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Sunday, 20 January 2019

एक कविता मैंने शादी के बाद लिखी थी 'चुटकी भर सेनुर' : दीप्ति कुमार, कवियत्री एवं इकोनॉमिक्स टीचर, संत डॉमनिक सेवियोज हाई स्कूल, नासरीगंज

By : Rakesh Singh 'Sonu'


मेरा मायका और ससुराल दोनों पटना में ही है. मेरे पापा इंजीनियरिंग कॉलेज और पॉलिटेक्निक कॉलेज के प्रिंसिपल रह चुके हैं. मेरे हसबेंड श्री मनोज कुमार चार्टेड एकाउंटेंट हैं. जब मेरी शादी की बात चली तो जो मीडियेटर थें वो दोनों तरफ से परिचित थें. उन्होंने कहा कि "हमे देखने के लिए पटना जू में बुलाया गया है कि यूँ ही घूमते-टहलते लड़की को देख लेंगे." उसी दिन आडवाणी जी रथयात्रा पर पटना आये हुए थें. राजनीतिक हलचल पैदा हो गयी थी और तब उस दिन बहुत से रास्ते बंद थें. मेरे मायके महेन्द्रू से संजय गाँधी जैविक उद्यान जाना अपने आप में पहाड़ जैसा था. बहुत मुश्किल से हम वहां पहुंचे थें. फिर वहां जू में देखने-दिखाने का कार्यक्रम शुरू हुआ. उसमे एक मजेदार वाक्या ये हुआ जो देखने लायक था. मुझे सौ प्रतिशत नहीं पता था लेकिन आभास हो गया था कि ऐसा ही कुछ है. वहां मेरी हाइट को देखने की बात हो रही थी क्यूंकि मेरी हाइट ज्यादा नहीं है और मेरे पति लम्बे कद के हैं. सब लोग मेरे बगल में खड़े होकर नापने की कोशिश कर रहे थें. वहां एकाध कोई मुझसे थोड़ा ज्यादा के थें लेकिन जो मेरी ही हाइट के थें वो भी हमसे नपाना चाह रहे थें कि हमसे कितने लम्बे हैं. ये मुझे थोड़ा नमूना टाइप का लगा और अंदर ही अंदर मुझे हंसी आ रही थी लेकिन बाकि सब बहुत अच्छे से निपट गया.
उस वक़्त हम पार्ट 2 का इक्जाम देकर पार्ट 3 में गए ही थें. मतलब शादी के समय हम ग्रेजुएट भी नहीं थें. फिर मेरी शादी हुई उसके बाद मेरी आगे की पढ़ाई हुई. एक समय तो लगा कि शायद हम नहीं पढ़ पाएंगे क्यूंकि बाकि सब लोगों को देख रहे थें अपने फ्रेंड सर्किल में कि वे लोग बहुत आगे चले जा रहे हैं और मेरी शादी अचानक से कम उम्र में हो गयी. और ससुराल में बड़ी बहु के रूप में कुछ ज्यादा जिम्मेदारियां मिलने लगीं तो मुझे लगा कि अब नहीं पढ़ पाएंगे. लेकिन फैमली का सपोर्ट मिला और मैंने पटना यूनिवर्सिटी से पी.जी. किया, फिर बीएड हुआ. इकोनॉमिक्स में पीएचडी हुआ. आज जो भी डिग्री लेकर हम यहाँ बैठे हुए हैं वो सब शादी के बाद लिया हुआ है. तो ऐसा कुछ नहीं होता जैसा लोग बोलते हैं कि शादी के बाद पढ़ाई नहीं होती है. हाँ परेशानी होती है, घर देखना, बच्चे को देखना और पढ़ाई करना लेकिन ससुराल में रहते हुए बिना ससुरालवालों के सपोर्ट से यह मुमकिन नहीं है.
एक मजेदार वाक्या हुआ था शादी के वक़्त. मेरे हसबेंड थोड़े संकोची किस्म के हैं. बहुत ज्यादा किसी के साथ बैठकर बात करना-हंसना नहीं होता है. तो कभी-कभी वे बहुत ज्यादा रिएक्ट कर जाते थें. शादी के दिन भी ये नाराज हो गए थें जब द्वार छेंकाई की रस्म हो रही थी. उस रस्म में जैसे ही उनके साथ धक्का-मुक्की हुई वे इतना जोर गुस्साएं कि डर से सारे लोग पीछे हट गएँ. उनको मेरे मायके जाने के बाद बहुत प्रॉब्लम होती थी कि जबरदस्ती लोग इनके मुँह में ऊँगली डालकर बुलवाते थें. ये सब सुनहरी यादें जब ताजा होती हैं तो सच में बड़ी ही मजेदार लगती हैं.
