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'बोलो ज़िन्दगी' ऑनलाइन मैगजीन के एडिटर हैं राकेश सिंह 'सोनू'

Saturday 26 January 2019

'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' : उपाध्याय फैमली, लोहियानगर, कंकड़बाग




बोलो ज़िन्दगी की टीम 
26 जनवरी, गणतंत्र दिवस की शाम 'बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक' के तहत आज बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह 'सोनू', प्रीतम कुमार व मेक ए न्यू लाइफ फाउंडेशन एनजीओ की सचिव तबस्सुम अली) पहुंची पटना के लोहियानगर हाऊसिंग कॉलोनी, कंकड़बाग के उपाध्याय फैमली में. जहाँ हमारे स्पेशल गेस्ट आकाशवाणी पटना के सहायक निदेशक डॉ. किशोर सिन्हा भी शामिल हुए.



पाइनएप्पल और एप्पल की खास जलेबी, आलू-केला टिक्की दही चाट 





हम मेहमानों के तशरीफ़ रखते ही हमारे सामने श्रीमती किरण उपाध्याय द्वारा बनाई गयी पाइनएप्पल और एप्पल की खास जलेबी, आलू-केला टिक्की दही चाट और गुड़ की चाय परोसी गयी. और जायका लेने के बाद सभी ने इन व्यंजनों के स्वाद की दिल खोलकर तारीफ की.









जब उपाध्याय फैमली से यह पूछा गया कि 'बोलो ज़िन्दगी' में आपको क्या अच्छा लगता है तो उन्होंने बताया कि "आप जिस तरह से हमारे समाज की हस्तियों के संघर्ष की पूरी कहानी बताते हैं वो हमें पसंद आता है."




'माँ वैष्णवी ज्वेलर्स' के सौजन्य से उपाध्याय फैमली को आकर्षक 
गिफ्ट भेंट करते हुए स्पेशल गेस्ट  
डॉ. किशोर सिन्हा व 'बोलो जिंदगी' की टीम 



इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है रामनगरी आशियाना नगर, पटना के 'माँ वैष्णवी ज्वेलर्स' ने जिनकी तरफ से बोलो जिंदगी टीम और हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों उपाध्याय फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.










उपाध्याय फैमली
फैमली परिचय- फैमली के मुखिया उमेश उपाध्याय जी बिहार स्टेट हाऊसिंग बोर्ड में एकाउंट्स ऑफिसर हैं. गाजीपुर जिले के हिंदुस्तान के सबसे बड़े गांव गहमर के रहनेवाले हैं. उनकी पत्नी श्रीमती किरण उपाध्याय हाउसवाइफ हैं लेकिन उनके खाने बनाने के शौक ने उन्हें ले आया यू -ट्यूब पर 'किरण उपाध्याय की रसोई' के नाम से. इनके दो बेटे हैं. जहाँ शिवेश उपाध्याय बीआइएल से लॉ की पढ़ाई कर रहे हैं वहीँ छोटे बेटे अमृतेश उपाध्याय डॉनबॉस्को में 12 वीं क्लास में हैं. कराटे का शौक रखते हैं और स्कूल स्तर पर हुई प्रतियोगिताओं में गोल्ड एवं सिल्वर मैडल भी जीत चुके हैं.

फैमली के मुखिया उमेश उपाध्याय जी को ज्योतिष में बहुत रूचि है. मैथ से ऑनर्स कर चुके उपाध्याय जी इसे विज्ञान और गणनाओं का खेल मानते हैं. अपने इस शौक के बारे में विस्तार से बताते हुए वे कहते हैं "मैं घर में सबसे बड़ा हूँ. जब पिता का देहांत हुआ तो बहनों की शादी की सारी जिम्मेदारी मेरे कन्धों पर आ गयी. बहनों की कुंडलियां मिलान हेतु पंडित जी के यहाँ जाना पड़ता था. एक पंडित जी से थोड़ा टिप्स लिए और खुद कुंडली बनाना सीख गएँ. इंट्रेस्ट और जगा तो विद्वानों के बताये अनुसार किताबों का अध्ययन करना शुरू किये. 20-22 वर्ष की उम्र में ही ऑफिस से शाम को घर आते ही ज्योतिष पढ़ने बैठ जाते थें. पहले-पहल अपने ही घर-परिवार के लोगों को देखना शुरू किये. फिर बड़े-बड़े ज्योतिषियों से मिलना और उनसे ज़रूरी टिप्स लेना शुरू किये. वे मानते हैं कि ज्योतिष अंधविश्वास नहीं बल्कि विज्ञान है और आप इसका जितना गहराई से अध्ययन करोगे चीजों का उतना ही सटीक विश्लेषण कर पाओगे."

