By : Rakesh Singh 'Sonu'
वह आपको पटना शहर के पार्कों-मैदानों में साइकल से चलता हुआ दिख जायेगा...नाम से बड़ा उसका काम बोलता है. आप शहर में गंदगी फैलाते हो, वातावरण को प्रदूषित करते हो और वह बिना किसी झिझक और लालसा के शहर को साफ़ कर उसे हरा-भरा करने में अपनी सारी ऊर्जा लगा देता है...जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पटना के पर्यावरण प्रहरी की. सिवान जिले से ताल्लुक रखनेवाले पूर्व आर्मी जवान संजय कुमार पांडेय फ़िलहाल पटना, गांधीमैदान स्थित स्टेट बैंक में सेक्यूरिटी गार्ड हैं लेकिन उनके पर्यावरण के प्रति लगाव व समर्पण को देखकर शहर के लोगों ने उन्हें नया नाम दिया है 'पर्यावरण का प्रहरी'. इनके दादा जी पटना में गोलघर चौराहे के पास एक मंदिर में रहते थें. बचपन से ही उन्ही के साथ रहते हुए संजय की शिक्षा-दीक्षा पटना में ही हुई. बचपन में जब गोलघर से पैदल बी.एन.कॉलेजिएट पढ़ने जाते थें तो रास्ते में हरी-भरी नर्सरी की खूबसूरती देखकर पर्यावरण के प्रति खुद-ब-खुद जागरूक हुए.
इनकी बचपन से ही पर्यावरण के प्रति रूचि रही. जब स्कूल में 6 ठी कक्षा में पढ़ते थें तो चाट-समोसे खाने के लिए जो पैसे स्कूल ले जाते थें उसमे से ही थोड़ा पैसा बचाकर नर्सरी से पौधा लाकर गाँधी मैदान या किसी ना किसी पार्क में लगा दिया करते थें. जैसे जैसे ये कारवां चलता रहा और शौक बढ़ता गया. बहुत कम उम्र में नौकरी लग गयी. आर्मी में चले गए. अपनी ड्यूटी के दौरान जहाँ भी पोस्टेड रहे समय निकालकर वहां भी कहीं ना कहीं पौधे लगा दिया करते थें. कोई अधूरा या वीरान पड़ा पार्क डेवलप कर दिया करते थें. जब छुट्टी में घर आते तो इन्हें यह देखकर हैरानी होती कि सफाई के मामले में उनका राज्य इतना पिछड़ा क्यों है..! तब छुट्टी में कहीं ना कहीं कोई जगह डेवलप कर दिया करते थें. जैसे स्टेशन के पास जो रेल इंजन का मॉडल स्थापित है वहां बहुत ज्यादा गंदगी थी जिसे इन्होने साफ करके बाहर से मिट्टी व प्लांट लाकर के लगा दिया. डी.एम. आवास के पास चिल्ड्रन पार्क है जो वीरान पड़ा था. उसे भी डेवलप करने का प्रयास किये. गाँधी मैदान में तो यदा-कदा करते ही रहते थें. सेना में ड्यूटी के दौरान छुट्टी में अपने रिलेटिव या दोस्तों के घर गांव जाते तो वहां भी किसी ना किसी स्कूल में पौधा लगा दिया करते थें. अपने दोस्तों को, जाननेवालों को भी मोटिवेट करके पौधा लगवाते थें. बच्चों को समझाते थें कि "बिहार में स्वछता की कमी है, आप देश के भविष्य हैं तो हम चाहते हैं कि आपकी सोच हमसे भी ज्यादा बेहतर बने. कोई भी जगह सफाई या हरियाली हो यह जरुरी नहीं कि वह सरकार के बदौलत ही हो. कोई व्यक्ति अगर सक्षम है तो ऐसा कर सकता है."
