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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Saturday 19 January 2019

बाल विवाह का दंश झेल चुकी पूनम मुंगेर के गाओं को कर रही हैं बाल विवाह मुक्त

By : Rakesh Singh 'Sonu'

बिहार के मुंगेर जिले के तारापुर ब्लॉक की रहनेवाली एक साधारण किसान की बेटी पूनम ने बाल विवाह के दंश को ना सिर्फ देखा बल्कि खुद झेला भी है. 7 बहनों में सबसे बड़ी पूनम के बाद भी इनसे छोटी अन्य दो बहनों का बाल विवाह हुआ था. लेकिन एक को छोड़कर दो बहनों की शादी असफल रही. कम उम्र में शादी होने का नतीजा इनकी छोटी बहन को भी भुगतना पड़ा जब बच्चे को जन्म देते ही उसकी मृत्यु हो गयी. पूनम का जब 13-14 की उम्र में बाल विवाह हुआ तब शादी क्या चीज है उन्हें ठीक से पता ही नहीं था. मंडप में इनकी मांग में सिंदूर डालने की रस्म के बाद इन्हे वहीँ छोड़कर ससुरालवाले दूल्हे को लेकर वापस चले गए. उस वक़्त अगर इनके पिता एक-डेढ़ लाख रुपया दे देते तो शायद पूनम का घर बस जाता लेकिन उनके पिता मजबूर थें, उनके सर पर और भी 6 बेटियों की जिम्मेदारी थी. तब पूनम का स्कूल भी छूट गया था. फिर देर से नाम लिखवाकर मायके में रहकर ही पूनम ने मैट्रिक और इंटर किया. 18 साल की बालिग हुईं तो माँ-पिताजी से बोला कि ससुराल जाउंगी. चूँकि वे लोग दहेज़ का ज्यादा डिमांड कर रहे थें इसलिए सभी पूनम को ससुराल भेजने से डरते थें. पूनम ने सोचा ऐसे भी उनकी जिंदगी कौन सी संवरी हुई है इसलिए वे ससुराल जाएँगी, बाद में वे लोग जो करेंगे देखा जायेगा. उनके साथ तब डर से कोई जानेवाला भी नहीं था. वे अकेली जिद्द ठानकर ससुराल गयीं. वहां नयी बहु का स्वागत दर्दनाक तरीके से हुआ. उनका पति के साथ जो संबंध होना चाहिए वो बिलकुल नहीं रहा. ससुराल में एक दिन रुकना भी बहुत भारी पड़ गया. वहां पहुँचने के साथ ही सास और अन्य चार लोगों ने मिलकर इनकी बेरहमी से पिटाई की. और उनके पति ने ग्लास से पैर काट दिया जिस वजह से उन्हें 3 टांके लगवाने पड़ें. उस घटना के बाद से ही पूनम का संघर्ष शुरू हुआ जो आजतक चल रहा है. उन्होंने वापस मायके लौटते वक़्त ससुरालवालों से कहा कि "मेरा नाम पूनम है लेकिन अब मैं फूलन देवी बनूँगी." उस घटना के बाद उनके मन में निगेटिव बातें आती थीं कि बन्दुक लूँ और जाकर उन्हें मार दूँ, काट दूँ. लेकिन फिर दोस्तों ने समझाया, रोका तब ये सम्भली.
आगे की पढ़ाई जारी रखते हुए पूनम ने पुलिस सेवा में जाने के लिए फॉर्म भरा, उसमे सेलेक्ट भी हो गयी थीं लेकिन तब वे उतनी समझदार भी नहीं थीं. किसी के मन करने पर वे फिर पुलिस लाइन को छोड़कर साक्षरता अभियान में चली गयीं. वहां पहले क्षेत्रीय सचिव बनीं, उसके बाद प्रखंड सचिव बनीं. उन्हें काम करने का मौका मिल गया फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. तब उनका ध्येय बस काम करके खुद को इंगेज रखना था. उसी दरम्यान उन्होंने 5 साल के लड़का-लड़की का बाल विवाह होते देखा. सिंदूर देते वक़्त लड़की की आँख में पड़ गया और वहीँ पर लड़का-लड़की में मारपीट शुरू हो गयी. उस घटना को पूनम ने अपने जीवन से जोड़कर देखा और फिर उनके दिल में ख्याल आया कि अब बच्चों के लिए काम करुँगी. बच्चों को सही जिंदगी मिले, सही रास्ता मिले इसके लिए उनका सामाजिक काम शुरू हुआ और उन्होंने सरकारी जॉब करने की लालसा भी त्याग दी. 2002 में अपनी संस्था 'दिशा विहार' की नींव रखी और इसके माध्यम से मुंगेर जिले के 5 ब्लॉक में सघन रूप से काम करने लगीं.
