजह से वो अब बहुत कम ही रिक्शा चला पाते हैं. दो भाई-बहनों में इकलौते भाई अभिषेक के नन्हें कन्धों पर आ गई है अब दोहरी जिम्मेदारी. एक, अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सम्बल प्रदान करना तो दूसरी है अपने सपनों को साकार करना. अब तक इस गुदड़ी के लाल ने इतनी काम उम्र में 17 से अधिक नाटकों में जीवंत अदाकारी दिखाकर अपने हुनर को साबित कर दिखाया है. घर की परेशानी को महसूस करते हुए करीब 5 साल पहले घर पर ही बहुत छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया,जो स्कूल नहीं जाते थें. धीरे धीरे प्रचार हुआ तो सामने से और भी बच्चों को पढ़ाने के ऑफर मिलने लगे. पहले सुबह 7 से 9 बजे तक कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों को पढ़ाकर अभिषेक खुद पढ़ने स्कूल चला जाता है. अपनी मैट्रिक की परीक्षा को ध्यान में रखकर वह खुद भी ट्यूशन पढ़ने जाता है फिर लौटकर शाम में बच्चों की ट्यूशन क्लास लेता है. अभी अपनी पढ़ाई देखते हुए अभिषेक सिर्फ शनिवार-रविवार को ही थियेटर करने 'कालिदास रंगालय' में जा पाता है.
स्कूल में अक्सर खेल-कूद व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेनेवाले इस होनहार का रुझान नाटकों के प्रति कुछ ज्यादा ही था. तब स्कूल वालों ने ही उसके इस रुझान को देखकर बिहार बाल भवन 'किलकारी' में ऑडिशन के लिए भेजा. ऑडिशन सफल रहा और स्कॉलरशिप भी मिला. फिर 'किलकारी' के माध्यम से अभिषेक का कालिदास रंगालय में ऑडिशन हुआ जहाँ उसने पुनः बाज़ी मार ली. वहां भी सीखने के लिए संस्था की तरफ से स्कॉलरशिप और आने-जाने के लिए एक साइकल दिया गया. इसी साइकल की बदौलत दानापुर से आना-जाना अभिषेक के लिए आसान हो चला. रंगमंच में शुरुआत हुई अप्रैल 2013 में टीचर सुमन सौरभ के सानिध्य में पहले नाटक 'ईदगाह' से और पहले ही नाटक में निभाए किरदार से जो हौसला व पहचान अभिषेक को मिली वो आगे का सफर आसान कर गया. फिर तो कालिदास और प्रेमचंद रंगशाला में एक-एक करके अबतक लगभग दो दर्जन नाटकों में प्ले किया. दो शॉर्ट फ़िल्में यू ट्यूब पर जारी हो चुकी हैं. निर्देशक कार्तिक की शॉर्ट फिल्म 'सोच की छलांग' जो चाइल्ड लेबर थीम पर है में भी एक्टिंग किया है जिसे 31 जनवरी,2016 को गोआ फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया है. घर में टीवी न रहने के कारण अभिषेक को पता न चला कि पटना में 'इंडियाज बेस्ट ड्रामेबाज' का ऑडिशन कब पूरा भी हो गया. उसे उम्मीद थी कि पहले ही राउंड में उसका चयन हो जाता. अभी जो भी कमाता है वो पैसे घर चलाने को मम्मी-पापा को दे देता है. अभिषेक का अब एक ही लक्ष्य है बड़े होकर कामयाब एक्टर बनना और अपने घर-परिवार की स्थिति ठीक करना.
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