श्रीमती किरण उपाध्याय का इंटरव्यू करते
 'बोलो ज़िंदगी' के हेड राकेश सिंह 'सोनू'
श्रीमती किरण उपाध्याय ने अपने कुकिंग के शौक के बारे में बताया कि "मुझे शुरू से ही शौक था कि सबको बनाकर खिलाएं या कुछ-न-कुछ इंवेंट करें खाने में. लोग तारीफ करते थें. कुछ कहने लगें बहुत अच्छा बनाती हैं, हमें भी सिखाइये. मेरे मायके में प्याज-लहसुन भी नहीं बनता है तो वहां भी कुछ ऐसा करते थें कि बिना प्याज-लहसुन के भी सभी को खाना टेस्टी लगे. जब ससुराल आएं तो सबके सपोर्ट ने मेरे शौक को बढ़ावा दिया. मेरी सास भी बहुत प्रेरित करती थीं और कभी कोई चीज करने से रोकी नहीं. वैसे तो मैंने ससुराल आकर ही अपनी आगे की पढाई पूरी की. एम.ए. करके कंप्यूटर में टैली वगैरह का भी प्रशिक्षण लिया लेकिन कहीं जॉब के लिए ट्राई नहीं किया. क्यूंकि मुझे खाने बनाने में ही ज्यादा इंट्रेस्ट है. मुझे कोई सारा सामान लाकर दे जाये और जितना भी आइटम बनाना हो हम सारा काम छोड़कर उसमे रम जायेंगे. जब हम यू-ट्यूब पर दूसरों की रेसिपी देखते थें तो एहसास होता कि ये टफ तो नहीं है, ये तो हम भी कर सकते हैं, देखते हैं क्या होता है. मैंने यू-ट्यूब पर 'किरण उपाध्याय की रसोई' अपना चैनल शुरू किया तो रिस्पॉन्स अच्छा मिला. बीच में लगा कि मैं छोड़ दूँ तब बहुत लोगों ने कहा कि नहीं आप कंटीन्यू कीजिये. मैंने ऐसे डिश की रेसिपी बनाकर यू-ट्यूब पर डालने शुरू किये जो बहुत कम या देखने को ही नहीं मिलते हैं. जैसे फ्रूट जलेबी, राजमा-सोयाबीन-काबली चना का कटलेट. आलू-केला टिक्की दही चाट, तीसी की चटनी, मशरूम चिली, आलू का हलवा इत्यादि. खाने के डिश बनाते समय मैं अक्सर इन बातों का ध्यान रखती हूँ कि तेल-मसाला भी ज्यादा न पड़े और हेल्दी फ़ूड हो. जैसे हम ब्रोकली वगैरह का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. लाल मिर्च का यूज ही नहीं करते. बहुत लोग पूछते हैं कि आये दिन टीवी पर होनेवाले कूकरी शो में आप क्यों नहीं ट्राई करतीं हैं तो पहले मुझे खुद पर उतना कॉन्फिडेंस नहीं था कि मैं वहां जाऊं लेकिन अब मन बनाया है. फटे हुए दूध का बहुत सारा आइटम बनाती हूँ. जैसे उसका पनीर भुजिया, बेसन की सब्जी में फटे हुए दूध का छेना मिला देने से शब्जी बहुत सॉफ्ट व टेस्टी बन जाती है. दही सैंडविच बनने के बाद मान लीजिये उसका शब्जी या दही बच गया तो उसी में सूजी मिलाकर उसका उत्तम बना दिए. मतलब मेरा रहता है कि कुछ चीज बर्बाद नहीं हो. घर-गृहस्थी से समय निकालकर अब तक 68 रेसिपी मैं बनाकर अपने यू-ट्यूब चैनल पर अपलोड कर चुकी हूँ."


जब हमारी टीम मेंबर तबस्सुम अली ने उनसे पूछा - "इसमें हसबैंड का कितना सहयोग मिलता है..?" किरण जी कहती हैं- "बहुत सहयोग मिला है, वे बहुत प्रोत्साहित करते हैं." तभी उपाध्याय जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि "ऑफिस में भी मेरे सहयोगी स्टाफ का ध्यान मेरे लंच बॉक्स पर ही लगा रहता है, वे अक्सर कहते हैं कि लगता है सर, आज कुछ बढ़िया डिश लाये हैं, खुशबू बहुत अच्छी आ रही है."