बाल अधिकार और महिलाओं के लिए काम शुरू किया. मुंगेर के 55 गांव में बाल विवाह रोकने का काम किया. वे जब महिलाओं से पूछती कि " आपकी कितनी उम्र में शादी हुई, कम उम्र में शादी हुई तो आपके जीवन में क्या-क्या घटना घटी"? तो महिला लोग बताती थीं कि "हमारी शादी 14 साल में हुई और 20 साल में तीन बच्चों की माँ भी बन गयीं. मेरा यूट्रेस निकल गया है, शरीर में अब ताक़त नहीं मिलता है." इस तरह महिलाएं मीटिंग में अपनी बातें शेयर करती थीं. फिर वहां महिलाएं संकल्प लेतीं कि, हमारी बेटी जब तक18 साल की नहीं हो जाती तब तक उसकी शादी नहीं करेंगे. और समाज में भी अगर इस तरह की घटना होती है तो उसे रोकने का काम करेंगे, समझाने का काम करेंगे. ऐसा अभियान मुंगेर के 55 गांव में चल रहा है. पूनम जो घरेलु हिंसा के लिए 20 गाओं में काम करती हैं तो उसमे पहले महिलाओं का ग्रुप बना 'महिला दस्तक' के नाम से फिर जब उन्हें एहसास हुआ कि हिंसा करने वाले तो पुरुष ही होते हैं तो जबतक पुरुष हिंसा के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती रहेंगी. इसलिए पुरुषों को जागरूक करने के लिए एक ग्रुप बना 'पुरुष दस्तक' . उसके बाद युवा दस्तक जिसमे लड़के-लड़कियां सभी आते हैं. वे छोटी-छोटी समस्याओं जैसे, महिलाओं को बाहर नहीं जाने देना, बच्चों को पढ़ने नहीं देना, मारपीट करना, दहेज़, बालविवाह आदि को देखना. पहले वो महिलाएं बताती ही नहीं थीं अपने साथ हुई हिंसा के बारे में. लेकिन जब बार-बार पूनम जी की टीम जाने लगी, 4-6 मीटिंग हुआ तब जाकर वहां की महिलाएं समझीं कि अरे ये लोग जो आ रहे हैं हमारे लिए ही आ रहे हैं. और हम हैं कि अपनी बात को छिपा रहे हैं. आज उन सभी महिलाओं ने चुप्पी तोड़ी है, घर और समाज के द्वारा जो महिला प्रताड़ित होती थी आज वो जागरूक हुई है और खुल के  बोल रही है कि हमरे साथ ऐसी समस्या आती है तो सबसे पहले वो कहाँ जाये. छोटी-मोटी समस्याएं महिला दस्तक ही सुलझा लेती हैं. अगर समस्या बहुत बड़ी हो तब इनकी दिशा विहार की टीम वहां की महिला को हेल्प लाइन, महिला थाना, कोर्ट भेजने का काम करती है. अभी घरेलू हिंसा पर चार ग्रुप वर्क कर रहे हैं -पुरुष दस्तक, महिला दस्तक, युवा दस्तक, किशोरी दस्तक. फिर बाल-अधिकार पर काम करने के लिए विशेषतः एक अलग ग्रुप बना है 'मुन्ना-मुन्नी' मंच. खासकर दिशा विहार की टीम दलित टोले में काम करती है जहाँ बाल-विवाह की संख्या बहुत कम हुई है.
आज भी पूनम जी के अपने गांव में कोई समस्या हो जाती है तो उन्हें सुलझाने के लिए बुलाया जाता है, उनके जाने पर उनका सम्मान किया जाता है. जनसुनवाई के दौरान वे लोगों से संकल्प लिवाती हैं कि आईन्दा वे शराब नहीं पिएंगे, पत्नी पर हाथ नहीं उठाएंगे और बाल विवाह नहीं करेंगे. इस सराहनीय कार्य के लिए पूनम कुमारी को 17 फरवरी 2018 की शाम पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल में आयोजित 'सशक्त नारी सम्मान समारोह' में सम्मानित भी किया जा चुका है.
पूनम जी कहती हैं " मैं नहीं चाहती कि जो घटना मेरे साथ घटी वो किसी और के साथ घटे इसलिए मैं निरंतर बाल विवाह के खिलाफ यूँ ही डटकर काम करती रहूंगी."

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