ticker

'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Saturday 19 January 2019

ये दौड़ाती हैं पटना की लाइफलाइन : महिला ऑटो रिक्शा चालक

By : Rakesh Singh 'Sonu'


वे जब सवारी लिए बिंदास रूप से पटना की सड़कों पर निकलती हैं तो कितनी ही कौतुहल भरी नज़रें उन्हें आज भी निहारा करती हैं. पुरुष तो पुरुष, औरतें भी चौंक जाती हैं. वे पटना शहर की लाइफलाइन को सरपट दौड़ाती हैं. जी हाँ, बात हो रही है महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकीं महिला ऑटो रिक्शा चालकों की. सबकी थोड़ी-थोड़ी अलग सी कहानी है लेकिन सबके हालात और संघर्ष लहभग एक जैसे ही हैं. तो आइयें सुनते हैं उन्ही की कहानी उन्ही की जुबानी....
सुलेखा- मैं बोरिंग रोड, शिवपुरी में रहती हूँ. कुछ महिलाओं को ऑटो चलाते देखकर दो साल पहले इस क्षेत्र में आयी. घर के लोगों ने बोला कि ये लड़की का काम नहीं है, नहीं करना चाहिए, फिर भी हम किए. पति गांव में खेती-बाड़ी करते हैं. मैं माँ के पास रहकर अपने दोनों बच्चों को पढ़ा रही हूँ. ऑटो लोन पर लिया है. तब जब ट्रेनिंग मिल रही थी हम कभी आ पाते तो कभी नहीं आ पाते थें. सिर्फ एक सप्ताह ही गएँ , फिर जब अपना ऑटो लिए तो एक ड्राइवर रखकर सीखना चालू किए. 10 -15 दिन में चलाना सीख गएँ. जेंट्स लोग गलत निगाह से देखते-घूरते थें. फिर भी हार नहीं मानें क्यूंकि हमको सीखना था, कुछ करना था. मेरी माँ ने मना किया था. कहा था कि सिलाई वगैरह का लेडीज वाला काम कर लो. लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऑटो चलाने का ही दिल किया कि कुछ हटकर करें. पहले तीन-चार महीना बोरिंग रोड से स्टेशन तक के रूट में चलाएं लेकिन फिर एयरपोर्ट से चलाने लगें. ड्यूटी के वक़्त कुछ ट्रैफिक पुलिस वाले तंग करते थें झूठमुठ का कि कागज दिखाओ तो कभी फोन नंबर मांगने लगते थें.
सुष्मिता कुमारी- 2013 से ऑटो चला रही हूँ. नविन मिश्रा जी हम सबको ट्रेनिंग दिए हैं. घर में पति और दो बच्चे हैं. सिपारा पुल के पास जयप्रकाश नगर में रहती हूँ. मेरे पति भी ऑटो चलाते हैं. शुरू में उनको शराब की बुरी लत लग गयी थी. शराब पीकर दिनभर सोये रहते थें, गाड़ी चलाना लगभग बंद हो गया. मेरी आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय हो गयी. मेरे बच्चों की पढ़ाई भी छूट गयी. इतने में एक दिन अख़बार पढ़ते वक़्त एक खबर पर नज़र पड़ी कि महिलाओं का ऑटो चालन प्रशिक्षण शुरू होने जा रहा है तो हमने भी इंट्रेस्ट लेकर कॉन्टेक्ट किया कि मुझे भी सीखना है. काफी संख्या में महिलाएं सीखने पहुंची थीं मगर सिखाने के लिए ऑटो कम थें. इसलिए तब मैं अपने पति को गाड़ी लेकर वहां बुला ली. फिल्ड में सब महिलाएं दूसरे गाड़ी से सीखती थीं और उसी फिल्ड में मुझे मेरे पति अपने ऑटो से सिखाते थें. जबकि शुरू में पति ने भी टोका था कि "ऑटो चलाओगी, लोग क्या कहेंगे?" मैंने कहा था कि 'क्या कहेंगे लोग हम नहीं जानतें, आप कमा रहे हैं क्या, आप परवरिश कर रहे हैं क्या...? तो हम नहीं देखते कि दुनिया क्या कह रही है, हम देखते हैं कि हम अच्छा और मेहनत का काम कर रहे हैं कोई चोरी-चकारी नहीं कर रहें." मैं आई.