नृत्य एवं साहित्य में मेरी रूचि बचपन से रही है. मेरी एक भोजपुरी कविता की पुस्तक 'मन' शीर्षक से प्रकाशित हो चुकी है. उसी पुस्तक की एक कविता बहुत दिनों तक आरा वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन में पढ़ाई गयी है. एक बार जब बोकारो (झाड़खंड) में भोजपुरी काव्य सम्मलेन हुआ जिसमे मुझे शामिल होने का मौका मिला था. बहुत बड़े-बड़े कवियों का जमावड़ा लगा हुआ था. तब 1994 में तुरंत ही मेरी शादी हुई थी. तब मेरी बेटी बहुत छोटी सी थी. उस समय मैं हसबेंड के साथ वहां काव्य सम्मलेन में भाग लेने पहुंची थी. जब वहां लोगों ने मुझे बिहार की बेटी और बिहार की महादेवी के नाम से सम्बोधित किया तो बहुत अच्छा लगा. एक कविता मैंने शादी के बाद लिखी थी 'चुटकी भर सेनुर', जिसमे था कि सिंदूर से किस तरह से एक लड़की की लाइफ चेंज हो जाती है. शादी के पहले तब के एक नेशनल लेवल के बड़े साहित्यकार विधा निवास मिश्र के हाथों मुझे कविता के लिए उपाधि भी मिली थी.
शादी के बाद पढ़ाई तो जारी रही लेकिन कविता के साथ जो मेरा रिलेशन था वो लगभग खत्म हो गया. क्यूंकि तब घर से स्कूल और स्कूल से घर के दरम्यान परिवार को देखते हुए उतना वक़्त ही नहीं मिल पाता था. इधर कविता लेखन का वही शौक अब जाकर फिर से जवां हुआ है. सबसे बड़ी बात होती है ससुराल में एक लड़की को आकर एडजस्ट करना. तो मुझे ससुराल में एडजस्टमेंट में परेशानी नहीं हुई. तब सबसे मजेदार वाक्या ये हुआ कि चूँकि मेरे पति बड़े लड़के थें तो घर की पहली शादी थी. मेरे ससुर जी थोड़े स्ट्रीक्ट नेचर के थें. उन्हें पसंद नहीं था बाहर में स्टेज बनाना और रिसेप्शन में सबके सामने दुल्हन को बैठाना. लेकिन सबको आश्चर्य हुआ जब उन्होंने बहुत शौक से स्टेज बनवाया, उसको सफ़ेद सुगन्धित फूलों से सजवाया. सब अचरज में थें कि आखिर हुआ क्या कि इतना चेंज आ गया. आज वे हमारे बीच नहीं हैं बस उनकी यादें हैं. और एक चीज उनकी बहुत अच्छी लगती थी कि जब एक छोटी-सी भी डिग्री मेरी आती थी या मेरे बच्चों का कुछ एचीवमेंट होता था वे सबसे पहले जाकर पास के मिठाई दुकान से रसगुल्ला ले आते थें और कहते थें कि "मुंह मीठा कर लो." तो यह देखकर अंदर से बहुत मानसिक संतोष मिलता था कि चलो एक पिता की तरह उनसे हमे प्यार मिल रहा है. जब घर में मेरी बच्ची बहुत छोटी थी और मैं मास्टर डिग्री कर रही थी तब दिन में घर में ज्यादा काम हो जाता था. काम को निपटाना, अपनी पढ़ाई करना फिर बेटी को देखना और कभी-कभी उसके रोने की वजह से रातभर जगे रह जाना ऐसे में थोड़ी परेशानी हो जाती थी लेकिन सबके सपोर्ट से वो दौर भी अच्छे से निकल गया. आज बच्चे बड़े हो गएँ हैं. बड़ी बेटी आर्किटेक्ट बन गयी है और बेटे का भी आर्किटेक्चर में फर्स्ट ईयर कम्प्लीट हो गया है. अब लगता है कि कैसे वो समय इतनी जल्दी बीत गया.

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