पुणे में जब संजय सेना की तरफ से लायब्रेरी कोर्स कर रहे थें वहां पर दो पार्क थें जो वीरान पड़े हुए थें. इन्होने अपने खाली समय में उस दोनों पार्क को डेवलप किया और एक का नाम दिया स्व. कल्पना चावला पार्क और एक का नाम दिया शहीद भगत सिंह पार्क. वहां पौधा लगाकर उसे सैल्यूट किया. संजय जी का कोई संगठन नहीं है लेकिन एक मुहीम जरूर चलता है. जिसका नाम है 'ऑपरेशन जय उद्धान'. क्यूंकि ये सेना के जवान रहे हैं तो वहां कोई भी मिशन होता उसका नाम कोई ना कोई ऑपरेशन होता था. 'ऑपरेशन जय उद्धान' के तहत पहले संजय खुद पौधा लगाते थें लेकिन आजकल पौधा लगवाने का काम करते हैं. अब बड़े-बड़े नेताओं, मंत्रियों, अफसरों से ये पौधे लगवाते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा समाज जागरूक हो सके. कभी-कभी गाँधी मैदान में सफाई करके, गड्ढ़ा करके पौधा वहीँ रख देते हैं और मॉर्निंग वॉक करनेवालों से बोलते हैं कि "आइये एक पौधा लगाकर आगे बढिये." यह उन लोगों के लिए भी सम्मान की बात होती है. इनका हम दो हमारे दो के तर्ज पर छोटा सा परिवार है. एक बेटा और एक बेटी है. संजय अपने बेटे का पहला जन्मदिन पटना के कारगिल चौक पर पौधारोपण करके मनाये थें. जो पैसे वे जन्मदिन की पार्टी में खर्च करते उसी से गमला-पौधा खरीदकर शहीदों को नमन करते हुए लगाए थें. तब से बच्चों के हर जन्मदिन पर उनके हाथ से ही एक पौधा लगवाते हैं. 2017 में बिहार सरकार के 7 निश्चय के तहत मुख्यमंत्री आवास के नजदीक गोलंबर के पास 7 कलर का ओढ़उल का पौधा लगाए थें. पिछले साल 2017 में नमामी गंगे के अभियान में बिहार सरकार ने इन्हें पटना से मेंबर बनाया है इसलिए कि ये घाट वगैरह पर साफ़-सफाई में बहुत रूचि लेते हैं.
एक बार इन्होने एक न्यूज में पढ़ा था कि एक मुस्लिम कंट्री में कोई ऐसी जगह है जहाँ कुछ लोग मिलकर चौराहे के दीवार पर लिख दिए 'नेकी की दीवार' और खूंटी टांग दिए. तख्ती लगायी जिसपर लिखा था जिसके पास एक्स्ट्रा कपड़ा है तो यहाँ टांग कर चला जाये ताकि जिसके पास नहीं है वो यहाँ से ले जा सके. और उनको देखकर अपने देश के ही एक व्यक्ति ने सबसे पहले जयपुर में यह 'नेकी की दीवार' शुरू की थी. संजय ने भी यह न्यूज देखा तो बहुत प्रभावित हुए. फिर गोलघर, बुद्घाट के पास एक गंदे जगह को साफ़ करके 2 अक्टूबर 2016 को गाँधी जयंती के अवसर पर इन्होने 'नेकी की दीवार' शुरू कर दी. जहाँ से कोई जरूरतमंद व्यक्ति ख़ुशी से अपने उपयोग के सामान यथा कपड़े, खाने की चीजें, जूता-चप्पल आदि ले जा सकता है. मतलब जिसके घर में ऐसा सामान है जिसका इस्तेमाल अब वह नहीं कर रहे तो उसे यहां 'नेकी की दीवार' के पास पहुंचा दें.
इनके सराहनीय कार्य को देखते हुए बिहार माड़वाड़ी युवा संघ, माँ वैष्णो देवी समिति, यूथ फॉर स्वराज और लायंस क्लब आदि संस्थाओं ने इन्हें सम्मानित किया है. इन्होने पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने और समाज को विकसित करने के उद्देश्य से 'ऑपरेशन स्मार्ट थॉट' के नाम से एक वाट्सएप ग्रुप भी बनाया है जिस प्लेटफॉर्म पर कोई भी युवा आकर समाज की बेहतरी के लिए अपने सुझाव रख सकता है. पर्यावरण और समाज के प्रति यह समर्पण देखकर इस युवा पर्यावरण के प्रहरी के जज्बे को 'बोलो ज़िन्दगी' सैल्यूट करता है.