गेस्ट से सवाल - फिर उमेश जी के बड़े बेटे शिवेश उपाध्याय ने बोलो जिंदगी के स्पेशल गेस्ट डॉ. किशोर सिन्हा जी से जिज्ञासावश सवाल किया कि "आकाशवाणी तो बहुत पुराना केंद्र है लेकिन अभी कम्पटीशन में बहुत सारे प्राइवेट रेडियो चैनल हैं जो यूथ को अट्रैक्ट कर रहे हैं. तो आप आकाशवाणी के लिए क्या कर रहे हैं जिससे हमारे यूथ अट्रैक्ट हों..?"

स्पेशल गेस्ट आकाशवाणी के सहायक निदेशक
डॉ. किशोर सिन्हा अपना सन्देश देते हुए 
गेस्ट का जवाब- डॉ. किशोर सिन्हा ने जवाब देने से पहले शिवेश से एक सवाल पूछा- यूथ को क्या सिर्फ इंटरटेनमेंट की जरुरत है..? तो जब शिवेश ने कहा -नहीं, नॉलेज की भी. तब डॉ. किशोर सिन्हा जी ने कहा- "तो क्या वो नॉलेज दूसरे रेडियो चैनल्स से मिलता है..? क्या 6 से 14 साल के बच्चों का पार्टीशिपेशंस होता है..? यूथ या किसी भी एज ग्रुप की बात करें तो जो मीडिया है उसका कोई एक ही एज ग्रुप या एक ही क्षेत्र नहीं होता. वो हर वर्ग के लिए, हर क्षेत्र के लिए, हर विषय के लिए, उपयोगी होगा सिर्फ इंटरटेनमेंट के लिए नहीं. मुझे लगता है प्राइवेट रेडियो चैनल्स सूचना तो देते हैं कि कहाँ पर क्या है या कहाँ क्या हो रहा है..लेकिन प्रॉपर पार्टीशिपेशंस नहीं है. वन वे कम्यूनिकेशंस है. क्या आमलोग वहां जाकर अपनी समस्याएं बता सकते हैं...? नहीं ना. आकाशवाणी का मोटो है 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय'. इसमें सिर्फ यूथ के इंटरटेनमेंट का ख्याल नहीं रखा जाता बल्कि पुराने गाने भी आते हैं जो पुरानी पीढ़ी को पसंद आते हैं. पुरानी फिल्मों पर भी प्रोग्राम होते हैं जिन्हे सुनकर नयी पीढ़ी को बहुत सी चीजों का नॉलेज होता है. अगर आप सप्ताह में आकाशवाणी तीन दिन भी सुन लें, 2 घंटे भी सुन लें तो उतने में बहुत सारी जानकारी मिल जाएगी. सभी क्षेत्रों यथा फिल्म, लिटरेचर, स्पोर्ट्स, एग्रीकल्चर इनसे जुड़ी नयी प्रतिभाओं को भी सामने लाने की कोशिश करते हैं. आप अगर यूथ के तौर पर अपनी बात कहना चाहते हैं किसी भी विषय पर तो आप वहां 'युववाणी' में आकर अपनी बात कविता, कहानी या वार्ता के जरिये कह सकते हैं. आकाशवाणी का उद्देश्य सूचना, शिक्षा के साथ मनोरंजन भी है. पीपल के इंटरव्यू के अलावा आपको आकाशवाणी में लोकगीत सुनाई देगा, संस्कृति की झलका मिल जाएगी. अर्थात आकाशवाणी आपको संस्कारित करता है. मुझे जो बहुत से नॉलेज हैं मैंने कोई जेनरल नॉलेज की किताब नहीं पढ़ी है, ये नॉलेज मैंने आकाशवाणी (रेडियो) सुनकर ही हासिल की है कि मैं किसी भी विषय पर बातें कर सकता हूँ.

सन्देश- उपाध्याय फैमली के यहाँ से विदा होने से पहले बोलो जिंदगी के स्पेशल गेस्ट डॉ. किशोर सिन्हा ने यह सन्देश दिया कि "आज ज़िन्दगी बहुत आपाधापी की हो गयी है, समय नहीं है किसी के पास कि बैठकर बहुत से विषयों पर बात करें. तो जितना समय है उसका सदुपयोग कीजिये. क्यूंकि वो समय अगर जाया हो गया तो फिर लौटकर दुबारा आपके पास नहीं आएगा."

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