एस.सी. तक पढ़ी हूँ. शुरू से ही मेरा शौक था कि जो और महिलाएं करती हैं उनसे कुछ हटकर करूँ. शुरू-शुरू में अपने मोहल्ले से निकलने में भी शर्म आती थी लेकिन जब एक बार चलाना शुरू कर दी तो सब झिझक खत्म हो गया. एक-दो बार शुरुआत में खुद की गलती से ऑटो लेकर मैं गिरी भी लेकिन उस घटना से अच्छा सबक मिला. मैं शुरू से ही एयरपोर्ट से चला रही हूँ. मेरा एक बच्चा अभी मैट्रिक दिया है तो एक बी.सी.ए. फ़ाइनल ईयर में है. मेरी हिम्मत देखकर बाद में पति ने भी शराब से तौबा कर लिया और फिर मेरे घर की परिस्थितियां बदल गयीं.
गुड़िया सिन्हा- मैं महुआबाग, रूपसपुर में रहती हूँ. पति प्रॉपर्टी डीलर हैं. 2013 में फर्स्ट बैच में सबसे पहले हम पांच महिलाओं ने सीखना शुरू किया था. उस समय कुछ घटना घटित हो गयी थी जिस वजह से पति हॉस्पिटल में थें और मैं अकेली थी. एक दिन खबर पढ़ी कि महिलाओं को निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जायेगा तो चली गयी रजिस्ट्रेशन कराने. फिर बताया गया कि सप्ताह में दो दिन वेटनरी ग्राउंड में सिखाया जायेगा लगभग एक महीने तक. जब आते थें तो उस समय 35-40 लेडीज आती थीं और ऑटो सिखाने के लिए था चार. तब दिमाग में टेंशन होता था, आपस में सब महिलाएं लड़ने लगती थीं. हम भी किनारे खड़े होकर देखते हुए सोचते कि लगता है नहीं सीख पाएंगे. लेकिन आने के बाद एक जुनून सा हो गया. थोड़ा जिद्दी टाइप की भी हूँ. तब फुलवारी शरीफ रहते थें , वहां से पैदल आते थें. एक दिन घर से वेटनरी ग्राउंड आ रहे थें तो एयरपोर्ट से एक हमारे इलाके का ऑटो ड्राइवर उधर से जा रहा था. उसने टोका तो हमने बताया कि हम भी सीखने जा रहे हैं. वह बोला कि "ठीक है हम तुम्हें अलग से सिखाएंगे बस तुम हमको पेट्रोल दे देना." फिर उसी से हम अलग से सीखें. शुरू में पटना जंक्शन से चलाते थें फिर कुछ टेंशन होने पर अकेले एयरपोर्ट से चलाने लगें. स्टेशन से ज्यादा एयरपोर्ट सेफ लगता है क्यूंकि स्टेशन का वातावरण कुछ अलग है. फर्स्ट टाइम 15 ऑटो एक साथ निकला था. सीखने के बाद भी बहुत सी महिलाओं में कॉन्फिडेंस की कमी दिखी. कुछ ने छोड़ दिया तो कुछ ने ऑटो अपने पति को चलाने दे दिया.
अनीता कुमारी - 2013 से यानि विगत पांच सालों से पटना एयरपोर्ट से ऑटो चला रही हूँ. रहना मीठापुर के विग्रहपुर में होता है. घर में पति और तीन बच्चे हैं. पति भी ऑटो चलाते हैं. पहले हम आशियाना पासपोर्ट औफिस में सिक्युरिटी गार्ड का जॉब करते थें. मेरे पति पेपर में एक दिन ऐड पढ़ें कि महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाएगी. तब वे भी नहीं चलाते थें. बाद में मेरे साथ ही वे भी सीख गएँ. फिर मैं जॉब छोड़कर ऑटो लेकर चलाने लगी. शुरुआत में कुछ दिन लोग देखकर खूब हँसते-बोलते थें. अभी भी कई लोग टोंट मारते हैं मगर हमलोग अनदेखा करके चलते हैं. अब अच्छा लगता है क्यूंकि ये मेरा अपना काम है. दूसरे की जॉब से अच्छा है, जब मन निकालो और 2-4 सौ डेली कमा लो. चार बात किसी का सुनना भी नहीं है.