वह आपको पटना शहर के पार्कों-मैदानों में साइकल से चलता हुआ दिख जायेगा...नाम से बड़ा उसका काम बोलता है. आप शहर में गंदगी फैलाते हो, वातावरण को प्रदूषित करते हो और वह बिना किसी झिझक और लालसा के शहर को साफ़ कर उसे हरा-भरा करने में अपनी सारी ऊर्जा लगा देता है...जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पटना के पर्यावरण प्रहरी की. सिवान जिले से ताल्लुक रखनेवाले पूर्व आर्मी जवान संजय कुमार पांडेय फ़िलहाल पटना, गांधीमैदान स्थित स्टेट बैंक में सेक्यूरिटी गार्ड हैं लेकिन उनके पर्यावरण के प्रति लगाव व समर्पण को देखकर शहर के लोगों ने उन्हें नया नाम दिया है 'पर्यावरण का प्रहरी'. इनके दादा जी पटना में गोलघर चौराहे के पास एक मंदिर में रहते थें. बचपन से ही उन्ही के साथ रहते हुए संजय की शिक्षा-दीक्षा पटना में ही हुई. बचपन में जब गोलघर से पैदल बी.एन.कॉलेजिएट पढ़ने जाते थें तो रास्ते में हरी-भरी नर्सरी की खूबसूरती देखकर पर्यावरण के प्रति खुद-ब-खुद जागरूक हुए.
इनकी बचपन से ही पर्यावरण के प्रति रूचि रही. जब स्कूल में 6 ठी कक्षा में पढ़ते थें तो चाट-समोसे खाने के लिए जो पैसे स्कूल ले जाते थें उसमे से ही थोड़ा पैसा बचाकर नर्सरी से पौधा लाकर गाँधी मैदान या किसी ना किसी पार्क में लगा दिया करते थें. जैसे जैसे ये कारवां चलता रहा और शौक बढ़ता गया. बहुत कम उम्र में नौकरी लग गयी. आर्मी में चले गए. अपनी ड्यूटी के दौरान जहाँ भी पोस्टेड रहे समय निकालकर वहां भी कहीं ना कहीं पौधे लगा दिया करते थें. कोई अधूरा या वीरान पड़ा पार्क डेवलप कर दिया करते थें. जब छुट्टी में घर आते तो इन्हें यह देखकर हैरानी होती कि सफाई के मामले में उनका राज्य इतना पिछड़ा क्यों है..! तब छुट्टी में कहीं ना कहीं कोई जगह डेवलप कर दिया करते थें. जैसे स्टेशन के पास जो रेल इंजन का मॉडल स्थापित है वहां बहुत ज्यादा गंदगी थी जिसे इन्होने साफ करके बाहर से मिट्टी व प्लांट लाकर के लगा दिया. डी.एम. आवास के पास चिल्ड्रन पार्क है जो वीरान पड़ा था. उसे भी डेवलप करने का प्रयास किये. गाँधी मैदान में तो यदा-कदा करते ही रहते थें. सेना में ड्यूटी के दौरान छुट्टी में अपने रिलेटिव या दोस्तों के घर गांव जाते तो वहां भी किसी ना किसी स्कूल में पौधा लगा दिया करते थें. अपने दोस्तों को, जाननेवालों को भी मोटिवेट करके पौधा लगवाते थें. बच्चों को समझाते थें कि "बिहार में स्वछता की कमी है, आप देश के भविष्य हैं तो हम चाहते हैं कि आपकी सोच हमसे भी ज्यादा बेहतर बने. कोई भी जगह सफाई या हरियाली हो यह जरुरी नहीं कि वह सरकार के बदौलत ही हो. कोई व्यक्ति अगर सक्षम है तो ऐसा कर सकता है."