कंचन देवी–  भूतनाथ रोड में रहते हैं. 2013 से ही ऑटो रिक्शा चला रहे हैं. तब पति प्लंबर मिस्त्री का काम करते थें. बहुत शराब पीने की वजह से लिवर डैमेज हो गया. बहुत इलाज कराया लेकिन एक दिन उनका देहांत हो गया. ससुरालवालों ने हमे छोड़ दिया. पिता जी और अगल-बगल वालों ने थोड़ा हेल्प किया. हम भी विज्ञापन देखकर सीखने गएँ. फिर लोन पर गाड़ी लिए. और कमाकर लोन चुका भी दिए. मैं स्टेशन से ऑटो चलाती हूँ. मेरी तीन बेटियां हैं. सब पढ़ती हैं. दो सरकारी स्कूल में तो एक प्राइवेट में. रोड पर जब ऑटो लेकर निकलते हैं तो लोग कमेंट मारते हैं. ऐसे-ऐसे घूरकर कुछ लोग देखेंगे जैसे हम चिड़ियाखाना से निकलकर आये हैं. मुझे लगता है ऐसी हरकत सड़क छाप ही करते हैं , पढ़े-लिखे लोग नहीं, वे तो हमें सैल्यूट करते हैं.
रुकमणि देवी– दावतपुर बगिया, दानापुर कैंट के पास रहती हूँ. मेरे पांच बच्चे हैं जिनमे से दो बेटियों की शादी कर चुकी हूँ. पति एक प्राइवेट कम्पनी में काम करते हैं. मैं ऑटो 2015 से चला रही हूँ. पहले मैं टी.वी.एस. कम्पनी में काम करती थी. वहां एक बार कुछ खराब बोल दिया गया तो गुस्सा आया ऐसा कि जॉब छोड़कर घर बैठ गयी. फिर कई जगह काम ढूंढा कहीं नहीं मिला. एक साल ऐसे ही खाली बैठे रहें. 5 बच्चे थें और सिर्फ पति की कमाई से घर चलना मुश्किल था. फिर ऑटो सीखें और अपनी गाड़ी चलाने लगें. पहले पटना के बोरिंग रोड, गाँधी मैदान रूट में चलाते थें. अब हम खगौल, दानापुर से चलाते हैं. शुरुआत में जेंट्स ऑटो ड्राइवर सब हमे परेशान करते थें तो हमने उन्हें ठेठ भाषा में समझा दिया कि “देख बबुआ गाड़ी हम भी खरीद लिए हैं, इसको तो चलाना ही पड़ेगा. हंस के चलाएं या रोकर चलाएं. इसलिए तुमलोग कितनो दिक्कत करेगा हम चलएंगे ही.” लेकिन ये तब की बात है, अब कोई दिक्कत नहीं है. अब जिस दिन हम नहीं जाते वे लोग खोजते हैं “कहाँ गए थें मैडम, कल नहीं देखा आपको..!”
संगीता कुमारी – गर्दनीबाग के सरिस्ताबाद में रहती हूँ. 2015 से ऑटो चला रही हूँ. पति भी हमारे साथ ही शुरू किये थें चलाना. मुझे एक बेटा और एक बेटी है. घर चलाना भारी पड़ रहा था तो एक महिला को देखकर ख्याल आया कि जब ये कर सकती है तो हम क्यों नहीं. फिर उसी महिला के बताने पर हम नविन जी से ट्रेनिंग लेकर ऑटो चलाना शुरू कर दिए. घर का काम और नाश्ता तैयार करते हुए बच्चे को स्कूल छोड़कर 12 बजे तक ऑटो चलाते हैं. फिर बच्चे को स्कूल से लेकर घर लौट जाती हूँ. खाना बनाती हूँ. बेटी पढ़कर आती है तो बच्चे को उसके भरोसे छोड़कर 3 बजे दोबारा काम पर निकल जाती हूँ. कभी-कभी मेरे देर हो जाने की वजह से बच्चे को स्कूल में थोड़ा वेट करना पड़ता है.
इनके अलावा शोभा देवी, रिंकी देवी और समिदुल खातून भी ऑटो रिक्शा चलाती हैं. समिदुल बोरिंग रोड से तो रिंकी और शोभा पटना जंक्शन के प्रीपेड से चलाती हैं.
पटना ऑटो रिक्शा चालक संघ के पूर्व सचिव नविन मिश्रा ने ‘बोलो जिंदगी‘ को बताया कि “जब हम सेक्रेटरी हुआ करते थें तो हमलोग केरल गए थें. वहां साऊथ इंडियन महिलाओं को ऑटो चलाते देखें तब फैसला हुआ कि अपने यहाँ भी शुरू होना चाहिए.  फिर उसकी सारी जिम्मेदारी, ट्रेनिंग से लेकर लाइसेंस बनवाने और ऑटो का लोन दिलाने तक हमें दिया गया. इस ट्रेनिंग का उद्घाटन वेटनरी ग्राउंड में तत्कालीन जिलाधिकारी महोदय ने किया था. गवर्मेंट ने हमको सिर्फ मोरल रूप से सपोर्ट किया. अगर खुलकर सपोर्ट मिलता तो अभी पटना में जो 12 -15 महिलाएं ऑटो चला रही है इसकी संख्या हर जिले में बढ़ जाती. अभी सैकड़ों महिलाएं ट्रेनिंग लेकर लाइसेंस बनवाकर बैठी हुई हैं लेकिन जाम और प्रदूषण की वजह से परमिट मिलने बंद हो गएँ. एयरपोर्ट पर महिलाओं का स्पेशल प्रीपेड बूथ की व्यवस्था नहीं है, तमाम तरह की परेशानियां हैं.  अगर ज्यादा संख्या में महिला चालक आएँगी तो सामाजिक सुधार भी होगा क्यूंकि बराबर जेंट्स ऑटो चालकों पर यह आरोप लगता है कि उलूल-जुलूल हरकतें करते हैं. महिला हिंसा का जो ऑटो रिक्शा से संबंध है महिलाओं के इस क्षेत्र में आने की वजह से निश्चित रूप से उससे निजात मिलेगा. 

No comments:

Post a Comment

Latest

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में पटना में बाईक रैली Ride For Women's Safety का आयोजन किया गया

"जिस तरह से मनचले बाइक पर घूमते हुए राह चलती महिलाओं के गले से चैन छीनते हैं, उनकी बॉडी टच करते हैं तो ऐसे में यदि आज ये महिला...