पुणे में जब संजय सेना की तरफ से लायब्रेरी कोर्स कर रहे थें वहां पर दो पार्क थें जो वीरान पड़े हुए थें. इन्होने अपने खाली समय में उस दोनों पार्क को डेवलप किया और एक का नाम दिया स्व. कल्पना चावला पार्क और एक का नाम दिया शहीद भगत सिंह पार्क. वहां पौधा लगाकर उसे सैल्यूट किया. संजय जी का कोई संगठन नहीं है लेकिन एक मुहीम जरूर चलता है. जिसका नाम है 'ऑपरेशन जय उद्धान'. क्यूंकि ये सेना के जवान रहे हैं तो वहां कोई भी मिशन होता उसका नाम कोई ना कोई ऑपरेशन होता था. 'ऑपरेशन जय उद्धान' के तहत पहले संजय खुद पौधा लगाते थें लेकिन आजकल पौधा लगवाने का काम करते हैं. अब बड़े-बड़े नेताओं, मंत्रियों, अफसरों से ये पौधे लगवाते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा समाज जागरूक हो सके. कभी-कभी गाँधी मैदान में सफाई करके, गड्ढ़ा करके पौधा वहीँ रख देते हैं और मॉर्निंग वॉक करनेवालों से बोलते हैं कि "आइये एक पौधा लगाकर आगे बढिये." यह उन लोगों के लिए भी सम्मान की बात होती है. इनका हम दो हमारे दो के तर्ज पर छोटा सा परिवार है. एक बेटा और एक बेटी है. संजय अपने बेटे का पहला जन्मदिन पटना के कारगिल चौक पर पौधारोपण करके मनाये थें. जो पैसे वे जन्मदिन की पार्टी में खर्च करते उसी से गमला-पौधा खरीदकर शहीदों को नमन करते हुए लगाए थें. तब से बच्चों के हर जन्मदिन पर उनके हाथ से ही एक पौधा लगवाते हैं. 2017 में बिहार सरकार के 7 निश्चय के तहत मुख्यमंत्री आवास के नजदीक गोलंबर के पास 7 कलर का ओढ़उल का पौधा लगाए थें. पिछले साल 2017 में नमामी गंगे के अभियान में बिहार सरकार ने इन्हें पटना से मेंबर बनाया है इसलिए कि ये घाट वगैरह पर साफ़-सफाई में बहुत रूचि लेते हैं.
एक बार इन्होने एक न्यूज में पढ़ा था कि एक मुस्लिम कंट्री में कोई ऐसी जगह है जहाँ कुछ लोग मिलकर चौराहे के दीवार पर लिख दिए 'नेकी की दीवार' और खूंटी टांग दिए. तख्ती लगायी जिसपर लिखा था जिसके पास एक्स्ट्रा कपड़ा है तो यहाँ टांग कर चला जाये ताकि जिसके पास नहीं है वो यहाँ से ले जा सके. और उनको देखकर अपने देश के ही एक व्यक्ति ने सबसे पहले जयपुर में यह 'नेकी की दीवार' शुरू की थी. संजय ने भी यह न्यूज देखा तो बहुत प्रभावित हुए. फिर गोलघर, बुद्घाट के पास एक गंदे जगह को साफ़ करके 2 अक्टूबर 2016 को गाँधी जयंती के अवसर पर इन्होने 'नेकी की दीवार' शुरू कर दी. जहाँ से कोई जरूरतमंद व्यक्ति ख़ुशी से अपने उपयोग के सामान यथा कपड़े, खाने की चीजें, जूता-चप्पल आदि ले जा सकता है. मतलब जिसके घर में ऐसा सामान है जिसका इस्तेमाल अब वह नहीं कर रहे तो उसे यहां 'नेकी की दीवार' के पास पहुंचा दें.
इनके सराहनीय कार्य को देखते हुए बिहार माड़वाड़ी युवा संघ, माँ वैष्णो देवी समिति, यूथ फॉर स्वराज और लायंस क्लब आदि संस्थाओं ने इन्हें सम्मानित किया है. इन्होने पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने और समाज को विकसित करने के उद्देश्य से 'ऑपरेशन स्मार्ट थॉट' के नाम से एक वाट्सएप ग्रुप भी बनाया है जिस प्लेटफॉर्म पर कोई भी युवा आकर समाज की बेहतरी के लिए अपने सुझाव रख सकता है. पर्यावरण और समाज के प्रति यह समर्पण देखकर इस युवा पर्यावरण के प्रहरी के जज्बे को 'बोलो ज़िन्दगी' सैल्यूट करता है.
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